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Wednesday, January 27, 2016

सिद्ध लक्ष्मी सहस्त्राक्षरी मंत्र साधना। sidh Lakshmi sahastrakshri Mantra sadhna



विनियोगः -- ॐ अस्य श्री सर्व महाविद्या महारात्रि गोपनीय मंत्र रहस्याति रहस्यमयी पराशक्ति श्री मदाधा भगवती सिद्ध लक्ष्मी सहस्त्राक्षरी सहस्त्र रूपिणी महाविद्याया: श्री इन्द्र ऋषि गायत्र्यादि नाना छन्दांसि नवकोटि शक्तिरूपा श्री मदाधा भगवती सिद्ध लक्ष्मी देवता श्री मदाधा भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे पाठ विनियोगः


ऋष्यादि न्यास


श्री इन्द्र ऋषिभ्यां शिरसे नमः
गायत्र्यादि नानाछन्देभ्यो नम: मुखे
नव कोटि शक्तिरूपा श्री मदाधा भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादाद खिलेष्टार्थे जपे पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे


अंग न्यास


ॐ श्रीं सहस्त्रारे (सहस्त्रार चक्र)
ॐ क्लीं नमो नेत्रयुगले (दोनों नेत्र)
ॐ श्रीं नमः हृदये
ॐ ह्रीं नमः जंघा द्वये (जांघ)
ॐ ह्रीं नमः भाले(ललाट)
ॐ ऐं नमो हस्त युगले(दोनों हाथ)
ॐ क्लीं नमः कटौ(पैर)
ॐ श्रीं नमः पादादि सर्वांगे


लक्ष्मी के चित्र के आगे 21 पाठ करे पुष्य योग में।


महाविद्या मंत्र


ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्सौ श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं सौ: सौ: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं जय जय महालक्ष्मी जगदाधे विजये सुरासुर त्रिभुवन निदाने दयांकुरे सर्व देव तेजो रूपिणी विरंचि संस्थिते विधि वरदे सच्चिदानन्दे विष्णु देहावृते महा मोहिनी नित्य वरदान तत्परे महा सुधाब्धि वासिनि महा तेजो धारिणी सर्वाधारे सर्व कारण कारिणे अचिन्त्य रूपे इन्द्रादि सकल निर्जर सेविते साम गान गायन परिपूर्णोदय कारिणी विजये जयंति अपराजिते सर्व सुन्दरि रक्तांशुके सूर्य कोटि संकाशे चन्द्र कोटि सुशीतले अग्निकोटि दहन शीले यम कोटि वहन शीले  ॐ कार नाद बिन्दु रूपिणी निगमागम भागदायिनी त्रिदश राजदायिनी सर्व स्त्री रत्न स्वरूपिणी दिव्य देहिनी निर्गुणो सगुणे सद् सद् रूपधारिणी सुर वरदे भक्त त्राण तत्परे बहु वरदे सहस्त्राक्षरे अयुताक्षरे सप्त कोटि लक्ष्मी रूपिणी अनेक लक्ष लक्ष स्वरुपे अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायिके चतुर्विंशति मुनि जन संस्थिते चतुर्दश भुवन भाव विकारणे गगन वाहिनि नाना मंत्र राज विराजते सकल सुंदरीगण सेविते चरणारविन्दे महात्रिपुर सुन्दरि कामेश दायिते करुणा रस कल्लोलिनि कल्प वृक्षादि स्थिते चिंतामणि द्वय मध्यावस्थिते मणि मन्दिरे निवासिनी विष्णु वक्षस्थल कारिणे अजिते अमिले अनुपम चरिते मुक्ति क्षेत्राधिष्ठायिनी प्रसीद प्रसीद सर्व मनोरथान पूरय पूरय सर्वारिष्ठान छेदय छेदय सर्व ग्रह पीड़ा ज्वराग्र भयं विध्वंसय विध्वंसय सर्व त्रिभुवन जातं वशय वशय मोक्ष मार्गाणि दर्शय दर्शय ज्ञान मार्ग प्रकाशय प्रकाशय अज्ञान तमो नाशय नाशय धन धान्यादि वृद्धिं कुरु कुरु सर्व कल्याणानि कल्पय कल्पय मां रक्ष रक्ष सर्वायद्भयो निस्तारय निस्तारय वज्र शरीर साधय साधय ह्रीं क्लीं सहस्त्राक्षरी सिद्ध लक्ष्मी महा विद्यायै नमः ।।

Monday, March 2, 2015

Pagla Baba Lakshmi Sadhana पगला बाबा करोंड़ पति लक्ष्मी साधना

पगला बाबा भारत के महान ऋषि और तंत्र के महान ज्ञाता
लक्ष्मी साधना जिस आप करोंड़ पति बन सकते है...
होलीका दहन की रात्रि १० PM बजे के बाद ये साधना करने पर ये सिद्ध हो जाता है
पगला बाबा पूरे भारत में प्रसिद्ध है और वह अपने जीवन के समय में (Ruppees )लाखों का दान दिया है। अभी भी अपने धन का कोई अंत नहीं हो रहा है। अपनी जवानी में ही वो एक लक्ष्मी साधना पूरा किया था।जो बहुत ही रहस्य है यह प्रकार है।
घी के साथ एक मिट्टी के दीपक भरें और अपनी बाईं ओर पर जो जगह है। इसे प्रकाशित करे। फिर एक कमल गट्टा( Kamalgatta) की माला मंत्र के साथ निम्न मंत्र का 21 राउंड मन्त्र जाप करे ।
Om Hreem Eishwarya Shreem Dhan Dhaanyaadhipatayei Ayeim Poornnatva Lakshmi Siddhhayei Namah.
ॐ ह्रीं एश्वर्य श्रीं धन धान्याधीपताए ऐं पूर्णत्व लक्ष्मी सिद्धय नम:
कम से कम 21 राउंड माला मन्त्र बोले जानाचाहिए ।दीपक वही लगे रहने दे साधना के बाद , यह इस अनुष्ठान कभी विफल नहीं हूया है कहा जाता है। यह हाथ योग का सबसे अच्छा साधना है और पूरा विश्वास और भक्ति के साथ करने की कोशिश करने पर यह कभी असफल नहीं हो सकता हैं। इससे पहले (Poornnatva) पूर्णत्व लक्ष्मी यंत्र रखा जाना चाहिए दीपक के पास बजोट पर पिला वस्त्र पर उस का पांचो उपचार से पूजन किया हो । साधना के बाद एक पीले कपड़े में यंत्र को लपेट कर आप अपने नकदी के जगह रखते है। एस मैं किसी भी संदेह की जरुरत नहीं है यह सबसे अच्छा लक्ष्मी Sadhanas में से एक है।
Lakshmi Sadhanas of great Rishis and Master of Tantra
Pagla Baba Lakshmi Sadhana
Pagla Baba is famous in the whole of India and he has donated lakhs of ruppees in his life time. Still there seems to be no end to his wealth. In his youth he had accomplished a Lakshmi Sadhana which is very secret. It is as follows.
Fill a clay lamp with ghee and place it on your left. Light it. Then with a Kamalgatta rosary chant 21 rounds of the following Mantra.
Om Hreem Eishwarya Shreem Dhan Dhaanyaadhipatayei Ayeim Poornnatva Lakshmi Siddhhayei Namah.
At least 21 rounds have to be chanted. After completion of the chanting place the lamp on the floor. It is said that this ritual has never failed. It is the best Sadhana of the Hath Yog and if tried with full faith and devotion it can never fail. Before the lamp the Poornnatva Lakshmi Yantra has to be placed. After Sadhana tie the Yantra in a yellow cloth and place it where you keep your cash. It is without doubt one of the best Sadhanas.

Saturday, September 6, 2014

Lakshmi spiritual redemption of debt; Lakshmi receipt twenty formula ऋण मोचन लक्ष्मी साधना; लक्ष्मी प्राप्ति के बीस सूत्र


ऋण मोचन लक्ष्मी साधना; लक्ष्मी प्राप्ति के बीस सूत्र

ऋण मोचन लक्ष्मी साधना

कर्ज का भार व्यक्ति के जीवन में अभिशाप की तरह होता है, जो व्यक्ति की हंसती हुई जिन्दगी में एक विष की भांति चुभ जाता है, जो निकाले नहीं निकलता और व्यक्ति को त्रस्त कर देता है। ऋण का ब्याज अदा करते-करते लम्बी अवधि हो जाती है, पर मूल राशी वैसी की वैसे बनी रहती है। नवरात्रि में ऋण मोचन लक्ष्मी की साधना करने से व्यक्ति कितना भी अधिक ऋणभार युक्त क्यों न हो, उसकी ऋण मुक्त होने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है।

नवरात्री में अथवा इस काल में संकल्प लेकर किसी भी सप्तमी से नवमी के बीच साधना कर सकता है। इस प्रयोग के लिए प्राणप्रतिष्ठायुक्त 'ऋण मुक्ति यंत्र' और 'ऋण मोचन लक्ष्मी तंत्र फल' की आवश्यकता होती है। साधना वाले दिन साधक प्रातः काल स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर, पूर्व दिशा की ओर मुख कर अपने पवित्र आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने एक बाजोट पर लाल रंग का कपडा बिछाकर उस पर किसी पात्र में यंत्र स्थापित कर दें, यंत्र के ऊपर कुंकुम से अपना नाम अंकित कर दें, उस पर तंत्र फल को रख दें। धुप-दीप से संक्षिप्त पूजन करें। वातावरण शुद्ध एवं पवित्र हो। फिर निम्न मंत्र का डेढ़ घंटे जप करें -

मंत्र
॥ ॐ नमो ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्लीं क्लीं श्रीं लक्ष्मी मम गृहे धनं देही चिन्तां दूरं करोति स्वाहा ॥

अगले दिन यंत्र को जल मे विसर्जीत कर दें तथा, ऋण मोचन फल को प्रयोगकर्ता स्वयं अपने हाथों से किसी गरीब या भिखारी को अतिरिक्त दान-दक्षिणा, फल-फूल आदि के साथ दें। कहा जाता है, की ऐसा करने से उस तंत्र फल के साथ ही व्यक्ति की ऋण बाधा तथा दरिद्रता भी दान में चली जाती है और उसके घर में भविष्य में फिर किसी प्रकार की दरिद्रता का वास नहीं रहता।

यदि दान लेने वाला नहीं मिले, तो प्रयोगकर्ता स्वयं किसी मन्दिर में जाकर दक्षिणा के साथ उस तंत्र फल को भेट चढ़ा दे। इस प्रयोग को संपन्न करने के बाद तथा तंत्र फल दान कर पुनः घर आने पर लक्ष्मी आरती अवश्य संपन्न करें। इस प्रकार प्रयोग पूर्ण हो जाता है।

लक्ष्मी प्राप्ति के बीस सूत्र

सदगुरुदेव की वाणी से लक्ष्मी साधना के अद्वितीय

बीस सूत्र

प्रत्येक गृहस्थ इन सूत्रों-नियमों का पालन कर जीवन में लक्ष्मी को स्थायित्व प्रदान कर सकता है। आप भी अवश्य अपनाएं -

1. जीवन में सफल रहना है या लक्ष्मी को स्थापित करना है तो प्रत्येक दशा में सर्वप्रथम दरिद्रता विनाशक प्रयोग करना ही होगा। यह सत्य है की लक्ष्मी धनदात्री हैं, वैभव प्रदायक हैं, लेकिन दरिद्रता जीवन की एक अलग स्थिति होती है और उस स्थिति का विनाश अलग ढंग से सर्वप्रथम करना आवश्यक होता है।

2. लक्ष्मी का एक विशिष्ट स्वरूप है "बीज लक्ष्मी"। एक वृक्ष की ही भांति एक छोटे से बीज में सिमट जाता है - लक्ष्मी का विशाल स्वरूप। बीज लक्ष्मी साधना में भी उतर आया है भगवती महालक्ष्मी के पूर्ण स्वरूप के साथ-साथ जीवन में उन्नति का रहस्य।

3. लक्ष्मी समुद्र तनया है, समुद्र से उत्पत्ति है उनकी, और समुद्र से प्राप्त विविध रत्न सहोदर हैं उनके, चाहे वह दक्षिणवर्ती शंख हो या मोती शंख, गोमती चक्र, स्वर्ण पात्र, कुबेर पात्र, लक्ष्मी प्रकाम्य क्षिरोदभव, वर-वरद, लक्ष्मी चैतन्य सभी उनके भ्रातृवत ही हैं और इनकी गृह में उपस्थिति आह्लादित करती है, लक्ष्मी को विवश कर देती है उन्हें गृह में स्थापित कर देने को।

4. समुद्र मंथन में प्राप्त कर रत्न "लक्ष्मी" का वरण यदि किसी ने किया तो वे साक्षात भगवान् विष्णु। आपने पति की अनुपस्थिति में लक्ष्मी किसी गृह में झांकने तक की भी कल्पना नहीं कर करतीं और भगवान् विष्णु की उपस्थिति का प्रतीक है शालिग्राम, अनंत महायंत्र एवं शंख। शंख, शालिग्राम एवं तुलसी का वृक्ष - इनसे मिलकर बनता है पूर्ण रूप से भगवान् लक्ष्मी - नारायण की उपस्थिति का वातावरण।

5. लक्ष्मी का नाम कमला है। कमलवत उनकी आंखे हैं अथवा उनका आसन कमल ही है और सर्वाधिक प्रिय है - लक्ष्मी को पदम। कमल - गट्टे की माला स्वयं धारण करना आधार और आसन देना है लक्ष्मी को आपने शरीर में लक्ष्मी को समाहित करने के लिए।

6. लक्ष्मी की पूर्णता होती है विघ्न विनाशक श्री गणपति की उपस्तिथि से जो मंगल कर्ता है और प्रत्येक साधना में प्रथम पूज्य। भगवान् गणपति के किसी भी विग्रह की स्थापना किए बिना लक्ष्मी की साधना तो ऐसी है, ज्यों कोई अपना धन भण्डार भरकर उसे खुला छोड़ दे।

7. लक्ष्मी का वास वही सम्भव है, जहां व्यक्ति सदैव सुरुचिपूर्ण वेशभूषा में रहे, स्वच्छ और पवित्र रहे तथा आन्तरिक रूप से निर्मल हो। गंदे, मैले, असभ्य और बक्वासी व्यक्तियों के जीवन में लक्ष्मी का वास संभव ही नहीं।

8. लक्ष्मी का आगमन होता है, जहां पौरुष हो, जहां उद्यम हो, जहां गतिशीलता हो। उद्यमशील व्यक्तित्व ही प्रतिरूप होता है भगवान् श्री नारायण का, जो प्रत्येक क्षण गतिशील है, पालन में संलग्न है, ऐसे ही व्यक्तियों के जीवन में संलग्न है। ऐसे ही व्यक्तियों के जीवन में लक्ष्मी गृहलक्ष्मी बनकर, संतान लक्ष्मी बनकर आय, यश, श्री कई-कई रूपों मे प्रकट होती है।

9. जो साधक गृहस्थ है, उन्हें अपने जीवन मे हवन को महत्वपूर्ण स्थान देना चाहिए और प्रत्येक माह की शुक्ल पंचमी को श्री सूक्त के पदों से एक कमल गट्टे का बीज और शुद्ध घृत के द्वारा आहुति प्रदान करना फलदायक होता है।

10. आपने दैनिक जीवन क्रम में नित्य महालक्ष्मी की किसी ऐसी साधना - विधि को सम्मिलित करना है, जो आपके अनुकूल हो, और यदि इस विषय में निर्णय - अनिर्णय की स्थिति हो तो नित्य प्रति, सूर्योदय काल में निम्न मन्त्र की एक माला का मंत्र जप तो कमल गट्टे की माला से अवश्य करना चाहिए।
मंत्र: ॐ श्रीं श्रीं कमले कमलालाये प्रसीद प्रसीद मम गृहे आगच्छ आगच्छ महालक्ष्म्यै नमः

11. किसी लक्ष्मी साधना को आपने जीवन में अपनायें और उसे किस मन्त्र से संपन्न करे उसका उचित ज्ञान तो केवल आपके गुरुदेव के पास ही है, और योग्य गुरुदेव अपने शिष्य की प्रार्थना पर उसे महालक्ष्मी दीक्षा से विभूषित कर वह गृह्य साधना पद्धति स्पष्ट करते है, जो सम्पूर्ण रूप से उसके संस्कारों के अनुकूल हो।

12. अनुभव से यह ज्ञात होता है की बड़े-बड़े अनुष्ठान की अपेक्षा यदि छोटी साधानाए, मंत्र-जप और प्राण प्रतिष्ठायुक्त यंत्र स्थापित किए जाएं तो जीवन में अनुकूलता तीव्रता से आती है और इसमें हानि की भी कोई संभावना नहीं होती।

13. जीवन में नित्य महालक्ष्मी के चिंतन, मनन और ध्यान के साथ-साथ यंत्रों का स्थापन भी, केवल महत्वपूर्ण ही नहीं, आवश्यक है। श्री यंत्र, कनक धारा यंत्र और कुबेर यंत्र इन तीनों के समन्वय से एक पूर्ण क्रम स्थापित होता है।

14. जब कोई छोटे-छोटे प्रयोग और साधनाएं सफल न हो रही हों तब भी लक्ष्मी की साधना बार-बार अवश्य ही करनी चाहिए।

15. पारद निर्मित प्रत्येक विग्रह आपने आप में सौभाग्यदायक होता है, चाहे वह पारद महालक्ष्मी हो या पारद शंख अथवा पारद श्रीयंत्र। पारद शिवलिंग और पारद गणपति भी आपने आप में लक्ष्मी तत्व समाहित किए होते हैं।

16. जीवन में जब भी अवसर मिले, तब एक बार भगवती महालक्ष्मी के शक्तिमय स्वरूप, कमला महाविद्या की साधना अवश्य ही करनी चाहिए, जिससे जीवन में धन के साथ-साथ पूर्ण मानसिक शांति और श्री का आगमन हो सके।

17. धन का अभाव चिंता जनक स्थिति में पहुंच जाय और लेनदारों के तानों और उलाहनों से जीना मुश्किल हो जाता है, तब श्री महाविद्या साधना साधना करना ही एक मात्र उपाय शेष रह जाता है।

18. जब सभी प्रयोग असफल हो जाएं, तब अघोर विधि से लक्ष्मी प्राप्ति का उपाय ही अंतिम मार्ग शेष रह जाता है, लेकिन इस विषय में एक निश्चित क्रम अपनाना पड़ता है।

19. कई बार ऐसा होता है की घर पर व्याप्त किसी तांत्रिक प्रयोग अथवा गृह दोष या अतृप्त आत्माओं की उपस्थिति के कारण भी वह सम्पन्नता नहीं आ पाती, जो की अन्यथा संभव होती है। ऐसी स्थिति को समझ कर "प्रेतात्मा शांति" पितृ दोष शान्ति करना ही बुद्धिमत्ता है।

20. उपरोक्त सभी उपायों के साथ-साथ सीधा सरल और सात्विक जीवन, दान की भावना, पुण्य कार्य करने में उत्साह, घर की स्त्री का सम्मान और प्रत्येक प्रकार से घर में मंगलमय वातावरण बनाए रखना ही सभी उपायों का पूरक है क्योंकि इसके अभाव में यदि लक्ष्मी का आगमन हो भी जाता है तो स्थायित्व संदिग्ध रह जाता है।