ये कैसी परिक्षा-----स्वामी प्रेम आनन्द
आज गुरु जी आश्रम में ही है, मगर ज्यादा लोगो को मालूम ना होने के कारण भीड़ बहुत कम है! सब लोग दोपहर का भोजन करके आराम कर रहे थे, इसलिए ना बाहर ज्यादा भीड़ थी और ना ही अंदर! मेरे पास गुरु जी का सन्देश आया कि आनन्द तुम्हे गुरूजी बुला रहे है! मै गुरूजी के पास ऊपर गया तो गुरु जी बड़े अच्छे मुड में बैठे थे...और जब गुरूजी अच्छे मुड में होते है तो कुछ ना कुछ शरारत जरुर करते है!
मै थोडा सावधान हो गया...चरण स्पर्स करके बैठ गया! थोड़ी देर गुरूजी इधर-उधर की बात करते रहे फिर बोले--आनन्द नीचे एक लड़का आया है ...ये लड़का सही नहीं है इसके एक थप्पड़ मार कर आश्रम के बाहर निकाल देना, और गेट बंद कर देना ताकि ये यहाँ ना आये! ये काम मेरे लिए बहुत कठिन था, किसी से मारपीट करना मुझे जरा भी नहीं सुहाता...मगर अब में क्या करू?
मैंने कहा--जी प्रभु, में बिना मारे उसको बाहर निकाल दूँ!
गुरूजी नहीं--वो थप्पड़ की भाषा ही समझता है!
मैंने कहा--जी प्रभु! और मै नीचे आ गया!
नीचे आकर जब मैंने उस लड़के को देखा तो मेरी हिम्मत जवाब दे गई, ये लड़का तो मुझसे बहुत प्रेम करता है और बहुत अच्छा लड़का है...अब मै करू तो क्या करू? मै समझ गया कि गुरूजी ने परिक्षा का खेल शुरू कर दिया है! अब मै उसे थप्पड़ मरता हूँ तो भी पाप और ना मारू तो भी पाप.....करू तो क्या करू, मै गुरु चित्र के सामने ध्यान लगा कर प्रार्थना करने लगा कि प्रभु मुझे रास्ता दिखाओ कि मै इस परिक्षा में पास हो जाऊ!
अचानक मुझे ख्याल आया और मैंने मन ही मन गुरूजी से कहा—प्रभु मेरी अंतर आत्मा इस लड़के से गलत व्यवहार करने के लिए तैयार नहीं है, मगर मै केवल आपकी आज्ञा का ही पालन कर रहा हूँ इसलिए चाहे ये पाप हो या पुन्य सारी जिम्मेदारी केवल आपकी होगी ...मेरी नहीं, क्योकि मै दिल से तो इस लड़के के थप्पड़ मरना ही नहीं चाहता! अब मै लड़के के पास गया, तो लड़का मुझे देखकर बहुत खुश हुआ और बोला कैसे हो आनन्द जी?
मैंने उससे कहा--- तुम इसी वक्त आश्रम से बाहर चले जाओ....
लड़का—क्या बात हो गई आनन्द जी..आप गुस्से में क्यों है?
मैंने कहा—बकवास नहीं करना और तुरंत यहाँ से चले जाना ....
लड़का ----आप मुझे आश्रम से ऐसे-कैसे निकाल सकते हो?
मैंने अपना मन मजबूत किया और उसके एक धीरे से थप्पड़ लगा दिया और पकड़ कर गेट पर ले गया और बाहर निकाल कर गेट बंद कर दिया! मैंने चुपचाप उस लड़के को देखा तो उसकी आँखों में आंसू थे....मै भी नीचे हाल में जाकर बहुत रोया---कि प्रभु ये किसी परिक्षा...........
दूसरे दिन उसी लड़के का फोन आया और बोला—आनन्द जी मै रात भर सो नहीं सका हूँ बस मुझे इतना बतादो कि मेरा कसूर क्या था? मैंने कहा---तुम्हारा कोई कसूर नहीं था, ये गुरूजी ने मुझे आज्ञा दी थी..मैंने बहुत मजबूर होकर ऐसा किया, मुझे माफ कर देना....मैंने ये भी कहा—कि ये मेरी और तुम्हारी हम दोनों की परिक्षा थी..जो तुमने भी प्रतिक्रिया न करके पास करली और मैंने भी अपना ह्रदय गुरु जी के सामने खोल दिया....और अपना सच गुरु जी को बताकर मैंने भी ये परिक्षा पास करली....अब तुम चिंता ना करो, जब मन करे यहाँ आना!
नोट—प्रिय बन्धुओ हमारी मानवता को परखने के लिए गुरुदेव कैसी-कैसी परिक्षा लेते थे, मै आपको क्या बताऊ, गुरु का कर्तव्य है कि वो शिष्य की परिक्षा और शिष्य का भी कर्तव्य होता है कि वो परिक्षा दे और उसमे पास हो! गुरु को जितनी प्रसंसा स्वयं के हारने की होती है उतना ही दुःख स्वयं के जीतने का भी होता है! इसलिए मै आप सभी को सचेत करना चाहता हूँ कि आप सब सावधानी पूर्वक संसार में सबसे व्यवहार करे....क्योकि यहाँ हर दिल में गुरुदेव विराजमान है.....ये सौ प्रतिसत सत्य बोल रहा हूँ!
समाप्त
आज गुरु जी आश्रम में ही है, मगर ज्यादा लोगो को मालूम ना होने के कारण भीड़ बहुत कम है! सब लोग दोपहर का भोजन करके आराम कर रहे थे, इसलिए ना बाहर ज्यादा भीड़ थी और ना ही अंदर! मेरे पास गुरु जी का सन्देश आया कि आनन्द तुम्हे गुरूजी बुला रहे है! मै गुरूजी के पास ऊपर गया तो गुरु जी बड़े अच्छे मुड में बैठे थे...और जब गुरूजी अच्छे मुड में होते है तो कुछ ना कुछ शरारत जरुर करते है!
मै थोडा सावधान हो गया...चरण स्पर्स करके बैठ गया! थोड़ी देर गुरूजी इधर-उधर की बात करते रहे फिर बोले--आनन्द नीचे एक लड़का आया है ...ये लड़का सही नहीं है इसके एक थप्पड़ मार कर आश्रम के बाहर निकाल देना, और गेट बंद कर देना ताकि ये यहाँ ना आये! ये काम मेरे लिए बहुत कठिन था, किसी से मारपीट करना मुझे जरा भी नहीं सुहाता...मगर अब में क्या करू?
मैंने कहा--जी प्रभु, में बिना मारे उसको बाहर निकाल दूँ!
गुरूजी नहीं--वो थप्पड़ की भाषा ही समझता है!
मैंने कहा--जी प्रभु! और मै नीचे आ गया!
नीचे आकर जब मैंने उस लड़के को देखा तो मेरी हिम्मत जवाब दे गई, ये लड़का तो मुझसे बहुत प्रेम करता है और बहुत अच्छा लड़का है...अब मै करू तो क्या करू? मै समझ गया कि गुरूजी ने परिक्षा का खेल शुरू कर दिया है! अब मै उसे थप्पड़ मरता हूँ तो भी पाप और ना मारू तो भी पाप.....करू तो क्या करू, मै गुरु चित्र के सामने ध्यान लगा कर प्रार्थना करने लगा कि प्रभु मुझे रास्ता दिखाओ कि मै इस परिक्षा में पास हो जाऊ!
अचानक मुझे ख्याल आया और मैंने मन ही मन गुरूजी से कहा—प्रभु मेरी अंतर आत्मा इस लड़के से गलत व्यवहार करने के लिए तैयार नहीं है, मगर मै केवल आपकी आज्ञा का ही पालन कर रहा हूँ इसलिए चाहे ये पाप हो या पुन्य सारी जिम्मेदारी केवल आपकी होगी ...मेरी नहीं, क्योकि मै दिल से तो इस लड़के के थप्पड़ मरना ही नहीं चाहता! अब मै लड़के के पास गया, तो लड़का मुझे देखकर बहुत खुश हुआ और बोला कैसे हो आनन्द जी?
मैंने उससे कहा--- तुम इसी वक्त आश्रम से बाहर चले जाओ....
लड़का—क्या बात हो गई आनन्द जी..आप गुस्से में क्यों है?
मैंने कहा—बकवास नहीं करना और तुरंत यहाँ से चले जाना ....
लड़का ----आप मुझे आश्रम से ऐसे-कैसे निकाल सकते हो?
मैंने अपना मन मजबूत किया और उसके एक धीरे से थप्पड़ लगा दिया और पकड़ कर गेट पर ले गया और बाहर निकाल कर गेट बंद कर दिया! मैंने चुपचाप उस लड़के को देखा तो उसकी आँखों में आंसू थे....मै भी नीचे हाल में जाकर बहुत रोया---कि प्रभु ये किसी परिक्षा...........
दूसरे दिन उसी लड़के का फोन आया और बोला—आनन्द जी मै रात भर सो नहीं सका हूँ बस मुझे इतना बतादो कि मेरा कसूर क्या था? मैंने कहा---तुम्हारा कोई कसूर नहीं था, ये गुरूजी ने मुझे आज्ञा दी थी..मैंने बहुत मजबूर होकर ऐसा किया, मुझे माफ कर देना....मैंने ये भी कहा—कि ये मेरी और तुम्हारी हम दोनों की परिक्षा थी..जो तुमने भी प्रतिक्रिया न करके पास करली और मैंने भी अपना ह्रदय गुरु जी के सामने खोल दिया....और अपना सच गुरु जी को बताकर मैंने भी ये परिक्षा पास करली....अब तुम चिंता ना करो, जब मन करे यहाँ आना!
नोट—प्रिय बन्धुओ हमारी मानवता को परखने के लिए गुरुदेव कैसी-कैसी परिक्षा लेते थे, मै आपको क्या बताऊ, गुरु का कर्तव्य है कि वो शिष्य की परिक्षा और शिष्य का भी कर्तव्य होता है कि वो परिक्षा दे और उसमे पास हो! गुरु को जितनी प्रसंसा स्वयं के हारने की होती है उतना ही दुःख स्वयं के जीतने का भी होता है! इसलिए मै आप सभी को सचेत करना चाहता हूँ कि आप सब सावधानी पूर्वक संसार में सबसे व्यवहार करे....क्योकि यहाँ हर दिल में गुरुदेव विराजमान है.....ये सौ प्रतिसत सत्य बोल रहा हूँ!
समाप्त