जब भी गुरु पुष्य नक्षत्र हो ,उस अवसर पर पाठकों के लिए प्रस्तुत है
गुरु-पुष्य नक्षत्र कि महत्वता को दर्शाता ये महत्वपूर्ण लेख -
गुरु-पुष्य नक्षत्र योग क्या है
‘पाणिनी संहिता’ में “पुष्य सिद्धौ नक्षत्रे” के बारे में यह लिखा है-
सिध्यन्ति अस्मिन् सर्वाणि कार्याणि सिध्यः | पुष्यन्ति अस्मिन् सर्वाणि कार्याणि इति पुष्य ||
अर्थात पुष्य नक्षत्र में शुरू किये गए सभी कार्य सिद्ध होते ही हैं.. फलीभूत होते ही हैं | पुष्य शब्द का अर्थ ही है कि जो अपने आप में परिपूर्ण है.. सबल है.. पूर्ण सक्षम और पुष्टिकारक है..| हिंदी शब्दकोष में ‘पुष्टी’ शब्द का निर्माण संस्कृत के इसी पुष्य शब्द से हुआ | २७ नक्षत्रों में से एक ‘पुष्य नक्षत्र’ है, और इस दिन जब गुरुवार भी हो तो उसे गुरु पुष्य नक्षत्र या ‘गुरु पुष्यामृत योग’ कहते हैं | इस दिन कोई भी साधना अवश्य शुरू करें, और आँख मूँद कर उसकी सिद्धि का यकीन करें और पूर्ण तन्मयता के साथ सहना संपन्न करें | गरूर साधना और गुरु पूजन तो प्रत्येक शिष्य को इस दिन करना अनिवार्य ही है |
पूज्य गुरुदेव ने गुरु पुष्य की विशेषता स्पष्ट करते हुए कहा है, कि सभी योग विरुद्ध हों, तो भी पुष्य नक्षत्र में किया गया कार्य सिद्ध हो जाता है | पुष्य नक्षत्र अन्य सभी योगों के दोषों को दूर कर देता है, और पुष्य के गुण किसी भी दुर्योग द्वारा नष्ट नहीं हो सकते !
गुरु पुष्य में कौन सी साधना संपन्न करें ?
सामान्य लोग इस दिन स्वर्ण खरीदते हैं, यदि धनतेरस के दिन स्वर्ण/रजत नहीं खरीद पाए तो इस दिन खरीद सकते हैं, इससे भी निरंतर श्री वृद्धि होती रहती है | इसके साथ ही कोई नई वस्तु, नया कारोबार, वाहन गृह प्रवेश आदि कर सकते हैं, इस दिन जो भी खरीदते हैं वह स्थायी संपत्ति सिद्ध होती है |
साधकों को इस दिन लक्ष्मी या श्री से सम्बंधित साधना करनी चाहिए | साथ ही किसी भी प्रकार की साधना चाहे सौन्दर्य से सम्बंधित हो, कार्य सिद्धि हो, विद्या प्राप्ति के लिए हो, कर सकते हैं | इस दिन आप किसी भी यन्त्र का लेखन करके उसको प्राण-प्रतिष्ठित कर सकते हैं | इस दिन आप किसी भी रत्न को सिद्ध कर सकते हैं |
शिष्यों को इस दिन गुरु पूजन और गुरु मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए |
गुरु पुष्य में क्या ‘नहीं’ करना चाहिए ?
सभी शुभ कार्यों को इस दिन संपन्न किया जा सकता है, केवल एक को छोड़कर..... ‘विवाह संस्कार’.. शाश्त्रों में उल्लेखित है कि एक श्राप के अनुसार इस दिन किया हुआ विवाह कभी भी सुखकारक नहीं हो सकता | माता सीता का प्रभु राम से विवाह इसी योग में हुआ था |
आखिर इस योग के सिद्धिदायक होने के पीछे रहस्य क्या है ??
इसका कारण यह है कि इस विशेष योग में जो नक्षत्र आकाश मंडल में मौजूद होता है, पुष्य नक्षत्र, इसके स्वामी ग्रह शनि हैं | शनि ग्रह स्थायित्व प्रदान करने वाले हैं.. इनकी चाल अत्यंत धीमी होती है, जो भी Astronomical Science के student हैं वे इस बात को भली प्रकार से जानते ही होंगे | और इस दिन गुरुवार हो, तो, गुरु जो स्वर्ण, धन, ज्ञान के प्रतीक हैं, और सर्व सिद्धिदायक हैं, जो सभी ग्रहों में सर्वाधिक शुभ फल दी वाले हैं, इनके प्रभाव से प्रत्येक कार्य सिद्ध भी होता है.. और शनि के कारण स्थायी भी होता है | शनि एकांत प्रदान करते हैं, जो कि साधना के लिए आवश्यक अंग है |