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Thursday, March 29, 2012

IAM always with YOU dont worry be happy

तुम्हारे लिए तो मैं हर क्षण उपस्थित हूँ.
IAM always with YOU dont worry be happy 

मेरे जीवन का सृजन एक विशेष उद्देश्य, एक विशेष लक्ष्य, एक विशेष चिन्तन के लिए हुआ हैं, और मेरा जन्म कोई आकस्मिक घटना नहीं हैं, उसकी एक सार्थक उपस्थिति हैं, काल खण्ड की एक विशेष और विशिष्ट उपलब्धि हैं, जिसके सामने एक महत्वपूर्ण लक्ष्य, एक महत्वपूर्ण चिन्तन और एक महत्वपूर्ण धारणा हैं.

तुम मुझे मिलते हो, उन विशेष क्षणों में अपना सारा दुःख, अपना सारा दैन्य और अपनी सारी परेशानियां, और अपनी चिंताएं मुझे दे डालते हो, और मैं बदले में तुम्हें लौटा देता हूँ आनंद के क्षण, मस्ती के क्षण, नृत्य के क्षण!

इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि मैं हर क्षण तुम्हारे बीच उपस्थित हु, चाहे आप कही पर भी हो, अगर तुम अपने घर पर भी हो, और आँखें बंद करके मुझे अपने अन्दर उतारने का प्रयास करो, तो मैं तुम्हारे सामने जिवंत व्यक्तित्व बनकर उभर आता हूँ, बैठ जाता हूँ तुम्हारे पास, मुस्कराहट भर देता हूँ तुम्हारे जीवन में, और रोम रोम पुलकित हो उठता हैं तुम्हारा, सारा जीवन स्वतः ही थिरकने लग जाता हैं, मन आनंद के झूले पर झूलने लग जाता हैं, और तुम एक अजीब से खुमारी में भर जाते हो.

इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि तुम्हारे मेरे शारीरिक सम्बन्ध भले ही न हो, पर तुम्हारे और मेरे प्राणों के सम्बन्ध अवश्य हैं, और उन संबंधों को यह क्रूर दुनिया काट नहीं सकती, तुम्हारे मेरे आत्मा के संबंधों के बीच में तुम्हारे माँ बाप, भाई बहिन, पति पत्नी और समाज बाधक बनकर खड़ा नहीं रह सकता, क्योंकि तुम्हारे हृदय के तार मेरे हृदय के तारों से जुड़े हुए हैं, तुम्हारे प्राणों की झंकार मेरे हृदय की सितार से तरंगित होती हैं, तुम्हारे हृदय का कमल मेरे सुवास से महकता हैं, इसलिए कि तुम मेरे हो, और केवल मेरे हो!

प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती, प्रेम को शब्दों के माध्यम से बांधा भी नहीं जा सकता, प्रेम होंठों से कहने की बात ही नहीं हैं, यह तो एक थिरकन हैं, आनंद की अनुभूति हैं, जीवन की सितार के स्वर हैं, उसकी अपनी एक मिठास हैं, उसका अपना एक आनंद हैं, और यह आनंद तुम्हारे और मेरे बीच प्रगाढ़ता के साथ विद्यमान हैं, यह प्रेम की डोर हैं, जिसे तुम चाहकर के भी तोड़ नहीं सकते, जिसकी वजह से तुम चाह कर भी मुझ से अलग नहीं हो सकते, जिसकी वजह से तुम हर क्षण हर पल मुझ में खोये रहते हो, जब तुम कोई पुस्तक पढ़ रहे होते हो, तो मैं उस पुस्तक की पंक्तियों और अक्षरों के आगे आकर खड़ा हो जाता हूँ, जब तुम अकेले होते हो, तो मैं मुस्कुराता हुआ, तुम्हारे सामने बैठा हुआ मिलता हूँ, जब तुम एकांत में होते हो, तो मैं साकार सशरीर तुम्हारे सामने विद्यमान हो जाता हूँ!

मैंने अभी अभी बताया, कि मेरा जन्म मात्र घटना नहीं हैं, एक जीवंत सजग उपस्थिति हैं, मेरा शरीर शिष्यों के सन्देश का माध्यम हैं, मेरा जीवन शिष्यों को पूर्णता की और पहुँचाने की पगडण्डी हैं, आवश्यकता इस बात की हैं कि तुम अपने आप में चैतन्य हो सको, तुम अपने आप में प्राणश्चेतनायुक्त हो सको.


तुम्हारे और मेरे जीवन का यह पहला ही परिचय नहीं हैं, मैंने तुम्हें पहली बार ही नहीं पहिचाना हैं, तुम्हारे पिछले पच्चीस जन्मों का लेखा जोखा मेरे पास हैं, तुम्हारी पिछली पच्चीस जिंदगियों का हिसाब किताब मेरे खाते में लिखा हुआ हैं, इसीलिए मैं तुमसे बहुत अच्छी तरह से परिचित हूँ और हर बार मैं तुम्हें आवाज देता हूँ.

इसीलिए तो मैं कहता हूँ, कि मैं तुमसे अलग नहीं हूँ, इसलिए तो मैं कहता हूँ, कि तुम अपनी सारी चिंताएं मुझ पर छोड़ दो, तुम तो केवल नाचो, गाओ और मस्ती में झूमते रहो, जब भी जो कुछ हो रहा हैं, उसे होने दो, मैं अपने आप ठीक समय पर तुम्हारा हाथ थाम लूँगा, मैं सही क्षण पर तुम्हारी उंगली पकड़ कर पगडण्डी पर आगे बढ़ जाऊंगा, आवश्यकता इस बात की हैं, कि तुम समाज से बगावत कर सको, जरुरत इस बात की हैं, कि तुम अपनी जिंदगी के गन्दगी भरे क्षणों के विरुद्ध विद्रोह कर सको, जरुरत इस बात की हैं, कि तुम मेरे मन की भाषा पढ़ सको, मेरी आँखों के संगीत को सुन सको, मेरे हृदय की चैतन्यता में उत्सवमय हो सको, रसमय हो सको, प्रीतिमय हो सको, और छोड़ सको, अपने जीवन के दुःख, विषाद, कष्ट, आभाव और पीडाओं को.

और मुझे विश्वास हैं, कि जिस प्रकार से सुगंध हवा में लीन हो जाती हैं, जिस प्रकार से संगीत हवा में रसमय हो जाता हैं, उसी प्रकार से तुम मेरे प्राणों में, मेरे जिंदगी की धडकनों में समां सकोगे, क्योंकि मैं एक जीवंत गुरु हूँ, एक सप्राण व्यक्तित्व हूँ, मैं तुम्हारा हूँ, और तुम्हें अपने आप में आत्मसात करने के लिए आतुर हूँ, मैं हर क्षण हर पल तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारे सामने उपस्थित हूँ

(जनवरी 1990 से उद्धृत)

सस्नेह तुम्हारा

नारायण दत्त श्रीमाली

Friday, February 17, 2012

TOTKA VIGYAN

चाहे कोई प्रयोग कितना भी छोटा या बड़ा हो पर यदि वह आपके जीवन को आरामदायक बनाने में सहयोगी सा होता हैं तो उसे निश्चय ही जीवन में स्थान देना चाहिए . इसी तरह के कुछ प्रयोग आपके लिए ...
1. यदि हर बुधवार , एक पीला केला गाय को खिलाया जाये तो यह धन दायक होता हैं , आवश्यक यह हैं की इस कार्य का प्रारंभ , शुक्ल पक्ष से ही किया जाना चाहिए.
2. यदि धतूरे की जड़ को अपने कमर में बाँध लिया जाये तो यह जो व्यक्ति विशेष स्वपन दोष से पीड़ित हैं उनके लिए लाभदायक होगा.
3. सूर्योदय के पहले किसी भी चोराहे पर जाकर थोडा सा गुड चवा कर थूक दे फिर बिना किसी से बात करे बिना , नहीं पीछे देखे ओरअपने घर आ जाये , आपकी सिरदर्द की बीमारी में यह लाभदायक होगा .
4. अपने व्यापारिक स्थल को यदि वह उन्नति नहीं दे रहा हैं तो एक नीबू लेकर उसे अपने प्रतिष्ठान के चारों ओर घुमाएँ तथा बहार लाकर चार भाग में काट दे ओर फ़ेंक दे. आपकी उन्नति के लिए यही भी लाभदायक होगा.
5. किसी भी शुक्रवार को यदि तेल में थोडा सा गाय का गोबर मिला कर मालिश अपने शरीर की जाये फिर स्नान कर लिया जाये , तो यह व्यक्ति के विभिन्न दोषों को दूर करने में सहयोगी होता हैं .
6. सुबह उठ कर यदि थोडा सा आटा यदि चीटीयों के सामने डाल दे तो यह भी एक पूरे दिन का रक्षाकारक प्रयोग होता हैं .
7. यदि रवि पुष्प के दिन अपामार्ग के पौधे को विधि विधान से उखाड़ लाये ओर फिर तीन माला नवार्ण मंत्र जप करें, इसे पूजा स्थान या अपने व्यापारिक स्थान पर रखे आपके यहाँ धनागम में वृद्धि होगी .
8. परिवार में दोषों को समाप्त करने के लिए कुछ मीठा या मिठाई ओर उसके ऊपर थोडा सा मीठा पानी भी पीपल के वृक्ष की जड़ में अर्पित करे .
9. रविवार के दिन पीपल का वृक्ष नाछुये .
10. यदि व्यक्ति दोपहर के बाद यही पीपल के वृक्ष को स्पर्श करे तो व्यक्ति की अनेको बीमारी स्वतः ही नष्ट होती जाती हैं .
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Every prayog however big or small, if change person life for better than one must apply that, like that ,here some small prayog that will ease your life if applied with faith .
1. 1.each Wednesday , offer a yellow banana to cow this will increase you wealth and that should be start from moon waxing period.
2. Tie black dhaootura root around your waist gives to relief in night fall problem.
3. Before sun rise go to any square and through a little gud after chewing little first ,, and turn back without taking to any one, help to reduces headache.
4. To gain open closed business , taken one nibuu circled all the side of your business promises and after that cut in four piece and through that out.
5. On Friday if any one have massage with oil and little bit cow doung and than have a bath with water all his dosha will be removed.
6. While in the morning when you awake offer some aata( WHEAT FLOUR ) to ant (chiti), this will protect you all round.
7. On ravi pushy day take our chirchitta (apamarg) with full process and chant three round of navarn mantra and place that in your pooja room or your shop , finance incoming will increase.
8. To reduce tension offer some sweet or sweet water/ besan laddu to pepal tree after that add water on that this will very effective totaka.
9. Never touch pepal on Sunday ,
10. One touch pepal tree’s roots every after noon , his incurable illness get vanishes.

Thursday, February 2, 2012

THE DIVINE AND ANCIENT HERMITAGE " SIDDHASHRAM " by PARAMPUJYA GURUDEV NARAYAN DUTT

SIDDHASHRAM SADHAK PARIVAR MUMBAI , IS GROUP OF MUMBAI DISCIPLES OF PARAMHANSA NIKHILESHWARANDA JI WHO IS NONE OTHER THAN MAHAVISHNU NARAYAN KNOWN AS SADGURUDEV NARAYAN DUTT SHRIMALI IN HIS HOUSEHOLDER YOGI AVATAAR . TO KNOW THE LORD IS TO LOVE HIM ...TO LOVE HIM IS TO KNOW ONES OWN REAL SELF. HE IS EVERPRESENT TO GUIDE AND PROTECT LOVINGLY ALL HIS DEVOTED DISCIPLES FROM ALL WORDLY PROBLEMS AS WELL AS SPIRITUAL OBSTACLES AND FINALLY TAKE THE DISCIPLE TO THE DIVINE ASHRAM ....THE BILSS SEEPED "SI


WIDELY APPEARING TO HIS DISCIPLES AS LORD VISHNU IN THEIR MEDITATIONS PARAMPUJYA GURUDEV NARAYAN DUTT SPEAKS ON THE DIVINE AND ANCIENT HERMITAGE " SIDDHASHRAM "
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Wednesday, January 18, 2012

A Guru tests a disciple several times

A Guru tests a disciple several times before He gives the latter something. Before gold is moulded into a crown it is heated in strong fire time and again to purify it. Then it is beaten into sheets or drawn into wires but the gold does not in the least complain because it has full faith in the goldsmith. And the goldsmith transforms it into a crown that rests on the heads of not mortals but gods and goddesses. A Sadguru too subjects a disciple to the fire of His tests in order to make his mind pure....

________________________Dr. Narayan Dutt Shrimali______________________

Monday, January 16, 2012

Pakhandion against rogues and pithy discourse



दिब्य महोत्सव पर गुरुदेवजी का ठगों और पाखंडियों विरुद्ध सारगर्भित प्रवचन
अवस्य सुने :भाग-२
https://dl.dropbox.com/s/1sfwh9v059uhlil/02%20Track%202.mp3

दिब्य महोत्सव पर गुरुदेवजी का ठगों और पाखंडियों विरुद्ध सारगर्भित प्रवचन
अवस्य सुने :भाग-१
https://dl.dropbox.com/s/krpdbh6vhqnyqps/01%20Track%201.mp3


16 गुण बनाते हैं दमदार लीडर........- गुणवान (ज्ञानी व हुनरमंद)

- वीर्यवान (स्वस्थ्य, संयमी और हष्ट-पुष्ट)

- धर्मज्ञ (धर्म के साथ प्रेम, सेवा और मदद करने वाला)

- कृतज्ञ (विनम्रता और अपनत्व से भरा)

- सत्य (बोलने वाला ईमानदार)

- दृढ़प्रतिज्ञ (मजबूत हौंसले)

- सदाचारी (अच्छा व्यवहार, विचार)

- सभी प्राणियों का रक्षक (मददगार)

- विद्वान (बुद्धिमान और विवेक शील)

- सामर्थ्यशाली (सभी का भरोसा, समर्थन पाने वाला)

- प्रियदर्शन (खूबसूरत)

- मन पर अधिकार रखने वाला (धैर्यवान व व्यसन से मुक्त)

- क्रोध जीतने वाला (शांत और सहज)

- कांतिमान (अच्छा व्यक्तित्व)

- किसी की (निंदा न करने वाला सकारात्मक)

- युद्ध में जिसके क्रोधित होने पर देवता भी डरें (जागरूक, जोशीला, गलत बातों का विरोधी)

Sunday, January 8, 2012

Sun Gem Sadhana सूर्य मणि साधना

सूर्य मणि साधना –
सूर्य को आत्म भी कहते है ! क्यू के यह आत्मा के प्रकाश का प्रतीक है और सूर्य साधना जीवन को प्रकाशमान करती हुई साधक को साधना क्षेत्र में विशेष उच्ता प्रदान करती है ! बहुत सोभाग्यशालि साधक होते है जो सूर्य साधना को अपना कर अपना जीवन प्रकाश म्ये करते है ! सूर्य साधना के लिए विशेष कर मकर संक्राति का समय सभ से उचित है ! जिस दिन सूर्य भगवान जल राशि में परवेश करते है और हर साधक को विशेष प्र्सनता पार्डन करते हुए उसके जीवन को प्रकाश म्यी बनाते है !इस दिन आप सूर्य उद्ये से पूर्व उठे ईशनान करे फिर मन को पर्सन रखते हुए ये साधना करे इस से आप अपने में एक ञ तेज महसूस करेगे और जीवन में आने वाली वाधाओ पे विजय पाएगे सूर्य साधना जीवन में आपको एक नई दिशा प्रदान करेगी और इस के लिए आप को जो स्मगरी चाहिए सूर्य यंत्र एक माणिक का स्टोन ले ले और लाल हकीक की माला मूँगे की भी ले सकते है न मिले तो रुद्राश की माला से जप कर ले !
विधि --- सुबह उठ के ईशनान करे और लाल धोती पहन कर उद्ये होते सूर्य को प्रणाम करते हुये निम्न मंत्र का 21 वार जप करे !
मंत्र – सूर्य दर्शन मंत्र -
ॐ कनक वर्णग महा तेज्ग रत्न माले भूष्णग !
सर्व पाप पर्मुच्यते भरवासरे रवि दर्शनग !!

एक पुजा की थाली पहले तयार कर ले जिस में कुंकुम दीप लाल फूल नवेद के लिए गुड और यगोपावित आदि हो एक नारियल पनि वाला और दक्षणा के लिए कुश चेंज और अब सूर्य के सहमने लाल आसन पे बैठे आप का मुख सूर्य की तरफ होना चाहिए ! अब भूमि पर त्रिकोण वृत और चतुरसर मण्डल चन्दन से बनाए और उसका गंध अक्षत से पूजन कर उस पे अर्ग पात्र स्थाप्त करे और उस में निम्न मंत्र से जल डाले –
मंत्र – ॐ शन्नो देवी रभिष्ट्य आपो भावन्तु पीतये ! शन्ययो रविसर्वन्तु नः !!
उस जल में तीर्थों का आवाहन करे –
ॐ गंगे च जमुने चैव गोदावरि सरस्वती !
नर्मन्दे सिन्धु कावेरि जले गंग स्मिन सन्निधि करू !!
इस के बाद उस जल में गंध अक्षत कुक्म थोड़ा गुड डाल कर पूजन करे और निम्न मंत्र से सूर्य ध्यान करे
मंत्र –
अरुणो अरुण पंकजे निष्ण्ण: कमले अभीतिवरौ करैर्दधान: !
स्वरुचार्हितमण्डल सित्र्नेत्रोंरवि शताकुलं बतान्न !!

अब अर्ग दान करे –
ॐ एहि सूर्य सहस्रान्शों तेजो राशे जगत पते ,
अनुक्म्प्या मां भ्क्त्या ग्रेहाणार्घ्य दिवाकर !!

ॐ अदित्या नमः ॐ प्रभाकराये नमः ॐ दिवाकराये नमः !!
अर्घ दान के बाद आसन पे सूर्य की और विमुख हो कर बैठ जाए अपने सहमने एक ताँबे की पलेट में एक लाल फूल के उपर सूर्य यंत्र स्थापित करे उसके उपर माणक का स्टोन (रूबी )स्थापित करे यन्त्र का पूजन पंचौपचार से करे और संकल्प ले के मैं अपना नाम बोले ---- अपना गोत्र बोले गुरु स्वामी निखिलेश्वरा नन्द जी का शिष्य अपने जीवन की सभी नेयुंताओ को दूर करने और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए यह सूर्य मणि प्रयोग कर रहा हु हे गुरुदेव मुझे सफलता प्रदान करे जल भूमि पे शोड दे और फिर मूँगे जा हकीक जा रुद्राश माला से निम्न मंत्र की 21 माला जाप करे और जप पूर्ण होने पर नमस्कार कर उठ जाए जदी पहले और बाद में एक एक माला गुरु मंत्र की कर ले तो भी बहुत अशा है ! साधना के बाद उसी दिन यन्त्र और माला को जल परवाहित कर दे और माणक को अंगूठी में जड़ा कर पहिन ले इस तरह की अंगूठी पहले भी बना सकते है और अंगूठी को यन्त्र पे अर्पित कर साधना कर सकते है !आप स्व महसूस करेगे की ज़िंदगी में एक उतशाह और सफलता का ञ मार्ग मिल गया है!

मंत्र – ॐ ह्रीं घृणि सूर्य अदित्या ये नमः !!
इसके बाद भगवान सूर्य के 12 नाम मंत्र पढ़ते हुए नमसकर करे !
1 ॐ मित्राये नमः !
2 ॐ रविये नमः !
3 ॐ सूर्यये नमः !
4 ॐ भानुये नमः !
5 ॐ खगाये नमः !
6 ॐ पुष्णे नमः !
7 ॐ हिरण्यगर्भये नमः !
8 ॐ मरिचाये नमः !
9 ॐ आदित्याये नमः !
10 ॐ सावित्रे नमः !
11 ॐ आर्काय नमः !
12 ॐ भास्कराये नमः !

Important sadhana by Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji



Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji-Om Manipadme Hum








Saturday, December 31, 2011

What is the Tantra .. What is Kundalini

TANTRA KYA HAI ???
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तंत्र क्या है..कुंडलिनी क्या होती है....क्या होती है इसकी जाग्रत और सुप्त अवस्था....साधक कैसा होता है....और योगी कैसा होता है....क्या इन दोनों में कोई भेद है....क्या है दिव्या भूमि या देव भूमि....और सिद्ध स्थिति कैसी होती है....ऐसी कौन सी क्रिया हो सकती है जो उपरोक्त प्रश्नों को ना सिर्फ सुलझा दे बल्कि यथाचित वो उत्तर भी दे जो सर्व माननीय हो...
किसी भी चीज़ को समझने के लिए कम से कम आज के युग में ये बहुत जरुरी हो गया है की कही गयी बात के पीछे कोई ठोस तर्क काम करता हो और यही स्थिति आज तंत्र के क्षेत्र में भी बनी हुई है...अपनी अपनी जगह पे हम सब जानते हैं की कोई भी साधना शुरू करने से पहले हमे इस बात को जानने की जल्दी होती है की इससे लाभ क्या होगा...तो मेरा अध्ययन मुझे बताता है की तंत्र ही जीवन है, ये कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि एक ठोस ज्ञान है. ज्ञान केवल तब तक ज्ञान रहता है जब तक की वो पूरी तरह से आपकी पकड़ में नहीं आ जाता पर जैसे ही आप उसके अंश विशेष को जानकर उसे अपने आधीन कर लेते हैं तो वही ज्ञान...विज्ञान बन जाता है, वो विज्ञान जिसमें आपका जीवन परिवर्तन करने की क्षमता होती है. तंत्र भी एक ऐसा ही विज्ञान है पर हम इसमें विजयी हो सके उसके लिए जरूरी है कुंडलिनी जागरण. हम सब जानते हैं की हमारे शरीर में इड़ा (जो की चंद्र का प्रतीक है), पिंगला (जो सूर्य रूप में है) और सुष्मना (जो चन्द्र और सूर्य में समभाव स्थापित करती है) विधमान हैं जो क्रम अनुसार दक्षिण शक्ति, वाम शक्ति और मध्य शक्ति के रूप में हैं...और इन शक्तियों का त्रिकोण रूप में जो आधार बिंदु है वो शिव है पर ये बिंदु सिर्फ बोल देने से शिव रूप नहीं ले लेता इसके लिए तीनो त्रिकोनिये शक्तियों को जागृत होना पड़ता है अर्थात शिव तभी अपने चरम रूप में जाग्रत होते है जब तीनो शक्तियाँ जो की आदिशक्ति माँ काली, माँ तारा और माँ राजराजेश्वरी के रूप में हैं वो जागती हैं क्योकि शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं .माँ काली की जाग्रत अवस्था में शिव या बिंदु के शिवमय होने की प्रथम स्थिति है...पर इस वक्त शिव शव अर्थात क्रिया हीन रहते हैं...माँ तारा के जाग जाने से शिव अपने श्व्त्व में चरम रूप में होते हैं और राजराजेश्वरी माँ के जागने से शिव का श्व्त्व तो भंग हो जाता है पर वो निंद्रा में चले जाते हैं पर एक साधक के लिए ये पूरी प्रक्रिया कुंडलिनी जागरण ही होती है क्योकि इसमें भी नाभि कुंड में स्थापित कमलासन खुलता है पर राजराजेश्वरी माँ भगवती उसमें विराजमान नहीं होती वो विराजमान होती है गुरु कृपा से...और जब गुरु की कृपा दीक्षा या शक्तिपात से प्राप्त हो जाती है तो स्थिति बनती है आनंद की, विज्ञान की और फिर सत्य की...जिसे योगी अपनी भाषा में खंड, अखंड और महाखंड की अवस्थिति में वर्णित करते हैं....जहाँ हम में और हमारे इष्ट में कोई भेद नहीं होता है वो मैं और मैं वो बन जाते हैं....

गणेश मोहिनी साधना Ganesh siren Silence

गणेश मोहिनी साधना –
मोहिनी साधनए तो बहुत है इन सभी में गणेश मोहिनी साधना श्रेष्ट कही गई है वैसे तो मोहिनी साधनए अपना पूर्ण प्रभाव रखती है इन में से श्री गोरखनाथ मोहिनी ,शाह हजरत अली की सुलेमानी मोहिनी ,मोहमंद सहब की शाम कोर मोहिनी और पंज पीर मोहिनी प्रयोग वीर हनुमान मोहिनी रतड़ी मोहिनी बीबों मोहनी साबर साधनायों में बेमिसाल मानी गई है ! जहां मैं गणेश मोहिनी दे रहा हु यह मेरी अनुभूत साधना है ! ऐसी साधनाए मिलना भी सोभाग्य माना जाता है साबर साधना, साधना के हर पहलू को उजागर करती है! चाहे वोह वीर साधना हो जा यक्षणी साधना साबर तंत्र आश्चर्ज से भरा हुया है !साधना तो दे रहा हु पर किसी भी हालत में इसका गलत प्रयोग न करे अथवा परिणाम भी आपको भुगतने पड़ेगे मैं जहां साधको की जिज्ञाशा के लिए यह अनुभूत साधना दे रहा हु कोई भी तर्क कुतर्क माईने नहीं रखता क्यू के इसे मैं स्व परख कर ही दे रहा हु यह साधना मुझे वावा श्याम जी से प्राप्त हुई थी बहुत ही बेमिसाल साधना है! यह किसी भी असभव कार्य को सभव करने का बल रखती है !इसे करने के लिए अनुष्ठान करना पड़ता है यह एक दिन की साधना है !और इसे घर में नहीं करना है घर में करने से फलदायी नहीं होगी यह बात आप याद रखे !एक शकश था कनेडा में उसकी बेटी को उसी के जवाई ने जहर दे दिया था और उल्टा केश भी कर दिया था बेटी तो बच गई लेकिन केश का फैसला नहीं हो पा रहा था! वकील भी दलीले दे कर हार गया था तभी वोह मिला उस की समस्या के निवारण के लिए यह प्रयोग किया वहाँ के जज और वकील सभी समोहित हो गए थे और फैसला उसी के हक़ में हो गया और उसके जवाई को 18 बर्ष की कैद हो गई यह बात 2006 की है !इस लिए कोई ऐसा काम जो आपसे न हो पा रहा हो जैसे दफ्तर में नोकरी में प्रेशानी कोई उतपन करता है जा घर का महोल आपके अनुकूल नहीं है तो यह साधना राम बाण की तरह असर करती है !इस से किसी भी व्यक्ति को बश में कर अपना काम निकाला जा सकता है पर यह बात भी जरूर कहनी चहुगा किसी भी हालत में किसी लड़की की ज़िंदगी खराब न करे वरना इसका उलट असर भी हो जाता है !
विधि –इस के लिए स्मगरी ले उस में निम्न वस्तुए 10-10 रुपेए की लेकर मिला ले !
1 –स्लीरा
2-लाल चंदन पाउडर
3-सफ़ेद चंदन पाउडर
4 बादाम
5 शुयायारे
5 गिरि गोला
6 किसमिस
7 सरियाला
8 अगर
9 तगर
और जटा मासी और एक 1.50 किलो हवन स्मगरी आधा किलो तिल काले,
यह समान किसी भी पंसारी की दुकान से आसानी से मिल जाता है ! अगर कोई चीज न भी मिले तो भी कोई बात नहीं आप हवन में फूल मखाने और कमल गट्टे भी मिला सकते हो और एक कटोरी शकर और आधा किलो शुद्ध घी मिला कर समग्री तयार कर ले और इस हवन के लिए आम की लकड़ चाहिए अब किसी भी नजदीक जंगल में जा कर रात्री को गणपती का पूजन और उस के बाद 1100 आहुति देनी है इस मंत्र से ऐसा करने से साधना सीध हो जाती है हवन करते हुए इस बात का ख्याल रखे के जंगल को आग न लगे इस लिए जा तो निर्जन सथान जा नदी का किनारा भी बेहतर है !रात 9 व्जे के पहचान्त हवन शुरू करे इस में तीन घंटे से ज्यादा का समय लग जाता है ! भोग के लिए पाँच लड्डू रख ले और पुजा के पहचान्त साधना पूर्ण होने के बाद उहने वोही छोड़ दे और घर आ जाए जा जहां आपने स्टे की है वहाँ आ जाए ! स्ंदुर की एक डीबी साथ ले जाए और उसे खोल कर पास रख ले जब साधना पूर्ण हो जाए तो उसे साथ ले आए इस का तिलक सभी को समोहित कर देगा!
जहां एक बात जरूर कहनी चाहुगा कई लोग अपनी अनुकूलता के लिए साधना के नियम बना लेते है जब परिणाम सही नहीं मिलते तो साधना को गलत कह देते है इस लिए साधना में दिये हुये नियमो की पालना अनिवार्य है ! इसे किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगल वार करे !
साधना करने से पूर्व गुरु पूजन कर आज्ञा ले ले और फिर जंगल में जा कर रात 9 से 1 वजे तक साधना संम्पन कर ले इस में किसी प्रकार की हानी नहीं होती इस लिए सभी ड़र दिल से निकाल दे !
साबर मंत्र –
ॐ गणपती वीर वसे मसान ,जो मैं मांगु सो तुम आन !
पाँच लड्डू वा सिर संदूर त्रीभुवन मांगे चंपे के फूल!
अष्ट कुली नाग मोहा जो नाड़ी 72 कोठा मोहु !
इंदर की बैठी सभा मोहु आवती जावती ईस्त्री मोहु !
जाता जाता पुरुष मोहु ! डावा अंग वसे नर सिंह जीवने क्षेत्र पाला ये!
आवे मारकरनता सो जावी हमारे पाउ पड्न्ता!
गुरु की शक्ति हमारी भगती चलो मंत्र आदेश गुरुका !

Third Eye and Yoga तीसरा नेत्र और योग

तीसरा नेत्र और योग

भगवान शिव की ही तरह हर मनुष्य के दो समान नेत्रो के मध्य में तीसरा नेत्र होता है जिसके माध्यम से उसे वो सब दृश्य भी सहजता से दिखने लगते हैं जिन्हें साधारण आँखों से देख पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है क्योकि जरा सोच के देखिये यदि शिव का तीसरा नेत्र प्रलय लाने में सक्षम है तो इसमें कुछ तो ऐसी विशेषता और विलक्षणता होगी जो ये सहजता से हर किसी से के मस्तिष्क में जाग्रत नहीं होता.... इसको खोलने और कार्यरत करने के लिए जरूरत होती है एक लम्बे तथा कड़े अभ्यास की और उस से भी ज्यादा एक योग्य सद्गुरु की क्योकि सद्गुरु के बिना और कोई नहीं जानता की शरीर के किस हिस्से में कौन सा बिंदु स्थापित होता है और किस बिंदु को स्पर्श करने से ये सुप्त से जाग्रत अवस्था में आ जायेगा.
योग शास्त्र के अनुसार हमारे आज्ञा चक्र में ही कुल मिला के ३२ बिंदु होते हैं जिन्हें “ ज्योतिर्बिंदु “ कहा जाता है और आगे चल के इन ३२ बिंदुओं को १६-१६ समान भागो में बाँट दिया जाता है. ये १६-१६ बिंदु समान भाव से आध्यात्म और सांसारिक भाव का स्पष्टीकरण करते हैं. जो १६ बिंदु आध्यात्मिक भाव को प्रकट करते हैं उन्हें “ शक्ति बिंदु” कहा जाता है. अब जैसे की हम जानते हैं की शक्ति और शिव एक दुसरे के बिना अधूरे हैं तो ये जो शिव बिंदु है वो स्थापित होता है सद्गुरु के हाथ के अंगूठे में.....असल में हमारे आज्ञा चक्र की तरह ही गुरुदेव के हाथ के अंगूठे में भी ३२ बिंदु स्थापित होते हैं जिन्हें “ शिव “ की गणना दी जाती है.
अब प्रश्न ये आता है की इस शिव और शक्ति का योग कैसे हो तो उसका एक सीधा और सरल उपाय है सद्गुरु से “ उपनयन दीक्षा “ की प्राप्ति क्योकि इस दीक्षा के मिल जाने से हमारे अंदर की सारी त्रुटियाँ स्वतः ही खत्म होने लगती है और हमारे अंदर तीसरे नेत्र को जाग्रत करने के लिए अति आवश्यक क्रिया अपने आप होने लगती है जिसे तीन भागो में बांटा जा सकता है......
१- इच्छा शक्ति २- क्रिया शक्ति ३- ज्ञान शक्ति
ये इच्छा शक्ति प्रतीक है “ सद्गुरु “ की, क्रिया शक्ति नेतृत्व करती है “ मंत्र “ का और ज्ञान शक्ति से सार्थकता मिलती है “ साधना पद्धति “ को.
सद्गुरु द्वारा शिष्य के आज्ञा चक्र को छू लेने से जब शिव और शक्ति एक साथ कार्यरत होते हैं तो तांत्रिक कुंडलिनी योग के माध्यम से हमारा तीसरा नेत्र जाग्रत होने लगता है और हमें वो सब दिखने लगता है जो आम मनुष्य के लिए किसी और लोक की बाते है. इसी तरह लाया योग से हम अपने दिमाग को अपने नियंत्रण में कर सकते हैं जिससे एक बार देखि,सुनी या पढ़ी गयी चीजें फिर कभी नहीं भूलती. समाधि योग हमें उस परम सत्ता से एकाकार करा देता है और हम जीवन मृत्यु से मुक्त हो जाते हैं.

Mohini Devi मोहिनी देवी

मोहिनी देवी का अवतार भगवान विष्णु जी ने लिया था !जब शंकर जी ने भ्स्मा सुर को किसी को सिर पर हाथ रख कर भस्म करने की शक्ति प्रदान की तो वोह शंकर जी को कहने लगा के इस वारिदान का कैसे यकीन करू के यह शक्ति मुझ में आ गई है !तो शंकर जी ने कहा के परीक्षण करके देख लो तो उस ने कहा इस वक़्त तो आप ही पास हैं !इस लिए आप पर ही परीक्षण कर के देखता हु शंकर जी समझ गए और वहाँ से भैंसे का रूप धारण कर आगे आगे भागने लगे और एक परबत में टकर मार अपना सिर परबत में छुपा लिया जो के नेपाल जा कर निकला जहां भगवान पशुपति नाथ जी का मंदिर है !और जहां टकर मार के सिर छुपाया उस जगह को केदारनाथ जी के नाम से पुजा जाता है जहां पीठ पुजा होती है !और जब शंकर जी की आँख में अपनी यह साथिति देख आँसू टपक गए तो उन आंसूयों से रुद्राक्ष बृक्ष की उत्पाती हुई तब भगवान विष्णु जी ने मोहिनी अवतार लिया और भस्म सुर से कहाँ अब तो यह मर चुके है चलो इस का सोग मना लेते है फिर मैं तुम से शादी कर लूँगा तो वैन दल कर दोनों हाथो को पहले जंगों पे फिर छाती और अंत में सिर पर मार कर पीटने लगे जैसे आज भी औरते पीटती है तो सियापा (पीटना )वहाँ से शुरू हुया !जब भसमासुर का हाथ सिर पीआर गया तो भस्म हो गया इस तरहा इस अवतार में भगवान विष्णु जी ने शंकर जी को संकट से निकाला !
जब स्मून्दर मंथन के वक्त सूरो और असुरो में जंग होने लगी अमृत पाने के लिए तो भी भगवान इस रूप में आवृत हुए और अमृत का बंटन किया इस लिए मोहिनी एक श्रेष्ट विधा है !इस की ताव तो भगवान शंकर जी भी नहीं सहन कर पाये थे जब श्री भगवान शंकर जी ने मोहिनी रूप देखने की ईशा भगवान विष्णु जी से की तो भगवान ने सुंदर मोहिनी रूप धारा तो शंकर जी अपने आपको रूक नहीं पाये बीर्य पृथ्वी पे गिर गया !पृथ्वी उस की जलन से जलने लगी उस वक़्त अंजना माँ को एक ऋषि का श्राप मिला था के तुम कुमारी माँ बनोगी तो माँ अंजना ने अपने आपको एक बड़े से मटके में बंद कर लिया जिस में उपर एक छेद्ध था तो पवन देव ने उस वीर्य को उठा के व्हा ज्ञ तो आवाज की माँ अंजना उस छेद्ध में कान लगा कर सुनने लगी तो पवन देव ने उस वीर्य को उस छेद्ध के जरिए प्रवेश क्र दिया जिस से हनुमान जी का जन्म हुया और जेबी उन हाथो को गोबर में साफ किया तो उस में गुरु गोरख नाथ जी की उतपती बताई जाती है !यह कथा मैंने कुश सन्यासी लोगो से सुनी थी जो नाथ संपर्दय के थे ! इस लिए मोहनी अवतार श्रेष्ट है इस की साधना भी श्रेष्ठ है

Mysterious power of Mantra 1मंत्र शक्ति गूढ़ार्थ १

मंत्र शक्ति गूढ़ार्थ १
“शून्य” एक ऐसी सत्ता है जिसमें यदि पूरा ब्रह्मांड भी विलीन हो जाए तो उसे रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ेगा....पता है क्यों?? क्योकि ये एकमात्र ऐसी आधारभूत शक्ति है जिसके ना होने से पीछे कुछ बचेगा ही नहीं क्योकि अंत के लिए आरम्भ आवश्यक है. इसी तरह हमारे शास्त्रों में वर्णित मंत्रो का महत्व है....वो भी बिलकुल शून्य की तरह है. आप मंत्र को कैसे उपयोग कर रहे हो इससे मंत्र सत्ता को कोई फर्क नहीं पड़ता पर हाँ हमें इस बात से फर्क जरूर पड़ता है की वो मंत्र हमारे लिए कैसी स्थिति उत्पन्न कर रहे है या कर सकते है क्योकि हम जानते है की मंत्र शिव और शक्ति का मिलन है जो प्रतीक है उत्थान का और विध्वंस का भी .....
शिव और शक्ति की तरह मंत्र और सिद्धी भी एक साथ जुड़े हुए हैं....इसिलए यदि सिद्धी चाहिए तो इनसे जुड़े कुछ नियमों का पालन करना ही पड़ेगा क्योकि इनकी शक्ति अतुलनीय होती है. पिछले अंक में हमने जाना था कि मंत्र होते क्या है...इन्हें शक्ति कहाँ से प्राप्त होती है....उनका उच्चारण गोपन होना चाहिए या स्फुट. आज हम देखेंगे कि वेदोक्त और साबर मंत्रो को करने की विधि क्या होती है....और इनको करते समय किन तथ्यों को ध्यान में रखा जाता है.
किसी भी कार्य को करने से पहले उसकी भाव-भूमि का होना अति अनिवार्य है...क्योकि भाव से कल्पना जन्म लेती है और कल्पना से सच्चाई. ठीक इसी तरह किसी भी मंत्र को करने से पहले आपके भाव स्पष्ट होने चाहिए. श्मसान में यदि साधना के लिए बैठना है तो खुद मृत्यु बनना पड़ेगा तभी विजय हमारा वरण करेगी. ऐसी ही स्थिति होती है जब हम साबर मंत्रो को सिद्ध करने के लिए साधनारत होते है क्योकि इन मंत्रो को सिद्ध करना तलवार की धार पर चलने के समान है. जितनी सच्चाई इस बात में है कि ये मंत्र बहुत जल्दी सिद्ध होते है उतना ही बड़ा सच ये है कि किंचित मात्र भी यदि कहीं कोई त्रुटि रह गई तो.......तो खेल खत्म.
इसीलिए यदि आप पूरी तरह इनके प्रयोग के लिए सुनिश्चित नहीं हो तो इनका परीक्षण कभी ना करें और यदि कर रहे हो तो आपमें धैर्य होना अति आवश्य है.....तेज़ी आपके लिए हानिकारक हो सकती है. साबर मंत्रो में वाम मार्गी साधना का बहुत महत्व है पर वेदोक्त मंत्रो की तरह इनमें मांस और मदिरा का प्रयोग वर्जित है.....और एक और खास बात जहाँ साबर मंत्र सिद्ध किये जाए वहाँ वेदोक्त मंत्र कभी सिद्ध नहीं करने चाहिए. दोनों के लिए अलग अलग स्थान का चयन करना चाहिय क्योकि वेदोक्त मंत्रो के साथ साबर मंत्र कभी सिद्ध नहीं होते और कभी कभी तो विपरीत उर्जा के घर्षण से परिणाम विपरीत हो सकता है.
इसलिए इन मंत्रो को पुस्तकों से प्राप्त कर सिद्ध नहीं किया जा सकता.....इसके लिए आवश्कता होती है योग्य गुरु की क्योकि साधना का मार्ग कोई आसान मार्ग नहीं है.....इसमें बीच का कुछ नहीं होता ......या तो इस पार या उस पार.

मंत्र शक्ति गूढ़ार्थ
हमारे द्वारा बोले गये हर शब्द की अपनी एक सत्ता होती है क्योकि शब्द ब्रह्म होते है और ब्रह्म अटल होता है. जैसे एक एक वर्ण के सुमेल से एक निश्चित अर्थपूर्ण स्थति जन्म लेती है वैसे ही एक एक वर्ण के शिव और शक्ति के स्वरूप में मिलन से उत्पन होते हैं “ मंत्र “ जिनमें हमारे जीवन को बदलने की क्षमता होती है क्योकि मंत्र मात्र शब्दों की एक श्रंखला को नहीं कहते......इनमें प्राण ऊर्जा होती है क्योकि ये शिव,शक्ति और अणुओं के संयोजन से बनते हैं ,जो की आधार हैं सृजन और संहार का, इसी वजह से इनमें भोग और मोक्ष दोनों देने की क्षमता होती है.
अब प्रश्न आता है की मंत्रो का रूप कैसा होता है? ये आकारात्म्क होते हैं या निराकार? और कार्य को करने की शक्ति इन्हें कहाँ से प्राप्त होती है? तो सदगुरुदेव ने इन् प्रश्नों का उत्तर बहुत ही सरल भाषा में समझाया है की देह मलीनता युक्त होती है इसलिए दिव्यता इसमें वास नहीं कर सकती अब चूँकि मंत्र देव भूमि से संबंधित होते है तो ये आकार रहित होते हैं और इन्हें शक्ति मिलती है हमारे अन्तश्चेतन मन से क्योकि आसन पर बैठते ही साधक साधरण से खास और मनुष्य से देव और अंत में शव से शिव बन जाता है इसलिए जैसे ही साधक अपनी साधना प्रारम्भ करता है तो उसकी अन्तश्चेतना से एकाकार करके मंत्र प्राणमय हो जाता है.
पर इस बात को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए की हर किसी में अन्तश्चेतना एक जैसे जाग्रत नहीं होती. किसी में इसका स्तर कम होता है, किसी में ज्यादा तो किसी में ना के बराबर. तो क्या इसका अर्थ ये हुआ की जिसकी अन्तश्चेतना कम जाग्रत है वो मंत्र को प्राण ऊर्जा दे ही नहीं सकता?......नहीं, ऐसा नहीं है पर इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें मंत्रो की किस्मों और उच्चारण की विधि को समझना होगा. मंत्र आम तोर पर तीन किस्म के होते हैं –
वेदोक्त मंत्र, सर्वविदित मंत्र, और साबर मंत्र........पर इनमें से पहले और तीसरे क्रम को ज्यादा महत्व दिया जाता है. अब क्योकि साबर मंत्र “ मंत्र और तंत्र “ से मिलकर बनते है तो इन्हें सिद्ध करना आसान होता है पर इसके बिलकुल विपरीत वेदोक्त मंत्रो को सिद्ध करने के लिए साधक में धैर्य और विश्वास का होना अति आवश्यक है क्योकि इन मंत्रो का आधार ध्वनि होती है. उच्चारण ध्वनि में लेशमात्र भेदभाव इन्हें अर्थहीन बना देता है. इसीलिए इनमें ध्वनि के महत्व को समझते हुए हमारे ऋषिमुनियों ने ध्वनि के आधार पर इन मंत्रो को दो भागो में बांटा है- “गोपन मंत्र” अर्थात चित युक्त मंत्र और “स्फुट मंत्र” मतलब ध्वनि युक्त मंत्र. चित युक्त मंत्रो में साधक को मंत्र का उच्चारण मन ही मन में करना चाहिए पर ध्यान रखिये इसके लिए आपकी अन्तश्चेतना का पूरी तरह से जाग्रत होना अति आवश्यक है जिससे की आपकी आत्मा आपके मंत्र को सुन पाए. इसके उल्ट स्फुट मंत्रो में मंत्र का उच्चारण ध्वनि के साथ किया जाता है ताकि हम अपनी अंतर आत्मा के साथ मंत्र का सामंजस्य बिठा सकें और वो मंत्र हमें सिद्ध हो सके. इसीलिए ये जरूरी है की मंत्र हमेशा सदगुरुदेव से ही प्राप्त करना चाहिए जिससे की उसको विधिपूर्वक सिद्ध करके लाभ लिया जा सके

Happy new Year 2012

नव वर्ष पर आप सभी गुरुभाई और गुरुबहिनो को हार्दिक मंगलकामनायें....

!! श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः !!
जय गुरुदेव!

आइये करे गुरु की खोज.....

जो हम ही में, हमारे हृदय में हैं.....

जिन खोजा तिन पाईया, गहरे पानी पैठ...

आज शायद लोगो के लिए गुरु शब्द का अर्थ सिर्फ एक संत हो गया हैं. मगर गुरु की वास्तविकता तभी ही समझी जा सकती हैं, जब उस गुरु की शिष्यता में आकंठ डूब जाए. सब छोड़ कर गुरु ही याद रहे. मुझे सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी की इस सन्दर्भ में कुछ लाइने याद आती हैं....
जब गुरु गोरखनाथ से पहली बार उसके गुरु ने पूछा कि:
गुरु : "आपका काम क्या हैं?"
गोरखनाथ : "गुरु सेवा"
गुरु : "आपका नाम क्या हैं?"
गोरखनाथ : "शिष्य"

उन्होंने हर वो बात कहीं जो सिर्फ गुरु और शिष्य के रिश्ते पर आधारित होती थी.
मतलब वे गुरु के रंग में ही रंग गए थे, सब कुछ छोड़कर.

यह ही सदगुरुदेव का भी कहना हैं.... : "जो सब कुछ छोड़ सकता हैं, वही ही गुरु को पा सकता हैं."

और जो उसमें डूब जायेगा उसे पता होगा कि गुरु क्या हैं? कैसे हैं? क्या कर रहे हैं?

हकीकत तभी जानी जा सकती हैं जब उनके प्रेम में मीरा बन सकेंगे.

क्यूंकि समंदर की गहराई तो वही ही जान सकता हैं, जो समंदर में डुबकी लगा सकें.
जो गुरु के प्रेम में आकंठ नहीं डूबा वह नहीं जान सकता हैं.

तो सदगुरुदेव हम सभी को श्रेष्ठ बुद्धि दे कि हम सभी उनमें डूबता ही चले जायें.

क्यूंकि यही जिंदगी कि सबसे बड़ी सच्चाई होगी.

नव वर्ष पर आप सभी गुरुभाई और गुरुबहिनो को हार्दिक मंगलकामनायें....

आओ बनाये निखिल्मय, सिद्धाश्रम्मय इस जहाँ को.....Happy new Year 2012

Pupil guru the same way love used to love the way Shiva Markandeya

शिष्य गुरु से उसी प्रकार प्रेम करता है जिस प्रकार मार्कंडेय शिव से प्रेम करते थे | साधना का अर्थ ही है प्रेम ,आपने इष्ट से ,आपने गुरु से और उस प्रेम को व्यक्त करने की क्रिया में काल समय भी बाधक नहीं हो सकता ,ऐसा मार्कंडेय ने सिद्ध करके दिखा दिया |ऐसा ही प्रेम शिष्य का गुरु से हो |

शिष्य और गुरु के बीच में थोड़ी भी दूरी न हो | इतना शिष्य गुरु से एकाकार हो जाए कि कि फिर मुह से गुरु नाम या गुरु मंत्र का उच्चारण करना ही न पड़े | जिस प्रकार राधा के रोम-रोम में हमेशा कृष्ण -कृष्ण उच्चारित होता रहता था ,उसी प्रकार शिष्य के रोम-रोम से गुरु मंत्र उच्चारित होता रहे -सोते ,जागते ,चलते ,फिरते |

शिष्य को स्मरण रहे कि सदगुरुदेव सदा उसकी रक्षा के लिए तत्पर है |कोई क्षण नहीं जब सद्गुरु उसका ख़याल न रखते हो | जिस प्रकार हिरन्यकश्यप के लाख कुचक्रो के बाद भी प्रल्हाद का बाल भी बांका नहीं हुआ ,उसी प्रकार शिष्य के आस्था है तो कोई भी शक्ति उसका अहित नहीं कर सकती

संसार में सबकुछ क्षणभंगुर हैं ,सबकुछ नाशवान है केवल प्रेम ही शाश्वत है जो मरता नहीं जो जलता नहीं जो समाप्त नहीं होता |
जिसने प्रेम नहीं क्या उसका हृदय कमल विकसित हो ही नहीं सकता वह साधना कर ही नहीं सकता क्योंकि प्रेम ही जीवन का आधार है |
पर तुम्हारा प्रेम ,प्रेम नहीं ,वासना है ,क्षुद्रता है ,ओछापन है और फिर प्रेम शरीरगत नहीं आत्मगत होता है|
क्योंकि आत्मगत प्रेम ही प्रेम की पूर्णता ,सर्वोच्चता और श्रेष्ठता दे सकता है और ऐसा प्रेम सिर्फ गुरु से ही हो सकता है |
क्योंकि उसका और तुम्हारा सम्बन्ध शरीरगत नहीं विशुद्ध आत्मगत है |
यही साधना का पहला सोपान है |

गुरु और तुम में यही अंतर है की तुम हर हालत में दुखी होते हो जबकि गुरु को सुख दुःख दोनों ही व्याप्त नहीं होते ,वह दोनों से परे है और तुम्हे भी उस उच्चतम स्थिति पर ले जाकर खड़ा कर सकता है जहा दुःख ,पीडा तुम को प्रभावित कर ही न सके |

आप अपने को धन और वैभव पाकर सुखी मानने लगते है क्योंकि अभी आपने वास्तविक सुख को देखा ही नहीं |इन सुखो के पीछे भागकर आप अंत में दुःख ही पाते है |भोग से दुःख ही पैदा हो सकता है जबकि गुरु तुम्हे उस सुख से परिचित करना चाहता है जी आंतरिक है जो स्थायी है |

तुम सोचते हो की शादी करके सुखी होंगे या धन प्राप्त करके सुखी होंगे |सुख तो उसी क्षण पर संभव है वह धन पर निर्भर नहीं है |वह वास्तविक आनंद तुमने नहीं देखा इसलिए तुम धन को ही सुख मान बैठे हो जबकि उससे केवल दुःख ही प्राप्त होता है |

वास्तविक सुख तुम्हे तभी प्राप्त हो सकता है जब तुम अपने आप को पूर्ण रूप से गुरु में समाहित कर दोगे और वह हो गया तो फिर तुम्हारे जीवन में कोई अभाव रह ही नहीं सकता ,धन तो एक छोटी सी चीज है |पूर्णता तक तुम्हे कोई पहुंचा सकता है तो वह केवल गुरु है |

गुरु के सामने सभी देवी -देवता हाथ बांधे खड़े रहते है वह चाहे तो क्षण मात्र में तुम्हारे सभी कष्टों को दूर कर दे |??तो करता क्यों नहीं ?गुरु तो हर क्षण तैयार है तुममें ही समर्पण की कमी है ,जिस क्षण गुरु को तुमने अपने हृदय में स्थापित कर लिया उस क्षण से दुःख तुम्हारे जीवन में प्रवेश कर ही नहीं सकता |


तुम्हारा गुरुदेव,
नारायण दत्त श्रीमाली

Thursday, December 22, 2011

A Love Song... A Wish... A Prayer..





34 Dedication Adilok visit Loca | समर्पण –34 लोका अधिलोक यात्रा

समर्पण –34 लोका अधिलोक यात्रा –
अब तक किताबों में पड़ा था के इस पृथ्वी के इलावा ब्रह्मांड में और भी लोक है !इंसान बिना देखे कभी यकीन नहीं कर सकता 1996 में मैं जब चंडीगड़ था !पूरा स्म्य साधना में गुजरता था सद्गुरुदेव की विशेष कृपा ही थी उनकी तरफ से बराबर दिशा निर्देश मिल जाते थे !एक दिन उनहो ने एक दिव्य मंत्र दिया और कहा इस मंत्र का जप लाल वस्त्र औड कर करो मैंने निहिचित समय पे मंत्र जप शुरू किया शुरू में शरीर में काफी गर्मी बढ़ गई फिर एक दम से शरीर सुन सा हो गया जैसे समाधि में होता है और पता ही नहीं चला ध्यान कभ ब्रह्मांड को चीरता हुया मेरा शरीर
(सूक्षम शरीर ) एक महल के एक बहुत बड़े दरवाजे के आगे पहुँच गया उस किले नुमा दरवाजे में परवेश करने ही वाला था और व्हा के दो पहरोदारों ने मुझे पकड़ लिया उन के हाथो में दो भाले से थे और वस्त्रो में राजसी लग रहे थे सिर पे लाल रंग अधिकता लिए हुए मुकट से थे जैसे किसी राजा के सैनिक हो और कहा परवेश किए जा रहे हो दोनों ने मुझे पकड़ लिया तभी मैंने सद्गुरु जी को याद किया और सद्गुरु जी उसी वक़्त प्रकट हुए और उन्हे मुझे छोडने को कहा वोह मुझे छोड़ कर एक तरफ हो गए और गुरु जी ने मुझे महल के अंदर परवेश करने का इशारा किया और खुद अधृष्ट हो गए मैंने परवेश किया और देखा बहुत ही भव्य महल था मणियो से प्रकाश निकल कर महल को रोशन कर रहा था और आगे बहुत बड़ा हाल था जिस में एक तरफ बैठने के लिए तख्त से थे और चारो और फूलो के गमले से रखे थे जो अजीब किसम के थे तभी सहमने से कुश लोग आते दिखाई दिये और उनहो ने मेरा स्वागत किया और मुझे एक आसन पे बैठाया और तभी एक राजा जैसा वियाकती आता दिखाई दिया उसने भी मुझे बहुत स्तीकार दिया और वहाँ बहुत सी बाते की और कई विषों पे चर्चा चलती रही और फिर मैंने सहमने बैठे एक ऋषि जैसे वियक्ति से पूछा यह कोण सा लोक है तो उसने बताया तुम इस वक़्त सूर्य लोक की भास्कर नगरी में हो और यह भास्कर नगरी के राजा नेत्र सैन का महल है !और मुझे मुझे यह रहस्य पहली वार अनुभव हुया के गुरु जी इस पृथ्वी लोक के इलावा अन्य लोगो की चिंता भी करते है और अन्य लोगो में भी उनके शिष्य हैं ! जब आँख खुली तो तीन घंटे बीत गए थे !फिर एक दिन नेत्र सैन जी मुझे मिलने आए और काफी चिंतक लग रहे थे !क्यू के निकट भविष्य में सूर्य ग्रहण था जिस का केंद्र भास्कर नगरी था मैंने उन्हे काफी आश्वाश्न दिया सूर्य ग्रहण के वक़्त वहाँ फिर जाना हुया और पहली वार देखा गुरु जी इस ग्रह के इलावा और लोगो में भी साधना शिवर आयोजन करते थे और व्हा के शिवर जहां से बहुत उच कोटी के थे !मुझे सद्गुरु जी की कृपा से वहाँ भाग लेने का अवसर मिला यह बाते भले ही पड़ने में अटपटी लगे लेकिन मैं उस रहस्य से वाकिव हो गया था के मुझे झन भेजने के पीछे सद्गुरु जी का क्या प्रयोजन था उस ग्रह की गरिमा और साधना अनुभव मैंने आज भी सँजो कर रखे है जो साधारण साधक को विस्मिक करने वाले है !मानो तो सभ कुश है नहीं तो कुश भी नहीं सरधा और विश्वश साधक को एक नए रहस्य से जोड़ देते है जिस पे यकीन करना आसान नहीं होता पर सत्य तो सत्य है जिसे कभी झुठलाया नहीं जा सकता !क्र्शम !!


Mein Garbhasth Baalak Ko Chetna Deta Hoon

 Mein Garbhasth Baalak Ko Chetna Deta Hoon:मे गर्वस्थ वालकको चेतना देता हुँ :


Listen to Mein Garbhasth Baalak Ko Chetna Deta Hoon in the original voice of Revered Sadgurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali.



1.   Mein Garbhasth Baalak Ko Chetna Deta Hoon  (Part 1):



2.   Mein Garbhasth Baalak Ko Chetna Deta Hoon  (Part 2):


Sunday, December 18, 2011

Hypnosis System | सम्मोहन तंत्र

सम्मोहन तंत्र


जीवन में सफलता पाने की चाह किसे नही होती, पर क्या सफलता इतने आसानी से मिल पति है , शायद नही न. आख़िर क्यूँ?????? सफलता की कीमत क्या है !!! क्या सिर्फ़ धन से,ऊँचे कद से,सुंदर चेहरे से सफलता मिलती है ??? नही ऐसा नही है!!! आत्मबल की , दरिन  इच्छा  शक्ति  की  , और  ये  सब  प्राप्त  होता  है  सम्मोहन  शक्ति  के  द्वारा । यदि  आप  में  सम्मोहन  शक्ति  जाग्रत  है  तो  सफलता  आपसे  दूर  रह  ही  नहीं  सकती ,फिर  चाहे  वो  आपके  ऑफिस  में  आपका  बॉस  हो ,आपका  जीवन  साथी  हो , आपका  प्यार  हो  ,आपका  ग्राहक  हो  ,कोई  नेता  हो  ,अभिनेता  हो  या  फिर  कोई  आम  आदमी  , इस  शक्ति  के  सामने  किसी  की  भी  दाल   नहीं  गलती . आप     अपने  सभी  सदुद्देश्य  इस  शक्ति  के  द्वारा  पूरे  कर  सकते  हैं  .

शायद  आपको  पता  नहीं  होगा  की  रूसो  रास्पुटिन  ने  इसी  शक्ति  के  बल  पर  रूस  पर  शासन  किया  .एक  सामान्य  से  चरवाहे  ने  उस  विशाल  राज्य  को  अपना  गुलाम  ही  बना  लिया . क्या  आपको  ये  लगता  है  की  सिर्फ  सम्मोहित  करने  का  गुण  ही  इस  शक्ति  के  द्वारा  मिल  पता  है  तो  ये  मात्र  आपकी  गलत -फहमी  है  ,क्यूंकि  इस  शक्ति  के  विविध  आयाम  हैं , जैसे  की  आरोग्य , धन  और  पूर्णता  भी  इसी  शक्ति  की  अनुगामी  उप्शाक्तियाँ  हैं . अश्तादास  सिद्धियों  में  से  एक  वशित्व  सिद्धि  का  ही  ये  एक  रूप  है . अपर  शक्ति  का   ये आधार  है . अधिकांश  साधक  जिन्होंने  अप्सरा , यक्षिणी  की  साधना  की  हैं , उन्हें  प्रतायाक्षिकरण  तो  दूर  कोई  अनुभूति  भी  नहीं  होती  क्या  आपने  सोचा  है  की  जो  साधक  सफल  हुए  हैं  उनमे  क्या  विशेषता  है , शायद  आपने  कभी  ध्यान  ही  नहीं  दिया  होगा .

बस  साधना  की  सत्यता  पर  इल्जाम  दाल  कर  और  इन  साधनों  को  कपोल  कल्पित  कह  कर  अपने  कर्त्तव्य  की  आईटीआई  श्री  कर  लेते  हैं , पर  ये  तो  अपनी  कमियों  को  नजर -अंदाज  ही  कर्म  है  . सम्मोहन  की  उच्चावस्था  में  ये  प्रताय्क्षिकरण  की  घटना  तो  सामान्य  बात  हो  जाती  है , फिर  चाहे  वो  अप्सरा  हो , यक्षिणी  हो , लक्ष्मी  हो  या  अन्य  कोई  भी  शक्ति  , सम्मोहन  के  पाश  में  आबद्ध  होकर  सामने  हाथ  बाँध  कर  कड़ी  होती  हैं , सामान्य  मानव  की  तो  बात  ही  छोड़  दीजिये . भले  ही  आपको  ये  बातें  अतिशियोक्ति  पूर्ण  लगे  पर  ये  सत्य  है  , इस  सत्य  को  मैंने  सदगुरुदेव  के  आशीर्वाद  से  मैंने  ग . क्यूंकि  आंतरिक  की मिया  करने  के  बाद  धात्विक  की मिया  तो  सामान्य  बात  ही  रह  जाती  है ।

सम्मोहन तंत्र , सामान्य त्राटक अभ्यास से भिन्न ही है . क्यूंकि सामान्य त्राटक के क्रम को करते हुए सफलता प्राप्त करने के लिए लम्बी अवधि लगती है और सतत अभ्यास भी वाही ताँता का आश्रय लेने पर ये दुर्लभ घटना शीघ्र ही आपके साधक जीवन में घटित होती ही है . हाँ इसके लिए एक व्यवस्थित जीवन चर्या का पालन थोड़े दिन तो करना ही पड़ता है और यही साधक जीवन की मर्यादा भी है .तभी तो आपकी मनोवांछित शक्ति अपने वरद हस्त को आपके शीश पर रख पूर्णता और सफलता का आशीष देते हुए आपको धनवान व गौरव प्रदान करती हैं. ये सूत्र किताबों में लिखे हुए नही हैं ये तो सिद्धाश्रम की दिव्या चेतना से आप्लावित दिव्या मंत्र हैं जो वहां के योगियों के मध्य ही प्रचलित हैं. हम शायद ये बार बार भूल जाते हैं की हम भी उसी दिव्या भूमि ,उसी परम्परा से जुड़े हुए हैं , हम सभी में भी वही का बीज बोया गया है, अब हम उसेसध्नाओं द्वारा अंकुरित न करें तो ये हमारी कमी है.

५० भस्त्रिका का नित्य अभ्यास आपकी जड़ता को समाप्त कर शरीर को चैतन्य करता है.ये क्रिया नित्य होनी ही चाहिए.

साथ ही शरीर सिद्धि मन्त्र का गुरु द्वारा निर्देशित संख्या में जप करना चाहिए .प्रथम दिवस यही क्रियाएँ होती है.

दूसरे दिन सुषुम्ना नाडी के जागरण के लिए आत्म सिद्धि मंत्र का जप किया जाता है. कल वाला मंत्र भी इसके साथ अनिवार्य ही है. पहले प्रथम दिन का मंत्र जप फिर दूसरे दिवस का मंत्र जप. क्यूंकि शुशुमना नाडी के भेदन के बाद ही सम्मोहन शक्ति का प्रस्फुटन आपमें होता है और आपका चेहरा ओज से आभा से भर जाता है. आपमें दिव्या दृष्टि का उद्भव होता है .

तीसरे दिन चक्र जागरण साधना संपन करनी होती है जिसके द्वारा सम्मोहन मात्र आपके चेहरे पर न होकर समस्त शरीर में प्रसारित हो जाता है , तब आपके स्पर्श मात्र से सामने वाला सम्मोहित हो जाता है.इसके पहले का क्रम वाही रहेगा जो पहले दिन का था.

चौथे दिन अन्तर साधना मंत्र का जप किया जाता पहले के क्रम को संयुक्त करके.इसके बाद साधक में इतनी सामर्थ्यता आती ही की वो वांछित शक्ति को अपने सम्मोहन बल में बाँध कर आवाहित कर सके.

पाँचवे दिन स्वसम्मोहन सिद्धि मंत्र का जप अन्य मंत्रों के साथ किया जाता है .ये संपूर्ण क्रिया २४ दिनों की होती है यदि इस विश्व में कोई सबसे कठिन काम है तो वो अपने आपको अपने अनुकूल बनाना और जैसे ही ये क्रिया होती है ,आपमें चुम्कत्व पैदा होता है अन्य सभी लोहे की भांति आपके आकर्षण छेत्र में आ ही जाते हैं और आप अपनी कमियों को आत्म-निर्देश देकर समाप्त कर सकते हैं और अपने गुणों को और ज्यादा शक्तिशाली कर सकते हैं. यदि आगे इन मंत्रों को लगातार किया जाए तो वशित्व सिद्धि की प्राप्ति होती ही है. याद रखिये सम्मोहन का अर्थ ही होता है ख़ुद को ही मोहित करना यानिकी स्वयं की चेतना को आकर्षित कर परम चेतना से मिला देना. यदि हम २४ घंटे चुम्बकीय शक्ति से युक्त रहेंगे तो हमसे मिलने वाला कैसा भी व्यक्ति हो हमारे सद्वाक्यों को कभी नही ताल सकता. और उच्चावस्था में दिव्या शक्तियां भी हमारे प्रभाव क्षेत्र में आबद्ध हो जातियो हैं. फिर हमारे पास यदि किसी का फोटो भी हो या हमारे मश्तिष्क में किसी का बिम्ब भी हो तो उस व्यक्ति या शक्ति को सम्मोहित कर अप्नेअनुकूल किया जा सकता है, या किसी रोगी के कष्टों को दूर किया जा सकता है . यही क्रिया तिब्बत में बोध-संवहन- विधि कहलाती है. ये मंत्र दुलभ जरूर हैं पर अप्राप्य नही. सद्गुरु के चरणों में प्रार्थना कर हम पूर्ण सम्मोहन प्राप्ति दीक्षा पायें और इन मंत्रों को प्राप्त कर असंभव को भी सम्भव कर सकें. जब हम दिव्यता को पा सकते है तो फिर गिद्गिदाकर अपने आत्म-सम्मान को क्यूँ अपने ही पैरों के नीचे कुचलें या औरों को क्यूँ कुचलने दे. तभी तो कहते हैं न की जिद करो और दुनिया बदलो।

Sammohan Tantra

Who do not will to gain success in the life, but is it possible to gain success so easily? Probably no. why so..???? What is the payment for the success!! Could success be gained with money, prosperity, beautiful face? No! Never like that.

You just watch few peoples name like Mahatma Gandhi, Sukrat, Arastu etc. All these people are famous for their fame, success and achievements in whole world. Hence now it has been proved through this that only good faces can not make you achieve success. Dear all, to achieve success, the basic requisition is self determination, the will of achieving, and all these could be gain through sammohan power। If your sammohan power is awaken, then success can not stay far from you anymore, rather it may be boss of your office, your spouse, your love, your customer, any leader, actor may be, or may be a normal human being, before this power no one is able to horn. You can complete all your desires which you are willing to make with this power.

Perhaps many might not be aware that Ruso Rasputin ruled on Roos with the help of this power only. A normal cowboy made the whole kingdom in his hand. It is only your misconception if you think that you can only hypnotize someone through this power, because this power has various steps, like health, wealth and totality are some of the following powers with sammohan. Meanwhile this is only a form of a Vashitva Siddhi which is among 18 siddhis. This is a base of apara shakti. Many sadhak who try to accomplish apsara or yakshini sadhana they do not get apsara or yakshini before them rather they do not even experience anything during sadhana. Have you ever thought that the sadhak, who gained success in that sadhana; how they differ? May be you haven’t ever marked this thing.

Then people blame on authenticity of the sadhanas and be thorugh with their belongings of routine life, but this is to just avoiding of our faults. In the higher stage of this sammohan power, such things are very much normal to accomplish after all it may be yakshini, apsara, lakshmi or any other shakti , they just be with holded hand to you bowing down to your power. Leave the normal beings, they will feel all these things over through heads, with the blessing of our beloved Sadgurudev , I have applied this in my life and achieved success. That’s why I am negotiating the Inner alchemy to you today because after pursuing Inner alchemy, our alchemy is too much easy to do.

Sammohan tantra is different from normal tantra study. Because to achieve success with practice of normal tantra takes a little more time and it requires having continuity in the process but this thing may happen to you in small span of time. Yes. For this, you need to go through a special schedule and this is a limitation of sadhak’s life3.

That’s why your desired power blesses you by placing its hand on your head to achieve success and totality and get you prosperity. These facts are not written in scriptures and these can be obtained by sages of Siddhashram and has remained among them only. We again and again forget that we too are attached to that sacred land because of our Gurudev and he only has placed a seed in our heart for Siddhashram but it is our fault if we don’t make tree out of it.

Daily 50 times bhastrika will vanish your laziness. This process is required to perform daily.

With that, the Shareer sidhhi mantra should be recited as suggested by guru. First day these processes are to be carried out.

On second day Aatm siddhi mantra should be recited to awake the Sushumnaa naadi. It is also require to chant the mantra of yesterday. First process of 1st day and then only move to second day’s process. Because after sushumnaa is awaken, then the sammohan power is also becomes awake in the body and your face will be glazed with aura. The achievement of the divya drastic starts.

On 3rd day , we need to accomplish Chakra jaagaran Mantra through which the sammohan power is spread in whole your body instead of being only on the face. In this condition, by your touching someone , the person get hypnotized. The process includes previous days repetition of all processes.

On 4th day the after doing all 1st 2nd and 3rd days processes, we need to do Antar sadhana mantra ,being accomplished in this, he can make any shakti before him by the generating his power.

On 5th day after repeting processes till 4th day , we should chant Svasammohan siddhi mantra. This whole process is of 24 days. If anything is tuff in this world, it is always to make our self according to the desire of us and when you accomplish this sadhana, you become magnetic and all other people come attractively to you like iron. You can improve your self by guiding you and you can polish your powers. If the process is continued for long, then vashitva siddhi is gained. Remember, sammohan means hypnotizing our self meaning to connect our power into the universal power.

If we remain with the sammohan energy for 24 hours, then who so ever may be meet us, they never refuses what we say। And the shaktis of higher stages becomes accomplished in our power area। After that if we has photograph of anyone or we have image in our mind then with that thing only we can make him or her according to our willing। Or we can treat the patient from miles. In Tibbet this process is called as Bodh- sanvahan- vidhi. The mantra is rare but not been vanished. By praying into the sadgurudev’s feet we should ask for Poorna sammohan prapti diksha and through these mantras we can make things possible which are said to be impossible. Whne we can achieve totality then why should we make our self respect under footed. That’s why it is said that jid karo aur duniya badlo…i.e. change the world by willingness power.

Paramhansa Swami Trijta Aghori ji

Paramhansa Swami Trijta Aghori ji

(सदगुरुदेव जी से जुड़े उनके कुछ जाने - अनजाने प्रसंग )
पथपर आगे बड़ते हुए सदगुरुदेव जी ने पीछे मुड कर देखा तो वे अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें अभी भी वही पर खड़े हुए एकटक देख रहे थे,अभी कुछ देर पहले ही अपने जीवन की सर्वोपरि ,अलभ्य बस्तु रति राज गुटिका सदगुरुदेव जी को देते हुए बे कह रहे थे की नारायण आप ने मुझ जैसे चट्टान ह्रदय को भी ममता सिखा ही दी , अब मेरा भी कोई भाई हैं इस जगत में , .
सदगुरुदेव जी के नेत्रों में भी उन्हें याद करते हुए अश्रु छलक उठे की सही अर्थो में वह मेरे अग्रज कि तरह उसने मेरा पथ प्रदर्शक बना इस तंत्र क्षेत्र में , लगातार २५ दिनों तक वे सदगुरुदेव जी को निद्रा स्तंभन करके ,यक्षि णी साधना , पूर्ण काया कल्प साधना ,ब्रम्हांड निर्माण तक साधना , यक्षिणी चेटक, ब्रम्हांड चेटक , रूप परिवर्तन चेटक जैसे उच्च कोटि के अनगिनत दुर्लभ साधनाए , अद्रश्य गमन साधना ,प्रेत साधना से लेकर, वार्ताली स्तभ्न साधना ,घोर शमशान साधना से लेकर अघोर पथ की दुर्लभ आगे साधना भी उन्हें लगातार सिखा रहे हैं , और आज अब सदगुरुदेव की आगे जाने की वेला आई तो उसी समय एक बकरे को एक हाँथ से उठा कर सैकड़ो फीट उछल दिया , फिर उसी अज की गर्दन एक झटके से तोड़ कर उसका पूरा खून पी रहे हैं,
सदगुरुदेव व्यथित हो कर बोल उठे , इतनी निर्दयता क्यों... क्या बिगाड़ा था उसने .
वे मुस्कुरा के बोले , बोल नारायण कहे तो इसे अभी जिन्दा कर दूं,
कैसे ये संभव हैं ..
क्यों नहीं महाकाल रौद्र भैरव के लिए क्या असंभव हैं ..
वे आसनस्थ होकर मत्रजाप में लग गए , मात्र कुछ ही क्षणों में पूर्ण तयः मृत प्राय बकरा जीवित हो कर चल पड़ा ,
ये कैसे संभव हुआ
शुक्रो पासित मृत संजीवनी विद्या से ,
तो मुझे अभी तक सिखाया क्यों नहीं .
सारे गुर बिल्ली से सिखने के बाद शेर ने बिल्ली पर ही हमला कर दिया , बिल्ली पेड़ पर चढ़ गयी , शेर ने कहा की ये तो मुझे नहीं सिखाया था , बिल्ली ने कहा यही सीखा देती तो आज जान कैसे बच पाती इसलिए तो ये तुम्हे अभी तक नहीं बताया था.
सदगुरुदेव जी बोले मेरी मौसी मुझे भी अब तो सिखा दो .
(सदगुरुदेव मन ही मन उस करुणा और स्नेह से भींग गए समझ गए कि उन्हें कुछ दिन ओर अपने साथ रोकने के लिए ये खेल रचा गया था उनके द्वारा )
कौन हैं ये जिन्हें सदगुरुदेव इतना चाहते रहे हैं ?

ये हैं ....
विश्व बंदनीय, अप्रितम , साक्षात सदेह तंत्राव्तार , अदिव्तीय योगियो में भी श्रेष्ठ , पुराणिक युग कालीन सर्वथा अलभ्य मृत संजीवनी विद्या के एक मात्र साधक , ऐसे अलौकिक व्यक्तिव धारी परमहंस स्वामी त्रिजटा अघोरी जीके बारे में तो तंत्र जगत ही नहीं साधना जगत का हर व्यक्ति चाहे वह आज इस क्षेत्र में आया हो या हज़ार साल का ही क्यों न हो उनके दर्शन की कामना तो मन में हमेशा से लिए हुए ही रहता हैं. एक ऐसा व्यक्तिव जिन्होंने अंत्यंत कठिन , अभावग्रस्त से निकल कर वो उचाईयां प्राप्त की हैं जिसके आगे पूरा विश्व भी नत मस्तक हैं ही . कहते हैं कि तंत्र क्षेत्र में कठोर से कठोर उच्च , और अगेय साधना फिर चाहे वह शमशान हो या अघोर पथ कि इनका सामना पूरे विश्व में कोई नहीं कर सकता .
उच्च ललाट पर सुशोभित लाल सिंदूर का तिलक ,कमर के नीचे तक झूलती लम्बी लम्बी तप कि गरिमा से युक्त तीन जटाये के कारण ये साधक / साधना जगत में त्रि जटा के नाम से विख्यात हैं .भगवान् काल भैरव के अदिव्तीय साधक ओर मृत संजीवनी विद्या के एक मात्र साधक जो आज भी सदेह ,सिद्धाश्रम के ९ सर्वोच्च परम योगियों के मध्य में से एक आज भी उत्तरांचल कि घनघोर दुर्गम पर्वत श्रंखला भैरव पहाड़ी में स्थित महाकाल रौद्र भैरव के मदिर के पास में गुप्त रूप से निवास रत हैं .
पूज्य सदगुरुदेव जी कहते थे कि केबल मात्र तंत्र के बल पर सिद्धाश्रम पहुँचने वाला ये एक मात्र व्यक्तिव हैं . साधना जगत में उनकी उच्र्य बताना मानो सूर्य को दीपक दिखाना हैं ,एक ही आसन पर २० से २५ दिनों तक स्थिर एकाग्र रूप से बैठकर ये साधना पूरी करके ही उठते हैं . इनका भौतिक कद लगभग सवा सात फीट का हैं अत्यंत बलिष्ठ ,सौष्ठव युक्त शरीर के साथ घन के सामान घनघोर ,ह्रदय को कम्पायमान कर देने वाली आवाज के स्वामी हैं . कोई भी साधक ऐसा नहीं रहा जो इनका साक्षात् महाकाल रूपी रूप देख कर सर्व प्रथम दर्शन में स्थिर रह पाया हो . पर भौतिक शरीर कि महत्ता के सामान ही ह्रदय से उतने ही प्रेम मय ,प्रेम परिपूर्ण हैं . कुछ काल उपरान्त सदगुरुदेव जी के निखिलेश्वरानद स्वरुप को जानने के बाद सदगुरुदेव जी की लीला से आश्चर्य चकित हो कर से उन्होंने भी दीक्षा ली ओर उनसे तंत्र क्षेत्र कि अगम्य साधनाए प्राप्त की .
एक बार अपने अग्रज गुरु भाइयों से सुनने में आया था कि एक पूर्ण बड़ी पुस्तक सदगुरुदेव जी ने इनके जीवन पर लिख कर छपने को देने जा रहे थे , तभी रात्रि काल मैं प्रेस में ही सदेह से आकर इन्होने वह किताब ही टुकड़े टुकड़े कर दी ,सदगुरुदेव जी से कह उठे “जब ये नासमझ , लोग अपनी स्वार्थपरता को शिष्य रूप की आड़ मैं छुपा कर आपसे ही छल करते रहते हैं और लेश मात्र भी शर्म सार नहीं हैं अपने कृत्यों पर और अपनी मक्कारी , चापलूसी को शिष्यता का नाम देते रहते हैं तब ये न जाने मेरे बारे में क्या क्या अनर्गल प्रलाप कर लोगों को मुर्ख बना कर अपना स्वार्थ सिद्ध करेंगे इसलिए ये किताब को ही में नष्ट कर दे रहा हूँ. , सदगुरुदेव जी ने कहा कि . आखिर वे अघोरी हैं अभी गुस्से में हैं
तंत्र क्षेत्र के साधक कोकैसा होना चाहिए , जो निश्चय ता , साहस ,एक आसन निष्ठता , और अपने इष्ट के सामान तेज धारण करे हो ये तो इनके व्यक्तिव को देख करही सिखा जा सकता हैं.

एक साधक गुरु भाई प्रणम्य हो कर जिज्ञासा रख रहे हैं उनसे कह रहे हैं की क्या हैं आखिर इस गुरु मन्त्र में , ऐसा क्या विशेष हैं जो आप इसे सर्वश्रेठ मंत्र कहते हैं ब्रह्माण्ड का ,ये तो हर गुरु की तरह सिर्फ गुरु मंत्र ही तो हैं ..
महायोगी कह रहे हैं वत्स धन मांग लो आयु मांग लो सुदर स्त्रियाँ मांग लो पर ये न पूछो ,...

आप सेज्यादा ब्रह्माण्ड में इसके बारे में कौन बता सकता हैं देना हैं तो ये दीजिये या फिर मना कर दे.

hain
वे कह रहे हैं कभी सोचा हैं की सदगुरुदेव का नाम अखिल क्यों नहीं रखा गया , क्यों निखिल कहते हैं उन्हें ........." वे बोलते जा रहे हैं पूरी प्रकति मौन हो कर एक एक अमृत बूँद पी रही हैं फिर जो उन्होंने प्रत्येक अक्षर की व्याख्या करी मानो ब्रह्माड का सारा ज्ञान हि नहि बल्कि स्वयं ब्रम्हांड ही उतर आया हो उस समय सुनने के लिए ,sabhi maun

सारा विश्व की ज्ञान धरोहर ही नहीं विश्व के अन्दर क्या, परे क्या , सब हैं समाया हुए इस महा मंत्र में , एक एक अक्षर की व्याख्या करने में साक्षात् ब्रम्हा भी असमर्थ हैं ...वे भाव बिहोर होकर बोलते जा रहे हैं .... तुम तो अपना गुरु मन्त्र जानते ही हो उसका पहला अक्षर हैं ...

प् का ये अर्थ हैं ....
र का ये अर्थ हैं.......
म का ये अर्थ हैं, ....
.......
......
क्या क्या नहीं समाया हैं सारी अखिल ही नहीं निखिल सम्पदा हैं सिद्धियाँ हैं उच्चता हैं श्रेष्ठता हैं एक एक अक्षर में ... और तुम लोग हो की यहाँ वहां भटकते रहते हो ....

किंचित क्रोध रोष में बोले .......अरे ये गली बाज़ार के भिखारी जादूगरी दिखा कर अपना अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं, तुम लोग समझते क्यों नहीं, ये धोखे बाज़ तुम्हे क्या दे देंगे,.... क्या दे सकते हैं ये...... ये गुरु रूप की आड़ में बैठे ठग तो खुद भिखारी हैं .आखिर कब समझोगे तुम उन्हें (सदगुरुदेव) ... पर तुम लोग समझ भी कैसे सकते हो ..उन्होंने ही तो ये माया फेलाई हैं भला नारायण हो माया नहो कैसे न हो ये .. कुछ ही पहचान पाए हैं उन्हें , शेष के आंखोंमें आसूं ही रहेगे जब वे यहाँ से सिद्धाश्रम चल देंगे,,,.....और तब तुम जब समझोगे ...... तब तक सिर्फ आंसूं ही होंगे ..... तुम्हारे पास... वे नहीं ......

सदगुरुदेव भगवान् , अब आप ही बताये की मैं कैसे गुरु बचन को पूर्ण करूँ ,आपने जो अति प्राचीन तंत्र ग्रन्थ आसुरी कल्प खोजने की आज्ञा दी थी , मैं हार गया अब आप ही मार्ग बताये ,सदगुरुदेव बोले तुम त्रिजटा अघोरी जी के पास जाओ उनसे मिलो मैंने उन्हें संकेत दे दिया हैं ,( गुरु भाई ,सदगुरुदेव जी से पूछ रहे थे )
लगतार कठिन पहाड़ियों को पार करते हुए मानसरोवर के पास में हिरण्याक्ष पहाड़ी की ऊपर पहुँच के देखता हूँ तो सामने त्रिजटा अघोरी जी पर्वतासन पर विराजमान हैं ,जैसे हि मैने उनके चरण स्पर्श कर परिचय दिया ,उन्होंने ह्रदय से आशीर्वाद प्रदान किया . सदगुरुदेव की कुशलता के बारेमें पूछा,. पिछले कई महीनो से समाज में उनके विरुद्ध चलाये जा रहे झूंठे प्रचार ,अपमान जनित बाते , ओर पत्र पत्रिकाओं में अनर्गल प्रलाप केबारेमें बताया ,
मेरे द्वारा बताने पर , मानो साक्षात् महाकाल ही उनके रूप में उतर आये हो.

अब में सिद्धाश्रम की भी परवाह नहीं करूँगा , इस पात कियों को तो दंड देना हो होगा . ये दुष्ट ऐसे नहीं मानेगे , वे वहां आग में साक्षात् तिल तिल कर जल रहे हैं ओर में यहाँ बैठा उन्हें देखता रहूँ , ये नहीं हो सकता , अब बहुत हो गया ." घनघोर ध्वनि चारों और गुंजायमान हो रही थी ."
किसी तरह अपने को नियत्रित कर अश्रु प्रवाह रोकते हुए बोले " केबल और केबल उनमें ही ये सामर्थ्य हैं जो इतना विष पिने के बाद भी अपना तिल तिल खून जला कर भी समाज को अमृत दे रहे हैं ,हम सभी उनकी आज्ञा से बंधे हुए उन्हें विवशता से मुस्कराहट लिए हुए ,अपने शिष्यों को तैयार करने की अनथक श्रम के बीच , अग्नि शोलो के बीच जलता हुए देख रहे हैं "
तुम लोगों के कितना सौभाग्य हैं पर तुम लोग तो उसे जान भी नहीं पा रहे हो..... .हम सभी उनकी प्रतीक्षा में हैं ,जिस दिन हमारे आराध्य हमेशा के लिए हमारे साथ होंगे .
तुम लोग उनके मन ह्रदय की वेदना कम से कम अगर वे नहीं कहते हैं तो उनकी आँखों में देख कर ही समझ सको, समझ सको की आखिर उन्हें किस चीज की आवश्यकता हैं तुम लोगों से .. सिर्फ तुम लोगों से स्नेह के कारण ही तो वे वहां हैं....... पर तुम लोग तो सिर्फ अपना ही स्वार्थ ...........

*********************************************** (some memorable moment with ref to sadgurudevji )
Sadgurudev ji turn his face to see him, still with tearful eyes he was standing there watching Sadgurudev,but the need of time and responsibility stopped him .just a few minite before he has given the most precious things in the world “Rati Raaj Gutika”, person belongs to sadhana knew already about that , he himself earned through untold hard work and obedience to his gurus , but with love he gave to Sadgurudev ji. .he is saying that” Narayan , you teach what is mamta ( sneh /love ) to a stone hearted person like me.. now I can say I have a brother like you ..”
Even sadggurudev ji recalling that incident, have tear in his eye and said “ in true sense he became my elder in the tantric sadhan field andlead to the path unknown to many…” nearly 25days of his first meeting with Sadgurudev ji, he through “Nidra Stambhann Prayog” stopped Sadgurudevji’s sleep and continuously taught sadhana like .yakshini sadhana, purn kaya kalp sadhana, bramhaand creation sadhana, yakshni chetak, bramhaand chetak ,rup parivartan chetak like such a high and rare sadhana, Adrashy gaman sadhana , from prêt sadhana to vartali stambhann sadhana , from ghor shamshan sadhan to durlabh aghor sadhana, he was teaching continuously, neither he take rest nor giving any rest to Sadgurudev ji, now a perfact combination formed.
And today when Sadgurudev ji has to go, the time come, he bring a he-goat and through that in air with one hand, and catch , break it s neck in two part and start sucking blood coming out of that.
Sadgurudev ji very painfully told that why such a cruelty ,what wrong he does to you ,so that you have taken that his life in such away..
He smiling spoke.”speak to me Narayan if you say than I will again bring back that in”
How that is possible?
There is nothing is impossible for bhgvaan Mahakaal Roudra Bhairav?
Than he sitting on the aasan and starts mantra jap within few second that he goat again is in life taking breathing again .as if nothing happened to him before.
How that was possible ?
Through” Sukropasit Mrit-Sanjivani vidya.”
Why did not you teach me that yet?
After getting training of all art from cat ,once lion attacked on the cat, the cat jumped over the tree. Very shamefully lion asked to the cat why did not teach him that art, cat replied- if I did that so than i could not be alive this moment.
Sadgurudev ji replied with smile- my mausi now teach me that too.
(Sadgurudev ji understood the feeling behind the incident and the love and sneh,/ compassion of him , that he try to stop him anyway…)
Who is this persoanalty, whom even Sadgurudev ji loved so much..
He is..
Respected from whole world , unique , human form of Tantra , and such a unimaginable personality having , Paramhansa swami Trijata Aghori ji , everybody whether today he is treaded on this path or thousand years old one of, not only tantra world but in sadhana field also , all are having ever desire to see him, once in their life span whether that may be of a few second. one such a personality who start from very difficult struggle full child hood to reach such a unparallel, unmatchable height that whole world bow down to his sadhana level height and achievement.
Having large red colored sindur on his divine great forehead, and jataye (matted hair) having full of divine energy, which are so long that they are touching his legs because of .theses tree jata of him, he is known as tri jata ji, greatest sadhak of bhagvaan kaal bhairav and only one in the whole world who are blessed with sanjivinai vidya (a puranik era’s vidya through that life can be induce to any dead) and still in his mortal body , and one amongst in nine supreme yogi of siddhashram , still living in deep dense forest surrounding hills in uttranchal in India.
Sadgurudev used to tell him, he is the first person, who only through his achievement in tantra’s field so high that he could reach the holiest place in the whole universe i.e. Siddhashram .to write about his greatness in sadhana field like showing a earthen lamp to fully bright lighted sun in day time. sitting 20 to 25 days straight on a aasan without any moment for to complete in any sadhana, is just a play for him. His physical height is as about more than seven feet. very forceful , highly well built body and blessed with voice sound like cloud sound in rainy season. no sadhak ever can stand on his feet ,on seeing him first such a personality like Bhagvaan Mahakaal rup. But he also having such large heart , full value of human value and full of so much love that words can not describe about his softness, such a great person he is.. after a time when he knew about Sadgurudev ji’s Nikhileshwaranand form, he amazed on sadgurudev ji’s lila and also taken Diksha from sadgurudevji and have got some very rear gems of sadhana of tantra..
It has been listen from our elder guru brother that once Sadgurudev ji wrote a large size book about him , and that has been to press for printing, in the same night he physically came and tear down the book in pieces, and told to Sadgurudev ji “ thses ignorant people, through taking refuse of shishyata , hides their selfishness and does continuously deception to you and not having a single percent of shame of their wrong-doing and gave them a name of shishyata ,than they, I know not what will do useless/baseless things about me and make fools other, to fulfill their selfishness. that is why I destroyed that book.
Sadgurudev later replied he is aghori and he is in anger,
How should be a sadhak of tantric, can be fully learnt /understand by watching him his unshakable will, fearlessness ,perfectly motion less sitting and having the same radiance of as of his isht deity.
One sadhak guru brother , after giving proper respect ,asking him ..what is in, so special about in Guru mantra, that’s why you says that , is supreme most mantra of the universe ,this is type of mantra alike any guru’s have. after all this is a guru mantra.!!!
He replied, my son ..ask me for immense wealth, beautiful woman , and long life ,I can give but not ask about this secret ..
Who other than You ,in the universe can describe about that, if want to give me ,please give that or simple say no to me.
He start saying..’have you ever thought/noticed why Sadgurudev ji ‘sname is Nikhil not akhil..since he….” He is absorbs in his though and words start flowing from his divinity. Nature stand still to listen and start drinking Amrit bond coming out . everywhere silence absorbs… than he starts to describe each and every words of guru mantra in details , like knowledge of whole universe ‘s not but universe it self stand there to listen that divinity.
“Not only all the divine knowledge /gyan but what is inside or out side of whole universe is inside in that, everything’s is in that guru mantra. Even Bramha ji is not able to describe that .. you already know what is the gurumantra and take its first letter is ..
“pa” stands for and carring the meaning …,
“ra” stand for and carring the meaning ….,
“ma” stands for and carring the meaning …..,like that…
what not included in that , not only akhil but Nikhil wealth , highness, greatness uniqueness are included in that and you people living that wondering hear and there aimlessly…”.
He spoke with little anger …theses bagger sitting in the market showing magical skill fulfilling their selfish ness, why did you not people understand that, theses cheater/thug what they will give to you…... , When did you not understand about Sadgurudev….. but how can you people understand him (Sadgurudev)…… he spread his maya ,where narayan is, there his maya….. only a few can recognize his original form …remaining have tears in their eyes when he will finally move to siddhashram….and thaneven if you understand him …. Only than tears will be with you… he is not…
Sadgurudev Bhagvaan- “now tell me how can I obey guru agya to search old tantrak granth like Aasuri kalp, I am help less could not that anywhere, advice me where can I search that..sadgurudev ji replied that . now go and meet trijta I have already indicated about you. (one guru bhai asking to Sadgurudev)
“After crossing to continue high mountain I reach mount hiranyaksh, on reaching its top where temple of mahakaal Raudra Bhairav is situated , found that trijata ji sitting on a big rock ,I touched his divine feet and provide mine aim and introduction that why I am here. ,he blessed me. And ask about Sadgurudev ji. L informed him about so many false allegation, propaganda and false baseless remarks on him either in print media and in others way too. Happening to him from last so many months.
After listing my word , it seems like mahakaal appeared in his form.
“I do not bother about siddhshram , theses culprits has to be punished , theses can not be easily come on the way , he is burning there ,in that fire in part by part slowly slowly and what I am doing here ,just to see him helplessly , this is enough , I cannot wait any more. “His voice sounded very high all round.
Anyhow he controlled himself and said “he and only he has the ability to withstand in such a huge fire with smile and providing Amrit to society , and we all are here watching him , nothing can be done from our side since this is his agya. watching him working day and night with such a pain and hard work with smile just to make their shishy be able enough, “
How fortunate you all are ,but not understanding/recognizing that… we all are waiting him ,the day when our isht will be with us.
You people atleast understand the pain lies in his heart , even if he not tells you, you all have to understand the pain and feeling for you in his eyes. To understand that what he wants from you all …..
only for his love toward s you all , is cause for him to stay there.. but you all just looking only your selffiness………..

Friday, December 16, 2011

Mantra chanting effect मंत्र जप प्रभाव

मंत्र जप प्रभाव:-
जब तक किसी विषय वस्तु के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं होती तो व्यक्ति वह कार्य आधे अधूरे मन से करता है और आधे-अधूरे मन से किये कार्य में सफलता नहीं मिल सकती है| मंत्र के बारे में भी पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है, मंत्र केवल शब्द या ध्वनि नहीं है, मंत्र जप में समय, स्थान, दिशा, माला का भी विशिष्ट स्थान है| मंत्र-जप का शारीरिक और मानसिक प्रभाव तीव्र गति से होता है| इन सब प्रश्नों का समाधान आपके लिये -

जिस शब्द में बीजाक्षर है, उसी को 'मंत्र' कहते हैं| किसी मंत्र का बार-बार उच्चारण करना ही 'मंत्र-जप' कहलाता है, लेकिन प्रश्न यह उठता है, कि वास्तव में मंत्र जप क्या है? जप से क्या परिणाम होते निकलता है?

व्यक्त-अव्यक्त चेतना

१. व्यक्त चेतना (Conscious mind). २. अव्यक्त चेतना (Unconscious mind).

हमारा जो जाग्रत मन है, उसी को व्यक्त चेतना कहते हैं| अव्यक्त चेतना में हमारी अतृप्त इच्छाएं, गुप्त भावनाएं इत्यादि विद्यमान हैं| व्यक्त चेतना की अपेक्षा अव्यक्त चेतना अत्यंत शक्तिशाली है| हमारे संस्कार, वासनाएं - ये सब अव्यक्त चेतना में ही स्थित होते हैं|

किसी मंत्र का जब ताप होता है, तब अव्यक्त चेतना पर उसका प्रभाव पड़ता है| मंत्र में एक लय (Rythm) होता है, उस मंत्र ध्वनि का प्रभाव अव्यक्त चेतना को स्पन्दित करता है| मंत्र जप से मस्तिष्क की सभी नाड़ियों में चैतन्यता का प्रादुर्भाव होने लगता है और मन की चंचलता कम होने लगाती है|

मंत्र जप के माध्यम से दो तरह के प्रभाव उत्पन्न होते हैं -
१. मनोवैज्ञानिक प्रभाव (Psychological effect)
२. ध्वनि प्रभाव (Sound effect)

मनोवैज्ञानिक प्रभाव तथा ध्वनि प्रभाव के समन्वय से एकाग्रता बढ़ती है और एकाग्रता बढ़ने से इष्ट सिद्धि का फल मिलता ही है| मंत्र जप का मतलब है इच्छा शक्ति को तीव्र बनाना| इच्छा शक्ति की तीव्रता से क्रिया शक्ति भी तीव्र बन जाति है, जिसके परिणाम स्वरुप इष्ट का दर्शन या मनोवांछित फल प्राप्त होता ही है| मंत्र अचूक होते हैं तथा शीघ्र फलदायक भी होते हैं|