मेरे साथ चलना हैं तो जीवन में तुम्हें अपना द्रष्टिकोण बदलना पड़ेगा, जो
विचार तुम्हारे भीतर भरे हुए हैं, कर सबको निकलकर शून्य की स्थिति उत्पन्न
करनी होगी, तभी तो तुम आनंद का अनुभव कर सकोगे, किसी भी यात्रा पर चलने के
लिए तैयार हो सकोगे, और मैं भी विश्वास के साथ यह देख सकूँगा की अब यह
शिष्य तैयार हैं, अब यह शिष्य कायर नहीं हैं, अब यह शिष्य अपनी शक्ति को,
अपने लक्ष्य को, अपने आनंद को पहिचान गया हैं और इसे कार्य दिया जा सकता
हैं, इसे विचार दिए जा सकते हैं, जो सीधे उसके ह्रदय में स्थान बनायेंगे न
की तर्क - वितर्क करते हुए मस्तिष्क में ही मापतौल करेंगे. तुमने एक शरीर
को गुरु मान लिया हैं, गुरु तो वह तत्व हैं, जिससे जुड़कर तुम उन आयामों
को स्पर्श कर सकते हो, जिनको शास्त्रों ने पूर्णमिदः पूर्णमिदं कहा हैं!
उसके लिए गुरु के शरीर को बांहों में लेने की जरुरत नहीं! आवश्यकता हैं की
तुम अपना मन उनके चरण कमलों में समर्पित करो…. और वह हो पायेगा केवल और
केवल मात्र गुरु सेवा से और गुरु मंत्र जप से!
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