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Saturday, December 31, 2011

Chinnmsta secret छिन्नमस्ता रहस्य

छिन्नमस्ता रहस्य
साधक और उसका आराध्य ये दोनों मिलकर एक ऐसी सत्ता का निर्माण करते है जिसका कण-कण लाखों करोड़ों ज्योतिपुन्जों से ज्यादा प्रकाशमान, शक्तिमान और ऊर्जावान होता है....ऐसी स्थिति में साधक का जीवन एक आम आदमी की तरह जन्म की किलकारी से शुरू होकर चिता की राख के साथ खत्म नहीं हो जाता क्योकि वो अपनी आखिरी नींद लेने से पहले ही परम-आनंद की अनुभूति कर चुका होता है....और ये आत्मा को तृप्त करने वाला आनंद उसे तब प्राप्त होता है जब दैवी शक्तियों के साथ उसका एकाकार हो जाता है.
किसी भी दिव्य सत्ता को आत्मसात करने के लिए तीन नियम हमेशा एक साधक को याद रखने चाहियें-
१-साधक को अपने आप को अपने इष्ट के चरणों में विसर्जित कर देना चाहिए.
२-उसका संकल्प पक्का होना चाहिए की चाहे पृथ्वी आपना मार्ग बदल दे पर मैं आपने अभीष्ट को पा कर ही रहूँगा.
३-अपने आराध्य के साथ साथ उसका खुद पर भी विशवास होना चाहिए की मैं ये कर सकता हूँ और करूँगा ही.
छिन्नमस्ता माँ की साधना को दसों महाविद्याओं में सबसे श्रेष्ठ माना गया है क्योकि एक तो ये शीघ्र फल देने वाली है और दूसरा ये दो तरह से आपने साधक के शत्रुओं का नाश करती है. अब हम सोचे की ये दो शत्रु कौन है तो-
१-बाहरी शत्रु- जैसे हमारे सब के कोई ना कोई होते ही हैं...
२-मानसिक शत्रु काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार- ये जितने भी हमारे दुश्मन हो सकते हैं उनमें से सबसे खतरनाक श्रेणी है क्योकि जब ये शत्रुता निकालते है तो विनाश को कोई नहीं टाल सकता....सिर्फ एक पल के लिए मन में मोह आ जाए तो हम हाजारों मील अपने प्रेम से दूर हो जाते हैं और इससे बड़ी शत्रुता और क्या होगी की हमे हमारे लक्ष्य से कोई दूर कर दे.....सदगुरुदेव से प्रेम ही तो हम सब का लक्ष्य होना चाहिए.
इसमें कोई दो-राये नहीं है की ये साधना यदि हमें सिद्ध हो जाए तो हममें असंभव को संभव करने की क्षमता आ जाती है पर एक बात का हमेशा ख्याल रखना चाहिए की ये क्षमता हम में तभी आ पाएगी, हम तभी माँ छिन्नमस्ता को खुद में आत्मसात कर सकेंगे यदि हम वीर भाव के साधक है तो....गिदगिड़ाने से भीख अवश्य मिल सकती है पर उपलब्धि नहीं. उपलब्धि के लिए आँखों में विजय भाव दिखना चाहिए.
माँ छिन्नमस्ता के तीन नाम है-
१- छिन्नमस्ता “ ये साधारण साधको के लिए है”
२- प्रचंड चण्डिका “ ये वीर भाव युक्त साधको के लिए है”
३- छिन्नमस्तिका “ ये दिव्य भाव की साधना है”
और माँ का मस्तक कटा स्वरूप जो हम अक्सर चित्रों में देखते हैं वो माँ का ब्रह्मांडीय स्वरूप है जिसकी एक झलक भी दुर्लभ है.
इन तीनो भावो की साधना के लिए एक ही मंत्र है जिसका जप २१ दिनों तक रोज ११ माला करना होता है. ये रात्कालीन साधना है अर्थात रात को करनी चाहिए जब आपकी चेतना को कोई हिला ना सके, आसन लाल होना चाहिए और आपके वस्त्र भी लाल होने चाहिए. इस मंत्र को लाल हकीक, मूंगा या सांप की हड्डियों से बनी माला से करना चाहिए और दीपक तेल का जलाना चाहिए और आपकी दिशा दक्षिण होगी.
मंत्र-
ओम हुम वज्र वैरोच्नीये हुम फट
साधना शुरू करने से पहले सदगुरुदेव का आशीर्वाद लेना ना भूलें क्योकि हम सब की सफलता उन्ही की प्रसन्नता और आशीर्वाद पे टिकी है.

mangal your married life and home

आपका वैवाहिक जीवन और मंगल गृह

मंगल गृह को लेकर वैवाहिक जीवन मे अनेक प्रकार कि भ्रान्तिया फ़ैलि हुइ है।वर और वधू कि कुंडली मे यदि लग्न, चतुर्थ्, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव मे मंगल हो तो कुण्डली मंगली होती है। यदि वर या वधू कि कुण्डली मे उपर दोष कथित स्थानो मे केवल एक कुण्डली मे दोष होगा तो दुसरा साथी के जीवन के जीवन का भय हो जायेगा। मन्गली दोष को लग्न / चन्द्र तथा शुक्र तीनो स्थानो से देखना चाहिये ऐसा शास्त्रो मे निर्देश है। चुंकि पाञ्च स्थानो मे मंगल के रेह्ने के कुछः दोष होता है अतः यदि तीनो स्थानो (लग्न, चन्द्र, शुक्र) से देखा जाये तो ५ * ३ = १५ स्थानो पर मंगल दोष बनता है।

लग्न चक्र मे १२ भाव ही होते है और मंगल १५ भावो (स्थानो मे दोषपूर्ण है व इसका अर्थ यह होगा कि संसार मे शायद ही ऐसी कोइ कुण्डली मिले जो मंगल दोष से रहित हो। इसी कारण "एसट्रोलोजिकल मेगझिन" के संपादक डा बि वि रमन ने लिखा है कि मांगलि दोष का हौवा न जाने कितने ऐसे विवाह् को जो सुखमय दाम्पत्य जीवन मे परिवर्तित होते, उन्हे नष्ट कर देता है।

महर्षि पाराशर के अनुसार गृहो का शुभाशुभ जानने के दो आधार है।
पेह्ला नैसर्गिक शुभ या अशुभ जैसे शनि, मंगल, राहु इत्यादि नैसर्गिक शुभ गृह है।
दुसरा आधार शुभता तथा अशुभता का भावधिपत्य द्वारा बताया गया है जैसे केन्द्र तथा त्रिकोन के स्वामि शुभ तथा छटे, आठवे, बारह्वे भाव के स्वामि अशुभ होते है। इसका स्पष्ठ अर्थ है कि परिस्थितिवश एक ही गृह चाहे नैसर्गिक या अशुभ ही भावातिपत्य कि परिस्थिति के अनुसार वह शुभ या अशुभ हो जाते है।

अतः वर या कन्या का लग्न क्या है उसके लिये मंगल ग्रह है शुभ या अशुभ यह भूलकर पांच स्थानों में से किसी एक स्थान पर मंगल को देखकर, मंगली दोष कि घोषणा कर देना ज्योतिष के मूलभूत सिद्धातों के अवहेलना तथा ज्योतिष शास्त्र को बदनाम करना है।

तात्पर्य यह कदापि नही है मंगल दाम्पत्य जीवन के लिये हानिकारक नही होता। मंगल के साथ् शनि, राहु, केतु, सूर्य भी हानिकारक होते है। अशुभ भावों के स्वामि होकर बृहस्पति, शुक्र, चन्द्र इत्यादि भी यदि सप्तम भाव मे बैठ जाये तो व भी विघटनकारी होते है। वास्तव मे सप्तम या अष्टम भाव मे अशुभ ग्रह कि स्थिति हानिकारक है और यह ज्योतिष के सिद्धान्त के अनुकूल भी है। यहि कारण है कि दक्षिण भारत के ज्योतिषि वर, कन्या कि कुण्डली मे सप्तम अष्टम 'शुद्धम' को श्रेष्ठ मानते है।

महर्षि पतंजलि ने योग दर्शन के 'साधन पाद' मे लिखा है ततः विपाको जाती अयुर्भोगाः अर्थात पूर्व जन्म के कर्मो के अनुसार प्राणी कि 'ततः विपाको जाति अयुर्भोगाः' अर्थात पूर्व जन्म के कर्मो के अनुसार प्राणी कि जाति (योनि जैसे मनुष्य योनि, पशु योनि, कीट योनि आदि) आयु और सुख-दुख प्राप्त होते है। ये गर्भ से ही निर्धारित होते है ज्योतिष मे सभी आचार्यो का स्पष्टः निर्देश है कि भविष्य बताने से पेहले आयु का विचार अवश्य कर लिया जाना चाहिये। अगर यह धारणा सही है कि पाति या पत्नी का मंगल एक-दुसरे को मार देता है तो एक समस्या उत्पन्न होगी, यदि कोइ अविवाहित व्यक्ति अपनी आयु के बारे मे जानना चाहे तो क्या ज्योतिषी उस यजमान कि आयु बताने के लिये यह कहेगा कि पेहले शादि कर लो फिर अपनी पत्नी कि कुण्डली लेकर आना तो आयु बतायेंगे?

ज्योतिषियो मे एक विचित्र सिद्धान्त प्रचलित है,वह यह कि यदि वर और कन्या मे से एक कि कुण्डली मंगली है और यदि दुसरे कि भी कुण्डली मे मंगल दोष है तो मांगलि का दोष दूर हो जाता है। यह कौन सा सिद्धान्त है शायद यह बात 'विषस्य विषमौषधम' आयुर्वेद के सिद्धान्त पर गढ ली गयी है। किन्तु आयुर्वेद विज्ञान के सिद्धान्त को ज्योतिष विज्ञान मे लागु करना वैसा ही है जैसे इनजीनियरिंग के सिद्धान्तों को मेदिचाल् साइंस मे थोप्ने का प्रयास।

ज्योतिष एक महाविज्ञान है हार विज्ञान मे जैसे सिद्धान्त होते है वैसे ही ज्योतिष के भी सिद्धान्त है। ज्योतिषीय समीक्षा के समक्ष उन सिद्धान्तों कि अवहेलना कर,मनमानि करने से ज्योतिष विज्ञान नही रुढिवाद हो जायेगा। यहि लांक्षन ज्योतिष पर लग रहा है अतः प्रत्येक विद्वान् ज्योतिषी का कर्तव्य है कि वह ज्योतिष से रुढिवादी लोगों का कोपभाजन बनना पडे। केहने का तात्पर्य यह है कि वर कन्या कि कुण्डली का मेलापक परम् आवश्यक है। मेलापक के अष्टकूट का वैज्ञानिक आधार है इस से वर कन्या का शारीरिक, मानसिक, भौतिक, आध्यात्मिक, संतान संबन्धी तालमेल की समीक्षा हो जाति है। इसके अलावा ग्रहो के आधार पर कन्या के आचरन कि समीक्षा, आयु समीक्षा, संतान भाव कि समीक्षा, क्षेत्र स्फ़ुट और बीज स्फ़ुट की समीक्ष, धन और भाग्य भाव की समीक्षा भी मेलापक मे तिहित है।

Thursday, December 15, 2011

Devrnjini proven pill सिद्ध देवरंजिनी गुटिका

आज जिस गुटिका के बारे में मैं आपको बताने वाला हूँ.उस गुटिका विवरण साधारणतयः किसी भी रसग्रंथों में या तो नहीं है या फिर उसमे थोडा परिवर्तन कर दिया गया है.इस के कारण भी हम सभी जानते हैं की विषय को गुप्त रखना समय और काल के अनुसार अनिवार्य था.खैर जब हमने इस विषय को जानने के लिए प्रयास रत हैं तो हमें प्रयास करके हमारी परम्परा और उसकी विलक्षणता को भी जरूर जानना चाहिए.

रस सिद्धों के मध्य जिन गुटिका के विषय में गोपनीयता रखी गयी है,उनमे एक महत्त्वपूर्ण नाम देवरंजिनी गुटिका का आता है,इस गुटिका के निर्माण जितना कठिन है उतना ही सरल है इसके प्रभाव की अपने जीवन में प्राप्ति.सौभाग्य ,आरोग्य,तीव्र उन्नति,मानसिक बल,कुंडलिनी जागरण ,कालज्ञान,समाधी लाभ ,धातु परिवर्तन,उच्च आत्माओं से संपर्क,कायाकल्प,दूर दर्शन,वसीकरण,और ऐसी कई अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन जाता है इसे प्राप्त करने वाला.क्युंकी इस गुटिका पर दिव्या मंत्रो के प्रवाह,दिव्या वनस्पतियों के संस्कार,स्वर्ण,और रत्नों के चरण देने के बाद इसे सुर्यताप्त से संपुटित कर रसेन्द्र को जब गगन के आवरण पहनाया जाता है तो विलक्षणता तो घटित होती ही है. प्रकार अंतर से पारद जब रसेन्द्र में परिवर्तित होकर जब अपने विराट रूप से एकाकार पता है तभी जाकर इस गुटिका के निर्माण होता है.

इस गुटिका के पूर्ण निर्माण में प्रतिदिन ८ घंटे के हिसाब से १४ दिन लगते हैं(रसेन्द्र बन्ने के बाद).विभिन्न रत्नों के चारण,स्वर्ण भस्म से बंधन , दिव्य वनस्पतियों के संस्कार के साथ होता है पूर्ण अघोर मन्त्रों से रसान्कुश देवी का आवाहन और स्थापन ...... तब जाकर ये गुटिका अद्भुत प्रभावयुक्त होती है और होता है इसका निर्माण भी .
मैंने इस गुटिका को एक रस सिद्ध के पास गुवाहाटी में देखा था वही पर उन्होंने इसके चमत्कारों को न सिर्फ दिखाया था बल्कि इसके निर्माण के वे रहस्य भी उन्होंने बताये थे जो की किसी ग्रन्थ में कम से कम मैंने तो आज तक नहीं पढ़े हैं.

यदि पूज्यपाद सदगुरुदेव की कृपा रही तो अवश्य ही इस विषय के वे गुप्त सूत्र जो अभी तक सिर्फ सिद्धों के मध्य ही रहे थे ,वे हम सभी साधकों के मध्य पुनः प्रयोग करने के लिए प्रचलित होंगे।

Jay Guru DEV

Lets go through again about this irresistable divine majic gutika
Siddh Devranjini Gutika

Today I am going to tell you the description regarding the “Gutika†which is not mentioned in any Ras Granth.And If it is mentioned then definitely with some changes which we cannot recognise.As we know the reasons behind it that it is the dead need of time to keep it very secretful from negativity.Well when we are eager to know more about this subject, so with all efforts we should step forward for knowing our culture and peculiarities of it.

Between all Ras siddhas the details of this Gutika has been kept secret from long time.From that all gutikas one of the important name is “Devranjini Gutikaâ€â€¦ As compared, the difficulties come in the way of making this gutika is that’s easy to relish its achievements and fruits in our day today life…… like good fortume,freedom from disease,frequent unbelievable growth,mental strength,Kundalini wakening,the wheel of time,benefits of profound meditation,Metal transformation,connection with great souls,rejunevation,future predictions,subjugating and master of many other wonderful powers.Well it is because, on this gutika when the divine power of mantra,divine herbs,gold,stones sections are done and afterwards melting it in full sunlight and then placed under the cover of sky then it lacks some of the peculiarities also.In this way when parad finds juicial state in its gigantic form, the Devranjini Gutika has been occured.

In formation of this Gutika daily eight hours for forteen days continously practice is required(only after making of rasendra).By barding of various stones,binding with gold cinder,adorning with divine herbs and with enchantment of aghor mantras finally summoning the Rasankush Goddess establishment takes place……This is how it is formed and reflects with the wonderful effects infront of us.

Hey I have seen this Gutika with one Ras siddha in Guwahati.He not only shown me the wonders of this gutika but also told me the whole process which is not even mentioned in any ras granth till the date I have gone through

If blessings of revered Shree Sadgurudev showers on us in the same way,soon we will be knowing all the hidden secrets which are currently locked only between the ras siddhas........

Prosperity, success, love

एक गाँव में एक किसान परिवार रहा करता था. परिवार में अधेड़
किसान दंपति के अतिरिक्त एक पुत्र एवं पुत्रवधू भी थे। पुत्र निकट के नगर में एक
सेठ का सेवक था।
एक दिन की बात है तीन वृद्ध कहीं से घूमते घामते आए और किसान की
आँगन में लगे कदम के पेड़ के नीचे विश्राम करने लगे। किसान की पत्नी जब बाहर लिकली
तो उसने इन्हे देखा, उसने सोचा की वे भूखे होंगे। उसने उन्हे घर के अंदर आकर भोजन
ग्रहण करने का अनुरोध किया। इसपर उन वृद्धों ने पूछा, क्या गृहस्वामी घर पर हैं?
किसान की पत्नी ने उत्तर दिया, नहीं, वे बाहर गये हुए हैं।
वृद्धों ने कहा कि वे
गृहस्वामी की अनुपस्थिति में घर के अंदर नहीं आएँगे। स्त्री अंदर चली गयी कुछ देर
बाद किसान आया। पत्नी ने सारी बातें बताईं। किसान ने तत्काल उन्हें अंदर बुलाने को
कहा। स्त्री ने बाहर आकर उन्हें निमंत्रित किया। उन्होंने कहा हम तीनों एक साथ
नहीं आएँगे, जाओ अपने पति से सलाह कर बताओ कि हममें से कौन पहले आए”। वो जो दोनों
हैं, एक "समृद्धि" है, और दूसरे का नाम "सफलता"। मेरा नाम "प्रेम" है। पत्नी ने
सारी बातें अपने पति से कही। किसान यह सब सुनकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ। उसने कहा, यदि
ऐसी बात है तो पहले "समृद्धि" को बुला लाओ। उसके आने से अपना घर धन धान्य से
परिपूर्ण हो जाएगा। उसकी पत्नी इसपर सहमत नहीं थी। उसने कहा, क्यों ना "सफलता" को
बुलाया जाए ।
उनकी पुत्रवधू एक कोने में खड़े होकर इन बातों को सुन रही थी। वो
बहुत ही समझदार थी उसने कहा, अम्माजी आप “प्रेम” को क्यों नहीं बुलातीं।
किसान
ने कुछ देर सोचकर पत्नी से कहा “चलो बहू क़ी बात मान लेते हैं”।
पत्नी तत्काल
बाहर गयी और उन वृद्धों को संबोधित कर कहा आप तीनों मे जो "प्रेम" हों, वे कृपया
अंदर आ जाए। " प्रेम" खड़ा हुआ और चल पड़ा। बाकी दोनों, “सफलता” और "समृद्धि" भी
पीछे हो लिए। यह देख महिला ने प्रश्न किया अरे ये क्या है, मैने तो केवल "प्रेम" को
ही आमंत्रित किया है। दोनों ने एक साथ उत्तर दिया , यदि आपने "समृद्धि" या "सफलता"
को बुलाया होता तो हम मे से दो बाहर ही रहते। परंतु आपने "प्रेम" को बुलाया इसलिए
हम साथ चल रहे हैं। हम दोनो उसका साथ कभी नहीं छोड़ते।http://www.facebook.com/mantratantrayantravigyan

Tuesday, November 29, 2011

RAS SIDDH DARPAN-(ADBHUT RAHASYA)

RAS SIDDH DARPAN-(ADBHUT RAHASYA)
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रस कर्म में सिद्धि पाने के मार्ग में जिन औषधियों का आश्रय लिया जाता है उन्हें सिद्धौष्धियों,दिव्यौषधि तथा महौष्धियों में विभक्त किया गया है . पुनर्नवा, सहदेवी, ताम्रप्रभा , महाबला,काकजन्घा , धर्तुर,रवि,सर्पोंखा, मतस्यक्षी,खंड्जिरी, इन्द्रायण, सिंहिका आदि प्रभुतिकी वनस्पतियां हैं जो रस शास्त्र के साधक को उसका अभीष्ट प्रदान कर देती हैं, शर्त मात्र यही है की साधक को उसके गुण धर्मों का भली भांति ज्ञान हो.

धातु परिवर्तन करते समय इस बात का ध्यान रखना अत्यधिक अनिवार्य है की हम जिस वनस्पति का प्रयोग रस कर्म के लिए कर रहे हैं , वो ग्राहक है या दात्री. यहाँ इन दोनों शब्दों के उचित अर्थ को समझना आवश्यक है. ग्राहक वनस्पतियां वो कहलाती हैं जो किसी भी धातु के धात्विक अंश को मात्र ग्रहण करती हैं. दात्री वो कहलाती हैं जो भूमि में प्राप्त धात्विक अंश को किसी अन्य धातु या पारद में प्रदान कर देती है . परन्तु कुछ वनस्पतियां ऐसी भी होती हैं जो की किसी काल विशेष में ग्राहक का गुण रखती है और किसी कालविशेष में दात्री के गुणों से युक्त हो जाती हैं. मान लो की तीव्र प्रभावों से युक्त एक वनस्पति है सर्पोंखा जिसका प्रयोग रजत निर्माण के लिए किया जाता है तो यदि हम उसे प्राप्त करके उसके स्वरस में रजत चूर्ण का मर्दन करते हैं या रजत के काम धेनु का मर्दन करते हैं और ४-५ घंटों के बाद उस रजत में से रस को प्रथक करके ठीक उसी स्वरस में पारद का मर्दन या संस्कार करते हैं और शराव सम्पुट करके जब हम उस सम्पुट को वांछित अग्नि देते हैं तो उस सम्पुट में उपस्थित पारद का उस वनस्पति से संपर्क हो जाते के कारण वो पारद क्षेत्र धर्म का निर्वाह कर रजत बीज का चरण कर लेता है और स्वयं का जलीयांश त्याग कर स्वयं रजत में परिवर्तित हो जाता है , ठीक यही क्रिया वो धतूरे के साथ स्वर्ण में परिवर्तित होने के लिए करता है. अंतर यहाँ सिर्फ इतना ही होता है की धतूरे के स्वरस का मर्दन स्वर्ण कामधेनु के साथ किया जाता है तभी ये प्रक्रिया होती है.


परन्तु एक महत्वपूर्ण तथ्य भी मैं आपको बता देता हूँ की वनस्पतियों के ये गुण ऋतु अनुसार कम या ज्यादा होते जाते हैं. मुझे स्वामी प्रज्ञानंद जी जब ये प्रक्रिया समझा रहे थे तो उन्होंने अलग अलग ऋतु में ठीक उसी पौधे के रस से ये क्रिया करके दिखाई परन्तु प्रत्येक बार पारद में क्षेत्र रूप में जो बीज चारण हुआ था उसके परिणाम स्वरुप पारद उससे १०० गुना ही रूपांतरित हो पाया. तब मैंने उनसे निराशाजनक स्वर में पूछा की तब तो शत प्रतिशत परिणाम पाने के लिए अनुकूल ऋतु का इंतजार करना होगा?


तब उन्होंने उत्तर दिया की नहीं २४ घंटों में भी अलग अलग समय ग्रीष्म,शरद,शिशिर, बसंत आदि ऋतुएं प्रकट होती हैं और प्रत्येक मौसम में सभी ऋतुएँ आती हैं. मतलब ग्रीष्म ऋतु के २४ घंटो में ग्रीष्म तो आएगी ही परन्तु बसंत और शरद आदि ऋतुयें भी आएँगी ही. तब उस वनस्पति का प्रयोग उनके गुणों के अनुसार अल्प या अधिक परिणाम पाने के लिए किया जा सकता है. एक रस शास्त्री को ये जानना भी आवश्यक होता है की वनस्पतियों अपने पूर्ण प्रभाव को कब देती हैं. तभी उचित मन्त्रों के द्वारा उनका आवाहन करके उनके अंग विशेष को प्राप्त कर उनसे स्वरस निकालना चाहिए. वनस्पतियों का अपना अपना वर्ण वर्ग होता है , रक्त वर्ग, श्वेत वर्ग,पीत वर्ग , नील वर्ग आदि आदि. ये वनस्पतिया पारद से क्रिया कर उसे रग प्रदान करती हैं अर्थात रंजन कर अपना वर्ण प्रदान कर देती हैं . और यही राग गुण पारद तब धातुओं या शरीर को प्रदान करता है जब उसका क्रामण उन पर किया गया हो.

यदि विशिष्ट क्रम और अनुपात से इन औषधियों का योग कराया जाये तो ये विलक्षण प्रभाव दिखाने में समर्थ होती हैं . मुझे भली भांति याद है की जब मैंने पहली बार स्वर्ण तन्त्रं पढ़ी थी तो उस ग्रन्थ को पढ़ कर मैं सदगुरुदेव के पास गया और मैंने उनसे प्रश्न किया की सदगुरुदेव क्या कोई ऐसी पद्धति है जिससे उन रस सिद्धों का आवाहन किया जा सके जो की इस ग्रन्थ में वर्णित हैं, क्यूंकि जैसी पारद गुटिका आपने बताई है, वो बनाना कम से कम मेरे लिए अभी तो संभव नहीं है , तब क्या कोई उपाय नहीं है ,जिससे मैं उन्हें आवाहित कर सकू??

सदगुरुदेव ने कहा की है क्यूँ नहीं , पर बात रस सिद्धों और साधिकाओं की है तो इसके लिए माध्यम रूप में पारद को लेना ही पड़ेगा और ये पारद ६ गुना गंधक जारण से युक्त हो(ये संस्कार साधक स्वयं ही करे तभी ये क्रिया हो पाती है)फिर इस पारद का संयोग कुछ वनस्पतियों से करके उसके द्वारा एक विशिष्ट पद्धति से दर्पण बनाया जाये तो इस प्रकार के दर्पण के द्वारा रस सिद्धों का आवाहन किया जा सकता है और उनसे अपनी जिज्ञासाओं का समाधान भी प्राप्त किया जा सकता है .


इस दर्पण का निर्माण किस प्रकार किया जा सकता है ? और इसकी ये योग कैसे कराया जाता है?
तब गुरुदेव ने रस सिद्ध दर्पण निर्माण की तीन विधियाँ बताई जिनका मैंने प्रयोग करके देखा ,उनमे से एक प्रक्रिया को मैं आप सभी गुरुभाइयों के समक्ष रख रहा हूँ.
८ वे संस्कार से युक्त पारद से शिवलिंग तो बनाया जा सकता हैं पर इसके साथ अग्निक्रिया नहीं की जा सकती हैं .अर्थात अग्नि के माध्यम से इसका बंधन नहीं कर सकते हैं .वाम मार्ग में ऐसा कर सकते हैं पर गंधक जारण नहीं कर सकते हैं. शिवलिंग निर्माण के लिए अष्ट संस्कार वाले पारद की आवश्यकता होती हैं, पर इस प्रयोग के लिए तो ६ गुना गंधक जारित पारद की अनिवार्यता हैं ही . स्वयं के द्वारा कम से कम १०० ग्राम से २०० ग्राम तो पारद गंधक जर्न संस्कार से संन्सकारित करे, किसी अन्य से प्राप्त किया पारद इस प्रक्रिया में उपयोगी नहीं हैं .क्योंकि किसी अन्य के हाथ लगा पारद उस व्यक्ति विशेष के शरिरुइका और मानसिक स्पंदन को ग्रहण कर लेता है जिससे क्रिया में व्यवधान उत्पन्न होता है.


इसके अतिरिक्त निम्न पदार्थों की भी अनिवार्यता होगी , इस दिव्य तेजस्वी दर्पण के निर्माण में..
1. पीपल की अन्तः छाल का रस
2. अकरकरा का रस
3. वज्र(सेहुंड /त्रिधारा ) का रस
4. काला संखिया
5. सरपुंखा का रस या दूध
6. बड (वरगद ) का दूध
7. काली तुलसी का रस
8. काले धतुरा का रस
9. स्वर्ण क्षीरी का दूध
10. शंख की भस्म
11. धान्य अभ्रक
12. इन्द्रायण का रस
13. रक्त पुनर्नवा का रस /अर्क
14. अपामार्ग का अर्क
15. अगस्त्य वृक्ष का अर्क
16. माँ भगवती कामख्या महा पीठ का स्वयं निस्रत पवित्र जल

इन सभी पदार्थ की सम्मिलित कुल मात्रा उतनी ही होना चाहिए जितनी की पारद का वजन लिया गया हैं .
इन सभी को किसी भी क्रम से खरल में डाल कर खरल प्रारंभ करे , और एक विशेष मंत्र का लगातार उच्चारण करते रहे .जब सभी पदार्थ और पारद मिल कर एक रस हो जाये . वह मंत्र है ‘ॐ ब्लूम् ॐ’. इसके बाद उस मिश्रण को सामने रख कर स्नान कर के पश्चिम मुख होकर निम्न मंत्र का १०००० बार जप करे , याद रखिये किसी भी प्रक्रिया के क्रम को स्वयं के मन से परिवर्तित ना करे अन्यथा क्रिया की सफलता संदिग्ध ही रहेगी.


मन्त्र- ॐ चले चुलेचंडे कुमारिकयोरगं प्रविश्य यथा भूतं यथा भव्यं यथा भवति सत्यं दर्शय दर्शय भगवति मा विलम्बय विलम्बय ममाशां पूरय पूरय स्वाहा
तब एक आयताकार या गोलाकार कांच का टुकड़ा ले . एक इसके अनुरूप आकर का फ्रेम भी ले जिसमें की यह अच्छी तरह से फिक्स हो जाये .एक लाल रंग का मख मलमल का कपडा भी ले ले .

प्रक्रिया प्रारभ करने से पहले स्नान कर के पूर्ण शुद्ध हो कर पूर्ण सदगुरुदेव पूजन करे सिद्ध कुंजिका स्त्रोत के ११ पाठ ,महा म्रत्यु न्जय मंत्र का ११ माला जप करे इसके बाद अघोर मंत्र का जप करे .समस्त रस सिद्धो के पूजन के बाद खरल में पारद मिश्रित लेप को उस फ्रेम और दर्पण के मध्य खाली स्थान मैं भरना होगा . इस दर्पण के ऊपर मख मलमल का कपडा डाल दे .इसे आपके अतिरिक्त कोई ओर देखे नहीं . फिर एक स्टूल ले इस पर एक घी का दीपक लगा दे , और हमें दर्पण को ऐसे लगाना हैं कि कि दीपक कि लौ ओर इस दर्पण के मध्य का मध्य बिंदु एक सीध में ही हो . मतलब जब आप अपने आसन पर भूमि पर बैठे तो ये दीपक आपकी कि लौ और दर्पण का मध्य बिंदु एक ही सीध में ही होगे . अब इसको प्राण चेतना से अपूरित करने के लिए सिद्ध कुंजिका स्त्रोत के ५१ पाठ व गुरु मंत्र की ११ माला करे.आसन के लिए श्वेत कम्बल , स्वेत रंग का वस्त्र धरण करे , फिर रात्रि के १२ बजे के बाद से लेकर प्रातः के ५ बजे के मध्य में ही प्रयोग करें. पर इसके लिए पहले ५ माला गुरु मन्त्र का जप करे. फिर दीपक कि लौ (जो दर्पण में बिम्बित हो रही है )में अत्यंत ही विनीत भाव से आवाहन करे तो दर्पण में संबंधित रस सिद्ध आपके सम्मुख होंगे और आप उनसे पहले से ही लिखे प्रश्न नम्रता पूर्वक पूछे . सब्बंधित रस आचार्य या आचार्या आपके प्रश्नों के उत्तर देगे जो कि आपको सुनाई देगें
इसके बाद आप उन्हें नम्रता पूर्वक विदा करें , शांति पाठ करे पुनः एक माला गुरु मन्त्र जप करे . और उस दर्पण पर लाल रंग का मख मलमल का कपडा डाल दे.ये तो वनस्पतियों की सिद्धता का प्रमाण है जब आप इसे करके देखेंगे तो सत्यता और असत्यता का खुद ही पता चल जायेगा. इसी प्रकार इन वनस्पतियों में प्राकृत धात्विक अंश तरल या द्रुति रूप में उपस्थित होता है और हमें काल का विशेष अध्यन कर ये जाना जा सकता है की किन क्षणों में स्वर्ण चैतन्य होता है और किन क्षणों में रजत बीज की प्राप्ति की जा सकती है . इसका ज्ञान भी अत्यंत आवश्यक है. (क्रमशः).............


[ गंधक, शहद,पारद को एकत्र कर के ४८ घंटे खरल करें यहाँ एक बात ध्यान रखना जरुरी है की पारद और गंधक संस्कार तथा बीज युक्त होना आवश्यक हैं अन्यथा क्रिया बिगड सकती है फिर उस मिश्रण को आतिशी बोतल में भर कर ३५ दिनों के लिए जमीं में गड्डा खोदकर दबा दे और ऊपर की भूमि पर दिनभर सूर्य का प्रकाश लगता रहे , ऐसी जगह पर ही ये क्रिया करें . अवधि पूर्ण होने पर इसे निकाल ले और इसकी एक माशे के बराबर की मात्रा १ तोला रजत को स्वर्ण कर देती है. ]
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To achieve siddhita in ras karam ( parad tantra science) , the type of Aaoshidhi (herbs) used known as siddhoshidhi ,divyoshidhi and mahaoshiddhi . punanrnava ,sahdevi, tarmprabha , mahabala, kakjangha , dhatura , ravi, sarpunkha ,matsyakshi,khadinjari, indrayan,shinhika are the important herbs that provide/gives his abhisht /goal/ aim. only criteria is need that sadhak will be well informed about their inherit qualities.
Its very important that while attempting metal transmutation that keep in mind that the herbs used in that are belongs to the donar or accepter varga /section. Here we need to understand the proper meaning of that words. Accepter herbs are those who accept only a very small part of any metal’s metallic element. And donor are those who provide metal’s metallic portion to other metal or in mercury. And some of the herbs has the quality of accepter and donor both on the time based means on some part of the day /month /year they behaves as the donor and other time like accepter. for example one such a herbs is sarpunkha and we are using it for silver making purpose. if we do khral with her juice with silver or kharal with silver kamdheny with that and after 4/5 hours we set aside silver for one side and the remaining juice is again kharal with mercury and use for mardan Sanskar, and after tighten it, as per sharab samput and heat up as appropriate than the mercury present in that samput get into contact with herbs ansh and behave like kshetra and accept silver seed present in that juice .and in the out come ,he left its water ansh and became solid silver. And the same process is done with dhatura plants juice for making gold here only the difference is that juice of dhatura is, khral with (mardan) with swarna kamdhenu only than process happened.

And one more important fact I will describe here that theses quality of herbs increases and decreases as per the season. when swami pragyanand ji describing this process he did the same process in different, different season with the same plant’s juice and the seed accepted by the mercury various differently and in result only 100 times mercury get transmutation , than sadly I asked him than I have to wait till the appointee season comes.
He answered no. in every 24 hours theses all the season comes one by one that means in time of summer season definitely summer will be prominent but winter and rainy season also come one by one. Than we can use the herbs for to get desired result as per according to their season and our need. Its very important facts that one ras shashtri must/ should know that when any herbs is have their full effect only than with the use of proper mantra herbs juice should be taken out. These herbs has their own section like rakt varga (red color based secation), swaet varg (white color), yellow and blue section like that. Theses herbs works with the mercury give their respective color means ranjan kriya happened, and the same color or rang mercury or parad provide to other mental or body if kraman kriya is done on that .
If through a specific way and specific ratio theses herbs are mix together than un imaginable effect can be seen. I still remember that while I first read the SWARNATANTRA and after reading that I went to Sadgurudev ji and told him that if there are any paddhati through that I can also aawahan to ras siddh mentioned in that books , but incurrent it s very difficult me to make such a gutika as mentioned in the books. Are their not any process by which I can aawahan to them.
Sadgurudev ji replied why not, but the question is about aawahan of ras siddh and sadhika than we have to use parad as a medium and that parad should be of six times Gandhak/salpher jarit (all the necessary sanskar needed for that already be done bythe sadhak who want to have this mirror) and through application of various herbs to this parad and finally a solution is prepared and through a specific way a mirror Is prepared and on this mirror any ras siddha can be aawahan and person get the answer of any queries to them.
How this mirror scan be prepared and what is the process by which herbs are used in that ?.
Sadgurudev ji describe to me three way , that I practically did all , one of that I am here describing you my guru brother.

Parad with having stage of asht Sanskar , can be used for shivling \making but on that parad agni kriya/using fire is not allowed means through fire we can not make bandhan /solidifying that .vaam marg we can do that but using gandhak is not permissible . for shivling making asht sankar parad is needed, but for this prayog we require at least six times Gandhak jarit parad , prepare at least 100 to 200 gram of such a sankarit and jarit parad by self only (no other person help can be taken), since if other person touch this type parad the mercury accept his mental and physical vibration. That creates obstruction. In fulfilling our procedure / kriya.
In addition to that following things are required for that making brilliance ,most divine mirror.
1. Inner core juice of pepal tree
2. Juice of akarkara
3. Juice of vajra (sehund)
4. Kala sankhiiya
5. Juice of surpunkha
6. Juice of bargad tree
7. Juice of kali tulsi
8. Juice ofblkack dhatura
9. Milk of swarna kshiri
10. Ash of shanksha
11. Dhyany Abhrak
12. Juice of indrayan.
13. Ark of rakt purnnava
14. Ark of apamarg
15. Ark of agstay tree
16. And the holy water comingout of ma kamakhya maha yoni peeth.
All the above mentioned juice total quantity should be just equal to as the weight of mercury is to be taken.mix all the substance in any series and in a khral and while doing khral chant mentally the mantra om bloom om after that take bath and than facing west chant 10,000 times following mantra ,be careful do not modify the process mentioned here to suit you , other wise the success will be doubtful .
Mantra
Om chale chulechande kumarikyorang yatha bhutam bhavyam yatha bhavti satyam darshay darshay bhagvati ma vilambay vilambay mamansha puray puray swaha.
Than take any glass mirror either rectangular or circulare size and appropriate frame also take so thatit properly get fixed inthat. Take red colored makh mal mal cloth.
Before starting the process wash properly and have full complete Sadgurudev poojan and do 11 paath of Siddh kunjika strota, Maha Mritunjaya mantra 11 round rosary (mala ), and then chant Aghor mantra .than after all the ras siddha poojan use that mixture of parad and herbs fill in the middle hollow portion of mirror and frame , and apply makhmalmal cloth on the mirror so that no other person see that . than take any wooden stand of such an height and put a ghee Deepak on that , and fix the mirror on the wall such that middle portion of the mirror and flame of Deepak be in a staright line, means when you sit on the floor on your aasan than your eye , flame and middle portion of that mirror be in a line. Then for pranschetana a do chant 51 paath of siddh kunjika strota , and 11 round rosary of guru mantra . for aasan (sitting mat) it should be of while color kambal and white colored clothe should be used by you. And do this process in between 12 Am in night to 5 am in the Am morning only but for to use that 5 round of rosary of guru mantra is must. Tan see the reflection of the Deepak flame in the mirror concentrate on that and with full politeness have aawahan of any ras siddha. Ask him any of the question already written with you in this field related, the related ras acharya and achray will definitely give the answer which will be clearly audible to you.
After that very politely ask them to leave. Again do the shanti paath and 1 round of rosary of guru mantra. And red colored makhmalmal cloth again put on that mirror. Theses are the authentication of herbs siddhita, when you yourself try that you can understand fully yourself. Like the same way various herbs has metallic ansh in liquid or in druti form. And can calculate the specific proper time when swarna ( gold) becomes chaitnya, and in which moment silver… that gyan is also must.
In continue….

****ARIF****

Saturday, November 19, 2011

Master philosophy meditation गुरु दर्शन साधना

गुरु दर्शन साधना ---
गुरु शब्द ही का उचार्ण ही हिरदे में प्रेम भर जाता है और उसी क्षण अपने प्रिये गुरुदेव का चेहरा आँखों में या जाता है और अपने आप आंसु धरा प्रवाहित होने लग जाती है !क्यों के एक गुरु ही है जो शिष्य के अपने होते है बाकि सभी रिश्ते तो जही के जही रह जाते है !जहाँ गुरु है वहाँ सभी है !इस संसार रुपी भव से एक गुरु जी ही होते है जो पार लगा देते है !सिर्फ गुरु शब्द का उचार्ण भी अगर प्रेम भव से किया जाये तो भी सिधियो के दुयार खोल देता है !इस लिए गुरु दर्शन हर शिष्य के दिल की कामना ही नहीं लक्ष्य भी होता है ! दिल में प्रेम भरिये और अपना ले अपने सद्गुरु जी को आगे बढ़ कर उतर ले उनका प्रेम अपने हिरदे में और बसा ले उनकी सुरत अपनी आँखों में और उनकी यादे अपने ख्यालो में जही तो है उनके साक्षात् दर्शन करने की विधि !मैं जहा एक साधना दे रहा हू जो सद्गुरु के दर्शन और अशिर्बाद दिलाने में सहयक होती है !आप दिल से करे और विशुद प्रेम से उनको रिझा ले !
विधि --इसे किसी भी गुरुवार शुरू करना है !५ दिन की साधना है !
२ वस्त्र-- धोती पितान्म्बर पहन कर पीले आसन पे पूर्व विमुख बैठे और दैनिक साधना विधि से एक वेजोट पे पीला वस्त्र विशा के गुरु पूजन करे !
३ शुद्ध घी का दीप लगा दे और सुंगधित अगर वती भी लगा दे !
४ प्रसाद के लिए हलवा बना कर रख ले इन पाँच दिनों में हर दिन अलग अलग भोग लगाये !पहले दिन लडू जो शुद्ध घी के ले दुसरे दिन खीर तीसरे दिन पाँच पीस बर्फी के और ४थे दिन पांचो किस्म के मेवे और पंचमे दिन हलवा ले !पूजन पांचो दिन पूर्ण प्रेम भाव से करे !फिर पाँच माला गुरु मंत्र फिर एक माला निम्न साबर मंत्र का जाप और फिर पाँच माला गुरु मंत्र जाप करे !इस परकार पांचो दिन कर्म करने से गुरु जी का साक्षात् दर्शन ,स्वपन दर्शन होता है जा स्वपन में उनसे बात हो जाती है !
साबर मंत्र --- ॐ तारन गुरु बिन नहीं कोई श्रीति स्मृति मध् बात परोई !
थान अद्वैत तभी जाये पसरे मन बच कर्म गुरु पग दर्शे !
दरिदर रोग मिटे सभ तन का गुरु करुना कर होवे मुक्ता!
धन्य गुरु मुक्ति के दाते ॐ !!
जय गुरुदेव !

Wednesday, November 2, 2011

BHAGVATI DHOOMAVATI SADHNA - CHARPAT NATH PRANEET

धूमावती एक एसी महाविद्या है जिनके बारे मे साहित्य अत्यधिक कम मात्र मे मिलता है. इस महाविद्या के साधक भी बहोत कम मिलते है. मूल रूप से इनकी साधना शत्रु स्तम्भन और नाशन के लिए की जाती है. लेकिन इस महाविद्या से सबंधित कई ऐसे प्रयोग है जिनके बारे मे व्यक्ति कभी सोच भी नहीं सकता. चरपटभंजन नाम धूमावती के उच्चकोटि के साधको के मध्य प्रचलित रहा है, चरपट भंजन को ही चरपटनाथ या चरपटीनाथ कहा गया है. चरपटनाथ ने अपने जीवन काल मे धूमावती सबंधित साधनाओ का प्रचुर अभ्यास किया था और मांत्रिक धूमावती को सिद्ध करने वाले गिने चुने व्यक्ति मे इनकी गणना होती है, वे कालजयी रहे है और आज भी वे सदेह है. उनके बारे मे ये प्रचलित है की वह किसी भी तत्व मे अपने आप को बदल सकते है चाहे वह स्थूल हो या सूक्ष्म, जैसे मनुष्य पशु पक्षी पानी अग्नि या कुछ भी. ७५०-८०० साल पहले धूमावती साधना के सबंध मे फैली भ्रान्ति को दूर करने के लिए इस महान धूमावती साधक ने कई ग्रंथो की रचना की जिसमे धूमावतीरहस्य, धूमावतीसपर्या, धूमावती पूजा पध्धति जैसे अत्यधिक रोचक ग्रंथ सामिल है. कई गुप्त तांत्रिक मठो मे आज भी यह ग्रन्थ सुरक्षित है. लेकिन यह साधना पद्धतिया लुप्त हो गयी और जन सामान्य के मध्य कभी नहीं आई. धूमावती अलक्ष्मी होते हुए भी लक्ष्मी प्राप्ति से लेके वैभव ऐश्वर्य तथा जीवन के पूर्ण भोग प्राप्त करने के लिए भी धूमावती साधना के कई विधानों का उन्होंने प्रचार किया था. लेकिन ये साधनाओ को गुप्त रखने की पीछे का मूल चिंतन सायद तब की परिस्थिति हो या कुछ और लेकिन इससे जन सामान्य के मध्य साधको का हमेशा ही नुक्सान रहा है. चरपटभंजन ने जो कई गुप्त पध्धातियो का विकास किया था उनमे से एक साधना एसी भी थि जिसको करने से व्यक्ति अपने सामने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे मे कुछ भी जान लेता है. जैसे की चरित्र कैसा है, इस व्यक्ति की प्रकृति क्या है, इसके दिमाग मे इस वक्त कौनसे विचार चल रहे होंगे? इस प्रकार की साधना अत्यधिक दुस्कर है क्यों जीवन के रोज ब रोज के कार्य मे ऐसी साधनाओ से कितना और क्या विकास हो सकता है कैसे फायदा हो सकता है ये तो व्यक्ति खुद ही समज सकता है. मानसिक शक्तियो के विकास की अत्यधिक दुर्लभ साधनाओ मे यह साधना अपना एक विशेष स्थान लिए हुए है. चरपटनाथ द्वारा प्रणित धूमावती प्रयोग आप सब के मध्य रख रहा हू.


इस साधना को करने से पूर्व साधक अपने स्थान का चुनाव करे. साधक के साधना स्थल पर और आसान पर साधक की जब तक साधना चले कोई और व्यक्ति न बैठे. इस साधना मे साधक को ११ माला मंत्र जाप एक महीने (३० दिन) तक करना है. माला काले हकीक की रहे. वस्त्र काले रहे. समय रात्रि काल मे ११ बजे के बाद का हो. धूमावती का यन्त्र चित्र अपने सामने स्थापित करे. तेल का दीपक साधना समय मे जलते रहना चाहिए.


यन्त्र चित्र का पूजन कर के विनियोग करे

विनियोग: अस्य श्री चरपटभंजन प्रणित धूमावती प्रयोगस्य पूर्ण विनियोग अभीष्ट सिद्धियर्थे करिष्यमे पूर्ण सिद्धियर्थे विनियोग नमः

इसके बाद निम्न मंत्र का ११ माला जाप करे

ओम धूमावती करे न काम, तो अन्न हराम, जीवन तारो सुख संवारो, पुरती मम इच्छा, ऋणी दास तमारो ओम छू




मंत्र जाप के बाद साधक धूमावती देवी को ही मंत्र जाप समर्पित कर दे.
ये अत्यधिक दुर्लभ विधान सम्प्पन करने के बाद व्यक्ति यु कहा जाए की अजेय बन जाता है तो भी अतिशियोक्ति नहीं होगी.
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Dhoomavati is one of such mahavidhya about which least literature could be obtained. The sadhak of this mahavidya is also least. Basically her sadhana is done to prevent from enemy or to finish them. But in relation to this mahavidya there are so many such prayoga which are un-imaginable. The name ‘Charpat Bhanjan” has remained famous among highly accomplished sadhak of dhoomavati, charpat bhanjan have also been named charpat nath or charpatinath. Charapat nath have studied deeply majority sadhanas of the dhumavati in his life and among few, he holds a place who accomplished mantrik dhoomavati. He has remained deathless and he is in his actual body today even. It is famous about him that he was able to transform himself in any tangible or intangible element like human, animal, water, fire or anything else. Before 750-800 years this great sadhak of dhoomavati created scriptures to remove misunderstandings related to dhoomavati including few fantastic works like dhoomavatirahashya, dhoomavatisaparya, dhoomavatipoojapadhhati. In many secret tantric places these scriptures are safe currently even but the ritual processes have gone extinct and did not come in front of general people. Though being Alakshmi there were so many processes which were made famous by him to have wealth, to generate prosperity and complete house-holding happiness. But to make these processes secret could be circumstances of that time or may be anything else but it have always been a big loss for material sadhaka. The sadhanas developed by charpat bhanjan includes one of the sadhana through which if done by a person can have a power to understand the personality of the person or to know anything about them like character, nature aur what thoughts are going on currently in that person’s mind. Sadhana like this are really very rare. Because with such sadhana what development and benefit one can generate in day to day life could be understand very simply. This sadhana holds a special place in rare sadhana which are meant for the development of the mind powers. I am sharing that charpatnath pranit dhoomavati prayoga.


Before starting this sadhana, sadhak should select their place for sadhana. There should be no one to sit on the aasan or the place of sadhana till the time sadhana days are going on. In this sadhana shadhak needs to do 11 rosary of mantra daily for one month (30 days). Rosary should be black hakeek. Cloth should be black. Time should be after 11 Pm in night. Establish dhoomavati yantra and picture infront of you. Lamp of the oil should keep on burning during sadhana time. Do viniyoga after yantra and picture poojan.

Viniyog: asy shri charapatbhanjan pranit dhoomavatee prayogasy purn viniyog abhisht siddhiyarthe karishyame purn siddhiyarthe viniyog namah

After this chant 11 rounds of the following mantra.

Om dhoomavatee kare na kaam, to ann haraam, jivan taro sukh sanvaaro, purati mam icchha, runi daas tamaaro om chhoo

After mantra chanting offer the chantings to the goddess dhoomavati.
It is not even more if we say that after completing this rare procedure a sadhak becomes invincible.

Goddess Saraswati Sulemani Sadhana

Goddess Saraswati Sulemani Sadhana

सुलेमानी सरस्वती साधना --
इस साधना के कई लाभ है जहाँ जे साधक को एक नये ज्ञान से जोडती है वही उसे पैसे अदि की कमी नहीं आने देती लोटरी अदि में विजय दिलाती है और उसे आने वाले समय से भी अवगत कराती है यह मेरी स्व की और कई साधको दुयारा परखी हुई है!यह आपके जीवन को एक नई सेध देती है इसे करना भी आसन है और सामग्री की भी सवर साधनायो में इतनी जरूरत नहीं होती बस जरूरत है तो पवित्रता की !
विधि -- सर्व पर्थम इशनान करके सफेद वस्त्र पहने और पशिम दिशा की तरफ मुख करके एक सफेद बस्तर विशा दे और आगे तिल के तेल का दिया लगा दे लोवान का धूफ दे सुघदित इतर छिडक दे और सफेद चमेली के फूल पास रखे ना मिले तो काली मोतिया भी रख सकते है अगर वोह भी ना मिले तो की भी सफेद कली ले ले जो दिए के पास रखे थोरे सत्हब को गोबर से लीप के उस जगा दिया लगा दे अगर स्थान पका हो तो उसे जल जा दूध से धो ले भोग कर लिए सफेद रंग की बर्फी जा पेडे ले सकते है !साधना की दिशा पशिम रहेगी और जप संख्य एक माला !माला सफेद हक़ीक किले सकदे है !जा एक सो एक वार जप कर ले !
जप काल में कई अनुभुतिया हो सकती है अपने मन को सथिर रखे किसी भी परकार की आवाज सुने तो मत बोले जब साधना पूरी हो जाये तो बात करे और अपनी अभिलाषा व्यक्त करे !यह एक तीक्षण साधना है इस लिए शुरू तभी करे अगर पूरी करनी हो!इस साधना में कई पर्ताक्ष अनुभव होते है कई वार सफेद वस्त्रो में कई लोग भी जो इस लाइन को मानते है दिख जाते है !अगर कोई दिक्त य़ा रही हो तो मुझे मेल कर सकते है मुझे आपकी मदद कर के ख़ुशी होगी आप पुरे मन से करे आपके लिए यह साधना नये आयाम पैदा करेगी !

साबर मंत्र ---
बिस्मिला घट में सृस्ती जुबाह पे तालीम ,
सिर पे पंजा पीर उस्ताद का साबित रख यकीन !
मुहम्द दे रसूल अला मरे जिन्दे फकरो को ऐश करन ला !
य़ा करीमा कर्म कर कर्म कर इलाही,
मुहम्द कल की बात बता दे मुहम्द तेरी पातशाही !

इस मन्त्र का जप पुरे मन से करे १०१ वार जा एक माला जप पर्याप्त है !आशा है आपके जीवन में यह साधना जरुर बदलाव लाएगी !
जय गुरुदेव !

aap kali jo sfed rang ke phool hote hai voh le sakte hai pujan ke liye,aur thori jagah ko gye ke gobar se leep kr us mein diya lagan hai.

Papankusha Sadhana पापांकुशा साधना

यावत् जीवेत सुखं जीवेत |

सर्वं पापं विनश्यति ||



प्रत्येक जीव विभिन्न योनियों से होता हुआ निरन्तर गतिशील रहता है| हलाकि उसका बाहरी चोला बार-बार बदलता रहता है, परन्तु उसके अन्दर निवास करने वाली आत्मा शाश्वत है, वह मारती नहीं हैं, अपितु भिन्न-भिन्न शरीरों को धारण कर आगे के जीवन क्रम की ओर गतिशील रहती है|

जो कार्य जीव द्वारा अपनी देह में होता है, उसे कर्म कहते हैं और उसके सामान्यतः दो भेद हैं - शुभ कर्म यानी कि पुण्य तथा अशुभ कर्म अर्थात पाप| शुभ कर्म या पुण्य वह होता है, जिसमे हम किसी को सुख देते हैं, किसी की भलाई करते हैं और अशुभ कर्म वह होता है, जिसमें हमारे द्वारा किसी को दुःख प्राप्त होता है, जिसमें हमारे द्वारा किसी को संताप पहुंचता हैं|

मानव योनी ही एक ऐसे योनि है, जिसमें वह अन्य कर्मों को संचित करता रहता है| पशु आदि तो बस पूर्व कर्मों के अनुसार जन्म ले कर ही चलते रहते हैं, वे यह नहीं सोचते, कि यह कार्य में कर रहा हूं या मैं इसको मार रहा हूं| अतः उनके पूर्व कर्म तो क्षय होते रहते हैं, परन्तु नवीन कर्मों का निर्माण नहीं होता; जबकि मनुष्य हर बात में 'मैं' को ही सर्वोच्चता प्रदान करता हैं... और चूंकि वह प्रत्येक कार्य का श्रेय खुद लेना चाहता है, अतः उसका परिणाम भी उसे ही भुगतना पड़ता है|

मनुष्य जीवन और कर्म

मनुष्य जीवन में कर्म को शास्त्रीय पद्धति में तीन भागों में बांटा गया है -


१. संचित
२. प्रारब्ध
३. आगामी (क्रियमाण)


'संचित कर्म' वे होते हैं, जो जीव ने अपने समस्त दैहिक आयु के द्वारा अर्जित किये हैं और जो वह अभी भी करता जा रहा है|

'प्रारब्ध' का अर्थ है, जिन कर्मों का फल अभी गतिशील हैं, उसे वर्त्तमान में भोगा जा रहा हैं|

'आगामी' का अर्थ है, वे कर्म, जिनका फल अभी आना शेष है|

इन तीनो कर्मों के अधीन मनुष्य अपना जीवन जीता रहता है| प्रकृति के द्वारा ऐसी व्यवस्था तो रहती है, कि उसके पूर्व कर्म संचित रहें, परन्तु दुर्भाग्य यह है, कि मनुष्य को उसके नवीन कर्म भी भोगने पड़ते हैं, फलस्वरूप उसे अनंत जन्म लेने पड़ते हैं| परन्तु यह तो एक बहुत ही लम्बी प्रक्रिया है, और इसमें तो अनेक जन्मों तक भटकते रहना पड़ता है|

परन्तु एक तरीका है जिससे व्यक्ति अपने छल, दोष, पाप को समूल नष्ट कर सकता है, नष्ट ही नहीं कर सकता अपितु भविष्य के लिए अपने अन्दर अंकुश भी लगा सकता है, जिससे वह आगे के जीवन को पूर्ण पवित्रता युक्त जी सके, पूर्ण दिव्यता युक्त जी सके और जिससे उसे फिर से कर्मों के पाश में बंधने की आवश्यकता नहीं पड़े|

साधना : एकमात्र मार्ग


...और यह तरीका, यह मार्ग है साधना का, क्योंकि साधना का अर्थ ही है, कि अनिच्छित स्थितियों पर पूर्णतः विजय प्राप्त कर अपने जीवन को पूरी तरह साध लेना, इस पर पूरी तरह से अपना नियंत्रण कायम कर लेना|


यदि यह साधना तंत्र मार्ग के अनुसार हो, तो इससे श्रेष्ठ कुछ हो ही नहीं सकता, इससे उपयुक्त स्थिति तो और कोई हो ही नहीं सकती, क्योंकि स्वयं शिव ने 'महानिर्वाण तंत्र' में पार्वती को तंत्र की विशेषता के बारे में समझाते हुए बताया है -

कल्किल्मष दीनानां द्विजातीनां सुरेश्वरी |

मध्या मध्य विचाराणां न शुद्धिः श्रौत्कर्मणा ||

न संहिताध्यैः स्र्मुतीभिरष्टसिद्धिर्नुणां भवेत् |

सत्यं सत्यं पुनः सत्यं सत्य सत्यं मयोच्यते ||

विनाह्यागम मार्गेण कलौ नास्ति गतिः प्रिये |

श्रुतिस्मृतिपुराणादी मयैवोक्तं पूरा शिवे ||

आगमोक्त विधानेन कलौ देवान्यजेत्सुधिः ||




- ही देवी! कलि दोष के कारण ब्राह्मण या दुसरे लोग, जो पाप-पुण्य का विचार करते हैं, वे वैदिक पूजन की विधियों से पापहीन नहीं हो सकते| मैं बार बार सत्य कहता हूं, कि संहिता और स्मृतियों से उनकी आकांक्षा पूर्ण नहीं हो सकती| कलियुग में तंत्र मार्ग ही एकमात्र विकल्प है| यह सही है, कि वेद, पुराण, स्मृति आदि भी विश्व को किसी समय मैंने ही प्रदान किया था, परन्तु कलियुग में बुद्धिमान व्यक्ति तंत्र द्वारा ही साधना कर इच्छित लाभ पाएगा|

इससे स्पष्ट होता है, कि तंत्र साधना द्वारा व्यक्ति अपने पाप पूर्ण कर्मों को नष्ट कर, भविष्य के लिए उनसे बन्धन रहित हो सकते हैं| वैसे भी व्यक्ति यदि जीवन में पूर्ण दरिद्रता युक्त जीवन जी रहा है या यदि वह किसी घातक बीमारी के चपेट में है, जो कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही हो, तो यह समझ लेना चाहिए, कि उसके पाप आगे आ रहे है ...

नीचे मैं कुछ स्थितियां स्पष्ट कर रहा हूं, जो कि व्यक्ति के पूर्व पापों के कारण जीवन में प्रवेश करती हैं --


१. घर में बार-बार कोई दुर्घटना होना, आग लगना, चोरी होना आदि |

२. पुत्र या संतान का न होना, या होने पर तुरंत मर जाना |

३. घर के सदस्यों की अकाल मृत्यु होना |

४. जो भी योजना बनायें, उसमें हमेशा नुकसान होना |

५. हमेशा शत्रुओं का भय होना|

६. विवाह में अत्यंत विलम्ब होना या घर में कलह पूर्ण वातावरण, तनाव आदि|

७. हमेशा पैसे की तंगी होना, दरिद्रतापूर्ण जीवन, बीमारी और अदालती मुकदमों में पैसा पानी की तरह बहना|


ये कुछ स्थितियां हैं, जिनमें व्यक्ति जी-जान से कोशिश करने के उपरांत भी यदि उन पर नियंत्रण नहीं प्राप्त कर पाता, तो समझ लेना चाहिए, कि यह पूर्व जन्म कर्मों के दोष के कारण ही घटित हो रहा है| इसके लिये फिर उन्हें साधना का मार्ग अपनाना चाहिए, जिसके द्वारा उसके समस्त दोष नष्ट हो सकें और वह जीवन में सभी प्रकार से वैभव, शान्ति और श्रेष्ठता प्राप्त कर सके|

पापांकुशा साधना

ऐसी ही एक साधना है पापांकुशा साधना, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दोषों को - चाहे वह दरिद्रता हो, अकाल मृत्यु हो, बीमारी हो या चाहे और कुछ हो, उसे पूर्णतः समाप्त कर सकता है और अब तक के संचित पाप कर्मों को पूर्णतः नष्ट करता हुआ भविष्य के लिए भी उनके पाश से मुक्त हो जाता है, उन पर अंकुश लगा पाता है |

इस साधना को संपन्न करने से व्यक्ति के जीवन में यदि ऊपर बताई गई स्थितियां होती है, तो वे स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं| वह फिर दिनों-दिन उन्नति की ओर अग्रसर होने लग जाता है, इच्छित क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है और फिर कभी भी, किसी भी प्रकार की बाधा का सामना उसे अपने जीवन में नहीं करना पड़ता|

यह साधना अत्याधिक उच्चकोटि की है और बहुत ही तीक्ष्ण है| चूंकि यह तंत्र साधना है, अतः इसका प्रभाव शीघ्र देखने को मिलता है| यह साधना स्वयं ब्रह्म ह्त्या के दोष से मुक्त होने के लिए एवं जनमानस में आदर्श स्थापित करने के लिए कालभैरव ने भी संपन्न की थी ... इसी से साधना की दिव्यता और तेजस्विता का अनुमान हो जाता है ....


यह साधना तीन दिवसीय है, इसे पापांकुशा एकादशी से या किसी भी एकादशी से प्रारम्भ करना चाहिए| इसके लिए 'समस्त पाप-दोष निवारण यंत्र' तथा 'हकीक माला' की आवश्यकता होती है|

सर्वप्रथ साधक को ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान आदि से निवृत्त हो कर, सफेद धोती धारण कर, पूर्व दिशा की ओर मूंह कर बैठना चाहिए और अपने सामने नए श्वेत वस्त्र से ढके बाजोट पर 'समस्त पाप-दोष निवारण यंत्र' स्थापित कर उसका पंचोपचार पूजन संपन्न करना चाहिए| 'मैं अपने सभी पाप-दोष समर्पित करता हूं, कृपया मुझे मुक्ति दें और जीवन में सुख, लाभ, संतुष्टि प्रसन्नता आदि प्रदान करें' - ऐसा कहने के साथ यदि अन्य कोई इच्छा विशेष हो, तो उसका भी उच्चारण कर देना चाहिए| फिर 'हकीक' से निम्न मंत्र का २१ माला मंत्र जप करना चाहिए --
|| ॐ क्लीं ऐं पापानि शमय नाशय ॐ फट ||

यह मंत्र अत्याधिक चैत्यन्य है और साधना काल में ही साधक को अपने शरीर का ताप बदला मालूम होगा| परन्तु भयभीत न हों, क्योंकि यह तो शरीर में उत्पन्न दिव्याग्नी है, जिसके द्वारा पाप राशि भस्मीभूत हो रही है| साधना समाप्ति के पश्चात साधक को ऐसा प्रतीत होगा, कि उसका सारा शरीर किसी बहुत बोझ से मुक्त हो गया है, स्वयं को वह पूर्ण प्रसन्न एवं आनन्दित महसूस करेगा और उसका शरीर फूल की भांति हल्का महसूस होगा |

जो साधक अध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ना चाहते हैं, उन्हें तो यह साधना अवश्य ही संपन्न करने चाहिए, क्योंकि जब तक पाप कर्मों का क्षय नहीं हो जाता, व्यक्ति की कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो ही नहीं सकती और न ही वह समाधि अवस्था को प्राप्त कर सकता है|

साधना के उपरांत यंत्र तथा माला को किसी जलाशय में अर्पित कर देना चाहिए| ऐसा करने से साधना फलीभूत होती है और व्यक्ति समस्त दोषों से मुक्त होता हुआ पूर्ण सफलता अर्जित कर, भौतिक एवं अध्यात्मिक, दोनों मार्गों में श्रेष्टता प्राप्त करता है| इसलिए साधक को यह साधना बार बार संपन्न करनी है, जब तक कि उसे अपने कार्यों में इच्छित सफलता मिल न पाये|


- सदगुरुदेव नारायण दत्त श्रीमाली