सिद्धाश्रम पञ्चक
गुरूत्वम् सदैवम् पुर्णा तदैवम्।
भाग्येन् देवो भवदेव नित्यम्।।
अहो भवाम् परीपूर्ण सिन्धुम्।
गुरूत्वम् शरण्यम् गुरुत्वम शरण्यम्।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव..........
त्वम् मातृ रुपम् पितृ स्वरुपम्।
बन्धु स्वरुपम् आत्म स्वरुपम्।।
चैतन्य रुपम् पूर्णत्व रुपम्।
गुरूत्वम् शरण्यम् गुरुत्वम् शरण्यम्।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव.........
न तातो न माता न बन्धुर्न भ्राता।
न पुत्रो न पुत्री न भृत्योर्न भर्ता।।
न जाया न वित्तम न वृत्तिर्ममेवम्।
गतिस्त्वम् मतिस्त्वम् गुरूत्वम् शरण्यम्।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव.........
अनाथो दरिद्रो जरा रोग युक्तो।
महाक्षीण दीन सदा जाड्यवक्ता।।
विपत्ती प्रविष्ट सदाहम् भजामी।
गुरूत्वम् शरण्यम् गुरूत्वम् शरण्यम्।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव.........
त्वम् मातृ रुपम् त्वम् पितृ रुपम्।
सदैवम् सदैवम् कृपा सिन्धु रुपम्।।
त्वमेवम् शरण्यम् त्वमेवम् शरण्यम्।
गुरूत्वम् सदैवम् गुरूत्वम् शरण्यम्।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव.........
न जानामी मन्त्रम् न जानामी तन्त्रम्।
न योगम् न पूजा न ध्यानम् वदामी।।
न जानामी चैतन्य ज्ञानम् स्वरुपम्।
एकोही रुपम् गुरूत्वम् शरण्यम्।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव.........
एकोही नामम् एकोही कार्यम्।
एकोही ध्यानम् एकोही ज्ञानम्।।
आज्ञा सदैवम् परिपाल्यन्तिम्।
त्वमेवम् शरण्यम् त्वमेवम् शरण्यम्।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव.........
त्वम् ज्ञात रुपम् त्वम् अज्ञात रुपम्।
मम देह रुपम् मम प्राण रुपम्।।
पूर्णत्व देहम मम प्राण सदेवम्।
त्वमेवम् शरण्यम् गुरूत्वम् शरण्यम्।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव.........