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Thursday, June 18, 2015

sadhak aur grate sadhak me antar1


.साधक व श्रेष्ठ साधक................
1.साधक :
जो व्यक्ति साधनारत हो एक चित होकर अपने को गुरु चरणों में समर्पित कर आत्मा कल्याण के लिए यात्रा कर रहा हो!
2.श्रेष्ठ साधक :
श्रेष्ठ साधक वह होता है जो अपने चित पर सदगुरु का ध्यान जमा लेता है निरंतर अपने गुरु का चिन्तन करते है और सघन गुरु मंत्र का जप किया करते है वो श्रेष्ठ साधक गुरु कृपा व अपनी आराधाना के बल से पूर्ण विकाश की और अगरसर होते है उस श्रेष्ठ साधक का सम्पुर्ण मोह नष्ट हो जाता है स्वारथ रहित निष्काम भाव से अपना जीवन निर्वाह करता है! पूर्ण वैराग्य को प्राप्त साधक सम्पुर्ण इंद्रियो ,वासनाओ पर विजय पा लेता है. वे योग युक्त साधक गुरु कृपा प्राप्त योग बल से लोक कल्याणरत गुरु कार्य करते है वो उतम साधक अपना कल्याण करते हुए अन्य साधको को साधना की यात्रा में योग्य सहयोग करते है!स्वार्थ रहित कृतव्य कर्म पालन जीवन यापन कर योग युक्ति से सम्पुर्ण लोको को जीतकर षठ: चक्रों को भेदन कर गुरु कृपा से महा मिलन को प्राप्त हो जाते है!


गुरु सेवा का ये अर्थ नहीं की उन के पास रह कर करे वो तो भाग्य साली होते ही है पर आप आपने घर से ही ये सेवा कर सकते है| सद्गुरु के ज्ञान का प्रसार करना पत्रिका का प्रसार करना | आपने यहाँ गुरु पूजन और हवन करवाना | शिविर मैं भाग लेना , गुरु देव से हर संभव समय समय पर मिलते रहे, मार्ग दर्सन उन से पते रहे आगे जो आगया गुरु दे उसे हर संभव से उसे निभाए और आपना कार्य के साथ गुरु सेवा जो करता है निचय ही वो गुरु किरपा का भागीदार होता है , समाज को नाइ दिशा देना यही आच्छा गुरुदेव सेवा है|

Saturday, July 5, 2014

Aab To Jag Guru Purnima Mahotsava Camp


अब तो जाग 

जीवन मैं सफलता सद्गुरु के सिवा कोई नहीं दे सकता है|चाहे भोतिक जीवन हो या अधय्त्मिक जीवन हो , मानव आदिकाल से ही सद्गुरु के असरे ही सब कुच्छ पता रहा है| आज हम जिस जीवन के आनंद को पाने के लिए सब कुच्छ कर रहे है, पर आनंद दूर दूर तक नजर नहीं आती है. झूठे सपने बन के रह गया है ?मानव को समझ ही नहीं आ रहा है भोतिकता की चकाचोध ने उसे अंधकार मैं ले कर खड़ा कर रहा है , उसे कुच्छ सूझ ही नहीं कर वो के करना चाहता है , उस की मंजिल कहा है, वो गुम हो गया है, भोतिकता की साडी चीज़े होते हूया भी , परेशान है , दुबिधा मैं जी रहा है, क्या करे क्या न करे, 

उस के पास पूरा परिवार भी है , समाज है , जीने के लिए सरे साजो सामान है 
किसी के पास नहीं भी है, पर उस का चिंतन हमेशा आनंद को पाने की लालशा बनी होई होती है, 

समय समय पर सिद्धास्रम के ऋषि यहाँ आते रहे है मानव को नया चिंतन देते रहे वेदों, (Upanishad )उपनिषद् के ज्ञान को सरलता से समझने की कोसिस किया और साधना का ज्ञान दिया, जिस मानव के जीवन मैं समस्त इच्छा पूर्ति के बाद उसे वो ज्ञान चिंतन मिल सके जिस के लिए उसे मानव जीवन मिला उसे सार्थक बना सके , और एस जीवन के कर्म बन्धन (माया) से दूर हो कर गुरुमय हो सके |

एस लिए गुरु के मिलने का एक उत्सव बनाया गया जो शिष्य के लिए परम ज्ञान को पाने के लिए गुरु से एकाकार हो सके उस उत्सव का नाम गुरु पूणिमा का नाम दिया गया, वेसे गुरु से कभी भी एकाकार हो सकते है, पर ये दिवश मैं जो विशेषता है उसे शब्दों मैं नहीं बताया जा सकता है,वो तो आप जाब गुरु से मिल के उन के सानिध्य मैं आपने आप को पुण्य विसर्जित करते होए आपने आंसुओ से उन के चरणों मैं समर्पित करते हूया सब कुच्छ दे देना ही गुरु पूणिमा का उत्सव बन जाता है, गुरु पूणिमा गुरु के लिए नहीं होता ! अपितु शिष्य के लिए होता है, एस लिए शिष्य एस महोत्सव की साल भर प्रतीक्षा करता है,
आब वो दिन आ रहा है आप जाग जाये और उस महोत्सव मैं सामिल होने के लिए सद्गुरु से मिलने के लिए छुटी के लिए आभी आवेदन कर ले और भारत से कोने कोने से शिष्य जाग जाये, और सद्गुरु से मिलने जाये 

"राम कृष्ण सबसे बड़ा उनहूँ तो गुरु कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी गुरु आज्ञा आधीन॥"
11-12 July,Haridwar.अब की बार-हरिद्वार Click Here:http://youtu.be/1XVq4RcD8xU
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा कहते हैं।यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।व्यास जयन्ती ही गुरुपूर्णिमा है। गुरु को गोविंद से भी ऊंचा कहा गया है। 
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।

ये बहुत ही सोभाग्य होगा उन शिष्यों के लिए जो गुरु के प्रति समर्पित है

जो प्रेम मैं फ़ना होना जानते है, जो मिटना जानते है सही मायने मैं गुरुमय बन सकेगे |

आप का सिद्धास्रम साधक परिवार गुरु पूणिमा पर आप का इन्तजार करेगा आप ११,१२ जुलाई को त्रिमूर्ति गुरु से मिल कर आपनी समस्या को सुलझते हूए गुरुमय ,प्रेममय बन कर आनंद की प्राप्ति कर सके ऐसा ही सद्गुरु देव से निवेदन है

सिद्धास्रम साधक परिवार जोधपुर

Dikshas Granted by Pujya Gurudev

11-12 July 2014
SADHNA DATE CAMP (SHIVIR)
LOCATION & CONTACT

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Nikhil Mantra Vigyan

Guru Purnima Mahotsava Camp Shree Prem Nagar Ashram, Jwalapur Road, Haridwar, Uttarakhand

11-12 July 2014, Haridwar (UK)
Organisers
Ashok Khurana : 094160-84960

Gopal Ji : 098961-87061

Suresh Bhardwaj : 094160-31474

Ashok Sharma : 098888-39585

Avinash : 088728-10008

Rajneesh Sharma : 097799-74542

Dr.M.K. Tiwari : 098916-04043

Indra Pal Singh : 098183-83931
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Narayan Mantra Sadhana Vigyan

10-11-12 July 2014 Guru Purnima Sadhana Camp Ramadheen Singh Utsav Bhawan, Babu Ganj, Near I.T. Chowk, Lucknow, Uttar Pradesh

10-11-12 July 2014, Lucknow (UP)
Organisers
Ajay Kumar Singh : 9415116998

D.K. Singh : 9532040013

Pradeep Shukla : 94152-66543

Satish Tandon : 9336150802

Harish Chandra Pandey : 94544-12737

Jayant Mishra : 9125980014

Santosh Naik : 9125238618

T.N.Pandey : 9415342272

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KAILASH SIDDHASHRAM -
PRACHEEN MANTRA YANTRA VIGYAN

परमपूज्य सदगुरुदेव निखिल के आशीर्वाद से पूज्य कैलाश गुरूजी के दिव्य सानिध्य में "अहं ब्रम्हास्मि शक्ति गुरु पूर्णिमा महोत्सव" इनडोर स्टेडियम ,बूढ़ा तालाब , रायपुर ,छत्तीसगढ़ में सम्पन्न होगा ।

शिष्य पूर्णिमा के महापर्व पर स्वयं को अहं ब्रम्हास्मि शक्ति से युक्त करने हेतु इन्द्राक्षी धन वैभव लक्ष्मी दीक्षा , प्रत्यंगिरा उर्वशी आकर्षण दीक्षा , सर्व पीड़ा हरण संहार दीक्षा प्राप्त कर अपने आप को प्रेम ,हर्ष ,आनंद और हर्षयुक्त बनाने हेतु क्रियाए सम्पन्न होगी ।

सदगुरूदेव के निर्देशानुसार गुरुपूर्णिमा 12 जुलाई के दिन आप सभी प्रात: उठ जाए और स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर ब्रम्ह मुहूर्त में सदगुरुदेव का पूजन ,ध्यान-चिंतन करे । शिष्य पूर्णिमा के महापर्व पर स्वयं को अहं ब्रम्हास्मि शक्ति से युक्त करने हेतु अपने समस्त पाप दोषो के शमन हेतु प्रात:5:26 से 7:42 के बीच गुरुत्व ध्यान स्थिति में बैठ जाए सदगुरुदेव द्वारा आप सभी को ब्रम्ह वर्चस्व स्वरूप शिष्याभिषेक दीक्षा प्रदान की जाएगी | यदि किसी कारणवश आप शिविर में नहीं आ पा रहे है तब भी आप अपने घर के पूजा स्थान में यह क्रिया सम्पन्न करें । आप स्वयं महसूस करेंगे की सदगुरुदेव की ऊर्जा ,चेतना आप में व्याप्त हो रही है ,आपके जीवन में धीरे-धीरे अनुकूलता आ रही है ।

न्यौछावर -1100/-

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें -
0291-2517025, 07568939648, 08769442398

Kailash Siddhashram, Delhi (91) 11-27351006

GIVE ME FAITH AND DEVOTION, AND I WILL GIVE YOU FULFILMENT & COMPLETENESS 

- ParamPujya Pratahsamaraniya Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji

Tuesday, April 15, 2014

Master interaction of pupil गुरु - शिष्य का पारस्परिक संबंध


गुरु - शिष्य का पारस्परिक संबंध
अयोग्य व्यक्ति ( दुर्गुणों से युक्त ) न तो गुरु से दीक्षा पाने का अधिकारी है और न ही वह दीक्षित होने पर साधना के क्षेत्र में कोई उपलब्धि ही हासिल कर पाता है । यही कारण है कि प्रायः संत - महात्मा हरेक किसी को शिष्य नहीं बनाते । कुपात्रजनों को दिया जाने वाला ज्ञानोपदेश , आध्यात्मिक - संकेत , साधना - परामर्श और मंत्र - दीक्षा आदि सब निरर्थक होते हैं ।
गुरु और शिष्य के बीच पारस्परिक संबंध बहुत शुचिता और परख के आधार पर स्थापित होना चाहिए , तभी उसमें स्थायित्व आ पाता है । इसलिए गुरुजनों को भी निर्दिष्ट किया गया है कि वे किसी को शिष्य बनाने , उसे दीक्षा देने से पूर्व उसकी पात्रता को भली - भांति परख लें । शास्त्रों का कथन हैं -
मंत्री द्वारा किए गए दुष्कृत्य का पातक राजा को लगता है और सेवक द्वारा किए गए पाप का भागी स्वामी बनता है । स्वयंकृत पाप अपने को और शिष्य द्वारा किए गए अपराध का पाप गुरु को लगता है ।
दीक्षा और साधना के लिए अयोग्य व्यक्तियों के लक्षणों को शास्त्रकारों ने इस प्रकार स्पष्ट किया है -
ऐसा व्यक्ति जो अपराधी - मनोवृत्ति का हो अथवा क्रूर , पापी , हिंसक हो , वह न तो दीक्षा पाने का अधिकारी है और न वह साधना में ही सफल हो सकता है । कारण कि उसकी तामसिक - मनोवृत्ति उसे सदैव अस्थिर और असंतुलित बनाए रखती है ।
इसी प्रकार बकवादी , कुतर्क करने वाला , मिथ्याभाषी , अहंकारग्रस्त , लोभी , लम्पट , विषयी , चोर , दुर्व्यसनी , परस्त्रीगामी , मूर्ख , जड़ - बुद्धि , क्रोधी , द्वेषलु , ईर्ष्या अथवा अतिमोह से ग्रस्त , शास्त्र निंदक , आस्थाहीन , दुराचारी , वंचक , पाखंडी और न साधना करने योग्य । ऐसे लोगों को जन्मजात पापी , अपवित्र , दुर्भाग्यग्रस्त और कुपात्र माना गया है