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Friday, February 14, 2014

Lalitha Sahasranamam Full (Stotra & Meaning)


न्यासः


अस्य श्री ललिता सहस्रनामस्तोत्र महा मंत्रस्य

वसिन्यदिवग्देवतर्सायः

अनुस्तुप चंदः

श्रीललित परमेश्वरि देवत

श्रिमद्वाग्भावकुतेटि बीजं

मध्यकुतेटि सक्तिह

सक्तिकुतेटि कीलकं

श्री ललिता महा त्रिपुरसुंदरि प्रसदसिद्धिद्वार

सिन्तितफलवप्त्यर्ते जपे विनियोगः


ध्यानं


सिन्दुररुन विग्रहं त्रिनयनं माणिक्य मौलि स्पुरत

तार नयगा सेकरं स्मित मुखि मापिन वक्षोरुहं,

पनिभयं अलिपूर्ण रत्न चषकं रक्तोत्पलं विभ्रतीं,

सौम्यं रत्न गतस्त रक्त चरणं, ध्यायेत परमंबिकं.


अरुणं करुण तरंगितक्सिं दर्त पसंकुस पुष्प बनकापं

अनिमदिभिरव्र्तं मयुखैरहमित्येव विभावये भवानीं


द्यायेत पद्मसनस्तं विकसित वदनं पद्म पत्रयतक्षिं,

हेमभं पीतवस्त्रं करकलित-लसदेम पद्मं वरंगिं,

सर्वलन्गर युक्तं सततं अभायडं भक्त नम्रं भवानीं.

श्रिविद्यं संतमुतिं सकल सुरनुतं सर्व संपत प्रधत्रिं.


सकुन्कुमविलेपनमलिकसुम्बिकस्तुरिकं

समंदहसितेक्सनं ससरकापपसंकुसं

असेसजनमोहिनिं अरुनमल्यभुसंबरं

जपकुसुमभासुरं जपविधु स्मरेडंबिकं


स्तोत्रं


श्रीमत श्री महाराज्ञि श्री मत सिमसनेश्वरि

चिदग्नि कुंड संबूत देव कार्य समुद्यत

उद्यत भानु सहस्रभ चडुर बहु समन्विध

राघ स्वरूप पसद्य क्रोधकरंकुसोज्वाल

मनो रुपेषु कोदंड पंच तन मात्र सायक

निजरुन प्रभ पूरा मज्जत ब्रह्मांड मंडल


चंपकसोक – पुन्नाग-सौगंधिक-लसत कच

कुरु विनड मनि – श्रेणि-कणत कोटिर मंदित

अष्टमि चंद्र विभ्राज – धलिक स्थल शोभित

मुक चंद्र कलन्कभ म्रिगानभि विसेशक

वादन समर मांगल्य गरिह तोरण चिल्लक

वक्त्र लक्ष्मि –परिवाह-चलन मीनभ लोचन


नव चंपक –पुष्पभ-नासा दंड विराजित

तार कांति तिरस्करि नसभारण भासुर

कडंभ मंजरि क्लुप्त कर्ण पूरा मनोहर

तदंग युगलि भूत तपनोडुप मंडल

पद्म रागा सिल दर्श परिभाविक पोलभु

नव विद्रुम बिम्भ श्री न्याक्करि रत्न च्चद


शुद्ध विद्यन्गुराकर द्विज पंग्ति द्वायोज्जल

कर्पूर वीडि कमोध समकर्श दिगंदर

निज सल्लभ माधुर्य विनिर्भार्दिस्ता कच्चाभि

मंदस्मित प्रभ पूरा मज्जट कामेष मानस

अनकलिध सद्रुष्य चिबुक श्री विराजित

कामेष बद्ध मांगल्य सूत्रा शोबित कंधर


कन्कंगाध केयूर कमनीय बुजन्विध

रत्न ग्रैवेय चिंतक लोल मुक्त फलन्वित

कामेश्वर प्रेम रत्न मनि प्रति पान स्तानि

नभ्याल वल रामलि लता फल कुछ द्वयि

लक्ष्य रोम लता धारत समुन्नेय मध्यम

स्थान भर दलान मध्य पट्टा भंद वलित्रय


अरुनरुन कुसुंब वस्त्र भास्वाट कटि ताटि

रत्न किन्किनिक रम्य रसन धम भूषित

कामेष गनत सौभाग्य मर्द्वोरु द्वायन्वित

मनिख्य मुकुट कर जानू द्वय विराजित

इंद्र कोप परिक्षिप्त स्मरतुनभ जन्गिक

कूडा गुल्प्ह कूर्म प्रष्ट जयिश्नु प्रपदंविध


नाकदि दिति संचान्न नमज्जन तमोगुण

पद द्वय प्रभ जल परक्रुत सरोरुह

सिन्चन मनि मंजीर मंदित श्री पमंबुज

मरलि मंद गमन महा लावण्य सेवदि

सर्वरुन अनवध्यंगि श्र्वभारण भूषित

शिवकमेस्वरंगास्त शिव स्वाधीन वल्लभ


सुम्मेरु मध्य श्रिन्गास्त श्रीमान नगर नायिका

चिंतामणि ग्रिहन्तस्त पंच ब्रह्मसन स्थित

महा पद्म द्वि संस्थ कडंभ वन वासिनि

सुधा सागर मध्यस्थ कामाक्षि कमधयिनि

देवर्षि गण-संगत-स्तुयमनत्म-वैभव

भंडासुर वदोद्युक्त शक्ति सेन समवित


संपत्कारि समरूड सिंधूर व्रिज सेवित

अस्वरूददिशिदस्व कोडि कोडि बिरव्रुत

चक्र राज रथ रूड सर्वायुध परिष्क्रिध

गेय चक्र रथ रूड मंत्रिनि परि सेवित

गिरि चक्र रातरूड दंड नाथ पुरस्क्रुत

ज्वलिमालिक क्सिप्त वंहि प्रकार मध्यक


भंड सैन्य वदोद्युक्त शक्ति विक्रम हर्षित

नित्य परकमतोप निरीक्षण समुत्सुक

बंड पुत्र वदोद्युक्त बाल विक्रम नंदित

मंत्रिन्यंब विरचित विशंगावत दोषित

विशुक प्राण हरण वाराहि वीएर्य नंदित

कामेश्वर मुकलोक कल्पित श्री गनेश्वर


महागानेश निर्भिन्न विग्नयन्त्र प्रहर्शित

बंड सुरेंद्र निर्मुक्त साष्ट्र प्रत्यस्त्र वर्षानि

करंगुलि नखोत्पन्न नारायण दासकृति

महा पसुपतस्त्रग्नि निर्दाग्धसुर सैनिक

कामेश्वरस्त्र निर्दग्ध सबंदासुर सुन्यक

ब्र्ह्मोपेंद्र महेन्द्रदि देव संस्तुत वैभव


हर नेत्रग्नि संदग्ध कामा सन्जेवनौशधि

श्री वाग्भावे कूडैगा स्वरूप मुख पंकज

कंटत काडि पर्यंत मध्य कूडैगा स्वरूपिणि

शक्ती कूडैगा तपनन कद्यतो बागा दारिनि

मूल मंत्रत्मिख मूल कूडा त्रय कलेभर

कुलंरुतैक रसिक कुल संकेत पालिनि


कुलंगन कुलन्तस्त कुलिनि कुल योगिनि

आकुल समयन्तस्त समयचर तट पर

मोलधरैक निलय ब्रह्म ग्रंधि विभेदिनि

मनि पूरंतरुदित विष्णु ग्रंधि विबेधिनि

आज्ञ चकरंतरलस्त रुद्रा ग्रंधि विभेदिनि

सहररंभुजरूड सुधा सरभि वर्षिनि


तदिल्लत समरुच्य षड चक्रोपरि संशित

महा स्सक्त्य कुंडलिनि बिस तंतु तनियासि

भवानि भावन गम्य भावरनी कुदरिगा

भद्र प्रिय भद्र मूर्ति भक्त सौभाग्य दायिनि

भक्ति प्रिय भक्ति गम्य भक्ति वस्य भयपः

संभाव्य सरधरद्य सर्वाणि सर्मधयिनि


संकरि श्रीक्रि साध्वि शरत चंद्र निभानन

सतो धरि संतिमति निरादर निरंजन

निर्लेप निर्मल नित्य निराकर निराकुल

निर्गुण निष्कल संत निष्काम निरुप्पल्लव

नित्य मुक्त निर्विकार निष्प्रपंच निराश्रय


नित्य शुद्ध नित्य भुद्ध निरवद्य निरंतर

निष्कारण निष्कलंक निरुपाधि निरीश्वर

नीरगा राघ मदनि निर्मध माधनसिनि

निश्चिंत निरहंकर निर्मोह मोहनसिनि

निर्ममा ममत हंत्रि निष्पाप पापा नाशिनि

निष्क्रोध क्रोध–सामानि निर लोभ लोभ नसिनि


निस्संसय संसयग्नि निर्भव भाव नसिनि

निर्विकल्प निरभाध निर्भेद भेद नसिनि

निरनस म्रित्यु मदनि निष्क्रिय निष्परिग्रह

निस्तुल नील चिकुर निरपाय निरत्याय

दुर्लभ दुर्गम दुर्ग

दुक हंत्रि सुख प्रद

दुष्ट दूर दुराचार सामानि दोष वर्जित


सर्वंग्न सांद्र करुण समानाधिक वर्जित

सर्व शक्ति मयि सर्व मंगल सद्गति प्रद

सर्वेश्वरि सर्व मयि

सर्व मंत्र स्वरूपिणि


सर्व यन्त्रत्मिक सर्व तंत्र रूप मनोन्मनि

माहेश्वरि महा देवि महा लक्ष्मि मरिद प्रिय

महा रूप महा पूज्य महा पतक नसिनि

महा माय महा सत्व महा शक्ती महा रति


महा भोग महैश्वर्य महा वीर्य महा बाल

महा भुदि महा सिदि महा योगेस्वरेस्वरि

महातंत्र महामंत्र महायंत्र महासन


महा यागा क्रमराध्य महा भैरव पूजित

महेश्वर महाकल्प महा तांडव साक्षिनि

महा कामेष महिषि महा त्रिपुर सुंदरि


चतुस्तात्युपचारद्य चातु सष्टि कल मयि

महा चतुसष्टि कोडि योगिनि गण सेवित

मनु विद्य चंद्र विद्य चंद्र मंडल मध्यगा

चारु रूप चारु हस चारु चंद्र कालधर

चराचर जगन्नाथ चक्र राज निकेतन


पार्वति पद्म नायन पद्म रागा समप्रभ

पंच प्रेतसन शीन पंच ब्रह्म स्वरूपिणि

चिन्मयि परमानंद विज्ञान गण रूपिनि

ध्यान ध्यत्रु ध्येय रूप धर्मध्रम विवर्जित

विश्व रूप जगरिनि स्वपंति तैजसत्मिक


सुप्त प्रांज्ञात्मिक तुर्य सर्ववस्थ विवर्जित

स्रिष्ति कर्त्रि ब्रह्म रूप गोप्त्रि गोविंद रूपिनि

संहारिनि रुद्र रूप तिरोधन करि ईश्वरि

सदाशिवा अनुग्रहाड पंच कृत्य पारायण

भानु मंडल मध्यस्थ भैरवि बागा मालिनि

पद्मासन भगवति पद्मनाभ सहोदरि

उन्मेष निमिशोत्पन्न विपन्न भुवनावलि

सहस्र शीर्ष वादन सहराक्षि सहस्र पात


आब्रह्म कीड जननि वर्णाश्रम विधायिनि

निजंग्न रूप निगम पुन्यपुन्य फल प्राध

श्रुति सीमंत कुल सिंधूरि कृत पडब्ज्ह दूलिगा

सकलागम संदोह शुक्ति संपुट मुक्तिक

पुरशार्त प्राध पूर्ण भोगिनि भुवनेश्वरि

अंबिक अनादि निधान हरि ब्रह्मेंद्र सेवित


नारायनि नाद रूप नम रूप विवर्जित

हरिं करि हरिमति हृदय हेयोपदेय वर्जित

राज राजार्चित राखिनि रम्य राजीव लोचन

रंजनि रमणि रस्य रनाथ किंकिनि मेखल

रामा राकेंदु वादन रति रूप रति प्रिय


रक्षा करि राक्षसग्नि रामा रमण लंपट

काम्य कमकल रूप कडंभ कुसुम प्रिय

कल्याणि जगति कंद करुण रस सागर

कलावति कालालप कांत कादंबरि प्रिय

वरद वाम नायन वारुणि मध विह्वल

विस्वधिक वेद वेद्य विंध्याचल निवासिनि

विधात्रि वेद जननि विष्णु माय विलासिनि


क्षेत्र स्वरूप क्षेत्रेसि क्षेत्र क्षेत्रज्ञ पालिनि

क्षय वरिदि निर्मुक्त क्षेत्र पल समर्चित

विजय विमल वंद्य वंदारु जन वत्सल

वाग वादिनि वाम केसि वह्नि मंडल वासिनि

भक्ति माट कल्प लतिक पशु पस विमोचनि


संहृत शेष पाषंड सदाचार प्रवर्तिक

तपत्र्यग्नि संतप्त समह्लादह्न चंद्रिक

तरुणि तपस आराध्य तनु मध्य तमोपः

चिति तत्पद लक्ष्यर्त चिदेकर स्वरूपिणि

स्वत्मानंद लवि भूत ब्रह्मद्यनंत संतति


परा प्रत्यक चिदि रूप पश्यन्ति पर देवत

मध्यम वैखरि रूप भक्त मानस हंसिख

कामेश्वर प्राण नदि क्रुतज्ञ कामा पूजित

शृंगार रस संपूर्ण जया जलंधर स्थित

ओडयन पीडा निलय बिंदु मंडल वासिनि

रहो योग क्रमराध्य रहस तर्पण तर्पित


सद्य प्रसादिनि विश्व साक्षिनि साक्षि वर्जित

षडंगा देवत युक्त षड्गुण्य परिपूरित

नित्य क्लिन्न निरुपम निर्वनसुख दायिनि

नित्य षोडसिक रूप श्री कंडर्त सरीरिनि

प्रभावति प्रभ रूप प्रसिद्ध परमेश्वरि

मूल प्रकृति अव्यक्त व्यक्त अव्यक्त स्वरूपिणि

व्यापिनि विविधाकर विद्य अविद्य स्वरूपिणि

महा कामेष नायन कुमुदह्लाद कुमुदि

भक्त हर्द तमो बेध भानु माट भानु संतति


शिवदूति शिवराध्य शिव मूर्ति शिवंगारि

शिव प्रिय शिवपार शिष्टेष्ट शिष्ट पूजित

अप्रमेय स्वप्रकाश मनो वाच्म गोचर

चित्सक्ति चेतन रूप जड शक्ति जडत्मिख

गायत्रि व्याहृति संध्य द्विज ब्रिंदा निषेवित


तत्वसन तट त्वां आयी पंच कोसंदर स्थित

निस्सेम महिम नित्य यौअवन मध शालिनि

मध गूर्नित रक्ताक्षि मध पाताल खंडबू


चंदन द्रव दिग्धंगि चंपेय कुसुम प्रिय

कुसल कोमलकर कुरु कुल्ल कुलेश्वरि

कुल कुंदालय कुल मार्ग तट पर सेवित

कुमार गण नडंभ

तुष्टि पुष्टि मति धरिति

शांति स्वस्तिमति कांति नंदिनि विग्न नसिनि


तेजोवति त्रिनयन लोलाक्षि-कमरूपिनि

मालिनि हंसिनि मत मलयाचल वासिनि

सुमुखि नलिनि सुब्रु शोभन सुर नायिका

कल कंटि कांति मति क्षोभिनि सुक्ष्म रूपिनि


वज्रेश्वरि वामदेवि वयोवस्थ विवर्जित

सिदेस्वरि सिध विद्य सिध मत यसविनि

विशुदिचक्र निलय आरक्तवर्नि त्रिलोचन

खद्वान्गादि प्रकरण वादानिक सामविध

पायसान्न प्रिय त्वक्स्त पशु लोक भयंकरि

अम्रुतति महा शक्ती संवृत दकिनीस्वरि


अनहतब्ज निलय स्यमभ वादनद्वाय

दंष्ट्रोज्वाल अक्ष मालदि धर रुधिर संस्तिड

कल रात्र्यदि शक्ति योगा वृधा स्निग्ग्दोव्धन प्रिय


महा वीरेंद्र वरद राकिन्यंभ स्वरूपिणि

मनि पूरब्ज निलय वादन त्रय संयुध

वज्रदिकयुदोपेत दमर्यदिभि राव्रुत

रक्त वर्ण मांस निष्ठ गुदन्न प्रीत मानस


समस्त भक्त सुखद लकिन्यंभ स्वरूपिणि

स्वदिष्टनंबुजगत चतुर वक्त्र मनोहर

सुलयुध संपन्न पीत वर्ण अदि गर्वित


मेधो निष्ठ मधु प्रीत भंडिन्यदि समन्विध

धद्यन्न सक्त ह्रिदय काकिनि रूप दारिनि

मूलद्रंबुजरूड पंच वक्त्र स्थिति संस्थिता

अंकुसति प्रहरण वरडदि निषेवित

मुद्गौ दानसक्त चित्त सकिन्यंभ स्वरूपिणि


आज्ञ चक्रब्ज निलय शुक्ल वर्ण शादनन

मज्ज संस्थ हंसवति मुख्य शक्ति समन्वित

हर्द्रन्नैक रसिक हाकीनि रूप दारिनि

सहस्र दल पद्मस्त सर्व वर्नोपि शोबित

सर्वायुध धर शुक्ल संस्थिता सर्वतोमुखि

सर्वौ धन प्रीत चित्त यकिन्यंभ स्वरूपिणि


स्वाहा स्वद अमति मेधा श्रुति स्म्रिति अनुतम

पुण्य कीर्ति पुण्य लभ्य पुण्य श्रवण कीर्तन

पुलोमजर्चिध बंध मोचिनि बर्भारालक


विमर्शा रूपिनि विद्य वियधदि जगत प्रसु

सर्व व्याधि प्रसमनि सर्व मृत्यु निवारिणि

अग्रगान्य अचिंत्य रूप कलि कल्मष नसिनि

कात्यायिनि कल हंत्रि कमलाक्ष निषेवित

तांबूल पूरित मुखि धदिमि कुसुम प्रभ


म्र्गाक्षि मोहिनि मुख्य म्रिदनि मित्र रूपिनि

नित्य त्रुप्त भक्त निधि नियंत्रि निखिलेस्वरि

मैत्र्यदि वासना लभ्य महा प्रलय साक्षिनि

पर शक्ति पर निष्ठ प्रज्ञन गण रूपिनि


माधवि पान लासा मत मातृक वर्ण रूपिनि

महा कैलास निलय म्रिनल मृदु दोर्ल्लत

महनीय दय मूर्ति महा साम्राज्य शालिनि

आत्म विद्य महा विद्य श्रीविद्य कामा सेवित

श्री षोडसक्षरि विद्य त्रिकूट कामा कोतिक


कटाक्ष किम्करि भूत कमल कोटि सेवित

शिर स्थित चंद्र निभ भालस्त इंद्र धनु प्रभ

ह्रिदयस्त रवि प्राग्य त्रि कोनंतर दीपिक

दक्षयनि दित्य हंत्रि दक्ष यज्ञ विनसिनि

धरण्दोलित दीर्गाक्षि धरहसोज्वलन्मुखि

गुरु मूर्ति गुण निधि गोमात गुहजन्म भू


देवेशि दंड नीतिस्त धहरकास रूपिनि

प्रति पंमुख्य रकंत तिदि मंडल पूजित

कलत्मिक कल नाध काव्य लाभ विमोधिनि

सचामर राम वाणि सव्य दक्षिण सेवित आदिशक्ति

अमेय आत्म परम पवन कृति

अनेक कोटि ब्रमंड जननि दिव्य विग्रह

क्लिं क्री केवला गुह्य कैवल्य पद दायिनि

त्रिपुर त्रिजगाट वंद्य त्रिमूर्ति त्रि दसेस्वरि


त्र्यक्ष्य दिव्य गंधद्य सिंधूर तिल कंचिध

उमा शैलेंद्र तनय गौरी गंधर्व सेवित

विश्व ग्रभ स्वर्ण गर्भ अवराध वगदीस्वरी

ध्यानगाम्य अपरिचेद्य ग्नाध ज्ञान विग्रह

सर्व वेदांत संवेद्य सत्यानंद स्वरूपिणि

लोप मुद्रर्चित लील क्लुप्त ब्रह्मांड मंडल

अडुर्ष्य दृश्य रहित विग्नत्री वेद्य वर्जित


योगिनि योगद योग्य योगानंद युगंधर

इच्च शक्ति-ज्ञान शक्ति-क्रिय शक्ति स्वरूपिणि

सर्वाधार सुप्रतिष्ठ सद सद्रूप दारिनि

अष्ट मूर्ति अज जेत्री लोक यात्र विडह्यिनि

एकाकिनि भूम रूप निर्द्वित द्वित वर्जित

अन्नाद वसुध व्रिद्ध ब्र्ह्मत्म्यक्य स्वरूपिणि


ब्रिहति ब्रह्मनि ब्राह्मि ब्रह्मानंद बलि प्रिय

भाष रूप ब्रिहाट सेन भवभव विवर्जित

सुखराध्य शुभकरी शोभन सुलभ गति

राज राजेश्वरि राज्य दायिनि राज्य वल्लभ

रजत कृप राज पीत निवेसित निजश्रित

राज्य लक्ष्मि कोस नाथ चतुरंग बलेस्वै


साम्राज्य दायिनि सत्य संद सागर मेखल

दीक्षित दैत्य शामनि सर्व लोक वासं करि

सर्वार्थ धात्रि सावित्रि सचिदनंद रूपिनि

देस कल परिस्चिन्न सर्वग सर्व मोहिनि


सरस्वति शस्त्र मयि गुहंब गुह्य रूपिनि

सर्वो पदि विनिर्मुक्त सद शिव पति व्रित

संप्रधएश्वरि साधु ई गुरु मंडल रूपिनि

कुलोतीर्ण भागाराध्य माय मधुमति मही

गानंब गुह्यकराध्य कोमलांगि गुरु प्रिय

स्वतंत्र सर्व तन्त्रेसि दक्षिण मूर्ति रूपिनि


सनकादि समाराध्य शिव ज्ञान प्रदायिनि

चिद कल आनंद कालिक प्रेम रूप प्रियंकरी

नम पारायण प्रीत नंदि विद्य नतेश्वरी

मिथ्य जगत अतिश्तन मुक्तिद मुक्ति रूपिनि

लास्य प्रिय लय क्री लज्ज रंभ अदि वंदित

भाव धव सुधा व्रिष्टि पपरन्य धवनल

दुर्भाग्य तूलवतूल जरद्वान्तर विप्रभ

भाग्यब्दि चंद्रिक भक्त चिट्टा केकि गणगण


रोग पर्वत दंबोल मृत्यु दारु कुदरिक

महेश्वरी महा कलि महा ग्रास महासन

अपर्ण चंडिक चंदा मुन्दासुर निशूधिनि

क्षरक्षरात्मिक सर्व लोकेसि विश्व दारिनि

त्रिवर्गा धात्रि सुभगा त्र्यंभागा त्रिगुणात्मिक

स्वर्गापवर्गाध शुद्ध जपपुश्प निभाक्रिति

ओजोवति द्युतिधर यज्ञ रूप प्रियव्रुध

दुरराध्य दुराधर्ष पातलि कुसुम प्रिय

महति मेरु निलय मंधर कुसुम प्रिय


वीरराध्य विराड रूप विराज विस्वतोमुखि

प्रतिग रूप परकास प्रनाध प्राण रूपिनि

मार्तांड भैरवराध्य मंत्रिनि न्याश्त राज्यदू

त्रिपुरेसि जयत्सेन निस्त्रै गुन्या परपर

सत्य ज्ञानंद रूप सामरस्य पारायण

कपर्धिनि कलमल कमदुख कामा रूपिनि

कल निधि काव्य कल रसज्ञ रस सेवधि


पुष्ट पुरातन पूज्य पुष्कर पुष्करेक्षण

परंज्योति परं धम परमाणु परात पर

पस हस्त पस हंत्रि पर मंत्र विभेदिनि

मूर्त अमूर्त अनित्य त्रिपथ मुनि मानस हंसिक

सत्य व्रित सत्य रूप सर्वन्तर्यमिनि सती

ब्रह्मनि ब्रह्मा जननि बहु रूप बुधर्चित

प्रसवित्रि प्रचंड आज्ञ प्रतिष्ट प्रकट कृति

प्रनेश्वरि प्राण धात्रि पंचास्ट पीत रूपिनि

विशुन्गल विविक्तस्त वीर मत वियत प्रसू


मुकुंदा मुक्ति निलय मूल विग्रह रूपिनि

बावग्न भाव रोकग्नि भाव चक्र प्रवर्तनि

चंदा शर शस्त्र शर मंत्र शर तलोधारी

उदार कीर्ति उद्द्हमा वैभव वर्ण रूपिनि

जन्म मृत्यु जरा तप्त जन विश्रांति दायिनि

सर्वोपनिष दुद गुष्ट शांत्यत्हीत कलत्मिक


गंभीर गगनंतस्त गर्वित गण लोलुप

कल्पना रहित कष्ट आकांत कन्तत विग्रह

कार्य करण निर्मुक्त कामा केलि तरंगित

कणत कनक तदंग लील विग्रह दारिनि

अज्ह क्षय निर्मुक्त गुबद क्सिप्र प्रसादिनि

अंतर मुख समाराध्य बहिर मुख सुदुर्लभ


त्रयी त्रिवर्गा निलय त्रिस्त त्रिपुर मालिनि

निरामय निरालंब स्वात्म राम सुधा श्रुति

संसार पंग निर्मग्न समुद्धरण पंडित

यज्ञ प्रिय यज्ञ कर्त्री याजमान स्वरूपिणि

धर्म धर धनद्यक्ष धनधान्य विवर्दनि


विपर प्रिय विपर रूप विश्व ब्र्हमन कारिणि

विश्व ग्रास विध्रुमभ वैष्णवि विष्णु रूपिनि

योनि योनि निलय कूतस्त कुल रूपिनि

वीर गोष्टि प्रिय वीर नैष कर्मय नाध रूपिनि

विज्ञान कलन कल्य विदग्ध बैन्दवासन

तत्वधिक तत्व मायी तत्व मार्त स्वरूपिणि


सम गण प्रिय सौम्य सद शिव कुटुंबिनि

सव्यप सव्य मर्गास्त सर्व अपद्वि निवारिणि

स्वस्त स्वभाव मदुर धीर धीर समर्चिड

चैत्न्यर्क्य समाराध्य चैतन्य कुसुम प्रिय

सद्दोतित सदा तुष्ट तरुनदित्य पाताल

दक्षिण दक्सिनराध्य धरस्मेर मुखंबुज


कुलिनि केवल अनर्ग्य कैवल्य पद दायिनि

स्तोत्र प्रिय स्तुति मति स्तुति संस्तुत वैभव

मनस्विनि मानवति महेसि मंगल कृति

विश्व मत जगत धात्रि विसलक्षि विरागिनि

प्रगल्भ परमोधर परमोध मनोमायि

व्योम केसि विमनस्त वज्रिनि वामकेश्वरी


पंच यज्ञ प्रिय पंच प्रेत मंचदि सायिनि

पंचमि पंच भूतेसि पंच संख्योपचारिनि

सस्वति सस्वतैस्वर्य सरमद शंभु मोहिनि

धर धरसुत धन्य धर्मिनि धर्म वारधिनि

लोक तीत गुण तीत सर्वातीत समत्मिक

भंदूक कुसुम प्रख्य बाल लील विनोदिनि

सुमंगलि सुख करि सुवेशाद्य सुवासिनि

सुवसिन्यर्चन प्रीत आशोभान शुद्ध मानस


बिंदु तर्पण संतुष्ट पूर्वज त्रिपुरंबिक

दास मुद्र समाराध्य त्र्पुर श्री वसंकरि

ज्ञान मुद्र ज्ञान गम्य ज्ञान ज्ञेय स्वरूपिणि

योनि मुद्र त्रिखंडेसि त्रिगुण अम्बत्रिकोनगा

अनगा अद्बुत चरित्र वंचितर्त प्रदायिनि

अभ्यसतिसय गनत षड्द्वातीत रूपिनि


अव्याज करुण मूर्हि अज्ञान द्वंत दीपिक

आबाल गोपा विदित सर्वान उल्लंग्य शासन

श्री चक्र राज निलय श्री मत त्रिपुर सुंदरि

श्री शिवा शिव शक्तैक्य रूपिनि ललितंबिक

एवं श्रीललित देवय नामनं सहस्रकं जगुह