Thursday, July 28, 2011

MAHAVIDYA RAHASYAM-MAA TRIPUR BHAIRAVI 2

इस सम्पूर्ण जगत की आदि शक्ति माँ नित्य लीला धारिणी ने इस विश्व की जगत की सञ्चालन के लिए अपने स्वरुप को अनेको स्वरूपों में अलग अलग किया हैं यह स्थितिया हैं स्थिति , निर्माण , ओर संहार क्रम कहा जाता हैं , इन दस महाविद्या में से ९ को उन तीन भागोंमें बाटा गया हैं , पर महाकाली को नहीं रखा गया ऐसा क्यों ऐसा इसलिए हैंक्योंकि ९ महाविद्याये तो कार्य करने वाली शक्ति हैं पर बिना आधार के ये कैसे कार्य करेंगी , माँ महाकाली इनसबको आधार प्रदान करती हैं सामान्यतः महाकाली भी संहार क्रम में मानी जाती हैं .
इन तीनो क्रम को भी फिरे से सूक्ष्म रूप में अनके रूप में अलग अलग किया जा सकता हैं जैसे आदि मध्य ओर अंत में . उत्पत्ति क्रम रज गुण प्रधान हैं स्थिति सत्व गुण प्रधान , व संहार तम गुण प्रधान हैं
माँ त्रिपुर भैरवी तमोगुण से आप्लावित रज गुण से परिपूर्ण हैं .
माँ भैरवी के अन्य रूपों हैं समप्त्प्रदा भैरवी ,कौलशी भैरवी,सकल सिद्धिद्दा भैरवी ,रूद्र भैरवी ,भुवनेश्वरी भैरवी , अन्नपुर्णा भैरवी, बाला भैरवी , नित्या भैरवी, कामेश्वर भैरवी ,चैतन्य भैरवी ,भय विध्वंस विनी भैरवी , नव कूट बाला , षत कुटा भैरवी इस तरह १३ स्वरुप हैं अब यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं हैं की हर स्वरुप अपने आप अन्यतम हैं ओर उसके किसी भी एक स्वरुप की साधना यदि साधक को सदगुरु कृपा से यदिप्राप्त होई जाती हैं उसे सफलता पूर्वक सपन्न करके वह क्या नहीं प्राप्त कर सकता हैं
माँ त्रिपुर भैरवी गले मैं मुंड माला धारण किये हुए हैं , ऐसे तो माँ विश्व निर्माण के पहले ही थी तब उन्होंने यह मानव मुंड माला कहाँ से पाई , वास्तव में हर देवी देवता का स्वरुप प्रतीकात्मक होता हैं , वह तथ्य यहाँ पर भी पूर्णतया लागु होता हैं यहाँ इन मुंड माला से तात्पर्य वर्ण मातृका से हैं , जिनका रहस्य तो अपने आपमें एक अलग ही विषद विषय हैं .
माँ ने अपने हाँथ में माला धारण कर रखी हैं जो व्यक्ति के साधना होने को इंगित करती हैं ,जब माँ स्वयं साधना मय हैं तो उसके साधक को हमेशा ही साधना मय गरिमा से परिपूर्ण होना चाहिए, यह तो नहीं होगा की एक दिन साधन की फिर चार महीने का अंतराल ले लिया .उनके चहरे पर छाई मुस्कान इस तथ्य को इंगित करती हैं की साधना मय उच्च अवस्था पर जाते हुए साधक के लिए हमेशा प्रसन्न ता को भी स्वीकार करना होना हैं जब माँ अपने साधक को प्रसन्नता पूर्वक देख रही हैं तो फिर उनके साधक को किस बात की कमी , किस बात का भय , उसे भी रूखे सूखे होने की बजाय अंतर मन से प्रसन्न होना चाहिए . जब साधक भी प्रसन्न होगा तभी तो दिव्य माँ के मुस्कान का अर्थ हैं , वे यह कह रही हैं तुझे अब क्या चिंता ..
उन्होंने अभय ओर वर मुद्रा प्रदर्शित कर रही हैं जो की साधक के अप्रितम सौभाग्य का प्रतीक हैं . जब माँ ही मुक्त ह्रदय से प्रदानकर रही हो तब अब क्या शेष .. मस्तक पर चन्द्र व्यक्ति को हमेशा दिमाग शीतल रखने का प्रतीक हैं वह इसलिए की शमशान में साधना करते करते साधक का रुखा हो जाना स्वाभाविक हैं क्योंकि उग्र तत्व की साधना में साधक को उग्रता धारण करनी पड़ती हैं (बिना उग्र ता धारण किये बिना तो शमशान में सफलता संभव ही कहाँ हैं ) जो धीरे धीरे उसके स्नेह तत्व को सोख लेती हैं पर उसके जीवन में प्रेम स्नेह तत्व की प्रधानता रहे इसलिए माँ ने यह धारण किया हैं साथ ही साधक यदि रुखा ही रह गया तोउसकी साधना से जगत को क्या लाभ .
साथ ही माँ ने लाल रंग की साड़ी धारण किया हुए हैं आखिर लाल रंग ही क्यों , वह इसलिए लाल रंग उर्जा का प्रतीक हैं रज तत्व का प्रतीक हैं , लाल रंग का अपने आप में गहन अर्थ हैं, इसलिए साधको को कभी कभी केबल लाल रंग के अंत वस्त्र धारण करने के लिए कहा जाता हैं(हनुमान साधना जो की ब्रम्हचर्य तत्व की साधना हैंउसमे लाल रंग का प्रयोग ही किया जाता हैं ) क्योंकि साधक के सत्व तत्व की रक्षा करने में लाल रंग का योगदान हैं .
इस तरह कहा सकता हैं माँ के हाँथ में विद्या तत्व हैं ये विद्या तत्व क्या हैं माँ इसके माध्यम से क्या प्रदर्शित कर रही हैं ये आगम(वेद साहित्य ) ओर निगम(सम्पूर्ण तंत्र साहित्य साधना ) दोनों ही तो विद्या तत्व हैं तंत्रज्ञ कहते हैं यहाँ तक सूर्य चन्द्र अग्नि औषिधि धातु रस आदि सभी ही विद्या हैं , तो इस रूप में माँ सम्पूर्ण ज्ञान राशी को ही संकेत रूप में प्रदर्शित कर रही हैं .
माँ त्रिपुर भैरवी की पूजा में जैसे की हमने जाना माँ को लाल रंग सर्वाधिक प्रिय हैं तो हर वस्तु फिर चाहे वह वस्त्र या फल हो या अन्य लाल रंग की होना चाहिए .
ध्यान रखना चाहिए की दो प्रकार किप्रलय से यह विश्व प्रभावित होता हैं प्रथम तोजिसे हम प्रलय या महा प्रलय कहते हैं इसको माँ भगवती छिन्नमस्ता सम्पादित करती हैं वही इसकी मुख्य शक्ति हैं, दूसरा प्रलय है जिसे हम नित्य प्रलय कहते हैं यह अंतर ओर बाहय जगत में हर पल हर क्षण होता रहता हैं ,इसे माँ त्रिपुर भैरवी करती हैं
इसको समझने के लिए यदि बाहय्गत रूप से देंखे तो दुर्घटनाये आदि , पर व्यक्ति के अंतर मन में चलने वाले विपरीत विचार , विपरीत आस्थाए , मन में आई अत्यधिक कामुकता, (क्योंकि तंत्र कामुकता को बुरा नहीं कहता हैं , न ही उसे अपमानित करता हैं उसे स्वीकार करना को कहता हैं ,क्योंकि तंत्र जनता हैंकि यह ही तो कुण्डलिनी शक्ति हैं उस उर्जा को समझ कर केबल दिशा परिवर्तन निम्न मार्ग से उर्ध्व मुखी करने को कहता हैं साथ ही साथ इसका रास्ता दिखाता हैं ) पर अति सर्वत्र वर्जयेत के सिंद्धांत जोकि साधना की के प्रतिकूल ता बनती जाये उस भाव को माँ त्रिपुर भैरवी ही पल पल नष्ट करती हैं इन संहार क्रिया को भी नित्य प्रलय कहते हैं . माँ त्रिपुर भैरवी की कृपा के अतिरिक्त कैसे संभव हैं .
एक बहुत ही अद्भुत तथ्य यह हैं की ये सभी दस महाविद्या के नाम से विख्यात हैं ये हैं काली , तारा, छिन्नमस्ता ,बगलामुखी , कमला , त्रिपुर भैरवी , त्रिपुर सुंदरी , मातंगी , भुवनेश्वरी ,धूमावती हैं पर वास्तव में सभी महाविद्या नहीं हैं इनमें से कुछ महाविद्या हैं तो कुछ सिद्ध विद्या के अंतर्गत हैं तोकुछ श्री विद्या हैं तोकुछ केबल विद्या ही हैं उदहारण के लिए माँ बगलामुखी एक सिद्ध विद्या हैं माँ त्रिपुर भैरवी -- सिद्ध विद्या कह लाती हैं इसे महाविद्या क्रममें छठवे क्रम में माना जाता हैं .और इनसे सम्बंधित दिन काल रात्रि ही हैं , हम प्रयास करंगे की जल्द ही आपको सिद्धाश्रम पंचांग आपको वेब साईट पर उपलब्ध कर दिया जाये .
अब सदगुरुदेव भगवान् की असीम कृपा से हमारे पास विपुल साहित्य हैं उनके श्री मुख से उच्चरित दिव्य प्रवचन , मंत्र साधना विधि सभी तो हैं जो भी हमारे लिए संभव हो सकता हो सकता था, सदगुरुदेव भगवान् ने दिन रात परिश्रम करके , अपने शरीर की भिप्र्वाह भी नहीकारते हुए यह सब हमारे लिए ही तो किया हैं की उनके किसी भी बच्चे को किसी के सामने साधना सम्बंधित ज्ञानके लिए हाँथ न फैलाना न पड़े , पर हम कमसे कम अब इस घनघोर अन्धकार की घडी में आलस्य छोड़ कर ... ,
पूर्ण साधक भाव से साधना कर के अपने सर्व प्रिय सदगुरुदेव भगवान् गौरव को प्रवर्धित करते हुए को सदगुरुदेव भगवान् के सामने विनीत भाव से उनकी आज्ञा के लिए प्रणाम मुद्रा में खड़े होना हैं तभी तो सदगुरुदेव भगवान् का यह अति मानवीय , अकल्पनीय , अनथक श्रम सार्थक होगा
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Divine mother bhagvati ma parmba has divided her forms in so many different form so that whole universe can be properly governed, state are known as creation, caring and destroy (shthiti , nirmaan and sanhaar kram ) she has divided 9 out of ten mahavidya in three division , but not Mahakali ,why it is so ,reason is all the divine mother forms are working force and all the force surely need a base , and mother Mahakali provide that base, in general mother kali also consider in sanhaar kram.
Again she has divided theses order in many more parts like aadi Madhya, and Aant (beginning , middle and end). creation kram related to raj tatv gun , shthti order related to satv gun and sanhaar kram related to tam gun .
Mother tripur bhairavi realted to raj tatv related tam gun means she has both tatv,
Divine mother tripur bhairvi has many forms (13 forms) like sampatprada bhairvi, kaouleshi bhairvi ,sakal siddhida bhairvi, rudra bhairvi, bhuvneshwari bhairvi , annpurna bhairvi , bala bhairvi, nitya bhairvi, kameshwar bhairvi, chaitany bhairvi , bhay vidhanswini bhairavi , navkut, bala bhairavi, shat kuta bhairvi , there is no need to write here that each one form is having ultimate power, if any one get sadhana related to any one form from Sadgurudev ji grace, than on successfully completing that sadhana what can not he achieved.
Ma has mala in her neck made of human head, but mother has appeared before this world created so where she has got that human head, actually each dev devta forms represent many hidden sign that need to understand. And if we thoroughly understand than easily to have success in that here that directly show to the “varn matraka” , what is varn matraka ? is very important subject and can not be deal here with space of this post,
Divine mother has rosary in her hand that show that one must be sadhana may , when divine mother herself be in sadhana than her sadhak must be full of sadhanamayata. This can not be accepted fact that do sadhana of one day and take rest for next four month. The blissful smile on her face shows sadhak when achieve heights in the sadhana field must accept happiness in his heart , when divine mother looking her welfare than what is/will be point of worry and unhappiness. He also have happiness in his heart instead of harsh look and behavior . when her child feels happiness only than divine mother has a smile on her face, suppose she has saying now what to worry when she is with us …
She has having “abhay” and “var” mudra that is ultimate blessing for her sadhak when mother ready to give what more is left and what a great luck for sadhak .having moon on her head shows that always have a cool in mind. That is a very essential fact since if any one continuously doing sadhana in shamshan field. its natural that has a very harsh in nature(it becomes), since for doing sadhana of ugra elements sadhak also has to have that ugra nature ( without that shamshan sadhana would not be possible ) that urgra tatv continuously take his love and sneh element from his heart .but her sadhak not deprive of that, that’s why mother has moon on her head. And important facts is that if sadhak is not having that sneh .love element that what will be the useful ness of his sadhana to the world,
And in additional to that mother has wear red color sari why red color, is there any importance.? Since red color is directly related to energy elements , and related to raj tatv . this red color has very specific meaning .some times sadhak has been advise to wear only red color under garment in during sadhana , why?(specially Bhagvaan hanuman ji sadhana , why because this help to protect his sat tatv means bhramchary ) so red color has very important roles in protecting his satv tatv,
Like this has been said that mother has vidya in her hand . what that this vidya stands for? ,what mother are showing through that. Theses aagam (whole ved literature) and nigam ( complete tantra literature sadhana) are vidya tatv. As the tantragy says that even sun ,moon, hebal medicine, mercurial science, metal all are vidya . in this ways mother shows us the complete gyan world.
A s we knew that mother has very affection to red color so all the fruits and other things that can be offered to mother has to be of red color.
Keep remember that the whole world is affected by two type of pralay(ultimate distruction) . the first ,whom we call pralay or “mahapralay “, that has been done by mother chhinnmasta form. And she is the power of that pralay. And other is “nitya pralay “ means that which continuously happened in outer and inner world of not only of this world but inside of us too, that has been done by mother tripur bhairvi.
To understand this if we see outwardly we find so many accident and unfor eseen event takes place and in inner world our bad ,evil thought ,evil acts planning, and having too much sexual acts related activity or thought
(tantra does not condemn theses thought or activity neither blame that it says try to accept that first , since tantra knew that this is the kundalini forces and try to understand first and only the direction of that need to be changed from downward to upward direction and how to do that its provide the ways)
But”too much of everything is a not acceptable” so also applicable in any field if this too much sexual activity mental or physical can provide obstruction in sadhana field, this bhav /feeling has been continuously destroy by mother tripur bhairvi and this sanhaar process is known as nitya pralay. Without her blessing how that can be possible.
One of the most amazing facts Is this all theses who are famous as the mahavidya like kali, tara, chhinmasta, tripur bhairvi ,tripur sundari, baglamukhi, kamala, matangi and bhuvneshwari and dhoomavati, all are not actually mahavidya , some of them are mahavidya , some of siddh vidya, some are only vidya , some are shri vidya. For example ma baglamukhi is a siddh vidya so is the mother tripur bhairvi is also a siddh vidya.and this form is consider as a sixth among the tel mahavidya. and kaal ratri is the day for her, we are(npru) tring that soon you will have siddhashram panchang in the web site.
Now we have all the enough literature though Sadgurudev bhagvaan whether through his divine pravchan or through mantra or from sadhana everthing we have , what can be possible for us .sadgurudev Bhagvaan did continuously hard work without taking care of his body for why , only for us so that we never ever has to ask other as a beggar to have this sadhana, so that that her manas child becomes not dependents outsiders. Now in this very testing hour we have set aside our idleness..
Do the sadhana with full heart , full devotion a full concentration and try to raise of our Sadgurudev jis glory and stand infront of him with full obedience and naman mudra only than sadgurudevjis this super human,unbelievable ,continuous hard work will be has a meaning..now this rest upon us.
****NPRU****

Mahavidya Rahasyam- Maa Tripur Bhairavi Rahasyam part -1

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दस महाविद्या तो अन्यतम हैं सभी साधक जो भी तंत्र क्षेत्र के जिज्ञासु हैं,साधक हैं , अध्येता सिद्ध हैं, वह तो मन में जीवन भर यही भावना रखते हैं की कभीतो कोई गुरु ऐसा उन्हें ऐसा मिलेगा जो इनमेंसे एक की साधना तोसिद्ध करा देगा , फिर जिस एक सिद्द हो गयी फिर दिव्य माँ के अन्य रूप की साधना क्या सफल न हो ही जाएगी .
जहाँ माँ भगवती छिन्नमस्ता के साधक तो कम हैं वही पर इन माँ त्रिपुर भैरवी के साधक तो मिला पाना सर्वथा असंभव हैं , इसलिए इन महाविद्या से सम्बंधित साहित्य भी मिल पाना भी बहुत कठिन हैं साधक इससे सम्बंधित तलाश में भटकते रहते हैं .पर कोई कोई सौभ्याग्य शाली हैंजो यह जानकारी प्राप्त कर पता हैं, माँ का स्वरुप बहुत ही अद्भुत हैं , उदित होने वाले सूर्य की भांति इनका स्वरुप होता हैं , जी भर भर के रक्त का पान कर कर के जिनका स्वरुप लाल हो गया हैं. यह महाशक्ति भैरव ही नही महाभैरव की शक्ति हैं , इनके भैरव का नाम दक्षिण मूर्ति भैरव हैं .

जो भी अघोर साधना , शमशान साधना , कापालिक साधना अर्थात शमशान से सम्बंधित साधना करना चाहते हैं ओर उसमें एक अद्भुत उच्च स्तर पाना चाहते हैं उन्हें तो दिव्य माँ के इस रूप में ध्यान रखना ही पड़ेगा , शमशान में निवासरत सभी द्वि आयामी वर्ग के शक्तियां फिर वह चाहे , भुत हो प्रेत हो या पिशाच या ब्रम्ह राक्षस ही क्यों न हो , माँ के इस रूप के साधक के सामने मानो भय भीत हिरण जैसे हैं ओर क्यों न ऐसा हो क्योंकि यह तो महा भैरव की शक्ति हैं जो हजारों गुना शक्ति शाली हैं ,इसी कारण जिन्हें भैरव साधना में एक उच्च स्तर की सफलता पाना हो वह भी इस ओर ध्यान रखे .
इसके लिए यह भी केबल न माने की यह मात्र शमशान की शक्तियों की अधिस्ठार्थी ही नहीं हैं बल्कि दिव्य माँ का यह स्वरुप अत्यंत ही आकर्षक हैं , तो "जैसा इष्ट वैसा साधक" के नियम के अनुसार साधक में वह अद्भुतता आकर्षण से संभंधित आ जाती हैं.वह साधक जहाँ भी जायेगा सभी के लिए आकर्षण का ही केंद्र होगा .
दस महाविद्या में एक यही साधना हैं जो महिला साधको द्वारा मासिक धर्म के दिनों में भी लगतार की जा सकती हैं
( अनेक वर्षों पूर्व की एक घटना जिस काल में सदगुरुदेव स्वयम भौतिक रूप से जब हमारे मध्य थे - एक गुरु बहिन ने अपने व्यक्तिगत जीवन में पति से उपेक्षित होकर सदगुरुदेव के एकशिष्य से गुरु धाम संपर्क किया तो उन्होंने उसे इस महाविद्या की साधना करने के लिए उन्हें सलाह दी , साथ ही साथ कुछ ऐसी प्रक्रिया भी थी की उन शिष्य को एक कमरे में दिगंबर अवस्था में आसन पर बैठकर जप करना था, उन गुरु बहिन को साधना के नियम आदि का नयी साधक होने के कारण अनेको नियम की कोई जानकारी भी नहीं थी इस कारण उन्होंने न कोई नियम ही पूंछे , नहीं इस सन्दर्भ मेंकोई उन्हें डर आदि लगा , जो की सामान्य रूप से साधको को लगता हैं की कहीं कुछ होगया तो .., साधना के दिन जब पुरे हुए तो उन्होंने उन शिष्य से संपर्क किया , अपने अनुभव बताये , उन्होंने कहा की साधना के दुसरे दिन से , उनके वह हर महीने के विशेष दिन प्रारंभ हो गए , कुछ संकोच वश उन्होंने इसके बारे मैंना पूंछ कर साधना चालू रखी जबकि सामान्यतः इस काल में साधना नहीं की जाती हैं , उन्होंने बताया की अर्ध रात्रि में एक स्त्री उनके सामने उस कमरे में न जाने कहाँ से आ गयी, ओर उसने अत्यंत प्रसन्नता पूर्वक आशीर्वाद दिया साथ ही साथ उस रक्त की मांग भीकी , उन गुरु बहिन ने जैसा उचित था वैसा ही किया हाँ अन्य कोई भी अनुभव नहीं हुए , जब उनसे यह पूंछा की ओर क्या अनुभव हुए , तो उन्होंने कहाँ की अब जब भी वह रास्ते में चलती हैं या किसी भी वाहन से यात्रा करती हैं तो लोग मुड मुड कर उन्हें देखते हैं ,जहाँ वह कार्य करती है अब ऑफिस में सभी उनके पास आ आ कर स्वयं भी बात करते हैं जबकि वह एक अत्यंत से ही सामान्य रूप रंग की महिला थी , अब पता नहीं क्यों अब उनके पति उनमें क्या देखा की वह भी पूर्वत स्नेह करने लगे . उन्होंने गद गद स्वरों में कहा की सदगुरुदेव ओर माँ के आशीर्वाद से उनका नष्ट सा हुआ जीवन पुनः सामान्य हो गया , यह सुनकर सदगुरुदेव जी के उन शिष्य ने कहा , सदगुरुदेव जीकी लीला भी अद्भुत हैं वह यह विशेष तथ्य इस महाविद्या के बारे में उस गुरु बहिन को बताना भूल गए थे की इस काल में केवल मात्र यही साधना की लगातार किजा सकती हैं . पर सदगुरुदेव भगवान् की विशेष कृपा थी जो वह इन अनुभव से विचलित हुए बिना यह साधना पूर्ण कर सकी . )
इससे यह भी एक बात सामने आती हैं की कोई भी देव वर्ग हमारे मन में जमे हुए पूर्वाग्रह के अनुसार नहीं आता हैं वह तो साधक किमानो भाव उसकी मानसिक अवस्था ओर उसके चिंतन को पढ़ता ही रहता हैं , पर सबसे महत्वपूर्ण तोयह हैं की के वह साधक यदि सदगुरुदेव जी का शिष्य हैं तो सदगुरुदेव जी से बिना अनुमति पाए वह साधना इष्ट साधक के सामने नहीं आएगा .
दूसरी बात यह हैं की जैसा की हमने बगलामुखी रहस्य के भाग ४ में बताया था की हम उस इस्ट की कौन से शक्तियों से सम्बंधित कौन सा ध्यान कर रहे हैं ,इस बात पर साधना के इष्ट का स्वरुप पूर्ण निर्भर करता हैं ओर वह किस प्रकार की शक्तियों का प्रभाव साधक के लिए प्रदान करेगा निर्भर करेगा .
क्रमशः
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Theses mahavidya sadhana are the ultimate sadhana in tantra world, any sadhak , Lerner , seeker and savants and even siddh always have desire that in their life they may meet some one(a guru) who will help him to get siddhita in any one of the mahavidya , and one who get siddhita in one mahavidya than how for the success stand far away for him for getting in success in other mahavidya sadhana. as you are very well aware of the facts that there are few sadhak of divine mother’s chhinnmasta form now a day seen, but here almost very less ,almost nil sadhak of this great mahavidya sadhana , and one of the reason is that very less literature available about this mahavidya , many sadhak are searching to get some insight of this mahavidya but very few can get success of getting that , divine mother this form is having ultimate beauty like thousand morning rising sun has her radiance , through blood drinking his form get red in color, she is not the shakti of bhairav but of mahabhairav. Her bhairav name is dakshina murti bhairav .
Those sadhak who has interest in Aghor sadhana, shamshan sadhana, Kapalik sadhana and want to achieve a highest level in that field , than he has to take interest in and have to understand this divine mother form. all the invisible two dimension’s elements either ghost ,vampire . vaitaal , brahm rakshas are just like a small creature in front of this divine mother form. And Why not that happens since she is the shakti of mahabhairav that has thousand times more strength .and this is the reason those who are interested in bhairav sadhana and also want to have a certain level must understand this divine mother form.
But do not consider that divine mother , this form concerned only to shamshan but this form has very attractive glow and appearance , as its has been saying that “as the isht deity so is the sadhak” so her sadhak where ever goes ,will always be centre of attention.
This is the only sadhana in tem mahavidya section that can be continued during the mc period of woman/female sadhak.
( some years ago when poojya Sadgurudev ji is in physical form present among us- one guru sister contacted in gurudham because of she was having some problem with her husband, one of the Sadgurudevji shishy adviced her to go for this sadhana and adviced such a process in that she has to sit in digamber state in a room of her home had to do the mantra jap on sitting aasan. As she was very new to sadhana field , she neither had any idea ,what were the rules that she had to follow strictly and nor she had any desire to ask, so she did not ask any more question and left home. and she started this sadhana without feeling any type of fear that this is mahavidya sadhana and as some of sadhak has fear that if something went wrong than.. she was unaware of that so she had no fear… when she successfully complete the sadhana and again meet that guru brother and tell her experience..
she said to him that on the second day of her sadhana her mc period was start, due to hesitation,she did ask to him and continued the sadhana normally sadhana has to stop in theses period , but on that day she knew not where a woman came/appeared to her room and very smiling blesses her and ask for that blood . whaty she could do rightly on the moment she did. And no other experience happened to her.
When she was asked was there any other experienced she felt. She replied now whenever she walks on the street or road everyone start looking her , even she travel from any other mode of communication , she was getting ultimate interest from others . even the office where she was working all her colleague now start talk to her and try to get opportunity to nearer to her. As she completely aware of that she is a very normal and ordinary woman .even what now her husband seen in her ,he again start taking interest in her and start loving as he was previously did.
She spoke with full heart now due to sadgurudev ji grace and mother blessing her lost family /world again she was able regained. On listening this that shishy very much amazed that and told her , it’s the Sadgurudev divine lila that he had forgot to mentioned this fact to her but due to Sadgurudev blessing she did not stop the sadhana, this is the only sadhana that can be continued in this special time period in woman life.)
This clearly shows us that no dev or devi is tied to us as per our so called belief and faith and vision . she/he also reading our mind and thought continuously and most importantly if any sadhak is sadgurudevji’ shishy than its sure without taking Sadgurudev jis permission no dev or devi will appear in front of sadhak her.
Second most important things is that as we have mentioned in ma Balgamukhi rahasyam part 4 that what dhyan we are using and that dhyan mentioning which aspect or power of that dev/devi only that will be felt of us. so one must keep more concentration of theses facts .
In continuous..
****NPRU****

Guru Mantra se samadhi ki aur

गुरुमंत्र से समाधी की और -- २ आज इस लेख आप को योग सरीर के वारे बताउगा आशा है के आपकी जानकारी में जरुर विस्तार होगा !इस सरीर की रचना अपने में अनेक रहस्य संजोये हुए है !सभी मानते है के सरीर में ७ चक्र मूलाधार से लेकर सहस्र चक्र तक है और इस आगे साधक की सोच बहुत कम है !लेकिन निखिल योग के तहत मैं जो रहस्य उद्घाटन करने जा रहा हू वोह आपको जरुर हरेन कर देगा ! १. इस सरीर में १०८ श्री चक्र है जीने भेदन करके साधक सिद्ध पुरषों की श्रेणी में आ जाता है और उसे ब्रमंड के किसी कोने में जाना और उस की जानकारी सहज ही हो जाती है !निखिल योग बहुत ही विशाल है !जिसे अपना कर सिदाश्र्म के जोगी एक विशेष उन्ती में य़ा गये और बर्षो की तपश्या को कुश ही दिनों में साकार कर मनोवषित स्थिति प्राप्त कर सके आप भी उस आनंद को पा सके ऐसी कामना करता हुआ इस लेख को शुरू करता हू !इस सरीर में ६ कुंडलिनी शक्ति ६ जगह सुप्त अवस्था में विराज मान है जिसे सभी धर्म आचार्यो ने गुप्त ही रखा है सरीर में ६ जगह मूलाधार चक्र है !और उसी लड़ी में आगे ६ चक्र कारवार है जिन के नाम आप जानते हैं !पहली अवस्था पैर से शुरू करते है दाये और बाये पैर के अंगूठे में मूलाधार चक्र विदमान है और उसके थोरा नीचे शेषनाग का तिर्कोंन है जिस में कुंडलिनी शक्ति विदमान है वडी उंगल के ठीक नीचे स्वाधिष्ठान चक्र है !और अनमिका के नीचे मणिपुर चक्र और कनिष्ठा के नीचे अनहद चक्र इस से थोरा नीचे उसी चक्र के नीचे विशुद चक्र और हथली और विशुद चक्र के मद्य में आज्ञा चक्र और हथेली के मद्य भाग में सहस्र्हार चक्र है मूलाधार में सिदेश्वर गणपति का वास है !इस के जागरण से जा यह कहू की इस कुंडलिनी के जागरण से सभी देव शक्तिया गुरु के दाहिने अगुठे में वास करती है और शास्र्हार के जागरण से पदम योग बनता है और गुरु के चरणों में गंगा का वास होता है और जो साधक इस शक्ति जा तत्व से एकाकार कर लेता है!वोह जहाँ भी कदम रखता है वोह स्थान पवित्र हो जाता है देव दर्शन उसे सहज ही सुलभ हो जाता है ! २. अब दुसरे बाये पैर में भी इसी परकार ७ चक्र और कुंडलिनी शक्ति विदमान है !इस मूलाधार में विक्तेश्वर गणपति का वास है और इस के जागरण से असीरी शक्तिया जागरण होती है और वोह शमशान अदि साधनायो में सहज ही सफलता पा लेता है भूत अदि गण उसके आगे हाथ जोड़े खड़े रहते है और उसके हुकम को मानते है वेह अपने बाय पैर के अगुठे से एक विकट पाप शक्ति को जन्म दे सकता है जा यह कहू भूत को पैर के अगुठे से ही पैदा कर सकता है पूर्ण शास्र्हार के भेदन से सभी विकट शक्तियों पे आदिकार स्थापन करने में कामजाब हो जाता है उसके के लिए किसी भी आत्मा पे आदिकार पाना मुश्किल नहीं होता वह हर जगह निर्भीक रहता है

Wednesday, July 27, 2011

GURU SEVA - Jis Ke aage sari sadhnaye kucch bhi nahi hai



गुरु सेवा : जिसके सामने सारी साधनायें न्यून हैं.

http://www.facebook.com/pages/Mantra-Tantra-Yantra-Science/114316648623465



गुरु सेवा : जिसके सामने सारी साधनायें न्यून हैं.

"मुझे वे शिष्य अत्यंत प्रिय हैं, जो अपने स्तर के अनुसार सेवा कार्य में

रत हैं और समाज के नवनिर्माण में अपना योगदान प्रस्तुत कर रहे हैं. जब

मैं एक, पॉँच, दस, पचास, सौ, पॉँच सौ व्यक्तियों व् परिवारों में

अध्यात्मिक चेतना की लहर फैलाकर, उन्हें पत्रिका सदस्य बनाकर आर्य

संस्कृति से उनका पुनर्परिचय करने वाले शिष्यों के नामों को पड़ता हूँ,

तो उन पर मुझे गर्व हो आता हैं, ऐसा लगता हैं, कि मेरा एक प्रयास कुछ

सार्थक हुआ हैं और मानव कल्याण को समर्पित कुछ रत्नों का चुनाव हो पाया

हैं. ऐसे गृहस्थ शिष्य मुझे सन्यासी शिष्यों से अधिक प्रिय हैं, क्योंकि

सन्यासी शिष्यों द्वारा कि गयी सेवा से सिर्फ उनका ही कल्याण होता हैं,

जबकि इन गृहस्थ शिष्यों द्वारा कि जाने वाली सेवा से पुरे समाज का भी

कल्याण होता हैं. ऐसे शिष्यों के नाम स्वत: ही मेरे ह्रदय पटल पर अंकित

हो जाते हैं और मैं अपनी करुणा और आशीर्वाद की अमृत वर्षा से उन्हें



सराबोर कर देने के लिए व्यग्र हो उठता हूँ."

-परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी महाराज

Monday, July 18, 2011

Shiva Tandava Strotram


‎||सार्थशिवताण्डवस्तोत्रम् ||

||श्रीगणेशाय नमः ||

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
matted hair-thick as forest-water-flow-consecrated-​area
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् |
in the throat-stuck-hanging-snake-lof​ty-garland
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वय​ं
damat-damat-damat-damat-having​ sound-drum-this
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||
did-fierce-Tandava-may he shower-on us-Shiva-auspiciousness

With his neck, consecrated by the flow of water flowing from the
thick forest-like locks of hair, and on the neck, where the lofty snake
is hanging garland, and the Damaru drum making the sound of
Damat Damat Damat Damat, Lord Shiva did the auspicious dance of
Tandava and may He shower prosperity on us all.

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्​झरी-
matted hair-a well-agitation-moving-celestia​l river
- विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि​ |
agitating-waves-rows-glorified​-head
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावक​े
Dhagat dhagat dhagat-flaming-forehead-flat area-fire
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२||
baby-moon-crest jewel-love-every moment-for me

I have a very deep interest in Lord Shiva, whose head is glorified by
the rows of moving waves of the celestial river Ganga, agitating in
the deep well of his hair-locks, and who has the brilliant fire flaming
on the surface of his forehead, and who has the crescent moon as a
jewel on his head.

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्​धुर
King of mountains-daughter-sportive-ki​th-beautiful-
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमा​नसे |
glorious-horizon-all living beings-rejoicing-mind
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धराप​दि
compassion-look-continuous flow-obstructed-hardships
क्वचिद्दिगम्बरे( क्वचिच्चिदंबरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३||
some time-in the omnipresent-mind-pleasure-may seek-in a thing

May my mind seek happiness in the Lord Shiva, in whose mind all the
living beings of the glorious universe exist, who is the sportive
companion of Parvati (daughter of the mountain king), who controls
invincible hardships with the flow of his compassionate look, who is
all-persuasive (the directions are his clothes).

लताभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्​रभा
creeping-snake-reddish brown-shining-hood-gem-luster-​
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वध​ूमुखे |
variegated-red dye-melting-applied-directions​-beloved-face
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरी​यमेदुरे
intoxicated-elephant-glitterin​g-skin-upper garment-covered
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||
mind-pleasure-wonderful-may it seek-in him who supports all life

May I seek wonderful pleasure in Lord Shiva, who is supporter
of all life, who with his creeping snake with reddish brown hood and
with the luster of his gem on it spreading out variegated colors on the
beautiful faces of the maidens of directions, who is covered with a
glittering upper garment made of the skin of a huge intoxicated
elephant.

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
Indra/Vishnu-and others-all-lined up-heads-
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः |
flower-dust-force-grayed-feet-​seat
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
snake-red-garland (with) tied-locked hair
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ||५||
for the prosperity-for a long time-may he be-Cakora bird-relative-on head

May Lord Shiva give us prosperity, who has the moon (relative of the
Cakora bird) as his head-jewel, whose hair is tied by the red snake-
garland, whose foot-stool is grayed by the flow of dust from the
flowers from the rows of heads of all the Gods, Indra/Vishnu and others.

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्ग​भा-
forehead-flat area-flaming-fire-sparks-luste​r
- निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् |
devoured-God of Love-bowing-Gods-leader
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
cool-rayed-crescent-beautiful-​head
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ||६||
for the Siddhi-prosperity-head-locked hair-may it be-to us

May we get the wealth of Siddhis from Shiva's locks of hair, which
devoured the God of Love with the sparks of the fire flaming in His
forehead, who is bowed by all the celestial leaders, who is beautiful
with a crescent moon

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल​-
dreadful-forehead-flat area-dhagat-dhagat-flaming
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसाय​के |
fire-offered-powerful-God of Love
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्र​पत्रक-
king of mountains-daughter-breast-tip-​colorful-decorative lines
- प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||७||
drawing-sole-artist - in the three-eyed -deep interest-mine

My interest is in Lord Shiva, who has three eyes, who has offered the
powerful God of Love into the fire, flaming Dhagad Dhagad on the
flat surface of his forehead who is the sole expert artist of drawing
decorative lines on the tips of breasts of Parvati, the daughter of
the mountain king.

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
new-cloud-circle - obstructed-harsh-striking-
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः |
new moon-midnight-darkness-tightly​-tied-neck
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
celestial-river-wearing-may he bless-skin-red
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ||८||
moon-lovely-prosperity-univers​e-bearer of the burden

May Lord Shiva give us prosperity, who bears the burden of this
universe, who is lovely with the moon, who is red wearing the skin,
who has the celestial river Ganga, whose neck is dark as midnight
of new moon night covered by many layers of clouds.

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्​रभा-
well-opened-blue-lotus-univers​e-darkness-luster
- वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्​धरम् |
hanging-inside-temple-luster-t​ied-neck
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
Manmatha-killer-city-destroyer​-mundane life -destroyer-sacrifice destroyer
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ||९||
elephant-killer-demon-killer-h​im-destroyer of Lord Yama-I worship

I pray to Lord Shiva, whose neck is tied with the luster of the temples
hanging on the neck with the glory of the fully-bloomed blue lotuses
which looked like the blackness (sins) of the universe, who is the
killer of Manmatha, who destroyed Tripuras, who destroyed the
bonds of worldly life, who destroyed the sacrifice, who destroyed the
demon Andhaka, the destroyer of the elephants, and who controlled
the God of death, Yama.

अखर्व( अगर्व) सर्वमङ्गलाकलाकदंबमञ्जरी
great-all-auspicious-art-varie​gated-bunch-
रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम् |
enjoyment-flow-sweetness-flari​ng up-bees
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
Manmatha-destroyer-city-destro​yer-worldly bond-destroyer -sacrifice-destroyer
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ||१०||
elephant-killer-Andhaka-demon-​killer-him-Yama-controller-I worship

I pray to Lord Shiva, who has bees flying all over because of the sweet
honey from the beautiful bunch of auspicious Kadamba flowers, who
is the killer of Manmatha, who destroyed Tripuras, who destroyed the
bonds of worldly life, who destroyed the sacrifice, who destroyed the
demon Andhaka, the killer of the elephants, and who controlled the
God of death, Yama.

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्​वस-
victorious-foot-sky-whirling-r​oaming-snake-breath-
- द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभाल​हव्यवाट् |
coming out-shaking-evident-dreadful-f​orehead-fire
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतु​ङ्गमङ्गल
Dhimid-dhimid-dhimid-sounding-​drum-high-auspicious-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११||
sound-series-caused-fierce-Tan​dava dance-Shiva

Lord Shiva, whose dance of Tandava is in tune with the series of loud
sounds of drum making Dhimid Dhimid sounds, who has the fire
on the great forehead, the fire that is spreading out because of the
breath of the snake wandering in whirling motion in the glorious sky.

स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौ​क्तिकस्रजोर्-
touching-varied-ways-snake-emb​odied-garland
- गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
most precious-gems-brilliance-frien​ds-enemies-two wings
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
grass-lotus-eyes people and the great emperor
समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२||
equal-behaviour-always-Lord Shiva-worship-I

When will I worship Lord Sadasiva (eternally auspicious) God, with
equal vision towards the people and an emperor, and a blade of grass
and lotus-like eye, towards both friends and enemies, towards the
valuable gem and some lump of dirt, towards a snake and a garland
and towards varied ways of the world

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
when-celestial river-bush-hollow place(in)-living
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
released-bad mind-always-on the head-folded hands-
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
agitation-shaking-eyes-the best-forehead-interested
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३||
"Shiva" -mantra-uttering-when-happy-wi​ll-be-I

When will I be happy, living in the hollow place near the celestial
river, Ganga, carrying the folded hands on my head all the time, with
my bad thinking washed away, and uttering the mantra of Lord Shiva
and devoted in the God with glorious forehead with vibrating eyes.

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
This-indeed-daily-thus-said-th​e best of the best-stotra
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
reading-remembering-saying-a person-sanctity-gets-always
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
in Shiva-in Guru-deep devotion-quickly-gets-no-other​-way
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४||
removal of delusion-indeed-for the people-blessed Shiva's thought

Whoever reads, remembers and says this best stotra as it is said here,
gets purified for ever, and obtains devotion in the great Guru Shiva.
For this devotion, there is no other way. Just the mere thought of
Lord Shiva indeed removes the delusion.

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
worship-end-time-Ravana-sung
यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे |
who-Shiva-worship-dedicated-re​ads-early in the evening, after sunset
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
to him-stable-chariot-elephant-ho​rse-having
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५||
Lakshmi-always-definitely-favo​urable-gives-Shiva

In the evening, after sunset, at the end of Puja, whoever utters this
stotra dedicated to the worship of Shiva, Lord Shiva blessed him with very
stable Lakshmi (prosperity) with all the richness of chariots, elephants
and horses.

इति श्रीरावण- कृतम्
thus sri-Ravana-done
शिव- ताण्डव- स्तोत्रम्
Shiva-tandava-stotra
सम्पूर्णम्
ends.

Mahakali Mahavidya By Dr. Narayan Dutta Shrimali

Mahakali is the first Mahavidya. It is the best sadhana to make one's
life complete. Realization of mother Mahakali, success in all
sadhanas, all the siddhis, immortality, perfect health, unlimited
wealth, elimination of all problems, eradication of all enemies etc.
are just a few of the things which a sadhak can gain from this
sadhana.
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Mantra from MTYV Jan '95

Om Kreem Kreem Guhya Kalyei Kreem Kreem Phat

MTYV Jan '96

Om Kreem Kreem Mahakalyei Kreem Kreem Namah

Bhadrakali Mantra from MTYV Mar '96

Om Bham Bhadraayei Namah Aagachchha Bham Om

Mantra from MTYV Apr '97

Om Kreem Kreem Kreem Hleem Hreem Kham Sphotay Kreem Kreem Kreem Phat

Mantra from MTYV Jan '98

Om Kreem Kleem Mahakali Hum Hum Phat

Kamakhya Mantra from MTYV Aug '00

Treem Treem Hoom Hoom Streem Streem Kaamaakhye Praseed Streem Streem
Hoom Hoom Treem Treem Treem Swaha

Saumya Dakshin Kali Mantra from MTYV Nov '00

Om Kreem Kreem Kleem Kleem Saumya Dakshin Kaalike Kleem Kleem Kreem
Kreem Phat

Kundalini Awakening

Kundalini Awakening

कुंडलिनी जागरण
कुन्डलिनी Kundalini जागरण साधनात्मक जीवन का सौभाग्य है.
कुन्डलिनी जागरण साधना गुरु के सानिध्य मे करनी चाहिये.
यह शक्ति अत्यन्त प्रचन्ड होती है.
इसका नियन्त्रण केवल गुरु ही कर सकते हैं
यदि आप गुरु दीक्षा ले चुके हैं तो अपने गुरु की अनुमति से ही यह साधना करें.
यदि आपने गुरु दीक्षा नही ली है तो किसी योग्य गुरु से दीक्षा लेकर ही इस साधना में प्रवृत्त हों.
|| ॐ ह्रीं मम प्राण देह रोम प्रतिरोम चैतन्य जाग्रय ह्रीं ॐ नम: ||
यह एक अद्भुत मंत्र है.
इससे धीरे धीरे शरीर की आतंरिक शक्तियों का जागरण होता है और कालांतर में कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होने लगती है.
प्रतिदिन इसका १०८, १००८ की संख्या में जाप करें.
जाप करते समय महसूस करें कि मंत्र आपके अन्दर गूंज रहा है.Kundalini Awakening
मन्त्र जाप के अन्त में कहें
३ बार ---> ॥ ऊं श्री निखिलेश्वरायै नमः ॥
ना गुरोरधिकम,ना गुरोरधिकम,ना गुरोरधिकम
शिव शासनतः,शिव शासनतः,शिव शासनत
निखिलेश्वरानंद मंत्रम :-
॥ निं निखिलेश्वराय नमः ॥
शास्त्र कहता है कि
य: गुरु स: शिव: = जो गुरु हैं वही शिव हैं
विधान :-
1.तीन लाख जप ९० दिनों में पूरा करें.
2.अद्भुत अनुभव होंगे.

shiv panchakeshar stotra maha mantra

नागेन्द्र हाराय त्रिलोचनाय भस्माङगरागाय महेश्र्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः
शिवायमन्दाकिनिसलिल चन्द्नचर्चिताय नन्दीश्र्वर प्रमथनाथ महेश्र्वराय
मंदार पुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै मकाराय नमः शिवाय
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वर नाशाकाय
श्री नीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नमः शिवाय
वसिष्ठकुम्भोद्भव गौतामार्य मुनीन्द्र देवार्चित शेखराय
चंद्रार्कावैश्वानर लोचनाय तस्मै वकाराय नमः शिवाय
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नमः शिवाय
पंचाक्षर मिंद पुण्यं यः पठेच्छीव् सन्नदै l
शिवलोक कमवाप्नोति शिवेन सहमोदते l l
l l इति श्री शिव पंचाक्षर स्त्रोत्रम l l

Friday, July 15, 2011

Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji ke Pravachan

DOWNLOADABLE Audio Pravachans by Dr.narayan Dutt Shrimaliji.

कुबेरपति शिव शक्ति साधना प्रयोग

कुबेरपति शिव शक्ति साधना प्रयोग
भाग -१

भाग-२

Friday, July 8, 2011

Ganesh destruction crisis ode

संकट नाशन गणेश स्तोत्र

प्रणम्य शिरसा देवं गौरी पुत्रं विनायकं |भक्तावासं स्मरेन्नित्य-मायुः कामार्थ सिद्धये || 1 ||

प्रथमं वक्रतुंडम च एकदंतं व्दितीयकम |
तृतीयं कृष्ण - पिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम || 2 ||

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च |
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टकम || 3 ||

नवमं भलाचंद्रम च दशमं तु विनायकं |
एकादशं गणपति व्दादशम तु गजाननं || 4 ||

व्दाद -शैतानी नामानी त्रिसंध्यं यः पठैन्नरः |
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम || 5 ||

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम |
पुत्रार्थी लभते पुत्रान मोक्षार्थी लभते गतिम् || 6 ||

जपेद गणपति-स्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत |
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः || 7 ||

अष्ठभ्यो ब्राह्मनेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत |
तस्य विद्या भवेत् सर्व गणेशस्य प्रसादतः || 8 ||


| इति श्री नारद पुराने संकट नाशनं गणेश स्तोत्रं सम्पूर्णं |

Dharma disciple of Guru

शिष्य धर्म

शिष्य वह है जो नित्य गुरु मंत्र का जप उठते, बैठते, सोते जागते करता रहता है।

चाहे कितना ही कठिन एवं असंभव काम क्यो न सोपा जाए, शिष्य का मात्र कर्तव्य बिना किसी ना नुकर के उस काम में लग जाना चाहिए।

गुरु शिष्य की बाधाओं को अपने ऊपर लेते है, अतएव यह शिष्य का भी धर्म है की वह अपने गुरु की चिंताओं एवं परेशानियों को हटाने के लिए प्राणपण से जुटा रहे।

शिष्य का मात्र एक ही लक्ष्य होता है, और वह है, अपने ह्रदय में स्थायी रूप से गुरु को स्थापित करना।

और फिर ऐसा ही सौभाग्यशाली शिष्य आगे चलकर गुरु के ह्रदय में स्थायी रूप से स्थापित हो पाता है।

जब ओठों से गुरु शब्द उच्चारण होते ही गला अवरूद्ध हो जाए और आँखे छलछला उठें तो समझे कि शिष्यता का पहला कदम उठ गया है।

और जब २४ घंटे गुरु का अहसास हो, खाना खाते, उठते, बैठते, हंसते गाते अन्य क्रियाकलाप करते हुए ऐसा लगे कि वे ही है मैं नहीं हूं, तों समझें कि आप शिष्य कहलाने योग्य हुए है।

जो कुछ करते हैं, गुरु करते हैं, यह सब क्रिया कलाप उन्ही की माया का हिस्सा है, मैं तो मात्र उनका दास, एक निमित्त मात्र हूं, जो यह भाव अपने मन में रख लेता है वह शिष्यता के उच्चतम सोपानों को प्राप्त कर लेता है।

गुरु से बढ़कर न शास्त्र है न तपस्या, गुरु से बढ़कर न देवी है, व देव और न ही मंत्र, जप या मोक्ष। एक मात्र गुरुदेव ही सर्वश्रेष्ठ हैं।
न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं
शिव शासनतः शिव शासनतः शिवन शासनतः, शिव शासनतः

जो इस वाक्य को अपने मन में बिठा लेता है, तो वह अपने आप ही शिष्य शिरोमणि बन कर गुरुदेव का अत्यन्त प्रिय हो जाता है। गुरु जो भी आज्ञा देते है, उसके पीछे कोई-रहस्य अवश्य होता है। अतः शिष्य को बिना किसी संशय के गुरु कि आज्ञा का पूर्ण तत्परता से, अविलम्ब पालन करना चाहिए, क्योंकि शिष्य इस जीवन में क्यो आया है, इस युग में क्यो जन्मा है, वह इस पृथ्वी पर क्या कर सकता है, इस सबका ज्ञान केवल गुरु ही करा सकता है।

शिष्य को न गुरु-निंदा करनी चाहिए और न ही निंदा सुननी चाहिए। यदि कोई गुरु कि निंदा करता है तो शिष्य को चाहिए कि या तो अपने वाग्बल अथवा सामर्थ्य से उसको परास्त कर दे, अथवा यदि वह ऐसा न कर सके, तो उसे ऐसे लोगों की संगति त्याग देनी चाहिए। गुरु निंदा सुन लेना भी उतना दोषपूर्ण है, जितना गुरु निंदा करना।

गुरु की कृपा से आत्मा में प्रकाश सम्भव है। यही वेदों में भी कहा है, यही समस्त उपनिषदों का सार निचोड़ है। शिष्य वह है, जो गुरु के बताये मार्ग पर चलकर उनसे दीक्षा लाभ लेकर अपने जीवन में चारों पुरुषार्थ - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करता है।

सदगुरु के लिए सबसे महत्वपूर्ण शब्द शिष्य ही होता है और जो शिष्य बन गया, वह कभी भी अपने गुरु से दूर नहीं होता। क्या परछाई को आकृति से अलग किया जा सकता है? शिष्य तो सदगुरु कि परछाई की तरह होते है।

जिसमे अपने आप को बलिदान करने की समर्थता है, अपने को समाज के सामने छाती ठोक कर खडा कर देने और अपनी पहचान के साथ-साथ गुरु की मर्यादा, सम्मान समाज में स्थापित कर देने की क्षमता हो वही शिष्य है।

गुरु से जुड़ने के बाद शिष्य का धर्म यही होता है, कि वह गुरु द्वारा बताये पथ पर गतिशील हो। जो दिशा निर्देश गुरु ने उसे दिया है, उनका अपने दैनिक जीवन में पालन करें।

यदि कोई मंत्र लें, साधना विधि लें, तो गुरु से ही लें, अथवा गुरुदेव रचित साहित्य से लें, अन्य किसी को भी गुरु के समान नहीं मानना चाहिए।

शिष्य के लिए गुरु ही सर्वस्व होता है। यदि किसी व्यक्ति की मित्रता राजा से हो जाए तो उसे छोटे-मोटे अधिकारी की सिफारिश की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए श्रेष्ठ शिष्य वहीं है, जो अपने मन के तारों को गुरु से ही जोड़ता है।

शिष्य यदि सच्चे ह्रदय से पुकार करे, तो ऐसा होता ही नहीं कि उसका स्वर गुरुदेव तक न पहुंचे। उसकी आवाज गुरुदेव तक पहुंचती ही है, इसमे कभी संदेह नहीं करना चाहिए।

मलिन बुद्धि अथवा गुरु भक्ति से रहित, क्रोध लोभादी से ग्रस्त, नष्ट आचार-विचार वाले व्यक्ति के समक्ष गुरु तंत्र के इन दुर्लभ पवित्र रहस्यों को स्पष्ट नहीं करना चाहिए।

वास्तविकता को केवल शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता। आम का स्वाद उसे चख कर ही जाना जा सकता है। साधना द्वारा विकसित ज्ञान द्वारा ही परम सत्य का साक्षात्कार सम्भव है।

-सदगुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमालीजी

Saturday, July 2, 2011

Is dedicated to you

Is dedicated to you


त्वदीयं वस्तु गोविन्द

परमहंस स्वामी सच्चिदानंद जी से दीक्षा के कई वर्षो बाद जब निखिलश्वेरानंद के सेवा ,एक निष्ठा एवं पूर्ण शिष्यत्व से स्वामी जी प्रभावित हुए तो अक दिन पूछा-निखिल |मैं तुम्हारी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हूँ ,तुम जो कुछ भी चाहो मांग सकते हो ,असंभव मांग भी पूरी करूंगा ,मांगो ?निखिलश्वेरानंद एक क्षण तक गुरु चरणों को निहारते रहे ,बोले -"त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पयेत " जब 'मेरा ' कहने लायक मेरे पास कुछ है ही नहीं ,तो मैं क्या मांगू ,किसके लिए मांगू ,मेरा मन ,प्राण ,रोम -प्रतिरोम तो आपका है ,आपका ही तो आपको समर्पित है ,मेरा अस्तित्व ही कहाँ है ?| उत्तर सुनकर कठोर चट्टान सदृश गुरु की आँखे डबडबा गयी और शिष्य को आपने हाथो से उठा कर सीने से चिपका दिया ,एकाकार कर दिया ,पूर्णत्व दे दिया |




शिष्य की व्यक्तिगत कोई इच्छा या आकांक्षा नहीं होती, जब वह मुक्त गुरु के सामने होता हैं, तब सरल बालक की तरह ही होता हैं, गुरु के सामने तो शिष्य कच्ची मिटटी के लौन्दे की तरह होता हैं, उस समय उसका स्वयं का कोई आकर नहीं होता, ऐसी स्थिति होने पर ही वह सही अर्थों में शिष्य बनने का अधिकारी हो सकता हैं. इसीलिए शिष्य को चाहिए की वह जब भी गुरु के सामने उपस्थित हो, तब वह सारी उपाधियों और विशेषताओं को परे रखकर उपस्थित हो, ऐसा होने पर ही परस्पर पूर्ण तादात्म्य सम्भव हैं.शिष्य का अर्थ निकटता होता हैं, और वह जितना ही गुरु के निकट रहता हैं, उतना ही प्राप्त कर सकता हैं, आप अपने शरीर से गुरु के चरणों में उपस्थित रह सकते हैं. यदि सम्भव हो तो साल में तिन या चार बार स्वयं उनके चरणों में जाकर बैठे, क्योंकि गुरु परिवार का ही एक अंश होता हैं, परिवार का मुखिया होता हैं, अतः समय-समय पर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करना, उससे कुछ प्राप्त करना, शिष्य का पहला धर्म हैं, यदि आप गुरु के पास जायेंगे ही नहीं, तो उनसे कुछ प्राप्त ही किस प्रकार से कर सकेंगे? गुरु से बराबर सम्बन्ध बनाये रखना और गुरु के साथ अपने को एकाकार कर लेना ही शिष्यता हैं.
गुरु आज्ञा ही सर्वोपरि हैं, जब आप शिष्य हैं तो यह आपका धर्म हैं, कि आप गुरु की आज्ञा का पालन करें गुरु की आज्ञा में कोई ना कोई विशेषता अवश्य छिपी रहती हैं. जितनी क्षमता और शक्ति के द्वारा. जितना ही जल्दी सम्भव हो सकें, गुरु की आज्ञा का पालन करना शिष्यता का धर्म मन गया हैं.The Hunger Games
सस्नेह तुम्हारा
नारायण दत्त श्रीमाली.

shadhna : In practice the formula for success

shadhna : In practice the formula for success
साधना में सफलता के सूत्र :-

साधक को चाहिए वह आपने पाप कार्य ,गलत कार्य और असामाजिक कार्य यदि किये हो तो गुरु के सामने साफ़ -साफ़ लिखकर प्रायश्चित कर ले |ऐसा करते ही साधक उन दोषों से मुक्त हो जाता है और इसके बाद गुरु आपने तपस्या के बल से उन दोषों को समाप्त कर देता है |
.गुरु पर पूर्ण और प्रगाढ़ आस्था रखे |किसी भी हालत में मन में भ्रम या संशय पैदा न करे |विपरीत परिस्थिति में भी गुरु के प्रति आस्था में किसी प्रकार के न्यूनता न लावे |
गुरु की आज्ञा जीवन में सर्वोच्च आज्ञा मानकर साधक को उसका पालन करना चाहिए |किसी भी प्रकार की ,कोई भी आज्ञा गुरु दे तो उसके बारे में कुछ भी विचार न करते हुए साधक को आज्ञा पालन करना चाहिए चाहे वह उसकी रूचि के अनुकूल हो या प्रतिकूल |
गुरु किसी भी प्रकार की परीक्षा ले तो उस परीक्षा के बारे में तर्क -वितर्क नहीं करे अपितु उसे सहर्ष शिरोधार्य कर परीक्षा में उतीर्ण होने का पूर्ण प्रयत्न करे |
गुरु जिस प्रकार से साधना क्रम बताये उसी प्रकार से साधना संपन्न करे |
आपने मन में पुरुष या नारी होने का अहम् न रखे अपितु आपने आप को साधक माने |पुरुष या नारी का भेद और अहम् समाप्त होने पर ही वह साधक कहलाने में समर्थ हो पाता है |

सस्नेह तुम्हारा
नारायण दत्त श्रीमाली.

Tuesday, June 21, 2011

A hundred years later, the same strength, will power in front of you.

मैं तुम्हे गिडगीडाने वाला नहीं बनाना चाहता, मैं बना ही नहीं सकता। बन भी नहीं सकता, जब मैं खुद बना ही नहीं तो तुम्हे कैसे बनाउंगा। पहले हाथ उठाऊंगा नहीं, और हाथ उसका उठा और मेरे गाल तक पहुंचे उससे पहले छः थप्पड़ मार कर निचे गिरा दूंगा, आज भी इतनी ताक़त क्षमता रखता हूँ, आज से सौ साल बाद भी इतनी ही ताक़त, क्षमता रखूंगा आपके सामने।

सम्राट होते होंगे, मैंने देखा नही सम्राट कैसे होते है, मगर सम्राटों के सिर भी गुरू के चरणों मे झुकते है, उनके मुकुट भी गुरू के चरणों मे पड़ते हैं यदि वह सही अर्थों मे गुरू है, ज्ञान, चेतना युक्त है।

आज से हजारों वर्ष पहले सिंधु नदी के किनारे पहली बार आर्यों ने आंख खोली, हमारी पूर्वजों ने पहली बार अनुभव किया कि ज्ञान भी कुछ चीज़ होती है, पहली बार उन्होने एहसास किया कि जीवन मे कुछ उद्देश्य भी होता है, कुछ लक्ष्य भी होता है, तब उन्होने सबसे पहले गुरू मंत्र रचा, गुरू की ऋचाओँ को आवाहन किया। और भी देवताओं का कर सकते थे, भगवान रुद्र का कर सकते थे, विष्णु का कर सकते थे, उन ऋंषियों के सामने ब्रह्मा थे, इंद्र थे, वरुण थे, यम थे, कुबेर थे, सैकड़ों थे।

मगर सबसे पहले जिस मंत्र कि रचना कि या संसार मे सबसे पहले जिस मंत्र कि रचना हुई, वह गुरू मंत्र था।

जो कहूं वह करना ही है आपको। शास्त्रों ने कहा है- जैसे गुरू करे ऐसा आप मत करिए, जो गुरू कहे वह करिए। जो गुरू कहे वह करिए। आपको यह करना है तो करना है।

आप गुरू के बताए मार्ग चलेंगे, गतिशील होंगे, तो अवश्य आपको सफ़लता मिलेगी, गारंटी के साथ मिलेगी। और साधना आप पूर्ण धारण शक्ति के साथ करेंगे तो अवश्य ही पौरुषवान, हिम्मतवान, क्षमतावान बन सकते है। आप अपने जीवन मे उच्च से उच्च साधनाएं, मंत्र और तंत्र का ज्ञान गुरू से प्राप्त कर सके और प्राप्त ही नहीं करें, उसे धारण कर सकें, आत्मसात कर सके ऐसा मैं आपको ह्रदय से आर्शीवाद देता हूं, कल्यान कामना करता हूं

Saturday, May 14, 2011

Guru Gita

गुरु गीता

गुरु गीता एक हिन्दू ग्रंथ है। इसके रचयिता वेद व्यास हैं। वास्तव में यह स्कन्द पुराण का एक भाग है। इसमें कुल ३५२ श्लोक हैं।
गुरु गीता में भगवान शिव और पार्वती का संवाद है जिसमें पार्वती भगवान शिव से गुरु और उसकी महत्ता की व्याख्या करने का अनुरोध करती हैं। इसमें भगवान शंकर गुरु क्या है, उसका महत्व, गुरु की पूजा करने की विधि, गुरु गीता को पढने के लाभ आदि का वर्णन करते हैं।
वह सद्गुरु कौन हो सकता है उसकी कैसी महिमा है। इसका वर्णन इस गुरुगीता में पूर्णता से हुआ है। शिष्य की योग्यता, उसकी मर्यादा, व्यवहार, अनुशासन आदि को भी पूर्ण रूपेण दर्शाया गया है। ऐसे ही गुरु की शरण में जाने से शिष्य को पूर्णत्व प्राप्त होता है तथा वह स्वयं ब्रह्मरूप हो जाता है। उसके सभी धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य आदि समाप्त हो जाते हैं तथा केवल एकमात्र चैतन्य ही शेष रह जाता है वह गुणातीत व रूपातीत हो जाता है जो उसकी अन्तिम गति है। यही उसका गन्तव्य है जहाँ वह पहुँच जाता है। यही उसका स्वरूप है जिसे वह प्राप्त कर लेता है।
[संपादित करें]गुरु

गुरु गीता में ऐसे सभी गुरुओं का कथन है जिनकों 'सूचक गुरु' ,'वाचक गुरु', बोधक गुरु', 'निषिद्ध गुरु', 'विहित गुरु', 'कारणाख्य गुरु', तथा 'परम गुरु' कहा जाता है।

इनमें निषिद्ध गुरु का तो सर्वथा त्याग कर देना चाहिए तथा अन्य गुरुओं में परम गुरु ही श्रेष्ठ हैं वही सद्गुरु हैं।

गुरु गीता

न जानन्ति परम तत्त्वं गुरुदीक्षा परान्ग्मुखा:|
भ्रांत पशुसमा हेय्ता: स्वपरिज्ञान वर्जिता ||

अतार्थ गुरु दीक्षा के बिना परम तत्व को नहीं जाना जा सकता और परमतत्व को जाने बिना मनुष्य भ्रांत पशु के सामान होता है |दीक्षा का तात्पर्य है पशुत्व से मानत्व और मानत्व से देवत्व की ओर अग्रसर होने की क्रिया |दीक्षा ही ऐसे प्रक्रिया है ,जिसके माध्यम से गुरु अपना तपस्यांश प्रदान कर शिष्य को देवत्व की ओर बढ़ाते है ,उसके जीवन की समस्त कमियों को समाप्त करते हुए शिष्य को पूर्णत्व देने के लिए तत्पर होते है | इसलिए गुरु के महिमा को कभी नहीं भूलना चाहिए |

गुरुभाव परम तीर्थम अनयेतीर्थ नीरार्थकम |
सर्वेतीर्थमयम देवी श्रीगुरो शेचर्नाम्बुजम||

अतार्थ हे पार्वती |गुरु ही सर्वश्रेष्ट तीर्थ है अन्य तीर्थ निरर्थक है |श्री गुरु के चरण कमल ही सर्व तीर्थमय है |जितने भी तीर्थ है कांची ,काशी ,गया ,अवंतिका आदि वहा कुछ पाने के लिए जाना आयास मात्रे है ,वे निर्जीव है ,निरर्थक है वे आपने उपासक को कोई चेतेन्यता नहीं दे सकते ,इसके अपेक्षा जीवित जाग्रत गुरु के चरणों में बैठकर सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है इसलिए गुरु चरणों को तीर्थराज माना गया है जो श्रेय और प्रेय दोनों देने में समर्थ है |

गुरु गीता

हृद्याम्बुजे कर्निक्मध्येसंस्थं सिंहासने गुरुम संस्थितामदिव्येमुर्तिम |
ध्यायेद गुरुम चन्द्रकलाप्रकाषम चित्पुस्ताकाभिश्त्वरम दधानम ||


अतार्थ ह्रदय कमल के मध्ये में विराजमान दिव्य मूर्ति वाले ,चंद्रमा की कलाओं के सामान प्रकाशवान,वेद ज्ञान से युक्त ,शिष्यों को अभीष्ट वरदान देने वाले गुरुदेव का मैं अत्यंत भाव भेरे हृदये से ध्यान करता हूं |गुरु मूर्ति को आपने हृदय में ध्यान करना चाह्हिये इस प्रक्रियानुसार साधक द्वारा हृदय कमल के आसन पर गुरु के स्वरूप को स्थापित करके ,ध्यानावस्था में उनका चिंतन करने से ,विशेषकर उनके चरणों का ध्यान करने से चित्त के एकाग्रता बढती है |

गुरु गीता

नमस्ते नाथ भगवन शिवाय गुरुरूपिने |
विद्यावतारम संसिद्द्ये स्वीकृतानेक विग्रह :||


अतार्थ शिष्य को ज्ञान प्रदान करने के लिए ज्ञान स्वरूप ,अनेकविध शरीर धारण करने वाले शिव स्वरूप सदगुरु को बारम्बार नमस्कार है |जब शिष्य के अज्ञान विशिप्त के अवस्था आती है तब शिव ही शिष्य को ज्ञान देने के लिए मानव शरीर धारेण कर उसे पूर्णता प्रदान करते है क्योंकि शिष्य जिस धरातल पर खड़ा होता है ,उसकी बराबर अवस्था में आकर ही ज्ञान प्रदान किया जा सकता है ,अत: शिष्य जिस स्थिति में होता है गुरु भी उसी स्थिति में आते है |

Wednesday, April 20, 2011

MAHAKALI Sadhana


 श्मशान काली साधना 

सन् 1985 के वसंत ऋतू की बात हैं. जोधपुर गुरुधाम में होली का शिविर चल रहा था. पूज्य गुरुदेव ने एक ऐसा प्रयोग को संपन्न कराने का मानस निर्मित किया था, जिसे श्मशान में ही संपन्न किया जाता था और वह भी शव के ऊपर आरूढ़ होकर.

शवारूढाम्महाभीमां घोर दंष्ट्राम हसंमुखीम,
चतुर्भुजांखड्ग मुण्ड वराभयकरां शिवाम्.
मुण्डमालाधरां देवीं ललज्जिह्वान्दिगम्बराम्.
एवं संचिन्त्येकत्काली श्मशानालयवासिनीम्.


काली के इस ध्यान मंत्र से स्पष्ट हैं, कि काली श्मशान में वास करती हैं, और शव पर आरूढ़ हैं.
काली की अनेकों प्रकार से साधना संभव हैं, परन्तु उस दिन पूज्यपाद सदगुरुदेव जो साधना संपन्न करा रहे थे, वह श्मशान में ही संपन्न हो सकती थी. और साधना के गूढ़तम रहस्यों को स्पष्ट करते हुए गुरुदेव ने बताया कि यदि श्मशान पद्धति से काली को आत्मस्थ कर उनकी ही भांति शव पर आरूढ़ होकर इस श्मशान साधना को सिद्ध किया जायें, तो ऐसा संभव ही नहीं हैं, कि श्मशान सिद्धि और महाकाली सिद्धि प्राप्त न हो, और जब गुरु स्वयं ही इस साधना को संपन्न करावे तो अनिश्चितता जैसी कोई सम्भावना रह ही नहीं जाती हैं. परन्तु इसके लिए आवश्यक हैं, कि साधक शव पर बैठ कर मंत्र जाप करें. बिना शव पर आसीन हुए इस मंत्र जाप का कोई अर्थ नहीं होता. परन्तु इस प्रकार की श्मशान क्रियाएं सम्पन्न कराना मैं पसंद नहीं करता हूँ, क्योंकि इसके लिए शवों की आवश्यकता पड़ती हैं.

साधक पहले तो अति प्रसन्न हुए कि पूज्य गुरुदेव से एक अत्यंत उच्चा कोटि की महाविद्या साधना प्राप्त होने जा रही हैं, जो प्रथम बार में ही सिद्ध हो जाती हैं, परन्तु उनकी दूसरी बात सुनकर वे पुनः दुखी हो गए. वास्तव में बात सही थी, क्योंकि इस साधना में शवो की आवश्यकता थी, और प्रत्येक साधक के लिए ऐसी व्यवस्था करना सर्वथा असंभव और अनैतिक था. इसीलिए गुरुदेव इस प्रकार की साधना पद्धतियों का उल्लेख तो अवश्य किया करते थे, परन्तु संपन्न कभी नहीं करवाते थे.थोडी देर में साधकों को प्लाई वुड के टुकड़े दिए गए और साधकों को उन पर बैठने का आदेश दिया गया. लकडी पर मानवाकृति अंकित थी. उधर मंच पर पूज्य सदगुरुदेव आसन से तुंरत उठ खड़े हुए और गगनभेदी आवाज में जो उनका मंत्रोच्चारण प्रारम्भ हुआ तो आस पास का पूरा वातावरण एकदम ठक सा रह गया. हवा रूक गयी और चारों ओर घोर निःस्तब्धता छा गयी, बस कुछ सुनाई दे रहा था, तो गुरुदेव का अबाध गति में मंत्रोच्चार. साधक अपना दिल थामे लकडी के टुकडों पर बैठे थे. जो साधक उस समय उपस्थित थे, उन्हें गुरुधाम का वह दृश्य आज भी याद होगा.

थोडी ही देर में आसमान में चील और गिद्ध मंडराने लगे, एक दो नहीं सैकडो-हजारों की संख्या में और वातावरण में भी दुर्गन्ध सी व्याप्त होने लगी, कुछ गिद्ध तो एकदम नीचे तक आ रहे थे, जिससे साधक विचलित भी हो रहे थे. गुरुदेव आधे घंटे तक उसी अजस्त्र वेग से मंत्रोच्चार किये गए, और उसी में कई साधकों को अनेकों अनुभव हुए.वस्तुतः यही वह क्रिया होती हैं, जिसे प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं, और इसी क्रिया द्वारा एक सामान्य से लकडी के टुकड़े को या पत्थर के टुकड़े को या किसी माला यन्त्र को इच्छानुसार कोई भी रूप दिया जा सकता हैंगुरुदेव जब किसी माला को या यंत्र को किसी साधक को देते हैं, तो वह माला या यंत्र पत्थर के टुकडों की एक लड़ी या तांबे का एक टुकडा भर नहीं होता, अपितु उसमें देवताओं का अंश सुक्ष्म रूप से विराज रहा होता हैंयही प्राण प्रतिष्ठा क्रिया का महत्त्व हैंपरंतु यह क्रिया मात्र मंत्रोच्चारण तक ही सीमित नहीं होती, अपितु यह तो सदगुरु अपने प्राणों की ऊर्जा के एक अंश को ही किसी वास्तु में उतार देते हैं, जिससे साधक का कल्याण हो सकें. उसी प्राण ऊर्जा को जब किसी जड़ पदार्थ में उतरा जाता हैं, तो उसे प्राणप्रतिष्ठा कहा जाता हैं, और उसी प्राण ऊर्जा को जब किसी चेतन व्यक्ति में उतारा जाता हैं, तो उसे दीक्षा कहा जाता हैं.और प्राण प्रतिष्ठा जब हो जाती हैं, तो वही यंत्र, वही माला एक माला न रहकर एक अत्यंत दिव्य वस्तु बन जाती हैं, जो साधक का निश्चित रूप से कल्याण करने में सहायक होती हैं, क्योंकि फिर वह एक धातु नहीं रह जाती, अपितु देवताओं का निवास स्थान होती हैं. और ऐसी ही कोई दिव्य चैतन्य सामग्री प्राप्त कर जब साधक यंत्र में और देवता में बिना कोई भेद समझते हुए जब मंत्र प्रक्रिया या साधना करता हैं, तो यंत्र में निहित देवांश उपस्थित होकर उसका कल्याण करता हैं. फिर यंत्र की वह ऊर्जा स्वयं ही साधक के अन्तः में स्थित हो जाती हैं. ये यंत्र या मालाएं उस दिव्य ऊर्जा को साधक के शारीर में स्थापित करने का मात्र एक माध्यम भर ही होती हैं.

कुछ साधको का प्रश्न होता हैं, कि प्राण प्रतिष्ठा कैसे संपन्न की जाती हैं, और वे इसकी विधि पूछते हैं. ऐसे कई ग्रन्थ हैं, जिनमें प्राण प्रतिष्ठा की विधि और मंत्र दिए हुए हैं. परंतु प्राण प्रतिष्ठा की क्रिया मात्र मंत्रोच्चारण या कुछ आवश्यक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं होकर उससे भी आगे की क्रिया हैं, जो मात्र गुरु ही संपन्न कर सकते हैं, और केवल वही गुरु जिन्होंने प्राण तत्व का स्पर्श किया हो, जिनकी कुण्डलिनी पूर्ण रूप से जाग्रत हो, जिन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त हो.
उनके दिव्व्य स्पर्श से और संकल्प से ही प्राण प्रतिष्ठा की क्रिया संपन्न हो पति हैं, ऊच्च कोटि के योगियों और गुरुओं के लिए तो मात्र एक बार विचार करना या संकल्प भर लेना ही पर्याप्त होता हैं, शेष कार्य तो स्वतः ही संपन्न हो जाते हैं.

बाद में सदगुरुदेव ने बताया कि आम के उन टुकडों को भी मंत्रों द्वारा प्रतिष्ठा कर शव का रूप दिया जा सकता हैं. उन्होंने बताया कि तुम तो शायद इसे आम का टुकडा ही समझ रहे होंगे, परन्तु इसकी गंध और इसका प्रभाव पूरा एक मुर्दा शव की तरह ही हो गया था, और वे जो हजारों गिद्ध आ गए थे, वह इसी बात का प्रमाण था, कि ये आम के टुकड़े नहीं वरण मृत मानव देह ही हैं. बाद में जब मंत्रो का विपरीत क्रम गुरुदेव ने दोहराया तब सब शांत और पूर्ववत हो गया, चील और गिद्धों का सैलाब जहाँ से उमड़ा था वहीँ वापस लौट गया.

पूज्य गुरुदेव ने सभी का मानस पढ़ लिया, साधक बहुत दुखी और निराश हो गए थे, और यही वह बिंदु होता हैं, जो गुरु से देखा नहीं जाता. सदगुरुदेव ने पुनः कहा कि कोई बात नहीं मैं इसकी व्यवस्था करूँगा और प्रत्येक साधक को यह साधना संपन्न कराऊंगा और निश्चित रूप से कराऊंगा, यह गुरु का वाक्य हैं.

Thursday, April 14, 2011

So that my disciples who are moves toward completion

अपनी समस्याओं का दुखड़ा रोने वाले; छिपकर, पीठ पीछे वार करने वाले; इर्ष्यालू, लोभी, झूठे व अकर्मण्य व्यक्ति मेरे शिष्य नहीं हो सकते | मेरे शिष्य तो वो हैं जो पूर्णता की ओर अग्रसर हों | - परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद

I am a painter

मैंने चित्र बनाये है ,सैंकड़ो,हजारो,साधको के साधिकाओ के |
और प्रत्येक चित्र आपने आप में अलग है ,प्रत्येक चित्र में अलग प्रकार का रंग भरा हुआ है ,कोई भी दो चित्र सामान नहीं बनाए है |
क्योंकि मैं चित्रकार हूं और तुलिका और रंगों का मुझे भली प्रकार ज्ञान है ,मुझे ज्ञान है के कोन से चित्र में कोंन सा रंग भरना है |
पर ध्यान रखना परिवार का तूफ़ान चित्र को फाड़ न दे ,मोह माया के दीवारे चित्र के रंग को बदरंग न कर दे ,समाज के अंधड़ चित्र को अस्त व्यस्त न कर दे |
क्योंकि इन तुफानो,अंधड़ो ने यही किया है,धूल ,धक्कड़ फेंकने के अलावा इनके पास है ही क्या ,आलोचनाओ के बोछार से बदरंग करने के अलावा इनके पास युक्ति है भी क्या ?
मैंने तुम्हारे चित्र को अदभुत बनाने का प्रयत्न किया है,जरूरत है इसे बदरंग होने से बचाने के ,फटने से सुरक्षित रखने की
और यदि ऐसा हुआ तो यह चित्र इश्वर की कलाकृति से भी ज्यादा सुंदर ,ज्यादा पूजनीय हो सकेगा |
तुम्हारा सदगुरुदेव

मैं एक चित्रकार हूँ 

Thursday, April 7, 2011

Ode Thu footer


गुरु पादुका स्तोत्र

ॐ नमो गुरुभ्यो गुरुपादुकाभ्यो नमः परेभ्यः परपादुकाभ्यः!
आचार्य सिद्धेश्वरपादुकाभ्यो नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्यो!!1!! 

मैं पूज्य गुरुदेव को प्रणाम करता हूँ, मेरी उच्चतम भक्ति गुरु चरणों और उनकी पादुका के प्रति हैं, क्योंकि गंगा -यमुना आदि समस्त नदियाँ और संसार के समस्त तीर्थ उनके चरणों में समाहित हैं, यह पादुकाएं ऐसे चरणों से आप्लावित रहती हैं, इसलिए मैं इस पादुकाओं को प्रणाम करता हु, यह मुझे भवसागर से पार उतारने में सक्षम हैं, यह पूर्णता देने में सहायक हैं, ये पादुकाएं आचार्य और सिद्ध योगी के चरणों में सुशोभित रहती हैं, और ज्ञान के पुंज को अपने ऊपर उठाया हैं, इसीलिए ये पादुकाएं ही सही अर्थों में सिद्धेश्वर बन गई हैं, इसीलिए मैं इस गुरु पादुकाओं कोभक्ति भावः से प्रणाम करता हूँ!!1!!

ऐंकार ह्रींकाररहस्ययुक्त श्रींकारगूढार्थ महाविभूत्या!
ओंकारमर्म प्रतिपादिनीभ्याम नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम!!2!! 


गुरुदेव "ऐंकार" रूप युक्त हैं, जो कि साक्षात् सरसवती के पुंज हैं, गुरुदेव "ह्रींकार" युक्त हैं, एक प्रकार से देखा जाये तो वे पूर्णरूपेण लक्ष्मी युक्त हैं, मेरे गुरुदेव "श्रींकार" युक्त हैं, जो संसार के समस्त वैभव, सम्पदा और सुख से युक्त हैं, जो सही अर्थों में महान विभूति हैं, मेरे गुरुदेव "ॐ" शब्द के मर्म को समझाने में सक्षम हैं, वे अपने शिष्यों को भी उच्च कोटि कि साधना सिद्ध कराने में सहायक हैं, ऐसे गुरुदेव के चरणों में लिपटी रहने वाली ये पादुकाएं साक्षात् गुरुदेव का ही विग्रह हैं, इसीलिए मैं इन पादुकाओं को श्रद्धा - भक्ति युक्त प्रणाम करता हूँ!!2!!

होत्राग्नि होत्राग्नि हविश्यहोतृ - होमादिसर्वाकृतिभासमानं !
यद् ब्रह्म तद्वोधवितारिणीभ्याम नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम!!3!! 


ये पादुकाएं अग्नि स्वरूप हैं, जो मेरे समस्त पापो को समाप्त करने में समर्थ हैं, ये पादुकाएं मेरे नित्य प्रति के पाप, असत्य, अविचार, और अचिन्तन से युक्त दोषों को दूर करने में समर्थ हैं, ये अग्नि कि तरह हैं, जिनका पूजन करने से मेरे समस्त पाप एक क्षण में ही नष्ट हो जाते हैं, इनके पूजन से मुझे करोडो यज्ञो का फल प्राप्त होता हैं, जिसकी वजह से मैं स्वयं ब्रह्म स्वरुप होकर ब्रह्म को पहिचानने कि क्षमता प्राप्त कर सका हूँ, जब गुरुदेव मेरे पास नहीं होते, तब ये पादुकाएं ही उनकी उपस्थिति का आभास प्रदान कराती रहती हैं, जो मुझे भवसागर से पार उतारने में सक्षम हैं, ऐसी गुरु पादुकाओं को मैं पूर्णता के साथ प्रणाम करता हूँ!!3!!

कामादिसर्प वज्रगारूडाभ्याम विवेक वैराग्यनिधिप्रदाभ्याम.
बोधप्रदाभ्याम द्रुतमोक्षदाभ्याम नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम!!4!! 


मेरे मन में काम, क्रोध, लोभ, मोह और अंहकार के सर्प विचरते ही रहते हैं, जिसकी वजह से मैं दुखी हूँ, और साधनाओं में मैं पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाता, ऐसी स्थिति में गुरु पादुकाएं गरुड़ के समान हैं, जो एक क्षण में ही ऐसे कामादि सर्पों को भस्म कर देती हैं, और मेरे ह्रदय में विवेक, वैराग्य, ज्ञान, चिंतन, साधना और सिद्धियों का बोध प्रदान करती हैं, जो मुझे उन्नति की ओर ले जाने में समर्थ हैं, जो मुझे मोक्ष प्रदान करने में सहायक हैं, ऐसी गुरु पादुकाओं को मैं प्रणाम करता हूँ!!4!!

अनंतसंसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां स्थिरभक्तिदाभ्यां!
जाड्याब्धिसंशोषणवाड्वाभ्यां नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्याम!!5!! 


यह संसार विस्तृत हैं, इस भवसागर पार करने में ये पादुकाएं नौका की तरह हैं, जिसके सहारे मैं इस अनंत संसार सागर को पार कर सकता हूँ, जो मुझे स्थिर भक्ति देने में समर्थ हैं, मेरे अन्दर अज्ञान की घनी झाडियाँ हैं, उसे अग्नि की तरह जला कर समाप्त करने में सहायक हैं, ऐसी पादुकाओं को मैं भक्ति सहित प्रणाम करता हूँ!!5

Tuesday, January 4, 2011

What's Narayanhtava Ahmatta initiation awakening?

  क्या हैं नारायणतत्व आतमतत्व जागरण दीक्षा?
What's Narayanhtava Ahmatta initiation awakening?
ॐ जो सत् चित्त आनंद और अनंत हैं, असीम हैं! जो नित्य और सर्वव्यापी हैं वही हैं नारायन्तत्व आपका आत्मतत्व!

ॐ जो अद्वितीय, अखण्ड, नित्य और आनंद स्वरुप हैं! वेदों में जिसे अनित्य, विषयों के परे बताया गया हैं, वही हैं नारायणतत्व!

ॐ जिसकी प्राप्ति के बाद फिर अन्य कोई वस्तु प्राप्त करने को नहीं रह जाती! जिसके आनंद के बाद फिर किसी अन्य आनंद की कामना नहीं रहती! जिसे जान लेने के बाद फिर कुछ ज्ञातव्य नहीं रह जाता वही हैं नारायणतत्व!

ॐ जिसके दर्शन के बाद फिर कुछ और देखने की शेष नहीं रह जाता, जिसके साथ एकाकार हो जाने पर मनुष्य फिर जन्म-मरण के बंधन से छूट जाता हैं!

ॐ ब्रह्मा तथा इन्द्र आदि देवता भी जिस परब्रह्म के असीम आनंद का केवल एक कण मात्र प्राप्त कर धन्य हो चुके हैं और उसी में अपने भाग्य की सराहना करते हैं!

ॐ जो सभी वस्तुओं में व्याप्त हैं! सभी कर्म उस नारायणतत्व के कारण ही संभव हैं, जिस प्रकार से दूध में मक्खन व्याप्त हैं उसी प्रकार नारायणतत्व सर्व जगत में व्याप्त हैं!

ॐ जिसके प्रकाश से सूर्य, चंद्र और समस्त पृथ्वी मंडल आलोकित हैं किन्तु उनके प्रकाश से जो प्रकाशित नहीं हो सकता बल्कि जिसके प्रकाश से सभी प्रकाशित हैं उसे तू नारायणतत्व जान!

ॐ नारायणतत्व नित्य और शाश्वत हैं! अज्ञान के नष्ट हुए बिना, उसका साक्षात्कार अन्य किसी उपाय से संभव नहीं हैं!

ॐ नारायण जगत से पृथक हैं परन्तु नारायण से पृथक किसी वस्तु की कोई सत्ता नहीं! यदि नारायणतत्व के अतिरिकत किसी अन्य वस्तु का कोई अस्तित्व प्रतीत हो तो वह मृगतृष्णा के जल की तरह असत हैं!

ॐ जो कुछ हम देखते हैं, जो कुछ सुनते हैं यह हमारा नारायणतत्व आत्मतत्व ही हैं अन्य कुछ नहीं हैं और परम सत् का ज्ञान हो जाने पर समस्त विश्व अद्वैतपूर्ण एकरूप नारायण ही दिखाई देता हैं!

ॐ नारायणतत्व का ज्ञान ही आत्मतत्व का ज्ञान हैं, सम्पूर्ण जगत का ज्ञान हैं! इसके बाद कुछ शेष नहीं रहता!

ॐ नारायण अनंत आनंद का भण्डार हैं, फलतः जो सत् को जानने वाले हैं वह उन्हीं की शरण लेते हैं!

ॐ जिस प्रकार से नमक का ढेला जल में घुल जाने पर फिर नेत्रों से दिखायी नहीं देता केवल जिव्हा से हो चखा जा सकता हैं, उसी प्रकार हृदय के अंतर में प्रवाहित नारायणतत्व को बाह्य इन्द्रियों के द्वारा नहीं जाना जा सकता! केवल गुरु के अनुग्रह से, उसकी कृपा से उस तत्व को जाना जा सकता हैं, उसे जाग्रत किया जा सकता हैं! अतः जो नारायणतत्व हैं उसे ही तू आत्मतत्व जान!

ॐ जो नम्र हो सकता हैं, वही बड़े-बड़े तूफ़ान झेल सकता हैं, क्योंकि तूफ़ान के बाद वही पेड़-पौधे शेष रहते हैं, जिनमें लचीलापन हैं! प्रेम, नम्रता एवं लचीलापन ही एक महापुरुष की पहचान हैं!

ॐ वह असीम, आनंद एवं परम सत्य हैं, वह महान हैं! इसीलिए उसे ब्रह्म कहा जाता हैं! उसे ही शक्तिपात द्वारा जगाने की क्रिया हैं नारायणतत्व आत्मतत्व जागरण दीक्षा!

“नारायण-मंत्र-साधना-विज्ञान” से साभार

Siddhashram

सिद्धाश्रम
संसार का सुविख्यात अद्वितीय साधना-तीर्थ तांत्रिकों, मांत्रिकों, योगियों, यतियों और सन्यासियों का दिव्यतम साकार स्वप्न “सिद्धाश्रम”, जिसमें प्रवेश पाने के लिए मनुष्य तो क्या देवता भी लालायित रहते हैं, हजारों वर्ष के आयु प्राप्त योगी जहाँ साधनारत हैं! सिद्धाश्रम एक दिव्या-भूखंड हैं, जो आध्यात्मिक पुनीत मनोरम स्थली हैं! मानसरोवर और हिमालय से उत्तर दिशा की और प्रकृति के गोद में स्थित वह दिव्य आश्रम – जिसकी ब्रह्मा जी के आदेश से विश्वकर्मा ने अपने हाथों से रचना की, विष्णु ने इसकी भूमि, प्रकृति और वायुमंडल को सजीव-सप्राण-सचेतना युक्त बनाया तथा भगवन शंकर की कृपा से यह अजर-अमर हैं! आज भी वहां महाभारत कालीन भगवान श्री कृष्ण, भीष्म, द्रौण आदि व्यक्तित्व विचरण करते हुए दिखाई दे जाते हैं!

Placed his hands on the hand you do not sit like that, think of the solstice is the time!

प्रिय मित्रों


आपको नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक-२ शुभकामनाएं.


यह नव वर्ष आपके जीवन में सुख, शांति, समृद्धि, सुस्वास्थ्य, प्रसन्नता और भी बहुत कुछ लेकर आये जो आपके जीवन को दिव्यता कि और ले चले.

यह समय बहुत ही कीमती है, क्योंकि समय ही जीवन का आधार है. यह समय कुछ कर गुजरने का है; अपने अन्तःकरण कि पुकार सुनिए और वह सब करिए जो आपको मनुष्य कहलाने योग्य बनाता है.जो जीवन का आधार बनाते है ऐसे गुरु  ही  क्रांति दूत है जिन्होंने अपने जीवन से लोगो को राह दिखलाई कि सच्चा मनुष्य क्या होता है. वह मनुष्य से ऋषि, देवता कैसे बनता है.
यह क्रांति गीत हमारे जीवन को दिशा दे, हम नव वर्ष को अपने जीवन का हर्ष बनाले! यही कामना!
हाथ पर यूँ हाथ रखकर तुम न बैठो , सोच लो यह समय संक्रांति का है !
सावधानी से तुम्हें हर पग बढ़ाना, यह समय हर ओर घोर अशांति का है .


हर तरफ है दृश्य ऐसा, इस समय की धार में बिगड़ा हुआ हर संतुलन है .


सब ढलानों पर फिसलते जा रहे हैं इस तरह निश्चित पराभव है पतन है .


सावधानी से तुम्हें हर पग बढ़ाना, यह समय हर ओर घोर अशांति का है !


हाथ पर यूँ हाथ रखकर तुम न बैठो , सोच लो यह समय संक्रांति का है !!


आत्म बल लेकर अगर तुम बढ़ सकोगे, लक्ष्य पर ही दृष्टि यदि हर पल रहेगी .


तो समझ लो इस भयंकर धार में भी, नाव मनचाही दिशा में ही बहेगी.


आज तो निश्चित अडिग संकल्प ले लो, यह समय बिलकुल न अब दिग्भ्रांति का है !..


हाथ पर यूँ हाथ रखकर तुम न बैठो , सोच लो यह समय संक्रांति का है !!
The Adventures of Sherlock Holmes