Friday, May 2, 2014

16 Sadhanas used by Radha to completely hypnotize Krishana

The article details 16 Sadhanas used by Radha to completely 
hypnotize Krishana :

One needs to chant a total of 666 Rosaries for all these prayogs. 
However, you may achieve success with just 10% of these. You may do 
equivalent of 5 malas of each Prayog during Eclipse time to achieve 
success. If you do not have Sadhana materials, then you may use 
yellow coloured rice (mixed with turmeric powder (haldi)) , and offer 
each rice grain onto Gurudev's photograph with each Mantra chanting.


1. Mohini Prayog Mantra:

|| OM KLEEM MOHINI SARV JAN MOHAYE MOHAYE HOOM ||

Sadhana Materials : Mohini Vashikaran Yantra, Raktambh Rosary Mantra 

Count : 21 Malas X 3 days = 63 malas


2. Priyakarshan Prayog Mantra:

|| OM KLEEM VAJRESHWARI MAM PRIYA AAKARSHYA AAKARSHYA PHAT ||

Sadhana Materials : Priyakarshan Yantra, Priyakarshan Gutika, 
Priyanku Rosary

Mantra Count : 7 Malas X 5 days = 35 malas


3. Chandralalita Prayog Mantra:

|| OM CHANDRALALITAYE AMUK VASHYAMAANAYA SWAHA ||

Sadhana Materials : Chandra Shodash Kala Yantra, Chandra Lalita Rosary

Mantra Count : 11 Malas X 5 days = 55 malas


4. Anang Prayog Mantra:

|| OM HROUM ANANG DEVAYE TRELOKAYE SAMMOHAYE HROUM NAMAH ||

Sadhana Materials : Divya Anang MahaYantra, Shukra Phal, Pranaye 
Rosary

Mantra Count : 11 Malas X 6 days = 66 malas


5. Shukra Tejas Prayog Mantra:

|| OM SHAM SHUKRAYE KAAMDEV RATYE PHAT ||

Sadhana Materials : Shukra Tejas Yantra, Soundarya Rosary

Mantra Count : 6 Malas X 7 days = 42 malas


6. Agni Madan Prayog Mantra:

|| OM AGNISCHEITANAAYE NAMAH ||

Sadhana Materials : Agni Madan Yantra, Agnisaffuling Rosary

Mantra Count : 11 Malas X 4 days = 44 malas


7. Indu Prayog Mantra:

|| OM HREEM MOHAYE SAMMOHAYE OM ||

Sadhana Materials : Indu Sammohaye Yantra, Vidyut Mohini Rosary

Mantra Count : 7 Malas X 5 days = 35 malas


8. Rati Vashya Prayog Mantra:

|| OM AAKARSHAN SAMMOHAYE HREEM KLEEM OM ||

Sadhana Materials : Rati Vashya Yantra, Vashikaran Rosary

Mantra Count : 11 Malas X 3 days = 33 malas


9. Koti Kandarp Laavanaye Prayog Mantra:

|| OM HREEM HREEM KANDARP ANANGAAYE HREEM HREEM OM ||

Sadhana Materials : Kandarp Laavanaye Yantra, Anangaast, Hakeek Rosary

Mantra Count : 11 Malas X 5 days = 55 malas


10. Pushpdant Prayog Mantra:

|| OM KLEEM KAAM RUPINAYE NAMAH ||

Sadhana Materials : Pushpdant Yantra, Padma Rosary

Mantra Count : 8 Malas X 1 days = 8 malas


11. Narayani Prayog Mantra:

|| OM NARTAV HREEM NARANYANTAV SHREEM OM ||

Sadhana Materials : Narayani Yantra, Narayan Rosary

Mantra Count : 5 Malas X 3 days = 15 malas


12. Vidyut Prabha Prayog Mantra:

|| OM KROUM KROUM KAYAKALP SHROUM SHROUM OM ||

Sadhana Materials : Vidyut Prabha Yantra, Kayakalp Rosary

Mantra Count : 15 Malas X 4 days = 60 malas


13. Vajra Vaarahi Prayog Mantra:

|| OM KLEEM VAJRA VEIROCHANIYE PHAT ||

Sadhana Materials : Vjara Varahi Maha Yantra, Red Hakeek Rosary

Mantra Count : 8 Malas X 5 days = 40 malas


14. Manohar Prayog Mantra:

|| OM OM MANOHAARINAYE SUR DEVYE OM OM ||

Sadhana Materials : Manohara Siddhi Yantra, Manohara Rosary

Mantra Count : 15 Malas X 4 days = 60 malas


15. Kaamdhenu Prayog Mantra:

|| OM KREEM SHREEM HREEM HREEM OM ||

Sadhana Materials : Kamdhenu Yantra, Vidyut Rosary 

Mantra Count : 11 Malas X 5 days = 55 malas

Friday, April 25, 2014

sadhan saflta rahsya गुरु-पुष्य नक्षत्र योग क्या है

जब भी गुरु पुष्य नक्षत्र हो ,उस  अवसर पर पाठकों के लिए प्रस्तुत है 
गुरु-पुष्य नक्षत्र कि महत्वता को दर्शाता ये महत्वपूर्ण लेख -


क्या ऐसा कोई योग है जिसमें किसी भी साधना में निश्चित सफलता मिलती ही है ? क्या ऐसा कोई दिन है जब व्यापार/शुभ कार्यादी करें तो उसमें हर हाल में उन्नति होती है ?? क्या ऐसा भी कोई अवसर है, जो अक्षय तृतीय एवं धनतेरस के बराबर महत्व रखता है ?
गुरु-पुष्य नक्षत्र योग क्या है 

‘पाणिनी संहिता’ में “पुष्य सिद्धौ नक्षत्रे” के बारे में यह लिखा है-

सिध्यन्ति अस्मिन् सर्वाणि कार्याणि सिध्यः | पुष्यन्ति अस्मिन् सर्वाणि कार्याणि इति पुष्य ||

अर्थात पुष्य नक्षत्र में शुरू किये गए सभी कार्य सिद्ध होते ही हैं.. फलीभूत होते ही हैं | पुष्य शब्द का अर्थ ही है कि जो अपने आप में परिपूर्ण है.. सबल है.. पूर्ण सक्षम और पुष्टिकारक है..| हिंदी शब्दकोष में ‘पुष्टी’ शब्द का निर्माण संस्कृत के इसी पुष्य शब्द से हुआ | २७ नक्षत्रों में से एक ‘पुष्य नक्षत्र’ है, और इस दिन जब गुरुवार भी हो तो उसे गुरु पुष्य नक्षत्र या ‘गुरु पुष्यामृत योग’ कहते हैं | इस दिन कोई भी साधना अवश्य शुरू करें, और आँख मूँद कर उसकी सिद्धि का यकीन करें और पूर्ण तन्मयता के साथ सहना संपन्न करें | गरूर साधना और गुरु पूजन तो प्रत्येक शिष्य को इस दिन करना अनिवार्य ही है |

पूज्य गुरुदेव ने गुरु पुष्य की विशेषता स्पष्ट करते हुए कहा है, कि सभी योग विरुद्ध हों, तो भी पुष्य नक्षत्र में किया गया कार्य सिद्ध हो जाता है | पुष्य नक्षत्र अन्य सभी योगों के दोषों को दूर कर देता है, और पुष्य के गुण किसी भी दुर्योग द्वारा नष्ट नहीं हो सकते !

गुरु पुष्य में कौन सी साधना संपन्न करें ?

सामान्य लोग इस दिन स्वर्ण खरीदते हैं, यदि धनतेरस के दिन स्वर्ण/रजत नहीं खरीद पाए तो इस दिन खरीद सकते हैं, इससे भी निरंतर श्री वृद्धि होती रहती है | इसके साथ ही कोई नई वस्तु, नया कारोबार, वाहन गृह प्रवेश आदि कर सकते हैं, इस दिन जो भी खरीदते हैं वह स्थायी संपत्ति सिद्ध होती है |

साधकों को इस दिन लक्ष्मी या श्री से सम्बंधित साधना करनी चाहिए | साथ ही किसी भी प्रकार की साधना चाहे सौन्दर्य से सम्बंधित हो, कार्य सिद्धि हो, विद्या प्राप्ति के लिए हो, कर सकते हैं | इस दिन आप किसी भी यन्त्र का लेखन करके उसको प्राण-प्रतिष्ठित कर सकते हैं | इस दिन आप किसी भी रत्न को सिद्ध कर सकते हैं |

शिष्यों को इस दिन गुरु पूजन और गुरु मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए |

गुरु पुष्य में क्या ‘नहीं’ करना चाहिए ?

सभी शुभ कार्यों को इस दिन संपन्न किया जा सकता है, केवल एक को छोड़कर..... ‘विवाह संस्कार’.. शाश्त्रों में उल्लेखित है कि एक श्राप के अनुसार इस दिन किया हुआ विवाह कभी भी सुखकारक नहीं हो सकता | माता सीता का प्रभु राम से विवाह इसी योग में हुआ था |

आखिर इस योग के सिद्धिदायक होने के पीछे रहस्य क्या है ??

इसका कारण यह है कि इस विशेष योग में जो नक्षत्र आकाश मंडल में मौजूद होता है, पुष्य नक्षत्र, इसके स्वामी ग्रह शनि हैं | शनि ग्रह स्थायित्व प्रदान करने वाले हैं.. इनकी चाल अत्यंत धीमी होती है, जो भी Astronomical Science के student हैं वे इस बात को भली प्रकार से जानते ही होंगे | और इस दिन गुरुवार हो, तो, गुरु जो स्वर्ण, धन, ज्ञान के प्रतीक हैं, और सर्व सिद्धिदायक हैं, जो सभी ग्रहों में सर्वाधिक शुभ फल दी वाले हैं, इनके प्रभाव से प्रत्येक कार्य सिद्ध भी होता है.. और शनि के कारण स्थायी भी होता है | शनि एकांत प्रदान करते हैं, जो कि साधना के लिए आवश्यक अंग है |

युद्धम् देहि yuddham dehi


सद्गुरुदेव ने यह साफ़ कहा था की मैंने तुम्हे अपने खून से इसलिए सींचा है क्योंकि आने वाले समय में समाज में छल , जूठ ,पाखंड अपनी पराकाष्ठा पर होगा, उस समय तुम्हे सिंह वत उस पाखंड पर प्रहार करना है और समाज में फिर से सनातन धर्म को अपनी भव्यता के साथ स्थापित करना है।

इस वीडियो में सद्गुरुदेव ने स्वयं यह आदेश दिए है की अगर कोई भी निखिल नाम के आड़ में व्यवसाय करे तो यह आपका कर्तव्य है की ऐसे व्यक्तियों को मुह तोड़ जवाब दीजिये.....

मैं गीदड़ो की तरह भेर चाल चलने का आदि नहीं हूँ मेरे रक्त में सद्गुरुदेव का लहू दौड़ रहा है ..... मैंने यह लड़ाई अकेले ही अपने दम पर प्रारम्भ की थी, अगर इस लड़ाई में कोई मेरा साथ दे तो उसका स्वागत है अगर नहीं दे तो मै अकेले ही इन पाखंडियो को उनकी औकात दिखने में सक्षम हूँ। ...

इस वीडियो को एक बार जरूर सुन ले ताकि अगर आपके अन्दर पाखंड के विरुद्ध आवाज उठाने की छमता नहीं है तो कम से कम आप पाखंडियो का साथ न दें

पर मै सनातन धर्म की पुनर्स्थापन लिए यह लड़ाई अपने अंतिम सांस तक लड़ता रहूँगा....

http://www.youtube.com/watch?v=gun1RfAXos0&feature=share&list=PLo6ZpeYNN6rKhy-fFodAw7aaUdQFJCdDx&index=4

युद्धम् देहि

जय निखिलेश्वर जय महाकाल

Meet and would miss the compulsion of life


मिलना और बिछुड़ना दोनों जीवन की मजबूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे, जितनी हममें दूरी है।
शाखों से फूलों की बिछुड़न, फूलों से पंखुड़ियों की
आँखों से आँसू की बिछुड़न, होंठों से बाँसुरियों की
तट से नव लहरों की बिछुड़न, पनघट से गागरियों की
सागर से बादल की बिछुड़न, बादल से बीजुरियों की
जंगल जंगल भटकेगा ही जिस मृग पर कस्तूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे, जितनी हममें दूरी है।
सुबह हुए तो मिले रात-दिन.. माना रोज बिछुड़ते हैं
धरती पर आते हैं पंछी.. चाहे ऊँचा उड़ते हैं
सीधे सादे रस्ते भी तो ..कहीं कहीं पर मुड़ते हैं
अगर हृदय में प्यार रहे तो..टूट टूटकर जुड़ते हैं
हमने देखा है बिछुड़ों को मिलना बहुत जरूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे, जितनी हममें दूरी है।
hirendra jay sadgurudev

Must ask you this coming time


  • आने वाला समय तुमसे ये अवश्य पूछेगा Must ask you this coming time


    जीवन में ऊंचा उठना हैं और यदि नहीं उठते हैं तो यह जीवन व्यर्थ हैं, क्योंकि ऊंची सीढ़ी पर चढ़ना बहुत कठिन हैं, नीचे फिसलना बहुत आसान हैं ! दस सीढियों से नीचे उतरने में एक सेकंड लगता हैं, परन्तु दस सीढ़ी चढ़ने में आपको बीस सेकंड लगेंगे ! एक-एक सीढ़ी चढ़नी पड़ेगी, आपको नित्य बार-बार सोचना पड़ेगा कि :-



    मैं शिष्य बन रहा हूँ या नहीं बन रहा हूँ ! क्या मेरे अन्दर राक्षस वृत्ति पनप रही हैं या सदगुणों का विकास हो रहा हैं? मेरा जीवन कैसा व्यतीत हो रहा हैं – अपने आप में विश्लेषण करना जीवन की श्रेष्ठता हैं, महानता हैं, और यह वह व्यक्ति कर सकता हैं, जो अपने आप में बिल्कुल शिष्यवत बनकर गुरु के पास रहने का सामर्थ्य रखता हैं, और शंकराचार्य कहते हैं, ऐसे ही व्यक्ति गुलाब के फूल बनते हैं, जो सही अर्थों में गुरु के लिए अपने आपको समर्पित कर देते हैं !


    शंकराचार्य कहते हैं जीवन का श्रेष्ठतम शब्द “शिष्य” हैं और शिष्य वह होता हैं जो अपनी जान को हथेली पर लेकर चलता हैं ! दो तरह के व्यक्ति होते हैं – एक व्यक्ति सदगुणों का आगार होता हैं, भंडार होता हैं, एक व्यक्ति षडयंत्र का भंडार होता हैं ! जो कि चौबीसों घंटे यही सोचता कि मैं कैसे छल करूँ? कैसे झूठ बोलूं? कैसे प्रपंच रचूं, कैसे इनको फुसलाऊं? कैसे इनमें फ़ुट डालूं? कैसे इन दोनों को लडाऊं? कैसे अपने आप को श्रेष्ठ सिद्ध करूँ?


    परन्तु शिष्य के चित्त पर इन सबका प्रभाव नहीं पड़ता, वे समझते हैं कि मैं क्या हूँ ! जो सही अर्थों में शिष्य हैं और जिनके अन्दर सदगुण हैं, वे असदगुणों को तुंरत भांप लेते हैं, जो गुलाब के फूलों के बीच रहते हैं, जब थोडी सी भी नाली कि दुर्गन्ध आती हैं तो वे भांप लेते हैं कि यहाँ दुर्गन्ध हैं, कहाँ से नाली बह रही हैं, यह मालूम नहीं, पर दुर्गन्ध हैं अवश्य, और उन्हें एहसास होता हैं कि उन्हें दुर्गन्ध से दूर हट जाना हैं !


    ऐसा शिष्य या तो किनारा करके खड़ा हो जाता हैं या फिर उस सुगंध में स्वयं को व्याप्त करने के लिए तैयार हो जाता हैं ! मगर वह नाली का कीडा नहीं बनता, और नाली का कीडा बनकर हज़ार साल भी जीवित रहने की अपेक्षा दो दिन जीवित रहना ज्यादा अच्छा हैं ! वह अपने गुरु की रक्षा करने के लिए उनकी आज्ञा पालन करने के लिए, अपने जीवन को भी आत्मोत्सर्ग करने के लिए, वह तैयार रहता हैं – यही जीवन की श्रेष्ठता का एक मापदंड हैं !


    यदि हमने गुरु के लिए अपने आप को न्यौछावर ही नहीं किया, तो जीवन व्यर्थ हैं ! जीवन में एक तरफ ऐसे व्यक्ति हैं जो गुरु हैं और जीवन में गुलाब के फूल तो चार पॉँच ही खिलेंगे और यदि चार पॉँच फूल भी टूट गए तो फिर कांटे ही जीवन में रह जायेंगे ! जहाँ भी जाओगे, तुम्हें कांटे ही मिलेंगे ! उन काँटों के बीच जीवित नहीं रहना हैं, क्योंकि अगर उन फूलों को जीवित रखना हैं तो उन काँटों को तोड़ना ही पड़ेगा, उन काँटों को तोडेंगे तो फूल विकसित होंगे, आसपास की घास खोदेंगे तो फूल का विकास होगा !


    और हमने जीवन में काँटों का विकास किया, या फूलों का विकास किया, काँटों की रक्षा के लिए अपने क्षणों को व्यतीत किया या फूलों की रक्षा के लिए अपने क्षणों को व्यतीत किया, यह चिंतन का विषय हैं ! हमने अपने जीवन के कितने क्षण उस गुरु को दिए? कितना समय उनके लिए दिया? किस प्रकार से उनको बचाया? किस प्रकार से उनकी सेवा की, यह जीवन का एक उच्च स्तरीय सोपान हैं ! यह जीवन का एक उच्च स्तरीय मापदंड हैं, अपने आपको नापने की एक क्रिया हैं, और यही स्थिति शिष्यता कहलाती हैं ! शिष्य शब्द से ही सेवा शब्द बना हैं और सेवा का मतलब हैं उन गुलाब के फूलों को विकसित करने में सहयोग देना और सहयोग देने के लिए तूफ़ान आंधी के बीच में तन कर के खड़े हो जाना, क्योंकि अगर वे ही गिर गए तो चारों तरफ़ नाली के कीड़े बहने लग जायेंगे ! फिर हमारा जीवन अपने आप में व्यर्थ हो जाएगा, फिर हमारे जीवन का कोई अर्थ नहीं रह पायेगा !


    मैंने तो सैकडों प्रकार के जीवन जीये हैं, गृहस्थ शिष्यों के बीच में भी रहा हूँ, सन्यासी शिष्यों के बीच भी रहा हूँ ! सन्यासियों में भी कई हलके स्तर के भी होंगे, कुछ बहुत अच्छे स्तर के भी हैं, जिनके नाम आज भी मेरे चित्त पर बहुत गहरी स्याही से लिखे हैं और और आज भी मैं उनके संपर्क में हूँ !


    कृष्ण के भी तीर लगा तो उनको भी खून निकला ही निकला, राम को भी अगर रावण के तीर लगे तो उनके शरीर में भी कम से कम 108 छेद हो ही गए थे ! वह तो एक शरीर हैं, उस शरीर के अन्दर ईश्वरत्व हैं, उस शरीर के अन्दर गुरुत्व हैं, उस शरीर के अन्दर शिष्यत्व हैं !


    आपने अपना जीवन किस तरीके से व्यतीत किया हैं और गुरु ने अपना जीवन किस तरीके से व्यतीत किया यह महत्वपूर्ण हैं ! क्या गुरु तुम्हारे बराबर सहयोगी रहे? क्या गुरु तुम्हें बार-बार प्रेम से बोलते रहे? क्या गुरु ने तुम्हें कभी गालियाँ दी? क्या गुरु ने तुमसे कभी षड़यंत्र किया? नहीं किया! तो तुम्हें भी कोई अधिकार नहीं हैं कि उनके प्रति षडयंत्र करें, उनके प्रति झूठ बोलें, या उनके प्रति छल करें, उनके प्रति तूफ़ान को आने दें ! गुरु को मानसिक शांति मिले, यही हमारा धर्म काल गणना हो ! इसलिए शंकराचार्य कहते हैं कि जन्म से लेकर मृत्यु तक चाहे आप व्यापारी हैं, चाहे नौकरी पेशा हैं, चाहे आप किसी भी क्षेत्र में हैं, आप शिष्य हैं !


    मृत्यु के क्षण तक भी शिष्य हैं, शिष्य का अर्थ हैं कि आप क्या जीवन में सीख रहे हैं? आप क्या कर रहे हैं और आप किसके लिए क्या कर रहे हैं? क्या अपने लिए? हमने दूसरों के लिए क्या किया वह महत्वपूर्ण हैं !


    अपने आपको बलिदान नहीं कर दिया तो शिष्य कैसे हुए? आगे भी चाहे गुरु तुम्हारे पास नहीं होगा, परन्तु वह सुगंध तुम्हारे पास व्याप्त होगी कि हमने कुछ क्षण ऐसे व्यक्ति के साथ बिताये हैं जिनमें ज्ञान था, चेतना थी, जो सही अर्थों में व्यक्तित्व था, मगर जिसे तूफानों के बीच धकेल दिया हमने !


    और तूफ़ान के बीच तो अच्छे से अच्छा गुलाब भी मुरझाकर के टूटकर गिर जाता हैं, अच्छे से अच्छा राम भी बाणों का शिकार होकर गिर जाता हैं, अच्छे से अच्छा कृष्ण भी एक तीर लगने से मृत्यु को प्राप्त हो जाता हैं, लेकिन – नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि… ! !


    शंकराचार्य ने इस श्लोक में दूसरा शब्द लिया हैं प्रेम ! कि जिसके हृदय में प्रेम हैं वह गलती कर ही नहीं सकता ! और प्रेम केवल एक के साथ ही हो सकता हैं, दस लोगों के साथ नहीं हो सकता ! दस के साथ सहानुभूति हो सकती हैं, दस लोगों के साथ अटैचमेंट हो सकता हैं, चालीस लोगों के साथ परिचय आपका हो सकता हैं, प्रेम नहीं हो सकता ! प्रेम तो केवल एक व्यक्ति से होगा – या तो ईश्वर से होगा या गुरु से होगा या किसी से भी होगा और जिसके प्रति प्रेम हैं उसके प्रति जान न्यौछावर होती हैं ! भक्त अपने आपको पूर्ण रूप से समर्पित कर देता हैं !


    आपका प्रेम केवल एक के साथ हो सकता हैं – या तो काँटों के साथ हो सकता हैं या गुलाब के फूलों के साथ हो सकता हैं ! दोनों से एक साथ नहीं हो सकता ! यह आप पर निर्भर हैं कि आप काँटों के साथ प्रेम करते कि आप गुलाब के साथ प्रेम करते हैं ! मगर शंकराचार्य कहते हैं कि अपने जीवन को उच्चता तक पहुचाने के लिए आपको इसी क्षण से परिवर्तित होना पड़ेगा या तो आप नीचे धरातल पर चले जायेंगे, या फिर ऊंचाई पर चले जायेंगे ! यह फिर आपके हाथ में हैं या तो आप षडयंत्रकारी बन जायेंगे या गुलाब के फूल बन जायेंगे या तो कांटे बन जायेंगे !


    यह अपने आप में भगवान को धोखा देने की क्रिया हैं, अपने आप को धोखा देने की क्रिया हैं ! यदि आपके शरीर में सुगंध हैं आप में यदि प्रेम हैं तो आप वास्तव में उच्चता पर स्थित हैं ! प्रेम का अर्थ हैं अपने आप को मिटा देने की, फ़ना कर देने की क्रिया, उसके लिए अपने आपको न्यौछावर कर देने की क्रिया, तिल-तिल कर के जल जाने की क्रिया ! यदि ऐसा हैं तो जीवन की सार्थकता हैं !


    इतिहास नहीं क्षमा करेगा, फिर तुम्हारे जीवन का अर्थ क्या रहेगा? यदि तुम्हारे जीवन का मूल्य क्या रहेगा? फिर तुम शिष्य कैसे बनोगे? शिष्य वह तो हैं ही नहीं कि दीक्षा दी वही शिष्य हैं ! यह तो जन्म से लगाकर के मृत्यु तक की सारी क्रिया शिष्यता हैं, आप सीढियों पर चढ़ रहे हैं या उतर रहे हैं – यह शिष्यता हैं, आप तूफानों से टक्कर ले रहे हैं या तूफानों का शिकार हो रहे हैं – यह शिष्यता हैं, आप मन्दिर को गिरता देख रहे हैं या मन्दिर को बचाने में तत्पर हैं, यह शिष्यता हैं ! आपने गिरजाघर को गिरने दिया या बचाया, आपने गुरुद्वारे को समाप्त किया या बचाया, यह शिष्यता हैं !


    और गुरु की पहिचान तो अपने आप में मन की आंखों से ही सम्भव हैं ! अगर प्रेम का अंकुर फुटा ही नहीं, तो आपने गुरु को पहचाना ही नहीं ! पहचान ले जिससे प्रेम का वह अंकुर तेजी से बढ़ने लगे क्योंकि तुम्हारे अन्दर प्रेम हैं तो परन्तु तुमने उसे जागने नहीं दिया हैं ! इसलिए जागने नहीं दिया कि उसके ऊपर घृणा, बहार की हवा, तूफ़ान हावी हो गए ! तुम भाग बन गए उसके, और उस प्रेम को तुमने दबा दिया ! ज्योंही अंधेरे को हटाया, छल को हटाया तो प्रेम का अंकुर फूटा, फूटा और तुम्हारा चेहरा मुस्कराहट से खिल गया, तुम्हारे शरीर से सुगंध निकलने लगी, तुम्हारा शरीर सुगन्धित, सुवासित होने लगा, एक महक आने लगी, एक आंखों में सुरूर पैदा हुआ, एक जिंदगी की धड़कन पैदा हुयी और उसकी रक्षा के लिए अपने आप को तैयार कर दिया, उसके लिए अपने आपको न्यौछावर कर दिया, उसके लिए अपने आपको आत्मोत्सर्ग कर दिया !


    आपने क्या दिया, यह आपका अपना गणित हैं ! मैं आशीर्वाद देता हूँ कि आपके हृदय में प्रेम का अंकुर फूटे, आप किसी की ढाल बन सकें, आपके मन में जो घृणा दूसरो ने भर दी हैं, जो षडयंत्र, डर, भय, आतंक हैं उनको आप हटा कर निर्भीक हों ! आप निर्भीक है तो जीवित हैं, जाग्रत हैं, डरे हुए हैं तो आप अधम, गये बीते हैं ! जब भय रहित होंगे तब प्रेम व्याप्त हो पायेगा ! ऐसे ही आप भय रहित, निर्भय होकर के अपने अन्दर के गुलाब को, प्रेम को विकसित करें और आप आत्मोत्सर्ग हो सकें और एक ज्ञान के दीप को, एक गुलाब के फूल को जीवित, जाग्रत, चैतन्य बनाएं रख सकें, जिससे कि वह सुगंध चारों तरफ फ़ैल सकें ! यही आपके जीवन की क्रिया बने, ऐसे ही मैं हृदय से आशीर्वाद देता हूँ, कल्याण कामना करता हूँ !


    गुरु वाणी, परमपूज्य गुरुदेव निखिलेश्वरानंद, Mantra Tantra Yantra Vigyan by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji

Hirendra Pratap Singh


जीवन में तुम्हें रुकना नहीं है, निरंतर आगे बढ़ना है क्यूंकि जो साहसी होते हैं, जो दृढ़ निश्चयी होते हैं जिनके प्राणों में गुरुत्व का अंश होता है, वही आगे बढ़ सकता है.. और इस आगे बढ़ने में जो आनंद है, जो तृप्ति है, वह जीवन का सौभाग्य है.

***

गृहस्थ से भागने की जरुरत नहीं है, जरुरत है, एक तरफ खड़े होकर देखने की, तुम्हारी एक आँख गृहस्थ में हो, तो दूसरी आँख गुरु चरणों में नमन युक्त होनी चाहिए. तब तुम्हारे जीवन में कोई न्यूनता रहेगी ही नहीं क्यूंकि वह नमन युक्त आँख तुम्हारे जीवन को पूरी तरह से संवार देगी, सजग कर देगी, प्रकाशित कर देगी.

***

उन सन्यासी शिष्यों ने मेरे आनंद का अमृत चखा है, और इसलिए वो मेरी उपस्थिति के बिना भी मस्त हैं, चैतन्य हैं, नृत्य युक्त हैं, और मैं वही अमृत बांटने आया हूँ, तुम इस अमृत को तृप्ति के साथ चखो, और तुम्हें एहसास होगा की तुम्हारा जीवन संवर गया है, तुम्हारा जीवन जगमगाहट देने लगा है.
***
पिछले जीवन में तुम्ही तो थे, जो मुझसे अलग हुए थे, मैं तुम्हें आवाज़ दे रहा था और तुम नकली स्वप्नों के पीछे पीठ मोड़कर भाग रहे थे, और तुमने अपने कान मेरी आवाज़ सुनने के लिए बंद कर दिए थे, और उसी का परिणाम तुम्हारी ये चिंताएं हैं, ये परेशानियाँ हैं, ये जीवन की बाधाएं हैं.


***


तुम्हें जीवन में कुछ भी विचार करने की जरुरत नहीं है, क्यूंकि मैं प्रतिक्षण प्रतिपल तुम्हारे साथ हूँ, मुझे मालुम है की तुम्हें किस लक्ष्य तक पहुँचाना है, तुम्हें तो चुपचाप अपना हाथ मुझे सौंप देना है आगे का कार्य तो मेरा है.


***


तुम्हें साधना के और सिद्धियों के मोती नहीं मिल रहे हैं, तो यह कसूर तो तुम्हारा ही है, क्यूंकि तुम्हें समुद्र में गहरायी के साथ उतरने की क्रिया नहीं आई, तुममे पूर्ण रूप से डूबने का भाव नहीं आया, गुरु के ह्रदय सागर में निश्चिंत होकर दुबकी लगाने की क्षमता नहीं आई, और जिस दिन तुम गहराई के साथ गुरु के ह्रदय में डूब सकोगे, तब वापिस बाहर आते समय तुम्हारी दोनों हथेलियाँ “सिद्धि” के मोतियों से भरी होंगी.


***


शिष्य का तात्पर्य नजदीक आना है, और ज्यादा नजदीक, इतना नजदीक, कि गुरु के प्राणों में समा जाये, एकाकार हो जाये, गुरु की धड़कनों में अपनी धडकनें मिला ले, और जब ऐसा होगा तो तुम्हारे अन्दर स्वतः गुरुत्व प्रारम्भ हो जायेगा, स्वतः दिव्यत्व प्रारम्भ हो जाएगा, और स्वतः सिद्धियाँ तुम्हारे सामने नृत्य करती सी प्रतीत होंगी.


".पहाड़ चढ़ने का एक उसूल है....झुक के चलो , दौड़ो मत ..... ज़िंदगी भी बस इतना ही मांगती है......... "ठोकरे खा कर भी ना संभले तो, मुसाफिर का नसीब। वरना पत्थरों ने तो, अपना फ़र्ज़ निभा दिया।

" तेरा इंतजार, किसी मुकदमें से कम नहीं... हर बार नई तारीख मिलती हो जैसे ========== ना डूबने देता है, ना उबरने देता है, उसकी आँखों का वो समंदर अजीब है... ..! "
  1. खुशियां कम और अरमान बहुत हैं, जिसे भी देखिए यहां हैरान बहुत हैं,, 
  2. करीब से देखा तो है रेत का घर, दूर से मगर उनकी शान बहुत हैं,, 
  3. कहते हैं सच का कोई सानी नहीं, आज तो झूठ की आन-बान बहुत हैं,, 
  4. मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी, यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं,, 
  5. तुम शौक से चलो राहें-वफा लेकिन, जरा संभल के चलना तूफान बहुत हैं,, 
  6. वक्त पे न पहचाने कोई ये अलग बात, वैसे तो शहर में अपनी पहचान बहुत हैं।।। 

"कभी किसी दूसरे की मुस्कान की वजह भी बन कर देखें, ज़िन्दगी में कभी निराशा और उदासी आपके आस पास भी नहीं आ पाएगी.. "

Saturday, April 19, 2014

tantrot guru pojan nikhil jan utsav sadhana

‎-- तांत्रोक्त गुरु पूजन --निखिल जन्म उत्सव साधना

इस साधना के लिए प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर, स्नानादि करके, पीले या सफ़ेद आसन पर पूर्वाभिमुखी होकर बैठें| बाजोट पर पीला कपड़ा बिछा कर उसपर केसर से “ॐ” लिखी ताम्बे या स्टील की प्लेट रखें| उस पर पंचामृत से स्नान कराके “गुरु यन्त्र” व “कुण्डलिनी जागरण यन्त्र” रखें| सामने गुरु चित्र भी रख लें| अब पूजन प्रारंभ करें|

-- पवित्रीकरण --

बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ की उंगलियों से स्वतः पर छिड़कें -

ॐ अपवित्रः पवित्रो व सर्वावस्थां गतोऽपि वा |यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ||

-- आचमन --

निम्न मंत्रों को पढ़ आचमनी से तीन बार जल पियें -

ॐ आत्म तत्त्वं शोधयामि स्वाहा |
ॐ ज्ञान तत्त्वं शोधयामि स्वाहा |
ॐ विद्या तत्त्वं शोधयामि स्वाहा |

१ माला जाप करे अनुभव करे हमरे पाप दोस समाप्त हो रहे है। .

ॐ ह्रौं मम समस्त दोषान निवारय ह्रौं फट
संकल्प ले फिर पूजन आरम्भ करे ।

-- सूर्य पूजन --

कुंकुम और पुष्प से सूर्य पूजन करें -

ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च |हिरण्येन सविता रथेन याति भुनानि पश्यन ||

ॐ पश्येन शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं |जीवेम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात ||

-- ध्यान --

अचिन्त्य नादा मम देह दासं, मम पूर्ण आशं देहस्वरूपं |न जानामि पूजां न जानामि ध्यानं, गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यं ||

ममोत्थवातं तव वत्सरूपं, आवाहयामि गुरुरूप नित्यं |स्थायेद सदा पूर्ण जीवं सदैव, गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यं ||

-- आवाहन --

ॐ स्वरुप निरूपण हेतवे श्री निखिलेश्वरानन्दाय गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि |

ॐ स्वच्छ प्रकाश विमर्श हेतवे श्री सच्चिदानंद परम गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि |

ॐ स्वात्माराम पिंजर विलीन तेजसे श्री ब्रह्मणे पारमेष्ठि गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि |

-- स्थापन --

गुरुदेव को अपने षट्चक्रों में स्थापित करें -

श्री शिवानन्दनाथ पराशक्त्यम्बा मूलाधार चक्रे स्थापयामि नमः |

श्री सदाशिवानन्दनाथ चिच्छक्त्यम्बा स्वाधिष्ठान चक्रे स्थापयामि नमः |

श्री ईश्वरानन्दनाथ आनंद शक्त्यम्बा मणिपुर चक्रे स्थापयामि नमः |

श्री रुद्रदेवानन्दनाथ इच्छा शक्त्यम्बा अनाहत चक्रे स्थापयामि नमः |

श्री विष्णुदेवानन्दनाथ क्रिया शक्त्यम्बा सहस्त्रार चक्रे स्थापयामि नमः |

-- पाद्य --

मम प्राण स्वरूपं, देह स्वरूपं समस्त रूप रूपं गुरुम् आवाहयामि पाद्यं समर्पयामि नमः |

-- अर्घ्य --

ॐ देवो तवा वई सर्वां प्रणतवं परी संयुक्त्वाः सकृत्वं सहेवाः |अर्घ्यं समर्पयामि नमः |

-- गन्ध --

ॐ श्री उन्मनाकाशानन्दनाथ – जलं समर्पयामि |

ॐ श्री समनाकाशानन्दनाथ – स्नानं समर्पयामि |

ॐ श्री व्यापकानन्दनाथ – सिद्धयोगा जलं समर्पयामि |

ॐ श्री शक्त्याकाशानन्दनाथ – चन्दनं समर्पयामि |

ॐ श्री ध्वन्याकाशानन्दनाथ – कुंकुमं समर्पयामि |

ॐ श्री ध्वनिमात्रकाशानन्दनाथ – केशरं समर्पयामि |

ॐ श्री अनाहताकाशानन्दनाथ – अष्टगंधं समर्पयामि |

ॐ श्री विन्द्वाकाशानन्दनाथ – अक्षतां समर्पयामि |

ॐ श्री द्वन्द्वाकाशानन्दनाथ – सर्वोपचारां समर्पयामि |

-- पुष्प, बिल्व पत्र --

तमो स पूर्वां एतोस्मानं सकृते कल्याण त्वां कमलया सशुद्ध बुद्ध प्रबुद्ध स चिन्त्य अचिन्त्य वैराग्यं नमितांपूर्ण त्वां गुरुपाद पूजनार्थंबिल्व पत्रं पुष्पहारं च समर्पयामि नमः |

-- दीप --

श्री महादर्पनाम्बा सिद्ध ज्योतिं समर्पयामि |

श्री सुन्दर्यम्बा सिद्ध प्रकाशम् समर्पयामि |

श्री करालाम्बिका सिद्ध दीपं समर्पयामि |

श्री त्रिबाणाम्बा सिद्ध ज्ञान दीपं समर्पयामि |

श्री भीमाम्बा सिद्ध ह्रदय दीपं समर्पयामि |

श्री कराल्याम्बा सिद्ध सिद्ध दीपं समर्पयामि |

श्री खराननाम्बा सिद्ध तिमिरनाश दीपं समर्पयामि |

श्री विधीशालीनाम्बा पूर्ण दीपं समर्पयामि |

-- नीराजन --

ताम्रपात्र में जल, कुंकुम, अक्षत अवं पुष्प लेकर यंत्रों पर समर्पित करें -

श्री सोममण्डल नीराजनं समर्पयामि |

श्री सूर्यमण्डल नीराजनं समर्पयामि |

श्री अग्निमण्डल नीराजनं समर्पयामि |

श्री ज्ञानमण्डल नीराजनं समर्पयामि |

श्री ब्रह्ममण्डल नीराजनं समर्पयामि |

-- पञ्च पंचिका --

अपने दोनों हाथों में पुष्प लेकर निम्न पञ्च पंचिकाओं का उच्चारण करते हुए इन दिव्य महाविद्याओं की प्राप्ति हेतु गुरुदेव से निवेदन करें -

-- पञ्चलक्ष्मी --

श्री विद्या लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री एकाकार लक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री महालक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री त्रिशक्तिलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री सर्वसाम्राज्यलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

-- पञ्चकोश --

श्री विद्या कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री परज्योति कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री परिनिष्कल शाम्भवी कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री अजपा कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री मातृका कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

-- पञ्चकल्पलता --

श्री विद्या कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री त्वरिता कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री पारिजातेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री त्रिपुटा कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री पञ्च बाणेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

-- पञ्चकामदुघा --

श्री विद्या कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री अमृत पीठेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री सुधांशु कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री अमृतेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री अन्नपूर्णा कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

-- पञ्चरत्न विद्या --

श्री विद्या रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री सिद्धलक्ष्मी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री मातंगेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री भुवनेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री वाराही रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

श्री मन्मालिनी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |

-- श्री मन्मालिनी --

अंत में तीन बार श्री मन्मालिनी का उच्चारण करना चाहिए जिससे गुरुदेव की शक्ति, तेज और सम्पूर्ण साधनाओं की प्राप्ति हो सके -

ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं लृं ल्रृं एं ऐँ ओं औं अं अः |
कं खं गं घं ङं |
चं छं जं झं ञं |
टं ठं डं ढं णं |
तं थं दं धं नं |
पं फं बं भं मं |
यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं हंसः सोऽहं गुरुदेवाय नमः |

-- मूल मंत्र --

ॐ निं निखिलेश्वरायै ब्रह्म ब्रह्माण्ड वै नमः |

इस मंत्र का मूंगा माला से १०१, ५१  माला जप करें |

-- प्रार्थना --

लोकवीरं महापूज्यं सर्वरक्षाकरं विभुम् |शिष्य हृदयानन्दं शास्तारं प्रणमाम्यहं ||

त्रिपूज्यं विश्व वन्द्यं च विष्णुशम्भो प्रियं सुतं |क्षिप्र प्रसाद निरतं शास्तारं प्रणमाम्यहं ||

मत्त मातंग गमनं कारुण्यामृत पूजितं |सर्व विघ्न हरं देवं शास्तारं प्रणमाम्यहं ||

अस्मत् कुलेश्वरं देवं सर्व सौभाग्यदायकं |अस्मादिष्ट प्रदातारं शास्तारं प्रणमाम्यहं ||

यस्य धन्वन्तरिर्माता पिता रुद्रोऽभिषक् तमः |तं शास्तारमहं वंदे महावैद्यं दयानिधिं ||

-- समर्पण --

ॐ सहनावतु सह नौ भुनत्तु सहवीर्यं करवावहै,तेजस्विनां धीतमस्तु मा विद्विषावहै |

ॐ ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविः ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतं |

ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्म कर्म समाधिना |

ॐ शान्तिः | शान्तिः || शान्तिः |||

सौजन्य – श्री राम चैतन्य शास्त्री कृत तांत्रोक्त गुरु पूजन

Tuesday, April 15, 2014

Master interaction of pupil गुरु - शिष्य का पारस्परिक संबंध


गुरु - शिष्य का पारस्परिक संबंध
अयोग्य व्यक्ति ( दुर्गुणों से युक्त ) न तो गुरु से दीक्षा पाने का अधिकारी है और न ही वह दीक्षित होने पर साधना के क्षेत्र में कोई उपलब्धि ही हासिल कर पाता है । यही कारण है कि प्रायः संत - महात्मा हरेक किसी को शिष्य नहीं बनाते । कुपात्रजनों को दिया जाने वाला ज्ञानोपदेश , आध्यात्मिक - संकेत , साधना - परामर्श और मंत्र - दीक्षा आदि सब निरर्थक होते हैं ।
गुरु और शिष्य के बीच पारस्परिक संबंध बहुत शुचिता और परख के आधार पर स्थापित होना चाहिए , तभी उसमें स्थायित्व आ पाता है । इसलिए गुरुजनों को भी निर्दिष्ट किया गया है कि वे किसी को शिष्य बनाने , उसे दीक्षा देने से पूर्व उसकी पात्रता को भली - भांति परख लें । शास्त्रों का कथन हैं -
मंत्री द्वारा किए गए दुष्कृत्य का पातक राजा को लगता है और सेवक द्वारा किए गए पाप का भागी स्वामी बनता है । स्वयंकृत पाप अपने को और शिष्य द्वारा किए गए अपराध का पाप गुरु को लगता है ।
दीक्षा और साधना के लिए अयोग्य व्यक्तियों के लक्षणों को शास्त्रकारों ने इस प्रकार स्पष्ट किया है -
ऐसा व्यक्ति जो अपराधी - मनोवृत्ति का हो अथवा क्रूर , पापी , हिंसक हो , वह न तो दीक्षा पाने का अधिकारी है और न वह साधना में ही सफल हो सकता है । कारण कि उसकी तामसिक - मनोवृत्ति उसे सदैव अस्थिर और असंतुलित बनाए रखती है ।
इसी प्रकार बकवादी , कुतर्क करने वाला , मिथ्याभाषी , अहंकारग्रस्त , लोभी , लम्पट , विषयी , चोर , दुर्व्यसनी , परस्त्रीगामी , मूर्ख , जड़ - बुद्धि , क्रोधी , द्वेषलु , ईर्ष्या अथवा अतिमोह से ग्रस्त , शास्त्र निंदक , आस्थाहीन , दुराचारी , वंचक , पाखंडी और न साधना करने योग्य । ऐसे लोगों को जन्मजात पापी , अपवित्र , दुर्भाग्यग्रस्त और कुपात्र माना गया है