Tuesday, October 2, 2012

We can not assess the value of living personalities?

We can not assess the value of living personalities?
WHY? " हम जीवित व्यक्तित्व का मूल्य आंक ही नही सकते |"

यह कैसे विडम्बना है की जब कोई महापुरुष जीवित होता है तब लोग उसे प्रताड़ित करते है ,उसकी आलोचना करते है |श्री कृष्ण को उनके जीवन काल में अपमान का सामना करना पड़ा ,गालिया खानी पड़ी ,एक से बढ़कर एक षड्यंत्र उनके खिलाफ रचे गए | लोगो ने कहा यह ग
्वाला चोर है ,उन पर मणि चोरी का इल्जाम लगा ,उन्हें रणछोड कह कर बुलाया गया |आज उनके जाने के इतने समय बाद हम अहसास करते है की वह एक उच्च कोटि का व्यक्तित्व था ,योगीश्वर था ,गीता जैसे ग्रन्थ का रचियता था | आज उनके जाने के इतने वर्षो बाद हम चाहते है की काश हम उनके पास रह पाते | क्योंकि हम मुर्दा पूजक है ,मुर्दा लोगो के पूजा करते है ,उनका श्राद्ध करते है |जब तक माता-पिता जीवित होते है ,हम उनकी आलोचना करते है ,उनका ख्याल नही रखते | जब वो मर जाते है तो उनका श्राद्ध करते है ,उन्हें खीर बना कर खिलाना चाहते है |

शंकराचार्य ,ईसामसीह ,मुहम्मद साहब ,सुकरात सभी के साथ उनके शिष्यों ने यही तो किया | ईसामसीह को सूली पर टांग दिया गया, सुकरात को जहर पीने के लिए बाध्य किया गया ,शंकराचार्य को उनके ही शिष्य ने कांच घोटकर पिला दिया |क्या हम इतिहास में हुई गलतियों से सीख नही ले सकते ?क्या हम वैसे शिष्य नही बन सकते जैसा गुरुदेव चाहते है ? सदगुरुदेव निखिल हमेशा कहते रहे है की शंकराचार्य के मृत्यु के समय शब्द थे की ," शिष्य बहुत घटिया शब्द है ",मैं शंकराचार्य के इस वाक्य को गलत सिद्ध करना चाहता हूँ | मैं आप लोगो के माध्यम से यह सिद्ध कर देना चाहता हूँ कि शिष्य एक उच्च कोटि का शब्द है , भाव है |

सदगुरुदेव डा. नारायण दत्त श्रीमाली जी से मैंने दीक्षा ली है |तब भी मैंने देखा है कि लोग उनकी आलोचना करते थे ,उन्हें गालिया देते थे ,उनके खिलाफ लोगो को भड़काते थे | आज वही लोग उनकी याद में रोते है और कहते है कि बहुत महान व्यक्तित्व था |आज लोगो का ऐसा व्यवहार त्रिमूर्ति गुरुदेव के प्रति देखने को मिल रहा है | वैसे ही उन्हें भला बुरा कहना ,उनकी आलोचना करना ,लोग आज भी उसी तरह से है कोई बदलाव नही आया यह देख कर बहुत दुःख होता है | 

क्या हम गुरुदेव के सिद्धाश्रम जाने के बाद ही उन्हें समझ पायेंगे ,क्या उनके साक्षात होने का ,उनके चरणों में बैठने का लाभ नही उठा सकते ? जैसे सदगुरुदेव निखिल सिद्धाश्रम चले गए है वैसे ही एक दिन जब गुरुदेव सिद्धाश्रम चले जायेंगे तब शायद हमे अहसास होगा कि हमने क्या खो दिया है | सदगुरुदेव निखिल ने बिलकुल सही कहा है कि " हम जीवित व्यक्तित्व का मूल्य आंक ही नही सकते |"

मेरे बारे में इससे श्रेष्ठ और कुछ नहीं हो सकता हैं कि मैं उस समुद्र की एक बूंद हूँ, जिस समुद्र का नाम "परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी महाराज (सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी" हैं. कुछ कागज के नोटों को कमाना, कुछ कंकड़-पत्थर को जमा कर

ना उन्होंने अपने शिष्यों को नहीं सिखाया. अपितु उन्होंने अपने शिष्यों को उत्तराधिकार में दिया : "प्रहार करने की कला - ताकि वे इस समाज में व्याप्त ढोंग और पाखण्ड पर प्रहार कर सके....... ..... और दे सके प्रेम, ताकि वे दग्ध हृदयों पर फुहार बनकर बरस सके, जलते हुए दिलों का मरहम बन सके, बिलखते हुए आंसुओं की हंसी बन सकें, छटपटाते हुए प्राणों की संजीवनी बन सकें." गुरुदेव चरणों में बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ....... जो मेरे जीवन की सर्वश्रेष्ठ और अनमोल निधि हैं.... आज भी उनके चरणों की, उनके सानिध्य की कामना करता हूँ....... ....... .............. क्यूंकि जीवन का सौभाग्य यही हैं की मनुष्य इस जीवन में गुरु को प्राप्त करे.
मेरे प्रिय डॉ नारायण दत्त श्रीमाली....

talks about Sishya Dharm by Dr. Narayan Dutt Shrimali




what is paap by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali ji

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what is paap  and how end this Paap karm...

Shiv Poojan and Aarti by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali ji

Shashtrokt shivling poojan and aarti done by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali ji (Part 1 of 5)





Hanuman Chalisa in different style- Narayan Dutt Shrimali

Hanuman Chalisa in different style- Narayan Dutt Shrimali


Hanuman Chalisa for harmony, love and to remove all difficulties in life. Find the benefits.

Thursday, September 13, 2012

Diksha methodology, significance, kinds


दीक्षा-पद्धति, महत्व, प्रकार, आदि.
Diksha - methodology, significance, kinds

दीक्षा क्या हैं?

मेरे शिष्य मेरी सम्पदा -सदगुरुदेव

“दीक्षा” सदगुरु दर्शन, स्पर्श और शब्द के द्वारा शिष्य के भीतर शिवभाव उत्पन्न करने की क्रिया हैं | ‘दीक्षा’ज्ञान देने की क्रिया हैं, जिसके द्वारा जीव का उद्धार होता हैं, और वह अपने मूल स्वरुप ब्रह्म तक जाकर अखंडानंद में लीन हो जाता हैं | ‘दीक्षा’ का रहस्य इतना गूढ़ और जटिल हैं, कि उसे मात्र कुछ शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता हैं, क्योंकि यह तो साक्षात् ईश्वर द्वारा गुरु रूप में उपस्थित होकर मनुष्य को पूर्णता प्रदान करने की क्रिया हैं | ‘दीक्षा’ को ही सम्पूर्ण साधना कहा गया हैं, सदगुरु यदि शक्तिपात द्वारा अपनी शक्ति का कुछ अंश दीक्षा के माध्यम से अपने शिष्य को देते हैं, तो फिर किसी भी प्रकार की, उससे सम्बंधित साधना की उसे आवश्यकता ही नहीं पड़ती, क्योंकि ‘दीक्षा’ साधना सिद्धि का द्वार खोलने की क्रिया हैं, जिससे साधक अपने जीवन को निश्चित अर्थ दे सकता हैं |

“दीक्षा” का तात्पर्य यही हैं, कि सदगुरु के पास तपस्या का जो विशेष अंश हैं, जो आध्यात्मिक पूँजी हैं, उसे वे अपने नेत्रों के माध्यम से शक्तिपात क्रिया द्वारा, शिष्य को दैहिक, भौतिक, आध्यात्मिक आवश्यकतानुसार उसके हृदय में उतार सकें | यदि शिष्य का शरीर रुपी कपडा मैला हो गया हैं, तो सदगुरुदेव उसे बार-बार दीक्षा के माध्यम से धोकर स्वच्छ कर सकें!

दीक्षाओं की आवश्यकता क्यों और किसलिए?
दीक्षाओं की आवश्यकता क्यों और किसलिए?

युग परिवर्तन की इस संधिबेला में दिन-प्रतिदिन ऐसी अनहोनी घटनाएं घट रही हीं, कि हर मानव-मन अपने जीवन की सुरक्षा को लेकर भयभीत व चिंतित हैं, वह किसी ऐसी सत्ता के आश्रय की खोज में हैं, जो उसे, उसके परिवार को, सुरक्षा कवच पहिनाकर, उसकी सारी परेशानियों को अपने ऊपर लेकर उसे भयमुक्त कर सकें, और यह सुरक्षा उसे सदगुरु के द्वारा प्रदान की गई दीक्षाओं से ही प्राप्त हो सकती हैं | दीक्षाओं को लेने की आवश्यकता हमारे जीवन में इसलिए भी हैं क्योंकि :

1. दीक्षा प्राप्ति के उपरांत शिष्य को उससे सम्बंधित किसी भी प्रकार की साधना करने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती|
2. सदगुरु अपनी ऊर्जा के प्रवाह द्वारा शिष्य के शरीर में वह शक्ति प्रवाहित कर देते हैं, जिससे उसे मनोवांछित सफलता प्राप्त होती ही हैं|
3. यह शास्त्रीय विधान हैं, कि जब तक साधक या शिष्य किसी साधना से सम्बंधित दीक्षा विशेष को प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक वह सफलता प्राप्त नहीं कर सकता|
4. जीवन के दुःख, दैन्य, भय, परेशानी, बाधा एवं अडचनों को दूर कर शारीरिक, मानसिक, आर्थिक लाभ हेतु भी दीक्षाओं की आवश्यकता होती हैं|
5. नैतिक उत्थान के साथ-साथ जीवन में बासंती हवा जैसी मधुरता और सूर्य जैसा प्रकाश दीक्षाओं के माध्यम से ही संभव हैं|
6. जीवन में अनवरत उन्नति, सफलता, विजय, सुख-शांति, ऐश्वर्य, यश व कीर्ति पाने के लिए|
7. भविष्य ज्ञान, भविष्य कथन की विद्या ज्ञात करने, वर्तमान को संवारने हेतु!
8. शारीरिक सौंदर्य, सम्मोहन, निरोगी काया, प्रेम में सफलता व अनुकूल विवाह हेतु|
9. सभी प्रकार की अपनी गुप्त इच्छाओं की पूर्ती हेतु|
10. सभी प्रकार के कष्टों, समस्याओं का निवारण, मनोवांछित कार्य एवं इच्छाओं की पूर्ति हेतु जीवन को सही दिशा प्रदान करने के लिए दीक्षाओं की आवश्यकता प्रत्येक मानव को पड़ती ही हैं|

-: दीक्षाओं के प्रकार :-
-: दीक्षाओं के प्रकार :-
दीक्षाओं को शास्त्रों में 108 प्रकार से वर्णित किया गया हैं| इन 108 दीक्षाओं में भौतिक, शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान और सभी सभी प्रकार के सुखों की उपलब्धि छिपी हुई हैं| स्त्री हो या पुरुष, बालक हो या वृद्ध, चाहे किसी भी समुदाय, जाति, संप्रदाय का व्यक्ति क्यों न हो, इन दीक्षाओं को पूज्यपाद सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी से कसी भी शिविर में या जोधपुर स्थित उनके गुरुधाम में पहुँच कर प्राप्त कर सकता हैं| व्यक्ति चाहे तो इनमें से एक, दो या कुछ चुनी हुई दीक्षाएं या समस्त दीक्षाएं अपनी इच्छानुसार ले सकते हैं| इन दीक्षाओं को 108 भागों में इस प्रकार बांटा गया हैं-

-: कब कौन सी दीक्षा ली जाएँ :-
1. सामान्य दीक्षा : शिष्यत्व धारण करने हेतु यह प्रारंभिक गुरु दीक्षा हैं|
2. ज्ञान दीक्षा : अद्वितीय ज्ञान की प्राप्ति और मेधा में वृद्धि हेतु|
3. जीवन मार्ग : जीवन के सारे अवरोधों, अशक्तता को समाप्त करके जीवन को चैतन्यता प्रदान करने वाली दीक्षा|
4. शाम्भवी दीक्षा : शिवत्व प्राप्त कर शिवमय होने के लिए|
5. चक्र जागरण दीक्षा : समस्त षट्चक्रों को जाग्रत कर अद्वितीय बनाने वाली दीक्षा|
6. विद्या दीक्षा : जड़मति को सूजन कालीदास बना देने वाली दीक्षा|
7. शिष्याभिषेक दीक्षा : पूर्ण शिष्यत्व प्राप्त करने के लिए|
8. आचार्याभिषेक दीक्षा : ज्ञान की पूर्णता के लिए|
9. कुण्डलिनी जागरण : इस दीक्षा के सात चरण हैं| इसे एक-एक करके भी लिया जा सकता हैं या एक साथ सातों चरणों की दीक्षा द्वारा कुण्डलिनी का जागरण कर अद्वितीय व्यक्तित्व का धनी बना जा सकता हैं|
10. गर्भस्थ शिशु चैतन्य : गर्भस्थ बालक को अभिमन्यु की भांति मनोनुकूल बनाने हेतु दीक्षा!
11. शक्तिपात से कुण्डलिनी : गुरु की तपस्या के अंश, दीक्षा द्वारा प्राप्त कर प्रथम व जागरण दीक्षा जीवन का अंतिम सत्य प्राप्त करने हेतु|
12. फोटो द्वारा कुण्डलिनी जागरण दीक्षा : यह दीक्षा व्यक्ति के उपस्थित न होने पर फोटो से भी प्राप्त की जा सकती हैं|
13. धन्वंतरी दीक्षा : निरोगी काया प्राप्त करने हेतु|
14. साबर दीक्षा : तांत्रिक साधना में सफलता व सिद्धि के लिए|
15. सम्मोहन दीक्षा : अपने अंदर अद्भुत सम्मोहन पैसा करने हेतु|
16. सम्पूर्ण सम्मोहन दीक्षा : सभी को सम्मोहित करने की कला प्राप्ति हेतु|
17. महालक्ष्मी दीक्षा : सुख-सौभाग्य, आर्थिक लाभ की प्राप्ति हेतु|
18. कनकधारा दीक्षा : लक्ष्मी के निरंतर आवागमन के लिए|
19. अष्टलक्ष्मी दीक्षा : धन प्रदायक विशेष दीक्षा|
20. कुबेर महादीक्षा : कुबेर की भांति स्थायी सम्पन्नता पाने हेतु|
21. इन्द्र वैभव दीक्षा : इन्द्र जैसा वैभव, यश प्राप्त करने हेतु|
22. शत्रु संहारक दीक्षा : शत्रु से बदला लेने हेतु|
23. प्राण वल्लभा अप्सरा : प्राणवल्लभा अप्सरा की सिद्धि हेतु|
24. सामान्य ऋण मुक्ति : ऋण से मुक्त होने हेतु|
25. शतोपंथी दीक्षा : शिव की अद्वितीय शक्ति प्राप्ति हेतु|
26. चैतन्य दीक्षा : स्फूर्तिदायक, पूर्ण चैतन्यता प्रदान करने वाली दीक्षा|
27. उर्वशी दीक्षा : वृद्धता मुक्ति एवं यौवन प्राप्ति हेतु|
28. सौन्दर्यौत्तमा अप्सरा : पुरुष व स्त्री दोनों का ही पूर्ण कायाकल्प करने हेतु|
29. मेनका दीक्षा : विश्वामित्र की तरह पूर्ण साधनात्मक व भौतिक सफलता प्राप्ति हेतु|
30. स्वर्ण प्रभा यक्षिणी : आकस्मिक धन प्राप्ति के लिए|
31. पूर्ण वैभव दीक्षा : समस्त प्रकार के आनन्द, वैभव की प्राप्ति हेतु|
32. गन्धर्व दीक्षा : गायन संगीत में दक्षता के लिए|
33. साधना दीक्षा : पूर्वजन्म की साधना को इस जन्म से जोड़ने हेतु|
34. तंत्र दीक्षा : तांत्रिक साधनाओं में सफलता हेतु|
35. बगलामुखी दीक्षा : शत्रु को परास्त कर अपने अंदर अद्वितीय साहस भरने वाली दीक्षा|
36. रसेश्वरी दीक्षा : रसायन-शास्त्र में दक्षता के लिए तथा पारद -संस्कार विद्या प्राप्त करने हेतु|
37. अघोर दीक्षा : शिवोक्त साधनाओं की पूर्ण सफलता के लिए|
38. शीघ्र विवाह दीक्षा : विवाह सम्बन्धी रुकावटों को मिटाकर शीघ्र विवाह हेतु|
39. सम्मोहन दीक्षा : यह तीन चरणों वाली महत्वपूर्ण दीक्षा हैं|
40. वीर दीक्षा : वीर साधना संपन्न कर, वीर द्वारा इच्छानुसार कार्य संपन्न कराने के लिए|
41. सौंदर्य दीक्षा : अद्वितीय सौंदर्य प्रदान करने वाली दीक्षा|
42. जगदम्बा सिद्धि दीक्षा : देवी को सिद्ध करने वाली दीक्षा|
43. ब्रह्म दीक्षा : सभी दैवीय शक्तियों को प्राप्त करने वाली दीक्षा|
44. स्वास्थ्य दीक्षा : सदैव स्वस्थ व निरोगी बनने हेतु|
45. कर्ण पिशाचिनी दीक्षा : सभी के भूत-वर्तमान को ज्ञात करने के लिए|
46. सर्प दीक्षा : सर्प दंश से मुक्ति व सर्प से आजीवन सुरक्षा हेतु|
47. नवार्ण दीक्षा : त्रिशक्ति की सिद्धि के लिए|
48. गर्भस्थ शिशु की कुण्डलिनी जागरण दीक्षा : इससे गर्भस्थ बालक के संस्कार महापुरुषों जैसे होते हैं|
49. चाक्षुष्मती दीक्षा : नेत्र ज्योति बढ़ाने के लिए|
50. काल ज्ञान दीक्षा : सही समय पहिचान कर उसका सदुपयोग करने हेतु|
51. तारा योगिनी दीक्षा : तारा योगिनी की सिद्धि हेतु, जिससे जीवन भर अनवरत रूप से धन प्राप्त होता रहे|
52. रोग निवारण दीक्षा : समस्त रोगों को मिटने हेतु|
53. पूर्णत्व दीक्षा : जीवन में पूर्णता प्रदान करने वाली दीक्षा|
54. वायु दीक्षा : अपने-आप को हल्का, हवा जैसा बनाने हेतु|
55. कृत्या दीक्षा : मारक सिद्धि प्रयोग की दीक्षा|
56. भूत दीक्षा : भूतों को सिद्ध करने की दीक्षा|
57. आज्ञा चक्र जागरण दीक्षा : दिव्य-दृष्टि प्राप्ति के लिए|
58. सामान्य बेताल दीक्षा : बेताल शक्ति को प्रसन्न करने के लिए|
59. विशिष्ट बेताल दीक्षा : बेताल को सम्पूर्ण सिद्ध करने के लिए|
60. पञ्चान्गुली दीक्षा : हस्त रेखा-शास्त्र में निपुणता प्राप्त करने के लिए|
61. अनंग रति दीक्षा : पूर्ण सौंदर्य एवं यौवन शक्ति प्राप्त करने के लिए|
62. कृष्णत्व गुरु दीक्षा : जगत गुरुत्व प्राप्त करने के लिए|
63. हेरम्ब दीक्षा : गणपति की सिद्धि हेतु|
64. हादी, कादी, मदालसा : नींद व भूख-प्यास पर नियंत्रण के लिए|
65. आयुर्वेद दीक्षा : आयुर्वेद के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि के लिए|
66. वराह मिहिर दीक्षा : ज्योतिष के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि के लिए|
67. तांत्रोक्त गुरु दीक्षा : गुरु से हठात (बल पूर्वक) शक्ति प्राप्ति हेतु|
68. गर्भ चयन दीक्षा : अपने मनोनुकूल गर्भ की प्राप्ति हेतु|
69. निखिलेश्वरानंद दीक्षा : संन्यास की विशेष भावभूमि प्राप्ति हेतु|
70. दीर्घायु दीक्षा : लंबी आयु की प्राप्ति हेतु दीक्षा|
71. आकाश गमन दीक्षा : इससे मन, आत्मा, आकाश का भ्रमण करती हैं|
72. निर्बीज दीक्षा : जन्म-मरण, कर्म-बंधन की समाप्ति के लिए|
73. क्रिया-योग दीक्षा : जीव-ब्रह्म ऐक्य ज्ञान प्राप्ति हेतु|
74. सिद्धाश्रम प्रवेश दीक्षा : सिद्धाश्रम में प्रवेश पाने हेतु|
75. षोडश अप्सरा दीक्षा : जीवन में समस्त सुख-सौभाग्य, संपत्ति प्राप्ति के लिए|
76. षोडशी दीक्षा : सोलह कला पूर्ण, त्रिपुर सुंदरी साधना हेतु|
77. ब्रह्माण्ड दीक्षा : ब्रह्माण्ड के अनंत रहस्यों को जानने के लिए|
78. पशुपातेय दीक्षा : शिवमय बनने के लिए|
79. कपिला योगिनी दीक्षा : राज्य बाधा एवं नौकरी में आने वाली अडचनों को दूर करने हेतु|
80. गणपति दीक्षा : भगवान गणपति की विशिष्ट कृपा प्राप्ति हेतु|
81. वाग्देवी दीक्षा : वाक् चातुर्य एवं वाक् सिद्धि के लिए|


इसके अतिरिक्त कुछ विशिष्ट उच्च कोटि की दीक्षाएं भी हैं, जो पूज्य गुरुदेव से परामर्श कर प्राप्त की जा सकती हैं|

“दीक्षा का तात्पर्य यह नहीं हैं कि आप जिस उद्देश्य के लिए दीक्षा ले रहे हैं, वह कार्य संपन्न हो ही जाएँ, अपितु दीक्षा का तात्पर्य तो यह हैं कि, आप जिस उद्देश्य के लिए दीक्षा ले रहे हैं, उस कार्य के लिए आपका मार्ग प्रशस्त हो|”

नोट: मेरी सलाह यह हैं कि किसी भी दीक्षा की प्राप्ति के पूर्व हो सके तो गुरुदेव से अवश्य परामर्श ले ले...
जिससे कि आपका कार्य अतिशीघ्र पूर्ण हो सकें.


दीक्षाओं के लिए निश्चित न्यौछावर राशि देने की आवश्यकता क्यों:-


1. क्योंकि यह हमारी भारतीय परम्परा रही हैं, कि हम गुरु का ज्ञान बिना गुरु दक्षिणा के प्राप्त नहीं कर सकते|
2. बिना गुरु आज्ञा के विद्या सीखने पर एकलव्य को भी अंगूठा दान देना ही पड़ा था|
3. व्यक्ति के पास इतना समय, साधना व आध्यात्मिक शक्ति नहीं हैं, कि वह कठोर साधना कर सकें, इसलिए दीक्षा की कुछ दक्षिणा-राशि गुरु-चरणों में अर्पित कर, वह उस साधना के रूप में तपस्या के अंश को प्राप्त करता हैं| अपने समय, श्रम द्वारा गुरु-सेवा न कर सकने के बदले वह अपना अंशदान देता हैं|
4. आपकी दीक्षा के बदले दी गई राशि अनगिनत साधू-सन्यासियों, तपस्वियों, योगियों का भरण-पोषण करती हैं|
5. इस धन के माध्यम से स्थान-स्थान पर निःशुल्क चिकित्सा, प्याऊ, निर्धनों के लिए कम्बल एवं वस्त्र वितरण आदि समाजोपयोगी कार्य संपन्न होते हैं|
6. गरीबों एवं निर्धन विद्यार्थियों की शिक्षण सुविधा के लिए भी आपका दिया हुआ यह अंशदान उन्हें सहायता के रूप में प्राप्त होता हैं|

आदि....

आदि....

Friday, August 3, 2012

Debt relief, Gold Supplier text Knkdhara ODE

ऋण मुक्ति, स्वर्ण प्रदायक पाठ  कनकधारा स्तोत्र 

कनकधारा स्तोत्र

अंग हरे पुलकभूषणमाश्रयंती , भृंगागनेव मुकुलाभरणं तमालम |
अंगीकृताखिलविभूतिर पांग लीला, मांगल्यदास्तु मम मंगदेवताया || १ ||

मुग्धा मुहुर्विदधाति वदने मुरारेः , प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि |
माला दुशोर्मधुकरीय महोत्पले या, सा में श्रियं दिशतु सागरसंभवायाः || २ ||

विश्वासमरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष , मानन्दहेतुरधिकं मधुविद्विषो पि |
इषन्निषीदतु मयी क्षणमीक्षर्णा, मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः || ३ ||

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द, मानन्दकन्मनिमेषमनंगतन्त्रम |
आकेकरस्थितिकनीकिमपक्ष्म नेत्रं, भूत्यै भवेन्मम भुजंगशयांगनायाः || ४ ||

बाह्यंतरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या, हारावलीव हरीनिलमयी विभाति |
कामप्रदा भागवतोपी कटाक्ष माला, कल्याणमावहतु मे कमलालायायाः || ५ ||

कालाम्बुदालितलिसोरसी कैटमारे, धरिधरे स्फुरति या तु तडंग दन्यै |
मातुः समस्तजगताम महनीयमूर्ति , र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः || ६ ||

प्राप्तम पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान, मांगल्यभाजि मधुमाथिनी मन्मथेन |
मययापतेत्तदिह मन्थन मीक्षर्णा, मन्दालसम च मकरालयकन्यकायाः || ७ ||

दाद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा, मस्मिन्न वि किंधनविहंगशिशौ विपाणे |
दुष्कर्मधर्म मापनीय चिराय दूरं, नारायणप्रगणयिनीनयनाम्बुवाहः || ८ ||

इष्ट विशिष्टमतयोपी यया दयार्द्र, दुष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लर्भते |
दृष्टिः प्रहष्टकमलोदरदीप्तिरीष्टां, पुष्टि कृपीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः || ९ ||

गीर्तेवतेती गरुड़ध्वजभामिनीति, शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति |
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै, तस्यै नमास्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुन्यै || १० ||

क्ष्फत्यै नमोस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै, रत्यै नमोस्तु रमणीयगुणार्णवायै |
शक्त्यै नमोस्तु शतपनिकेतनायै, पुष्ट्यै नमोस्तु पुरुषोत्तम वल्लभायै || ११ ||

नमोस्तु नालीकनिभान्नायै, नमोस्तु दुग्धोदधिजन्म भूत्यै |
नमोस्तु सोमामृतसोदरायै , नमोस्तु नारायणवल्लभायै || १२ |

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि, साम्राज्यदान विभवानि सरोरुहाक्षि |
त्वद्वन्द्वनानि दुरिताहरणोद्यतानी , मामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्यम || १३ ||

यत्कटाक्ष समुपासनाविधिः, सेवकस्य सकलार्थ सम्पदः |
संतनोति वचनांगमान, सैस्त्वां मुरारीहृदयेश्वरीं भजे || १४ ||

सरसीजनिलये सरोजहस्ते, धवलतमांशु -कगंधमाल्य शोभे |
भगवती हरिवल्लभे मनोज्ञे, त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यं || १५ ||

दिग्धस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट, स्वर्वाहिनीतिमलाचरूजलप्तुतांगम |
प्रातर्नमामि जगताम जननीमशेष, लोकाधिनाथ गृहिणीम मृताब्धिपुत्रिम || १६ ||

कमले कमलाक्षवल्लभे, त्वम्, करुणापूरतरंगितैपरपाडयै |
अवलोकय ममाकिंचनानां, प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः || १७ ||

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमू भिरन्वहं, त्रयोमयीं त्रिभुवनमातरम रमाम |
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभामिनी, भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः || १८ ||