Showing posts with label .. शिव कवचम् ... Show all posts
Showing posts with label .. शिव कवचम् ... Show all posts

Wednesday, May 20, 2020

lamp should be invoked with the lamp for the fulfillment of wishes

मनोकामना पूर्ति के लिए देवी-देवताओं का कौन से दीपक से करे आह्वाहन  : 

1. आर्थिक लाभ के लिए नियम पूर्वक घर के मंदिर में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।

2. शत्रु पीड़ा से राहत के लिए भैरवजी के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिये।

3.भगवान सूर्य की पूजा में घी का दीपक जलाना चाहिए।

4.शनि के लिए सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

5.पति की दीर्घायु के लिए गिलोय के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

6.राहु तथा केतु के लिए अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

7.किसी भी देवी या देवता की पूजा में गाय का शुद्ध घी तथा एक फूल बत्ती या तिल के तेल का दीपक आवश्यक रूप से जलाना चाहिए।

8.भगवती जगदंबा व दुर्गा देवी की आराधना के समय एवं माता सरस्वती की आराधना के समय तथा शिक्षा-प्राप्ति के लिए दो मुखों वाला दीपक जलाना चाहिए।

9.भगवान गणेश की कृपा-प्राप्ति के लिए तीन बत्तियों वाला घी का दीपक जलाना चाहिए।

10.भैरव साधना के लिए सरसों के तेल का चैमुखी दीपक जलाना चाहिए।

11. मुकदमा जीतने के लिए पांच मुखी दीपक जलाना चाहिए।

12.भगवान कार्तिकेय की प्रसन्नता के लिए गाय के शुद्ध घी या पीली सरसों के तेल का पांच मुखी दीपक जलाना चाहिए।

13.भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए आठ तथा बारह मुखी दीपक पीली सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

14.भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए सोलह बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए।

15.लक्ष्मी जी की प्रसन्नता केलिए घी का सात मुखी दीपक जलाना चाहिए।

16.भगवान विष्णु की दशावतार आराधना के समय दस मुखी दीपक जलाना चाहिए।

17.इष्ट-सिद्धि तथा ज्ञान-प्राप्ति के लिए गहरा तथा गोल दीपक प्रयोग में लेना चाहिए।

18.शत्रुनाश तथा आपत्ति निवारण के लिए मध्य में से ऊपर उठा हुआ दीपक प्रयोग में लेना चाहिए।

19.लक्ष्मी-प्राप्ति के लिए दीपक सामान्य गहरा होना चाहिए।

20.हनुमानजी की प्रसन्नता के लिए तिकोने दीपक का प्रयोग करना चाहिए और उसमें चमेली के तेल का प्रयोग करना चाहिए।

मंत्र:-
।। ऊँ नमः शिवाय।।  

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
🕉    🚩ऊँ गं गणपतये नमः🚩    🕉
🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

गुरूवाणी
    'चलो मेरे साथ बढ़ाते कदम '
                           'अमृत प्रवाह हो हर कदम '
                           🚩
                          🔔
                   जय निखिलं​
          जय निखिलं​ जय निखिलं​
   जय निखिलं  ​जय निखिलं​ जय निखिलं​
   जय निखिलं जय निखिलं  जय निखिलं​
        ऊँ जय निखिलं​ जय निखिलं ऊँ​
        ऊँ जय निखिलं​ जय निखिलं​ ऊँ
        ऊँ जय निखिलं​ जय निखिलं​ ऊँ
   जय निखिलं  ​जय निखिलं​ जय निखिलं​
   जय निखिलं  ​जय निखिलं​ जय निखिलं​
   जय निखिलं  ​जय निखिलं​ जय निखिलं​
   जय निखिलं  ​जय निखिलं​ जय निखिलं​

सदगुरुदेव वाणी.....
दिखा पराक्रम यह जग तेरे आगे... 
                                नतमस्तक हो जाएगा।
धीर-धर  तू  कर्म  किए  जा 
                             तेरा  वक्त  भी  आएगा।।

किया परिहास सभा ने रघुवर की... 
                                    प्रत्यंचा चढ़ाने पर।
तोड़ दिया शिव धनुष राम ने... 
                               अपना समय आने पर।।
खो ना  मनोबल बढ़ता चल... 
                                शौर्य तेरा दिख जाएगा।
धीर-धर तू कर्म किए जा...
                               तेरा वक्त भी आएगा।।

करते रघुवर सागर से विनती...
                               पथ की थी अभिलाषा।
त्राहि-त्राहि हो उठा सिंधु...
                        जब जागी पौरुष की भाषा।।
दिखा   सामर्थ   तेरा   मार्ग.. 
                                सुसज्जित  हो  जाएगा।
धीर-धर तू कर्म  किए  जा
                                तेरा वक्त भी आएगा।।

हुए    शून्य   अभिमान   में   जो... 
                                 थे  स्वर्ण  नगर  वासी।
खिल   पड़ा   मान   उनका....
                      जो  थे  गुरु  के अभिलाषी।।
तुम भी चलो सन्मार्ग पर....
                    तुम्हारा जीवन भी संवर जाएगा।
धीर-धर  तू  कर्म  किए  जा...
                              तेरा  वक्त  भी आएगा।।

           "प्रसन्नो भव, प्रसन्नो भव"

अपने संकल्पों को बार -बार दोहराओं.......
मुश्किल जरुर है, पर ठहरा नहीं हूं मैं, मंजिल से जरा कह दो,अभी पहुंचा नहीं हूं मैं.....

   वन्दे गुरो !निखिल ! ते चरणारविन्दम्


Which lamp should be invoked with the lamp for the fulfillment of wishes:

1. For economic benefit, lamps of pure ghee should be lighted in the temple of the house.

2. For relief from enemy suffering, a mustard oil lamp should be lit in front of Bhairavji.

3. Ghee lamps should be lit in the worship of the Lord Sun.

4. Mustard oil lamp should be lighted for sunlight.

5. Giloy oil lamp should be lit for the longevity of the father.

6. Flaxseed oil lamp should be lit for Rahu and Ketu.

7. In the worship of any goddess or deity, pure ghee of cow and a flower light or lamp of sesame oil should be lighted.

8. At the time of worship of Bhagwati Jagadamba and Durga Devi and at the time of worship of Mother Saraswati and for education, two lamps should be lit.

9. To get the blessings of Lord Ganesha, a lamp with three lights should be lighted.

10. A chamukhi lamp of mustard oil should be lit for Bhairav ​​sadhana.

11. To win the case, five faces should be lit.

12. For the happiness of Lord Kartikeya, a five-faced lamp of pure cow ghee or yellow mustard oil should be lit.

13. For the happiness of Lord Shiva, eight and twelve face lamps should be lit with yellow mustard oil lamps.

14. Sixteen light lamps should be lit to please Lord Vishnu.

15. Seven Mukhi lamps of Ghee should be lit for the happiness of Lakshmi ji.

16. Ten face lamps should be lit at the time of worship of Lord Vishnu.

17. A deep and round lamp should be used for faith-accomplishment and enlightenment.

18. Lamps raised from the middle should be used to prevent nightmare and objection.

19. To attain Lakshmi, the lamp should be normally dark.

20. For the happiness of Hanumanji, one should use a triangular lamp and jasmine oil should be used in it.

Friday, August 2, 2019

samast dos nivaran ek divas sadhana tantra mantra

आज शुक्रवार का दिन है आज का यह उपाय बेहद शक्तिशाली उपाय है आज अपने घर के मंदिर मे माँ के चरणों मे बैठकर एक देसी घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें और मिठाई का भोग लगाकर रुद्राक्ष की माला से
ॐ ह्रीं विभ्र्मांड रूपे विभ्रम कुरु रहीं रहीं भगवती स्वाहा
की एक माला जप करें जप उपरान्त एक पानी वाला नारियल लाल रंग के वस्त्र मे लपेटकर माँ के मंदिर मे अर्पित कर दें यह नारियल अपने साथ आपके सारे दोषों को ले जाएगा 

aghor achuk vasikaran tantrot tantra mantra sadhna अघोरी अचूक वशीकरण मंत्र

अघोरी अचूक वशीकरण मंत्र



वैसे तो हमारे समाज में वशीकरण के कई तरीके आजमाए जाते हैं लेकिन अघोरियों की क्रिया विधि और उनके तरीके कुछ अलग होते हैं| इसलिए इन टोटकों को आजमाने से पहले अगर किसी अघोरी का आशीर्वाद या मार्गदर्शन ले लिया जाए तो वह ज्यादा प्रभावशाली होता है| वैसे इस चक्कर किसी गलत वाममार्गी के चक्कर में पड़ने का भय भी रहता है| जैसे हमारी दुनिया में अच्छे और बुरे लोग होते हैं उसी प्रकार अघोरी भी सच्चे और पाखंडी हो सकते हैं| कहते हैं सच्चा अघोरी किस्मत से ही मिलता है| इसलिए किसी टोटके के लिए बात करने से पहले उसके बारे में पड़ताल कर लें वरना जीवन भर पछताना पड़ सकता है –


यह टोटका किसी भी सोमवार को रात के ग्यारह बजे के बाद शुरू करें | नहा धो कर लाल कपड़ा पहने, किसी पीढ़े पर शिवजी की प्रतिमा/शिवलिंग/ तस्वीर स्थापित करें| स्टील या लोहे से बनी एक थाली ले लें, अब इस पर काजल से ओम अघोरेभ्यों घोरेभ्यों नमः लिख दें| पुनः जिस इंसान को वशीभूत करना हो उसके पहने हुए कपडे का टुकडा थाली के ऊपर बिछा दें| अब सिन्दूर या कुमकुम से उस इंसान का नाम लिख दें| पीढ़े पर जिसे वश में करना है उस इंसान का चित्र भी रखें| अब पांच मिनट शिव का ध्यान करें| रुद्राक्ष की माला पर निम्न मंत्र का जाप करें –


शिवे वश्ये हूँ/वश्ये (व्यक्ति का नाम)वश्ये हूँ वश्ये शिवे वश्यमें वश्यमें वश्यमें फट स्वाहा|


यह मंत्र इक्यावन माला जाप करें| जाप पूरा होने के बाद ऋषि मुंडकेश तथा अघोरेश्वर शिव से याचना करें| बीच में कुछ अजीब अनुभूति हो सकती है जिस पर विचलित होने की आवश्यकता नहीं| उद्देश्य अगर नीचतापूर्ण नहीं है तो यह साधना सफल हो जाती है|


यह साधारण मंत्र मात्र नहीं है बल्कि एक सम्पूर्ण साधना है, नीचतापूर्ण उद्देश्य से इसे न करें तो बेहतर| किसी अनुभवी सच्चे अघोरी का मार्गदर्शन मिल जाए तो सरलता से इसे पूर्ण किया जा सकता है|





Tuesday, October 2, 2012

Hanuman Chalisa in different style- Narayan Dutt Shrimali

Hanuman Chalisa in different style- Narayan Dutt Shrimali


Hanuman Chalisa for harmony, love and to remove all difficulties in life. Find the benefits.

Monday, October 10, 2011

Durlabh Shiv kavacham .. शिव कवचम् ..


 .. शिव कवचम्  ..

ये दुर्ल्भय शिव कवच है जिस के पाठ से ८ सिधिया के साथ परम शिव भक्ति मिलती है ,रोग शोक भय का नाश कर सोभाग्य मिलता है गुरु किरपा पर्पट होती है जय गुरु देव

अस्य श्री शिवकवच स्तोत्रमहामन्त्रस्य
ऋषभयोगीश्वर ऋषिः .
अनुष्टुप् छन्दः .
श्रीसाम्बसदाशिवो देवता .

ओं बीजम् .
नमः शक्तिः .
शिवायेति कीलकम् .
मम साम्बसदाशिवप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः .


करन्यासः

ओं सदाशिवाय अंगुष्ठाभ्यां नमः .
नं गंगाधराय तर्जनीभ्यां नमः .
मं मृत्युञ्जयाय मध्यमाभ्यां नमः .
शिं शूलपाणये अनामिकाभ्यां नमः .
वां पिनाकपाणये कनिष्ठिकाभ्यां नमः .
यं उमापतये करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः .

हृदयादि अंगन्यासः

ओं सदाशिवाय हृदयाय नमः .
नं गंगाधराय शिरसे स्वाहा .
मं मृत्युञ्जयाय शिखायै वषट् .
शिं शूलपाणये कवचाय हुं .
वां पिनाकपाणये नेत्रत्रयाय वौषट् .
यं उमापतये अस्त्राय फट् .
भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बन्धः ..

ध्यानम्

वज्रदंष्ट्रं त्रिनयनं कालकण्ठ मरिंदमम् .
सहस्रकरमत्युग्रं वन्दे शंभुं उमापतिम् ..

रुद्राक्षकङ्कणलसत्करदण्डयुग्मः
  पालान्तरालसितभस्मधृतत्रिपुण्ड्रः .
पञ्चाक्षरं परिपठन् वरमन्त्रराजं
  ध्यायन् सदा पशुपतिं शरणं व्रजेथाः ..

अतः परं सर्वपुराणगुह्यं
  निःशेषपापौघहरं पवित्रम् .
जयप्रदं सर्वविपत्प्रमोचनं
  वक्ष्यामि शैवम् कवचं हिताय ते ..

पञ्चपूजा

लं पृथिव्यात्मने गन्धं समर्पयामि .
हं आकाशात्मने पुष्पैः पूजयामि .
यं वाय्वात्मने धूपम् आघ्रापयामि .
रं अग्न्यात्मने दीपं दर्शयामि .
वं अमृतात्मने अमृतं महानैवेद्यं निवेदयामि .
सं सर्वात्मने सर्वोपचारपूजां समर्पयामि ..

ॐ नमो भगवते सदाशिवाय
सकलतत्वात्मकाय
सर्वमन्त्रस्वरूपाय
सर्वयन्त्राधिष्ठिताय
सर्वतन्त्रस्वरूपाय
सर्वतत्वविदूराय
ब्रह्मरुद्रावतारिणे
नीलकण्ठाय
पार्वतीमनोहरप्रियाय
सोमसूर्याग्निलोचनाय
भस्मोद्धूलितविग्रहाय
महामणि मुकुटधारणाय
माणिक्यभूषणाय
सृष्टिस्थितिप्रलयकाल-
रौद्रावताराय
दक्षाध्वरध्वंसकाय
महाकालभेदनाय
मूलधारैकनिलयाय
तत्वातीताय
गंगाधराय
सर्वदेवादिदेवाय
षडाश्रयाय
वेदान्तसाराय
त्रिवर्गसाधनाय
अनन्तकोटिब्रह्माण्डनायकाय
अनन्त वासुकि तक्षक-
कर्कोटक शङ्ख कुलिक-
पद्म महापद्मेति-
अष्टमहानागकुलभूषणाय
प्रणवस्वरूपाय
चिदाकाशाय
आकाश दिक् स्वरूपाय
ग्रहनक्षत्रमालिने
सकलाय
कलङ्करहिताय
सकललोकैककर्त्रे
सकललोकैकभर्त्रे
सकललोकैकसंहर्त्रे
सकललोकैकगुरवे
सकललोकैकसाक्षिणे
सकलनिगमगुह्याय
सकलवेदान्तपारगाय
सकललोकैकवरप्रदाय
सकललोकैकशंकराय
सकलदुरितार्तिभञ्जनाय
सकलजगदभयंकराय
शशाङ्कशेखराय
शाश्वतनिजावासाय
निराकाराय
निराभासाय
निरामयाय
निर्मलाय
निर्मदाय
निश्चिन्ताय
निरहंकाराय
निरंकुशाय
निष्कलङ्काय
निर्गुणाय
निष्कामाय
निरूपप्लवाय
निरुपद्रवाय
निरवद्याय
निरन्तराय
निष्कारणाय
निरातंकाय
निष्प्रपञ्चाय
निस्सङ्गाय
निर्द्वन्द्वाय
निराधाराय
नीरागाय
निष्क्रोधाय
निर्लोपाय
निष्पापाय
निर्भयाय
निर्विकल्पाय
निर्भेदाय
निष्क्रियाय
निस्तुलाय
निःसंशयाय
निरंजनाय
निरुपमविभवाय
नित्यशुद्धबुद्धमुक्तपरिपूर्ण-
सच्चिदानन्दाद्वयाय
परमशान्तस्वरूपाय
परमशान्तप्रकाशाय
तेजोरूपाय
तेजोमयाय
तेजोऽधिपतये






जय जय रुद्र
महारुद्र
महारौद्र
भद्रावतार
महाभैरव
कालभैरव
कल्पान्तभैरव
कपालमालाधर
खट्वाङ्ग चर्मखड्गधर पाशाङ्कुश-
डमरूशूल चापबाणगदाशक्तिभिंदिपाल-
तोमर मुसल मुद्गर पाश परिघ-
भुशुण्डी शतघ्नी चक्राद्यायुधभीषणाकार-
सहस्रमुखदंष्ट्राकरालवदन
विकटाट्टहास विस्फारित ब्रह्माण्डमण्डल
नागेन्द्रकुण्डल
नागेन्द्रहार
नागेन्द्रवलय
नागेन्द्रचर्मधर
नागेन्द्रनिकेतन
मृत्युञ्जय
त्र्यम्बक
त्रिपुरान्तक
विश्वरूप
विरूपाक्ष
विश्वेश्वर
वृषभवाहन
विषविभूषण
विश्वतोमुख
सर्वतोमुख
मां रक्ष रक्ष
ज्वलज्वल
प्रज्वल प्रज्वल
महामृत्युभयं शमय शमय
अपमृत्युभयं नाशय नाशय
रोगभयं उत्सादयोत्सादय
विषसर्पभयं शमय शमय
चोरान् मारय मारय
मम शत्रून् उच्चाटयोच्चाटय
त्रिशूलेन विदारय विदारय
कुठारेण भिन्धि भिन्धि
खड्गेन छिन्द्दि छिन्द्दि
खट्वाङ्गेन विपोधय विपोधय
मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय
बाणैः संताडय संताडय
यक्ष रक्षांसि भीषय भीषय
अशेष भूतान् विद्रावय विद्रावय
कूष्माण्डभूतवेतालमारीगण-
ब्रह्मराक्षसगणान् संत्रासय संत्रासय
मम अभयं कुरु कुरु
मम पापं शोधय शोधय
वित्रस्तं मां आश्वासय आश्वासय
नरकमहाभयान् मां उद्धर उद्धर
अमृतकटाक्षवीक्षणेन मां-
आलोकय आलोकय संजीवय संजीवय
क्षुत्तृष्णार्तं मां आप्यायय आप्यायय
दुःखातुरं मां आनन्दय आनन्दय
शिवकवचेन मां आच्छादय आच्छादय

 हर हर मृत्युंजय त्र्यम्बक सदाशिव परमशिव नमस्ते नमस्ते नमः ..

Tuesday, October 4, 2011

SOOKSHM JEEVA PAARAD GUTIUKA

SOOKSHM JEEVA PAARAD GUTIUKA
===============================
रक्त बिंदु ,श्वेत बिंदु रहस्य को आत्मसात करने का प्रयत्न करते हुए मैं जब सदगुरुदेव के
चरण कमलो में पुनः उपस्थित हुआ ,तब सदगुरुदेव ने कहा की कैसी रही तेरी यात्रा ........
मैंने कहा -आपके आशीर्वाद से सभी कुछ अत्यंत सरल हो जाता है. मुझे उम्मीद नहीं थी की वे महानुभाव मुझे इतनी सहजता से इस रहस्यों को बता देंगे.( मुझे याद है की मैंने
इसी लेखश्रृंखला में श्वेत बिंदु और रक्त बिंदु से जुड़ेधातुवाद के रहस्यों और कुछ क्रियाओं का वर्णन करने के लिए कहा था , भविष्य में सदगुरुदेव की इच्छा से उन रहस्यों को अवश्य ही मैं आप सभी के समक्ष अवश्य ही उद्घाटित करूँगा . वास्तव में वे रहस्य ग्रंथों में हैं ही नहीं . और यदि किसी ग्रन्थ में हैं तो वे ग्रन्थ ही अप्रकाशित हैं. उन
सूत्रों का विवरण सिद्ध नागार्जुन प्रणीत "स्वर्ण प्रदीपिका" में है जो की अप्राप्य
ही है और सम्पूर्ण विश्व में उसग्रन्थ की मात्र तीन ही प्रतियाँ हैं.)
परन्तु मेरे बेटे क्या उस विषय से सम्बंधित सभी समस्याओं का समाधान हो गया है.... क्या कोई और जिज्ञासा नहीं है- मुझे देखते हुए सदगुरुदेव ने मुस्कुराकर पूछा.
हे मेरे प्राणाधार मैंअबोध बालकहूँ, आपकी कृपासेमुझेइस विषय काभान होता है. मुझे ये विषय समझ में तोआयापरन्तु कई जिज्ञासाऐसी भी हैंजिनकासमाधानआप ही कर सकते हैं.
वो क्या भला?????
विधि का अभ्यास तो मैंने उन महानुभावके निर्देशानुसार भी किया.और मुझे थोड़ी सफलता भी मिली, परन्तु कई बारमेरे मनमें काम भाव की प्रबलताभी हो जातीथी, और तामसिकभाव का प्रस्फुटन भी . जैसे ही ध्यानपथ पर सुषुम्नाआगे बढती थी तो अचानकऐसालगता थाकी जैसे किसीने उसकी गतिरोकदी हो ....... ऐसा क्यूँ
होता था.....?????
अच्छाये बताओ की चक्र भेदक सूत्र का संचरण पथ कहाँपर है???
जीमेरुदंड में .....
जब ये कुंडली भेदक नाडी मेरु दंड के मध्य से होकर गुजरती है तो इसका पथ बिलकुल स्पष्ट और सीधा होना चाहिए. इसी कारण साधक को या योग मार्ग के अभ्यासी को बिलकुल सीधा बैठने के लिए कहा जाता है .शास्त्रों का ये कथन अन्यथा नहीं है समझ गए.
जी बिलकुल.
हमारे मेरुदंड में ८४ मोती रूपी छिद्र युक्त अस्थियां होती हैं जिनके मध्य से ये चक्र भेदी नाडी होती है एक माला के समान ये सभी अस्थियों को जोड़ कर रखती है . जैसे हमारे शरीर की सभी ऐच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण मस्तिष्क करता है वैसे ही ये नाडी सभी अनचाही पर शरीर रक्षक क्रियाओं का
नियंत्रण करती है .मूलाधार से निकलकर इसकी पूर्णता त्रिकुट से होते हुए अमृतछत्र पर होती है. सभी दिव्य शक्तियों को ये अपने आपमें समाहित किये हुए होती है.सप्त चक्र हमारे सप्त शरीरों के द्योतक होते हैं .प्रत्येक शरीर का अपना रंग होता है .और इसी आधार पर सप्त रंगों और उनके उपरंगों की कल्पना की गयी है. उस अद्विय्तीय महालिंग का समाहितिकरण इतना सहज है ही नहीं जितना की सुनने में
लगता है .पर ये उससे भी ज्यादा सहज है जितना की तुमने सुना है ...
हैं भला ये विरोधाभास कैसे ???????????
देखो तुम्हे ये तो पता है की वो मेरुदंड ८४ अस्थियों का संयुक्त रूप है ,पर क्या ये पता है की वो अस्थियां क्या बताती हैं या उनकी क्या विशेषता है. नहीं ना .... तो सुनो प्रत्येक अस्थि १-१ लाख योनियों का प्रतीक हैं उनके गुणों से युक्त हैं अर्थात भू तत्व के गुणों को लिए हुए या रेंगने वाले जीवों के गुणों से
उतरोत्तर बढते हुए आकाश तत्व के गुणों से युक्त या नभचर जीवों के गुणों युक्त योनियों की विशेषताओं को लिए हुए.प्रत्येक अस्थि एक दुसरे से संपृक्त होती है. जब हम साधना के लिए आसन लगते हैं तो मेरुदंड को सीधा रख कर मन्त्र करने पर उस कुंडलिनी शक्ति का स्फोट होता है और वो उर्ध्व गामी होती है तब चक्रों का भेदन करती हुयी त्रिकुटचक्र तक पहुचती है, पर ये तभी संभव हो पाता है जब कुंडलिनी
पथ में किसी प्रकार का अवरोध न हो और ये सूत्र मूलाधार से सीधे अन्य चक्रों का भेदन करता हुआ आज्ञा चक्र तक पहुचे. यदि इस यात्रा के मध्य हमारे आसन की स्थिति में या बैठने की स्थिति में कोई भी परिवर्तन आता है तो ये सूत्र जिस भी योनि के गुणों से भरे हुए अस्थि पिंड को स्पर्श करती है साधक में साधना काल के मध्य उन्ही गुणों का प्रस्फुटन होने लगता है और उसको वैसी ही अनुभूति होती है .
जैसे निम्न योनियों जो की पूर्णतः पृथ्वी तत्व से या भू-जल तत्व के गुणों से युक्त योनियों की उपस्थिति वाली अस्थि के अन्तः भाग से स्पर्श होने पर काम भाव का अधिक संचार होता है और ये काम भाव सम्बंधित शक्ति या देवी-देवता जिनकी आप साधना कर रहे हैं उनके लिए भी वासना युक्त विचारों के द्वारा दिखाई पड़ते हैं. इस लिए प्रत्येक साधना का अपना एक बैठने का तरीका होता है जो
उस तत्व विशेष के चक्रों को ही स्पर्श करता हुआ ऊपर अग्रसर करता है उस शक्ति को .
जैसे ही हम हिलते हैं या आसन बदलते हैं शक्ति का मार्ग भी उस सूत्र के हिलने से विकार युक्त हो जाता है.
मन्त्र जप के कारण आंतरिक उर्जा का निर्माण होता है जिससे निर्मित अग्नि उन चक्रों के नकारात्मक प्रभाव को समाप्त कर दिव्य गुणों को प्रस्फुटित करती है. और सभी तत्वों की शक्तियों से साधक अजेय ही हो जाता है .पूर्णता के पथ पर पहुच जाता है . यही ब्रह्माण्ड भेदन का मार्ग है जिसके द्वारा हम उस अमृतछत्र
से या त्रिकुट से हम वापस प्रत्यावर्तन कर मूलाधार तक आते हैं. और यही प्रत्यावर्तन साधक की कुंडलिनी यात्रा को पूर्ण करता है. जब आप कल्प्नायोग के माध्यम से उस उस महालिंग को परमाणु और विद्युत कणों में भी परिवर्तित कर आप श्वास पथ के द्वारा या ब्रह्माण्ड पथ के द्वारा आप महायोनि (त्रिकोण) या मूलाधार तक लाकर उस महालिंग का स्वशरीर में स्थित लिंग में स्थापन करते हैं तो इसी पथ के
द्वारा उसका पुनः पुनः बाह्य और अन्तः भौतिक प्राकट्य किया जा सकता है. समझ गए.
ह्म्म्म पर सदगुरुदेव यदि कोशिश करने पर भी वो कुंडलिनी प्राण सूत्र त्रिकुट तक बिना अवरोध के नहीं पहुच रहा हो तब क्या करना चाहिए???????
सिद्ध साधकों को बाह्य उपादानो की आवश्यकता नहीं होती है क्यूंकि वो अपने साधना जीवन का प्रारंभ ही आसन सिद्धि के बाद करते हैं. पर वे भी सुरक्षा के लिए पारद गुटिका को स्पर्श कराते रहते हैं अपने शरीर पर. जिससे उनका सूत्र उर्जा युक्त बना रहता है और बाह्य या आंतरिक परिवर्तन से वो मुक्त रहता है. साथ
ही सूक्ष्म शरीर की रक्षा भी करता है तथा अनंत शक्ति संपन्न भी बनाये रखता है ऐसा पारद मौक्तिक. पारद उर्ध्वगामी होता है अर्थात ऊष्मा पाकर ऊपर उठाना उसका स्वाभाव है . अतः वो उस सूत्र को भी उर्ध्वगामी बनाये रखता है.जब सन्यासियों के लिए ये इतना उपयोगी है तो भला सामान्य गृहस्थों के लिए तो ये वरदान ही है . अनेकानेक शक्तियों का
संयुक्त रूप ही होती है ये गुटिका. जो एक सामान्य साधक को भी अल्प प्रयास में आसन सिद्धि तथा सूक्ष्म शरीर सिद्धि तक पंहुचा देती है और अन्य कई भौतिक जीवन की उपलब्धियां भी भर देती है साधक की झोली में,

इस गुटिका का नाम क्या है गुरुदेव् और इसका निर्माण कैसे किया जाता है???????
इस गुटिका को सिद्ध समाज में सूक्ष्म जीवा पारद गुटिका के नाम से जाना जाता है. पारद से ही पूर्णता मिल सकती है समाज को ये हमें भली भांति समझ लेना चाहिए. सर्वप्रथम ११ संस्कार युक्त पारद लेकर उसका मर्दन सिद्ध मूलिकाओं तथा दिव्य औषधियों में करना चाहिए जिससे
की दिव्य गुणों से युक्त होकर वो हमारे सभी मनोरथ को पूर्ण कर सके . फिर विभिन्न रत्नों का ग्रास देना चाहिए. ये कोई प्रथा या ढकोसला नहीं है .बल्कि रत्न ग्रास के पीछे अत्यधिक सूक्ष्म रहस्य छुपा हुआ है रस तंत्र में . रत्न विभिन्न शक्तियों से युक्त होते हैं. जैसे माणिक्य शराब के नशे को समाप्त कर संक्रामक रोगों से भी मुक्त करता है और देता है भूख प्यास पर नियंत्रण की क्षमता तथा
हमेशा तरोताजगी . पन्ना नशे को बढ़ा देता और जहर के असर को दूर करता है.मोती और मूंगा लक्ष्मी के सहोदर हैं जो की सम्पन्नता युक्त कर नेत्र शक्ति में वृद्धि करते हैं,उर्जा को उर्ध्वगामी कर कुंडलिनी शक्ति के द्वारा चक्रों के भेदन में सहायक होते है. ये रत्न सौम्यता और विनम्रता के साथ मनोबल तथा साहस भी प्रदान करते हैं. यदि मात्र मूंगे को ही लक्ष्मी मन्त्र या यक्षिणी मन्त्रों से
सिद्ध कर धारण कर लिया जाये तो जीवन में भौतिक सुखों का आभाव रह ही नहीं सकता. नीलम शारीरिक बल में वृद्धि कर तंत्र बाधा से रक्षा करता है पुखराज रक्त विकार को दूर कर गुदा रोग तथा कुष्ट से भी मुक्त करता है साथ ही भाग्योदय भी करता है पन्ना वाक् सिद्धि में सहायक है.हीरा पूर्णता देता है और खेच्ररत्व में वातावरण के अनुकूल बनाकर कवचित भी करता है तो वैक्रान्त रस शास्त्र में पूर्णता
तथा प्रत्यावर्तन में सफलता भी चाहे वो धातुवाद हो या फिर हो देहवाद. इन रत्नों का ग्रास पारद तभी सहजता से ले पाता है जब गुरु अपने प्राणों का घर्षण कर शिष्य को बीज मन्त्र प्रदान करे तथा औषधियों के मर्दन से लेकर अंत तक इन बीज मन्त्रों का जप होना चाहिए तभी वो गुटिका फल प्रद होती है . यदि घाव के कारण खून बंद नहीं हो रहा हो या मवाद बन रहा हो तो ऐसी गुटिका को फेरने से
तत्काल लाभ होता है (प्रत्यक्षम किम प्रमाणं) ,तत्पश्चात गजपुट में पकाकर उस गुटिका को पूर्णता दी जाती है तथा रसेश्वरी मन्त्र का जप कर उसे सिद्ध कर दिया जाता है .अत्यंत सौभाग शाली व्यक्ति को ही ऐसी गुटिका प्राप्त होती है जिसके आगे सम्पूर्ण वैभव भी फीके पड़ जाते हैं. ऐसी गुटिका का स्पर्श ही आपको श्वेत बिंदु रक्त बिंदु और कई दिव्य क्रियाओं में सफलता देता है और
देता है धातुवाद में सफलता भी. जो किसी भी कीमियागर का लक्ष्य होत्ती है. सदगुरुदेव के निर्देशानुसार इस गुटिका का सफलतापूर्वक निर्माण कर मैंने उस सफलता को भी प्राप्त किया जो शायद बगैर उनके आशीर्वाद के संभव ही नहीं थी और ये तो नितांत सत्य है की बहुत से सूत्र ग्रंथों में हैं ही नहीं , यदि कही वे सुरक्षित हैं तो मात्र हमारे प्राणाधार सदगुरुदेव के कंठ में . ये हमारी जिम्मेदारी
है की उन सूत्रों को प्राप्त कर हम उनका संरक्षण करे आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी.यही हमारा शिष्य धर्म भी है.
मुझे याद है की ब्रह्मत्व साधना शिविर में सदगुरुदेव ने १९८७ में इस गुटिका पर करुणा के वशीभूत होकर सूक्ष्म शरीर सिद्धि क्रिया तथा चक्र जागरण क्रिया करवाई थी . इस गुटिका की प्राप्ति ही सौभाग्य दायक है . तथा निश्चिन्तता भी पूर्णता पाने की . और तभी तो श्वेत
बिंदु रक्त बिंदु की क्रिया सहजता से पूरी हो पाती है.
इस गुटिका को धारण कर हम अपने अभीष्ट को प्राप्त कर सकते हैं. यदि सच में जीवन को हीरे की कलम से संवारना है ,लिखना है अपने ललाट पर सौभाग्य तो आइये आगे बढे और ऐसी दिव्य गुटिका को प्राप्त कर दुर्भाग्य मिटा कर सफलता लिखें और इन सूत्रों को सदगुरुदेव से प्राप्त कर
अपने जीवन को पूर्णता दे.