Saturday, May 14, 2016

Rog Nivaran mantra sadhana कुछ विशेष रोग निवारण मंत्र

कुछ विशेष रोग निवारण मंत्र


यों तो किसी भी समस्या के समाधान हेतु अनेको उपाय हैं। परन्तु मंत्रों के माध्यम से समस्या के निवारण के पीछे धारणा यह है कि मंत्र शक्ति एवं दैवी शक्ति के द्वारा साधक को वह बल प्राप्त होता है जिससे कि किसी भी समस्या का समाधान सहज हो जाता है। उदाहरण के लिए माना जाता है कि सभी रोगों का उदभाव मनुष्य के मन से ही होता है। मन पर पड़े दुष्प्रभावों को यदि मंत्र द्वारा नियंत्रित कर लिया जाए, तो रोग स्थाई रूप से शांत हो जाते हैं। उसी प्रकार मन को सुदृढ़ करके किसी भी समस्या पर आप विजय प्राप्त कर सकते हैं।

ब्लड प्रेशर तो स्थाई रूप से नियंत्रित हो सकता है... आप ख़ुद परख लीजिये न
क्या आप ब्लड प्रेशर के रोगी है, तो आप परेशान न हों, क्योंकि आपके पास स्वयं इसका इलाज है। यदि थोड़ी सी सावधानी बरत लें, तो फिर इसे आप आसानी से नियंत्रित कर सकते हैं। आप दवाओं के साथ यदि इस प्रयोग को भी संपन्न करें, तो फिर यह स्थाई रूप से नियंत्रित हो सकता है। मंत्रों में इतनी क्षमता होती है, कि यदि आप उनका प्रयोग उचित विधि से करें, तो वे पूर्ण फलप्रद होते ही हैं।

आप 'रोग निवारक मधूरूपेन रूद्राक्ष' लेकर उसे किसी ताम्रपात्र में केसर से स्वस्तिक बनाकर स्थापित करें। उसके समक्ष ४० दिन तक नित्य ७५ बार निम्न मंत्र का जाप करें, नित्य मंत्र जप समाप्ति के बाद रूद्राक्ष धारण कर लें -
मंत्र
॥ ॐ क्षं पं क्षं ॐ ॥
प्रयोग समाप्त होने के बाद रूद्राक्ष को नदी में प्रवाहित कर दें।

सबसे खतरनाक बिमारी है डायबिटीज और इसका समाधान यह भी है
डायबिटीज रोग कैसा होता है, यह तो इससे पीड़ित रोगी ही अच्छी तरह समझ सकते हैं। दिखने में तो यह सामान्य है, लेकिन जब यह उग्र रूप धारण कर लेता है, तो व्यक्ति अनेक प्रकार की बिमारियों से घिर जाता है तथा मृत्यु के समान कष्ट पाता है। इसी कारण इसको खतरनाक बिमारी कहा गया है। आप इस रोग का पूर्ण समाधान प्राप्त कर सकते है, यदि आप दवाओं के साथ साथ इस प्रयोग को भी संपन्न कर लें।

रविवार के दिन पूर्व दिशा की ओर मुख कर सफेद आसन पर बैठ जाएं। सर्वप्रथम गुरु पूजन संपन्न करे तथा गुरूजी से पूर्ण स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात सफेद रंग के वस्त्र पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर 'अभीप्सा' को स्थापित करे दें, फिर उसके समक्ष १५ दिन तक नित्य मंत्र का ८ बार उच्चारण करें -
मंत्र
॥ ॐ ऐं ऐं सौः क्लीं क्लीं ॐ फट ॥
प्रयोग समाप्ति के बाद 'अभीप्सा' को नदी मैं प्रवाहित कर देन

आपने मस्तिष्क की क्षमता को पूर्ण विकसित करिए

आज का भौतिक युग प्रतियोगिताओं का युग है, जीवन के प्रत्येक क्षण मैं आपको अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कराने के लिए विभिन्न प्रकार की प्रतियोगी परिस्थितियों का सामना करना पङता है जिस व्यक्ति का मस्तिष्क जितना अधिक क्रियाशील, क्षमतावान होता है, वह उतना ही श्रेष्टता अर्जित कर लेता है आप भी आपने मस्तिष्क की क्षमता को पूर्ण विकसित कर सकते हैं इस प्रयोग के माध्यम से -'चैत्यन्य यंत्र' को किसी भी श्रेष्ठ समय मैं धारण कर लें एवं नित्य पराठा काल आपने इष्ट का स्मरण कर निम्न मंत्र का १५ मिनट तक जप करें -
मंत्र
॥ ॐ श्रीं चैतन्यं चैतन्यं सदीर्घ ॐ फट ॥
यंत्र को ४० दिनों तक धारण किए रहे ४० दिन के पश्चात उसे नदी मैं प्रवाहित कर दे।

आपने अनिद्रा के रोग को इस प्रकार से समाप्त करिए

क्या कहा आपने, आप को नींद नहीं आती और और इसके लिए आपको रोज रात को नींद की गोली लेनी आवश्यक हो जाती है और फिर भी आप चाहते हुए चैन की नींद नहीं ले पाते आपको स्वाभाविक नींद लिए हुए कई माह बीत चुके हैं कहीं इस रोग के कारण आपका स्वास्थ्य तो प्रभावित नहीं हो रहा है आपका सौन्दर्य कहीं डालने तो नहीं लगा यह रोग आपके लिए हानिकारक, तो नहीं साबित हो रहा है यदि ऐसा है तो आप शीघ्र ही इससे छुटकारा प्राप्त कर लीजिये

आप किसी भी रात्री को स्नान कर सफेद वस्त्र मैं कुंकुम से द्विदल कमल बनाए, अपना नाम कुंकुम से लिखकर उस पर उस पर 'रोग मुक्ति गुटिका' को स्थापित करें नोऊ दिन तक गुटिका के समक्ष निम्न मंत्र का ग्यारह बार जप एकाग्र चित्त हो कर करें -
मंत्र
॥ ॐ अं अनिद्रा नाशाय अं ॐ फट ॥
जप समाप्ति के बाद शांत मन से लेट जायें और नौ दिन के पश्चात गुटिका को नदी में प्रवाहित करें।
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान, जुलाई २००५

bangalamukh sadhana बगलामुखी जयंती



ॐ नमः शिवाय .... मित्रों !!
माँ बगलामुखी जयंती की आप सभी को शुभकामनायें !
आज का दिन आप सभी के लिए शुभ हो ...
धार्मिक मान्यताओ के अनुसार वैशाख मास मे शुक्ल पक्ष की अष्टमी को माँ बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है, इसी कारण इस तिथि को बगलामुखी जयंती मनाई जाती है।
माता बगलामुखी स्वर्ण के सिंहासन पर विराजमान है।
मुकुट पर चन्द्रमा विराजमान एक हाथ मे मुदगर धारण किए हुए तथा
दूसरे हाथ में शत्रु की जिव्हा पकड़े हुए है,
तथा सदैव पीले वस्त्र धारण करती हुई शोभायमान रहती हैं।
" सौवर्णासन संस्थितां त्रिनयनां पीताशंकोल्लासनी
हेमाभांग रूचिं शंशाक मुकुटां संचम्पक स्त्र युग्ताम।
हस्तैर्मुदगर पाशवद्वरसनां सम्विभ्रतीं भूषणै र्व्याप्ताड़ीं
बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनी चिन्तये ! "
सतयुग की कथा के अनुसार ब्रह्मांड मे एक भयंकर तूफान आने पर पूरी सृष्टि नष्ट होने की कगार पर थी,
तब भगवान विष्णु ने सर्वशक्तिमान और देवी बगलामुखी का आह्वान किया। उन्होंने सौराष्ट (काठियावर) के हरिद्रा सरोवर के पास उपासना की।
उनके इस तप से श्रीविध्या का तेज उत्पन्न हुआ।
तप की उस रात्रि क़ो बीर रात्रि के रूप मे जाना जाता है।
उस अर्ध रात्रि को भगवान विष्णु की तपस्या से संतुष्ट होकर माँ बगलामुखी ने सृष्टिविनाशक तूफान क़ो शान्त किया ।
मंगलवार युक्त चतुर्दशी, मकर-कुल नक्षत्रों से युक्त वीर-रात्रि कही जाती है।
इसी अर्द्ध-रात्रि मे श्री बगला का आविर्भाव हुआ था।
मकर कुल नक्षत्र –
भरणी, रोहिणी, पुष्य, मघा, उत्तरा-फाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा, श्रवण तथा उत्तर-भाद्रपद नक्षत्र हैं।
यह भी मान्यता है कि प्राचीन काल मे एक मदन नाम के राक्षस ने अत्यंत कठिन तपस्या करके वाक् सिद्धि के वरदान को पाया था।
उसने इस वरदान का गलत प्रयोग करना शुरू कर दिया और निर्दोष लाचार लोगों को परेशान करने लगा।
उसके इस घृणित कार्य से परेशान होकर देवताओं ने माँ बगलामुखी की आराधना की।
माँ ने असुर के हिंसात्मक आचरण को अपने बाएं हाथ से उसकी जिह्वा को पकड़ कर और उसके वाणी को स्थिर करके रोक दिया।
माँ बगलामुखी जैसे ही मारने के लिए दाहिने हाथ में गदा उठाई वैसे ही असुर के मुख से निकला मैं इसी रूप में आपके साथ दर्शाया जाऊं ... तब से देवी इन्हें माँ बगलामुखी के साथ दर्शाया गया है।
दश महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या का नाम से उल्लेखित है।
वैदिक शब्द ‘ वल्गा ’ कहा है, जिसका अर्थ दुल्हन या कृत्या है, जो बाद मे अपभ्रंश होकर ' बगला ' नाम से प्रचारित हो गया ।
बगलामुखी शत्रु-संहारक विशेष है अतः इसके दक्षिणाम्नायी पश्चिमाम्नायी मंत्र अधिक मिलते हैं।
नैऋत्य व पश्चिमाम्नायी दथमंत्र प्रबल संहारक व शत्रु को पीड़ा कारक होते हैं । इसलिये इसका प्रयोग करते समय व्यक्ति घबराते हैं, वास्तव मे इसके प्रयोग में सावधानी बरतनी चाहिये।
ऐसी बात नहीं है कि यह विद्या शत्रु-संहारक ही है, ध्यान योग में इससे विशेष सहयता मिलती है।
यह विद्या प्राण-वायु व मन की चंचलता का स्तंभन कर ऊर्ध्व-गति देती है, इस विद्या के मंत्र के साथ ललितादि विद्याओं के कूट मंत्र मिलाकर भी साधना की जाती है।
बगलामुखी मंत्रों के साथ ललिता, काली व लक्ष्मी मंत्रों से पुटित कर व पदभेद करके प्रयोग मे लाये जा सकते हैं।
इस विद्या के ऊर्ध्व-आम्नाय व उभय आम्नाय मंत्र भी हैं, जिनका ध्यान योग से ही विशेष सम्बन्ध रहता है।
त्रिपुर सुन्दरी के कूट मन्त्रों के मिलाने से यह विद्या बगलासुन्दरी हो जाती है, जो शत्रु-नाश भी करती है तथा वैभव भी देती है।
विष्णु भगवान् श्री कूर्म हैं तथा ये मंगल ग्रह से सम्बन्धित मानी गयी हैं।
इनके शिव को ' एकवक्त्र-महारुद्र तथा मृत्युञ्जय-महादेव ' कहा जाता है, इसीलिए देवी सिद्ध-विद्या कहा जाता है।
बगलामुखी महाविद्या के भैरव भगवान मृत्युञ्जय बतलाए गए हैं, अतः पीतांबरा माँ के आराधन से पूर्व भगवान मृत्युञ्जय की स्तुति भी की जानी चाहिए।
‘ मृत्युञ्जय महादेव त्राहिमाम् शरणागतम्।
जन्ममृत्युञ्जरारोगै: पीड़ितं कर्मबन्धनैः ! "
शत्रु व राजकीय विवाद, मुकदमेबाजी मे यह विद्या शीघ्र-सिद्धि-प्रदा है।
शत्रु के द्वारा कृत्या अभिचार किया गया हो, या
प्रेतादिक उपद्रव हो, तो उक्त विद्या का प्रयोग करना चाहिये।
यदि शत्रु का प्रयोग या प्रेतोपद्रव भारी हो, तो मंत्र क्रम मे निम्न विघ्न बन सकते हैं –
1. जप नियम पूर्वक नहीं हो सकेंगे ।
2. मंत्र जप मे समय अधिक लगेगा, जिह्वा भारी होने लगेगी।
3. मंत्र मे जहाँ “ जिह्वां कीलय ” शब्द आता है, उस समय स्वयं की जिह्वा पर संबोधन भाव आने लगेगा, उससे स्वयं पर ही मंत्र का कुप्रभाव पड़ेगा।
4. ‘ बुद्धिं विनाशय ’ पर परिभाषा का अर्थ मन मे स्वयं पर आने लगेगा।
सावधानियाँ –
* ऐसे समय मे तारा मंत्र पुटित बगलामुखी मंत्र प्रयोग मे लेवें, अथवा कालरात्रि देवी का मंत्र व काली अथवा प्रत्यंगिरा मंत्र पुटित करें,
तथा कवच मंत्रों का स्मरण करें।
सरस्वती विद्या का स्मरण करें अथवा गायत्री मंत्र साथ मे करें।
* “ ॐ ह्ल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाश ह्ल्रीं ॐ स्वाहा ”
इस मंत्र मे ‘सर्वदुष्टानां’ शब्द से आशय शत्रु को मानते हुए ध्यान-पूर्वक आगे का मंत्र पढ़ें।
8 यही संपूर्ण मंत्र जप समय ‘ सर्वदुष्टानां ’ की जगह काम, क्रोध, लोभादि शत्रु एवं विघ्नों का ध्यान करें तथा ‘ वाचं मुखं …….. जिह्वां कीलय ’ के समय देवी के बाँयें हाथ मे शत्रु की जिह्वा है तथा ‘ बुद्धिं विनाशय ’ के समय देवी शत्रु को पाशबद्ध कर मुद्गर से उसके मस्तिष्क पर प्रहार कर रही है, ऐसी भावना करें।
* बगलामुखी के अन्य उग्र-प्रयोग वडवामुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी, भानुमुखी, वृहद्-भानुमुखी, जातवेदमुखी इत्यादि तंत्र ग्रथों मे वर्णित है,
समय व परिस्थिति के अनुसार प्रयोग करना चाहिये।
* बगला प्रयोग के साथ भैरव, पक्षिराज, धूमावती विद्या का ज्ञान व प्रयोग करना चाहिये।
* बगलामुखी उपासना पीले वस्त्र पहनकर, पीले आसन पर बैठकर करें।
गंधार्चन मे केसर व हल्दी का प्रयोग करें, स्वयं के पीला तिलक लगायें।
दीप-वर्तिका पीली बनायें,
पीत-पुष्प चढ़ायें, पीला नैवेद्य चढ़ावें,
हल्दी से बनी हुई माला से जप करें, अभाव मे रुद्राक्ष माला से जप करें या सफेद चन्दन की माला को पीली कर लें किन्तु तुलसी की माला पर जप नहीं करें।
महर्षि च्यवन ने इसी विद्या के प्रभाव से इन्द्र के वज्र को स्तम्भित कर दिया था।
आदिगुरु शंकराचार्य ने अपने गुरु श्रीमद्-गोविन्दपाद की समाधि मे विघ्न डालने पर रेवा नदी का स्तम्भन इसी विद्या के प्रभाव से किया था।
महामुनि निम्बार्क ने एक परिव्राजक को नीम के वृक्ष पर सूर्य के दर्शन इसी विद्या के प्रभाव से कराए थे।
इसी विद्या के कारण ब्रह्मा जी सृष्टि की संरचना मे सफल हुए।
श्री बगला शक्ति कोई तामसिक शक्ति नहीं है, बल्कि आभिचारिक कृत्यों से रक्षा ही इसकी प्रधानता है।
इस संसार मे जितने भी प्रकार के दुःख और उत्पात हैं, उनसे रक्षा के लिए इसी शक्ति की उपासना करना श्रेष्ठ होता है।
शत्रु विनाश के लिए जो कृत्या विशेष को भूमि मे गाड़ देते हैं, उन्हें नष्ट करने वाली महा-शक्ति श्रीबगलामुखी ही है।
शत्रुओं को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समिष्टि रूप मे परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला ही है।
यदि एक बार आपने माँ बगलामुखी की साधना पूर्ण कर ली तो इस संसार मे ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जिसे आप प्राप्त नहीं कर सकते।
! ॐ सुरभ्यै नमः !
Proyog 2
व्यष्ठि रूप में शत्रुओ को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समिष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है। पिताम्बराविद्या के नाम विख्यात बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रुभय से मुक्ति और वाकसिद्धि के लिये की जाती है।
बगलामुखी साधना : सरल अनुष्ठान विधि
बगलामुखी साधना स्तम्भन की सर्वश्रेष्ट साधना मानी जाती है.यह साधना निम्नलिखित परिस्थितियों में अनुकूलता के लिए की जाती है.:-
शत्रु बाधा बढ़ गयी हो.
कोर्ट में केस चल रहा हो.
चुनाव लड़ रहे हों.
किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्ति के लिए .
सरल अनुष्ठान विधि :-
पीले रंग के वस्त्र पहनकर मंत्र जाप करेंगे .
आसन का रंग पिला होगा.
साधना कक्ष एकांत होना चाहिए , जिसमे पूरी नवरात्री आपके आलावा कोई नहीं जायेगा.
यदि संभव हो तो कमरे को पिला पुतवा लें.
बल्ब पीले रंग का रखें.
ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है,
साधनाकाल में प्रत्येक स्त्री को मातृवत मानकर सम्मान दें
हल्दी या पिली हकिक की माला से जाप होगा, यदि व्यवस्था न हो पाए तो रुद्राक्ष की माला से जाप कर सकते हैं.
उत्तर दिशा की ओर देखते हुए जाप करें.
साधना करने से पहले किसी तांत्रिक गुरु से बगलामुखी दीक्षा ले लेना श्रेष्ट होता है.
पहले दिन जाप से पहले हाथ में पानी लेकर कहे की " मै [अपना नाम लें ] अपनी [इच्छा बोले] की पूर्ति के लिए यह जाप कर रहा हूँ, आप कृपा कर यह इच्छा पूर्ण करें "
पहले गुरु मंत्र की एक माला जाप करें फिर बगला मंत्र का जाप करें.
अंत में पुनः गुरु मंत्र की एक माला जाप करें.
नौ दिन में कम से कम २१ हजार मन्त्र जाप करें. ज्यादा कर सकें तो ज्यादा बेहतर है.
अपने सामने माला या अंगूठी [जो आप हमेशा पहनते हैं ] को रख कर मन्त्र जप करेंगे तो वह मंत्रसिद्ध हो जायेगा और भविष्य मे रक्षाकवच जैसा कार्य करेगा.
ध्यान :-
मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्नवेदिम सिम्हासनो परिगताम परिपीत वर्णाम ,पीताम्बराभरण माल्य विभूषिताँगिम देवीम स्मरामि घृत मुद्गर वैरी जिह्वाम ||
मंत्र :-
|| ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय बुद्धिम विनाशय ह्लीं फट स्वाहा ||
विशेष :-
बगलामुखी प्रचंड महाविद्या हैं , कमजोर दिल के साधक और महिलाएं व् बच्चे बिना गुरु की अनुमति और सानिध्य के यह साधना न करें.
Proyo3
बगलामुखी mala mantra sidhi Proyog
jo image me hai
इसके प्रयोजन, मंत्र जप, हवन विधि एवं उपयुक्त सामान की जानकारी, सर्वजन हिताय, इस प्रकार है: उद्देश्य: धन लाभ, मनचाहे व्यक्ति से मिलन, इच्छित संतान की प्राप्ति, अनिष्ट ग्रहों की शांति, मुकद्दमे में विजय, आकर्षण, वशीकरण के लिए मंदिर में, अथवा प्राण प्रतिष्ठित बगलामुखी यंत्र के सामने इसके स्तोत्र का पाठ, मंत्र जाप, शीघ्र फल प्रदान करते हंै।

Friday, May 13, 2016

sahjan ke gun Ayurveda The Divine Power


कल्पना करिए।
एक ऐसा पेड़ जिसकी पत्तियों एवं फलियों में 300 से अधिक रोगों की रोकथाम के गुण, 92 विटामिन्स, 46 एंटी आक्सीडेंट, 36 दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हों, तो इसे पेड़ की जगह चमत्कार ही मानेंगे न। आपके इर्द-गिर्द यूं ही उगने वाले 'सहजन' में यह सभी गुण मिलते हैं।
इसकी खूबियां यहीं खत्म नहीं होतीं। चारे के रूप में इसकी हरी या सूखी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुने से अधिक और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है। कुपोषण, एनीमिया (खून की कमी) के खिलाफ जंग में सर्वसुलभ और हर जगह पैदा होने वाला सहजन उपेक्षित है।
राष्ट्रीय बागवानी शोध एवं विकास संस्थान (एनएचआरडीएफ) के उप निदेशक डा.रजनीश मिश्र के मुताबिक करीब पांच हजार साल पहले आयुर्वेद ने सहजन की जिन खूबियों को पहचाना था, आधुनिक विज्ञान में वे साबित हो चुकी हैं। दुर्भाग्य से जिनको (आम आदमी) इसके गुणों को जानना चाहिए वही इससे अनजान हैं। डा.मिश्र के अनुसार इसका मूल स्थान हिमालय की तराई ही है। यही वजह है कि यहां जहां-तहां सहजन के पेड़ दिख जाते हैं। इसे दैवी चमत्कार ही कहेंगे कि दुनियां में जहां-जहां कुपोषण की समस्या है वहां सहजन का वजूद है। देश के अपेक्षाकृत प्रगतिशील दक्षिणी भारत के राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में इसकी खेती होती है। साथ ही इसकी फलियों और पत्तियों का कई तरह से प्रयोग भी। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने पीकेएम-1 और पीकेएम-2 नाम से दो प्रजातियां विकसित की हैं। पीकेएम-1 यहां के कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुकूल भी है। इच्छुक किसानों को एनएचआरडीएफ बीज मुहैया कराने के साथ ही खेती के उन्नत तरीकों के बारे में भी बताएगा'
सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना
-विटामिन सी- संतरे से सात गुना।
-विटामिन ए- गाजर से चार गुना।
-कैलशियम- दूध से चार गुना।
-पोटेशियम- केले से तीन गुना।
-प्रोटीन- दही की तुलना में तीन गुना।
🙏
सेंजन, मुनगा या सहजन आदि नामों से जाना जाने वाला सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है। इतने गुणों के नाते सहजन चमत्कार से कम नहीं है। गोरखपुर में राष्ट्रीय बागवानी शोध एवं विकास संस्थान के उपनिदेशक रजनीश मिश्र ने बताया कि करीब पांच हजार वर्ष पूर्व आयुर्वेद ने सहजन की जिन खूबियों को पहचाना था, आज के वैज्ञानिक युग में वे साबित हो चुकी हैं। सहजन को अंग्रेजी में ड्रमस्टिक कहा जाता है। इसका वनस्पति नाम मोरिंगा ओलिफेरा है। फिलीपीन्स, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में भी सहजन का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है। दक्षिण भारत में व्यंजनों में इसका उपयोग खूब किया जाता है।

Friday, April 8, 2016

Nischit manokamna purti gayatri mantra sadhna

॥ निश्चित कामना पूर्ति प्रयोग ॥
कई बार हमे अपने जीवन मे ऐसे कार्य सम्पन्न करने होते है , जो हमारे जीवन मे आवश्यक होते है , यदि वे कार्य समय पर पूर्ण न हो तो हानि हो सकती है या परेशानियां हो सकती है ।
उदाहरण के लिए इन्टरव्यू मे सफलता शीघ्र नौकरी लगना , व्यपार मेँ उन्नति होना , या कोई ऐसा कार्य जो रुका हुआ हो और पूरा नहीँ हो रहा हो तो ऐसा कार्य की सफलता के लिए यह प्रयोग अपने आप मे चमत्कारी है , इस प्रयोग को सम्पन्न करते ही कार्य सिद्धि हो जाती है , और कुछ ही दिनो मे हमारा मनोवांछित कार्य हो जाता है ।
रात्रि के समय स्नान कर , लाल आसन पर बैठ कर लाल धोती पहन कर लाल हकीक माला से 51 माला मन्त्र जाप अनिवार्य है , यह पूरा मन्त्र जाप एक ही रात्रि मे सम्पन्न हो जाना चाहिए और मन्त्र जाप के बीच मे उठना या अन्य कार्य करना सर्वथा वर्जित है । ऐसा 5 दिन करे मंगलवार से शुरु करे ।
मन्त्र-
तत्सवितुर्वरेण्यं महात्काम्य ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल स्वाहा । धियो योनः प्रचोदयात् पर ज्योतिर्महा ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल परो राजसे सावदो परं ज्योति कोटि - चन्द्रर्कादोन् ज्वल ज्वल स्वाहा । ओमापो ज्योति रसो मृत ब्रह्मा भूर्भुवः स्वरोम् । सर्व तेजो ज्वल ज्वल स्वाहा ।
वास्तव मेँ यह अपने आप मे तेजस्वी और अद्वितीय मन्त्र है और यह प्रयोग चमत्कारिक है और किसी भी प्रकार की कार्य सिद्धि मेँ यह प्रयोग तुरन्त सफलता दायक है ।
Hirendra pratap Singh

Wednesday, January 27, 2016

सिद्ध लक्ष्मी सहस्त्राक्षरी मंत्र साधना। sidh Lakshmi sahastrakshri Mantra sadhna



विनियोगः -- ॐ अस्य श्री सर्व महाविद्या महारात्रि गोपनीय मंत्र रहस्याति रहस्यमयी पराशक्ति श्री मदाधा भगवती सिद्ध लक्ष्मी सहस्त्राक्षरी सहस्त्र रूपिणी महाविद्याया: श्री इन्द्र ऋषि गायत्र्यादि नाना छन्दांसि नवकोटि शक्तिरूपा श्री मदाधा भगवती सिद्ध लक्ष्मी देवता श्री मदाधा भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे पाठ विनियोगः


ऋष्यादि न्यास


श्री इन्द्र ऋषिभ्यां शिरसे नमः
गायत्र्यादि नानाछन्देभ्यो नम: मुखे
नव कोटि शक्तिरूपा श्री मदाधा भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादाद खिलेष्टार्थे जपे पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे


अंग न्यास


ॐ श्रीं सहस्त्रारे (सहस्त्रार चक्र)
ॐ क्लीं नमो नेत्रयुगले (दोनों नेत्र)
ॐ श्रीं नमः हृदये
ॐ ह्रीं नमः जंघा द्वये (जांघ)
ॐ ह्रीं नमः भाले(ललाट)
ॐ ऐं नमो हस्त युगले(दोनों हाथ)
ॐ क्लीं नमः कटौ(पैर)
ॐ श्रीं नमः पादादि सर्वांगे


लक्ष्मी के चित्र के आगे 21 पाठ करे पुष्य योग में।


महाविद्या मंत्र


ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्सौ श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं सौ: सौ: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं जय जय महालक्ष्मी जगदाधे विजये सुरासुर त्रिभुवन निदाने दयांकुरे सर्व देव तेजो रूपिणी विरंचि संस्थिते विधि वरदे सच्चिदानन्दे विष्णु देहावृते महा मोहिनी नित्य वरदान तत्परे महा सुधाब्धि वासिनि महा तेजो धारिणी सर्वाधारे सर्व कारण कारिणे अचिन्त्य रूपे इन्द्रादि सकल निर्जर सेविते साम गान गायन परिपूर्णोदय कारिणी विजये जयंति अपराजिते सर्व सुन्दरि रक्तांशुके सूर्य कोटि संकाशे चन्द्र कोटि सुशीतले अग्निकोटि दहन शीले यम कोटि वहन शीले  ॐ कार नाद बिन्दु रूपिणी निगमागम भागदायिनी त्रिदश राजदायिनी सर्व स्त्री रत्न स्वरूपिणी दिव्य देहिनी निर्गुणो सगुणे सद् सद् रूपधारिणी सुर वरदे भक्त त्राण तत्परे बहु वरदे सहस्त्राक्षरे अयुताक्षरे सप्त कोटि लक्ष्मी रूपिणी अनेक लक्ष लक्ष स्वरुपे अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायिके चतुर्विंशति मुनि जन संस्थिते चतुर्दश भुवन भाव विकारणे गगन वाहिनि नाना मंत्र राज विराजते सकल सुंदरीगण सेविते चरणारविन्दे महात्रिपुर सुन्दरि कामेश दायिते करुणा रस कल्लोलिनि कल्प वृक्षादि स्थिते चिंतामणि द्वय मध्यावस्थिते मणि मन्दिरे निवासिनी विष्णु वक्षस्थल कारिणे अजिते अमिले अनुपम चरिते मुक्ति क्षेत्राधिष्ठायिनी प्रसीद प्रसीद सर्व मनोरथान पूरय पूरय सर्वारिष्ठान छेदय छेदय सर्व ग्रह पीड़ा ज्वराग्र भयं विध्वंसय विध्वंसय सर्व त्रिभुवन जातं वशय वशय मोक्ष मार्गाणि दर्शय दर्शय ज्ञान मार्ग प्रकाशय प्रकाशय अज्ञान तमो नाशय नाशय धन धान्यादि वृद्धिं कुरु कुरु सर्व कल्याणानि कल्पय कल्पय मां रक्ष रक्ष सर्वायद्भयो निस्तारय निस्तारय वज्र शरीर साधय साधय ह्रीं क्लीं सहस्त्राक्षरी सिद्ध लक्ष्मी महा विद्यायै नमः ।।

Bharat ki khushbu

🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 परी हो तुम गुजरात की, रूप तेरा मद्रासी !
सुन्दरता कश्मिर की तुममे, सिक्किम जैसा शर्माती !!
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खान-पान पंजाबी जैसा, बंगाली जैसी बोली !
केरल जैसा आंख तुम्हारा, है दिल तो तुम्हारा दिल्ली !!
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महाराष्ट्र तुम्हारा फ़ैशन है, तो गोवा नया जमाना !
खुशबू हो तुम कर्नाटक कि, बल तो तेरा हरियाना !!
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सिधी-सादी उड़ीसा जैसी, एम.पी जैसा मुस्काना !
दुल्हन तुम राजस्थानी जैसी, त्रिपुरा जैसा इठलाना !!
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झारखन्ड तुम्हारा आभूषण, तो मेघालय तुम्हारी बिन्दीया है !
सीना तो तुम्हारा यू.पी है तो, हिमांचल तुम्हारी निन्दिया है !!
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कानों का कुन्डल छत्तीसगढ़, तो मिज़ोरम तुम्हारा पायल है !
बिहार गले का हार तुम्हारा, तो आसाम तुम्हारा आंचल है !!
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नागालैन्ड- आन्ध्र दो हाथ तुम्हारे, तो ज़ुल्फ़ तुम्हारा अरुणांचल है !
नाम तुम्हारा भारत माता, तो पवित्रता तुम्हारा उत्तरांचल है !!
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सागर है परिधान तुम्हारा, तिल जैसे है दमन-द्वीव !
मोहित हो जाता है सारा जग, रहती हो तुम कितनी सजीव !!
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अन्डमान और निकोबार द्वीप, पुष्पों का गुच्छ तेरे बालों में !
झिल-मिल, झिल-मिल से लक्षद्वीप, जो चमक रहे तेरे गालों में !!
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ताज तुम्हारा हिमालय है, तो गंगा पखारती चरण तेरे !
कोटि-कोटि हम भारत वासियों का,
स्वीकारो तुम नमन मेरे !!
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
कुछ ऐसा करूँ आंदोलन कि हर सोये हिन्दू का अभिमान जगा दूँमाँ भारती करना ऐसी कुछ क्रपा कि अपने हर एक हिन्दू भाई को हिन्दुस्तानी बना दूँ।और अपने लहू की हर एक बूँद को हिन्दुत्व के इतिहास की स्याही बना दूँखुद मिट जाऊ हिन्दुत्व की राह पे पर इतना साथ देना इस हिन्दू शेर का कि अपने धर्म के हर एक दुश्मन को हिन्दुत्व की तलवार की भेट चढ़ा दूँ...🚩जय श्री राम 🚩
[1/26, 11:37 AM] ‪+91 84097 40877‬: 💝
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"शरफ़्ररोशी"की"तमन्ना"अब"हमारे"दिल"💝"में"है" "देखना"है"जोर"कितना"बाजुए"कातिल"में" है"
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"ऐ"वतन"मेहबूब"मेरे"तुझपे"दिल" "कुर्बान "है"
"हर"करम"अपना"करेगे"ऐ"वतन"तेरे" "लिए"
※══❖═▩══※══※▩═❖══※
"दिल💝"दिया"है'जान"भी"देगे"ऐ"वतन" "तेरे"लिए"
"हम"जिएंगे"और'मारेगे"ऐ"वतन"तेरे" "लिए"●❗
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 हक मिलता नही लिया जाता है...🇮🇳
आज़ादी मिलती नही छिनी जाती है...🇮🇳
नमन उन देश प्रेमियों को जो देश की आज़ादी की जंग के लिये जाने जाते हैं... 🇮🇳

आज़ादी की कभी शाम ना होने देंगे...🇮🇳
 शहीदों की कुर्बानी बदनामी ना होने देंगे...🇮🇳
बच्ची है जो एक बूंद भी लहू की तब तक भारत माँ का आँचल नीलाम ना होने देंगे !

जय हिंद 🇮🇳
[1/26, 11:37 AM] ‪+91 84097 40877‬: अब तक जिसका खून न खौला,वो खून नहीं वो पानी है जो देश के काम ना आये ,वो बेकार जवानी है...🙏🏻

बोलो भारत माता की जय 👏🏻

जय हिंद 🇮🇳

Wednesday, January 6, 2016

गुरुवार का विशेष उपाय guruvaar ke din upay

गुरुवार का विशेष उपाय: मिलेगा धन,
हो जाएगी शादी
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गुरुवार सप्ताह का सबसे महत्त्वपूर्ण दिन है क्यूंकि . ये दिन
गुरुओं को समर्पित है इसीलिए हम देखते हैं
की इस दिन सिद्धो की समाधि में,
फकीरों की समाधि आधी में
लोगो की भीड़
लगी रहती है.
गुरुवार के दिन हम उन लोगो को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने
अपने जीवन के परमोच्च लक्ष्य को प्राप्त
किया हो. ये दिन हैं किसी विशेष कार्य को प्रारभ
करने का, विद्या आरंभ करने का आदि.
गुरुवार के दिन सावधानी:
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इस दिन दक्षिण
दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए
अन्यथा हानि होने की संभावनाए
होती है. और अगर करना पड़े तो विशेष
सावधानी रखना चाहिए.
चलिए देखते हैं की गुरुवार के दिन कौन से टोटके किये
जा सकते है:
1. अगर पुखराज या सुनेला धारण करना हो तो गुरुवार से
अच्छा कोई दिन नहीं होता है.
2. इस दिन स्वर्ण खरीदने का भी दिन
होता है और इस दिन का ख़रीदा हुआ सोना शुभ
फल देता है.
3. अगर विवाह में विलम्ब हो रहा हो गुरु के कारण तो इस दिन
पिली चीजों का दान करने से विवाह
बाधा दूर होती है.
4. पढाई में समस्या आ रही हो तो इस दिन से गुरु
का मंत्र जप करना फायदेमंद रहता है.
5. गणेशजी के 108 नामो के साथ अगर
गणेशजी को 108 लड्डू अर्पित किया जाए तो कई
व्यक्तिगत और कामकाजी समस्याओ का निवारण
होता है.
6. अगर काम काज में सफलता नहीं मिल
रही है तो गुरुवार को घर से बहार निकलते हुए 1
चुटकी नमक और हल्दी दरवाजे के
दोनों तरफ चेदकते हुए बहार निकले सफलता मिलने के अवसर
बाद जायेंगे.
7. घर में सुख और सम्पन्नता लाने के लिए गुरुवार से दरवाजे के
दोनों और स्वस्तिक बनाना चाहिए और गुड और चने का भोग वह
लगाना चाहिए.
वैदिक ज्योतिष में ऐसा कहा जाता है
की कुंडली में अगर सब ग्रह कमजोर
हो परन्तु सिर्फ गुरु अगर बलवान होतो व्यक्ति एक
सुखी जीवन जीता है.
अतः गुरु के शुभ फल को जरुर प्राप्त करना चाहिए.
गुरु व्यक्ति को मजबूत और गंभीर बनाता है,
शौक़ीन भी बनता है. इसका बल
ज्यादा बड जाए
तो व्यक्ति अभीमानी हो जाता है जिससे
की बहुत
परेशानी हो जाती है.
अतः इसके बल को नियंत्रित करना चाहिए जिससे
की एक सफल जीवन जिया जा सके.
गुरूवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन,
विद्या, पुत्र तथा मनोवांछित फल
की प्राप्ति होती है। परिवार में सुख
तथा शांति का समावेश होता है। जिन जातकों के विवाह में बाधाएं
उत्पन्न हो रही हों एवं धन
की कमी हो उन्हें गुरूवार का व्रत
करना चाहिए। गुरुवार को बृहस्पति भगवान का व्रत रखने से घर
में हमेशा सुख-संपत्ति की बहार
रहती है।
इस दिन ब्रह्स्पतेश्वर महादेव
जी की पूजा होती है। दिन
में एक समय ही भोजन करें। पीले
वस्त्र धारण करें, पीले पुष्पों को धारण करें। भोजन
भी चने की दाल का होना चाहिए। नमक
नहीं खाना चाहिए। पीले रंग का फूल,
चने की दाल, पीले कपड़े
तथा पीले चन्दन से पूजा करनी चाहिए।
पूजन के बाद कथा सुननी चाहिए। इस व्रत से
ब्रहस्पति जी खुश होते हैं तथा धन और
विद्या का लाभ होता है। यह व्रत महिलाएं आवश्य करें। इस
व्रत मे केले का पूजन होता है।
धन प्राप्ति के लिए
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बृहस्पतिवार को सवा पांच किलो आटा एवं सवा किलो गुड़ लेकर
दोनों को इकट्ठा कर आटा गूंध लें और रोटियां बना लें और सायंकाल
के समय गाय को खिलाएं। तीन गुरुवार तक ऐसा करने
से दरिद्रता दूर होती है और धन
की प्राप्ति होती है।
विवाह में बांधा का उपाय
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विवाह में बाधा पड़ रही हो तो शुक्ल पक्ष के
प्रथम गुरुवार वाले दिन शाम को केले के पेड़ पर पांच तरह
की मिठाई,
दो हरी इलायची एवं शुद्ध
घी के दीपक के साथ जल अर्पित करें।
ऐसा तीन गुरुवार तक करने से शीघ्र लाभ
होगा।

कुंडली में राहू अच्छा नहीं है तो किसी से कोई चीज़ मुफ्त में rahu se problem

यदि आपकी कुंडली में राहू अच्छा नहीं है तो
किसी से कोई चीज़ मुफ्त में न लें क्योंकि हर मुफ्त
की चीज़ पर राहू का अधिकार होता है | लेने वाले
का राहू और खराब हो जाता है और देने वाले के सर
से राहू उतर जाता है |
राहू ग्रह का कुछ पता नहीं कि कब बदल जाए जैसे
कि आप कल कुछ काम करने वाले हैं लेकिन समय आने
पर आपका मन बदल जाए और आप कुछ और करने लगें
तो इस दुविधा में राहू का हाथ होता है |
किसी भी प्रकार की अप्रत्याशित घटना का
दावेदार राहू ही होता है |


दस महाविद्या के मंत्रो और इनके प्रभाव dasmaha vidha mantro ka prabhav

दस महाविद्या के मंत्रो और इनके प्रभाव ।
जय माँ ।
काली :-देवी का
लिका काम रुपणि है इनकी कम से कम 9,11,21 माला का जप काले हकीक की माला से किया जाना चाहिए। इनकी साधना को बीमारी नाश, दुष्ट आत्मा दुष्ट ग्रह से बचने के लिए, अकाल मृत्यु के भय से बचने के लिए, वाक सिद्धि के लिए, कवित्व के लिए किया जाता है। षटकर्म तो हर महाविद्या की देवी कर सकती है। षट कर्म मे मारण मोहन वशीकरण सम्मोहन उच्चाटन विदष्ण आदि आते है।परन्तु बुरे कार्य का अंजाम बुरा ही होता है। बुरे कार्य का परिणाम या तो समाज देता है या प्रकृति या प्रराब्ध या कानून देता ही है। इसलिए अपनी शक्ति से शुभ कार्य करने चाहिए।मंत्र “ॐ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहाः”
तारा :-तारा को तारिणी भी कहा गया है। जिस पर देवी तारा की कृपा हो जाये उसे भला और क्या चाहिए। फिर तो वो साधका एक दूध पीते बच्चे की तरह माँ की गोद मे रहता है। इनकी साधना से वाक सिद्धि तो अतिशीघ्र प्राप्त होती है साथ ही साथ तीब्र बुद्धि रचनात्मकता डाक्टर इनजियर बनाने के लिए, काव्य गुण के लिए, शत्रु को तो जड से खत्म कर देती है। इसके लिए आपको लाल मूगाँ या स्फाटिक या काला हकीक की माला का इस्तेमाल कर सकते है। हमारे हिसाब से कम से कम बारह माला का जप किया जाना चाहिए। कृपा करके इस देवी के मंत्रो मे स्त्रीं बीज का ही प्रयोग करे क्योकि त्रीं एक ऋषि द्वारा शापित है। इस शाप का निदान केवल त्रीं को स्त्रीं बनाने पर स्वयँ हो जाता है।मंत्र “ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट”
त्रिपुर सुंदरी :-इस दुनिया मे ऐसा कोई काम नही है जिसे त्रिपुर सुन्दरी ना कर सके। जिस काम मे देवता का चयन करने मे कोई दिक्कत हो तो देवी त्रिपुर सुन्दरी की उपासना कर सकते है। यह भोग और मोक्ष दोनो ही साथ-साथ प्रदान करती है। ऐसी इस दुनिया मे कोई साधना नही है जो भोग और मोक्ष एक साथ प्रदान करे। इस मंत्र के जाप के लिए रुद्राक्ष की माला का इस्तेमाल किया जा सकता है। कम से कम दस माला जप करें।मंत्र – “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमःभुवनेश्वरी :-यह साधना हर प्रकार के सुख मे वृद्धि करने वाली है। देवी भुवनेश्वरी की खास बात यह है कि यह बहुत ही कम समय मे प्रसन्न हो जाती है परंतु एक बार रुठ गई तो मनाना भी थोडा मुश्किल ही होता है। देवी माँ से कभी भी झुठे वचनो नही कहने चाहिए। इनके जप के लिए स्फटिक की माला का प्रयोग करें और कम से कम ग्यारह या इक्कीस माला का मंत्र जप करें।मन्त्र – “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमः”छिन्नमस्ता :-यह विद्या बहुत ही तीव्र है। यह देवी शत्रु का तुरंत नाश करने वाली, वाक देने वाली, रोजगार में सफलता, नौकरी पद्दोंन्ति के लिए, कोर्ट के कैस से मुक्ति दिलाने मे सक्षम है और सरकार को आपके पक्ष मे करने वाली, कुंडिली जागरण मे सहायक, पति-पत्नी को तुरंत वश मे करने वाली चमत्कारी देवी है। इसकी साधना सावधान होकर करनी चाहिए क्योकि तीव्र होने के कारण रिजल्ट जल्दी ही मिल जाता है। इसके लिए आप रुद्राक्ष या काले हकीक की माला से कम से कम ग्यारह माला या बीस माला मंत्र जप करना चाहिए
मंत्र- “श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा:”त्रिपुर भैरवी :-
यह देवी प्रेत आत्मा के लिए बहुत ही खतरनाक है, बुरे तंत्रिक प्रयोगो के लिए, सुन्दर पति या पत्नी की प्राप्ति के लिए, प्रेम विवाह, शीघ्र विवाह, प्रेम में सफलता के लिए श्री त्रिपुर भैरवी देवी की साधना करनी चाहिए। इनकी साधना तुरंत प्रभावी है। जिस किसी तांत्रिक समस्या का समाधान नही हो रहा है, यह देवी उस समस्या का यह जड से विनाश करती है। इस देवी का मंत्र जप आप मूंगे की माला से कर सकते है और कम से कम पंद्रह माला मंत्र जप करनी चाहिए।
मंत्र – “ॐ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा:”
धूमावती :-हर प्रकार की द्ररिद्रता के नाश के लिए, तंत्र – मंत्र के लिए, जादू – टोना, बुरी नजर और भूत – प्रेत आदि समस्त भयों से मुक्ति के लिए, सभी रोगो के लिए, अभय प्रप्ति के लिए, साधना मे रक्षा के लिए, जीवन मे आने वाले हर प्रकार के दुखो को प्रदान करने वाली देवी है इसे अलक्ष्मी भी कहा जाता है तो इसके निवारण के लिए धूमावती देवी की साधना करनी चाहिए मोती की माला या काले हकीक की माल का प्रयोग मंत्र जप में करें और कम से कम नौ माला मंत्र जप करेंमंत्र- “ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:”
बगलामुखी :-वाक शक्ति से तुरंत परिपूर्ण करने वाली, अपने साधक को खाने कि लिए दोडने वाली, शत्रुनाश, कोर्ट कचहरी में विजय, हर प्रकार की प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता के लिए, सरकारी कृपा के लिए माँ बगलामुखी की साधना करें। इस विद्या का उपयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब कोई रास्ता ना बचा हो। हल्दी की माला से कम से कम 8, 16, 21 माला का जप करें। इस विद्या को ब्रह्मास्त्र भी कहा जाता है और यह भगवान विष्णु की संहारक शक्ति है।मन्त्र – “ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नम:”मातंगी :-यह देवी घर ग्रहस्थी मे आने वाले सभी विघ्नो को हरने वाली है, जिसकी शादी ना हो रही, संतान प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति के लिए या किसी भी प्रकार का ग्रहस्थ जीवन की समस्या के दुख हरने के लिए देवी मातंगी की साधना उत्तम है। इनकी कृपा से स्त्रीयो का सहयोग सहज ही मिलने लगता है। चाहे वो स्त्री किसी भी वर्ग की स्त्री क्यो ना हो। इसके लिए आप स्फटिक की माला से मंत्र जप करें और बारह माला कम से कम मंत्र जप करना चहिए।मंत्र – “ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:”कमला :-यह देवी धूमावती की ठीक विपरीत है। जब देवी कमला की कृपा नही होगी तब देवी धूमावती तो जमी रहेगी। इसलिए दीपावली पर भी इनका पुजन किया जाता है। इस संसार मे जितनी भी सुन्दर लडकीयाँ है, सुन्दर वस्तु, पुष्प आदि है यह सब इनका ही तो सौन्दर्य है। हर प्रकार की साधना मे रिद्धि सिद्धि दिलाने वाली, अखंड धन धान्य प्राप्ति, ऋण का नाश और महालक्ष्मी जी की कृपा के लिए कमल पर विराजमान देवी की साधना करें। इन्ही साधना करके इन्द्र ने स्वर्ग को आज तक समभाले रखा है। इनकी उपासना के लिए कमलगट्टे की माला से कम से कम दस या इक्कीस माला मंत्र जप करना चाहिए।
मंत्र – “ॐ हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:”कृपया बिना यंत्र, माला और ज्ञान आदि के बिना किसी भी देवी की साधना ' उपासना ना करे
जय महाकाल। फिर आप की इच्छा ।

निराशा एक प्रकार की-नास्तिकता है। nirasha ek prakar ki nastikta hai

निराशा एक प्रकार की-नास्तिकता है।

जो व्यक्ति संध्या के डूबते हुए सूर्य को देखकर दुखी होता है और प्रातःकाल के सुन्दरी अरुणोदय पर विश्वास नहीं करता, वह नास्तिक है। जब रात के बाद दिन आता है, मरण के बाद जीवन होता है, पतझड़ के बाद बसन्त आता है, ग्रीष्म के बाद वर्षा आती है। सुख के बाद दुख आता है, तो क्या कारण है कि हम अपनी कठिनाईयों को स्थायी समझें?

जो माता के क्रोध को स्थायी समझता है और उसके प्रेम पर विश्वास नहीं करता, वह नास्तिक है और उसे अपनी नास्तिकता का दण्ड रोग, शक्ति विपत्ति, जलन, असफलता और अल्पायु के रूप में भोगना पड़ता है।

लोग समझते हैं कि कष्टों के कारण निराशा आती है, परन्तु यह भ्रम है। वास्तव में निराशा के कारण कष्ट आते हैं। जब विश्व में चारों ओर प्रसन्नता, आनन्द, प्रफुल्लता, आनन्द और उत्साह का समुद्र लहलहा रहा है, तो मनुष्य क्यों अपना सिर धुने और पछताये?

मधु-मक्खी के छत्ते में से लोग शहद निकाल ले जाते हैं, फिर भी वह निराश नहीं होती। दूसरे ही क्षण वह पुनः शहद इकट्ठा करने का कार्य आरम्भ कर देती है। क्या हम इन मक्खियों से कुछ नहीं सीख सकते? धन चला गया, प्रियजन मर गये, रोगी हो गये, भारी काम सामने आ पड़ा, अभाव पड़ गये, तो हम रोये क्यों? कठिनाइयों का उपचार करने में क्यों न लग जावें।

Tuesday, January 5, 2016

Guru seva hi sabse bad kar साधनाओं में उच्चतम साधना गुरु सेवा है

सभी साधनाओं में उच्चतम साधना गुरु सेवा है अतः हम साधना न भी कर पाएं मंत्र जप न कर पाएं तो भी गुरु सेवा में सलग्न रहना चाहिये जय गुरुदेव
 मेरे दिल का वो कोना आज भी खाली सा नजर आया जिसमे आने का आपने कभी किया था मुझसे वादा मेरे ही कुछ दोष पाप है वरना आपका तो था पुरा पुरा ईरादा
हुई अगर खता तो सजा के लिये भी तैयार है मगर फिर भी दिल मे आपके लिये ही प्यार है
 हमे अपना लो गुरूवर यही बीनती बारम बार

गुरुदेव हमें कभी छोड नहीं सकते।क्योंकि उन्होंने हमें वचन दिया है।एस जन्म मे आपका हाथ उन्होंने पकड़ा है।
जीवन राह मे कही भी अगर आपकी उनसे मुलाकात हो जाये उनसे कहना आपकी राह मे ओर भी बठे है पलके बिछायै ॐ निखलम ॐ😂😂😂😂😂😂😂
 ॐ निखलम ॐ ।। ॐगोपेश्वर ॐ ।।ॐ शर्रवेशर ॐ ।।

Guru ki mahima गुरू की महिमा

★★★ गुरू की महिमा★★★


1.गुरू एक तेज है, जिनके आते ही सारे सन्शय के अंधकार खतम हो जाते हैं !
2. गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते हैं !
3. गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही पांचो शरीर एक हो जाते हैं !
4. गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे मिलती हे तो पार हो जाते हैं !
5. गुरू वो नदी है, जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हैं !
6. गुरू वो सत चित आनंद हैं, जो हमे हमारी पहचान देता हैं !
7. गुरू वो बासुरी हैं, जिसके बजते ही अंग अंग थीरक ने लगता हैं !
8. गुरू वो अमृत हे जिसे पीके कोई कभी प्यासा नही!
9. गुरू वो मृदन्ग हैं, जिसे बजाते ही सो हम नाद की झलक मिलती हैं !
10. गुरू वो कृपा हि हैं जो सिर्फ कुछ सद शिष्यो को विशेष रूप मे मिलती हे और कुछ पाकर भी समझ नही पाते !
11. गुरू वो खजाना है, जो अनमोल है !
12. गुरू वो समाधि है, जो चिरकाल तक रहती है !
13.गुरू वो प्रसाद है, जिसके भाग्य मे हो उसे कभी कुछ मांगने की ज़रूरत नही !

Haarsingar ke pato se ilaz

पारिजात पेड़ के पांच पत्ते तोड़ के पत्थर में पिस के चटनी बनाइये और एक ग्लास पानी में इतना गरम करो के पानी आधा हो जाये फिर इसको ठंडा करके पियो तो बीस बीस साल पुराना गठिया का दर्द इससे ठीक हो जाता है-

और ये ही पत्ते को पीस के गरम पानी में डाल के पियो तो बुखार ठीक कर देता है और जो बुखार किसी दावा से ठीक नही होता वो इससे ठीक होता है; जैसे चिकनगुनिया का बुखार, डेंगू फीवर, Encephalitis , ब्रेन मलेरिया, ये सभी ठीक होते है-

पारिजात बावासीर रोग के निदान के लिए रामबाण औषधी है। इसके एक बीज का सेवन प्रतिदिन किया जाये तो बवासीर रोग ठीक हो जाता है। पारिजात के बीज का लेप बनाकर गुदा पर लगाने से बवासीर के रोगी को राहत मिलती है-

इसके फूल हृदय के लिए भी उत्तम औषधी माने जाते हैं। वर्ष में एक माह पारिजात पर फूल आने पर यदि इन फूलों का या फिर फूलों के रस का सेवन किया जाए तो हृदय रोग से बचा जा सकता है-

इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सूखी खाँसी ठीक हो जाती है-

इसी तरह पारिजात की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधि रोग ठीक हो जाते हैं। पारिजात की पत्तियों से बने हर्बल तेल का भी त्वचा रोगों में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है-

पारिजात की कोंपल को यदि पाँच काली मिर्च के साथ महिलाएँ सेवन करें तो महिलाओं को स्त्री रोग में लाभ मिलता है। वहीं पारिजात के बीज जहाँ बालों के लिए शीरप का काम करते हैं तो इसकी पत्तियों का जूस क्रोनिक बुखार को ठीक कर देता है-

संवत्सर भूल गए apna bharat ka naya saal bhul gaye

🍂हवा लगी पश्चिम की सारे कुप्पा बनकर फूल गए
ईस्वी सन तो याद रहा अपना संवत्सर भूल गए


चारों तरफ नए साल का ऐसा मचा है हो-हल्ला
बेगानी शादी में नाचे ज्यों दीवाना अब्दुल्ला

धरती ठिठुर रही सर्दी से घना कुहासा छाया है
कैसा ये नववर्ष है जिससे सूरज भी शरमाया है

सूनी है पेड़ों की डालें, फूल नहीं हैं उपवन में
पर्वत ढके बर्फ से सारे, रंग कहां है जीवन में

बाट जोह रही सारी प्रकृति आतुरता से फागुन का
जैसे रस्ता देख रही हो सजनी अपने साजन का

अभी ना उल्लासित हो इतने आई अभी बहार नहीं
हम नववर्ष मनाएंगे, न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं

लिए बहारें आँचल में जब चैत्र प्रतिपदा आएगी
फूलों का श्रृंगार करके धरती दुल्हन बन जाएगी

मौसम बड़ा सुहाना होगा दिल सबके खिल जाएँगे
झूमेंगी फसलें खेतों में, हम गीत खुशी के गाएँगे

उठो खुद को पहचानो यूँ कबतक सोते रहोगे तुम
चिन्ह गुलामी के कंधों पर कबतक ढोते रहोगे तुम

अपनी समृद्ध परंपराओं का मिलकर मान बढ़ाएंगे भारतवर्ष के वासी अब अपना नववर्ष मनाएंगे

💐हमारी संस्कृति💐 🌷💐हमारी विरासत💐🌷

Sadgurudev ka prem ptra aap ke liye सदगुरुदेव का पत्र

 Hirendra Pratap Singh:
🙏🏻🌺सुप्रभातम्🌺🙏🏻
🙏🏻🌺जय गुरुदेव🌺🙏🏻
🙏🏻🌺जय माता दी🌺🙏🏻
सदगुरुदेव निखिल आप पर सदैव कृपा बनाये रखें......हार्दिक शुभकामनाओ के साथ नववर्ष में श्री पारमेष्ठि निखिलेश्वरानंद सदगुरुदेव के श्री चरणों में आप सबके अच्छे स्वास्थ्य, भौतिक आध्यात्मिक और आर्थिक जीवन में सफलता और शुभता की कामना करता हूँ सदगुरुदेव आप सबको चेतना प्रदान करें

सदगुरुदेव का पत्र


मेरे प्रिय...
सुबह तुम जैसे ही सो कर उठे, मैं तुम्हारे बिस्तर के पास ही खड़ा था। मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ बात
करोगे। तुम कल या पिछले हफ्ते हुई किसी बात या घटना के लिये मुझे धन्यवाद कहोगे। लेकिन तुम फटाफट चाय पी कर तैयार होने चले गए और मेरी तरफ देखा भी नहीं!!!

फिर मैंने सोचा कि तुम नहा के मुझे याद करोगे। पर तुम इस उधेड़बुन में लग गये कि तुम्हे आज कौन से कपड़े पहनने है!!!

फिर जब तुम जल्दी से नाश्ता कर रहे थे और अपने ऑफिस के कागज़ इक्कठे करने के लिये घर में इधर से उधर दौड़ रहे थे...तो भी मुझे लगा कि शायद अब तुम्हे मेरा ध्यान आयेगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

फिर जब तुमने आफिस जाने के लिए ट्रेन पकड़ी तो मैं समझा कि इस खाली समय का उपयोग तुम मुझसे बातचीत करने में करोगे पर तुमने थोड़ी देर पेपर पढ़ा और फिर खेलने लग गए अपने मोबाइल में और मैं खड़ा का खड़ा ही रह गया।

मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ हिस्सा मेरे साथ बिता कर तो देखो,तुम्हारे काम और भी अच्छी तरह से होने लगेंगे, लेकिन तुमनें मुझसे बात
ही नहीं की...

एक मौका ऐसा भी आया जब तुम
बिलकुल खाली थे और कुर्सी पर पूरे 15 मिनट यूं ही बैठे रहे,लेकिन तब भी तुम्हें मेरा ध्यान नहीं आया।

दोपहर के खाने के वक्त जब तुम इधर-
उधर देख रहे थे,तो भी मुझे लगा कि खाना खाने से पहले तुम एक पल के लिये मेरे बारे में सोचोंगे,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

दिन का अब भी काफी समय बचा था। मुझे लगा कि शायद इस बचे समय में हमारी बात हो जायेगी,लेकिन घर पहुँचने के बाद तुम रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गये। जब वे काम निबट गये तो तुमनें टीवी खोल लिया और घंटो टीवी देखते रहे। देर रात थककर तुम बिस्तर पर आ लेटे।
तुमनें अपनी पत्नी, बच्चों को शुभरात्रि कहा और चुपचाप चादर ओढ़कर सो गये।

मेरा बड़ा मन था कि मैं भी तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूं...

तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताऊँ...

तुम्हारी कुछ सुनूं...

तुम्हे कुछ सुनाऊँ।

कुछ मार्गदर्शन करूँ तुम्हारा ताकि तुम्हें समझ आए कि तुम किसलिए इस धरती पर आए हो और किन कामों में उलझ गए हो, लेकिन तुम्हें समय
ही नहीं मिला और मैं मन मार कर ही रह गया।

मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ।

हर रोज़ मैं इस बात का इंतज़ार करता हूँ कि तुम मेरा ध्यान करोगे और
अपनी छोटी छोटी खुशियों के लिए मेरा धन्यवाद करोगे।

पर तुम तब ही आते हो जब तुम्हें कुछ चाहिए होता है। तुम जल्दी में आते हो और अपनी माँगें मेरे आगे रख के चले जाते हो।और मजे की बात तो ये है
कि इस प्रक्रिया में तुम मेरी तरफ देखते
भी नहीं। ध्यान तुम्हारा उस समय भी लोगों की तरफ ही लगा रहता है,और मैं इंतज़ार करता ही रह जाता हूँ।

खैर कोई बात नहीं...हो सकता है कल तुम्हें मेरी याद आ जाये!!!

ऐसा मुझे विश्वास है और मुझे तुम
में आस्था है। आखिरकार मेरा दूसरा नाम...आस्था और विश्वास ही तो है।
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तुम्हारा सदगुरुदेव

Sarso ke tel ki upyogita aryuved ‎आयुर्वेदाणुसार‬ सरसों के तेल की उपयोगिता

#‎आयुर्वेदाणुसार‬ सरसों के तेल की उपयोगिता इस प्रकार है :
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@ हाथों में खुशकी और खुदरापन होने की सि्थति में सरसों के तेल से हल्की मालिश करें , त्वचा मुलायम हो जाएगी ।
@शीत मौस्म में धूप में बैठकर सभी उम्र के लोगों को तेल की मालिश करनी चाहिए | शिशुओ को धूप में लिटाकर इस तेल से मालिश करने से उनकी थकान दूर होती है , नींद अच्छी आती है | तथा शरीर के दर्द से राहत मिलती है |
@ बेसन में सरसों का तेल मिलाकर उबटन की तरह त्वचा पर मलने से त्वचा गोरी हो जाती है तथा उसमें कमल के समान ताजगी आ जाती है
@ सरसों के तेल में मधु ( शहद ) मिलाकर दांतों एंव मसूडों पर हल्के हल्के मलते रहने से मसूड़ों के सभी रोग भाग जाते है , तथा दांत भी मजबूत होते है
@ जुकाम होने पर या नाक के बंद होने पर दो बूंद सरसों तेल नाक के छिद्रों में डाल कर सांस जोर सें खीचने पर बंद नाक खुल जाती है और जुकाम से भी राहत मिलती है
@ इन्द्री में ढीलापन हो या टेढापन हो सरसों के तेल की लगातार मसाज से ठीक हो जाता है ( साथ में दवा भी लें लें तो अंदर की कमजोरी दूर करके इस रोग से छुटकारा हो जाता है )
@ औरतों के छातीया में ढीलापन आ गया हो तो सरसों तेल में लहसुन की कली जलाकर बनाए तेल से मसाज करें , सुबह खाली पेट लहसुन की चार पाँच कलीयाँ भी खांए , बहुत लाभ होगा | इसके इलावा कोई और रोग हो तो उसके लिए भी किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से मिलें |
@ कान में सरसों तेल गर्म करके डालने से कान दर्द ठीक होता है , अगर कोई कीडा वगैरा घुस गया हो तो वो भी बाहर निकल जाता है , अगर सरसों तेल में लहसुन की कली जलाकर ओर नीम का तेल मिलाकर डाला जाय तो बहरापन में बहुत उपयोगी सिद्ध होगा |
@ सरसों का तेल वातनाशक और गर्म होता है | इसी कारण शीतकाल में वातजन्य दर्द को दूर करने के लिए इस तेल की मालिश की जानी चाहिए | जोडों का दर्द , मांसपेशियों का दर्द , गठिया , छाती का दर्द, ब्रोंकाइटिस आदि की पीड़ा भी सरसों के तेल से दूर हो जाती है |
@ सरसों के तेल में सेंधा नमक मिलाकर सुबह-शाम दांतों पर मलने से दांतों से खून आना , मसूड़ों की सूजन, दांतों के दर्द में आराम मिलता है ,साथ ही दांत चमकीेले ओर सुन्दर भी बनते है |
@ पैरों के तलवों एव अंगूठों में सरसों का तेल लगाते रहने से नेत्र ज्योति बढ़ती है | रात को हाथ पाँवों में तेल लगा कर सोने से मच्छर नही काटते , नींद अच्छी आती है | बालों में सरसों का तेल लगाते रहने से बाल मजबूत होते है , मोटे घने होते है | सिर दर्द भी नही होता |
@शीतकाल में पैरों की उंगलीयों में सूजन आ जाती है | ऐसी अवस्था में सरसों का तेल में थोड़ा सा पिसा हुआ सेंधा नमक मिलाकर गर्म करलें | ठंडा होने पर उंगलियों पर लेप लगा कर रात में सों जाएं | कुछ ही दिनों मे आराम दिखाई देगा |
@ नहाने से बाद नित्य नाभि में दो बूंद सरसों का तेल लगाने से पेट से संबंधित रोग कम ही होते है | पाचन क्रिया भी अच्छी रहती है , होठ नही फटते |

SIDDHASHRAM STAVAN सिद्धाश्रम स्तवन BY SADGURUDEV DR NARAYAN DUTT SHRIMALI JI MAHARAJ:

SIDDHASHRAM STAVAN सिद्धाश्रम स्तवन BY SADGURUDEV DR NARAYAN DUTT SHRIMALI JI MAHARAJ: http://www.youtube.com/playlist?list=PLo6ZpeYNN6rJs7BcMwYbPnYyZrUK-urET

Pathiv Shiv ling poja vidhiपार्थिव शिव लिंग पूजा विधि

पार्थिव शिव लिंग पूजा विधि
:-

पार्थिव शिवलिंग पूजन से सभी कामनाओं की
पूर्ति होती है।इस पूजन को कोई भी स्वयं कर
सकता है।ग्रह अनिष्ट प्रभाव हो या अन्य कामना
की पूर्ति सभी कुछ इस पूजन से प्राप्त हो जाता
है।सर्व प्रथम किसी पवित्र स्थान पर पुर्वाभिमुख
या उतराभिमुख ऊनी आसन पर बैठकर गणेश स्मरण आचमन,प्राणायाम पवित्रिकरण करके संकल्प करें।
दायें हाथ में जल,अक्षत,सुपारी,पान का पता पर
एक द्रव्य के साथ निम्न संकल्प करें।

-:संकल्प:-

ll ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्री मद् भगवतो महा
पुरूषस्य विष्णोराज्ञया पर्वतमानस्य अद्य
ब्रह्मणोऽहनि द्वितिये परार्धे श्री श्वेतवाराह
कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे
कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे
आर्यावर्तेक देशान्तर्गते बौद्धावतारे अमुक नामनि
संवत सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुक तिथौ
अमुकवासरे अमुक नक्षत्रे शेषेशु ग्रहेषु यथा यथा
राशि स्थानेषु स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायां अमुक गोत्रोत्पन्नोऽमुक नामाहं मम कायिक वाचिक,मानसिक ज्ञाताज्ञात सकल दोष परिहार्थं श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल
प्राप्तयर्थं श्री मन्महा महामृत्युञ्जय शिव प्रीत्यर्थं सकल कामना सिद्धयर्थं शिव पार्थिवेश्वर शिवलिगं पूजनमह एवं शिव-शक्ती मंत्र जाप करिष्ये।

तत्पश्चात त्रिपुण्ड और रूद्राक्ष माला धारण करे
और शुद्ध की हुई मिट्टी इस मंत्र से अभिमंत्रित
करे…

“ॐ ह्रीं मृतिकायै नमः।”

फिर “वं”मंत्र का उच्चारण करते हुए मिट्टी में जल
डालकर “ॐ वामदेवाय नमः" इस मंत्र से मिलाए।

१.ॐ हराय नमः,
२.ॐ मृडाय नमः,
३.ॐ महेश्वराय नमः

बोलते हुए शिवलिंग,माता पार्वती,गणेश,कार्तिक,एकादश रूद्र का निर्माण
करे।अब पीतल,तांबा या चांदी की थाली या बेल
पत्र,केला पता पर यह मंत्र बोल स्थापित करे,

ॐ शूलपाणये नमः।

अब “ॐ”से तीन बार प्राणायाम कर न्यास करे।

-:संक्षिप्त न्यास विधि:-

विनियोगः-

ॐ अस्य श्री शिव पञ्चाक्षर मंत्रस्य वामदेव ऋषि
अनुष्टुप छन्दःश्री सदाशिवो देवता ॐ बीजं
नमःशक्तिःशिवाय कीलकम मम साम्ब सदाशिव
प्रीत्यर्थें न्यासे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यासः-
ॐ वामदेव ऋषये नमः शिरसि।
ॐ अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे।
ॐ साम्बसदाशिव देवतायै नमः हृदये।
ॐ ॐ बीजाय नमः गुह्ये।
ॐ नमः शक्तये नमः पादयोः।
ॐ शिवाय कीलकाय नमः नाभौ।
ॐ विनियोगाय नमः सर्वांगे।

शिव पंचमुख न्यासः

ॐ नं तत्पुरूषाय नमः हृदये।
ॐ मम् अघोराय नमःपादयोः।
ॐ शिं सद्योजाताय नमः गुह्ये।
ॐ वां वामदेवाय नमः मस्तके।
ॐ यम् ईशानाय नमःमुखे।

कर न्यासः-

ॐ ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ नं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ मं मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ शिं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ वां कनिष्टिकाभ्यां नमः।
ॐ यं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।

हृदयादिन्यासः-

ॐ ॐ हृदयाय नमः।
ॐ नं शिरसे स्वाहा।
ॐ मं शिखायै वषट्।
ॐ शिं कवचाय हुम।
ॐ वाँ नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ यं अस्त्राय फट्।

“ध्यानम्”

ध्यायेनित्यम महेशं रजतगिरि निभं चारू
चन्द्रावतंसं,रत्ना कल्पोज्जवलागं परशुमृग
बराभीति हस्तं प्रसन्नम।
पदमासीनं समन्तात् स्तुतम मरगणै वर्याघ्र कृतिं
वसानं,विश्वाधं विश्ववन्धं निखिल भय हरं
पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।

-:प्राण प्रतिष्ठा विधिः-
==================
विनियोगः-

ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा
विष्णु महेश्वरा ऋषयःऋञ्यजुःसामानिच्छन्दांसि
प्राणख्या देवता आं बीजम् ह्रीं शक्तिः कौं
कीलकं देव प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः।

ऋष्यादिन्यासः-

ॐ ब्रह्मा विष्णु रूद्र ऋषिभ्यो नमः शिरसि।
ॐ ऋग्यजुः सामच्छन्दोभ्यो नमःमुखे।
ॐ प्राणाख्य देवतायै नमःहृदये।
ॐआं बीजाय नमःगुह्ये।
ॐह्रीं शक्तये नमः पादयोः।
ॐ क्रौं कीलकाय नमः नाभौ।
ॐ विनियोगाय नमःसर्वांगे।

अब न्यास के बाद एक पुष्प या बेलपत्र से शिवलिंग
का स्पर्श करते हुए प्राणप्रतिष्ठा मंत्र बोलें।

प्राणप्रतिष्ठा मंत्रः-

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं शिवस्य प्राणा
इह प्राणाःl
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं शिवस्य
जीव इह स्थितः।
ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं
शिवस्य सर्वेन्द्रियाणि,वाङ् मनस्त्वक् चक्षुः
श्रोत्र जिह्वा घ्राण पाणिपाद पायूपस्थानि
इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।

अब नीचे के मंत्र से आवाहन करें।

आवाहन मंत्रः-

ॐ भूः पुरूषं साम्ब सदाशिवमावाहयामि,ॐ भुवः
पुरूषं साम्बसदाशिवमावाहयामि,ॐ स्वः पुरूषं
साम्बसदाशिवमावाहयामि।

अब शिद्ध जल,मधु,गो घृत,शक्कर,हल्दीचूर्ण,रोलीचंदन,जायफल,गुला­
बजल,दही,एक,एक कर स्नान कराये”,नमःशिवाय”मंत्र
का जप करता रहे,फिर चंदन, भस्म,अभ्रक,पुष्प,भां­
ग,धतुर,बेलपत्र से श्रृंगार कर नैवेद्य अर्पण करें तथा अब शिव-शक्ती मंत्र का जप करें।

मंत्र:-

ll ओम ह्रीं शिव-शक्तीयै प्रसिद प्रसिद ह्रीं नम: ll
om hreem shiv-shaktiyai prasid prasid hreem namah

अंत में कपूर का आरती दिखाकर क्षमा प्रार्थना
कारे और मनोकामना निवेदन कर अक्षत लेकर निम्न मंत्र से विसर्जन करे,फिर पार्थिव को नदी,कुआँ,या तालाब में प्रवाहित करें।

विसर्जन मंत्रः-

गच्छ गच्छ गुहम गच्छ स्वस्थान महेश्वर पूजा अर्चना काले पुनरगमनाय च।

Monday, July 20, 2015

Apsara Mantra Tantra Sadhana

Apsara Mantra Tantra Sadhana

Thursday, June 18, 2015

sadhak aur grate sadhak me antar1


.साधक व श्रेष्ठ साधक................
1.साधक :
जो व्यक्ति साधनारत हो एक चित होकर अपने को गुरु चरणों में समर्पित कर आत्मा कल्याण के लिए यात्रा कर रहा हो!
2.श्रेष्ठ साधक :
श्रेष्ठ साधक वह होता है जो अपने चित पर सदगुरु का ध्यान जमा लेता है निरंतर अपने गुरु का चिन्तन करते है और सघन गुरु मंत्र का जप किया करते है वो श्रेष्ठ साधक गुरु कृपा व अपनी आराधाना के बल से पूर्ण विकाश की और अगरसर होते है उस श्रेष्ठ साधक का सम्पुर्ण मोह नष्ट हो जाता है स्वारथ रहित निष्काम भाव से अपना जीवन निर्वाह करता है! पूर्ण वैराग्य को प्राप्त साधक सम्पुर्ण इंद्रियो ,वासनाओ पर विजय पा लेता है. वे योग युक्त साधक गुरु कृपा प्राप्त योग बल से लोक कल्याणरत गुरु कार्य करते है वो उतम साधक अपना कल्याण करते हुए अन्य साधको को साधना की यात्रा में योग्य सहयोग करते है!स्वार्थ रहित कृतव्य कर्म पालन जीवन यापन कर योग युक्ति से सम्पुर्ण लोको को जीतकर षठ: चक्रों को भेदन कर गुरु कृपा से महा मिलन को प्राप्त हो जाते है!


गुरु सेवा का ये अर्थ नहीं की उन के पास रह कर करे वो तो भाग्य साली होते ही है पर आप आपने घर से ही ये सेवा कर सकते है| सद्गुरु के ज्ञान का प्रसार करना पत्रिका का प्रसार करना | आपने यहाँ गुरु पूजन और हवन करवाना | शिविर मैं भाग लेना , गुरु देव से हर संभव समय समय पर मिलते रहे, मार्ग दर्सन उन से पते रहे आगे जो आगया गुरु दे उसे हर संभव से उसे निभाए और आपना कार्य के साथ गुरु सेवा जो करता है निचय ही वो गुरु किरपा का भागीदार होता है , समाज को नाइ दिशा देना यही आच्छा गुरुदेव सेवा है|

Jeevan yantra part1 पूज्य गुरुदेव नारायण दत्त श्रीमाली जी

।।ॐ।।
जीवन यात्रा ~भाग ~1
पूज्य गुरुदेव नारायण दत्त श्रीमाली जी



समझ में नही आ रहा कहा से प्रारम्भ करूँ उनका
जीवन आख्यान , जगमग करते ज्योति पुंज की किरणे ही जिस प्रकार उनके बारे में सब कुछ कह देती है उसी प्रकार पूज्य प्रभु के शब्द उनका ज्ञान ही उनके बारे में सब कुछ कह देती है ।जिनके पास बैटकर एक असीम शांति का अनुभव होता है जिनके स्पर्श से रोग शोक शरीर से तो क्या मन से भी दूर हो जाते है ।ऐसे है हमारे पूज्य गुरुदेव -निखिलेश्वरानन्द जी जिन्हें संसार डॉ., नारायण दत्त श्रीमाली के नाम से जानता है और इस नाम के पीछे भी उनका ही एक बड़ा रहस्य छिपा है ।

ॐ नमो नारायणाय

जन्म हुआ तो माँ ने नाम दिया "नारायण" यह प्रेरणा थी , की हे देवी ! तेरे घर चक्रवर्ती सम्राटो से भी अधिक तेज वाला पुत्र उत्पन्न होगा । माँ ने सोचा कि मेरा पुत्र बड़ा होकर धनी प्रभावशाली व्यक्ति होगा परिवार सुख वैभव से। रहेगा उसने ऐसा थोड़े ही सोचा था कि यह पुत्र तो बडा होकर साधू सन्यासी बन जायेगा और राजाओ का भी राजा होगा ।
यह अवतार ही था , तब न तो माँ ने कुछ सोचा न ही परिवार के अन्य सदस्यों ने ।
बालक नारायण जन्म से ही अन्य बालको से
बिलकुल अलग था चार साल की उम्र में मन्त्रो का , गीता का सन्ध्या का रुद्राभिषेक का इस प्रकार उच्चारण करता था मानों कोई
सिद्ध पण्डित पाठ कर रहा हो यह ज्ञान उन्हें किसी से प्राप्त करने की आवश्यकता थोड़े ही थी यह तो उनके जन्म के साथ ही जुड़ा था उनका तो जन्म ही संसार में एक विराट कार्य के लिए हुआ था , और उन्हें अपने समय में कार्य सम्पन्न करना ही था ।

घर वाले चाहते की बालक नारायण बड़ा होकर अपने पिता की तरह ज्योतिष पूजा कर्मकांड का अभ्यास कर परिवार का नाम विख्यात करे , उनके लिए अलग से अध्यापक लगाने की आवश्यकता ही कहा थी , घर में ही तो नित्य प्रति वेद मन्त्रो की ध्वनि गूंजती थी , नित्य यज्ञ होते थे सारा कुछ वैदिक वातावरण ही था , दूर दूर से बालक इनके पिता से शिक्षा लेने आते थे , ऐसे वातावरण पूज्य गुरुदेव के व्यक्तित्व का विकास हुआ , लेकिन उन्हें तो अलग मार्ग बनाना था और यह सब कुछ सही क्रम से चल रहा था , वे अपने पिता से गीता के श्लोको के बारे में बहस करते , वेदों - उपनिषदों के एक एक श्लोक ऋचाओं के सम्बन्ध में उनका तर्क चलता , आखिर को उन्हें यह कहना पड़ा कि बेटा नारायण ! मेरे पास जितना ज्ञान है , वह मैंने तुझे बता दिया है , मेरे पास तेरे सब प्रश्नो के
उत्तर नही है , और यही से बालक नारायण के मन में ज्ञान की भूख जाग्रत हुई कि जो कुछ भी सीखना है , ज्ञान प्राप्त करना है , वह पूर्णता तक होना चाहिए , अधूरा ज्ञान मन का नाश करता है ।

क्रमशः

पूरी जानकारी गुरुदेव के सत्साहित्यो पर आधारित है !

param prusrth ke marg par kud pado

परम पुरुषार्थ के मार्ग में कूद पड़ो। भूतकाल के लिए पश्चाताप और भविष्य की चिन्ता छोड़कर निकल पड़ो। परमात्मा के प्रति अनन्य भाव रखो। फिर देखो कि इस घोर कलियुग में भी तुम्हारे लिए अन्न, वस्त्र और निवास की कैसी व्यवस्था होती है। जिस साधना में तुम्हारी रुचि होगी उस साधना में सद्गुरुदेव मधुरता भर देंगे। तुम्हारी भावना, तुम्हारी निष्ठा पक्की होना महत्त्वपूर्ण है। तुम्हारे परम इष्टदेव ,तुम्हारे सद्गुरुदेव तुम पर खुश हो जायें तो अनिष्ट तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। परम इष्टदेव है तुम्हारा आत्मा, तुम्हारा निजस्वरूप। सद्गुरुदेव में तुम्हारी अनन्य भक्ति हो जाये तो सद्गुरुदेव तुम्हें कुछ देंगे नहीं, वे तुम्हें अपने में मिला लेंगे। अब बताओ, आपको कुछ देना शेष रहा क्या? सद्गुरुदेव के सिवाय अन्य तमाम सुखों के इर्द गिर्द व्यर्थता के काँटे लगे ही रहते हैं। जरा सा सावधान होकर सोचोगे तो यह बात समझ में आ जायेगी और तुम सद्गुरुदेव के मार्ग पर चल पड़ोगे। लौकिक सरकार भी अपने सरकारी कर्मचारी की जिम्मेदारी सँभालते हैं। फिर ऊर्ध्वलोक की दिव्य सरकार, परम पालक परमात्मा सद्गुरुदेव अध्यात्म के पथिक का बोझ नहीं उठायेंगे क्या?

Wednesday, April 15, 2015

Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji part 2

श्री नारायण दत्त श्रीमालीजी - भाग २

श्री नारायण दत्त श्रीमालीजी - भाग २
परमपूज्य सदगुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी एक ऐसे उदात्ततम व्यक्तित्व हें, जिनके चिन्तन मात्र से ही दिव्यता का बोध होने लगता हैं। प्रलयकाल में समस्त जगत को अपने भीतर समाहित किए हुए महात्मा हिरण्यगर्भ की तरह शांत और सौम्य हैं। व्यवहारिक क्षेत्र में स्वच्छ धौत वस्त्र में सुसज्जित ये जितने सीधे-सादे से दिखाई देते हैं, इससे हट कर कुछ और भी हैं, जो सर्वसाधारण गम्य नहीं हैं। साधनाओं के उच्चतम सोपान पर स्थित विश्व के जाने-मने सम्मानित व्यक्तित्व हैं। इनका साधनात्मक क्षेत्र इतना विशालतम है, कि इसे सह्ब्दों के माध्यम से आंका नहीं जा सकता। किसी भी प्रदर्शन से दूर हिमालय की तरह अडिग, सागर की तरह गंभीर, पुष्पों की तरह सुकोमल और आकाश की तरह निर्मल हैं।

इनके संपर्क में आया हुआ व्यक्ति एक बार तो इन्हें देखकर अचम्भे में पड़ जाता हैं, कि ये तो महर्षि जह्रु की तरह अपने अन्तस में ज्ञान गंगा के असीम प्रवाह को समेटे हुए हैं।

पूज्य गुरुदेव ऋषिकालीन भारतीय ज्ञान परम्परा की अद्वितीय कड़ी हैं। जो ज्ञान मध्यकाल में अनेक-प्रतिघात के कारण अविच्छिन्न हो, निष्प्राण हो गया था, जिस दिव्य ज्ञान की छाया तले समस्त जाति ने सुख, शान्ति एवं आनंद का अनुभव किया था, जिसे ज्ञान से संबल पाकर सभी गौरवान्वित हुए थे। तथा समस्त विसंगतियों को परास्त करने में सक्षम हुए थे, जिस ज्ञान को हमारे ऋषियों ने अपनी तपः ऊर्जा से सबल एवं परिपुष्ट करके जन कल्याण के हितार्थ स्वर्णिम स्वप्न देखे थे... पूज्यपाद सदगुरुदेव श्रीमाली जी ने समाज की प्रत्येक विषमताओं से जूझते हुए, अपने को तिल-तिल जलाकर उसी ज्ञान परम्परा को पुनः जाग्रत किया है, समस्त मानव जाति को एक सूत्र में पिरोकर उन्होनें पुनः उस ज्ञान प्रवाह को साधनाओं के माध्यम से आप्लावित किया है। मानव कल्याण के लिए अपनी आंखों में अथाह करुणा लिए उन्होनें मंत्र और तंत्र के माध्यम से, ज्योतिष, कर्मकाण्डएवं यज्ञों के माध्यम से, शिविरों तथा साधनाओं के माध्यम से उन्होनें इस ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाया हैं।
ऐसे महामानव, के लिए कुछ कहने और लिखने से पूर्व बहुत कुछ सोचना पङता है। जीवन के प्रत्येक आयाम को स्पर्श करके सभी उद्वागों से रहित, जो राम की तरह मर्यादित, कृष्ण की तरह सतत चैतन्य, सप्तर्षियों की तरह सतत भावगम्य अनंत तपः ऊर्जा से संवलित ऐसे सदगुरू डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी का ही संन्यासी स्वरुप स्वामी योगिराज परमहंस निखिलेश्वरानंद जी हैं। निखिल स्तवन के एक-एक श्लोक उनके इसी सन्यासी स्वरुप का वर्णन हैं।

बाहरी शरीर से भले ही वे गृहस्थ दिखाई दें, बाहरी शरीर से वे सुख और दुःख का अनुभव करते हुए, हंसते हुए, उसास होते हुए, पारिवारिक जीवन व्यतीत करते हुए या शिष्यों के साथ जीवन का क्रियाकलाप संपन्न करते हों, परन्तु यह तो उनका बाहरी शरीर है। उनका आभ्यंतरिक शरीर तो अपने-आप में चैतन्य, सजग, सप्राण, पूर्ण योगेश्वर का है, जिनको एक-एक पल का ज्ञान है और उस दृष्टि से वे हजारों वर्षों की आयु प्राप्त योगीश्वर हैं, जिनका यदा-कदा ही जन्म पृथ्वी पर हुआ करता है।

एक ही जीवन में उन्होनें प्रत्येक युग को देखा है, त्रेता को, द्वापर को, और इससे भी पहले वैदिक काल को। उनको वैदिक ऋचाएं कंठस्थ हैं, त्रेता के प्रत्येक क्षण के वे साक्षी रहे हैं।

लगभग १५०० वर्षों का मैं साक्षीभूत शिष्य हूँ, और मैंने इन १५०० वर्षों में उन्हें चिर यौवन, चिर नूतन एक सन्यासी रूम में देखा है। बाहरी रूप में उन्होनें कई चोले बदले, कई स्थानों में जन्म लिया, पर यह मेरा विषय नहीं था, मेरा विषय तो यह था, कि मैं उनके आभ्यन्तरिक जीवन से साक्षीभूत रहूं, एक संन्यासी जीवन के संसर्ग में रहूं और वह संन्यासी जीवन अपन-आप उच्च, उदात्त, दिव्य और अद्वितीय रहा हैं।

उन्होनें जो साधनाएं संपन्न की हैं, वे अपने-आप में अद्वितीय हैं, हजारों-हजारों योगी भी उनके सामने नतमस्तक रहते हैं, क्योंकि वे योगी उनके आभ्यन्तरिक जीवन से परिचित हैं, वे समझते हैं कि यह व्यक्तित्व अपने-आप में अद्वितीय हैं, अनूठा हैं, इनके पास साधनात्मक ज्ञान का विशाल भण्डार हैं, इतना विशाल भण्डार, कि वे योगी कई सौ वर्षों तक उनके संपर्क और साहचर्य में रहकर भी वह ज्ञान पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर सके। प्रत्येक वेद, पुराण , स्मृति उन्हें स्मरण हैं, और जब वे बोलते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे स्वयं ब्रह्मा अपने मुख से वेद उच्चारित कर रहे हों, क्योंकि मैंने उनके ब्रह्म स्वरुप को भी देखा हैं, रुद्र स्वरुप को भी देखा है, और रौद्र स्वरुप का भी साक्षी रहां हू।

आज भी सिद्धाश्रम का प्रत्येक योगी इस बात को अनुभव करता है, की 'निखिलेश्वरानंद' जी नहीं है, तो सिद्धाश्रम भी नहीं है, क्योंकि निखिलेश्वरानंद जी उस सिद्धाश्रम के कण-कण में व्याप्त है। वे किसी को दुलारते हैं, किसी को झिड करते हैं, किसी को प्यार करते हैं, तो केवल इसलिए की वे कुछ सीख लें, केवल इसलिए की वे कुछ समझ ले, केवल इसलिए कि वह जीवन में पूर्णता प्राप्त कर ले, और योगीजन उनके पास बैठ कर के अत्यन्त शीतलता का अनुभव करते हैं। ऐसा लगता है, कि एक साथ ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास बैठे हों, एक साथ हिमालय के आगोश में बैठे हों, एक साथ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को समेटे हुए जो व्यक्तित्व हैं, उनके पास बैठे हों। वास्तव में 'योगीश्वर निखिलेश्वरानन्द' इस समस्त ब्रह्माण्ड की अद्वितीय विभूति हैं।

राम के समय राम को पहिचाना नहीं गया, उस समय का समाज राम की कद्र, उनका मूल्यांकन नहीं कर पाया, वे जंगल-जंगल भटकते रहे। कृष्ण के साथ भी ऐसा हुआ, उनको पीड़ित करने की कोई कसार बाकी नहीं राखी और एक क्षण ऐसा भी आया, जब उनको मथुरा छोड़ कर द्वारिका में शरण लेनी पडी और उस समय के समाज ने भी उनकी कद्र नहीं की। बुद्ध के समय में जीतनी वेदना बुद्ध ने झेली, समाज ने उनकी परवाह नहीं की। महावीर के कानों में कील ठोक दी गईं, उन्हें भूकों मरने के लिए विवश कर दिया गया, समाज ने उनके महत्त्व को आँका नहीं।

यदि सही अर्थों में 'श्रीमाली जी' को समझना है, तो उनके निखिलेश्वरानन्द स्वरुप समझना पडेगा। इन चर्म चक्षुओं से उन्हें नहीं पहिचान सकते, उसके लिए, तो आत्म-चक्षु या दिव्या चक्षु की आवश्यकता हैं।

मैंने ही नहीं हजारों संन्यासियों ने उनके विराट स्वरुप को देखा है। कृष्ण ने गीता में अर्जुन को जिस प्रकार अपना विराट स्वरुप दिखाया, उससे भी उच्च और अद्वितीय ब्रह्माण्ड स्वरुप मैंने उनका देखा है, और एहेसास किया है कि वे वास्तव में चौसष्ट कला पूर्ण एक अद्वितीय युग-पुरूष हैं, जो किसी विशेष उद्देश्य को लेकर पृथ्वी गृह पर आए हैं। मैं अकेला ही साक्षी नहीं हूं, मेरे जैसे हजारों संन्यासी इस बात के साक्षी हैं, कि उन्हें अभूतपूर्व सिद्धियां प्राप्त हैं। भले ही वे अपने -आप को छिपाते हों, भले ही वे सिद्धियों का प्रदर्शन नहीं करते हों, मगर उनके अन्दर जो शक्तियां और सिद्धियां निहित हैं, वे अपने-आप में अन्यतम और अद्वितीय हैं।

एक जगह उन्होनें अपनी डायरी में लिखा हैं --

"मैं तो एक सामान्य मनुष्य की तरह आचरण करता रहा, लोगों ने मुझे भगवान् कहा, संन्यासी कहा, महात्मा कहा, योगीश्वर कहा, मगर मैं तो अपने आपको एक सामान्य मानव ही समझता हूँ। मैं उसी रूप में गतिशील हूं, लोग कहें तो मैं उनका मुहबन्द नहीं सकता, क्योंकि जो जीतनी गहराई में है, वह उसी रूप में मुझे पहिचान करके अपनी धारणा बनाता हैं। जो मुझे उपरी तलछट में देखता है, वह मुझे सामान्य मनुष्य के रूप में देखता हैं, और जो मेरे आभ्यंतरिक जीवन को देखता है, वह मुझे 'योगीश्वर' कहता है, 'संन्यासी' कहता है। यह उनकी धारणा है, यह उनकी दृष्टि है, यह उनकी दूरदर्शिता है। जो मेरी आलोचना करते हैं, उनको भी मैं कुछ नहीं कहता, और जो मेरा सम्मान करते हैं, मेरी प्रशंसा करते हैं, उनको भी मैं कुछ नहीं कहता, और जो मेरा सम्मान करते हैं, मेरी प्रशंसा करते हैं, उनको भी मैं कुछ नहीं कहता, क्योंकि मैं सुख-दुःख, मान-अपमान इन सबसे सर्वथा परे हूं।

मैंने कोई दावा नहीं किया, कि मैं दस हजार वर्षों की आयु प्राप्त योगी हूं, और न ही मैं ऐसा दावा करता हूं, कि मैंने भगवे वस्त्र धारण कर संन्यासी रूप में विचरण किया, हिमालय गया, सिद्धियां प्राप्त कीं, या मैं कोई चमत्कारिक व्यक्तित्व या मैं कोई अद्वितीय कार्य संपन्न किया है। मैं तो एक सामान्य मनुष्य हूं और सामान्य मनुष्य की तरह ही जीवन व्यतीत करना चाहता हूं।" डायरी के ये अंश उनकी विनम्रता है, यह उनकी सरलता है, परन्तु जो पहिचानने की क्षमता रखते हैं - उनसे यह छिपा नहीं है, के वे ही वह अद्वितीय पुरूष हैं, तो कई हजार वर्षों बाद पृथ्वी पर अवतरित होते हैं।

श्री नारायण दत्त श्रीमालीजी - भाग ४

सिद्धाश्रम के संचालक, 'परमहंस स्वामी सच्चिदानन्द जी है', वे तो अपने-आप में अन्यतम,अद्वितीय विभूति हैं, समस्त देवताओं, के पुंञ्ज से एकत्र होकर के उनका निर्माण हुआ है, सब देवताओं ने अपना-अपना अंश देकर के ऐसे अदभुद व्यक्तित्व का विकास किया है, जिन्हें सच्चिदानन्द जी कहते हैं।

परमहंस, प्रातः स्मरणीय 'पूज्यपाद स्वामी सच्चिदानन्द जी' के आशीर्वाद तले ऐसा सिद्धाश्रम गतिशील है, जहां की माटी कुंकुम की तरह है, जिसे ललाट पर लगाने की इच्छा की जाती है, जहां पर महाभारत काल और त्रेता युग के योगी व् सन्यासी निरंतर विचरण करते हैं, गतिशील हैं।

सच्चिदानन्द जी ने हजारों साल के अपने जीवन में केवल तीन ही शिष्य बनाएं हैं, अत्यन्त कठोर उनकी क्रिया है, जो उन क्रियाओं पर खरा उतरता है, उसे वे अपना शिष्यत्व प्रदान करते हैं। पूज्य गुरुदेव ऐसे ही अदभुद व्यक्तित्व हैं, जिन्होनें पूर्णता के साथ 'स्वामी सच्चिदानन्द जी' से दीक्षा प्राप्त की हैं, और पूरा सिद्धाश्रम ही नहीं वरन पूरा ब्रह्माण्ड इस बात के लिए गौरवान्वित है, कि वे 'स्वामी सच्चिदानन्द जी' के शिष्य है।

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जिनका विचरण स्थल है
यही नहीं अपितु कई संन्यासियों ने उन्हें इंद्र लोक, पाताल लोक, सूर्य लोक, चन्द्रमा तथा अन्य लोकों में विचरण करते हुए देखा है। शुक्र ग्रह में कई योगी उनके साथ गाएं हैं, क्योंकि ये सूक्ष्म शरीर को इतना उंचा उठा लेते है, कि ये ब्रह्माण्ड का एक भाग बन जाते हैं, और उस भाग से वे समस्त ग्रहों में विचरण करते रहते हैं, उनका बाहरी शरीर यहीं पडा रहता हैं एक सामान्य शरीर की तरह, मगर आभ्यातारिक शरीर समस्त ग्रहों का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र गृह में उनको देखने के लिए लोग मचल पड़ते हैं, दौड़ते हैं, और उनकी एक झलक देख कर वे अपने-आप को परम सौभाग्यशाली समझते हैं।

मैंने उनके साथ उन लोकों की भी यात्रा की हैं, और यह देखा है कि वे जितने मृत्यु लोक में प्रिय हैं, जितने सिद्धाश्रम में प्रिय हैं, उससे भी ज्यादा शुक्र गृह और अन्य लोकों में प्रिय हैं। सभी लोकों में निरंतर प्रतीक्षा होती रहती हैं। जहां भी मैंने उनको देखा हैं, ऐसा लगता हैं कि यह पुरे ब्रह्माण्ड में बिखरा हुआ व्यक्तित्व है। कोई एक गृह या एक स्थान ही उनको महत्त्व नहीं देता, अपितु पुरे ब्रह्माण्ड का प्रत्येक गृह उनको महत्त्व देता है। वे अत्यन्त सूक्ष्म शरीर धारण कर सकते हैं और विराट स्वरुप भी धारण कर सकते हैं। वे एक ही क्षण में एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाने का सामर्थ्य रखते हैं। वे हिमालय की उंची-उंची चोटियों पर उसी पारकर विचरण करते हैं, जैसे मैदान में चल रहे हों, तथा गहन और गहन गुफाओं में मैंने उनको निरंतर साधना करते हुए अनुभव किया हैं।
साबर साधनाओं के अन्यतम योगी
साबर साधनाएं जीवन की सरल, सहज और मत्वपूर्ण साधना है। ऐसी साधनाएं हैं जिनमे जटिल विधि विधान नहीं है जिनमे लम्बा-चौड़ा विस्तार नहीं है, जिनमे सूक्ष्म-श्लोक संस्र्कुत नहीं अपितु सरल भाषा है। संसार की आठ क्रियाएं ऐसी है जो कई हजार वर्ष पहले पूर्व विकास पर थी परन्तु आज ये विद्याएं प्रायः लुप्त हैं और शायद ही उनके बारे में योगियों को जानकारी होगी। सिद्धाश्रम में इनके बारे में निरंतर शोध हो रही हैं और उन चिन्तनों तथा साधना विधियों को ढूं ढूं निकाला गया है।

मैंने देखा कि इस व्यक्तित्व में असीम प्राण चेतना है, सत्य और वास्तविकता से झुठलाकर इसे दबाया नहीं जा सकता। प्रहार कर इसकी गति को अवरुद्ध नहीं किया जा सकता बहलाकर इसे चुप नहीं किया जा सकता। इसके मन में भारत वर्ष के प्रति आसीम त्याग और आगाध श्रद्धा है। यह भारतवर्ष को पुनः उस स्थिति में ले जाना चाहता है जो कि इसका वास्तविक स्वरुप है। वह ऋषि मुनियों के मन्त्रों साधनाओं और सिद्धियों को सही तरीके से पुनः स्थापित करना चाहता है। ज्योतिष। और आयुर्वेद के खोये हुए स्थान को पुनः दिलाना चाहता है।

उनको देखते ही ऐसा आभास होता है कि जैसे प्राचीन समय का आर्य अपनी पूर्ण शारीरिक क्षमता और ज्ञान गरिमा को लेकर साकार है। शरीर लम्बा-चौड़ा, आकर्षक और चुम्बकीय नेत्र, वाणी में गंभीरता और गरिमा, दृढ़तायुक्त सिंहवत चाल और ह्रदय में पौरुष यह सब मिलाकर एक ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं जिन्हें हमें अपने जीवन में आर्य कहा है, जो हमारे सही अर्थों में पूर्वज है।

यह व्यक्तित्व अंत्यंत ही सरल, सौम्य और सहज है, किसी प्रकार का आडम्बर या प्रदर्शन इनके जीवन में नहीं हैं, आतंरिक और बाह्य जीवन में किसी प्रकार का कोई लुकाव छिपाव नहीं हैं, जो कुछ जीवन में है वही यथार्थ में है, और यही इसकी विशेषता है।

कभी-कभी तो इनके इस सरल व्यक्तित्व को देखकर खीज होती है। इतने उच्चकोटि का योगी, इतना सरल सहज और सामान्य जीवन व्यतीत करता है कि इन्हें देखकर विश्वास नहीं होता कि यह साधनों के क्षेत्र में अप्रतिम है। सिद्धियों का हजारवा हिस्सा भी यदि किसी के पास होता है तो वह अहम् के मद में चूर रहता धरती पर पांव ही नहीं रहता।

ज्योतिर्विज्ञान के पुरोधा
ज्योतिष के क्षेत्र में स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ने जो काम किया है, वह पूर्ण साधनात्मक संस्था भी नहीं कर सकती। उन्होनें अकेले जितना और जो कुछ कार्य किया है उसे देखकर आश्चर्य होता है। ज्योतिष की दृष्टि से जन्म कुण्डली में दुसरा भाव द्रव्य से सम्बंधित है। और स्वामी जी ने ज्योतिष के नविन सूत्रों की रचना की। ज्योतिष के उन सिद्धांतों को प्रतिपादित किया जो आज के युग के अनुरूप है, जो वर्त्तमान सामाजिक व्यवस्था में सही है उन छोटे-छोटे ग्रंथों के माध्यम से उन्होनें पुरे देश में एक चेतना पैदा की। ज्योतिष के प्रति उनके मन में चाह उत्पन्न की, उन्हें विश्वास दिलाया, ज्योतिष के क्षेत्र में नविन कार्य हुए, बिखरे हुए ज्योतिषियों को एक मंच दिया, उन्हें यह समझाया कि यह विज्ञान तभी सफल हो ससकता है जब इसे पूर्ण समर्पित भाव से किया जाए।

आयुर्वेद का आधारभूत व्यक्तित्व
आयुर्वेद के क्षेत्र में योगिराज पूज्य गुरुदेव जी का योगदान बेजोड़ है। यदि वास्तविक दृष्टि से देखे, तो ज्योतिष और आयुर्वेद दो ही विद्याएं भारतवर्ष के पास थी जिसमें वह पुरे विश्व का अग्रणी था। आज भी विज्ञान के क्षेत्र में विश्व भले ही बहुत आगे बढ़ गया हो, उन्होनें नई से नई टेक्नोलॉजी प्राप्त कर ली है परन्तु इन दोनों क्षेत्रों में आज भी पूरा विश्व भारतवर्ष की और ही देखता है।

सबसे बड़ी विडम्बना यह थी कि आयुर्वेद के प्रामाणिक ग्रन्थ तो लगभग लुप्त हो गए थे, जो कुछ ग्रन्थ बच गए थे, उनमें जिन जड़ी-बूटियों का विवरण का वर्णन मिलता था वे आज के युग में ज्ञात नहीं थी। उस समय पर वनौषधियों को संस्कृत नाम से पुकारते थे परन्तु आज उन शब्दों से परिचय ही नहीं है, इसीलिए उन वनौषधियों की न पहिचान हो रही थी और न उसकी सही अर्थों में उपयोग ही हो रहा था।

यह अपने आप में अंधकारपूर्ण स्थिति थी। ऐसी स्थिति में किसी भी वनस्पति को किसी भी नाम की सज्ञा दे दी जाती थी। उदाहरण के लिए तेलियाकंद भारतवर्ष की एक अदभुदएवं आश्चर्यजनक गुणों से युक्त दिव्या औषधि है। पर पीछ वैध सम्मलेन में लगभग १८ व्यक्तोयों ने १८ प्रकार के विभिन्न पौधे लाकर उस सम्मलेन में रखे और सभी ने इस बात को सिद्ध करने का प्रयत्न किया किउसने जिस पौधे की खोज की है वह प्रामाणिक और असली तेलियाकंद है जिसका विवरण वर्णन प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में मिलता है। जबकि वास्तविकता यह थी, कि उसमें से एक भी पौधा तेलियाकंद नहीं था।

ऐसी स्थिति में निखिलेश्वरानंद जी ने उन प्राचीन जड़ी-बूटियों को खोज निकाला, जिसका विवरण वर्णन प्राचीन ग्रंथों में मिलता है उनके चित्र गुन धर्म पहचान आदि की विस्तृत व्याख्या कर समझाया और उन जड़ी-बूटियों से आयुर्वेद जगत को परिचित कराया।

स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी का आधिकांश समय हिमांचल में व्यतीत हुआ है और वे हिमालय के चप्पे-चप्पे से परिचित हैं। प्रत्येक स्थान, उसकी महत्ता उसकी भौगोलिक और पौराणिक स्थिति का ज्ञान तो स्वामी जी को है ही, साथ ही साथ वहां मिलने वाली जड़ी-बूटियों और पेड़-पौधों को भी उन्हें विस्तृत ज्ञान है।

आप ने एक शिष्य के सहयोग से नैनीताल और रानीखेत के बीच एक बहुत बड़ा फार्म तैयार करवाया है जो लगभग एक मील चौड़ा और ढाई मील लंबा है। इस पुरे फार्म में उन दुर्लभ जड़ी-बूटियों को उगाने का प्रयास किया है जो धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है। हिमालय के सुदूर अंचल से ऐसे पौधे लाकर वहां स्थापित करने का प्रयत्न किया है। उन्होनें एक छोटी सी पुस्तिका भी लिखी है जिसमें उन्होनें उन ६४ दुर्लभ जड़ी-बूटियों का परिचय दिया है जिनका धीरे धीरे लोप हो रहा है। यदि समय रहते उनका सवर्द्वन नहीं हो सका तो निश्चय ही वे पौधे समाप्त हो जायेंगे।

इतना व्यस्त व्यक्तित्व होते हुए भी ऐसे पौधों के प्रति उनका ममत्व देखते ही बनाता है। उन्होनें कुछ पौधों को हिमालय की बहुत ही ऊंचाई से प्राप्त कर बड़ी कठिनाई से उस फार्म में आरोपित किया है और उनका पालन पोषण उसी प्रकार से किया जैसे कि मां अपने शिशु का करती है।

उन्होनें कहां प्रकृति हामारी शत्रु या प्रतिस्पर्धी नहीं अपितु सहायक है। उसके साथ द्वंद्व करके सफलता नहीं पाई जा सकती है, अपितु उसके साथ समन्वय करके ही सिद्धि प्राप्त हो सकती है। इसी स्थिति को और सिद्धांत को ध्यान में रखकर पूज्य गुरुदेव ने जो साधनाएं स्पष्ट की, उनके माध्यम से योगियों नें आसानी से प्रकृति पर विजय प्राप्त की।
- स्वामी विश्वेश्रवानंद

परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी का व्यक्तित्व अपने-आप में अप्रतिम, अदभुतऔर अनिर्वचनीय रहा है। उनमें हिमालय सी ऊंचाई है, तो सागरवत गहराई भी; साधना के प्रति वे पूर्णतः समर्पित व्यक्तित्व हैं, तो जीवन के प्रति उन्मुक्त सरल और सहृदय भी; वेद, कर्मकांड और शास्त्रों के प्रति उनका अगाध और विस्तृत ज्ञान है, तो मंत्रों और तंत्रों के बारे में पूर्णतः जानकारी भी। यह एक पहला ऐसा व्यक्तित्व है जिसमें प्रत्येक प्रकार की साधनाएं समाहित हैं, उच्चकोटि के वैदिक और दैविक साधनाओं में जहां वे अग्रणी हैं, वहीं औघड शमशान और साबर साधनाओं में भी अपने-आप में अन्यतम हैं।

मैंने उन्हें हजारों-लाखों की भीड़ में प्रवचन देते हुए सूना है। उनका मानस अपने-आप में संतुलित है, किसी भी विषय पर नपे-तुले शब्दों में अजस्त्र, अबाध गति से बोलते रहते हैं। लीक सी एक इंच भी इधर-उधर नहीं हटते। मूल विषय पर, विविध विषयों की गहराई उनके सूक्ष्म विवेचन और साधना सिद्धियों को समाहित करते हुए वे विषय को पूर्णता के साथ इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं, कि सामान्य मनुष्य भी सुनकर समझ लेता है और मंत्रमुग्ध बना रहता है।

मैं उनके संन्यास और गृहस्थ दोनों ही जीवन का साक्षी हूंहजारों संन्यासियों के भीड़ में भी उन्हें बोलते हुए सूना है उच्चस्तरीय विद्वत्तापूर्ण शुद्ध सुसंस्कृत में अजस्त्र, अबाध रूप से और गृहस्थ जीवन में भी उन्हें सरल हिन्दी में बोलते हुए सूना है - विषय को अत्याधिक सरल ढंग से समझाते हुए बीच-बीच में हास्य का पुट देते हुए मनोविनोद के साथ अपनी बात वे श्रोताओं के ह्रदय में पूर्णता के साथ उतार देते हैं।

मुझे उनका शिष्य बनने का सौभाग्य मिला है और मैं इसमें अपने-आप को गौरवान्वित अनुभव करता हूं। उनके साथ काफी समय तक मुझे रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ है, मैंने उनके अथक परिश्रम को देखा है, प्रातः जल्दी चार बजे से रात्री को बारह बजे तक निरंतर कार्य करते हुए भी उनके शरीर में थकावट का चिन्ह ढूंढने पर भी अनुभव नहीं होता।

वे उतने ही तरोताजा और आनंदपूर्ण स्थिति में बने रहते हैं, उनसे बात करते हुए ऐसा लगता है कि जैसे हम प्रचण्ड ग्रीष्म की गर्मी से निकलकर वट वृक्ष की शीतल छाया में आ गए हों, उनकी बातचीत से मन को शान्ति मिलती है जैसे कि पुरवाई बह रही हो, और सारे शरीर को पुलक से भर गई हो।

जीवंत व्यक्तित्व
ऐसे ही अद्वितीय वेदों में वर्णित सिद्धाश्रम के संचालक स्वामी सच्चिदानन्द जी के प्रमुख शिष्य योगिराज निखिलेश्वरानंद है, जिन पर सिद्धाश्रम का अधिकतर भार है। वे चाहे संन्यासी जीवन में हो और चाहे गृहस्थ जीवन में, रात्री को निरंतर नित्य सूक्ष्म शरीर से सिद्धाश्रम जाते हैं, वहां की संचालन व्यवस्था पर बराबर दृष्टि रखते हैं। यदि किसी साधक योगी या संन्यासी की कोई साधना विषयक समस्या होती है तो उसका समाधान करते हैं और उस दिव्य आश्रम को क्षण-क्षण में नविन रखते हुए गतिशील बनाए रखते हैं। वास्तव में ही आज सिद्धाश्रम का जो स्वरुप है उसका बहुत कुछ श्रेय स्वामी निखिलेश्वरानंद जी को है, जिनके प्रयासों से ही वह आश्रम अपने-आप में जीवंत हो सका।

आयुर्वेद के क्षेत्र में भी उन्होनें उन प्राचीन जडी-बूटियों पौधों और वृक्षों को ढूंढ निकाला है जो कि अपने-आप में लुप्त हो गए थे। वैदिक और पौराणिक काल में उन वनस्पतियों का नाम विविध ग्रंथों में अलग है परन्तु आप के युग में वे नाम प्रचलित नहीं हैं। अधिकांशजडी-बूटियां काल के प्रवाह में लुप्त हो गई थी।

अपने फार्म में उसी प्रकार का वातावरण बनते हुए उन जडी-बूटियों को पुनः लगाने और विकसित करने का प्रयास किया। मील से भी ज्यादा लम्बा चौडा ऐसा फार्म आज विश्व का अनूठा स्थल है, जहां पर ऐसी दुर्लभ जडी-बूटियों को सफलता के साथ उगाने में सफलता प्राप्त की है, जिनके द्वारा असाध्य से असाध्य रोग दूर किए जा सकते हैं। उनके गुण दोषों का विवेचन, उनकी सेवन विधि, उनका प्रयोग और उनसे सम्बंधित जीतनी सूक्ष्म जानकारी उनको है वह अपने आप में अन्यतम हैं।

पारद के सोलह संस्कार हे नहीं, अपितु चौवन संस्कार द्वारा उन्होनें सिद्ध कर दिया कि इस क्षेत्र में उन्हें जो ज्ञान है वह अपने-आप में अन्यतम है। एक धातु से दुसरे धातु में रूपांतरित करने की विधियां उन्होनें खोज निकाली और सफलतापूर्वक अपार जन समूह के सामने ऐसा करके उन्होनें दिखा दिया कि रसायन क्षेत्र में हम आज भी विश्व में अद्वितीय हैं। कई शिष्यों नें उनके सान्निध्य में रसायन ज्ञान प्राप्त किया है और ताम्बे स्व स्वर्ण बनाकर इस विद्या को महत्ता और गौरव प्रदान किया है।

सिद्धाश्रम के प्राण

सिद्धाश्रम देवताओं के लिए भी दुर्लभ और अन्यतम स्थान है। जिसे प्राप्त करने के लिए उच्चकोटि के योगी भी तरसते हैं। प्रयेक संन्यासी अपने मन में यही आकांक्षा पाले रहता कि जीवन में एक बार सिद्धाश्रम प्रवेश का अवसर मिल जाय। यह शाश्वत पवित्र और दिव्य स्थल, मानसरोवर और कैलाश से भी आगे स्थित है, जिसे स्थूल दृष्टी से देखा जाना सम्भव नहीं। जिनके ज्ञान चक्षु जागृत हैं, जिनके ह्रदय में सहस्रार का अमृत धारण है, वही ऐसे सिद्ध स्थल को देख सकता है।

ऋग्वेद से भी प्राचीन यह स्थल अपने-आप में महिमामण्डितहै। विश्व में कई बार सृष्टि का निर्माण हुआ और कई बार प्रलय की स्थिति बनी, पर सिद्धाश्रम अपने-आप में अविचल स्थिर रहा। उस पर न काल का कोई प्रभाव पड़ता है न वातावरण अथवा जलवायु का। वह इन सबसे परे आगम्यऔर अद्वितीय है। ऐसे स्थान पर जो योगी पहुंच जाता है, वह अपने आप में अन्यतम और अद्वितीय बन जाता है।

महाभारत कालीन भीष्म, कृपाचार्य, युधिष्ठिर, भगवान् कृष्ण, शंकराचार्य, गोरखनाथ आदि योगी आज भी वहां सशरीर विचरण करते देखे जा सकते हैं, अन्यतम योगियों में स्वामी सच्चिदानन्द जी, महर्षि भृगु आदि हैं, जिनका नाम स्मरण ही पुरे जीवन को पवित्र और दिव्य बनने के लिए पर्याप्त है।

यह मीलों लंबा फैला हुआ सिद्धि क्षेत्र अपने-आप में अद्वितीय है। जहा न रात होती है और न दिन। योगियों के शरीर से निकलने वाले प्रकाश से यह प्रतिक्षण आलोकित रहता है। गोधूली के समय जैसा चित्तार्शक दृश्य और प्रकाश व्याप्त होता है ऐसा प्रकाश वहां बारहों महीने रहता है। उस धरती पर सर्दी गर्मी आदि का कोई प्रभाव प्रतीत नहीं होता। ऐसे सिद्धाश्रम पर रहने वाले योगी कालजयी होते हैं, उन पर ज़रा मृत्यु आदि का प्रभाव व्याप्त नहीं होता।

यह उनके ही प्रबल पुरुषार्थ का फल है कि सिद्धाश्रम अपने-आप में जीवन्त स्थल है, जहां मस्ती आनन्द, उल्लास, उमंग और हलचल है गति है जहां चेतना और आज सिद्धाश्रम को देखने पर ऐसा लगता हैं कि यह नन्दन कानन से भी ज्यादा सुखकर और आनन्ददायक है।

एक मृतप्राय सा सिद्धाश्रम उनके आने से ही आनन्दमय हो गया और सही अर्थों में सिद्धाश्रम बन गया। सिद्धाश्रम में उच्चकोटि के योगी वशिष्ठ, विश्वामित्र, गर्ग, कणाद, आद्य शंकराचार्य, कृष्ण आदि सभी विद्यमान हैं। उच्चकोटि के योगी पृथ्वी पर अपना कार्य पूरा करने के बाद यह बाहरी नश्वर शरीर छोड़ कर हमेशा हमेशा के लिए सिद्धाश्रम चले जाते हैं। सिद्धाश्रम के श्रेष्ठ योगीजन आंखें बिच्चा बैठे रहते हैं, कि कब निखिलेश्वरानंद जी आएं और उनकी चरण धूलि मिले, ऋषि-मुनि अपनी साधनाएं बीच में ही रोककर उस स्थान पर खड़े हो जाते हैं, जहां से निखिलेश्वरानन्द जी गुजरने वाले होते हैं। प्रकृति भी अपने आप में नृत्यमय हो जाती है, क्योंकि सिद्धाश्रम जिस प्राणश्चेतना से गतिशील है, उसी प्राणश्चेतना के आधार हैं, निखिलेश्वरानंद जी।

सिद्धाश्रम, जहां उच्चकोटि की अप्सराएं निरंतर अपने नृत्य से, अपने गायन से, अपने संगीत से पुरे सिद्धाश्रम को गुंजरित बनाएं रखती हैं। एक अदभुद वातावरण है वहां का, ऐसा लगता है, जैसे स्वर्ग भी इसके सामने तुच्छ है और वास्तव में ही स्वर्ग और इंद्र लोक अत्यधिक तुच्छ हैं इस प्रकार के सिद्धाश्रम के सामने, जहां सिद्धयोगा झील गतिशील है, जिसमे स्नान करने से ही समस्त रोग मिट जाते हैं, जिसके किनारे बैठने से ही अपने-आप में सम्पूर्ण पवित्रता का बोध हो जाता है, उसमें अवगाहन करने से ही पूर्ण शीतलता और शान्ति महसूस होने लगती है, इसमें स्नान करने से ही इस देह को, जिस देह में हम गतिशील हैं, तुरंत भान हो जाता है, कि हम पांच हजार साल पहले कौन थे? या तो इस प्रकार के उच्चकोटि के योगियों के पास बैठने से उनके द्वारा ज्ञात हो सकता है या फिर सिद्धयोगा झील में स्नान करने से स्मरण हो जाता हैं।

मैं उनके इस जीवन का साक्षी रहां हूं, और आत्री, कणाद, गौतम, वशिष्ठ सदृश उच्चकोटि के योगी भी निखिलेश्वरानंद जी के व्यक्तित्व को देखकर आल्हादित और रोमांचित हो उठाते हैं। उनके जीवन का स्वप्न ही यह रहता है, कि निखिलेश्वरानंद जी के साथ रहे, उनसे बात-चीत करें और उनकी बात-चीत के प्रत्येक अंश में कोई न कोई साधना निहित रहती हैं। वास्तव में देखा जाए, तो वे योगियों में परम श्रेष्ठ, अदभुद, तेजस्वी एवं अद्वितीयता लिए हुए महामानव हैं।

जो योगीजन उनके साथ सिद्धाश्रम गए हैं, उन्होनें उनके व्यक्तित्व को पहिचाना है। उन्होनें देखा है, कि हजारों साल कि आयु प्राप्त योगी भी, जब 'स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी' सिद्धाश्रम में प्रवेश करते हैं, तो अपनी तपस्या बीच में ही भंग करके खड़े हो जाते हैं, और उनके चरणों को स्पर्श करने के लिए एक रेलम-पेल सी मच जाती है, चाहे साधक-साधिकाएं हों, चाहे योगी हों, चाहे अप्सराएं हों, सभी में एक ललक, एक ही पुलक, एक ही इच्छा, आकांक्षा होती है, कि 'स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी' के चरणों को स्पर्श कर लिया जाए, जो गंगा की तरह पवित्र हैं, जो कि अपने-आप में पूज्य हैं, जिनके चरण-स्पर्श अपने-आप में वन्दनीय हैं, जो कि अपने-आप में पूज्य हैं, जिनके चरण-स्पर्श अपने-आप में ही अहोभाग्य हैं, और वे जिस रास्ते से गुजर जाते हैं, जहां-जहां उनके चरण-चिन्ह पड़ते हैं, वहां की धूलि उठाकर उच्चकोटि के संन्यासी, योगी ओने ललाट पर लगाते हैं, साधिकाएं उस माटी को चंदन की तरह अपने शरीर मर लगाती हैं और अपने आप को धन्य-धन्य अनुभव करती हैं।

वे किसी को भी अपने साथ सिद्धाश्रम ले जा सकते हैं, चाहे वह किसी भे जाती, वर्ग, भेद, वर्ण, लिंग का स्त्री, पुरूष हो, इसके लिए सिद्धाश्रम से उन्हें एक तरंग प्राप्त होती है, एक आज्ञा प्राप्त होती है, फिर स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी उस व्यक्तित्व को चाहे उसने साधना की हो या न की हो, अपने साथ ले जाते हैं, परन्तु उनके साथ वही जा सकता हैं, जो भाव से समर्पित शिष्य हो।

योगी विश्वेश्रवानंद

MTYV Vishwa Vidyalaya For Admission

मंत्र तंत्र यन्त्र विज्ञानं विधालय



मंत्र तंत्र यन्त्र विज्ञानं विधालय में प्रवेश के लिएसभी साधक और साधिका को सूचित किया जाता है की आप सब के लिए MTYV Vishwa Vidyalaya whatApp ग्रुप बन गया है | जहा पर साधना को सिखने का एक नवीन अवसर मिल सकता है बहुत से साधक और साधिका के अनुरोध पर ये किया जा रहा है , जो नए साधक उन को लाभ मिलेगा और पुरने साधक एस ग्रुप से जुड़ कर आपना ज्ञान, ध्यान और चिन्तन को बड़ा सकते है | जो साधको को साधना में सफलता नहीं मिल रहा है उन के लिए बहुत ही उपयोगी होगा और एक नए उत्साह से हम साधना को सिख कर आपने जीवन को आगे ले सकेगे | ये ग्रुप पैसे कमाने के लिए नहीं बनाया जा रहा है | में सद्गुरु के प्रेरणा से ये सब करने का विचार कर रहा हूँ , ग्रुप मैं कुछ टीम वर्क होगा जो आप को सही से मार्ग दर्सन के साथ उचित सलाह दिया जा सकेगा जिस आप साधना में मिल रही असफलता को कम कर सकेगे और सद्गुरु के ज्ञान को बचने मैं सहयोग के साथ खुद भी नवीन चेतना धारण कर शिष्य बन सकेगे |



तंत्र में किसी कि सहायता कर देना सरल नहीं होता है उसे पग पग पर मुसीबतों का सामना करना पड़ता है ।

एक प्रकार से शिव की तरह जहर पीना पड़ता है ।




सॉर्ट कट नहीं किसी भी चीज़ का तंत्र के क्षेत्र में फिर भी गुरु किरपा हो और अटूट प्रेम श्रद्धा विस्वास है सब संभव है ?

गुरु प्रेम नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊ गली~ गली , है कोई गुरु चाहने वाला शोर मचाऊ गली~ गली '' लेकिन मेरी आवाज़ को कोई नहीं सुनता ,







गुरु और प्रेम की सारी विधियाँ , सारे नियम , सारे सिद्धांत , सारी साधना साधक की चेतना के विस्तार के लिए है ! साधना का एक अर्थ चेतना का विस्तार भी है जब तक साधक मूर्छा ( अज्ञानी ) में है तब तक उसकी चेतना का विस्तार संभव नहीं है ! गुरु के सारे उपक्रम इसी मूर्छा को दूर करने के लिए हैं ! गुरु दीक्षा द्वारा शक्तिपात के द्वारा ,साधना के द्वारा कुंडलिनी जागरण के द्वारा दूर करने का प्रयत्न करता है ! साधक को अज्ञान से बाहर निकलता है ! सचमुच गुरु और प्रेम बड़ा ही अद्भुत शास्त्र है ! जितना सीखो उतना कम है ! प्रत्येक साधक यह सोचता है विचारों का संग्रह ही ज्ञान है ! पुस्तकों में हम जो कुछ भी पड़ते हैं वह सब दूसरों के विचार हैं ,ज्ञान नहीं, विचारों के संग्रह से हम कभी भी ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकते हैं ! ज्ञान आता है मिलकर बैठने से , ज्ञान आता है आत्मा से , ज्ञान आता है गुरु के वचनों से , ज्ञान आता है स्तरिये पुस्तकों से ,स्मरण रखें ज्ञान हमारी संपत्ति है और विचार दूसरों की सम्पति है !ज्ञान वास्तव मैं आत्मा की ऊर्जा है ! पुरुष कहो या साधक कहो के शरीर मैं श्वेत बिंदु के रूप में शिव और स्त्री कहो साधिका कहो या भैरवी कहो के शरीर में रक्त बिंदु के रूप मैं शक्ति का निवास है ! आपको यह जानकार बेहद आश्चर्य होगा कि बिंदु साधना का ही दूसरा नाम कुंडलिनी साधना है ! दोनों की जड़ में एक ही सिद्धांत , एक ही नियम और एक ही लक्ष्य है ! जैसे वैदिक युग में बिंदु साधना का प्रभाव था ठीक उसी प्रकार तंत्र युग में कुण्डलिनी साधना का प्रभाव था !जब भी गुरु कहीं लेकर चलते हैं ,या किसी गोपनीय साधना के लिए बुलाते हैं तो साधक को यही कहना चाहिए ~ गुरुवर आप बुलाएँ हम ना आयें ऐसे तो हालात ( स्थिती ) नहीं ! कभी न कभी सफल हो जाओगे ...........










जिसे सफलता का और असफलता का अंतर पता है और जो भुतक्भोगी है | में उन की सहायता करना चाहता हूँ जो साधक एस ग्रुप से जुड़ना चाहते है | आप एस विद्यालय में प्रवेश ले कर के अध्यन करे |

ग्रुप और कुछ नियम।

साधक /साधिका जैसा की हम अपनी पिछली पोस्ट में बता चुके है , की एक नविन विद्यालय ग्रुप का निर्माण हो रहा है। जो पूर्ण रूप से गोपनीय होगा। उससे सम्बंधित नियम यहाँ दिए जा रहे है। ध्यानपूर्वक अध्ययन करे।