माला - संबंधी सावधानी माला फेरते समय निम्न सावधानियां बरतनी आवश्यक हैं - माला सदा दाहिने हाथ में रखनी चाहिए । माला भूमि पर नहीं गिरनी चाहिए , उस पर धूल नहीं जमनी चाहिए । माला अंगूठे , मध्यमा व अनामिका से फेरना ठीक है । दूसरी उंगली तर्जनी से भूलकर भी माला नहीं फेरनी चाहिए । मनकों पर नाखून नहीं लगने चाहिए । माला में जो सुमेरु होता है , उसे लांघना नहीं चाहिए । यदि दुबारा माला फेरनी हो तो वापस माला बदलकर फेरें । मनके फिराते समय सुमेरु भूमि का कभी स्पर्श न करे । इस बात के प्रति सदा सावधान रहना चाहिए ।
Dr. Narayan Dutt Shrimali Dr. Narayan Dutt Shrimali (1933-1998) *Paramhansa Nikhileshwaranand ascetically *Academician *Author of more than 300 books Mantra Tantra Yantra Vigyan:#3 PART(NARAYAN / PRACHIN / NIKHIL-MANTRA VIGYAN) Rejuvenating Ancient Indian Spiritual Sciences - Narayan | Nikhil Mantra Vigyan formerly Mantra Tantra Yantra Vigyan is a monthly magazine containing articles on ancient Indian Spiritual Sciences viz.
Thursday, January 2, 2014
how do the mala jaap
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nav grah dos mukti mantra
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Thursday, September 19, 2013
ye kesi parikesha ये कैसी परिक्षा स्वामी प्रेम आनन्द
ये कैसी परिक्षा-----स्वामी प्रेम आनन्द
आज गुरु जी आश्रम में ही है, मगर ज्यादा लोगो को मालूम ना होने के कारण भीड़ बहुत कम है! सब लोग दोपहर का भोजन करके आराम कर रहे थे, इसलिए ना बाहर ज्यादा भीड़ थी और ना ही अंदर! मेरे पास गुरु जी का सन्देश आया कि आनन्द तुम्हे गुरूजी बुला रहे है! मै गुरूजी के पास ऊपर गया तो गुरु जी बड़े अच्छे मुड में बैठे थे...और जब गुरूजी अच्छे मुड में होते है तो कुछ ना कुछ शरारत जरुर करते है!
मै थोडा सावधान हो गया...चरण स्पर्स करके बैठ गया! थोड़ी देर गुरूजी इधर-उधर की बात करते रहे फिर बोले--आनन्द नीचे एक लड़का आया है ...ये लड़का सही नहीं है इसके एक थप्पड़ मार कर आश्रम के बाहर निकाल देना, और गेट बंद कर देना ताकि ये यहाँ ना आये! ये काम मेरे लिए बहुत कठिन था, किसी से मारपीट करना मुझे जरा भी नहीं सुहाता...मगर अब में क्या करू?
मैंने कहा--जी प्रभु, में बिना मारे उसको बाहर निकाल दूँ!
गुरूजी नहीं--वो थप्पड़ की भाषा ही समझता है!
मैंने कहा--जी प्रभु! और मै नीचे आ गया!
नीचे आकर जब मैंने उस लड़के को देखा तो मेरी हिम्मत जवाब दे गई, ये लड़का तो मुझसे बहुत प्रेम करता है और बहुत अच्छा लड़का है...अब मै करू तो क्या करू? मै समझ गया कि गुरूजी ने परिक्षा का खेल शुरू कर दिया है! अब मै उसे थप्पड़ मरता हूँ तो भी पाप और ना मारू तो भी पाप.....करू तो क्या करू, मै गुरु चित्र के सामने ध्यान लगा कर प्रार्थना करने लगा कि प्रभु मुझे रास्ता दिखाओ कि मै इस परिक्षा में पास हो जाऊ!
अचानक मुझे ख्याल आया और मैंने मन ही मन गुरूजी से कहा—प्रभु मेरी अंतर आत्मा इस लड़के से गलत व्यवहार करने के लिए तैयार नहीं है, मगर मै केवल आपकी आज्ञा का ही पालन कर रहा हूँ इसलिए चाहे ये पाप हो या पुन्य सारी जिम्मेदारी केवल आपकी होगी ...मेरी नहीं, क्योकि मै दिल से तो इस लड़के के थप्पड़ मरना ही नहीं चाहता! अब मै लड़के के पास गया, तो लड़का मुझे देखकर बहुत खुश हुआ और बोला कैसे हो आनन्द जी?
मैंने उससे कहा--- तुम इसी वक्त आश्रम से बाहर चले जाओ....
लड़का—क्या बात हो गई आनन्द जी..आप गुस्से में क्यों है?
मैंने कहा—बकवास नहीं करना और तुरंत यहाँ से चले जाना ....
लड़का ----आप मुझे आश्रम से ऐसे-कैसे निकाल सकते हो?
मैंने अपना मन मजबूत किया और उसके एक धीरे से थप्पड़ लगा दिया और पकड़ कर गेट पर ले गया और बाहर निकाल कर गेट बंद कर दिया! मैंने चुपचाप उस लड़के को देखा तो उसकी आँखों में आंसू थे....मै भी नीचे हाल में जाकर बहुत रोया---कि प्रभु ये किसी परिक्षा...........
दूसरे दिन उसी लड़के का फोन आया और बोला—आनन्द जी मै रात भर सो नहीं सका हूँ बस मुझे इतना बतादो कि मेरा कसूर क्या था? मैंने कहा---तुम्हारा कोई कसूर नहीं था, ये गुरूजी ने मुझे आज्ञा दी थी..मैंने बहुत मजबूर होकर ऐसा किया, मुझे माफ कर देना....मैंने ये भी कहा—कि ये मेरी और तुम्हारी हम दोनों की परिक्षा थी..जो तुमने भी प्रतिक्रिया न करके पास करली और मैंने भी अपना ह्रदय गुरु जी के सामने खोल दिया....और अपना सच गुरु जी को बताकर मैंने भी ये परिक्षा पास करली....अब तुम चिंता ना करो, जब मन करे यहाँ आना!
नोट—प्रिय बन्धुओ हमारी मानवता को परखने के लिए गुरुदेव कैसी-कैसी परिक्षा लेते थे, मै आपको क्या बताऊ, गुरु का कर्तव्य है कि वो शिष्य की परिक्षा और शिष्य का भी कर्तव्य होता है कि वो परिक्षा दे और उसमे पास हो! गुरु को जितनी प्रसंसा स्वयं के हारने की होती है उतना ही दुःख स्वयं के जीतने का भी होता है! इसलिए मै आप सभी को सचेत करना चाहता हूँ कि आप सब सावधानी पूर्वक संसार में सबसे व्यवहार करे....क्योकि यहाँ हर दिल में गुरुदेव विराजमान है.....ये सौ प्रतिसत सत्य बोल रहा हूँ!
समाप्त
आज गुरु जी आश्रम में ही है, मगर ज्यादा लोगो को मालूम ना होने के कारण भीड़ बहुत कम है! सब लोग दोपहर का भोजन करके आराम कर रहे थे, इसलिए ना बाहर ज्यादा भीड़ थी और ना ही अंदर! मेरे पास गुरु जी का सन्देश आया कि आनन्द तुम्हे गुरूजी बुला रहे है! मै गुरूजी के पास ऊपर गया तो गुरु जी बड़े अच्छे मुड में बैठे थे...और जब गुरूजी अच्छे मुड में होते है तो कुछ ना कुछ शरारत जरुर करते है!
मै थोडा सावधान हो गया...चरण स्पर्स करके बैठ गया! थोड़ी देर गुरूजी इधर-उधर की बात करते रहे फिर बोले--आनन्द नीचे एक लड़का आया है ...ये लड़का सही नहीं है इसके एक थप्पड़ मार कर आश्रम के बाहर निकाल देना, और गेट बंद कर देना ताकि ये यहाँ ना आये! ये काम मेरे लिए बहुत कठिन था, किसी से मारपीट करना मुझे जरा भी नहीं सुहाता...मगर अब में क्या करू?
मैंने कहा--जी प्रभु, में बिना मारे उसको बाहर निकाल दूँ!
गुरूजी नहीं--वो थप्पड़ की भाषा ही समझता है!
मैंने कहा--जी प्रभु! और मै नीचे आ गया!
नीचे आकर जब मैंने उस लड़के को देखा तो मेरी हिम्मत जवाब दे गई, ये लड़का तो मुझसे बहुत प्रेम करता है और बहुत अच्छा लड़का है...अब मै करू तो क्या करू? मै समझ गया कि गुरूजी ने परिक्षा का खेल शुरू कर दिया है! अब मै उसे थप्पड़ मरता हूँ तो भी पाप और ना मारू तो भी पाप.....करू तो क्या करू, मै गुरु चित्र के सामने ध्यान लगा कर प्रार्थना करने लगा कि प्रभु मुझे रास्ता दिखाओ कि मै इस परिक्षा में पास हो जाऊ!
अचानक मुझे ख्याल आया और मैंने मन ही मन गुरूजी से कहा—प्रभु मेरी अंतर आत्मा इस लड़के से गलत व्यवहार करने के लिए तैयार नहीं है, मगर मै केवल आपकी आज्ञा का ही पालन कर रहा हूँ इसलिए चाहे ये पाप हो या पुन्य सारी जिम्मेदारी केवल आपकी होगी ...मेरी नहीं, क्योकि मै दिल से तो इस लड़के के थप्पड़ मरना ही नहीं चाहता! अब मै लड़के के पास गया, तो लड़का मुझे देखकर बहुत खुश हुआ और बोला कैसे हो आनन्द जी?
मैंने उससे कहा--- तुम इसी वक्त आश्रम से बाहर चले जाओ....
लड़का—क्या बात हो गई आनन्द जी..आप गुस्से में क्यों है?
मैंने कहा—बकवास नहीं करना और तुरंत यहाँ से चले जाना ....
लड़का ----आप मुझे आश्रम से ऐसे-कैसे निकाल सकते हो?
मैंने अपना मन मजबूत किया और उसके एक धीरे से थप्पड़ लगा दिया और पकड़ कर गेट पर ले गया और बाहर निकाल कर गेट बंद कर दिया! मैंने चुपचाप उस लड़के को देखा तो उसकी आँखों में आंसू थे....मै भी नीचे हाल में जाकर बहुत रोया---कि प्रभु ये किसी परिक्षा...........
दूसरे दिन उसी लड़के का फोन आया और बोला—आनन्द जी मै रात भर सो नहीं सका हूँ बस मुझे इतना बतादो कि मेरा कसूर क्या था? मैंने कहा---तुम्हारा कोई कसूर नहीं था, ये गुरूजी ने मुझे आज्ञा दी थी..मैंने बहुत मजबूर होकर ऐसा किया, मुझे माफ कर देना....मैंने ये भी कहा—कि ये मेरी और तुम्हारी हम दोनों की परिक्षा थी..जो तुमने भी प्रतिक्रिया न करके पास करली और मैंने भी अपना ह्रदय गुरु जी के सामने खोल दिया....और अपना सच गुरु जी को बताकर मैंने भी ये परिक्षा पास करली....अब तुम चिंता ना करो, जब मन करे यहाँ आना!
नोट—प्रिय बन्धुओ हमारी मानवता को परखने के लिए गुरुदेव कैसी-कैसी परिक्षा लेते थे, मै आपको क्या बताऊ, गुरु का कर्तव्य है कि वो शिष्य की परिक्षा और शिष्य का भी कर्तव्य होता है कि वो परिक्षा दे और उसमे पास हो! गुरु को जितनी प्रसंसा स्वयं के हारने की होती है उतना ही दुःख स्वयं के जीतने का भी होता है! इसलिए मै आप सभी को सचेत करना चाहता हूँ कि आप सब सावधानी पूर्वक संसार में सबसे व्यवहार करे....क्योकि यहाँ हर दिल में गुरुदेव विराजमान है.....ये सौ प्रतिसत सत्य बोल रहा हूँ!
समाप्त
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ये कैसी परिक्षा
Prem Anand Ji
Prem Anand Ji
प्रिय आलोचक महोदय,
आपने गुरुदेव के बारे में बहुत सुन्दर लिखा है, किस खूबसूरती से तुमने सत्य को असत्य कहने का प्रयास किया है...इससे ये तो पता चल ही गया कि तुम वास्तव में ही उच्चकोटि के धूर्त हो.... मुझे पढकर बहुत आनन्द आया.... तुम्हारी सिद्धि और समझ की भी जानकारी मुझे एक ही पल में मिल गई! क्या आपने जो साधनाए प्रकाशित की है वो सब आपको सिद्द है? यदि हां तो मै आपका शिष्य बनने के लिए तैयार हूँ...मैंने अपने गुरु की दस साल सेवा की है, मै आपकी बीस साल करूँगा...पर जो कुछ भी मुझे मेरे गुरु ने बनाया है और दिखाया है क्या तुम मुझे वो दिखा सकते हो!
अब फेसला मेरे और तुम्हारे बीच में नहीं हजारों लोगो के बीच में होगा, चेलेंज में दम होना चाहिए ...मै जान की बाजी लगाकर खेलूंगा ...मंजूर हो तो जबाब देना...यदि सिद्धाश्रम देखने की इच्छा हो तुम्हे मेरे साथ अपनी जान की बाजी लगानी होगी! सब कुछ त्यागना होगा ...मेरे साथ फकीरी धारण करनी होगी ....और गुरु चरणों में समर्पित होना होगा....मै भी अपना सब कुछ त्याग कर चलूँगा....और कभी ना लोटने के लिए चलूँगा! मै आपसे इतना ही पूछना चाहता हूँ...कि क्या आपको शास्त्र ज्ञान के अलावा भी कुछ है? जैसे आत्मज्ञान...सत्य का ज्ञान या बोध आदि ...
आपके चरणों का तुच्छ सेवक---स्वामी प्रेम आनन्द
प्रिय आलोचक महोदय,
आपने गुरुदेव के बारे में बहुत सुन्दर लिखा है, किस खूबसूरती से तुमने सत्य को असत्य कहने का प्रयास किया है...इससे ये तो पता चल ही गया कि तुम वास्तव में ही उच्चकोटि के धूर्त हो.... मुझे पढकर बहुत आनन्द आया.... तुम्हारी सिद्धि और समझ की भी जानकारी मुझे एक ही पल में मिल गई! क्या आपने जो साधनाए प्रकाशित की है वो सब आपको सिद्द है? यदि हां तो मै आपका शिष्य बनने के लिए तैयार हूँ...मैंने अपने गुरु की दस साल सेवा की है, मै आपकी बीस साल करूँगा...पर जो कुछ भी मुझे मेरे गुरु ने बनाया है और दिखाया है क्या तुम मुझे वो दिखा सकते हो!
अब फेसला मेरे और तुम्हारे बीच में नहीं हजारों लोगो के बीच में होगा, चेलेंज में दम होना चाहिए ...मै जान की बाजी लगाकर खेलूंगा ...मंजूर हो तो जबाब देना...यदि सिद्धाश्रम देखने की इच्छा हो तुम्हे मेरे साथ अपनी जान की बाजी लगानी होगी! सब कुछ त्यागना होगा ...मेरे साथ फकीरी धारण करनी होगी ....और गुरु चरणों में समर्पित होना होगा....मै भी अपना सब कुछ त्याग कर चलूँगा....और कभी ना लोटने के लिए चलूँगा! मै आपसे इतना ही पूछना चाहता हूँ...कि क्या आपको शास्त्र ज्ञान के अलावा भी कुछ है? जैसे आत्मज्ञान...सत्य का ज्ञान या बोध आदि ...
आपके चरणों का तुच्छ सेवक---स्वामी प्रेम आनन्द
people so fiercely opposed to this law do?
जय गुरुदेव
आज एक भाई की पोस्ट पढ़ी इनका नाम तो मेने बड़े बड़े ज्ञानियों की लिस्ट में देखा था सोचा था ये भी बड़े ज्ञानी पुरुष होंगे पर इन्होने भी अपनी अज्ञानता दिखा दी। कुछ लोगो के सवाल है गुरुदेव के बारेमे उनके जवाब मैं देनेका साहस कर रहा हु। मैं हर पंथ का सन्मान करता हु। क्यों की तंत्र मेरे शिव शम्भू ने बनाया है अगर वो नहीं बनाते तो ये पंथ वैगेरा भी न होते आज .
सबसे पहले ये बताना चाहूँगा की यह लोग नारायण दत्त श्रीमाली जी का इतना विरोध क्यों करते है?
दुनिया में धर्म के नाम पर पाखंड करने वाले बोहोत है पर फिर भी इनका टारगेट श्रीमाली जी ही क्यों?
इसका उत्तर है इनका निजी उदरभरण जो की इनके ज्ञान से होता था वो रुक सा गया। जो कमाई ये अपने दीक्षा से ली हुई ज्ञान से करते थे वो बंद हो गया जैसे वशीकरण, मरण और षट्कर्म जैसे बाते जो सिर्फ पहले इन्हें ही आती है और यही इसके ज्ञाता है ऐसा जाना जाता था। और इसके बल पर भोली भली जनता से रूपया ऐत्हते थे। श्रीमाली जी ने इस गुप्त विद्या का प्रसार किया और इनका हर शिष्य सहजता से षट्कर्म करने लगा। जिससे इनकी कमाई रुक गयी। अब श्रीमाली जी नहीं रहे तो ये उनको पाखंडी बताने में लगे है। श्रीमाली जी के वजह से घर घर में तंत्र को जानने वाला मिलने लगा। जिस छोटे मंत्र पर इनकी कमाई होती थी वो तो श्रीमाली जी के शिष्य टाईमपास में उपयोग में लाते है। अब जब की श्रीमाली जी नहीं रहे तो ये उनपर कीचड़ उचल उछल कर अपनी खोयी हुई इज्ज़त पा रहे है। प्रयत्न करके देखने दो ध्यान मत दो।
अब जरा इनके साईट पर दिए हुए इनके पर्दाफाश पर नजर डालते है।
पहला प्रश्न है की निखिलेश्वरानंद नाम एक मनघडंत नाम है।
तो मैं कहता हु तेरा क्या जा रहा है ? आज इसी नाम से हजारो लोग एक होते है , सबका जीवन सुख शांति से चल रहा है। अध्यात्मिक प्रगति कर रहे है। और देवताओ के फोटो भी कंप्यूटर से ही बनते है गावठी कही के। .... वो फोटो स्टूडियो नहीं आते और अध्यात्म का कोई पंथ नहीं होता न शैव न वैष्णव इतना तो सिख ही होगा तूने। …स्मयिल प्लीज हा हा
दूसरा प्रश्न इसने पूछा है की शिव पूरण में निखिलेश्वर और सच्चिदानंद के नामो का उल्लेख नहीं है।
अब मैं तुझसे पूछता हु की कहते है हमारे तैतीस करोड़ देवता है सबके नाम शिवपुराण में है? क्या आपको सब पेर्सोनाली मिले है। क्या आपकी मीटिंग की एक दो तस्वीरे दिखाएङ्गे प्लीज ?
अब इसने तीसरा सवाल पूछा है की गुरुमंत्र सभा में क्यों देते थे और दीक्षा क्यों बेचते थे ?
तो सुन प्यारे , हमारा गुरुमंत्र अगर सभा में चिल्लाकर भी बोलो न उतना ही पावरफुल है। जरा दिल से ३ बार बोलकर देखना जब भी परेशानी में होगा तू भले ही निखिल विरोधी हो तू उस परेशानी से मुक्त हो जायेगा बस श्रध्हा दिखा। अब रही बात दीक्षा की की क्यों बेचते है ? आज का जमाना हर बात को पैसे में गिनता है फुकट की कोई वैल्यू नहीं है। जब तक १० का वड़ापाव के ऍफ़ सी और एम् सी दी में जाकर न खाओ और १०-२० लोगो को अपना स्टेटस न दिखाओ तबतक इनको चैन नहीं अत। अगर फ्री में दीक्षा देते तो लोग कहते अरे अब तो दीक्षा मिली है भगवन की कृपा हो जाएगी। आलसी लोग है कलियुग के श्रम करना पसंद नहीं। इसलिए उसका कुछ मूल्य लगाया जिससे वो उस मूल्य की वजह से तो इश्वर का नाम लेंगे और उसी वजह से उनका कल्याण होगा।
चौथा सवाल इस ग्यानी ने पूछा क्या दस महाविद्या सिद्ध थी?
मुझे तो नहीं पता मैं तेरे जैसा महँ सिद्ध नहीं हु। तुझे इतना ही सवाल आ रहा है तो तूने सिद्ध की हुए पिरो से पूछ ले न हजरत लगाकर
पाचवे सवाल का उत्तर भी तेरे पिरो से ही पुच और कर्न्पिशाच्निया तो होंगी ही सिद्ध तुझे।
छटवे सवाल है स्वर्ण बनाना जानते थे तो पैसे क्यों वसूलते थे ?
कुछ मेरे जैसे लालची लोग होते है जो स्वर्ण बनाकर पैसा कमाना चाहते है। श्रीमाली जी ने कुछ लोगो को मुफ्त में सिखाया भी स्वर्ण बनाना वो लोग अभी गायब है। मेरे जैसे ही थे हाहा
सातवा सवाल है महाज्ञानी का की श्रीमाली जी त्रिकालदर्शी थे?
तो सुन लल्लू , त्रिकाल दर्शी राम भी थे तो क्यों उन्होंने सीता का अपहरण होनेके बाद भी उन्हें धुंडने की कोशिश की ? १४ साल तक क्यों घूमते रहे वनों में ? चाहते तो एक जगह बैठकर हनुमान का वेट कर सकते थे। पर नहीं उन्होंने ऐसा नहीं किया क्यों की वह उनका मानव अवतार था जो एक सामान्य मानव को दुःख भोगने चाहिए wah उन्होंने भगवान् होकर भी भोगे। चाहे वो खुद जगत के पालन हार विष्णु ही क्यों न हो। और जो भी रेड वैगेरा पड़ी वो भी जरा मत सीताजी के अपहरण के तरह एक म्याटर समझ ले। हाहा अब इन्फोर्मेशन एक्ट के कागज लाना है तो ला बोहोत मिल जायेंगे।
आठवी बात है निखिल शिष्य साधना चुराकर साईट पर डालते है और पैसा कमाते है।
ये बता तू साईट बनाकर क्या अंडे दे रहा है ? तू भी तो धंदा कर रहा है। ….तुम करो तो कुछ नहीं हम करो तो क्यारेक्टर ढीला है हाहा
नौवा प्रश्न पुत्रो को गुरु बनाने के बारेमे
अरे कलियुग में अग्नि प्रज्वलन वरुण देव आवाहन पापियों को कैसे दिखेगा? और ये बता तू जो भी साधनाए करता है उसको तू खुद ही महसूस करता है या दुसरो को भी करवा सकता है ?
१० व प्रश्न है खुद को भगवन से बड़ा बताया
तो यह बात तो तुझे पता होगी वो एक गुरु थे तो वो तो शिव से भी बड़े हुए। उन्होंने वह वाक्य एक गुरु के भाव से कहा ना की साधारण मनुष्य के। तुझे ये भी नहीं पता की गुरु ही ब्रह्मा विष्णु महेश होते है।
और किताबे पढ़ ले अच्छी किताबे है और मित्रो से मांग मांग कर ही पढ़ तू खुद नहीं ले सकता हाहा जरा विचार कर नए नए सवाल बना इनफार्मेशन एक्ट लेकर आ। जो उखड सकता है उखड ले।
निखिल है निखिल था निखिल रहेगा।
तू शेरो के साथ नहीं रहता तू उनमेसे ही एक है पर शेरो का एक भी गुण तुझमे नहीं तू भेडिया है
तुम पूछो और सवाल मैं हु यहाँ उत्तर देने के लिए।
एक डायलोग सुना होगा शूट आउट एट वडाला का
"तुम गलत करोगे हम रोकेंगे तुम गुनाह करोगे हम ठोकेंगे
हम है तो तुम हो और हमारा ये लफड़ा चलता रहेगा चलता रहेगा चलता रहेगा।" ….
पर इसमें हम अपने गुरुओ को बिच में नहीं लाते ना ही किसी और के गुरु का अपमान करते है हमें हमारे गुरुने सिखाया है की हर गुरु को अपना गुरु मानो , गुरु शिव स्वरुप होते है
आपने मेरे गुरु का इतना अपमान किया फिर भी मैंने आपके गुरु के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोला यह है मेरे निखिल के संस्कार
हम है राही प्यार फिर मिलेंगे चलते चलते
ॐ नमः शिवाय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जय सदगुरुदेव by SHIVAMSH NIKHILAMSH RAJ
आज एक भाई की पोस्ट पढ़ी इनका नाम तो मेने बड़े बड़े ज्ञानियों की लिस्ट में देखा था सोचा था ये भी बड़े ज्ञानी पुरुष होंगे पर इन्होने भी अपनी अज्ञानता दिखा दी। कुछ लोगो के सवाल है गुरुदेव के बारेमे उनके जवाब मैं देनेका साहस कर रहा हु। मैं हर पंथ का सन्मान करता हु। क्यों की तंत्र मेरे शिव शम्भू ने बनाया है अगर वो नहीं बनाते तो ये पंथ वैगेरा भी न होते आज .
सबसे पहले ये बताना चाहूँगा की यह लोग नारायण दत्त श्रीमाली जी का इतना विरोध क्यों करते है?
दुनिया में धर्म के नाम पर पाखंड करने वाले बोहोत है पर फिर भी इनका टारगेट श्रीमाली जी ही क्यों?
इसका उत्तर है इनका निजी उदरभरण जो की इनके ज्ञान से होता था वो रुक सा गया। जो कमाई ये अपने दीक्षा से ली हुई ज्ञान से करते थे वो बंद हो गया जैसे वशीकरण, मरण और षट्कर्म जैसे बाते जो सिर्फ पहले इन्हें ही आती है और यही इसके ज्ञाता है ऐसा जाना जाता था। और इसके बल पर भोली भली जनता से रूपया ऐत्हते थे। श्रीमाली जी ने इस गुप्त विद्या का प्रसार किया और इनका हर शिष्य सहजता से षट्कर्म करने लगा। जिससे इनकी कमाई रुक गयी। अब श्रीमाली जी नहीं रहे तो ये उनको पाखंडी बताने में लगे है। श्रीमाली जी के वजह से घर घर में तंत्र को जानने वाला मिलने लगा। जिस छोटे मंत्र पर इनकी कमाई होती थी वो तो श्रीमाली जी के शिष्य टाईमपास में उपयोग में लाते है। अब जब की श्रीमाली जी नहीं रहे तो ये उनपर कीचड़ उचल उछल कर अपनी खोयी हुई इज्ज़त पा रहे है। प्रयत्न करके देखने दो ध्यान मत दो।
अब जरा इनके साईट पर दिए हुए इनके पर्दाफाश पर नजर डालते है।
पहला प्रश्न है की निखिलेश्वरानंद नाम एक मनघडंत नाम है।
तो मैं कहता हु तेरा क्या जा रहा है ? आज इसी नाम से हजारो लोग एक होते है , सबका जीवन सुख शांति से चल रहा है। अध्यात्मिक प्रगति कर रहे है। और देवताओ के फोटो भी कंप्यूटर से ही बनते है गावठी कही के। .... वो फोटो स्टूडियो नहीं आते और अध्यात्म का कोई पंथ नहीं होता न शैव न वैष्णव इतना तो सिख ही होगा तूने। …स्मयिल प्लीज हा हा
दूसरा प्रश्न इसने पूछा है की शिव पूरण में निखिलेश्वर और सच्चिदानंद के नामो का उल्लेख नहीं है।
अब मैं तुझसे पूछता हु की कहते है हमारे तैतीस करोड़ देवता है सबके नाम शिवपुराण में है? क्या आपको सब पेर्सोनाली मिले है। क्या आपकी मीटिंग की एक दो तस्वीरे दिखाएङ्गे प्लीज ?
अब इसने तीसरा सवाल पूछा है की गुरुमंत्र सभा में क्यों देते थे और दीक्षा क्यों बेचते थे ?
तो सुन प्यारे , हमारा गुरुमंत्र अगर सभा में चिल्लाकर भी बोलो न उतना ही पावरफुल है। जरा दिल से ३ बार बोलकर देखना जब भी परेशानी में होगा तू भले ही निखिल विरोधी हो तू उस परेशानी से मुक्त हो जायेगा बस श्रध्हा दिखा। अब रही बात दीक्षा की की क्यों बेचते है ? आज का जमाना हर बात को पैसे में गिनता है फुकट की कोई वैल्यू नहीं है। जब तक १० का वड़ापाव के ऍफ़ सी और एम् सी दी में जाकर न खाओ और १०-२० लोगो को अपना स्टेटस न दिखाओ तबतक इनको चैन नहीं अत। अगर फ्री में दीक्षा देते तो लोग कहते अरे अब तो दीक्षा मिली है भगवन की कृपा हो जाएगी। आलसी लोग है कलियुग के श्रम करना पसंद नहीं। इसलिए उसका कुछ मूल्य लगाया जिससे वो उस मूल्य की वजह से तो इश्वर का नाम लेंगे और उसी वजह से उनका कल्याण होगा।
चौथा सवाल इस ग्यानी ने पूछा क्या दस महाविद्या सिद्ध थी?
मुझे तो नहीं पता मैं तेरे जैसा महँ सिद्ध नहीं हु। तुझे इतना ही सवाल आ रहा है तो तूने सिद्ध की हुए पिरो से पूछ ले न हजरत लगाकर
पाचवे सवाल का उत्तर भी तेरे पिरो से ही पुच और कर्न्पिशाच्निया तो होंगी ही सिद्ध तुझे।
छटवे सवाल है स्वर्ण बनाना जानते थे तो पैसे क्यों वसूलते थे ?
कुछ मेरे जैसे लालची लोग होते है जो स्वर्ण बनाकर पैसा कमाना चाहते है। श्रीमाली जी ने कुछ लोगो को मुफ्त में सिखाया भी स्वर्ण बनाना वो लोग अभी गायब है। मेरे जैसे ही थे हाहा
सातवा सवाल है महाज्ञानी का की श्रीमाली जी त्रिकालदर्शी थे?
तो सुन लल्लू , त्रिकाल दर्शी राम भी थे तो क्यों उन्होंने सीता का अपहरण होनेके बाद भी उन्हें धुंडने की कोशिश की ? १४ साल तक क्यों घूमते रहे वनों में ? चाहते तो एक जगह बैठकर हनुमान का वेट कर सकते थे। पर नहीं उन्होंने ऐसा नहीं किया क्यों की वह उनका मानव अवतार था जो एक सामान्य मानव को दुःख भोगने चाहिए wah उन्होंने भगवान् होकर भी भोगे। चाहे वो खुद जगत के पालन हार विष्णु ही क्यों न हो। और जो भी रेड वैगेरा पड़ी वो भी जरा मत सीताजी के अपहरण के तरह एक म्याटर समझ ले। हाहा अब इन्फोर्मेशन एक्ट के कागज लाना है तो ला बोहोत मिल जायेंगे।
आठवी बात है निखिल शिष्य साधना चुराकर साईट पर डालते है और पैसा कमाते है।
ये बता तू साईट बनाकर क्या अंडे दे रहा है ? तू भी तो धंदा कर रहा है। ….तुम करो तो कुछ नहीं हम करो तो क्यारेक्टर ढीला है हाहा
नौवा प्रश्न पुत्रो को गुरु बनाने के बारेमे
अरे कलियुग में अग्नि प्रज्वलन वरुण देव आवाहन पापियों को कैसे दिखेगा? और ये बता तू जो भी साधनाए करता है उसको तू खुद ही महसूस करता है या दुसरो को भी करवा सकता है ?
१० व प्रश्न है खुद को भगवन से बड़ा बताया
तो यह बात तो तुझे पता होगी वो एक गुरु थे तो वो तो शिव से भी बड़े हुए। उन्होंने वह वाक्य एक गुरु के भाव से कहा ना की साधारण मनुष्य के। तुझे ये भी नहीं पता की गुरु ही ब्रह्मा विष्णु महेश होते है।
और किताबे पढ़ ले अच्छी किताबे है और मित्रो से मांग मांग कर ही पढ़ तू खुद नहीं ले सकता हाहा जरा विचार कर नए नए सवाल बना इनफार्मेशन एक्ट लेकर आ। जो उखड सकता है उखड ले।
निखिल है निखिल था निखिल रहेगा।
तू शेरो के साथ नहीं रहता तू उनमेसे ही एक है पर शेरो का एक भी गुण तुझमे नहीं तू भेडिया है
तुम पूछो और सवाल मैं हु यहाँ उत्तर देने के लिए।
एक डायलोग सुना होगा शूट आउट एट वडाला का
"तुम गलत करोगे हम रोकेंगे तुम गुनाह करोगे हम ठोकेंगे
हम है तो तुम हो और हमारा ये लफड़ा चलता रहेगा चलता रहेगा चलता रहेगा।" ….
पर इसमें हम अपने गुरुओ को बिच में नहीं लाते ना ही किसी और के गुरु का अपमान करते है हमें हमारे गुरुने सिखाया है की हर गुरु को अपना गुरु मानो , गुरु शिव स्वरुप होते है
आपने मेरे गुरु का इतना अपमान किया फिर भी मैंने आपके गुरु के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोला यह है मेरे निखिल के संस्कार
हम है राही प्यार फिर मिलेंगे चलते चलते
ॐ नमः शिवाय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जय सदगुरुदेव by SHIVAMSH NIKHILAMSH RAJ
Wednesday, December 26, 2012
gyan batane par badhta hai
हम में से कई की ये मानसिकता है की सिर्फ उन्ही के पास ज्ञान रहे सिर्फ वो ही आगे बढे, बाकि लोगो से उन्हें कोई मतलब नहीं है। उनकी इसी मानसिकता के चलते काफी लोग उस दुर्लभ ज्ञान से वंचित रह गए जो ज्ञान किसीकी जिंदगी बदल सकता था ..............उन्होंने ये कभी नहीं सोचा की उनके पास जो ज्ञान है वो सिर्फ इसलिए है की उन्हें भी ये ज्ञान किसी ने दिया है ................
सदगुरुदेव इस प्रकार की मानसिकता के सदैव खिलाफ थे ..................सदगुरुदेव ने सदैव उन साधू , सन्यासी ,योगियों को जम के फटकारा की इन गुफाओ ,कंदराओ में बैठ के क्या हो जायेगा ??????? वो विद्या वो ज्ञान किस काम की जो समाज के काम न आ सके ......................
और इसका जीता जगता उद्धारण आपके सामने है ..........जो सनातन विद्या लुप्त सी हो गयी थी सदगुरुदेव ने उसे पुनः समाज के सामने लाया और खुले दिल से लुटाया ...............जो विद्या देवताओ के लिए भी दुर्लभ थी वो अदुतिय विद्या भी देते समय एक छन भी नहीं सोचा ..............जो कोई भी उनके द्वार पे गया कभी खली हाँथ नहीं लौटा ............................
इसी ज्ञान को घर घर में पहुचने के लिए उन्होंने मंत्र तंत्र यन्त्र विज्ञानं पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया ..................उन्होंने हमेशा ये कहा की आप लोग इस पत्रिका का जितना प्रसार कर सके करे .....जितने पत्रिका सदस्य आप बना सके उसे बनाये ..........क्योंकि आप सब मेरे प्राणों के अंस है अगर आपसे अपने दिल की बात नहीं कहूँगा तो फिर किससे कहूँगा ...........ये सिर्फ आपका फर्ज ही नहीं बल्कि मेरी आज्ञा भी है ................
सदगुरुदेव की सदेव यह इच्छा रहती थी की उनके शिष्य भी इस ज्ञान को सभी जगह फलाये ........................ इसीलिए उन्होंने कहा मै तुम सब को जीता जगता ग्रन्थ बनाना चाहता हूँ ...........तुम्हे सूर्य बनाना चाहता हूँ ............... जिससे आप स्वयं तो प्रकाशित हो ही पर आप दुसरे को भी प्रकाशित कर सके ...........जीवन की सार्थकता सही अर्थो मे इसी में है ...............
सदगुरुदेव कह रहे है की शुभ अवसर पर हम एक दुसरे को मिठाइया देते है ये परम्परा तो काफी समय से चले आ रही है .................आप एक नयी परम्परा प्रारंभ करे ..........आप पत्रिका या कैसेट उपहार स्वरुप दे .............आप कैसेट गुरुधाम से मंगवा कर या ग्रुप और युटियुब मे भी सदगुरुदेव की काफी कैसेटे लोड हो चुकी है, अतः आप भी इन कैसेटो को सीडी मे कॉपी करके या सॉफ्ट कॉपी, जैसी आपकी सुविधा हो नए वर्ष के अवसर पे उपहार स्वरुप दे ............... ताकि आप भी किसी के घर में ज्ञान का दीपक जला सके .................
आइये हम सब मिलके एक नयी परम्परा प्रारंभ करे ........ और ये प्रतिज्ञा करे की हम खुद तो प्रकाशित होंगे ही पर दुसरे को भी अवश्य प्रकशित करेंगे ...............................................
जय सदगुरुदेव
वन्दे निखिलं जगद्गुरुम
Saturday, November 17, 2012
You can uplift of India - Part 4 भारत का उत्थान तुम कर सकते हो
भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ७
और शिष्य बस राम नाम सत्य है आगे गया गत है। अब यहां तो गति हुई नहीं आगे होगी या नहीं यह आपने देखा नहीं। मैं कह रहा हूं गति कुछ होती नहीं है, गति हम उसकी करेंगे जो हमारे घर मे गड़बड़ करेंगे, जो हमारे घर में हिंसा लाएगा कमजोरी लाएगा। कारखाने में कोई गोली बननी ही नहीं चाहिए जो आपको लग जाए। जब बनेगी ही नहीं तो लगेगी कहां से वो।
मैं आपको ऐसा क्षमतावान बनाना चाहता हूं, जो पांच हजार वर्षों मे समाप्त हो गया उस ज्ञान को आपको देना चाहता हूं, उस कृत्या को आपको प्रदान कर देना चाहता हूं आप तेजस्विता युक्त बनें। सुर्य तो बहुत कम चमक वाला है आप उससे हजार गुना चमक वाले बनें, ऐसा ज्ञान मैं आपको प्रदान करना चाहता हूं।
मैंने आपको समझाया कि हम कमजोर और अशक्त क्यों है, मानसिक रुप से परेशान और रूग्ण क्यों है, और ऐसी कौन सी विद्या, कौन सी ताक़त है जिसके माध्यम से जो हमारे विकार हैं वे समाप्त हो सकें। हमारे मन कुल ३२ संचारी भाव होते हैं सोलह अनुकूल, सोलह प्रतिकूल। घृणा, कोध, प्रतिशोध, दुर्भावना, लोभ मोह, अंहकार ये सब संचारी भाव है। और कुछ अच्छे संचारी भाव भी होते है जैसे प्रेम, स्नेह, परोपकार।
जीवन का सार बलशाली होना है, जब तक आदमी निर्बल रहेगा तब तक आदमी सफ़ल नहीं हो सकता। और बलशाली होने के लियी उसे सोलह जो प्रतिकूल संचारी भाव है उन्हें समाप्त करना होगा। प्रकृति भी निर्बल को सताती हैं। दिया निर्बल होता है, थोड़ी सी हवा चलती है और उसे बुझा देती है। और वही दिया अगर आग बन जाये तो हवा उसे बढ़ा देती है, हवा भी सहायक बन जाती है। ताकतवान का साथ देती है हवा निर्बल कि नहीं बनाती। दोनों ही आग है और हवा एक ही है मगर जो ताकतवान है जो क्षमतावान है उसकी वह सहायक बनती है।
आप ताकतवान है तो आप पूर्ण सफलतायुक्त होते ही है और वह ताकतवान होना मन से संबधित है, विचारों से संबंधित है। और कृत्या का अर्थ यही है कि आप ताकतवान, और क्षमतावान बने। मगर मंत्र जप आप करते रहे, एक महिना, दो महिने छः महीन पांच साल दस साल - ऐसी विद्या मैं आपको नहीं देना चाहता। मंत्र तो दूंगा ही मगर इतना लंबा मंत्र नहीं कि पांच साल जप करो तब सफ़लता मिले। ऐसा नहीं। पहली बार में ही सफ़लता मिलनी चाहिऐ, पूर्ण सफ़लता मिलनी चाहिऐ।
जो भी मंत्र आपको दूंगा वह महत्वपूर्ण दूंगा, मैं ऐसा नहीं कहूंगा कि आप एक साल मंत्र जप करें, पांच दिन करे मगर पुरी धारणा शक्ति के साथ करें गुरू को ह्रदय मे धारण करके करे। यह सोचिए कि गुरू के अलावा मेरे जीवन मे कुछ है ही नहीं। मैं यह नहीं कह रहा कि मैं आपका गुरू हूं तो आप मेरी प्रशंसा करी, आपके जो भी गुरू हों गुरू है तो है ही उनके बिना फिर सांस लेने कि भी क्षमता नहीं होनी चाहिए। और एक बार गुरू को धारण किया तो कर लिया, जो उसने कहा वह किया। फिर अपनी बुद्धि, अपनी होशियारी, अपनी अक्ल आप लडाएंगे तो आप ही गुरू बन जाएंगे, फिर कोई और गुरू बनाने कि जरूरत ही नहीं क्योंकि फिर आप ही गुरू है क्योंकि आप मुझसे ज्यादा गाली बोल सकते है, मुझसे ज्यादा झूठ बोल सकते है और मुझसे ज्यादा लडाई कर सकते है तो मुझसे योग्य हैं ही आप। मैं आपको जितना क्रोध कर नहीं सकता आपके जितना लडाई झगडा कर नहीं सकता। जीतनी शानदार २००० गलियां आप दे सकते है मैं दे ही नहीं सकता।
मगर साधनाओं मे आपसे ज्यादा क्षमता है, आपसे ज्यादा पौरुष है, आपसे ज्यादा साहस आपसे ज्यादा धारण शक्ति हैं। कृत्या का तात्पर्य यह भी है कि हममे साहस हो, पौरुष हो, धारणा शक्ति ह। कृत्या अपने आपमें एक प्रचंड शक्ति है जो भगवान शिव के द्वारा निर्मित हुई, जिसके कोई तूफान का अंत नहीं था। जब हूंकार करती थी तो दसों दिशाएं अपने आपमें कांपती थीं और उससे जो पैदा हुए उस कृत्या से वे वैताल जैसे पैदा हुए, धूर्जटा जैसे पैदा हुए, विकटा जैसे, अघोरा जैसे पैदा हुए। जो ग्यारह गण कहलाते हैं भगवान के वे कृत्या से पैदा हुए।
आपके जीवन में क्षमता साहस, जवानी पौरुष कृत्या साधना के माध्यम से ही आ सकती है। कृपणता, दुर्बलता, निराशा आपके जीवन में नहीं है, आप अपने ऊपर जबरदस्ती लाद लेते हैं हर बार लाद लेते है कि अब मैं कुछ नहीं कर सकता, मेरे जीवन में कुछ है ही नहीं।
और धीरे-धीरे आप, नष्ट होते जा रहे हैं। देश में जो चल रहा है, जो हो रहा है उसके लिए विज्ञान कर क्या रहा है हमारी उपयोगिता फिर क्या है हम फिर क्यों पैदा हुए हैं? ज्ञान क्या चीज है? पहले ज्ञान सही था तो अब ज्ञान सही क्यों नहीं हो रहा हां? मैं यह सिद्ध करना चाहता हूं।
मैं बताना चाहता हूं कि आयुर्वेद मे वह क्षमता है कि प्रत्येक रोग का निवारण कर सके। पहले किसी पौधी के पास खडे होते थे तो पौधा खुद खडा हो जाता था कि यह मेरा नाम है, यह मेरा गुण है, यह मेरा उपयोग है और मनुष्य जीवन के लिए मैं इस प्रकार उपयोगी हूं। पेड पौधे पहले इतना बोलते थे तो आज भी बोलते होंगे जरूर। उस समय वनस्पति खुद बोलती थी। आज भी बोलती है मगर हममे क्षमता नहीं कि हम समझ पाएं।
आपमें क्षमता हो, साहस हो पौरुष हो ऐसा मैं आपको बनाना चाहता हूं। आप बोले और सामने वाला थर्रा नही जाए तो फिर आप हुए ही क्या।
मैंने यह समझाया कि कृत्या क्या है और हमारे जीवन में क्यों आवश्यक है। कृत्या कोई लडाई झगडा नहीं है, कृत्या मतभेद नहीं है। कृत्या आपको प्रचंड पौरुष देने वाली एक जगदम्बा देवी है। कृत्या किसी को नष्ट कराने के लिए नहीं परंतु आपके पौरुष को ललकारने वाली जरूर है, हिम्मत, और हौंसला देने वाली जरूर है, वृद्धावस्था को मिटाने वाली जरूर है।
भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ८
परंतु आवश्यकता है कि पूर्ण क्षमता के साथ इस कृत्या को धारण किया जाए और पूर्ण पौरुष के साथ, जवानी के साथ बैठकर इसे सिद्ध किया जा सकता है, मरे हुए मुर्दों कि तरह बैठकर नहीं प्राप्त किया जा सकता। और अगर मेरे शिष्य मरे हुए बैठेंगे तो मेरा सब कुछ देना ही व्यर्थ है। मैं स्वयं अभी पच्चीस साल बूढा नहीं होना चाहता और यदि आपमें से कोई बूढा नहीं होना चाहता और अगर यदि आपमें से कोई मुझे बूढा कहता है तो उठकर मुझसे पंजा लडा ले, मालूम पड जाएगा। आपकी हड़्डी नहीं उतार कर दी तो कह देना। कराटे में किस प्रकार हड्डी को तोडा जाता है मुझे मालूम है। मेरे पास हथियार भी नहीं होगा तो भी मैं कर दूंगा। यह कोई बड़ी चीज नहीं है और न ही वृद्धावस्था जैसी कोई चीज है। वृद्धावस्था तो आएगी मगर जब आएगी तो देखा जाएगा। पूछ लेंगे मेरे पास आने कि क्या जरूरत थी, बहुत बैठे है शिष्य उनके पास चली जाओ। मेरे पास हलवा पुरी मिलेगी नहीं तुम्हे।
बुढ़ापे जैसी कोई अवस्था होती नहीं है, यह केवल एक मन का विचार है कि हम बूढ़े हो गए हैं और आप जीवन भर पौरुषवान और यौवनवान हो सकते हैं कृत्या सिद्धि के द्वारा। मगर सिद्धि तब प्राप्त होगी जब गुरू जो ज्ञान दे उसे आप क्षमता के साथ धारण करे। शुकदेव ने तो केवल एक बार सूना और उसे सिद्धि सफ़लता मिल गई।
जब पार्वती ने यह हठ कर ली कि भगवान् शिव उन्हें बताएं कि आदमी जिंदा कैसे रह सकता है वह मरे ही नहीं, क्या विद्या है जिसे संजीवनी विद्या कहते है तो महादेव बताना नहीं चाहते थे, वह गोपनीय रहस्य था। मगर पार्वती ने हठ किया तो उन्हें कहना पडा।
अमरनाथ के स्थान पर शिव ने बताना शुरू किया। भगवान शिव ने डमरू बजाया तो जितने वहां पशु पक्षी कीट पतंग थे वे सब भाग गाए। लेकिन एक तोते ने अंडा दिया था वह रह गया। बाक़ी बारह कोस तक कोई कीट पतंग भी नहीं रहा। वह अंडा फूट गया और बच्चा बाहर आ गया। भगवान शिव पार्वती को कथा सुनाते जा रहे थे और वह बच्चा सुनता जा रहा था। पार्वती को नींद आ गई और वह बच्चा हुंकार भरता रहा। कथा समाप्त हुई तो भगवान शिव ने देखा कि पार्वती तो सो गई। उन्होने सोचा कि फिर यह हुंकार कौन भर रहा था उन्होने पार्वती को उठाया और पुछा तुमने कहां तक सूना?
पार्वती ने कहा मैंने वहां तक सूना और मुझे फिर नींद आ गई।
तो भगवान् शिव ने कहा यह हुंकार कौन भर रहा था फिर। पार्वती ने कहा मुझे तो मालूम नहीं।
उन्होने देखा तो एक तोते का बच्चा बैठा था। महादेव ने अपना त्रिशूल फेंका। तो उस बच्चे ने कहा- आप मुझे मार नहीं सकते मैंने अमर विद्या सीख ली है आपसे। जो आपने कहा वह मैं समझ गया। मुझे कोई मंत्र उच्चारण करने की आवश्यकता नहीं।
तो वह बच्चा उडा और वेद व्यास कि पत्नी अर्ध्य दे रही थी भगवान् सुर्य को, और उसके मूंह के माध्यम से वह अन्दर उतर गया और १२ साल तक अन्दर रहा। पहले माताएं २१ महिने पर संतान पैदा करती थी। २१ महीन उनके गर्भ में बालक रहता था। फिर ११ महिने तक रहने लगा। फिर बच्चा दस महिने रहने लगा। सत्यनारायण कि कथा में आता है कि दस महीने के बाद मे पुलस्त्य कि पत्नी ने सुंदर कन्या को जन्म दिया। फिर नौ महिने बाद जन्म होने लगा और अब आठ महिने बाद जन्म होने लग गए। तो ये सब अपरिपक्व मस्तिष्क वाले बालक पैदा हो रहे है। जो धारणा शक्ति थी महिलाओं को वह ख़त्म हो गई।
और १२ साल बाद इसने कहा कि तुम्हे तकलीफ हो रही है तो मैं निकल जाऊंगा, महादेव मेरा कुछ नहीं कर सकते। और महादेव बैठे थे दरवाजे के ऊपर कि निकलेगा तो मार दूंगा।
व्यास कि पत्नी ने कहा - मुझे पता ही नहीं लगा कि तुम अंदर हो। तुम तो हवा कि तरह हलके हो। तुम्हारी इच्छा हो तो बैठे रहो, नही इच्छा हो तो निकल जाओ।
वह शुकदेव ऋषि बने। शुक याने तोता। यह बात बताने का अर्थ है कि जो मैं बोलूं उसे धारण करने कि शक्ति होनी चाहिए आपमें। जैसे शुकदेव ने सुना शिव को और एक ही बार मे सारा ज्ञान आत्मसात कर लिया। अगर धारण कर लेंगे, समझ लेंगे तो जीवन मे बहुत थोडा सा मंत्र जप करना पडेगा। धारण करेंगे ही नहीं, मानस अलग होगा तो नहीं हो पाएगा।
जो कहूं वह करना ही है आपको। शास्त्रों ने कहा है- जैसे गुरू करे ऐसा आप मत करिए, जो गुरू कहे वह करिए। अब गुरू वहां जाकर चाय पीने लगे तो हम भी चाय पींगे, जो गुरू जी करेंगे हम भी करेंगे अब गुरुजी मंच पर बैठे है तो हम भी बैठेंगे। नहीं ऐसा नहीं करना है आपको। जो गुरू कहे वह करिए। आपको यह करना है तो करना है।
आप गुरू के बताए मार्ग चलेंगे, गतिशील होंगे, तो अवश्य आपको सफ़लता मिलेगी, गारंटी के साथ मिलेगी। और साधना आप पूर्ण धारण शक्ति के साथ करेंगे तो अवश्य ही पौरुषवान, हिम्मतवान, क्षमतावान बन सकते है। आप अपने जीवन मे उच्च से उच्च साधनाएं, मंत्र और तंत्र का ज्ञान गुरू से प्राप्त कर सके और प्राप्त ही नहीं करें, उसे धारण कर सकें, आत्मसात कर सके ऐसा मैं आपको ह्रदय से आर्शीवाद देता हूं, कल्यान कामना करता हूं।
- सदगुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द
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