Thursday, September 19, 2013

ye kesi parikesha ये कैसी परिक्षा स्वामी प्रेम आनन्द

ये कैसी परिक्षा-----स्वामी प्रेम आनन्द 

आज गुरु जी आश्रम में ही है, मगर ज्यादा लोगो को मालूम ना होने के कारण भीड़ बहुत कम है! सब लोग दोपहर का भोजन करके आराम कर रहे थे, इसलिए ना बाहर ज्यादा भीड़ थी और ना ही अंदर! मेरे पास गुरु जी का सन्देश आया कि आनन्द तुम्हे गुरूजी बुला रहे है! मै गुरूजी के पास ऊपर गया तो गुरु जी बड़े अच्छे मुड में बैठे थे...और जब गुरूजी अच्छे मुड में होते है तो कुछ ना कुछ शरारत जरुर करते है!
मै थोडा सावधान हो गया...चरण स्पर्स करके बैठ गया! थोड़ी देर गुरूजी इधर-उधर की बात करते रहे फिर बोले--आनन्द नीचे एक लड़का आया है ...ये लड़का सही नहीं है इसके एक थप्पड़ मार कर आश्रम के बाहर निकाल देना, और गेट बंद कर देना ताकि ये यहाँ ना आये! ये काम मेरे लिए बहुत कठिन था, किसी से मारपीट करना मुझे जरा भी नहीं सुहाता...मगर अब में क्या करू?
मैंने कहा--जी प्रभु, में बिना मारे उसको बाहर निकाल दूँ!
गुरूजी नहीं--वो थप्पड़ की भाषा ही समझता है!
मैंने कहा--जी प्रभु! और मै नीचे आ गया!
नीचे आकर जब मैंने उस लड़के को देखा तो मेरी हिम्मत जवाब दे गई, ये लड़का तो मुझसे बहुत प्रेम करता है और बहुत अच्छा लड़का है...अब मै करू तो क्या करू? मै समझ गया कि गुरूजी ने परिक्षा का खेल शुरू कर दिया है! अब मै उसे थप्पड़ मरता हूँ तो भी पाप और ना मारू तो भी पाप.....करू तो क्या करू, मै गुरु चित्र के सामने ध्यान लगा कर प्रार्थना करने लगा कि प्रभु मुझे रास्ता दिखाओ कि मै इस परिक्षा में पास हो जाऊ!
अचानक मुझे ख्याल आया और मैंने मन ही मन गुरूजी से कहा—प्रभु मेरी अंतर आत्मा इस लड़के से गलत व्यवहार करने के लिए तैयार नहीं है, मगर मै केवल आपकी आज्ञा का ही पालन कर रहा हूँ इसलिए चाहे ये पाप हो या पुन्य सारी जिम्मेदारी केवल आपकी होगी ...मेरी नहीं, क्योकि मै दिल से तो इस लड़के के थप्पड़ मरना ही नहीं चाहता! अब मै लड़के के पास गया, तो लड़का मुझे देखकर बहुत खुश हुआ और बोला कैसे हो आनन्द जी?
मैंने उससे कहा--- तुम इसी वक्त आश्रम से बाहर चले जाओ....
लड़का—क्या बात हो गई आनन्द जी..आप गुस्से में क्यों है?
मैंने कहा—बकवास नहीं करना और तुरंत यहाँ से चले जाना ....
लड़का ----आप मुझे आश्रम से ऐसे-कैसे निकाल सकते हो?
मैंने अपना मन मजबूत किया और उसके एक धीरे से थप्पड़ लगा दिया और पकड़ कर गेट पर ले गया और बाहर निकाल कर गेट बंद कर दिया! मैंने चुपचाप उस लड़के को देखा तो उसकी आँखों में आंसू थे....मै भी नीचे हाल में जाकर बहुत रोया---कि प्रभु ये किसी परिक्षा...........
दूसरे दिन उसी लड़के का फोन आया और बोला—आनन्द जी मै रात भर सो नहीं सका हूँ बस मुझे इतना बतादो कि मेरा कसूर क्या था? मैंने कहा---तुम्हारा कोई कसूर नहीं था, ये गुरूजी ने मुझे आज्ञा दी थी..मैंने बहुत मजबूर होकर ऐसा किया, मुझे माफ कर देना....मैंने ये भी कहा—कि ये मेरी और तुम्हारी हम दोनों की परिक्षा थी..जो तुमने भी प्रतिक्रिया न करके पास करली और मैंने भी अपना ह्रदय गुरु जी के सामने खोल दिया....और अपना सच गुरु जी को बताकर मैंने भी ये परिक्षा पास करली....अब तुम चिंता ना करो, जब मन करे यहाँ आना!
नोट—प्रिय बन्धुओ हमारी मानवता को परखने के लिए गुरुदेव कैसी-कैसी परिक्षा लेते थे, मै आपको क्या बताऊ, गुरु का कर्तव्य है कि वो शिष्य की परिक्षा और शिष्य का भी कर्तव्य होता है कि वो परिक्षा दे और उसमे पास हो! गुरु को जितनी प्रसंसा स्वयं के हारने की होती है उतना ही दुःख स्वयं के जीतने का भी होता है! इसलिए मै आप सभी को सचेत करना चाहता हूँ कि आप सब सावधानी पूर्वक संसार में सबसे व्यवहार करे....क्योकि यहाँ हर दिल में गुरुदेव विराजमान है.....ये सौ प्रतिसत सत्य बोल रहा हूँ!
समाप्त

Prem Anand Ji

Prem Anand Ji
प्रिय आलोचक महोदय,
आपने गुरुदेव के बारे में बहुत सुन्दर लिखा है, किस खूबसूरती से तुमने सत्य को असत्य कहने का प्रयास किया है...इससे ये तो पता चल ही गया कि तुम वास्तव में ही उच्चकोटि के धूर्त हो.... मुझे पढकर बहुत आनन्द आया.... तुम्हारी सिद्धि और समझ की भी जानकारी मुझे एक ही पल में मिल गई! क्या आपने जो साधनाए प्रकाशित की है वो सब आपको सिद्द है? यदि हां तो मै आपका शिष्य बनने के लिए तैयार हूँ...मैंने अपने गुरु की दस साल सेवा की है, मै आपकी बीस साल करूँगा...पर जो कुछ भी मुझे मेरे गुरु ने बनाया है और दिखाया है क्या तुम मुझे वो दिखा सकते हो!
अब फेसला मेरे और तुम्हारे बीच में नहीं हजारों लोगो के बीच में होगा, चेलेंज में दम होना चाहिए ...मै जान की बाजी लगाकर खेलूंगा ...मंजूर हो तो जबाब देना...यदि सिद्धाश्रम देखने की इच्छा हो तुम्हे मेरे साथ अपनी जान की बाजी लगानी होगी! सब कुछ त्यागना होगा ...मेरे साथ फकीरी धारण करनी होगी ....और गुरु चरणों में समर्पित होना होगा....मै भी अपना सब कुछ त्याग कर चलूँगा....और कभी ना लोटने के लिए चलूँगा! मै आपसे इतना ही पूछना चाहता हूँ...कि क्या आपको शास्त्र ज्ञान के अलावा भी कुछ है? जैसे आत्मज्ञान...सत्य का ज्ञान या बोध आदि ...
आपके चरणों का तुच्छ सेवक---स्वामी प्रेम आनन्द

people so fiercely opposed to this law do?

जय गुरुदेव
आज एक भाई की पोस्ट पढ़ी इनका नाम तो मेने बड़े बड़े ज्ञानियों की लिस्ट में देखा था सोचा था ये भी बड़े ज्ञानी पुरुष होंगे पर इन्होने भी अपनी अज्ञानता दिखा दी। कुछ लोगो के सवाल है गुरुदेव के बारेमे उनके जवाब मैं देनेका साहस कर रहा हु। मैं हर पंथ का सन्मान करता हु। क्यों की तंत्र मेरे शिव शम्भू ने बनाया है अगर वो नहीं बनाते तो ये पंथ वैगेरा भी न होते आज .

सबसे पहले ये बताना चाहूँगा की यह लोग नारायण दत्त श्रीमाली जी का इतना विरोध क्यों करते है?
दुनिया में धर्म के नाम पर पाखंड करने वाले बोहोत है पर फिर भी इनका टारगेट श्रीमाली जी ही क्यों?
इसका उत्तर है इनका निजी उदरभरण जो की इनके ज्ञान से होता था वो रुक सा गया। जो कमाई ये अपने दीक्षा से ली हुई ज्ञान से करते थे वो बंद हो गया जैसे वशीकरण, मरण और षट्कर्म जैसे बाते जो सिर्फ पहले इन्हें ही आती है और यही इसके ज्ञाता है ऐसा जाना जाता था। और इसके बल पर भोली भली जनता से रूपया ऐत्हते थे। श्रीमाली जी ने इस गुप्त विद्या का प्रसार किया और इनका हर शिष्य सहजता से षट्कर्म करने लगा। जिससे इनकी कमाई रुक गयी। अब श्रीमाली जी नहीं रहे तो ये उनको पाखंडी बताने में लगे है। श्रीमाली जी के वजह से घर घर में तंत्र को जानने वाला मिलने लगा। जिस छोटे मंत्र पर इनकी कमाई होती थी वो तो श्रीमाली जी के शिष्य टाईमपास में उपयोग में लाते है। अब जब की श्रीमाली जी नहीं रहे तो ये उनपर कीचड़ उचल उछल कर अपनी खोयी हुई इज्ज़त पा रहे है। प्रयत्न करके देखने दो ध्यान मत दो।

अब जरा इनके साईट पर दिए हुए इनके पर्दाफाश पर नजर डालते है।
पहला प्रश्न है की निखिलेश्वरानंद नाम एक मनघडंत नाम है। 
तो मैं कहता हु तेरा क्या जा रहा है ? आज इसी नाम से हजारो लोग एक होते है , सबका जीवन सुख शांति से चल रहा है। अध्यात्मिक प्रगति कर रहे है। और देवताओ के फोटो भी कंप्यूटर से ही बनते है गावठी कही के। .... वो फोटो स्टूडियो नहीं आते और अध्यात्म का कोई पंथ नहीं होता न शैव न वैष्णव इतना तो सिख ही होगा तूने। …स्मयिल प्लीज हा हा 

दूसरा प्रश्न इसने पूछा है की शिव पूरण में निखिलेश्वर और सच्चिदानंद के नामो का उल्लेख नहीं है। 
अब मैं तुझसे पूछता हु की कहते है हमारे तैतीस करोड़ देवता है सबके नाम शिवपुराण में है? क्या आपको सब पेर्सोनाली मिले है। क्या आपकी मीटिंग की एक दो तस्वीरे दिखाएङ्गे प्लीज ? 

अब इसने तीसरा सवाल पूछा है की गुरुमंत्र सभा में क्यों देते थे और दीक्षा क्यों बेचते थे ?
तो सुन प्यारे , हमारा गुरुमंत्र अगर सभा में चिल्लाकर भी बोलो न उतना ही पावरफुल है। जरा दिल से ३ बार बोलकर देखना जब भी परेशानी में होगा तू भले ही निखिल विरोधी हो तू उस परेशानी से मुक्त हो जायेगा बस श्रध्हा दिखा। अब रही बात दीक्षा की की क्यों बेचते है ? आज का जमाना हर बात को पैसे में गिनता है फुकट की कोई वैल्यू नहीं है। जब तक १० का वड़ापाव के ऍफ़ सी और एम् सी दी में जाकर न खाओ और १०-२० लोगो को अपना स्टेटस न दिखाओ तबतक इनको चैन नहीं अत। अगर फ्री में दीक्षा देते तो लोग कहते अरे अब तो दीक्षा मिली है भगवन की कृपा हो जाएगी। आलसी लोग है कलियुग के श्रम करना पसंद नहीं। इसलिए उसका कुछ मूल्य लगाया जिससे वो उस मूल्य की वजह से तो इश्वर का नाम लेंगे और उसी वजह से उनका कल्याण होगा। 

चौथा सवाल इस ग्यानी ने पूछा क्या दस महाविद्या सिद्ध थी?
मुझे तो नहीं पता मैं तेरे जैसा महँ सिद्ध नहीं हु। तुझे इतना ही सवाल आ रहा है तो तूने सिद्ध की हुए पिरो से पूछ ले न हजरत लगाकर 
पाचवे सवाल का उत्तर भी तेरे पिरो से ही पुच और कर्न्पिशाच्निया तो होंगी ही सिद्ध तुझे।

छटवे सवाल है स्वर्ण बनाना जानते थे तो पैसे क्यों वसूलते थे ?
कुछ मेरे जैसे लालची लोग होते है जो स्वर्ण बनाकर पैसा कमाना चाहते है। श्रीमाली जी ने कुछ लोगो को मुफ्त में सिखाया भी स्वर्ण बनाना वो लोग अभी गायब है। मेरे जैसे ही थे हाहा 

सातवा सवाल है महाज्ञानी का की श्रीमाली जी त्रिकालदर्शी थे?
तो सुन लल्लू , त्रिकाल दर्शी राम भी थे तो क्यों उन्होंने सीता का अपहरण होनेके बाद भी उन्हें धुंडने की कोशिश की ? १४ साल तक क्यों घूमते रहे वनों में ? चाहते तो एक जगह बैठकर हनुमान का वेट कर सकते थे। पर नहीं उन्होंने ऐसा नहीं किया क्यों की वह उनका मानव अवतार था जो एक सामान्य मानव को दुःख भोगने चाहिए wah उन्होंने भगवान् होकर भी भोगे। चाहे वो खुद जगत के पालन हार विष्णु ही क्यों न हो। और जो भी रेड वैगेरा पड़ी वो भी जरा मत सीताजी के अपहरण के तरह एक म्याटर समझ ले। हाहा अब इन्फोर्मेशन एक्ट के कागज लाना है तो ला बोहोत मिल जायेंगे। 

आठवी बात है निखिल शिष्य साधना चुराकर साईट पर डालते है और पैसा कमाते है। 
ये बता तू साईट बनाकर क्या अंडे दे रहा है ? तू भी तो धंदा कर रहा है। ….तुम करो तो कुछ नहीं हम करो तो क्यारेक्टर ढीला है हाहा 

नौवा प्रश्न पुत्रो को गुरु बनाने के बारेमे 
अरे कलियुग में अग्नि प्रज्वलन वरुण देव आवाहन पापियों को कैसे दिखेगा? और ये बता तू जो भी साधनाए करता है उसको तू खुद ही महसूस करता है या दुसरो को भी करवा सकता है ? 

१० व प्रश्न है खुद को भगवन से बड़ा बताया 
तो यह बात तो तुझे पता होगी वो एक गुरु थे तो वो तो शिव से भी बड़े हुए। उन्होंने वह वाक्य एक गुरु के भाव से कहा ना की साधारण मनुष्य के। तुझे ये भी नहीं पता की गुरु ही ब्रह्मा विष्णु महेश होते है। 

और किताबे पढ़ ले अच्छी किताबे है और मित्रो से मांग मांग कर ही पढ़ तू खुद नहीं ले सकता हाहा जरा विचार कर नए नए सवाल बना इनफार्मेशन एक्ट लेकर आ। जो उखड सकता है उखड ले। 

निखिल है निखिल था निखिल रहेगा। 
तू शेरो के साथ नहीं रहता तू उनमेसे ही एक है पर शेरो का एक भी गुण तुझमे नहीं तू भेडिया है

तुम पूछो और सवाल मैं हु यहाँ उत्तर देने के लिए। 
एक डायलोग सुना होगा शूट आउट एट वडाला का 
"तुम गलत करोगे हम रोकेंगे तुम गुनाह करोगे हम ठोकेंगे 
हम है तो तुम हो और हमारा ये लफड़ा चलता रहेगा चलता रहेगा चलता रहेगा।" ….
पर इसमें हम अपने गुरुओ को बिच में नहीं लाते ना ही किसी और के गुरु का अपमान करते है हमें हमारे गुरुने सिखाया है की हर गुरु को अपना गुरु मानो , गुरु शिव स्वरुप होते है 
आपने मेरे गुरु का इतना अपमान किया फिर भी मैंने आपके गुरु के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोला यह है मेरे निखिल के संस्कार 

हम है राही प्यार फिर मिलेंगे चलते चलते 

ॐ नमः शिवाय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 
जय सदगुरुदेव by SHIVAMSH NIKHILAMSH RAJ