SABAR GURU PARTYAKSH SADHNA
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साधक जीवन का सर्वोपरि सुख और आनंद जो है,वो एक मात्र गुरु की सायुज्यता ही है,गुरु के चरणों में बैठना,उनसे सतत ज्ञान की प्राप्ति करना,उनके मधुर साहचर्य में जीवन के अभावो की तपती दोपहरी से बच कर बैठने की क्रिया समझना.पर क्या ये इतना सहज है,नहीं ना.........................
और जब गुरु ने स्वधाम गमन कर लिया हो तब तो चित्त की अशांति इतनी भयावह हो जाती है की उस अंधियारे में कोई राह नहीं दिखती है,तब साबर साधनाओ का ये अत्यधिक गोपनीय मंत्र उस पूर्णमासी के चाँद के रूप में आपको प्रकाश तक पहुचता है.यदि पूर्ण विधान से इसे शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी और पूर्णिमा को संपन्न किया जाये तो साधक को उसके बिम्बात्मक गुरु के दर्शन और दिशा निर्देशन सतत मिलता ही रहता है.ये प्रयोग सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं अपितु करकर देखने के लिए है.इससे आभास नहीं होता बल्कि उसे पूर्ण तेजस्वी बिम्ब के दर्शन होते ही हैं और यही नहीं बल्कि उसे गुरु के द्वारा भविष्य में जीवन के लिए उपयोगी निर्देश भी प्राप्त होते रहते हैं.
निर्देशित दिवस की रात्री के दूसरे प्रहर में पूर्ण स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण कर छत पर सफ़ेद उनी आसन पर उत्तराभिमुख होकर बैठ जाये.सामने बाजोट पर गुरु का चित्र स्थापित हो उनका पूर्ण विधि विधान से पूजन करे,सुगन्धित धुप का और पुष्पों का प्रयोग किया जाये,उसी प्रकार महासिद्ध गुटिका को भी चित्र के समक्ष अक्षत की ढेरी पर स्थापित कर पूजन करे,घृत दीपक का प्रयोग करे.खीर का भोग चढ़ाये,और स्थिर चित्त होकर त्रिकूट पर ध्यान लगाकर निम्न मन्त्र का ४ घंटे तक जप करे. जैसे जैसे आपकी तल्लीनता बढते जायेगी,आपके आज्ञा चक्र पर एक सुनहरी-नीली ज्योति प्रकट होने लग जायेगी और अंत में आपके गुरु का पूर्ण तेजस्वी बिम्ब वहाँ प्रत्यक्ष हो जायेगा और आपके कानो में उनकी पूर्ण आवाज भी सुनाई देने लगेगी,आप जो भी प्रश्न पूर्ण कृतज्ञता के साथ अपने ह्रदय में लायेंगे,उनका उत्तर आपको कानो में सुनाई देने लगेगा,परन्तु ये प्रश्न आपके जीवन ध्येय और साधनाओं से सम्बंधित ही होने चाहिए.और यदि आपने यही क्रम पूर्णिमा को भी एकाग्रता पूर्वक संपन्न कर लिया तो जब भी आप अपनी साधना में बैठोगे उनका पूर्ण वरदहस्त आपके शीश पर ही होगा. उच्च कोटि के साधक इसी मंत्र से त्रिकूट के बजाय अपने सामने गुरु को आवाहित करने में सफल होते ही हैं.
मन्त्र- आदि ज्योति,रूप ओंकार,आनंद का है गुरु वैपार,नीली ज्योति,सुनहरा रूप,तेरो भेष न जाने कोय,अनगद भेष बदलतो रूप,तू अविनाशी जानत न कोय,शून्य में तू विराजत,तेरो चाकर ब्रह्म बिष्णु महेश.किरपा दे,कर तू उपकार,जीवन नैया कर बेडा पार.जय जय जय सतगुरु की दुहाई.
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The most blissful moment for saadhak’s life are that in which he spend time with his guru while sitting at his feet and getting the lessons that how he can protect himself from the drastic ups and down of life but this is not as easy as it sounds……..
But it becomes most dreadful fact of life and cause pain if guru has proceeded to his final destination. But if this mantra of Sabar sadhnas can be enchant on the Shukl Pksh ki Chtudrshi aur on Poornima by following all the rules and regulations then sadhak can have not only the glimpse of his guru but also get direction and guideline from him. This practical is not merely to listen but authentic and by doing this one can have direct orders and guidelines from his guru not only for present but for future as well. Sadhak that are on high level in sadhnas field successfully call their guru himself at place of Trikutt.
Aadi jyoti,roop omkaar,aanand ka hai guru vaipaar,neelee jyoti,sunhara roop,tero bhesh na jaane koy,angad bhesh badalto roop,tu avinaashi jaanat naa koy,shunya me tu viraajat,tero chaakar bramha bishnu mahesh.kirpa de,kar tu upkaar,jeevan naiya kar bedaa paar,jai jai jai satguru ki duhaai.
****NPRU****