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Monday, January 28, 2019

साबुन से मानव जीवन को ख़तरा

साबुन से मानव जीवन को ख़तरा

हम साबुन से नहाकर सोचते है की हमारे शरीर की सफ़ाई हो गयी , परंतु सफ़ाई ऐसे होती है जैसे जब चोर घर का पुरा माल ले जाता है फिर हम बोलते है की चोर घर का पुरा माल साफ़ कर गया । भाइयों वेद के अनुसार अपनी स्किन ख़ुद सफ़ाई करती है ,वेद में नहाने का ज़रूर लिखा है परंतु उसका उद्देश अपनी शरीर की माँसपेशियों को एक्टिव करने का है , अपने शरीर का तापमान ३७ डिग्री रहता है और सामान्य मौसम में पानी का तापमान २५ डिग्री रहता है , जब शरीर से कम तापमान शरीर पर डालते है तो उसको ३७ डिग्री तक लाने के लिए सारी मांसपेशिया एक्टिव हो जाती है , बस इतना ही काम बताया है नहाने से वेद में । अब इन भांड लोगों ( फ़िल्मी दुनिया ) ने TV पर इतना प्रचार कर दिया कि बिना साबुन के नहाना मतलब ग़रीब , महागरीब । मै पिछले एक साल से केवल सादे पानी से नहा रहा हु , और शरीर एकदम स्वस्थ है । अब इस साबुन के दुस्परिणाम बता रहा हूँ । पहला स्किन पर कुछ चिकनाई रहती है जिससे स्किन फटे नहीं और मुलायम रहे और स्किन स्वस्थ रहे । साबुन ने चिकनाई ख़त्म कर दी , नहाने के बाद शरीर पर तेल लगाओ या न लगाओ स्किन रोग होना निश्चित है । अब आगे सुनो जब साबुन के उपगोग के बाद पानी नाली में बहाया जाता है । फिर ये गंदा पानी ज़मीन में जाएगा या किसी नदी नाले में । इस तरह ये पानी दोनो जगह से लोटकर प्रदूषित होकर , कैन्सर युक्त होकर हमारे पास वापिस आता है ,या तो ट्यूबवेल , हेंडपम्प , या नगर पालिका से सुबह सप्लाई होकर । नगर पालिका से जो पानी घरों में आता है वह किसी नदी पर डैम बनाकर या बहती नदी के पानी को फ़िल्टर प्लांट पर साफ़ करके सप्लाई की जाती है , जब फ़िल्टर प्लांट पर पानी साफ़ होता है तो , उसको दो तरह से साफ़ किया जाता है की वो दिखने में साफ़ हो दूसरा ज़हरीला ना हो । रेत में छानकर साफ़ कर दिया और क्लोरीन डालकर किटाणुरहित कर दिया , क्लोरीन अपने आप में ही ज़हर है , मतलब ज़हर को बड़े ज़हर से मारा गया । फिर वो पानी आपके पास ही आएगा , जब इस तरह का पानी लम्बे समय तक पियोगे तो कैन्सर होना निस्चित है। अब इस साबुन का पानी नदी नाले से किसान भी अपनी फ़सलो को देते है , वो फ़सल भी ज़हरीली होती है और मिट्टी भी कठोर हो जाती है , मिट्टी इतनी कठोर हो जाती है की इसकी जुताई केवल ट्रैक्टर से हो सकती है बैल से नहीं, और जब मिट्टी कठोर हो गयी तो बारिश का पानी नीचे ज़मीन में नहीं जाएगा , केवल बाढ़ लाएगा । मतलब प्रलय ही प्रलय । इसी तरह कपड़े धोने का साबुन , बर्तन साफ़ करने वाला साबुन , toilet साफ़ करने वाला harpic का उपयोग करना कैन्सर को न्योता देना है , इन सभी का विकल्प मुल्तानी  मिट्टी है या काली मिट्टी , मुल्तानी  मिट्टी को साबुन की जगह उपयोग कीजिए मानव जीवन को बचाइए ।

Copy.. एक मित्र की वाल से🙏

Friday, April 21, 2017

Mahakaal Mahima by Gurudev (Dr. Narayan Dutt Shrimali)

In this pravachan Gurudev (Dr. Narayan Dutt Shrimali) talks about how we can take control devtas by mantras and further he also gives mahakaal vivechan and the importance of 'Kaal' (samay) in our lives 

Finally at the end gurudev declares that if he equal to Krishna and Buddha 




Friday, April 25, 2014

Must ask you this coming time


  • आने वाला समय तुमसे ये अवश्य पूछेगा Must ask you this coming time


    जीवन में ऊंचा उठना हैं और यदि नहीं उठते हैं तो यह जीवन व्यर्थ हैं, क्योंकि ऊंची सीढ़ी पर चढ़ना बहुत कठिन हैं, नीचे फिसलना बहुत आसान हैं ! दस सीढियों से नीचे उतरने में एक सेकंड लगता हैं, परन्तु दस सीढ़ी चढ़ने में आपको बीस सेकंड लगेंगे ! एक-एक सीढ़ी चढ़नी पड़ेगी, आपको नित्य बार-बार सोचना पड़ेगा कि :-



    मैं शिष्य बन रहा हूँ या नहीं बन रहा हूँ ! क्या मेरे अन्दर राक्षस वृत्ति पनप रही हैं या सदगुणों का विकास हो रहा हैं? मेरा जीवन कैसा व्यतीत हो रहा हैं – अपने आप में विश्लेषण करना जीवन की श्रेष्ठता हैं, महानता हैं, और यह वह व्यक्ति कर सकता हैं, जो अपने आप में बिल्कुल शिष्यवत बनकर गुरु के पास रहने का सामर्थ्य रखता हैं, और शंकराचार्य कहते हैं, ऐसे ही व्यक्ति गुलाब के फूल बनते हैं, जो सही अर्थों में गुरु के लिए अपने आपको समर्पित कर देते हैं !


    शंकराचार्य कहते हैं जीवन का श्रेष्ठतम शब्द “शिष्य” हैं और शिष्य वह होता हैं जो अपनी जान को हथेली पर लेकर चलता हैं ! दो तरह के व्यक्ति होते हैं – एक व्यक्ति सदगुणों का आगार होता हैं, भंडार होता हैं, एक व्यक्ति षडयंत्र का भंडार होता हैं ! जो कि चौबीसों घंटे यही सोचता कि मैं कैसे छल करूँ? कैसे झूठ बोलूं? कैसे प्रपंच रचूं, कैसे इनको फुसलाऊं? कैसे इनमें फ़ुट डालूं? कैसे इन दोनों को लडाऊं? कैसे अपने आप को श्रेष्ठ सिद्ध करूँ?


    परन्तु शिष्य के चित्त पर इन सबका प्रभाव नहीं पड़ता, वे समझते हैं कि मैं क्या हूँ ! जो सही अर्थों में शिष्य हैं और जिनके अन्दर सदगुण हैं, वे असदगुणों को तुंरत भांप लेते हैं, जो गुलाब के फूलों के बीच रहते हैं, जब थोडी सी भी नाली कि दुर्गन्ध आती हैं तो वे भांप लेते हैं कि यहाँ दुर्गन्ध हैं, कहाँ से नाली बह रही हैं, यह मालूम नहीं, पर दुर्गन्ध हैं अवश्य, और उन्हें एहसास होता हैं कि उन्हें दुर्गन्ध से दूर हट जाना हैं !


    ऐसा शिष्य या तो किनारा करके खड़ा हो जाता हैं या फिर उस सुगंध में स्वयं को व्याप्त करने के लिए तैयार हो जाता हैं ! मगर वह नाली का कीडा नहीं बनता, और नाली का कीडा बनकर हज़ार साल भी जीवित रहने की अपेक्षा दो दिन जीवित रहना ज्यादा अच्छा हैं ! वह अपने गुरु की रक्षा करने के लिए उनकी आज्ञा पालन करने के लिए, अपने जीवन को भी आत्मोत्सर्ग करने के लिए, वह तैयार रहता हैं – यही जीवन की श्रेष्ठता का एक मापदंड हैं !


    यदि हमने गुरु के लिए अपने आप को न्यौछावर ही नहीं किया, तो जीवन व्यर्थ हैं ! जीवन में एक तरफ ऐसे व्यक्ति हैं जो गुरु हैं और जीवन में गुलाब के फूल तो चार पॉँच ही खिलेंगे और यदि चार पॉँच फूल भी टूट गए तो फिर कांटे ही जीवन में रह जायेंगे ! जहाँ भी जाओगे, तुम्हें कांटे ही मिलेंगे ! उन काँटों के बीच जीवित नहीं रहना हैं, क्योंकि अगर उन फूलों को जीवित रखना हैं तो उन काँटों को तोड़ना ही पड़ेगा, उन काँटों को तोडेंगे तो फूल विकसित होंगे, आसपास की घास खोदेंगे तो फूल का विकास होगा !


    और हमने जीवन में काँटों का विकास किया, या फूलों का विकास किया, काँटों की रक्षा के लिए अपने क्षणों को व्यतीत किया या फूलों की रक्षा के लिए अपने क्षणों को व्यतीत किया, यह चिंतन का विषय हैं ! हमने अपने जीवन के कितने क्षण उस गुरु को दिए? कितना समय उनके लिए दिया? किस प्रकार से उनको बचाया? किस प्रकार से उनकी सेवा की, यह जीवन का एक उच्च स्तरीय सोपान हैं ! यह जीवन का एक उच्च स्तरीय मापदंड हैं, अपने आपको नापने की एक क्रिया हैं, और यही स्थिति शिष्यता कहलाती हैं ! शिष्य शब्द से ही सेवा शब्द बना हैं और सेवा का मतलब हैं उन गुलाब के फूलों को विकसित करने में सहयोग देना और सहयोग देने के लिए तूफ़ान आंधी के बीच में तन कर के खड़े हो जाना, क्योंकि अगर वे ही गिर गए तो चारों तरफ़ नाली के कीड़े बहने लग जायेंगे ! फिर हमारा जीवन अपने आप में व्यर्थ हो जाएगा, फिर हमारे जीवन का कोई अर्थ नहीं रह पायेगा !


    मैंने तो सैकडों प्रकार के जीवन जीये हैं, गृहस्थ शिष्यों के बीच में भी रहा हूँ, सन्यासी शिष्यों के बीच भी रहा हूँ ! सन्यासियों में भी कई हलके स्तर के भी होंगे, कुछ बहुत अच्छे स्तर के भी हैं, जिनके नाम आज भी मेरे चित्त पर बहुत गहरी स्याही से लिखे हैं और और आज भी मैं उनके संपर्क में हूँ !


    कृष्ण के भी तीर लगा तो उनको भी खून निकला ही निकला, राम को भी अगर रावण के तीर लगे तो उनके शरीर में भी कम से कम 108 छेद हो ही गए थे ! वह तो एक शरीर हैं, उस शरीर के अन्दर ईश्वरत्व हैं, उस शरीर के अन्दर गुरुत्व हैं, उस शरीर के अन्दर शिष्यत्व हैं !


    आपने अपना जीवन किस तरीके से व्यतीत किया हैं और गुरु ने अपना जीवन किस तरीके से व्यतीत किया यह महत्वपूर्ण हैं ! क्या गुरु तुम्हारे बराबर सहयोगी रहे? क्या गुरु तुम्हें बार-बार प्रेम से बोलते रहे? क्या गुरु ने तुम्हें कभी गालियाँ दी? क्या गुरु ने तुमसे कभी षड़यंत्र किया? नहीं किया! तो तुम्हें भी कोई अधिकार नहीं हैं कि उनके प्रति षडयंत्र करें, उनके प्रति झूठ बोलें, या उनके प्रति छल करें, उनके प्रति तूफ़ान को आने दें ! गुरु को मानसिक शांति मिले, यही हमारा धर्म काल गणना हो ! इसलिए शंकराचार्य कहते हैं कि जन्म से लेकर मृत्यु तक चाहे आप व्यापारी हैं, चाहे नौकरी पेशा हैं, चाहे आप किसी भी क्षेत्र में हैं, आप शिष्य हैं !


    मृत्यु के क्षण तक भी शिष्य हैं, शिष्य का अर्थ हैं कि आप क्या जीवन में सीख रहे हैं? आप क्या कर रहे हैं और आप किसके लिए क्या कर रहे हैं? क्या अपने लिए? हमने दूसरों के लिए क्या किया वह महत्वपूर्ण हैं !


    अपने आपको बलिदान नहीं कर दिया तो शिष्य कैसे हुए? आगे भी चाहे गुरु तुम्हारे पास नहीं होगा, परन्तु वह सुगंध तुम्हारे पास व्याप्त होगी कि हमने कुछ क्षण ऐसे व्यक्ति के साथ बिताये हैं जिनमें ज्ञान था, चेतना थी, जो सही अर्थों में व्यक्तित्व था, मगर जिसे तूफानों के बीच धकेल दिया हमने !


    और तूफ़ान के बीच तो अच्छे से अच्छा गुलाब भी मुरझाकर के टूटकर गिर जाता हैं, अच्छे से अच्छा राम भी बाणों का शिकार होकर गिर जाता हैं, अच्छे से अच्छा कृष्ण भी एक तीर लगने से मृत्यु को प्राप्त हो जाता हैं, लेकिन – नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि… ! !


    शंकराचार्य ने इस श्लोक में दूसरा शब्द लिया हैं प्रेम ! कि जिसके हृदय में प्रेम हैं वह गलती कर ही नहीं सकता ! और प्रेम केवल एक के साथ ही हो सकता हैं, दस लोगों के साथ नहीं हो सकता ! दस के साथ सहानुभूति हो सकती हैं, दस लोगों के साथ अटैचमेंट हो सकता हैं, चालीस लोगों के साथ परिचय आपका हो सकता हैं, प्रेम नहीं हो सकता ! प्रेम तो केवल एक व्यक्ति से होगा – या तो ईश्वर से होगा या गुरु से होगा या किसी से भी होगा और जिसके प्रति प्रेम हैं उसके प्रति जान न्यौछावर होती हैं ! भक्त अपने आपको पूर्ण रूप से समर्पित कर देता हैं !


    आपका प्रेम केवल एक के साथ हो सकता हैं – या तो काँटों के साथ हो सकता हैं या गुलाब के फूलों के साथ हो सकता हैं ! दोनों से एक साथ नहीं हो सकता ! यह आप पर निर्भर हैं कि आप काँटों के साथ प्रेम करते कि आप गुलाब के साथ प्रेम करते हैं ! मगर शंकराचार्य कहते हैं कि अपने जीवन को उच्चता तक पहुचाने के लिए आपको इसी क्षण से परिवर्तित होना पड़ेगा या तो आप नीचे धरातल पर चले जायेंगे, या फिर ऊंचाई पर चले जायेंगे ! यह फिर आपके हाथ में हैं या तो आप षडयंत्रकारी बन जायेंगे या गुलाब के फूल बन जायेंगे या तो कांटे बन जायेंगे !


    यह अपने आप में भगवान को धोखा देने की क्रिया हैं, अपने आप को धोखा देने की क्रिया हैं ! यदि आपके शरीर में सुगंध हैं आप में यदि प्रेम हैं तो आप वास्तव में उच्चता पर स्थित हैं ! प्रेम का अर्थ हैं अपने आप को मिटा देने की, फ़ना कर देने की क्रिया, उसके लिए अपने आपको न्यौछावर कर देने की क्रिया, तिल-तिल कर के जल जाने की क्रिया ! यदि ऐसा हैं तो जीवन की सार्थकता हैं !


    इतिहास नहीं क्षमा करेगा, फिर तुम्हारे जीवन का अर्थ क्या रहेगा? यदि तुम्हारे जीवन का मूल्य क्या रहेगा? फिर तुम शिष्य कैसे बनोगे? शिष्य वह तो हैं ही नहीं कि दीक्षा दी वही शिष्य हैं ! यह तो जन्म से लगाकर के मृत्यु तक की सारी क्रिया शिष्यता हैं, आप सीढियों पर चढ़ रहे हैं या उतर रहे हैं – यह शिष्यता हैं, आप तूफानों से टक्कर ले रहे हैं या तूफानों का शिकार हो रहे हैं – यह शिष्यता हैं, आप मन्दिर को गिरता देख रहे हैं या मन्दिर को बचाने में तत्पर हैं, यह शिष्यता हैं ! आपने गिरजाघर को गिरने दिया या बचाया, आपने गुरुद्वारे को समाप्त किया या बचाया, यह शिष्यता हैं !


    और गुरु की पहिचान तो अपने आप में मन की आंखों से ही सम्भव हैं ! अगर प्रेम का अंकुर फुटा ही नहीं, तो आपने गुरु को पहचाना ही नहीं ! पहचान ले जिससे प्रेम का वह अंकुर तेजी से बढ़ने लगे क्योंकि तुम्हारे अन्दर प्रेम हैं तो परन्तु तुमने उसे जागने नहीं दिया हैं ! इसलिए जागने नहीं दिया कि उसके ऊपर घृणा, बहार की हवा, तूफ़ान हावी हो गए ! तुम भाग बन गए उसके, और उस प्रेम को तुमने दबा दिया ! ज्योंही अंधेरे को हटाया, छल को हटाया तो प्रेम का अंकुर फूटा, फूटा और तुम्हारा चेहरा मुस्कराहट से खिल गया, तुम्हारे शरीर से सुगंध निकलने लगी, तुम्हारा शरीर सुगन्धित, सुवासित होने लगा, एक महक आने लगी, एक आंखों में सुरूर पैदा हुआ, एक जिंदगी की धड़कन पैदा हुयी और उसकी रक्षा के लिए अपने आप को तैयार कर दिया, उसके लिए अपने आपको न्यौछावर कर दिया, उसके लिए अपने आपको आत्मोत्सर्ग कर दिया !


    आपने क्या दिया, यह आपका अपना गणित हैं ! मैं आशीर्वाद देता हूँ कि आपके हृदय में प्रेम का अंकुर फूटे, आप किसी की ढाल बन सकें, आपके मन में जो घृणा दूसरो ने भर दी हैं, जो षडयंत्र, डर, भय, आतंक हैं उनको आप हटा कर निर्भीक हों ! आप निर्भीक है तो जीवित हैं, जाग्रत हैं, डरे हुए हैं तो आप अधम, गये बीते हैं ! जब भय रहित होंगे तब प्रेम व्याप्त हो पायेगा ! ऐसे ही आप भय रहित, निर्भय होकर के अपने अन्दर के गुलाब को, प्रेम को विकसित करें और आप आत्मोत्सर्ग हो सकें और एक ज्ञान के दीप को, एक गुलाब के फूल को जीवित, जाग्रत, चैतन्य बनाएं रख सकें, जिससे कि वह सुगंध चारों तरफ फ़ैल सकें ! यही आपके जीवन की क्रिया बने, ऐसे ही मैं हृदय से आशीर्वाद देता हूँ, कल्याण कामना करता हूँ !


    गुरु वाणी, परमपूज्य गुरुदेव निखिलेश्वरानंद, Mantra Tantra Yantra Vigyan by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji

Hirendra Pratap Singh


जीवन में तुम्हें रुकना नहीं है, निरंतर आगे बढ़ना है क्यूंकि जो साहसी होते हैं, जो दृढ़ निश्चयी होते हैं जिनके प्राणों में गुरुत्व का अंश होता है, वही आगे बढ़ सकता है.. और इस आगे बढ़ने में जो आनंद है, जो तृप्ति है, वह जीवन का सौभाग्य है.

***

गृहस्थ से भागने की जरुरत नहीं है, जरुरत है, एक तरफ खड़े होकर देखने की, तुम्हारी एक आँख गृहस्थ में हो, तो दूसरी आँख गुरु चरणों में नमन युक्त होनी चाहिए. तब तुम्हारे जीवन में कोई न्यूनता रहेगी ही नहीं क्यूंकि वह नमन युक्त आँख तुम्हारे जीवन को पूरी तरह से संवार देगी, सजग कर देगी, प्रकाशित कर देगी.

***

उन सन्यासी शिष्यों ने मेरे आनंद का अमृत चखा है, और इसलिए वो मेरी उपस्थिति के बिना भी मस्त हैं, चैतन्य हैं, नृत्य युक्त हैं, और मैं वही अमृत बांटने आया हूँ, तुम इस अमृत को तृप्ति के साथ चखो, और तुम्हें एहसास होगा की तुम्हारा जीवन संवर गया है, तुम्हारा जीवन जगमगाहट देने लगा है.
***
पिछले जीवन में तुम्ही तो थे, जो मुझसे अलग हुए थे, मैं तुम्हें आवाज़ दे रहा था और तुम नकली स्वप्नों के पीछे पीठ मोड़कर भाग रहे थे, और तुमने अपने कान मेरी आवाज़ सुनने के लिए बंद कर दिए थे, और उसी का परिणाम तुम्हारी ये चिंताएं हैं, ये परेशानियाँ हैं, ये जीवन की बाधाएं हैं.


***


तुम्हें जीवन में कुछ भी विचार करने की जरुरत नहीं है, क्यूंकि मैं प्रतिक्षण प्रतिपल तुम्हारे साथ हूँ, मुझे मालुम है की तुम्हें किस लक्ष्य तक पहुँचाना है, तुम्हें तो चुपचाप अपना हाथ मुझे सौंप देना है आगे का कार्य तो मेरा है.


***


तुम्हें साधना के और सिद्धियों के मोती नहीं मिल रहे हैं, तो यह कसूर तो तुम्हारा ही है, क्यूंकि तुम्हें समुद्र में गहरायी के साथ उतरने की क्रिया नहीं आई, तुममे पूर्ण रूप से डूबने का भाव नहीं आया, गुरु के ह्रदय सागर में निश्चिंत होकर दुबकी लगाने की क्षमता नहीं आई, और जिस दिन तुम गहराई के साथ गुरु के ह्रदय में डूब सकोगे, तब वापिस बाहर आते समय तुम्हारी दोनों हथेलियाँ “सिद्धि” के मोतियों से भरी होंगी.


***


शिष्य का तात्पर्य नजदीक आना है, और ज्यादा नजदीक, इतना नजदीक, कि गुरु के प्राणों में समा जाये, एकाकार हो जाये, गुरु की धड़कनों में अपनी धडकनें मिला ले, और जब ऐसा होगा तो तुम्हारे अन्दर स्वतः गुरुत्व प्रारम्भ हो जायेगा, स्वतः दिव्यत्व प्रारम्भ हो जाएगा, और स्वतः सिद्धियाँ तुम्हारे सामने नृत्य करती सी प्रतीत होंगी.


".पहाड़ चढ़ने का एक उसूल है....झुक के चलो , दौड़ो मत ..... ज़िंदगी भी बस इतना ही मांगती है......... "ठोकरे खा कर भी ना संभले तो, मुसाफिर का नसीब। वरना पत्थरों ने तो, अपना फ़र्ज़ निभा दिया।

" तेरा इंतजार, किसी मुकदमें से कम नहीं... हर बार नई तारीख मिलती हो जैसे ========== ना डूबने देता है, ना उबरने देता है, उसकी आँखों का वो समंदर अजीब है... ..! "
  1. खुशियां कम और अरमान बहुत हैं, जिसे भी देखिए यहां हैरान बहुत हैं,, 
  2. करीब से देखा तो है रेत का घर, दूर से मगर उनकी शान बहुत हैं,, 
  3. कहते हैं सच का कोई सानी नहीं, आज तो झूठ की आन-बान बहुत हैं,, 
  4. मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी, यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं,, 
  5. तुम शौक से चलो राहें-वफा लेकिन, जरा संभल के चलना तूफान बहुत हैं,, 
  6. वक्त पे न पहचाने कोई ये अलग बात, वैसे तो शहर में अपनी पहचान बहुत हैं।।। 

"कभी किसी दूसरे की मुस्कान की वजह भी बन कर देखें, ज़िन्दगी में कभी निराशा और उदासी आपके आस पास भी नहीं आ पाएगी.. "

Tuesday, October 2, 2012

Hanuman Chalisa in different style- Narayan Dutt Shrimali

Hanuman Chalisa in different style- Narayan Dutt Shrimali


Hanuman Chalisa for harmony, love and to remove all difficulties in life. Find the benefits.

Thursday, September 13, 2012

Diksha methodology, significance, kinds


दीक्षा-पद्धति, महत्व, प्रकार, आदि.
Diksha - methodology, significance, kinds

दीक्षा क्या हैं?

मेरे शिष्य मेरी सम्पदा -सदगुरुदेव

“दीक्षा” सदगुरु दर्शन, स्पर्श और शब्द के द्वारा शिष्य के भीतर शिवभाव उत्पन्न करने की क्रिया हैं | ‘दीक्षा’ज्ञान देने की क्रिया हैं, जिसके द्वारा जीव का उद्धार होता हैं, और वह अपने मूल स्वरुप ब्रह्म तक जाकर अखंडानंद में लीन हो जाता हैं | ‘दीक्षा’ का रहस्य इतना गूढ़ और जटिल हैं, कि उसे मात्र कुछ शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता हैं, क्योंकि यह तो साक्षात् ईश्वर द्वारा गुरु रूप में उपस्थित होकर मनुष्य को पूर्णता प्रदान करने की क्रिया हैं | ‘दीक्षा’ को ही सम्पूर्ण साधना कहा गया हैं, सदगुरु यदि शक्तिपात द्वारा अपनी शक्ति का कुछ अंश दीक्षा के माध्यम से अपने शिष्य को देते हैं, तो फिर किसी भी प्रकार की, उससे सम्बंधित साधना की उसे आवश्यकता ही नहीं पड़ती, क्योंकि ‘दीक्षा’ साधना सिद्धि का द्वार खोलने की क्रिया हैं, जिससे साधक अपने जीवन को निश्चित अर्थ दे सकता हैं |

“दीक्षा” का तात्पर्य यही हैं, कि सदगुरु के पास तपस्या का जो विशेष अंश हैं, जो आध्यात्मिक पूँजी हैं, उसे वे अपने नेत्रों के माध्यम से शक्तिपात क्रिया द्वारा, शिष्य को दैहिक, भौतिक, आध्यात्मिक आवश्यकतानुसार उसके हृदय में उतार सकें | यदि शिष्य का शरीर रुपी कपडा मैला हो गया हैं, तो सदगुरुदेव उसे बार-बार दीक्षा के माध्यम से धोकर स्वच्छ कर सकें!

दीक्षाओं की आवश्यकता क्यों और किसलिए?
दीक्षाओं की आवश्यकता क्यों और किसलिए?

युग परिवर्तन की इस संधिबेला में दिन-प्रतिदिन ऐसी अनहोनी घटनाएं घट रही हीं, कि हर मानव-मन अपने जीवन की सुरक्षा को लेकर भयभीत व चिंतित हैं, वह किसी ऐसी सत्ता के आश्रय की खोज में हैं, जो उसे, उसके परिवार को, सुरक्षा कवच पहिनाकर, उसकी सारी परेशानियों को अपने ऊपर लेकर उसे भयमुक्त कर सकें, और यह सुरक्षा उसे सदगुरु के द्वारा प्रदान की गई दीक्षाओं से ही प्राप्त हो सकती हैं | दीक्षाओं को लेने की आवश्यकता हमारे जीवन में इसलिए भी हैं क्योंकि :

1. दीक्षा प्राप्ति के उपरांत शिष्य को उससे सम्बंधित किसी भी प्रकार की साधना करने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती|
2. सदगुरु अपनी ऊर्जा के प्रवाह द्वारा शिष्य के शरीर में वह शक्ति प्रवाहित कर देते हैं, जिससे उसे मनोवांछित सफलता प्राप्त होती ही हैं|
3. यह शास्त्रीय विधान हैं, कि जब तक साधक या शिष्य किसी साधना से सम्बंधित दीक्षा विशेष को प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक वह सफलता प्राप्त नहीं कर सकता|
4. जीवन के दुःख, दैन्य, भय, परेशानी, बाधा एवं अडचनों को दूर कर शारीरिक, मानसिक, आर्थिक लाभ हेतु भी दीक्षाओं की आवश्यकता होती हैं|
5. नैतिक उत्थान के साथ-साथ जीवन में बासंती हवा जैसी मधुरता और सूर्य जैसा प्रकाश दीक्षाओं के माध्यम से ही संभव हैं|
6. जीवन में अनवरत उन्नति, सफलता, विजय, सुख-शांति, ऐश्वर्य, यश व कीर्ति पाने के लिए|
7. भविष्य ज्ञान, भविष्य कथन की विद्या ज्ञात करने, वर्तमान को संवारने हेतु!
8. शारीरिक सौंदर्य, सम्मोहन, निरोगी काया, प्रेम में सफलता व अनुकूल विवाह हेतु|
9. सभी प्रकार की अपनी गुप्त इच्छाओं की पूर्ती हेतु|
10. सभी प्रकार के कष्टों, समस्याओं का निवारण, मनोवांछित कार्य एवं इच्छाओं की पूर्ति हेतु जीवन को सही दिशा प्रदान करने के लिए दीक्षाओं की आवश्यकता प्रत्येक मानव को पड़ती ही हैं|

-: दीक्षाओं के प्रकार :-
-: दीक्षाओं के प्रकार :-
दीक्षाओं को शास्त्रों में 108 प्रकार से वर्णित किया गया हैं| इन 108 दीक्षाओं में भौतिक, शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान और सभी सभी प्रकार के सुखों की उपलब्धि छिपी हुई हैं| स्त्री हो या पुरुष, बालक हो या वृद्ध, चाहे किसी भी समुदाय, जाति, संप्रदाय का व्यक्ति क्यों न हो, इन दीक्षाओं को पूज्यपाद सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी से कसी भी शिविर में या जोधपुर स्थित उनके गुरुधाम में पहुँच कर प्राप्त कर सकता हैं| व्यक्ति चाहे तो इनमें से एक, दो या कुछ चुनी हुई दीक्षाएं या समस्त दीक्षाएं अपनी इच्छानुसार ले सकते हैं| इन दीक्षाओं को 108 भागों में इस प्रकार बांटा गया हैं-

-: कब कौन सी दीक्षा ली जाएँ :-
1. सामान्य दीक्षा : शिष्यत्व धारण करने हेतु यह प्रारंभिक गुरु दीक्षा हैं|
2. ज्ञान दीक्षा : अद्वितीय ज्ञान की प्राप्ति और मेधा में वृद्धि हेतु|
3. जीवन मार्ग : जीवन के सारे अवरोधों, अशक्तता को समाप्त करके जीवन को चैतन्यता प्रदान करने वाली दीक्षा|
4. शाम्भवी दीक्षा : शिवत्व प्राप्त कर शिवमय होने के लिए|
5. चक्र जागरण दीक्षा : समस्त षट्चक्रों को जाग्रत कर अद्वितीय बनाने वाली दीक्षा|
6. विद्या दीक्षा : जड़मति को सूजन कालीदास बना देने वाली दीक्षा|
7. शिष्याभिषेक दीक्षा : पूर्ण शिष्यत्व प्राप्त करने के लिए|
8. आचार्याभिषेक दीक्षा : ज्ञान की पूर्णता के लिए|
9. कुण्डलिनी जागरण : इस दीक्षा के सात चरण हैं| इसे एक-एक करके भी लिया जा सकता हैं या एक साथ सातों चरणों की दीक्षा द्वारा कुण्डलिनी का जागरण कर अद्वितीय व्यक्तित्व का धनी बना जा सकता हैं|
10. गर्भस्थ शिशु चैतन्य : गर्भस्थ बालक को अभिमन्यु की भांति मनोनुकूल बनाने हेतु दीक्षा!
11. शक्तिपात से कुण्डलिनी : गुरु की तपस्या के अंश, दीक्षा द्वारा प्राप्त कर प्रथम व जागरण दीक्षा जीवन का अंतिम सत्य प्राप्त करने हेतु|
12. फोटो द्वारा कुण्डलिनी जागरण दीक्षा : यह दीक्षा व्यक्ति के उपस्थित न होने पर फोटो से भी प्राप्त की जा सकती हैं|
13. धन्वंतरी दीक्षा : निरोगी काया प्राप्त करने हेतु|
14. साबर दीक्षा : तांत्रिक साधना में सफलता व सिद्धि के लिए|
15. सम्मोहन दीक्षा : अपने अंदर अद्भुत सम्मोहन पैसा करने हेतु|
16. सम्पूर्ण सम्मोहन दीक्षा : सभी को सम्मोहित करने की कला प्राप्ति हेतु|
17. महालक्ष्मी दीक्षा : सुख-सौभाग्य, आर्थिक लाभ की प्राप्ति हेतु|
18. कनकधारा दीक्षा : लक्ष्मी के निरंतर आवागमन के लिए|
19. अष्टलक्ष्मी दीक्षा : धन प्रदायक विशेष दीक्षा|
20. कुबेर महादीक्षा : कुबेर की भांति स्थायी सम्पन्नता पाने हेतु|
21. इन्द्र वैभव दीक्षा : इन्द्र जैसा वैभव, यश प्राप्त करने हेतु|
22. शत्रु संहारक दीक्षा : शत्रु से बदला लेने हेतु|
23. प्राण वल्लभा अप्सरा : प्राणवल्लभा अप्सरा की सिद्धि हेतु|
24. सामान्य ऋण मुक्ति : ऋण से मुक्त होने हेतु|
25. शतोपंथी दीक्षा : शिव की अद्वितीय शक्ति प्राप्ति हेतु|
26. चैतन्य दीक्षा : स्फूर्तिदायक, पूर्ण चैतन्यता प्रदान करने वाली दीक्षा|
27. उर्वशी दीक्षा : वृद्धता मुक्ति एवं यौवन प्राप्ति हेतु|
28. सौन्दर्यौत्तमा अप्सरा : पुरुष व स्त्री दोनों का ही पूर्ण कायाकल्प करने हेतु|
29. मेनका दीक्षा : विश्वामित्र की तरह पूर्ण साधनात्मक व भौतिक सफलता प्राप्ति हेतु|
30. स्वर्ण प्रभा यक्षिणी : आकस्मिक धन प्राप्ति के लिए|
31. पूर्ण वैभव दीक्षा : समस्त प्रकार के आनन्द, वैभव की प्राप्ति हेतु|
32. गन्धर्व दीक्षा : गायन संगीत में दक्षता के लिए|
33. साधना दीक्षा : पूर्वजन्म की साधना को इस जन्म से जोड़ने हेतु|
34. तंत्र दीक्षा : तांत्रिक साधनाओं में सफलता हेतु|
35. बगलामुखी दीक्षा : शत्रु को परास्त कर अपने अंदर अद्वितीय साहस भरने वाली दीक्षा|
36. रसेश्वरी दीक्षा : रसायन-शास्त्र में दक्षता के लिए तथा पारद -संस्कार विद्या प्राप्त करने हेतु|
37. अघोर दीक्षा : शिवोक्त साधनाओं की पूर्ण सफलता के लिए|
38. शीघ्र विवाह दीक्षा : विवाह सम्बन्धी रुकावटों को मिटाकर शीघ्र विवाह हेतु|
39. सम्मोहन दीक्षा : यह तीन चरणों वाली महत्वपूर्ण दीक्षा हैं|
40. वीर दीक्षा : वीर साधना संपन्न कर, वीर द्वारा इच्छानुसार कार्य संपन्न कराने के लिए|
41. सौंदर्य दीक्षा : अद्वितीय सौंदर्य प्रदान करने वाली दीक्षा|
42. जगदम्बा सिद्धि दीक्षा : देवी को सिद्ध करने वाली दीक्षा|
43. ब्रह्म दीक्षा : सभी दैवीय शक्तियों को प्राप्त करने वाली दीक्षा|
44. स्वास्थ्य दीक्षा : सदैव स्वस्थ व निरोगी बनने हेतु|
45. कर्ण पिशाचिनी दीक्षा : सभी के भूत-वर्तमान को ज्ञात करने के लिए|
46. सर्प दीक्षा : सर्प दंश से मुक्ति व सर्प से आजीवन सुरक्षा हेतु|
47. नवार्ण दीक्षा : त्रिशक्ति की सिद्धि के लिए|
48. गर्भस्थ शिशु की कुण्डलिनी जागरण दीक्षा : इससे गर्भस्थ बालक के संस्कार महापुरुषों जैसे होते हैं|
49. चाक्षुष्मती दीक्षा : नेत्र ज्योति बढ़ाने के लिए|
50. काल ज्ञान दीक्षा : सही समय पहिचान कर उसका सदुपयोग करने हेतु|
51. तारा योगिनी दीक्षा : तारा योगिनी की सिद्धि हेतु, जिससे जीवन भर अनवरत रूप से धन प्राप्त होता रहे|
52. रोग निवारण दीक्षा : समस्त रोगों को मिटने हेतु|
53. पूर्णत्व दीक्षा : जीवन में पूर्णता प्रदान करने वाली दीक्षा|
54. वायु दीक्षा : अपने-आप को हल्का, हवा जैसा बनाने हेतु|
55. कृत्या दीक्षा : मारक सिद्धि प्रयोग की दीक्षा|
56. भूत दीक्षा : भूतों को सिद्ध करने की दीक्षा|
57. आज्ञा चक्र जागरण दीक्षा : दिव्य-दृष्टि प्राप्ति के लिए|
58. सामान्य बेताल दीक्षा : बेताल शक्ति को प्रसन्न करने के लिए|
59. विशिष्ट बेताल दीक्षा : बेताल को सम्पूर्ण सिद्ध करने के लिए|
60. पञ्चान्गुली दीक्षा : हस्त रेखा-शास्त्र में निपुणता प्राप्त करने के लिए|
61. अनंग रति दीक्षा : पूर्ण सौंदर्य एवं यौवन शक्ति प्राप्त करने के लिए|
62. कृष्णत्व गुरु दीक्षा : जगत गुरुत्व प्राप्त करने के लिए|
63. हेरम्ब दीक्षा : गणपति की सिद्धि हेतु|
64. हादी, कादी, मदालसा : नींद व भूख-प्यास पर नियंत्रण के लिए|
65. आयुर्वेद दीक्षा : आयुर्वेद के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि के लिए|
66. वराह मिहिर दीक्षा : ज्योतिष के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि के लिए|
67. तांत्रोक्त गुरु दीक्षा : गुरु से हठात (बल पूर्वक) शक्ति प्राप्ति हेतु|
68. गर्भ चयन दीक्षा : अपने मनोनुकूल गर्भ की प्राप्ति हेतु|
69. निखिलेश्वरानंद दीक्षा : संन्यास की विशेष भावभूमि प्राप्ति हेतु|
70. दीर्घायु दीक्षा : लंबी आयु की प्राप्ति हेतु दीक्षा|
71. आकाश गमन दीक्षा : इससे मन, आत्मा, आकाश का भ्रमण करती हैं|
72. निर्बीज दीक्षा : जन्म-मरण, कर्म-बंधन की समाप्ति के लिए|
73. क्रिया-योग दीक्षा : जीव-ब्रह्म ऐक्य ज्ञान प्राप्ति हेतु|
74. सिद्धाश्रम प्रवेश दीक्षा : सिद्धाश्रम में प्रवेश पाने हेतु|
75. षोडश अप्सरा दीक्षा : जीवन में समस्त सुख-सौभाग्य, संपत्ति प्राप्ति के लिए|
76. षोडशी दीक्षा : सोलह कला पूर्ण, त्रिपुर सुंदरी साधना हेतु|
77. ब्रह्माण्ड दीक्षा : ब्रह्माण्ड के अनंत रहस्यों को जानने के लिए|
78. पशुपातेय दीक्षा : शिवमय बनने के लिए|
79. कपिला योगिनी दीक्षा : राज्य बाधा एवं नौकरी में आने वाली अडचनों को दूर करने हेतु|
80. गणपति दीक्षा : भगवान गणपति की विशिष्ट कृपा प्राप्ति हेतु|
81. वाग्देवी दीक्षा : वाक् चातुर्य एवं वाक् सिद्धि के लिए|


इसके अतिरिक्त कुछ विशिष्ट उच्च कोटि की दीक्षाएं भी हैं, जो पूज्य गुरुदेव से परामर्श कर प्राप्त की जा सकती हैं|

“दीक्षा का तात्पर्य यह नहीं हैं कि आप जिस उद्देश्य के लिए दीक्षा ले रहे हैं, वह कार्य संपन्न हो ही जाएँ, अपितु दीक्षा का तात्पर्य तो यह हैं कि, आप जिस उद्देश्य के लिए दीक्षा ले रहे हैं, उस कार्य के लिए आपका मार्ग प्रशस्त हो|”

नोट: मेरी सलाह यह हैं कि किसी भी दीक्षा की प्राप्ति के पूर्व हो सके तो गुरुदेव से अवश्य परामर्श ले ले...
जिससे कि आपका कार्य अतिशीघ्र पूर्ण हो सकें.


दीक्षाओं के लिए निश्चित न्यौछावर राशि देने की आवश्यकता क्यों:-


1. क्योंकि यह हमारी भारतीय परम्परा रही हैं, कि हम गुरु का ज्ञान बिना गुरु दक्षिणा के प्राप्त नहीं कर सकते|
2. बिना गुरु आज्ञा के विद्या सीखने पर एकलव्य को भी अंगूठा दान देना ही पड़ा था|
3. व्यक्ति के पास इतना समय, साधना व आध्यात्मिक शक्ति नहीं हैं, कि वह कठोर साधना कर सकें, इसलिए दीक्षा की कुछ दक्षिणा-राशि गुरु-चरणों में अर्पित कर, वह उस साधना के रूप में तपस्या के अंश को प्राप्त करता हैं| अपने समय, श्रम द्वारा गुरु-सेवा न कर सकने के बदले वह अपना अंशदान देता हैं|
4. आपकी दीक्षा के बदले दी गई राशि अनगिनत साधू-सन्यासियों, तपस्वियों, योगियों का भरण-पोषण करती हैं|
5. इस धन के माध्यम से स्थान-स्थान पर निःशुल्क चिकित्सा, प्याऊ, निर्धनों के लिए कम्बल एवं वस्त्र वितरण आदि समाजोपयोगी कार्य संपन्न होते हैं|
6. गरीबों एवं निर्धन विद्यार्थियों की शिक्षण सुविधा के लिए भी आपका दिया हुआ यह अंशदान उन्हें सहायता के रूप में प्राप्त होता हैं|

आदि....

आदि....

Saturday, March 31, 2012

WHO IS I AM LET ME KNOW FAST THEN YOU WILL COME

तुम मेरे ही अंश हो, मेरे ही प्राण होl

तुम्हारा जीवन एक सामान्य घटना नहीं हैं, एक सामान्य चिंतन नहीं हैं, यह मनुष्य जीवन तुम्हें अनायास ही प्राप्त नहीं हो गया…… इसके पीछे कितने ही आवागमन के चक्र हैं, कितने ही संघर्ष एवं गुरु के स्वयं कितने ही प्रयास हैं…l अतः इस जीवन को सहज ही मत ले लेना, इसका मूल्य समझो, इसके मूल उद्देश्य को पहचानोl

पर मुझे अत्यधिक वेदना होती हैं, कि तुम हमेशा एक नींद में, एक खुमारी में पड़े रहते हो…l वह नींद जो अचेतन हैं, जो तुम्हें भ्रम की अवस्था में रखती हैंl मानव जीवन प्राप्त कर भी तुम सोये हुए हो…l और दूसरों की तरह, अपने पास-पड़ोसियों, रिश्तेदारों की तरह धन, वैभव, काम, ऐश्वर्य की मंद्चाल में लगे हो……

यह ग़लत नहीं हैंl

मैंने तो तुम्हें हमेशा सम्पन्न देखना चाह हैं…ll पर आत्म-उत्थान की बलि देकर सम्पन्नता प्राप्त करवाना मेरा उद्देश्य नहीं……l अगर ऐसे तुम सम्पन्नता प्राप्त कर भी लोगे और अगर तुम्हारी आध्यात्मिक झोली फटी ही रहेगी, तो फिर प्राप्त भी क्या हो जाएगा…… तुम भी उन लाखों लोगों की भीड़ में शामिल होकर, एक दिन इस निद्रा में ही, पशु की भांति समाप्त हो जाओगे……l

और अगर ऐसा हो गया, तो तुम मेरे शिष्य हो भी नहीं सकते, तुम मेरे अंश हो भी नहीं सकते…l क्योंकि अगर शिष्य हो, तो काल क्या महाकाल को भी तुम्हारे सामने आँखें नीची करनी ही पड़ेंगी…

तुम्हें आख़िर चिंता किस चीज की हैं, क्यों ऊहापोह में पड़े रहते हो, क्यों पागलों की तरह धन कमाने, भौतिक जीवन की और भाग रहे हो…l इसका तो तुम्हें तनाव रखना ही नहीं हैं…ll क्योंकि अगर लक्ष्मी मेरे घर में नृत्य करती हैं, तो मैं इतना समर्थ हूँ, कि तुम्हारे घर में भी उसका नृत्य करा दूँ……

पर शिष्य वही हैं, जो भौतिकता को तो भोगे, परन्तु अपने मूल उद्देश्य से न डगमगाए…ll उसकी दृष्टि हमेशा अपने लक्ष्य पर टिकी रहे…ll क्योंकि मेरी इच्छा हैं, कि तुम्हें उस धरा पर खड़ा कर, उस उच्चतम स्थिति पर स्थापित कर दूँ, जहाँ पर भारत में तो क्या सम्पूर्ण विश्व में तुम्हें चैलेन्ज करने वाला कोई नहीं होगाl

……और यह स्थिति तभी प्राप्त हो सकेगी जब तुम मुझे समर्पण दोगे, मुझे प्रेम दोगे, मुझ में एकाकार हो जाओगे…… तब तुम निश्चय ही पूर्ण बन सकोगे……l और गुरु पूर्णिमा का तो अर्थ ही हैं, कि इस दिन गुरु शिष्य के समस्त कार्यों को स्वयं ओढ़ लेता हैं और बदले में उस दिव्य चेतना एवं पूर्णता देता हैंl

मैं तुम्हारी सभी कमियों को लेने के लिए तैयार हूँ, तुम्हारे विष रुपी कर्मों को अपने अन्दर पचा लेने को तैयार हूँ…ll क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो, मेरे आत्मीय होl तुम लोग गुरु की मानसिकता नहीं समझ सकते, उसकी पीड़ा भी नहीं समझ सकते…ll मैं किस तरह समझाऊं तुम्हें…… क्या अपना वक्षस्थल चीर कर दिखाऊं कि मेरे रक्त की हर बूंद में तुम बसे हो…… क्या तब तुम्हें एहसास होगा, क्या तभी तुम समझोगे?

गुरु को कितनी परेशानियाँ, कितनी मानसिक यातनाएं, कितने संघर्ष झेलने पड़ते हैं, इसका अहसास तुम नहीं कर सकते…… और वह बाहर के लोगों, बाहर के व्यक्तियों से तो निपट सकता हैं, पर अगर अपने ही उसकी बात न समझे, तो अत्यधिक पीड़ा होती हैं……l

क्या तुम नहीं चाहते, कि गुरु पाँच वर्ष ज्यादा तुम्हारे बीच रह सकें, क्या उनकी परेशानियाँ मिटाकर उनको सुख देकर उनकी अवधी को बढ़ा नहीं सकते…ll तो फिर मुझे बार-बार क्यों बोलना पड़ता हैं, क्यों बार-बार तुम्हें हाथ पकड़ कर अपने पास खींचना पड़ता हैं…l

घर का बेटा जवान हो जायें, तो पिता अपने आप को अत्यन्त हल्का महसूस करता हैं…ll तो क्या यह सुख तुम मुझको नहीं देना चाहोगे? क्या मेरा भाग्य इतना न्यून हैं, कि जवान बेटे के होते हुए भी मुझे इस उम्र में अकेले संघर्ष करना पड़े?

मैं तुम्हें एक विशेष उद्देश्य के लिए तैयार कर रहा हूँ, एक विशेष घटना के लिए तैयार कर रहा हूँ और मेरी यह हार्दिक इच्छा हैं, कि इस घटना के महानायक तुम बन सको…l उसकी बागडोर तुम्हारे हाथों में हो……l और अगर ऐसा
हो सकेगा तो मेरा सीना भी गर्व से फूल सकेगा और मैं घोषणा कर सकूँगा – “
ये मेरे ही अंश हैं, मेरे ही प्राण हैं……”

समय कम हैं और रास्ता लम्बा…ll पर तुम बस अपना हाथ बढाकर मुझे थमा दो और बाकी कार्य मुझ पर छोड़ दोllllll मैं तुम्हें श्रेष्ठ बना दूंगा, श्रेष्ठतम बना दूंगा, पूर्ण बना दूंगा और समस्त विश्व एहसास कर पायेगा कि हाँ! कोई व्यक्तित्व हैंl

मुझे फिर कभी कहने की जरुरत न पड़े, तुम निद्रा से जग कर चेतनायुक्त बनो और स्वयं आगे बढ़ने के लिए तत्पर बनो…ll क्योंकि तभी मैं तुम्हें एक ऐसा तेजस्वी सूर्य बना सकूँगा, जो इस संसार में भौतिकता रुपी अन्धकार को हटाकर चिंतन की एक नवीन दिशा प्रस्फूटित कर सकेगा……

-परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी महाराज.
(पूज्यपाद सदगुरुदेव डॉl नारायण दत्त श्रीमालीजी)
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञानl
जुलाई : पेज 84

Thursday, March 29, 2012

मेरे अनुभूत सरल लघु प्रयोग (MERE ANUBHOOT SARAL LAGHU PRAYOG)


मेरे अनुभूत सरल लघु प्रयोग (MERE ANUBHOOT SARAL LAGHU PRAYOG)


       1.घर मे क्लेश का वातावरण अचानक से हो जाए तो थोडा नमक ले कर उसे अपने कंधे पर रख कर उत्तर दिशा की तरफ मुख कर ११ बार निम्न मंत्र का उच्चारण करे. “ उत्तराय सर्व बाधा निवारणाय फट् उस नमक को फिर हाथ मे ले कर घर के बहार थोड़े दूर कही रख दे तो घर मे क्लेश का वातावरण दूर होता है.
·        2.अगर घर मे उपरीबाधा या इतरयोनी की शंका हो तो शाम के समय धूप जलाए और पुरे घर मे “ हं रुद्ररूपाय उपद्रव नाशय नाशय फट्” इस मंत्र का उच्चारण करते हुए घुमाए. ऐसा कुछ दिन करने पर इतरयोनी परेशान नहीं करती
·       3.नौकरी के interview के लिए जब जाना हो, उसके एक दिन पहले किसी मज़ार पर जा कर सफ़ेद मिठाई बच्चो मे बांटे, मज़ार पे दुआ करे और एक हरे रंग का धागा बिछे हुए कपडे से निकाले. घर पर आ कर उसे लोहबान का धुप लगाए और “ अल्लाहु मदद का जाप कर फूंक मारे, ऐसा ८८ बार जाप करे और फूंक मारे. इस धागे को अपनी जेब मे रखकर interview के लिए जाए, सफलता मिलेगी.
·       4.व्यापर वृद्धि के लिए व्यक्ति को अपने व्यापर स्थान पर एक अमरबेल लगानी चाहिए. उसे रोज पानी देना चाहिए तथा अगरबत्ती दिखा कर कोई भी लक्ष्मी मंत्र का जाप करने पर, उस लक्ष्मी मंत्र का प्रभाव बढ़ता है
·       5.किसी भी प्रकार की औषधि लेने से पूर्व उसे अपने सामने रख कर १०८ बार निम्न मंत्र का जाप कर लिया जाए और उसके बाद उसको सेवन के लिए उपयोग किया जाए तो उसका प्रभाव बढ़ता है. “ॐ धनवन्तरि सर्वोषधि सिद्धिं कुरु कुरु नमः
·       6.हाथी दांत का टुकड़ा अपने आप मे महत्वपूर्ण है. किसी भी शुक्रवार की रात्री को उस पर कुंकुम से ‘श्रीं’ लिख कर श्रीसूक्त के यथा संभव पाठ करे. इसके बाद उसे लाल कपडे मे लपेट कर तिजोरी मे रख देने पर निरंतर लक्ष्मी कृपा बनी रहती है

·      7. सूर्य को अर्ध्य देना अत्यंत ही शुभ है. अर्ध्य जल अर्पित करने से पूर्व ७ बार गायत्री का जाप कर अर्पित करने से आतंरिक चेतना का विकास होता है
  8. घर के मुख्य द्वार के सामने सीधे ही आइना ना रखे. इससे लक्ष्मी सबंधित समस्या किसी न किसी रूप मे बनी रहती है, अतः इस चीज़ का ध्यान रखना चाहिए.

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·     1.  If all of a sudden atmosphere of the house becomes distressed then one should take bit of salt and should place it on the shoulder and by facing north one should chant following mantra for 11 times. Om Uttaraay Sarv Baadhaa nivaranaay Phat” after that one should take that salt in hand and should place it bit far out of the house. This way distressed surroundings becomes normal.
·      2. If one feels haunting or spirit in the house then one should light Dhoop in the evening time and should rotate it in every part of house by chanting mantra Ham Rudraroopaay Upadrav Naashay Naashay Phat”. By doing this process for few days, no spirit could harm
·       3.While going for interview of job; before a day one should go to Mazaar or mosque and should distribute white sweets to kids. Should pray there and one should take green thread from the cloth there. After reaching home one should give Lohbaan dhoop to that thread and should puff on it while chanting “Allaahu Madad”, this way 88 times puff and mantra chanting should be done. One should place this thread while going for interview; success could be gained.
·       4.One should plant “Amarbel” at the business place to increase business. One should daily give water to it and should light Incense sticks to it and if any mantra related to lakshmi is chanted in front of it, the power of that lakshmi mantra is increases.
·      5. Before starting to take any medicine one should chant the mantra 108 times by placing medicine in front and after this process if medicine is applied to use can result in maximum benefit from the medicine. “ Om Dhanawantari Sarvoshadhi Siddhim Kuru Kuru Namah
·      6. Piece of the elephant teeth is very important. On any Friday night if ‘shreem’ is written on it with red vermillion and one should chants shree sukta as much as possible. After that one should cover it in red cloth and place it in money locker. Thus blessings of Lakshmi will keep on remain.
·      7. Giving ardhya water to Sun is very auspicious. If Gaayatri mantra is chanted 7 times before Ardhya water is provided to sun then one’s inner consciousness increases and develops.
·      8. There should be no mirror directly in front of main gate inside home. This may cause troubles related to money in one or another way so this thing should be noted carefully.

Sunday, February 26, 2012

question answering for sadhana or mantra

दिव्यता के पथ पर नये साधकों और नवागन्तुकों के मन मे अनेक सवाल होते हैं। जिसका जवाब वो अक्सर अन्य साधकों से अनुरोध पुर्वक पूछते हैं और कभी-कभी तो इन्हे काफी परेशान भी होना पड़ता है। फिर कहीं जाकर साधना के पथ पर अग्रसर होने के पद चिन्ह प्रप्त हो पाते हैं या फिर कभी-कभी तो बहुत से महत्वपुर्न तथ्य अनछुए ही रह जाते हैं। इस ग्रूप मे जो भी साधक , साधिका जुड़ें उनका चिन्तन साधना की तरफ़ पूरा सही हो इसके लिये ये एक प्रयास है जिसे आप अवश्य समझें, उम्मीद है आपके कई प्रश्नों का उत्तर आपको यहाँ मिलेगा। और यह लेख खासकर उन व्यक्तियों के लिए भी है जो अभी तक साधना जगत और हमारे अलौकिक निखिल परिवार से अनजान रहे हैं। वो जो मंत्र, तंत्र, यंत्र से अभी तक बिल्कुल बेखबर रहे हैं आप उन्हें भी अपने facebook profile में इस post से कुछ share करके या फिर profile में कहीं इसे स्थान देकर उन्हें जीवन का सही अर्थ समझा सकते हैं…

मनुष्य के जीवन का मूल चिंतन क्या है, अगर आप इस बारे में सोचें.. विचार करें, तो आप ये समझ पाऐंगे की मनुष्य के जीवन का मक्सद केवल साँस लेना नहीं है। हम केवल पैदा होके भोजन करके और बडे होने के लिए और फिर एक दिन मर जाने के लिए ही इस धरती पर इस जगह हम नहीं आए हैं। क्यूंकि अगर मर ही जाना होता तो फिर हमारे पैदा होने का मतलब भी क्या रहा? फिर हमारे इस मृत्यु लोक में आने का प्रयोजन क्या है, हम क्यूँ आए हैं?
कौन बताएगा.. कोई बता सकता है हमारे शास्त्रों के हिसाब से तो केवल गुरू। और वह गुरू जिसने खुद इन रहस्यों को समझा हो। इसके लिए कोई जरूरी नहीं कि लम्बी जटाएँ रखने वाला या भगवा वस्त्र धारण किये हुआ कोई साधू भी गुरू हो, जरूरी नहीं। पूर्णता प्राप्त किए हुए गुरू इतनी आसानी से कहीं भी सडक किनारे नहीं मिलते।वह तो कई जन्मों के पुन्य के उदय होने पर, हजारों साल में एक बार कभी आते हैं। और हमें उस समय उस गुरू को पहचानने की जरूरत है। और हम पेहचान सकते हैं साधना के माध्यम से...

प्र. आज के इस आधुनिक युग मे साधना का क्या महत्व है? मैं अपने रोज के इस busy life मे इसे क्यूँ स्थान दूँ, आखिर इससे होगा क्या..?
उ. आधुनिक जीवन जीने का ये मतलब नहीं की आप अपने जीवन को संकुचित करके रखें। मनुस्य का जीवन और बहुत सारे आयामों के लिए होता जो अक्सर लोग ज्ञान के अभाव मे नहीं समझते और यही कारण रहता कि अक्सर लोगों को लगता है कि सब कुछ पाकर भी जीवन में कुछ कमी है। हम खुद अपनी पूरी life को एक छोटे से घेरे मे रख लेते हैं और मान लेते हैं की हमने हर सुख की अनुभूती कर ली और हमारा जीवन पूर्ण हो गया। हम गलती कर देते हैं। Modern science या आधुनिक विज्ञान बहुत से रहस्यों को नहीं समझ पाता है, इसे हम तंत्र और साधना के माध्यम से ही समझ सकते हैं।

प्र. मुझे तंत्र, मंत्र शब्द से डर लगता है। यह बहुत गलत चीज है?
उ. तंत्र और मंत्र जैसे शब्द से डरने की जरूरत है ही नहीं। ये कुछ गलत नहीं है... तंत्र तो भगवान भोलेनाथ का वह वरदान है जिससे हम अपने जीवन की हर समस्याओं का निराकरण कर एक सुखी जीवन व्यतीत कर सकते हैं। अपने जीवन की प्रत्येक न्यून्ताओं को समाप्त कर सकते हैं और हम जीवन के सही अर्थ को समझ सकते हैं। हाँ ये है की आप इसके Power को नहीं समझ पाए। ये तो एक विज्ञान है जिससे मनुष्य के अन्दर छुपी उस विराट सत्ता को जागृत किय़ा जा सकता है। पूजा करने से शायद कोई फायदा नहीं होता हो, मगर तंत्र से निश्चित अगर हम साधना कर लेते हैं तो हम उन दिव्य शक्तियों को प्राप्त कर ही सकते हैं। इससे तो सिद्धी मिलती ही है। मैं केह रहा हूँ आपसे और पहली बार यह केह रहा हूँ की ऐसा होता है!! इससे तो दिव्य शक्तियाँ जैसे की Telepathy, Clairvoyance, अपने पूर्व जन्मों को देख पाना, पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य लोकों को देख पाना। आपने रामायण, महाभारत जैसे पुराने ग्रंथों में ये पढा ही होगा पर इसको पहले ही गलत या असत्य मान लेना..... आप उस साधना रहस्य और उन मंत्रों को नहीं जान पाए इसलिए ऐसा समझ लिया। वे रहस्य तो गुरू अपने शिष्यों को करवाते ही हैं, अगर शिष्य अपने गुरू से प्रार्थना करे तो।

प्र. गुरू क्या होते हैं और ये कहाँ मिलेंगे?
उ. गुरू उसको कहते हैं जो अपने शिष्य को पूर्णता की ओर अग्रसर करता है। उसके जीवन की हर परेशानी को दूर करता हुआ उसे ब्रह्म से साक्षात्कार करवाता है। समझाता है की ईश्वर ने उसका जन्म क्यूँ किया। गुरू अपने ज्ञान और साध्नात्मक बल से मन के अंधकार को दूर करता है। इसलिए शाष्त्रों में उल्लेख है कि.. "गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः..." गुरू से ज्यादा पवित्र शब्द कुछ नहीं है। गुरू ही होते हैं जो शिष्य के समस्त पाप को अपने ऊपर ले लेते हैं। और प्रत्येक व्यक्ति का कोई गुरू होना ही चाहिए, नहीं तो वह खोता ही रहता है। दुनिया के जितने भी Religions हुए उन सबका आधार गुरू-शिष्य सम्बन्ध ही रहा है। आप चाहे वेद पढ लें, भगवत गीता पढ लें, Holi Bible पढ ले, कुरान पढ लें, गुरू ग्रंथ साहिब पढ लें सबमें आपको "Guru-Disciple Conversation" ही मिलेगा। और यह परम्परा तो हमारे सनातन धर्म में 40 हजार साल से है। पर आज कल हम Modern हो गए, हम भूल गए।

मगर गुरूत्व मरता नहीं, ऐसे श्रेष्ठ गुरू तो आज भी होते हैं और वो हैं। हमारा अत्यन्त सौभाग्य है कि हम युग-पुरूष Dr. Narayan Dutt Shrimali के समय में हैं। जिन्होनें भारतवर्ष के उन अति दुर्लभ साधनाओं को पुनर्जीवित कर हमें अपने छत्र-छाया में रखकर हमारे कई-कई जन्मों के प्यास को शांत किया।
http://en.wikipedia.org/wiki/Narayan_Dutt_Shrimali

प्र॰ गुरुदेव से मुलाकत कहाँ होगी ? कया हमे उनसे मिलने के लिये Appointment लेनी पड़ेगी ?
उ॰ आप व्यक्तिगत रूप से गुरुदेव को अपनी समस्याओं, योजना, विचारों के बारे में बता सकते हैं। मिलने एवं गुरू दीक्षा के लिए विशिष्ट दिनांक का पत्रिका में उल्लेख है।

Address- Kailash Siddhashram,
46, Kapil Vihar,
Pitampura, New Delhi 110034, India.
Phn- 011-27351006.

Pracheen Mantra Yantra Vigyan,
1C, Panchvati Colony,
Ratanada,
Jodhpur 342001, Rajasthan, India.
Phn- 0291-2517025.


पूज्य त्रिमूर्ति गुरुदेव से दीक्षा लेने और अपनी कोई भी समस्या का समाधान पाने हेतु कृपया निम्न पते पर संपर्क करें :
पूज्य गुरुदेव श्री नंदकिशोर श्रीमालीजी 
१४ अ, मेन रोड हाई कोर्ट कोलोनी
सेनापति भवन के पास,
जोधपुर ३४२००१
फ़ोन : ०२९१ - २६३८२०९, २६२४०८१ 

पूज्य गुरुदेव श्री कैलाशचंद्र श्रीमालीजी
१ - क, पंचवटी कोलोनी
एन सी सी ग्राउंड के सामने
रातानाडा,
जोधपुर ३४२०११ 
फ़ोन : ०२९१-२५१७०२५ 

पूज्य गुरुदेव श्री अरविन्द श्रीमालीजी
डॉ श्रीमाली मार्ग, हाई कोर्ट कोलोनी
जोधपुर ३४२००१ 
फ़ोन : ०२९१-२४३३६२३, २४३२२०९ 
पूज्य त्रिमूर्ति गुरुदेवजी से मिलने हेतु :

सिद्धाश्रम साधक परिवार 

प्र. आप तंत्र और मंत्र जैसे बडे शब्द use करते हैं, आखिर ये तंत्र, मंत्र इत्यादि हैं क्या? इससे क्या प्रभाव पडता है, मैं कैसे इसे use कर सकता हूँ?
उ. मंत्र कुछ एक विशेष संस्कृत के शब्दों का समूह होता है जिसके नियमित और नि्रधारित बार उच्चारण करने से, बोलने से हम मन चाहे कार्य कर सकते हैं। तंत्र का मतलब है वह तरिका वह system जिस विधी से हम साधना करें, मंत्र जप इतयादि जो करते हैं। और एक मत्वपू्रण चिज है यंत्र जिसमे उस दैविक शक्ति का निवास होता है जिनकी हम साधना करते हैं, और जिस देवी या देवता से अपना कार्य कराना है, वह इसी यंत्र में स्थापित हैं। ये तिनों चिज की मदद से हम साधना करेंगे। और जब हम मंत्र बोलते हैं और लगातार बोलते रहते हैं तो उससे एक ध्वनि बनती है, vibration निकलता है जो हॉँथ में घूम रही माला से शरीर के विभिन्न चक्रों से होते हुए हृदय स्थल से निकलकर यंत्र की शक्ति को जागरित करती है। सारा खेल Frequency का है जो आपके उच्चारण करने से पैदा हुआ। फिर ये ध्वनि ब्रह्मांड के उस ईष्ट से contact करके आपका काम कराती है। और शास्त्रों मे कहा है कि, "मंत्रोआधिनश्च देवः" यानि आप जिस प्रकार का मंत्र बोलोगे वो देवता उस प्रकार से आपका वह कार्य करेंगे। अरे भई संस्कृत इनकी language ही तो है, तो इनसे बात करनी है तो इनही की language मे बात करोगे न.. hindi बोलने से क्या होगा।

प्र. क्या साधना काम करती है? मैं जैसा चाहूं क्या ठीक वैसा ही तंत्र साधना से संभव है?
उ. बिल्कुल संभव है, और केवल तंत्र के माध्यम से ही संभव है। और कोई दूसरा रास्ता है नहीं। कम से कम आज के युग मे तो सिद्धी पाने का यही एक superfast रास्ता है जब लम्बे समय तक पूजा-पाठ वगैरह.... और उससे कुछ होता भी है?? नहीं। आप आरती करते रहिए धूप अगरबत्ती करते रहिए पूरे साल भर, मगर उससे न आज तक हुआ है न हो सकता है। तब हमें मंत्रों का साहारा लेना चाहिए। पर किसी साधना में सफलता हासिल करने के लिए कुछ नियम भी हैं जिसका पालन करना अत्यन्त अनिवार्य है।

1.. साधना घर के किसी साफ-सुथरी और एकान्त कमरे मे करें। स्वच्छ धुले कपडे हों और जिस रंग की धोती और आसन बताया है, उसी को पहन के करें.. लाल वस्त्र कहा है तो आप पूरे लाल रंग की ही धोती पेहनेंगे।
2.. धोती/ साडी पहनकर ही साधना होती है। jeans, t-shirt नहीं चलेगा because jeans, t-shirt में stiches होते हैं।
3.. आप जहाँ बैठकर जप करें वहां अपने नीचे उसी रंग का आसन जरूर रखें, जिसपर बैठकर ही साधना सफल होती है। आसन उस मंत्र की शक्ति को जमीन में जाने से बचाता है। आसन एक bad conductor का काम करता है।
4.. मंत्र, साधना, गुरू और ईष्ट पर पूर्ण विशवास रखें। सिर्फ टेस्ट करने के लिए, आजमाने के लिए न करें। अगर भरोसा है और साधना पूरी करनी हो तभी करें, यह कोई मजाक नहीं। और जो दृड निशचय के साथ साधना पर बैठता है, केवल उसी को सफलता प्राप्त होती है।
5.. जितने दिनों तक जप करना है वह रोज ऐक ही exact, fixed समय पर हो। अगर 7 दिन जप करना है तो 7 days ऐक ही समय पे शुरू करना है। और जितनी माला करनी है रोज उतना ही जप करें, न कम न ज्यादा ही। मतलब अगर 21 माला करने को कहा है तो 21 माला ही रोज करें।
7.. हर साधना को करने का अलग-अलग ढंग हमारे ऋषियों ने बनाया है। पहले पूरी विधी समझ लें फिर उसके हिसाब से साधना करें।
8.. साधना के दिनों में non-veg food नहीं खाना है। इससे मंत्रों का पर्भाव विफल होने लगता है। प्याज और लेहसुन भी वर्जित है।
9.. ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

प्र. मंत्र जप कैसे करना है?
उ. मंत्रों का स्पष्ट और साफ उच्चारण होना चाहिए। मंत्र के हर बीज को साफ-साफ और हल्के आवाज मे बोलना चाहिए। बहोत जोर से चिल्ला कर बोलने की जरूरत भी नहीं है। बहुत जल्दी-जल्दी या बहुत धीरे भी नहीं.. medium speed होनी चाहिए। और हर बीज का सही उच्चरण करना जरूरी है। मान लीजिए अगर मंत्र है-

।। ह्रीं श्रीं ह्रीं ।।

तो इसका उच्चारण ऐसे होगा- ।। Hreeng Shreem Hreeng ।।

मंत्र जप करते हुए बीच मे किसी से बात नहीं करनी चाहिए। अकेले रूम में साधना करें। माला फेरते हुए हिल्ना डुलना नहीं चाहिए। शांत भाव से ध्यान लगाकर साध्ना करें जैसे meditation कर रहे हैं।

प्र. माला कैसे फेरनी चाहिए?
उ. माला को Right Hand के Thumb, Middle Finger और Ring finger से पकड के हर bead पे एक बार मंत्र बोलना चाहिए। माला के सुमेरू पे मंत्र नहीं बोला जाता। सुमेरू यानी जो सबसे बीच का एक अलग सा मनका होता है। माला clockwise अपने तरफ घुमाते रहना चाहिए। जब सुमेरू के पास पहुंच जाएं तो सुमेरू को पकडे बिना ही माला घुमा लें ताकी आखिरी मनका पहला हो जाए। अगर माला फेरते हुए मंत्र गलत उचचरित हो जाए तो फिर शुरू से माला करने की जरूरत नहीं, आप उसी मनके से दुबारा बोलकर आगे बढ जाएँ।

प्र. साधना में दिशा का क्या महत्व है?
उ. हर साधना को एक निर्धारित दिशा को मुख करके ही करना चाहिए। हर देवता के आने का एक particular direction होता है। देवताओं के आवागमन ज्यादातर पूर्व अथवा उत्तर से होता है।

प्र. साधना के लिए माला, धोती वगेरह कहाँ से लेनी चाहिए?
उ. साधना सामग्री गुरूधाम में ही मिल जाएगी। ये उपकरण प्राण ऊर्जा युक्त होना जरूरी है जोकी यहाँ पर शिष्यों के लिए ही available रेहती हैं।

प्र. मैं हिंदू नहीं हूं, क्या मैं भी साधना कर सकता/सकती हूँ?
उ. भगवान तो एक ही होते हैं। किसी विशेष धर्म का इसपर कब्जा नहीं हैं। "All humans are one".

प्र. मैं एक परिवार वाला हूँ और मैं कोई साधू, सन्यासी नहीं बनना चाहता। मैं कैसे साधना कर सकता हूँ?
उ. व्यक्ति मन से सन्यासी या गृहस्थ होता है। अगर कोई सन्यास लेकर भी दुनिया वालों से लोभ रखता है तो वो सन्यासी है भी नहीं, वह एक ढोंग है। साधना के लिए दुनिया छोडनी नहीं होती वह तो घर पर भी की जा सकती है। बस साधना विधी का ज्ञान होना चाहिए। गुरूदेव तो खुद भी गृहस्थ हैं।

प्र. साधना और सिद्ध पुरूष बनने के लिए तो सबकुछ छोडके जंगल में जाना पडेगा ना? हमारे ऋषि मुनी तो वहीं रहते थे।
उ. जंगल या पहाड पे चढने की जरूरत नहीं आप साधना घर पर ही कर सकते हैं, और घर पर ही अगर एक रूम है और आपको कोई disturb नहीं करता है तो ठीक है। गुरूदेव से दीक्षा लेकर हम घर पर ही गुरू के बताए अनुसार साधना कर सकते हैं।

Sunday, January 8, 2012

Mahakali Sadhna Dr. Narayan Dutt Shrimali

Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji- Mahakali Sadhna Part-1
Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji- Mahakali Sadhna Part-2

Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji- Mahakali Sadhna Part-3

Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji- Mahakali Sadhna Part-4

Note : Ye sadhan CD aur Book GURU DHAM SE parpt kar ke hi kare
nahi to aap ki sadhana adura hi mana jayega 

ESA SAD GURU NE KAHA HAI

COPY NA Kare
JAY GURU DEV