Tuesday, March 10, 2020

नवार्ण मंत्र



नवार्ण मंत्र को मंत्रराज कहा गया है और इसके प्रयोग भी अनुभूत होते हैं :-
आज हम नवार्ण मंत्र के कुछ प्रयोग बता रहे हैं अगर किसी भाई को कुछ गलत लगता है तो कृपया सभ्य शब्दों का इस्तेमाल करते हुए हमारी. गलती सुधारने का कष्ट करें
नर्वाण मंत्र :-
।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।
परेशानियों के अन्त के लिए :-
।। क्लीं ह्रीं ऐं चामुण्डायै विच्चे ।।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए :-
।। ओंम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।
शीघ्र विवाह के लिए :-
।। क्लीं ऐं ह्रीं चामुण्डायै विच्चे ।।

Friday, August 2, 2019

jaap Kyon AUR KESE KARE जप!! क्यों और कैसे?

जप!! क्यों और कैसे?



मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥

जप-उपासना के क्षेत्र में ‘नये साधकों’ के लिए जप संबंधी कुछ जिज्ञासाएं सहज हैं, उन्ही पाठकों के हितार्थ, मैंने अपने अनुभवों व अध्ययन के आधार पर एक ‘ब्लॉग’ तैयार किया है, जो आपके सम्मुख है-
शरीर को साफ रखने के लिए नित्य नहाना जरूरी है, उसी प्रकार कपड़े नित्य धोने आवश्यक हैं, घर की सफार्इ नित्य की जाती है। उसी प्रकार मन पर भी नित्य वातावरण में उड़ती-फिरती दुष्प्रवृतितयों की छाप पड़ती है, उस मलीनता को धोने के लिए नित्य “जप-उपासना” करनी आवश्यक है।

जप’ के द्वारा ”र्इश्वर” को स्मृति-पटल पर अंकित किया जाता है। ‘जप’ के आधार पर ही किसी सत्ता का ‘बोध’ और ‘स्मरण’ हमें होता है। स्मरण से आह्वान, आह्वान से स्थापना और स्थापना से उपलब्धि का क्रम चल पड़ता है। ये क्रम लर्निग-रिटेन्शन-रीकाल-रीकाग्नीशन के रूप में मनौवेज्ञानिकों द्वारा भी समर्थित है।

जप’ करने से जो घर्षण प्रक्रिया गतिशील होती है, वो ‘सूक्ष्म शरीर’ में उत्तेजना पैदा करती है और इसकी गर्मी से अन्तर्जत नये जागरण का अनुभव करता है। जो जप कर्ता के शरीर एवं मन में विभिन्न प्रकार की हलचलें उत्पन्न करता है तथा अनन्त आकाश में उड़कर सूक्ष्म वातावरण को प्रभावित करता है। इस ब्लॉग में हम केवल ”सात्विक मन्त्रों” के जप के संबंध में चर्चा करेंगें।
विभिन्न प्रकार के मन्त्रों के लिए भिन्न-2 प्रकार की मालाओं द्वारा जप किये जाने का विधान है। गायत्री-मंत्र या अन्य कोर्इ भी सात्विक साधना के लिए तुलसी या चंदन की माला लेनी चाहिए। कमलगट्टे, हडिडयों व धतूरे आदि की माला तांत्रिक प्रयोग में प्रयुक्त होती हैं 

कैसे करें मंत्र का जप सही विधि से, आप भी जानिए ..

जमीन पर बिना कुछ बिछाये साधना नहीं करनी चाहिए, इससे साधना काल में उत्पन्न होने वाली ‘विधुत’ जमीन में उतर जाती है। आसन पर बैठकर ही जप करना चाहिए। ‘कुश’ का बना आसन श्रेष्ठ है, सूती आसनों का भी प्रयोग कर सकते हैं। ऊनी, चर्म के बने आसन, तांत्रिक जपों के लिए प्रयोग किये जाते हैं।

उस अवस्था में पालथी लगाकर बैठे, जिससे शरीर में तनाव उत्पन्न न हो, इसे ‘सुखासन’ भी कह सकते हैं। यदि लगातार एक स्थिति में न बैठा जा सकें, तो आसन (मुद्रा) बदल सकते हैं। परन्तु पैरों को फैलाकर जप नहीं करना चाहिए। वज्रासन, कमलासन या सिद्धासन में बैठकर भी साधना की जा सकती है, परन्तु गृहस्थ मार्ग पर चलने वाले साधक व्यक्तियों को ‘सिद्धासन’ में में ज्यादा देर तक नहीें बैठना चाहिए।

जप के तीन प्रकार होते हैं-

  • (1) वाचिक जप-वह होता है जिसमें मन्त्र का स्पष्ट उच्चारण किया जाता है।
  • (2) उपांशु जप-वह होता है जिसमें थोड़े बहुत जीभ व होंठ हिलते हैं, उनकी ध्वनि फुसफुसाने जैसी प्रतीत होती है।
  • (3) मानस जप-इस जप में होंठ या जीभ नहीं हिलते, अपितु मन ही मन मन्त्र का जाप होता है। ‘जप साधना’ की हम इन्हें तीन सीढि़यां भी कह सकते हैं। नया साधक ‘वाचिक जप’ से प्रारम्भ करता है, तो धीरे-धीरे ‘उपांशु जप’ होने लगता है, ‘उपांशु जप’ के सिद्ध होने की स्थिति में ‘मानस जप’ अनवरत स्वमेव चलता रहता है। 
  • जप जितना किया जा सकें उतना अच्छा है, परन्तु कम से कम एक माला (108 मन्त्र) नित्य जपने ही चाहिए। जितना अधिक जप कर सकें उतना अच्छा है।

  • किसी योग्य सदाचारी, साधक व्यक्ति को गुरू बनाना चाहिए, जो साधना मार्ग में आने वाली विध्न-बाधाओं को दूर करता रहें व साधना में भटकने पर सही मार्ग दिखा सकें। यदि कोर्इ गुरू नहीं है तो ”कृपा करो गुरूदेव की नायी” वाली उक्ति मानकर ”हनुमान” जी को ‘गुरू’ मान लेना चाहिए।
  • प्रात:काल पूर्व की ओर तथा सायंकाल पश्चिम की ओर मुख करके जप करना चाहिए। “गायत्री मंत्र” उगते “सूर्य” के सम्मुख जपना सर्वश्रेष्ठ हैै। क्योंकि गायत्री जप, सविता (सूर्य) की साधना का ही मन्त्र है।
  • एकांत में जप करते समय माला को खुले रूप में रख सकते हैं, जहां बहुत से व्यक्तियों की दृषिट पड़े। वहां ‘गोमुख’ में माला को डाल लेना चाहिए या कपड़े से ढक लेना चाहिए।
  • माला जपते समय सुमेरू (माला के आरम्भ का बड़ा दाना) का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। एक माला पूरी करके उसे ‘मस्तक व नेत्रों’ पर लगाना चाहिए तथा पीछे की ओर उल्टा ही वापस कर लेना चाहिए।
जन्म एवं मृत्यु के सूतक हो जाने पर, माला से किया जाने वाला जप स्थगित कर देना चाहिए, केवल मानसिक जप मन ही मन चालूू रखा जा सकता हैं।
  • जप के समय शरीर पर कम कपड़े पहनने चाहिये, यदि सर्दी का मौसम है तो कम्बल आदि ओढ़कर सर्दी से बच सकते हैं।
  • जप के समय ध्यान लगाने के लिए जिस जप को कर रहे उनसे संबंधित देवी-देवता की तस्वीर रख सकते हैं, यदि र्इश्वर के ‘निराकार’ रूप की साधना करनी है, तो दीपक जला कर उसका ‘मानसिक ध्यान’ किया जा सकता है, दीपक को लगातार देख कर जप करने की क्रिया ‘दीपक त्राटक’ कहलाती है। इसे ज्यादा देर करने से आंखों पर विपरित प्रभाव पड़ सकता है, अत: बार-बार दीपक देखकर, फिर आंखे बन्द करके उसका मानसिक ध्यान करते रहना चाहिए। सूर्य के प्रकाश का मानसिक ध्यान करके भी जप किया जा सकता है।
माला को कनिषिठका व तर्जनी उगली से बिना स्पर्श किये जप करना चाहिये। कनिषिठका व तर्जनी से जप, तांत्रिक साधनाओं में किया जाता है। 
  • ब्रह्ममुहुर्त जप, ध्यान आदि के लिए श्रेष्ठ समय होता है, हम शाम को भी जप कर सकते हैं, परन्तु रात्रि-अर्धरात्रि में केवल तांत्रिक साधनाएं ही की जाती हैं।
  • गायत्री’ व ‘महामृत्युंजय’ मन्त्र के जप प्रारम्भ में कठिन लगते हैं, परन्तु लगातार जप करने से जिव्हा इनकी अभ्यस्त हो जाती है और कठिन उच्चारण वाले मन्त्र भी सरल लगने लगते हैं। 
  • मन्त्र जप का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, जप में एक निश्चित लय-ताल-गति का होना, तभी ये प्रभावशाली होते हैं। इसके प्रभाव का अन्दाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि ‘सैनिकों’ को पुल पर पैंरों को मिलाकर चलने से उत्पन्न क्रमबद्ध ध्वनि उत्पन्न करने के लिए इसलिए मना कर दिया जाता है, कि इस क्रमबद्धता की साधारण क्रिया से पुल तोड़ देने वाला असाधारण प्रभाव उत्पन्न हो सकता है।
  • अन्त में, जप-साधना का एक मात्र उद्देश्य भगवान व भक्त के बीच एकात्म भाव की स्थापना करना है, ‘इष्ट’ का चित्र देखते रहने से, काम नहीें चलता। ‘साकार उपासना’ में ‘इष्ट देव’ का सामीप्य, अति सामीप्य होने के साथ-साथ उच्चस्तरीय प्रेम के आदान-प्रदान की गहरी कल्पना करनी चाहिए। 
  • साधक-भगवान के साथ, स्वामी-सखा-पिता-पुत्र किसी भी रूप में ‘सघन संबंध’ स्थापित कर सकता है, इससे आत्मीयता बढ़ती है और हम र्इश्वर के निकट व अति निकट होते जाते हैं।
एक ‘दोहे’ के साथ ‘ब्लॉग’ समाप्त करता हूँ-
           जब  मैं  था हरी नहीें अब हरी है मैं नाय,
           प्रेम गली अति सांकरी ता मैं दो न समाय।

sukra grah shanti maha mantra and upay dhan samridhi prpati hetu



शुक्र ग्रहों में सबसे चमकीला है और प्रेम का प्रतीक है. शुक्र स्त्री गृह है ,मनुष्य की कामुकता से इसका सीधा संबंध भी है और हर प्रकार के सौंदर्य और ऐश्वर्य से ये सीधे संबंध रखता है. यदि किसी की कुंडली में शुक्र शुभ प्रभाव देता है तो वह जातक आकर्षक, सुंदर और मनमोहक होता है. शुक्र के विशेष प्रभाव से वह जीवनभर सुखी रहता है. शुक्र को सुन्दरता का प्रतीक माना जाता है. सुख का कारक माना जाता है. शुक्र की चमक एवं शान अन्य ग्रहो के अलग व निराली है. इसी सुंदरता के लिए शुक्र जाना जाता है. शुक्र की आराधना कर शुक्र को बलवान बनाकर सुख व ऐश्वर्य पाया जा सकता है. आज हर व्यक्ति अपने जीवन को अपनी हैसियत से ज्यादा आरामदायक वस्तुओं पर खर्च करता है. यदि आप भी जिन्दगी को ऐश्वर्य और आराम से भरपुर बनाना चाहते हैं तो शुक्र बलवान बनाने वाले उपायों को अपनाए. शुक्र के लिए ओपल, हीरा, स्फटिक का प्रयोग करना चहिये और यदि ये बहुत ही खराब है तो पुरुषों को अश्विनी मुद्रा या क्रिया रोज करनी चाहिये. इस ग्रह के पीड़ित होने पर आपको ग्रह शांति हेतु सफेद रंग का घोड़ा दान देना चाहिए. रंगीन वस्त्र, रेशमी कपड़े, घी, सुगंध, चीनी, खाद्य तेल, चंदन, कपूर का दान शुक्र ग्रह की विपरीत दशा में सुधार लाता है. इसके साथ ही कुछ प्रभावशाली मंत्रों के जाप से शुक मजबूत होकर सुखद फल प्रदान करता है.
शुक्र महाग्रह मंत्र


ॐ नमो अर्हते भगवते श्रीमते पुष्‍पदंत तीर्थंकराय। अजितयक्ष महाकालियक्षी सहिताय ॐ आं क्रों ह्रीं ह्र:

हमारा प्रयास सबका कल्याण

samast dos nivaran ek divas sadhana tantra mantra

आज शुक्रवार का दिन है आज का यह उपाय बेहद शक्तिशाली उपाय है आज अपने घर के मंदिर मे माँ के चरणों मे बैठकर एक देसी घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें और मिठाई का भोग लगाकर रुद्राक्ष की माला से
ॐ ह्रीं विभ्र्मांड रूपे विभ्रम कुरु रहीं रहीं भगवती स्वाहा
की एक माला जप करें जप उपरान्त एक पानी वाला नारियल लाल रंग के वस्त्र मे लपेटकर माँ के मंदिर मे अर्पित कर दें यह नारियल अपने साथ आपके सारे दोषों को ले जाएगा 

aghor achuk vasikaran tantrot tantra mantra sadhna अघोरी अचूक वशीकरण मंत्र

अघोरी अचूक वशीकरण मंत्र



वैसे तो हमारे समाज में वशीकरण के कई तरीके आजमाए जाते हैं लेकिन अघोरियों की क्रिया विधि और उनके तरीके कुछ अलग होते हैं| इसलिए इन टोटकों को आजमाने से पहले अगर किसी अघोरी का आशीर्वाद या मार्गदर्शन ले लिया जाए तो वह ज्यादा प्रभावशाली होता है| वैसे इस चक्कर किसी गलत वाममार्गी के चक्कर में पड़ने का भय भी रहता है| जैसे हमारी दुनिया में अच्छे और बुरे लोग होते हैं उसी प्रकार अघोरी भी सच्चे और पाखंडी हो सकते हैं| कहते हैं सच्चा अघोरी किस्मत से ही मिलता है| इसलिए किसी टोटके के लिए बात करने से पहले उसके बारे में पड़ताल कर लें वरना जीवन भर पछताना पड़ सकता है –


यह टोटका किसी भी सोमवार को रात के ग्यारह बजे के बाद शुरू करें | नहा धो कर लाल कपड़ा पहने, किसी पीढ़े पर शिवजी की प्रतिमा/शिवलिंग/ तस्वीर स्थापित करें| स्टील या लोहे से बनी एक थाली ले लें, अब इस पर काजल से ओम अघोरेभ्यों घोरेभ्यों नमः लिख दें| पुनः जिस इंसान को वशीभूत करना हो उसके पहने हुए कपडे का टुकडा थाली के ऊपर बिछा दें| अब सिन्दूर या कुमकुम से उस इंसान का नाम लिख दें| पीढ़े पर जिसे वश में करना है उस इंसान का चित्र भी रखें| अब पांच मिनट शिव का ध्यान करें| रुद्राक्ष की माला पर निम्न मंत्र का जाप करें –


शिवे वश्ये हूँ/वश्ये (व्यक्ति का नाम)वश्ये हूँ वश्ये शिवे वश्यमें वश्यमें वश्यमें फट स्वाहा|


यह मंत्र इक्यावन माला जाप करें| जाप पूरा होने के बाद ऋषि मुंडकेश तथा अघोरेश्वर शिव से याचना करें| बीच में कुछ अजीब अनुभूति हो सकती है जिस पर विचलित होने की आवश्यकता नहीं| उद्देश्य अगर नीचतापूर्ण नहीं है तो यह साधना सफल हो जाती है|


यह साधारण मंत्र मात्र नहीं है बल्कि एक सम्पूर्ण साधना है, नीचतापूर्ण उद्देश्य से इसे न करें तो बेहतर| किसी अनुभवी सच्चे अघोरी का मार्गदर्शन मिल जाए तो सरलता से इसे पूर्ण किया जा सकता है|





Sunday, June 30, 2019

vichitr hanumaan veer mantr tatkaal anishth door kare.


विचित्र हनुमान वीर मंत्र तत्काल अनिष्ठ दूर करे।
Bizarre Hanuman Veer Mantra Immediately remove the spell.
आ वीर पिला नीर
तू हे बलवीर अब करा धीर
चोसैठ जोगंडी बावन वीर
बावन भैरव बावन पीर
ले के चले तू रणवीर
उलट कर पलट कर
कर हर अनिष्ठ दूर कर
मेरा दुख दर्द सब कर दूर
विचित्र वीर रख राम नाम संग
में हु अज्ञान अनभंग तू हे बजरंग
रहे मेरे संग कर मुझे अतरंग
दूर कर हर भरम विचित्र वीर हनुमंत
न दुहाई न आंन बस एक तू हनुमान

ये मंत्र स्वम मैं सिद्ध है केवल 21 बार पड़ना है रोज
हर प्रकार से हनुमान रक्षा प्रदान होती है।
स्वम हनुमान सहायता प्रदान करते है।
आधी व्याधि से मुक्ति प्राप्त होती है।।।
मंत्र के आरंभ में राम जी एक माला और मंत्र के
अंतिम मैं राम जी एक माला अवशय कीजिये और
समर्पित कीजिये और चमत्कार स्वम अनुभव कीजिये
जय श्री राम जय हनुमान
सीताराम
अलख आदेश।
गुरुदेव को प्रणाम