ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
Guru Mantra Mystery Part -1
नए-नए साधक के मन में कुछ संशयात्मक प्रश्न, जो सहज ही घर कर बैठते हैं, वे हैं - मैं किस मंत्र को साधू? कौन सी साधना मेरे लिए अनुकूल रहेगी? किस देवता को मैं अपने ह्रदय में इष्ट का स्थान दूं?
ये प्रश्न सहज हैं, परन्तु इनके उत्तर इतने सहज प्रतीत नहीं होते, क्योंकि प्रथम तो इनके उत्तर कहीं भी स्पष्ट भाषा में नहीं मिलते, साथ ही यह बात भी निश्चित है, कि जब तक आप अत्यधिक व्यग्र हो कर जी-जान से चेष्टा नहीं करते, तब तक योग्य गुरु का सान्निध्य प्राप्त नहीं कर सकते| क्या इसका अर्थ यह निकाला जाय, कि अज्ञान के तिमिर में जीना ही हम सब का प्रारब्ध है? क्या इस दुविधाजनक स्थिति से निकलने का कोई उपाय नहीं?
यह शायद मेरा सुनहरा सौभाग्य ही था, कि हिमालय विचरण के दौरान मुझे विश्व प्रसिद्ध तंत्र शिरोमणि त्रिजटा अघोरी के दर्शन हुए| मैंने उनके बारे में कई आश्चर्यजनक तथ्य सुन रखे थे और इस बात से भी मैं परिचित था, कि वे गुरुदेव के प्रिय शिष्य हैं|
उस पहाड़ देहधारी मनुष्य के प्रथम दर्शन से ही मेरा शरीर रोमांचित हो उठा था.... मैं हर्षातिरेक एवं एक अवर्णनीय भय से थरथरा उठा, मेरे पाँव मानो जमीन पर कीलित हो गए, मेरा मुह आश्चर्य से खुल गया और एक क्षण मुझे ऐसा लगा मानो मेरी सांस रुक गई है .... इस स्थिति में मैं कितनी देर रहा, मुझे याद नहीं...हां! इतना अवश्य है, कि जब मैं प्रकृतिस्थ हुआ, तो वे मुस्कराहट बिखेरते हुए मेरे सामने थे, जबकि मैं एक चट्टान पर बैठा था ...
मैं दावे के साथ कह सकता हूं, कि कोई भी व्यक्ति, यहां तक कि तथाकथित 'सिंह के सामान निडर' पुरुष भी अकेले में उनके सामने प्रस्तुत होने में संकोच करेगा .... इतना अधिक तेजस्वी एवं भयावह स्वरुप है उनका| शायद मैं यह जानता था, कि वे मेरे गुरु भाई हैं, या शायद उनके चेहरे पर उस समय ममत्व के भाव थे, जो मैं उनके सामने बैठा रह सका... थोड़ी देर उनसे बात हुई, तो मेरा रहा-सहा संकोच भी जाता रहा...उन्हें गुरुदेव द्वारा 'टेलीपैथी' से मुझसे मिलने का आदेश मिला था (इस भ्रमण के दौरान यह मेरी आतंरिक इच्छा थी, कि मैं त्रिजटा से मिलूं और शायद गुरुदेव ने इसे जान लिया था) और उन्हें मेरा मार्गदर्शन करने को कहा था|
उस समय मेरा मन भी इस प्रकार के संशयात्मक प्रश्नों से ग्रस्त था और उन पर विजय प्राप्त करने के लिए मैं उनसे जूझता रहता था| पर मुझे जल्दी ही इस बात का अहेसास हो गया था, कि मैं एक हारती हुई बाजी खेल रहा हूं और मेरे मस्तिष्क-पटल पर कई नवीन प्रश्न दस्तक देने लगे - मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है? मुझे क्या करना चाहिए? मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ पथ कौन सा है? आदि-आदि|
जब मैंने अपनी दुविधा त्रिजटा के समक्ष राखी, तो वे ठहाका लगा कर हंसाने लगे, मानो मेरी अज्ञानता पर उन्हें दया आई हो...और फिर उन्होनें जो कुछ भी तथ्य मेरे आगे स्पष्ट किये, उनके आगे तो तीनों लोक की निधियां भी तुच्छ हैं|
उन्होनें कहां - 'प्रत्येक मनुष्य इस प्रकार की समस्या का सामना कभी न कभी करता ही है, परन्तु केवल प्रज्ञावान एवं सूक्ष्म विवेचन युक्त व्यक्ति ही इससे पार हो सकता है; बाकी व्यक्ति इसमें उलझ जाते हैं और जीवन का एक स्वर्णिम क्षण अवसर गँवा देते हैं, अत्यंत सामान्य रूप से जीवन व्यतीत कर देते हैं|
'हमारे शास्त्रों में तैंतीस करोड़ देव-देवताओं की उपस्थिति स्वीकार की गई और उन सबके एकत्व रूप को ही 'परम सत्य' या 'परब्रह्म' कहा गया है, कि यदि साधक को पूर्णता प्राप्त करनी है, तो उस इन ३३ करोड़ देवी-देवताओं को सिद्ध करना पडेगा; परन्तु यह तभी संभव है, जब व्यक्ति लगातार पृथ्वी पर अपने पूर्व जन्मों की स्मृति के साथ हजारों जन्म ले अथवा वह हमेशा के लिए अजर-अमर हो जाये....'
'परन्तु ये दोनों ही रस्ते बड़े पेचीदा और असंभव सी लगने वाली कठिनाइयों से युक्त हैं| इसके अलावा तुम्हें ज्ञान नहीं होता, कि कब तुम्हारी छोटी सी त्रुटी की वजह से तुम्हारी वर्षों की तपस्या नष्ट हो जायेगी और तुम उंचाई से वापस साधारण स्थिति में आ गिरोगे|
'मैं अत्यधिक लम्बे समय से हिमालय में तपस्यारत हूं और असंभव कही जाने वाली साधनाएं भी सिद्ध कर चुका हूं| इतने वर्षों के अनुभव के बाद यह मेरी धारणा है कि सभी मन्त्रों में 'गुरु मंत्र' सर्वश्रेष्ठ मंत्र है, सभी साधनाओं में 'गुरु साधना' अद्वितीय है और गुरु ही सभी देवताओं के सिरमौर हैं| वे इस समस्त ब्रह्माण्ड को गतिशील रखने वाली आदि शक्ति हैं और कुछ शब्दों में कहा जाय, तो वे - 'साकार ब्रह्म' हैं|
मेरे चहरे पर आश्चर्य की लकीरें उभर आईं, जिसे देखकर उन्होनें कहा- 'तुम्हें यों अवाक होनी की जरूरत नहीं, मुझे इस बात का पूरा ज्ञान है, कि मैं क्या कह रहा हूं| भ्रमित तो तुम लोग हुए हो, तुम हर चीज को बिना गूढता से निरिक्षण किये ही मान लेते हो, तभी तो आज विभिन्न देवी-देवताओं की साधनाएं तुम्हारे मन-मस्तिष्क को इतना लुभाती हैं| तुम्हारी स्थिति उस मछली की तरह है, जो की नदी को ही सक्षम और अनंत समझती है, क्योंकि सागर की विशालता से अनभिज्ञ होती हैं|
'भगवान् शिव के अनुसार सभी देवी-देवताओं, पवित्र नदियां एवं तीर्थ गुरु के दक्षिण चरण के अंगुष्ठ में स्थित हैं, वे ही अध्यात्म के आदि , मध्य एवं अंत है, वे ही निर्माण, पालन, संहार एवं दर्शन, योग, तंत्र-मंत्र आदि के स्त्रोत्र हैं| वे सभी प्रकार की उपमाओं से परे हैं... इसीलिए यदि कोई पूर्णता प्राप्त करने का इच्छुक है, यदि कोई इमानदारी से 'दिव्य बोध' प्राप्त करने की शरण ग्रहण कर लेनी चाहिए और उनकी साधना एवं मंत्र को जीवन में उतारने की चेष्टा करनी चाहिए|'
'गुरु मंत्र' शब्दों का समूह मात्र न होकर समस्त ब्रह्माण्ड के विभिन्न आयों से युक्त उसका मूल तत्व होता है| अतः गुरु साधना में प्रवृत्त होने से पहले यह उपयुक्त होगा, कि हम गुरु मंत्र का बाह्य और गुह्य दोनों ही अर्थ भली प्रकार से समझ लें|
'पूज्य गुरुदेव द्वारा प्रदत्त गुरु मंत्र का क्या अर्थ है?- मैंने बीच में टोकते हुए पूछा| एक लम्बी खामोशी...जो इतनी लम्बी हो गई थी, कि खिलने लगती थी... उनके चहरे के भावों से मुझे अनुभव हुआ, कि वे निश्चय और अनिश्चय के बीच झूल रहे हैं| अंततः उनका चेहरा कुछ कठोर हुआ, मानो कोई निर्णय ले लिया हो| अगले ही क्षण उन्होनें अपने नेत्र मूंद लिये, शायद वे टेलीपैथी के माध्यम से गुरुदेव से संपर्क कर रहे थे; लगभग दो मिनिट के उपरांत मुस्कुराते हुए उन्होनें आंखे खोल दीं|
'उस मंत्र के मूल तत्व की तुम्हारे लिये उपयोगिता ही क्या हैं? मंत्र तो तुम जानते ही हो, इसके मूल तत्व को छोड़ कर इसकी अपेक्षा मुझसे आकाश गमन सिद्धि, संजीवनी विद्या अथवा अटूट लक्ष्मी ले लो, अनंत संपदा ले लो, जिससे तुम सम्पूर्ण जीवन में भोग और विलाद प्राप्त करते रहोगे... ऐसी सिद्धि ले लो, जिससे किसी भी नर अथवा नारी को वश में कर सकोगे|
एक क्षण तो मुझे ऐसा लगा, कि उनके दिमाग का कोई पेंच ढीला है, पर मेरा अगला विचार इससे बेहतर था| मैंने सूना था, कि उच्चकोटि के योगी या तांत्रिक साधक को श्रेष्ठ, उच्चकोटि का ज्ञान देने से पूर्व उसकी परिक्षा लेने, हेतु कई प्रकार के प्रलोभन देते हैं, कई प्रकार के चकमे देते हैं... वे भी अपना कर्त्तव्य बड़ी खूबसूरती से निभा रहे थे ...
करीब पांच मिनुत तक उनकी मुझे बहकाने की चेष्टा पर भी मैं अपने निश्चय पर दृढ़ रहा, तो उन्होनें एक लम्बी श्वास ली और कहा - 'अच्छा ठीक है, बोलो क्या जनता चाहते हो?'
'सब कुछ' - मैं चहक उठा - 'सब कुछ अपने गुरु मंत्र एवं उसके मूल तत्व के बारे में मेरा नम्र निवेदन है' कि आप कुछ भी छिपाइयेगा नहीं|'
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान जुलाई 2010
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Dr. Narayan Dutt Shrimali Dr. Narayan Dutt Shrimali (1933-1998) *Paramhansa Nikhileshwaranand ascetically *Academician *Author of more than 300 books Mantra Tantra Yantra Vigyan:#3 PART(NARAYAN / PRACHIN / NIKHIL-MANTRA VIGYAN) Rejuvenating Ancient Indian Spiritual Sciences - Narayan | Nikhil Mantra Vigyan formerly Mantra Tantra Yantra Vigyan is a monthly magazine containing articles on ancient Indian Spiritual Sciences viz.
Wednesday, September 8, 2010
Guru Mantra Mystery Part -1
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