जय गुरुदेव.... "अघोरी " एक शब्द जो की सामान्य लोगों के मध्य एक अनजाने भय का परिचायक बना हुआ है.... वास्तव में कुछ ग्रहस्थ साधक भी अघोरी साधनाओ को करने की सोचते तक नहीं उन्हें लगता है की अघोरी साधक मात्र ऐसी किर्याएँ करते हैं जिन्हें करने की सामान्य मनुष्य सोच भी नहीं सकते... और फिर कुछ गलत प्रवति के तांत्रिको ने तंत्र, वाममार्ग, नाथपंथ जैसे नामो का इतना गलत पर्योग और परचार किया की सामान्य वर्ग के मध्य ये प्यारे नाम गालियाँ बन गये .. अघोर जैसा प्यारा शब्द गाली बन गया किसी को अघोरी कह दो तो वो लड़ने को तैयार हो जाये.. उसे लगता है की मुझे गाली दी गयी है..
जबकि अघोर शब्द का अर्थ होता है "सरल ". किसी को "घोरी" कहो तो गाली हो सकती है. घोर का अर्थ होता है जटिल. कहते हैं ना घोर-घमासान -- जटिल, उलझा हुआ तो घोर...I अघोर का अर्थ होता है सरल बच्चे जैसा निर्दोष! अघोर शब्द थोड़े से बुद्धो के लिए पर्योग में लाया जा सकता है जैसे गौतम बुद्ध- अघोरी, कृषण- अघोरी, क्रिस्ट-अघोरी, गोरख- अघोरी. सिर्फ ऐसे लोगों के लिए उपयोग में लाया जा सकता है सरल निर्दोष सीधे सादे..
नाथपंत..... गोरखनाथ और उनके गुरु मछिंदर नाथ के कारण तंत्र की ये शाखा नाथपंथ कहलाने लगी! बड़ा प्यारा भाव है नाथ का अर्थ होता है... मालिक. जिसको सूफी कहते हैं या मालिक. सब उसका है मालिक का है .. हम भी मालिक के संसार भी मालिक का.. जैसे उसकी मर्ज़ी जियेंगे.. जैसे जिलाएगा जियेंगे.. हम अपनी मर्ज़ी आरिपित ना करेंगे.. यह भाव है नाथपंथ का.. क्योंकि अगर हमारी मर्ज़ी आएगी तो अहंकार आएगा.. संकल्प आएगा.. अहंकार आया तो भटक जायेंगे...
जय गुरुदेव......
जबकि अघोर शब्द का अर्थ होता है "सरल ". किसी को "घोरी" कहो तो गाली हो सकती है. घोर का अर्थ होता है जटिल. कहते हैं ना घोर-घमासान -- जटिल, उलझा हुआ तो घोर...I अघोर का अर्थ होता है सरल बच्चे जैसा निर्दोष! अघोर शब्द थोड़े से बुद्धो के लिए पर्योग में लाया जा सकता है जैसे गौतम बुद्ध- अघोरी, कृषण- अघोरी, क्रिस्ट-अघोरी, गोरख- अघोरी. सिर्फ ऐसे लोगों के लिए उपयोग में लाया जा सकता है सरल निर्दोष सीधे सादे..
नाथपंत..... गोरखनाथ और उनके गुरु मछिंदर नाथ के कारण तंत्र की ये शाखा नाथपंथ कहलाने लगी! बड़ा प्यारा भाव है नाथ का अर्थ होता है... मालिक. जिसको सूफी कहते हैं या मालिक. सब उसका है मालिक का है .. हम भी मालिक के संसार भी मालिक का.. जैसे उसकी मर्ज़ी जियेंगे.. जैसे जिलाएगा जियेंगे.. हम अपनी मर्ज़ी आरिपित ना करेंगे.. यह भाव है नाथपंथ का.. क्योंकि अगर हमारी मर्ज़ी आएगी तो अहंकार आएगा.. संकल्प आएगा.. अहंकार आया तो भटक जायेंगे...
जय गुरुदेव......