Saturday, December 31, 2011

What is the Tantra .. What is Kundalini

TANTRA KYA HAI ???
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तंत्र क्या है..कुंडलिनी क्या होती है....क्या होती है इसकी जाग्रत और सुप्त अवस्था....साधक कैसा होता है....और योगी कैसा होता है....क्या इन दोनों में कोई भेद है....क्या है दिव्या भूमि या देव भूमि....और सिद्ध स्थिति कैसी होती है....ऐसी कौन सी क्रिया हो सकती है जो उपरोक्त प्रश्नों को ना सिर्फ सुलझा दे बल्कि यथाचित वो उत्तर भी दे जो सर्व माननीय हो...
किसी भी चीज़ को समझने के लिए कम से कम आज के युग में ये बहुत जरुरी हो गया है की कही गयी बात के पीछे कोई ठोस तर्क काम करता हो और यही स्थिति आज तंत्र के क्षेत्र में भी बनी हुई है...अपनी अपनी जगह पे हम सब जानते हैं की कोई भी साधना शुरू करने से पहले हमे इस बात को जानने की जल्दी होती है की इससे लाभ क्या होगा...तो मेरा अध्ययन मुझे बताता है की तंत्र ही जीवन है, ये कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि एक ठोस ज्ञान है. ज्ञान केवल तब तक ज्ञान रहता है जब तक की वो पूरी तरह से आपकी पकड़ में नहीं आ जाता पर जैसे ही आप उसके अंश विशेष को जानकर उसे अपने आधीन कर लेते हैं तो वही ज्ञान...विज्ञान बन जाता है, वो विज्ञान जिसमें आपका जीवन परिवर्तन करने की क्षमता होती है. तंत्र भी एक ऐसा ही विज्ञान है पर हम इसमें विजयी हो सके उसके लिए जरूरी है कुंडलिनी जागरण. हम सब जानते हैं की हमारे शरीर में इड़ा (जो की चंद्र का प्रतीक है), पिंगला (जो सूर्य रूप में है) और सुष्मना (जो चन्द्र और सूर्य में समभाव स्थापित करती है) विधमान हैं जो क्रम अनुसार दक्षिण शक्ति, वाम शक्ति और मध्य शक्ति के रूप में हैं...और इन शक्तियों का त्रिकोण रूप में जो आधार बिंदु है वो शिव है पर ये बिंदु सिर्फ बोल देने से शिव रूप नहीं ले लेता इसके लिए तीनो त्रिकोनिये शक्तियों को जागृत होना पड़ता है अर्थात शिव तभी अपने चरम रूप में जाग्रत होते है जब तीनो शक्तियाँ जो की आदिशक्ति माँ काली, माँ तारा और माँ राजराजेश्वरी के रूप में हैं वो जागती हैं क्योकि शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं .माँ काली की जाग्रत अवस्था में शिव या बिंदु के शिवमय होने की प्रथम स्थिति है...पर इस वक्त शिव शव अर्थात क्रिया हीन रहते हैं...माँ तारा के जाग जाने से शिव अपने श्व्त्व में चरम रूप में होते हैं और राजराजेश्वरी माँ के जागने से शिव का श्व्त्व तो भंग हो जाता है पर वो निंद्रा में चले जाते हैं पर एक साधक के लिए ये पूरी प्रक्रिया कुंडलिनी जागरण ही होती है क्योकि इसमें भी नाभि कुंड में स्थापित कमलासन खुलता है पर राजराजेश्वरी माँ भगवती उसमें विराजमान नहीं होती वो विराजमान होती है गुरु कृपा से...और जब गुरु की कृपा दीक्षा या शक्तिपात से प्राप्त हो जाती है तो स्थिति बनती है आनंद की, विज्ञान की और फिर सत्य की...जिसे योगी अपनी भाषा में खंड, अखंड और महाखंड की अवस्थिति में वर्णित करते हैं....जहाँ हम में और हमारे इष्ट में कोई भेद नहीं होता है वो मैं और मैं वो बन जाते हैं....

Large heart side Tntrokt Gnpti spiritual awareness

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विशाल हिरदे पक्ष जागरण की तन्त्रोकत गणपती साधना –

साधना में सिद्धि मिलने में तब तक शांशय बना रहता है जब तक हिरदे पक्ष जाग्रत न हो इस लिए सर्व प्रथम हिरदे पक्ष को जगाना चाहिए विशाल हिरदे पक्ष जागरण से ही सिद्धि के दुयार स्व खुल जाते है !और विशाल हिरदे पक्ष जाग्रत होते ही भीतर से खुशी प्रगट होती है और अनाहद चक्र स्व खुल जाता है !अंदर से जब खुशी प्रगट हो तो साधक का मन भीतर से खिल उठता है !वोह अंदर से खुल के हस्ता है पर बाहर सामन्या ही दिखता है !और आगे के चक्रो की यात्रा स्व शुरू हो जाती है !बिना विशाल हिरदे पक्ष जगाए सहसार चक्र को जगाना मुशकल होता है और विशुद चक्र भी जगाना बहुत मुशकल होता है !जहां तक मेरा तजुरबा है इस विशाल हिरदे पक्ष जगाने की सभी से अनुमूल कृति गणपती साधना में है !यह साधना मेरी स्व की अनुभूत है !और इस का प्रयोग मैंने एक गुरु भाई को भी कराया था ! उसे भी अंदर से परम खुशी का एहसास हुया और आज वोह साधना के एक विशिष्ट मुकाम पर है !
स्मानया अवसथा में कुंडलिनी मणिपुर चक्र पे जा कर रुक जाती है ! उसे आगे के लिए गतिमान करने के लिए विशाल हिरदे पक्ष जागरण जरूरी है !इस साधना से मन पे पड़ा माया का पर्दा हट जाता है और साधक को दिव्य अनुभूति होती है ! उसे साधना में होने वाली कमी का स्व एहसास हो जाता है और मन को एकाग्रता मिल जाती है !इस लिए यह एक जरूरी साधना समझते हुये पोस्ट कर रहा हु आशा है आप सभी इस से लाभ उठाए गे और सद्गुरु जी के ज्ञान को हिरदे में वसाते हुए साधना मार्ग को प्रकाशित करेगे ! इस साधना को पूर्ण दिल से करे और प्रथम वार ही सफलता मिल जाती है आगे की साधनयों का मार्ग सुलव हो जाता है यह बात मैं पूरे मनोयोग से कहता हु !
साधना विधि –
1 इस साधना को शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार को शुरू करे !यह 11 दिन की साधना है !
2 इस साधना में आप सफ़ेद वस्त्र धारण कर सफ़ेद आसन पे उतरा बिमुख हो कर बैठे !
3 अपने सहमने गणपती विग्रह और गुरु चित्र साथपित करे ! गणपती की मूर्ति कोई भी ले सकते है अगर छतर वाली मूर्ति मिल जाए तो अति उतम है!
4 गुरु स्मरण कर संकल्प करे के मैं अपने मन के सभी विकारो पे विजय पा कर अपने विशाल हिरदे पक्ष को जगाना चाहता हु हे गुरुदेव आप मुझे सफलता प्रदान करे त के मैं साधना मार्ग पे एक गति के साथ वढ़ स्कू ! इतना कह कर जल छोड़ दे और गुरु पूजन करे फिर गणेश पूजन कर निम्न मंत्र की 21 माला करे !
5 जब आपको भीतर से ऐसा लगे की आप खुल के हसना चाहते हैं ! अंदर से एक खुशी का एहसास हो तो समझ ले साधना सफल हुई है ! इस साधना से गणपती के बिबांत्मिक दर्शन भी हो जाते है !
6 इस साधना में आप कोई भी माला ले ले अगर सफटिक मिल जाए तो और भी उतम है !अगर गणपती की मूर्ति न हो तो चित्र पे भी साधना कर सकते है !
7 पूजन के दौरान शुद्ध घी का दीपक जलता रहना चाहिए !
8 साधना के बाद माला को गले में कम से कम 21 दिन धारण जरूर करे और विग्रह जा चित्र को पुजा स्थान में रख दे ! शेष पूजन सामग्री को जल परवाह कर दे !
मंत्र --- ॐ ग्लाम ग्लीम ग्लोम गं गणपतिय नमः!!
Manta – om glam gleem gloum gam ganpatye namah :!

गणेश मोहिनी साधना Ganesh siren Silence

गणेश मोहिनी साधना –
मोहिनी साधनए तो बहुत है इन सभी में गणेश मोहिनी साधना श्रेष्ट कही गई है वैसे तो मोहिनी साधनए अपना पूर्ण प्रभाव रखती है इन में से श्री गोरखनाथ मोहिनी ,शाह हजरत अली की सुलेमानी मोहिनी ,मोहमंद सहब की शाम कोर मोहिनी और पंज पीर मोहिनी प्रयोग वीर हनुमान मोहिनी रतड़ी मोहिनी बीबों मोहनी साबर साधनायों में बेमिसाल मानी गई है ! जहां मैं गणेश मोहिनी दे रहा हु यह मेरी अनुभूत साधना है ! ऐसी साधनाए मिलना भी सोभाग्य माना जाता है साबर साधना, साधना के हर पहलू को उजागर करती है! चाहे वोह वीर साधना हो जा यक्षणी साधना साबर तंत्र आश्चर्ज से भरा हुया है !साधना तो दे रहा हु पर किसी भी हालत में इसका गलत प्रयोग न करे अथवा परिणाम भी आपको भुगतने पड़ेगे मैं जहां साधको की जिज्ञाशा के लिए यह अनुभूत साधना दे रहा हु कोई भी तर्क कुतर्क माईने नहीं रखता क्यू के इसे मैं स्व परख कर ही दे रहा हु यह साधना मुझे वावा श्याम जी से प्राप्त हुई थी बहुत ही बेमिसाल साधना है! यह किसी भी असभव कार्य को सभव करने का बल रखती है !इसे करने के लिए अनुष्ठान करना पड़ता है यह एक दिन की साधना है !और इसे घर में नहीं करना है घर में करने से फलदायी नहीं होगी यह बात आप याद रखे !एक शकश था कनेडा में उसकी बेटी को उसी के जवाई ने जहर दे दिया था और उल्टा केश भी कर दिया था बेटी तो बच गई लेकिन केश का फैसला नहीं हो पा रहा था! वकील भी दलीले दे कर हार गया था तभी वोह मिला उस की समस्या के निवारण के लिए यह प्रयोग किया वहाँ के जज और वकील सभी समोहित हो गए थे और फैसला उसी के हक़ में हो गया और उसके जवाई को 18 बर्ष की कैद हो गई यह बात 2006 की है !इस लिए कोई ऐसा काम जो आपसे न हो पा रहा हो जैसे दफ्तर में नोकरी में प्रेशानी कोई उतपन करता है जा घर का महोल आपके अनुकूल नहीं है तो यह साधना राम बाण की तरह असर करती है !इस से किसी भी व्यक्ति को बश में कर अपना काम निकाला जा सकता है पर यह बात भी जरूर कहनी चहुगा किसी भी हालत में किसी लड़की की ज़िंदगी खराब न करे वरना इसका उलट असर भी हो जाता है !
विधि –इस के लिए स्मगरी ले उस में निम्न वस्तुए 10-10 रुपेए की लेकर मिला ले !
1 –स्लीरा
2-लाल चंदन पाउडर
3-सफ़ेद चंदन पाउडर
4 बादाम
5 शुयायारे
5 गिरि गोला
6 किसमिस
7 सरियाला
8 अगर
9 तगर
और जटा मासी और एक 1.50 किलो हवन स्मगरी आधा किलो तिल काले,
यह समान किसी भी पंसारी की दुकान से आसानी से मिल जाता है ! अगर कोई चीज न भी मिले तो भी कोई बात नहीं आप हवन में फूल मखाने और कमल गट्टे भी मिला सकते हो और एक कटोरी शकर और आधा किलो शुद्ध घी मिला कर समग्री तयार कर ले और इस हवन के लिए आम की लकड़ चाहिए अब किसी भी नजदीक जंगल में जा कर रात्री को गणपती का पूजन और उस के बाद 1100 आहुति देनी है इस मंत्र से ऐसा करने से साधना सीध हो जाती है हवन करते हुए इस बात का ख्याल रखे के जंगल को आग न लगे इस लिए जा तो निर्जन सथान जा नदी का किनारा भी बेहतर है !रात 9 व्जे के पहचान्त हवन शुरू करे इस में तीन घंटे से ज्यादा का समय लग जाता है ! भोग के लिए पाँच लड्डू रख ले और पुजा के पहचान्त साधना पूर्ण होने के बाद उहने वोही छोड़ दे और घर आ जाए जा जहां आपने स्टे की है वहाँ आ जाए ! स्ंदुर की एक डीबी साथ ले जाए और उसे खोल कर पास रख ले जब साधना पूर्ण हो जाए तो उसे साथ ले आए इस का तिलक सभी को समोहित कर देगा!
जहां एक बात जरूर कहनी चाहुगा कई लोग अपनी अनुकूलता के लिए साधना के नियम बना लेते है जब परिणाम सही नहीं मिलते तो साधना को गलत कह देते है इस लिए साधना में दिये हुये नियमो की पालना अनिवार्य है ! इसे किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगल वार करे !
साधना करने से पूर्व गुरु पूजन कर आज्ञा ले ले और फिर जंगल में जा कर रात 9 से 1 वजे तक साधना संम्पन कर ले इस में किसी प्रकार की हानी नहीं होती इस लिए सभी ड़र दिल से निकाल दे !
साबर मंत्र –
ॐ गणपती वीर वसे मसान ,जो मैं मांगु सो तुम आन !
पाँच लड्डू वा सिर संदूर त्रीभुवन मांगे चंपे के फूल!
अष्ट कुली नाग मोहा जो नाड़ी 72 कोठा मोहु !
इंदर की बैठी सभा मोहु आवती जावती ईस्त्री मोहु !
जाता जाता पुरुष मोहु ! डावा अंग वसे नर सिंह जीवने क्षेत्र पाला ये!
आवे मारकरनता सो जावी हमारे पाउ पड्न्ता!
गुरु की शक्ति हमारी भगती चलो मंत्र आदेश गुरुका !

Third Eye and Yoga तीसरा नेत्र और योग

तीसरा नेत्र और योग

भगवान शिव की ही तरह हर मनुष्य के दो समान नेत्रो के मध्य में तीसरा नेत्र होता है जिसके माध्यम से उसे वो सब दृश्य भी सहजता से दिखने लगते हैं जिन्हें साधारण आँखों से देख पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है क्योकि जरा सोच के देखिये यदि शिव का तीसरा नेत्र प्रलय लाने में सक्षम है तो इसमें कुछ तो ऐसी विशेषता और विलक्षणता होगी जो ये सहजता से हर किसी से के मस्तिष्क में जाग्रत नहीं होता.... इसको खोलने और कार्यरत करने के लिए जरूरत होती है एक लम्बे तथा कड़े अभ्यास की और उस से भी ज्यादा एक योग्य सद्गुरु की क्योकि सद्गुरु के बिना और कोई नहीं जानता की शरीर के किस हिस्से में कौन सा बिंदु स्थापित होता है और किस बिंदु को स्पर्श करने से ये सुप्त से जाग्रत अवस्था में आ जायेगा.
योग शास्त्र के अनुसार हमारे आज्ञा चक्र में ही कुल मिला के ३२ बिंदु होते हैं जिन्हें “ ज्योतिर्बिंदु “ कहा जाता है और आगे चल के इन ३२ बिंदुओं को १६-१६ समान भागो में बाँट दिया जाता है. ये १६-१६ बिंदु समान भाव से आध्यात्म और सांसारिक भाव का स्पष्टीकरण करते हैं. जो १६ बिंदु आध्यात्मिक भाव को प्रकट करते हैं उन्हें “ शक्ति बिंदु” कहा जाता है. अब जैसे की हम जानते हैं की शक्ति और शिव एक दुसरे के बिना अधूरे हैं तो ये जो शिव बिंदु है वो स्थापित होता है सद्गुरु के हाथ के अंगूठे में.....असल में हमारे आज्ञा चक्र की तरह ही गुरुदेव के हाथ के अंगूठे में भी ३२ बिंदु स्थापित होते हैं जिन्हें “ शिव “ की गणना दी जाती है.
अब प्रश्न ये आता है की इस शिव और शक्ति का योग कैसे हो तो उसका एक सीधा और सरल उपाय है सद्गुरु से “ उपनयन दीक्षा “ की प्राप्ति क्योकि इस दीक्षा के मिल जाने से हमारे अंदर की सारी त्रुटियाँ स्वतः ही खत्म होने लगती है और हमारे अंदर तीसरे नेत्र को जाग्रत करने के लिए अति आवश्यक क्रिया अपने आप होने लगती है जिसे तीन भागो में बांटा जा सकता है......
१- इच्छा शक्ति २- क्रिया शक्ति ३- ज्ञान शक्ति
ये इच्छा शक्ति प्रतीक है “ सद्गुरु “ की, क्रिया शक्ति नेतृत्व करती है “ मंत्र “ का और ज्ञान शक्ति से सार्थकता मिलती है “ साधना पद्धति “ को.
सद्गुरु द्वारा शिष्य के आज्ञा चक्र को छू लेने से जब शिव और शक्ति एक साथ कार्यरत होते हैं तो तांत्रिक कुंडलिनी योग के माध्यम से हमारा तीसरा नेत्र जाग्रत होने लगता है और हमें वो सब दिखने लगता है जो आम मनुष्य के लिए किसी और लोक की बाते है. इसी तरह लाया योग से हम अपने दिमाग को अपने नियंत्रण में कर सकते हैं जिससे एक बार देखि,सुनी या पढ़ी गयी चीजें फिर कभी नहीं भूलती. समाधि योग हमें उस परम सत्ता से एकाकार करा देता है और हम जीवन मृत्यु से मुक्त हो जाते हैं.

Chinnmsta secret छिन्नमस्ता रहस्य

छिन्नमस्ता रहस्य
साधक और उसका आराध्य ये दोनों मिलकर एक ऐसी सत्ता का निर्माण करते है जिसका कण-कण लाखों करोड़ों ज्योतिपुन्जों से ज्यादा प्रकाशमान, शक्तिमान और ऊर्जावान होता है....ऐसी स्थिति में साधक का जीवन एक आम आदमी की तरह जन्म की किलकारी से शुरू होकर चिता की राख के साथ खत्म नहीं हो जाता क्योकि वो अपनी आखिरी नींद लेने से पहले ही परम-आनंद की अनुभूति कर चुका होता है....और ये आत्मा को तृप्त करने वाला आनंद उसे तब प्राप्त होता है जब दैवी शक्तियों के साथ उसका एकाकार हो जाता है.
किसी भी दिव्य सत्ता को आत्मसात करने के लिए तीन नियम हमेशा एक साधक को याद रखने चाहियें-
१-साधक को अपने आप को अपने इष्ट के चरणों में विसर्जित कर देना चाहिए.
२-उसका संकल्प पक्का होना चाहिए की चाहे पृथ्वी आपना मार्ग बदल दे पर मैं आपने अभीष्ट को पा कर ही रहूँगा.
३-अपने आराध्य के साथ साथ उसका खुद पर भी विशवास होना चाहिए की मैं ये कर सकता हूँ और करूँगा ही.
छिन्नमस्ता माँ की साधना को दसों महाविद्याओं में सबसे श्रेष्ठ माना गया है क्योकि एक तो ये शीघ्र फल देने वाली है और दूसरा ये दो तरह से आपने साधक के शत्रुओं का नाश करती है. अब हम सोचे की ये दो शत्रु कौन है तो-
१-बाहरी शत्रु- जैसे हमारे सब के कोई ना कोई होते ही हैं...
२-मानसिक शत्रु काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार- ये जितने भी हमारे दुश्मन हो सकते हैं उनमें से सबसे खतरनाक श्रेणी है क्योकि जब ये शत्रुता निकालते है तो विनाश को कोई नहीं टाल सकता....सिर्फ एक पल के लिए मन में मोह आ जाए तो हम हाजारों मील अपने प्रेम से दूर हो जाते हैं और इससे बड़ी शत्रुता और क्या होगी की हमे हमारे लक्ष्य से कोई दूर कर दे.....सदगुरुदेव से प्रेम ही तो हम सब का लक्ष्य होना चाहिए.
इसमें कोई दो-राये नहीं है की ये साधना यदि हमें सिद्ध हो जाए तो हममें असंभव को संभव करने की क्षमता आ जाती है पर एक बात का हमेशा ख्याल रखना चाहिए की ये क्षमता हम में तभी आ पाएगी, हम तभी माँ छिन्नमस्ता को खुद में आत्मसात कर सकेंगे यदि हम वीर भाव के साधक है तो....गिदगिड़ाने से भीख अवश्य मिल सकती है पर उपलब्धि नहीं. उपलब्धि के लिए आँखों में विजय भाव दिखना चाहिए.
माँ छिन्नमस्ता के तीन नाम है-
१- छिन्नमस्ता “ ये साधारण साधको के लिए है”
२- प्रचंड चण्डिका “ ये वीर भाव युक्त साधको के लिए है”
३- छिन्नमस्तिका “ ये दिव्य भाव की साधना है”
और माँ का मस्तक कटा स्वरूप जो हम अक्सर चित्रों में देखते हैं वो माँ का ब्रह्मांडीय स्वरूप है जिसकी एक झलक भी दुर्लभ है.
इन तीनो भावो की साधना के लिए एक ही मंत्र है जिसका जप २१ दिनों तक रोज ११ माला करना होता है. ये रात्कालीन साधना है अर्थात रात को करनी चाहिए जब आपकी चेतना को कोई हिला ना सके, आसन लाल होना चाहिए और आपके वस्त्र भी लाल होने चाहिए. इस मंत्र को लाल हकीक, मूंगा या सांप की हड्डियों से बनी माला से करना चाहिए और दीपक तेल का जलाना चाहिए और आपकी दिशा दक्षिण होगी.
मंत्र-
ओम हुम वज्र वैरोच्नीये हुम फट
साधना शुरू करने से पहले सदगुरुदेव का आशीर्वाद लेना ना भूलें क्योकि हम सब की सफलता उन्ही की प्रसन्नता और आशीर्वाद पे टिकी है.

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आपका वैवाहिक जीवन और मंगल गृह

मंगल गृह को लेकर वैवाहिक जीवन मे अनेक प्रकार कि भ्रान्तिया फ़ैलि हुइ है।वर और वधू कि कुंडली मे यदि लग्न, चतुर्थ्, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव मे मंगल हो तो कुण्डली मंगली होती है। यदि वर या वधू कि कुण्डली मे उपर दोष कथित स्थानो मे केवल एक कुण्डली मे दोष होगा तो दुसरा साथी के जीवन के जीवन का भय हो जायेगा। मन्गली दोष को लग्न / चन्द्र तथा शुक्र तीनो स्थानो से देखना चाहिये ऐसा शास्त्रो मे निर्देश है। चुंकि पाञ्च स्थानो मे मंगल के रेह्ने के कुछः दोष होता है अतः यदि तीनो स्थानो (लग्न, चन्द्र, शुक्र) से देखा जाये तो ५ * ३ = १५ स्थानो पर मंगल दोष बनता है।

लग्न चक्र मे १२ भाव ही होते है और मंगल १५ भावो (स्थानो मे दोषपूर्ण है व इसका अर्थ यह होगा कि संसार मे शायद ही ऐसी कोइ कुण्डली मिले जो मंगल दोष से रहित हो। इसी कारण "एसट्रोलोजिकल मेगझिन" के संपादक डा बि वि रमन ने लिखा है कि मांगलि दोष का हौवा न जाने कितने ऐसे विवाह् को जो सुखमय दाम्पत्य जीवन मे परिवर्तित होते, उन्हे नष्ट कर देता है।

महर्षि पाराशर के अनुसार गृहो का शुभाशुभ जानने के दो आधार है।
पेह्ला नैसर्गिक शुभ या अशुभ जैसे शनि, मंगल, राहु इत्यादि नैसर्गिक शुभ गृह है।
दुसरा आधार शुभता तथा अशुभता का भावधिपत्य द्वारा बताया गया है जैसे केन्द्र तथा त्रिकोन के स्वामि शुभ तथा छटे, आठवे, बारह्वे भाव के स्वामि अशुभ होते है। इसका स्पष्ठ अर्थ है कि परिस्थितिवश एक ही गृह चाहे नैसर्गिक या अशुभ ही भावातिपत्य कि परिस्थिति के अनुसार वह शुभ या अशुभ हो जाते है।

अतः वर या कन्या का लग्न क्या है उसके लिये मंगल ग्रह है शुभ या अशुभ यह भूलकर पांच स्थानों में से किसी एक स्थान पर मंगल को देखकर, मंगली दोष कि घोषणा कर देना ज्योतिष के मूलभूत सिद्धातों के अवहेलना तथा ज्योतिष शास्त्र को बदनाम करना है।

तात्पर्य यह कदापि नही है मंगल दाम्पत्य जीवन के लिये हानिकारक नही होता। मंगल के साथ् शनि, राहु, केतु, सूर्य भी हानिकारक होते है। अशुभ भावों के स्वामि होकर बृहस्पति, शुक्र, चन्द्र इत्यादि भी यदि सप्तम भाव मे बैठ जाये तो व भी विघटनकारी होते है। वास्तव मे सप्तम या अष्टम भाव मे अशुभ ग्रह कि स्थिति हानिकारक है और यह ज्योतिष के सिद्धान्त के अनुकूल भी है। यहि कारण है कि दक्षिण भारत के ज्योतिषि वर, कन्या कि कुण्डली मे सप्तम अष्टम 'शुद्धम' को श्रेष्ठ मानते है।

महर्षि पतंजलि ने योग दर्शन के 'साधन पाद' मे लिखा है ततः विपाको जाती अयुर्भोगाः अर्थात पूर्व जन्म के कर्मो के अनुसार प्राणी कि 'ततः विपाको जाति अयुर्भोगाः' अर्थात पूर्व जन्म के कर्मो के अनुसार प्राणी कि जाति (योनि जैसे मनुष्य योनि, पशु योनि, कीट योनि आदि) आयु और सुख-दुख प्राप्त होते है। ये गर्भ से ही निर्धारित होते है ज्योतिष मे सभी आचार्यो का स्पष्टः निर्देश है कि भविष्य बताने से पेहले आयु का विचार अवश्य कर लिया जाना चाहिये। अगर यह धारणा सही है कि पाति या पत्नी का मंगल एक-दुसरे को मार देता है तो एक समस्या उत्पन्न होगी, यदि कोइ अविवाहित व्यक्ति अपनी आयु के बारे मे जानना चाहे तो क्या ज्योतिषी उस यजमान कि आयु बताने के लिये यह कहेगा कि पेहले शादि कर लो फिर अपनी पत्नी कि कुण्डली लेकर आना तो आयु बतायेंगे?

ज्योतिषियो मे एक विचित्र सिद्धान्त प्रचलित है,वह यह कि यदि वर और कन्या मे से एक कि कुण्डली मंगली है और यदि दुसरे कि भी कुण्डली मे मंगल दोष है तो मांगलि का दोष दूर हो जाता है। यह कौन सा सिद्धान्त है शायद यह बात 'विषस्य विषमौषधम' आयुर्वेद के सिद्धान्त पर गढ ली गयी है। किन्तु आयुर्वेद विज्ञान के सिद्धान्त को ज्योतिष विज्ञान मे लागु करना वैसा ही है जैसे इनजीनियरिंग के सिद्धान्तों को मेदिचाल् साइंस मे थोप्ने का प्रयास।

ज्योतिष एक महाविज्ञान है हार विज्ञान मे जैसे सिद्धान्त होते है वैसे ही ज्योतिष के भी सिद्धान्त है। ज्योतिषीय समीक्षा के समक्ष उन सिद्धान्तों कि अवहेलना कर,मनमानि करने से ज्योतिष विज्ञान नही रुढिवाद हो जायेगा। यहि लांक्षन ज्योतिष पर लग रहा है अतः प्रत्येक विद्वान् ज्योतिषी का कर्तव्य है कि वह ज्योतिष से रुढिवादी लोगों का कोपभाजन बनना पडे। केहने का तात्पर्य यह है कि वर कन्या कि कुण्डली का मेलापक परम् आवश्यक है। मेलापक के अष्टकूट का वैज्ञानिक आधार है इस से वर कन्या का शारीरिक, मानसिक, भौतिक, आध्यात्मिक, संतान संबन्धी तालमेल की समीक्षा हो जाति है। इसके अलावा ग्रहो के आधार पर कन्या के आचरन कि समीक्षा, आयु समीक्षा, संतान भाव कि समीक्षा, क्षेत्र स्फ़ुट और बीज स्फ़ुट की समीक्ष, धन और भाग्य भाव की समीक्षा भी मेलापक मे तिहित है।

Mohini Devi मोहिनी देवी

मोहिनी देवी का अवतार भगवान विष्णु जी ने लिया था !जब शंकर जी ने भ्स्मा सुर को किसी को सिर पर हाथ रख कर भस्म करने की शक्ति प्रदान की तो वोह शंकर जी को कहने लगा के इस वारिदान का कैसे यकीन करू के यह शक्ति मुझ में आ गई है !तो शंकर जी ने कहा के परीक्षण करके देख लो तो उस ने कहा इस वक़्त तो आप ही पास हैं !इस लिए आप पर ही परीक्षण कर के देखता हु शंकर जी समझ गए और वहाँ से भैंसे का रूप धारण कर आगे आगे भागने लगे और एक परबत में टकर मार अपना सिर परबत में छुपा लिया जो के नेपाल जा कर निकला जहां भगवान पशुपति नाथ जी का मंदिर है !और जहां टकर मार के सिर छुपाया उस जगह को केदारनाथ जी के नाम से पुजा जाता है जहां पीठ पुजा होती है !और जब शंकर जी की आँख में अपनी यह साथिति देख आँसू टपक गए तो उन आंसूयों से रुद्राक्ष बृक्ष की उत्पाती हुई तब भगवान विष्णु जी ने मोहिनी अवतार लिया और भस्म सुर से कहाँ अब तो यह मर चुके है चलो इस का सोग मना लेते है फिर मैं तुम से शादी कर लूँगा तो वैन दल कर दोनों हाथो को पहले जंगों पे फिर छाती और अंत में सिर पर मार कर पीटने लगे जैसे आज भी औरते पीटती है तो सियापा (पीटना )वहाँ से शुरू हुया !जब भसमासुर का हाथ सिर पीआर गया तो भस्म हो गया इस तरहा इस अवतार में भगवान विष्णु जी ने शंकर जी को संकट से निकाला !
जब स्मून्दर मंथन के वक्त सूरो और असुरो में जंग होने लगी अमृत पाने के लिए तो भी भगवान इस रूप में आवृत हुए और अमृत का बंटन किया इस लिए मोहिनी एक श्रेष्ट विधा है !इस की ताव तो भगवान शंकर जी भी नहीं सहन कर पाये थे जब श्री भगवान शंकर जी ने मोहिनी रूप देखने की ईशा भगवान विष्णु जी से की तो भगवान ने सुंदर मोहिनी रूप धारा तो शंकर जी अपने आपको रूक नहीं पाये बीर्य पृथ्वी पे गिर गया !पृथ्वी उस की जलन से जलने लगी उस वक़्त अंजना माँ को एक ऋषि का श्राप मिला था के तुम कुमारी माँ बनोगी तो माँ अंजना ने अपने आपको एक बड़े से मटके में बंद कर लिया जिस में उपर एक छेद्ध था तो पवन देव ने उस वीर्य को उठा के व्हा ज्ञ तो आवाज की माँ अंजना उस छेद्ध में कान लगा कर सुनने लगी तो पवन देव ने उस वीर्य को उस छेद्ध के जरिए प्रवेश क्र दिया जिस से हनुमान जी का जन्म हुया और जेबी उन हाथो को गोबर में साफ किया तो उस में गुरु गोरख नाथ जी की उतपती बताई जाती है !यह कथा मैंने कुश सन्यासी लोगो से सुनी थी जो नाथ संपर्दय के थे ! इस लिए मोहनी अवतार श्रेष्ट है इस की साधना भी श्रेष्ठ है