जब कभी आप मुझे समझेंगे जब गंगा मे पानी बह चुका होगा ,,
और आप हाथ मलते रह जाएंगे .... और एहसास करेंगे की जीवन मे कुछ पल ऐसे भी थे जब मै गुरु चरणों मे बैठा था .!
गुरु के रुप में ज्ञान की पूजा का है। गुरु अज्ञान रुपी अंधकार
से ज्ञान रुपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु धर्म और
सत्य की राह बताते हैं। गुरु से ऐसा ज्ञान मिलता है,
जो जीवन के लिए कल्याणकारी होता है।
गुरु शब्द का सरल अर्थ होता है- बड़ा, देने वाला,
अपेक्षा रहित, स्वामी, प्रिय यानि गुरु वह है जो ज्ञान में
बड़ा है, विद्यापति है, जो निस्वार्थ भाव से देना जानता हो,
जो हमको प्यारा है। गुरु का जीवन में उतना ही महत्व है,
जितना माता-पिता का। माता-पिता के कारण इस संसार में
हमारा अस्तित्व होता है। किंतु जन्म के बाद एक सद्गुरु
ही व्यक्ति को ज्ञान और अनुशासन का ऐसा महत्व
सिखाता है, जिससे व्यक्ति अपने सद्कर्मों और
सद्विचारों से जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद भी अमर
हो जाता है। यह अमरत्व गुरु ही दे सकता है। सद्गुरु ने
ही भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया। इसलिए
गुरुपूर्णिमा को अनुशासन पर्व के रुप में भी मनाया जाता है।
इस प्रकार व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व का संपूर्ण
विकास गुरु ही करता है। जिससे जीवन की कठिन राह
को आसान हो जाती है।
जब अध्यात्म क्षेत्र की बात होती है तो बिना गुरु के ईश्वर
से जुडऩा कठिन है। गुरु से दीक्षा पाकर ही आत्मज्ञान,
ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है।
हिन्दु धर्म ग्रंथों में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश
माना गया है।
गुरुब्र्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरा:।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्मï तस्मै: श्री गुरुवे नम:॥
सार यह है कि गुरु शिष्य के बुरे गुणों को नष्ट कर उसके
चरित्र, व्यवहार और जीवन को ऐसे सद्गुणों से भर देता है।
जिससे शिष्य का जीवन संसार के लिए एक आदर्श बन
जाता है। ऐसे गुरु को ही साक्षात ईश्वर कहा गया है।
इसलिए जीवन में गुरु का होना जरुरी है।