.साधक व श्रेष्ठ साधक................
1.साधक :
जो व्यक्ति साधनारत हो एक चित होकर अपने को गुरु चरणों में समर्पित कर आत्मा कल्याण के लिए यात्रा कर रहा हो!
2.श्रेष्ठ साधक :
श्रेष्ठ साधक वह होता है जो अपने चित पर सदगुरु का ध्यान जमा लेता है निरंतर अपने गुरु का चिन्तन करते है और सघन गुरु मंत्र का जप किया करते है वो श्रेष्ठ साधक गुरु कृपा व अपनी आराधाना के बल से पूर्ण विकाश की और अगरसर होते है उस श्रेष्ठ साधक का सम्पुर्ण मोह नष्ट हो जाता है स्वारथ रहित निष्काम भाव से अपना जीवन निर्वाह करता है! पूर्ण वैराग्य को प्राप्त साधक सम्पुर्ण इंद्रियो ,वासनाओ पर विजय पा लेता है. वे योग युक्त साधक गुरु कृपा प्राप्त योग बल से लोक कल्याणरत गुरु कार्य करते है वो उतम साधक अपना कल्याण करते हुए अन्य साधको को साधना की यात्रा में योग्य सहयोग करते है!स्वार्थ रहित कृतव्य कर्म पालन जीवन यापन कर योग युक्ति से सम्पुर्ण लोको को जीतकर षठ: चक्रों को भेदन कर गुरु कृपा से महा मिलन को प्राप्त हो जाते है!
गुरु सेवा का ये अर्थ नहीं की उन के पास रह कर करे वो तो भाग्य साली होते ही है पर आप आपने घर से ही ये सेवा कर सकते है| सद्गुरु के ज्ञान का प्रसार करना पत्रिका का प्रसार करना | आपने यहाँ गुरु पूजन और हवन करवाना | शिविर मैं भाग लेना , गुरु देव से हर संभव समय समय पर मिलते रहे, मार्ग दर्सन उन से पते रहे आगे जो आगया गुरु दे उसे हर संभव से उसे निभाए और आपना कार्य के साथ गुरु सेवा जो करता है निचय ही वो गुरु किरपा का भागीदार होता है , समाज को नाइ दिशा देना यही आच्छा गुरुदेव सेवा है|
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