Sunday, November 27, 2011

Little importance Sadnaa


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(पेट संबंदी )उर्द रोग का एक महत्व पूर्ण प्रयोग ---कुश महत्व पूरण साधनाए 


कई दोस्तों ने वार वार कहा के पेट के रोगों पे भी पोस्ट होनी चाहिए तो यह एक सरल साधना पोस्ट कर रहा हू !इस से पेट की तमाम बिमारिओ से निज़ात पाई जा सकती है !बद हज्मी, पेट गैस ,दर्द और आव का पूर्ण इलाज हो जाता है !इसे ग्रेहन काल जनि सुबह १०८ वार जप कर सिद्ध कर ले प्रयोग के वक़्त ७ वार पानी पे मन्त्र पढ़ फुक मारे और रोगी को पिला दे जल्द ही फ़ायदा होगा !
साबर मन्त्र --- ॐ नमो अदेस गुरु को शियाम बरत शियाम गुरु पर्वत में बड़ बड़ में कुआ कुआ में तीन सुआ कोन कोन सुआ वाई सुआ छर सुआ पीड़ सुआ भाज भाज रे झरावे यती हनुमत मार करेगा भसमंत फुरो मन्त्र इश्वरो वाचा !!
sabar mantr -- om nmo ades guru ko shiyam bart shiyam guru parvat mein bad bad mein kua kua mein teen sua kon kon sua vai sua chhar sua peed sua bhaj bhaj re jhrave yati hnumant mar krega bhasmant furo mantra ishvro vacha !!

नेत्र रोग की महत्वपूर्ण साधना --
आंखे मनुष्य के लिए अनमोल रतन है !कई वार अकारण बश नेत्र रोग से पीड़ित हो जाते है !जिस से बहुत परेशानी का सहमना करना पड़ता है !यह बहुत ही तीक्षण मन्त्र है जिस से तमाम नेत्र रोग से निज़ात पाई जा सकती है इसे भी ग्रेहन काल में १०८ वार जाप कर सिद्ध कर ले और प्रयोग के वक़्त इसको ७ वार पढ़ कर कुषा से झाडा कर दे तमाम नेत्र दोष दूर हो जाते है !
साबर मन्त्र ---ॐ अन्गाली बंगाली अताल पताल गर्द मर्द आदर ददार फट फट उत्कट ॐ हुं हुं ठा ठा !!
sabr mantra--- om angali bngali ataal patal gard mard adar dadar fat fat utkat om hum hum tha tha !!

आधा सिर दर्द -
आधा सिर दर्द और माई ग्रेन एक बहुत बड़ी समस्या है !उस के लिए एक महत्व पूर्ण मन्त्र दे रहा हू !इसे भी ग्रेहन काल में सिद्ध कर ले !प्रयोग के वक़्त एक छोटी नमक की डली ले कर उस पर ७ वार मन्त्र पढ़े और पानी में घोल कर माथे पे लगादे आधे सिर की दर्द फोरन बंद हो जाएगी !


साबर मन्त्र --- को करता कुडू करता बाट का घाट का हांक देता पवन बंदना योगीराज अचल सचल !!
sabar mantr---- ko karta kudu karta bat ka ghat ka hank deta pawan bandna yogiraj achal sachal !

दाड दर्द का एक महत्व पूरण मंत्र --- दाड दर्द जिसे हो वोही जानता है !कई वार तो दाड निकलने की नोवत य़ा जाती है !इस दर्द से निज़ात पाने का एक बहुत ही महत्व पूर्ण मन्त्र दे रहा हू इसे सूर्य ग्रेहन में १०८ वार जप कर सिद्ध कर ले प्रयोग के वक़्त नीम की डाली से झाडा कर दे !


साबर मंत्र ----ॐ नमो आदेश गुरु को वन में विहाई अंजनी जिस जाया हनुमंत कीड़ा मकोड़ा माकडा यह तीनो भसमंत गुरु की शक्ति मेरी भगती फुरो मंत्र इश्वरो वाचा !!
sabar mantra --- om van mein vihaee anjni jis jaya hnumant keeda mkoda makda yh teeno bhasmant guru ki shakti meri bhagti furo mantr ishvro vacha !!

यह सभी साधनाए प्रयोग अजमाए हुए है एक वार सिद्ध कर लेने से जब चाहे काम ले सकते है !
बस आज इतना ही !! जय गुरुदेव !!

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Guru Kripa hi kevalm part6

मेरे अपने स्नेही भाई बहिनों ,part6

एक कपडे सिलने वाले का .......परम शौक था लोटरी की खरीदना ...... एक टिकट तो रोज़ .... मालूम तो था की खुलना कभी हैं नहीं...... पर फिर भी .. दिल और आशा से मजबूर . कि शायद कभी ... और एक दिन उसकी दुकान के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी ... साहब लोग आये और उससे से कहा की उसका पहला इनाम निकला हैं 10 लाख रूपये का उस दरजी को तो बिस्वास नही हुआ की .... ये होसकता हैं ...इतना भाग्य .हैं उसका .. पर सच तो सच हैं. उसने तत्काल दुकान बंद की और उसकी चाबी सामने के सूखे कुए में फेंक दी अब भला काम किसको करना हैं...... पैसे की कोई कमी हैं हमको ...
जो चार बात लोगों कि सुने ...

पर हुआ वही जो लोग कहते हैं पैसे के साथ सारे तथाकथित गुण और ऐब भी आ गए , और परिणाम भी वही हुआ जो लोग कहते थे ..., एक दिन थका हारा वह अपनी दूकान वापिस आया और उसी सूखे कुए में उतर कर अपनी दूकान की चाबी खोजने लगा और आज से कसम ……. सारे बुरे गुणों से तौबा ..अब से लाटरी से दूर ..

पर कितने दिन . रोक पाता तो फिर ......अब किस्मत रोज़ रोज़ मेहरबान तो होने से रही वह भी पहला इनाम ............पर क्या जाता हैं एक टिकट ही तो हैं.. और एक दिन पुनः एक गाड़ी आई ,साहब लोग उतरे उससे कहा की पहला इनाम ..

उसे तो बिस्वास ही नहीं हुआ और दुकान बंद कर चाबी पुनः उसी कुए में फेक दी अब कोई गलती नहीं ......... पर होना तो वही था ....... जो होना ही ....... था . सारे वही गुण उसका ......वही पे इंतज़ार कर रहे थे, यह जाकर उन्ही से मिला........एक पल में सारी कसमे वादे की यह न करूँगा ..... हवा में उड़ गए.... पर लोग कहते हैं न .......की .. तो फिर वही बात हुयी सारा धन फिर से गया और सारा स्वास्थ्य गया.. पुनः हार थक कर के वापिस....उदास पुनः चाबी खोजी और ... .

अब फिर से तो किस्मत मेहरबान नहो होसकती ..भाई किसी कि भी इतनी जोर दार नहीं होसकती ..... पर अब क्या करे वह .....मन भी तो नहीं लगता .. एक टिकट फिर से खरीद ही ली,, अब कोई पहला इनाम ..वह भी बार बार.... कोइ पागल ही होगा जो अब सोचेगा , कि उसका तीसरी बार पहला इनाम निकल सकता हैं .

अब पुराने दिन वो अमीरी के ... तभी पुनः एक गाड़ी रुकी उस से साहब लोग उतरे उससे कहा कि उसका पहला इनाम

वह चीख उठा कि अब नहीं नहीं ....

और मित्रो क्या कुछ ऐसा ही नहीं हैं हमारे जीवन में हम सदगुरुदेव से प्रार्थना करते हैं उन्हें बिस्वास दिलाते हैंकि एक बार ऐसा तो हो जाय .... तो बस ……. सदगुरुदेव मैं तो.. आप कहे तो उसके बाद ....
पर जैसे ही कुछ मिला उनके आशीर्वाद से तो ..........फिर से अपने वही गुण दोष के पीछे भाग जाते हैं .. पर फिर ........ जब भरे नेत्रों से प्राथना करते हैंकि प्रभु हम तो लायक नहीं हैं.. तब फिर एक बार सदगुरुदेव करुणा से पुनः जीवन देते हैं और उपलब्धिया भी ...,,

पर जैसे ही वह मिली ,, फिर हम सभी का पुराना राग ... फिर हारे ... फिर लौटे .... कि अब सदगुरुदेव नहीं देंगे .....पर किस से मांगे सकते हैं .. तो एक बार फिर .... और पुनः यही क्रम दुहराया जाता हैं.

मेरे भाई बहिनों ,, पर इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि इस बार सदगुरुदेव ने अपनी करुणा से हम सब का हाथ पकड़ पकड़ कर रास्ते पर लाये हैं , कि सभी चीजे दी हैं एक पिता जैसे ... कोई भेद नहीं किया ...

पर अब वह निखिल स्वरुप में हैं और जब वह , हम सब कि शिष्य होने के प्रारंभिक स्तर की....पहली सीढ़ी में जब कभी परीक्षा लेंगे तो ..क्या हमसभी टिक पायंगे,, कभी सोचे.. और गंभीरता पूर्वक .... साधनाओ को करे,, जिससे कि हमसभी का जीवन का अर्थ सार्थक हो सके .. उन दिव्या श्री चरण कमलो के आशीर्वाद से हमसभी का जीवन और साधना मय हो यही उनसे प्रार्थना हैं...




निखिल प्रणाम

A day Humor 1

आज मूड में हू चलो कुश हास परिहास हो जाये एक वार धर्मराज जी मृत्यु लोग की यात्रा पे आये और उन्हों ने वेश बदला और ट्रेन में यात्रा करने लगे जब एक स्टेशन पे उतरे उनके हाथ में एक अटैचिकेश था !एक आदमी आया और भोला आप भले आदमी लगते हो मैं आपकी हेल्प करता हू !और उसने उस ब्रीफ केस को उठा लिया और उनके साथ चलता रहा !धर्म राज उसकी सेवा से प्रसन हुए और काफी चलने के बाद बोले मैं तुम से प्रसन हू बोलो क्या चाहते हो मैं धर्मराज हू !और उन्हों ने अपना रूप उसे दिखा दिया उस आदमी ने प्रणाम किया और बोला आप सभी के प्राण हारते हो !तो धर्म राज जी ने कहा हा १तो मुझे ऐसा वर दे की आप मेरे प्राण ना हरे तो धर्म राज जी कहने लगे ऐसा तो हो नहीं सकता जो पैदा हुआ है उसे मरना तो पड़ेगा ही पर मैं तुमे यह वर देता हू मैं तुमरे प्राण तुमरे पायो की तरफ खलो के निकालुगा तब तो ठीक है उस आदमी ने कहा !समय बीतता गया उसका टाइम आ गया तो धर्म राज जी आ गये और उसके पायु की तरफ खलो के प्राण निकलने लगे तो उसने पायु दूसरी तरफ कर लिए धर्म राज जी उस तरफ हुए तो उसने फिर पायु घुमा लिए आखिर को उसने पायु उपर की तरफ कर लिए कहा अब कहा खलो के निकालो गे मेरे प्राण तभी उसकी घर वाली आई उसने देखा इन्हें क्या हुआ और आवाज लगी बच्चो देखो तुमरे बापू को क्या हुआ तभी बच्चे य़ा गये और सभी ने उसके पायु पकड़ नीचे को कर दिए और उसे पकड़ कर सीधा कर दिया वोह शोर मचाता रहा ऐसा ना करो पर किसी ने उसकी सुनी नहीं !तो धर्मराज जी बोले अब कहो तो वोह कहने लगा मैंने मरना तो नहीं था पर घर वालो ने मरवा दिया !इसी तरह बहुत भाई साधना तो करना चाहते है पर घर वाले उनकी टांग खीचने लग जाते है !इस लिए अपने महोल को साधना मय बनाये

SADGURUDEV PRASANG- THAT ONE SECOND

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गुरुदेव के सन्याश जीवन की कुछ कडिया एसी होती हे जो की गृहस्थी से जुडी हुयी होती हे. एसी कई घटना हे जोकि गुरुदेव के सन्याशी शिष्यों के साथ घटी हे और बदल दिया हे इतिहास, किन्तु एसी घटनाए प्रकाश में नहीं आती हे . एसेही एक घटना की जानकारी मुझे मिली तो सहम सा गया में, उलज के रह गया, और सवालो का तूफ़ान कुछ एसा उठा की पागल सा हो गया कुछ क्षण , पर जवाब तो उसका वो एक क्षण मात्र ही थी , जिसने कितनो की ज़िन्दगी बदलदी और नजाने कितनो की ज़िन्दगी बदलेगी. वो एक क्षण जिसके ऊपर न जाने किसका हक कहा जाए . और क्या हुआ था, केसे कब और क्यों , क्या खाश हुआ उस एक क्षण में, आगे उसीके शब्दों में ......

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अमृत मंडल, गुरुदेव ने अपने सन्याश जीवन में चुन चुन के ४० शिष्यों को एकजुट किया और इसी मंडली को नाम दिया अमृत मंडल. पता नहीं गुरुदेव का इसपर क्या विचार रहा होगा. ४० शिष्यों को वो टोली , जिसमे एक से एक विलक्षण व्यक्तित्व. सभी अपने अपने साधना विषयो में तो निष्णांत थे ही पर सभी व्यक्तिगत रूप से भी कुछ विचित्र, कुछ फक्कड़, कुछ अलग से रहने वाले. में भी उनमे से ही एक था. गुरुदेव ने हमे उन उँचइयो पर पहोचाया था जहाँ तक साधक कल्पना ही कर सकते हे और इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए एक दिन वह भी आया की जेसे रहे फट जाए . गुरुदेव सन्याश छोडके वापिस गृहस्थी में जा रहे थे. दुसरे सन्याशी शिष्यों की तरह अमृत मंडल के कोई भी साधक ने उन्हें रोका नहीं. सब जानते थे की गुरुदेव वही करेंगे जोकि सही होगा और हमें अपने भावनाओ के ऊपर काबू पाना भी सिख ही तो लिया था. गुरु कोई व्यक्तिगत सम्पति थोड़ी हे, उन पर तो सभी शिष्यों का हक हे . और हम भीनी आँखों से उसे विदा होते हुए देख रहे थे
हिमालय जेसे हसना ही भूल गया था, प्रकृति मायूस सी दुखी सी होके बेठी रहती थी , और सभी सन्याशी शिष्यों की बात ही क्या कहू, वो तो जेसे चलते फिरते पुतले हो गए थे. पर पता नहीं क्यों गुरुदेव किसी भी सन्याशी शिष्यों को मिलने के लिए तैयार ही नहीं होते थे . क्यों ? आखिर क्यों वो अपने आत्मीयो से अलग रहते हे , ठीक हे लेकिन एक बार वो मिल तो सकते ही हे . और में भी यही सोचके दिल बहला लेता था की गुरुदेव कुछ कर रहे हे तो शिष्यों की भलाई के लिए ही करते होंगे.
उसी दौरान गुरुदेव का सन्देश मिला. उन्होंने मुझे बुलाया था , मिलने के लिए. जान के आश्चर्यचकित हो गया में की एसा केसे हुआ , क्यूँ की मेने कभी गुरुदेव से मिलने के लिए गुज़ारिश नहीं की थी और कई तो रो रो के जेसे बेजान मूर्ति बन गए थे. फिर भी .....आखिर उन्होंने बुलाया हे , ज़रूर कुछ तो विशेष होगा ही.दुसरे दिन निश्चित समय पर , कुछ ही क्षण में पहोच गया में उस मंदिर में जहाँ मेरे भगवन साक्षात् थे. अपना रूप परिवर्तन करके गृहस्थ बना और आगे बढ़ गया... सायद उस दिन कुछ विशेष ही होगा. गुरुदेव और वन्दनीय माताजी बहार खड़े थे और खिचड़ी बाँट रहे थे , एक लम्बी सी कतार थी, में उसी में ही खड़ा हो गया. दूर से ही उनकी मुखाकृति देख रहा था, वही प्रसन्नचित्त चहेरा, आन्दित सा, जो हमेशा आनंद बिखेरता रहता हे . अब में उनसे कुछ ही दूरी पर खड़ा था. कई साल बाद उनको देखना देखना नहीं होता, वो तो एक एसा जाम होता हे जिसे पिटे ही रहे पिटे ही जाए, ये तो वही समाज सकता हे जिसने विरह की वेदना देखि हो, वो आनंद एक दूरी ही समजा सकती हे. खेर एक सेवक ने मुझे पड़िया दे दिया. में आगे बढ़ा और वन्दनीय माताजी जो की सच में ब्रम्हांड की शक्ति हे , जो सिर्फ ममता ही ममता बहाती रहती हे उन्हें प्रणाम किया , उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे आशीर्वाद दिया. और थोड़ी खिचड़ी उठा के मेरे पदिये में दाल दी.

और में आगे बढ़ा, सदगुरुदेव की तरफ. थोड़े दुबले ज़रूर हो गए थे वह, पर मुखाकृति पर वही प्रसन्नता वही आनंद, में जुका और उनके वो पावन चरणों का स्पर्श किया जो की देवताओ के लिए भी दुर्लभ हे. और में उठा. मेने देखा वे सिर्फ निचे की तरफ देख रहे हे. एक क्षण जेसे सालो में बदल चूका था. में इसी रह में था की वो मुझे देखे, सालो बाद में उनकी आँखों में वो ममता करुणा सब देखू , पूरा ब्रम्हांड देखू पर वो पता नहीं कुछ अकड़ सा गया में , लोकिक भाषा में कहू तो ये सब आधी सेकंड में ही हो रहा था. और अचानक उन्होंने नज़ारे उठाई और सीधे तक दिया मेरे नज़रो में

और मेरी रूह कांप गयी जब मेने देखा उनकी आँखों में, वहां पे विषाद था, वहां पे चिंता थी , वहां पे एक दर्द था, बस एक क्षण , और में समजा की क्यों वो नहीं मिलने देते अपने सन्याशी शिष्यों को, और मेने समजा , उन गृहस्थ शिष्यों को भी , उनकी स्वार्थ परस्ता को, उनकी मक्कारी को, उनकी जूठी और खोकली शिष्यता को , और ये सब बस सिर्फ एक क्षण के लिए उतर आया उनकी आँखों में.

एक क्षण भी न रुक पाया में वहा पे, थोडा आगे बढ़ा और ओज़ल हो गया में उस दुनिया से, गुरुदेव ने सब कुछ ही तो कह दिया एक क्षण में , और में भी क्या कहता उनसे. उतना ही काफी था. अगर सायद ज्यादा क्षण रुकता तो में वहीँ तड़प के प्राण त्याग देता. कुछ क्षण or पहोच गया में वही जगह जहा पे अमृत मंडल के शिष्य मेरी राह देख रहे थे, प्रसाद दिया उनको.
सीधे ही उन्होंने पूछा , भाई केसे हे हमारे प्रभु,
मेने कहा ठीक हे . ज्यादा बोल सकू एसी स्थिति ही कहा थी.
और एक पानी की बूंद निकल गयी आंखसे और गिर गयी निचे स्वामी आशितोश के पैर के पास .
क्या हुआ भाई, सब ठीक तो हे
अब और में क्या करता, कब तक दबे रखता अपने दर्द को ...और चींख के साथ निकल गया वो दर्द मेरे आँखों से...भीगा हुआ सा मेरा चेहरा सब कुछ कह गया जो में न कह सका.

स्वामी भ्रमण आनंद , स्वामी शिस्यानन्द, स्वामी प्रेक्षानन्द ..आदि १५ लोगो ने तो देह त्याग पहले ही कर दिया था, ये कहके की गुरुदेव गृहस्थी में जा रहे हे तो हम भी उनके साथ ही जाएँगे. और उन्होंने शारीर का त्याग कर गृहस्थी में जन्म ले लिए, पर इसके बाद गुरुदेव ने मन कर दिया की कोई भी अब देहत्याग कर गृहस्थी में जन्म न ले. अब इस अमृत मंडल के २५ साधक ने रात को ही सदगुरुदेव से अश्रु भरे नैनों से निवेदन किया की वो अब उनका दर्द नहीं देख सकते , गुरुदेव ने भी सभी की भावनाओ को दिल में स्थान दिया और उनको कहा की वो क्या कहते थे

सब ने कहा की गुरुदेव हम देहत्याग करके गृहस्थी में जन्म लेंगे और आपके कार्य को आगे बढ़ाएंगे.

और गुरुदेव ने कृपा करके वो निवेदन स्वीकार कर ही लिया था. सबको अलग अलग निश्चित अवधि दी गयी जिसके बाद ही वो देहत्याग कर सकते हे.
और एक एक करके सब ने देहत्याग किया . में सब से आखरी था . में देख रहा था उस सूर्य को की जो पश्चिम की और भागे जा रहा हे. और में देखते ही रह गया क्यूंकि...कल एक नया सूर्योदय होने वाला हे.......
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और सुबह होने से पहले ही उस अमृत मंडल के आखरी सभ्य ने भी अपने प्राण को शरीर से अलग कर दिया. वो जिसने १२ कृत्ये सिद्ध कर रखी थी, वो जो साधू समाज में मशहूर था अपने अन्नपूर्णा साधना से , जिसकी पहचान थी उसका पागलपन , अल्हड़पन , जिसके गुस्से के आगे कोई गति नहीं, वो जिसे भगवन का भी डर नहीं था.......वही सहम गया था, डर गया था सिर्फ वो एक क्षण में जो उसने गुरुदेव की आँखों में देखा था ......आज वो कहाँ हे किस हाल में कुछ कहा नहीं जा सकता मगर अमृत मंडल के वो सदस्य और वो योगी उस एक क्षण कभी भी नहीं भुला पाए होंगे

जय गुरुदेव

Friday, November 25, 2011

If still not wake up, wake up when the challenge

If still not wake up, wake up when the challenge
यह ललकार हैं अब भी नहीं जागोगे तो कब जागोगे


शंकराचार्य ने पुरे भारतवर्ष में घूमकर एक ही बात कही कि संसार का सब कुछ मंत्रों के आधीन हैं! बिना मंत्रों के जीवन गतिशील नहीं हो सकता, बिना मंत्रों के जीवन की उन्नति नहीं हो सकती, बिना साधना के सफलता नहीं प्राप्त हो सकती!

गुरु तो वह हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति को एक मंदिर बना दे, मंत्रों के माध्यम से! वैष्णो देवी जायें और देवी के दर्शन करे, उससे भी श्रेष्ठ हैं कि मंत्रों के द्वारा वैष्णो देवी का भीतर स्थापन हो, अन्दर चेतना पैदा हो जिससे वह स्वयं एक चलता फिरता मंदिर बनें, जहाँ भी वह जायें ज्ञान दे सकें, चेतना व्याप्त कर सकें तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान को सुरक्षित रख सकें!
जब मैं इंग्लैण्ड गया तो वहां भी लाख-डेढ़ लाख व्यक्ति इकट्ठे हुए, उन्होंने भी स्वीकार किया कि मंत्रों का ज्ञान प्राप्त होना चाहिए! उन्होंने कीर्तन किया, मगर कीर्तन के बाद मंत्रो को सीखने का प्रयास भी किया, निरंतर जप किया और उनकी आत्मा को शुद्धता, पवित्रता का भाव हुआ! मैक्स म्युलर जैसे विद्वान ने भी कहा हैं कि वैदिक मंत्रों से बड़ा ज्ञान संसार में हैं ही नहीं ! उसने कहा हैं कि मैं विद्वान हु और पूरा यूरोप मुझे मानता हैंमगर वैदिक ज्ञानवैदिक मंत्रों के आगे हमारा सारा ज्ञान अपने आप में तुच्छ हैंबौना हैं ! आईंस्टीन जैसे वैज्ञानिक ने भी कहा कि एक ब्रह्मा हैंएक नियंता हैंवह मुझे वापस भारत में पैदा करेंऐसी जगह पैदा करेंजहाँ किसी योगीऋषि या वेद मंत्रों के जानकार के संपर्क में  सकूँउनसे मंत्रों को सीख सकूँ! अपने आप में सक्षमता प्राप्त करूँ और संसार के दुसरे देशों मे भी इस ज्ञान को फैलाऊँ!
 गुरु वह हैं जो आपकी समस्याओं को समझेआपकी तकलीफों को दूर करने के लिए उस मंत्र को समझाएंजिसके माध्यम से तकलीफ दूर हो सकें! मंत्र जप के माध्यम से दैवी सहायता को प्राप्त कर जीवन में पूर्णता संभव हैं! दैवी सहायता के लिए जरुरी हैं कि आप देवताओं से परिचित हो और देवता आपसे परिचित हो!
 परन्तु देवता आपसे परिचित हैं नहीं! इसलिए जो भगवान् शिव का मंत्र हैंजो सरस्वती का मंत्र हैंजो लक्ष्मी का मंत्र हैंउसका नित्य जप करें और पूर्णता के साथ करेंतो निश्चय ही आपके और उनके बीच की दुरी कम होगी! जब दुरी कम होगी तो उनसे वह चीज प्राप्त हो सकेगी!  एक करोडपति से हम सौ-हजार रुपये प्राप्त कर सकते हैंपरन्तु लक्ष्मी अपने आपमें करोडपति ही नहीं हैंअसंख्य धन का भण्डार हैं उसके पासउससे हम धन प्राप्त कर सकते हैंपरन्तु तभी जब आपके और उनके बीच की दुरी कम हो…. और वह दुरी मंत्र जप से कम हो सकती हैं! मंत्र का तात्पर्य हैं – उन शब्दों का चयन जिन्हें देवता ही समझ सकते हैं! मैं अभी आपको ईरान की भाषा में या चीन की भाषा में आधे घंटे भी बताऊंतो आप नहीं समझ सकेंगे! दस साल भी भक्ति करेंगेतो उसके बीस साल बाद भी समस्याएं सुलझ नहीं पाएंगीक्योंकि उसका रास्ता भक्ति नहीं हैं  उसका रास्ता साधना हैंमंत्र हैं!
 जो कुछ बोले और बोल करके इच्छानुकूल प्राप्त कर सकें वह मंत्र हैं!
-पूज्यपाद सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी.
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान
जनवरी 2000, पेज नं : 21.