मैं तुम्हे गिडगीडाने वाला नहीं बनाना चाहता, मैं बना ही नहीं सकता। बन भी नहीं सकता, जब मैं खुद बना ही नहीं तो तुम्हे कैसे बनाउंगा। पहले हाथ उठाऊंगा नहीं, और हाथ उसका उठा और मेरे गाल तक पहुंचे उससे पहले छः थप्पड़ मार कर निचे गिरा दूंगा, आज भी इतनी ताक़त क्षमता रखता हूँ, आज से सौ साल बाद भी इतनी ही ताक़त, क्षमता रखूंगा आपके सामने।
सम्राट होते होंगे, मैंने देखा नही सम्राट कैसे होते है, मगर सम्राटों के सिर भी गुरू के चरणों मे झुकते है, उनके मुकुट भी गुरू के चरणों मे पड़ते हैं यदि वह सही अर्थों मे गुरू है, ज्ञान, चेतना युक्त है।
आज से हजारों वर्ष पहले सिंधु नदी के किनारे पहली बार आर्यों ने आंख खोली, हमारी पूर्वजों ने पहली बार अनुभव किया कि ज्ञान भी कुछ चीज़ होती है, पहली बार उन्होने एहसास किया कि जीवन मे कुछ उद्देश्य भी होता है, कुछ लक्ष्य भी होता है, तब उन्होने सबसे पहले गुरू मंत्र रचा, गुरू की ऋचाओँ को आवाहन किया। और भी देवताओं का कर सकते थे, भगवान रुद्र का कर सकते थे, विष्णु का कर सकते थे, उन ऋंषियों के सामने ब्रह्मा थे, इंद्र थे, वरुण थे, यम थे, कुबेर थे, सैकड़ों थे।
मगर सबसे पहले जिस मंत्र कि रचना कि या संसार मे सबसे पहले जिस मंत्र कि रचना हुई, वह गुरू मंत्र था।
जो कहूं वह करना ही है आपको। शास्त्रों ने कहा है- जैसे गुरू करे ऐसा आप मत करिए, जो गुरू कहे वह करिए। जो गुरू कहे वह करिए। आपको यह करना है तो करना है।
आप गुरू के बताए मार्ग चलेंगे, गतिशील होंगे, तो अवश्य आपको सफ़लता मिलेगी, गारंटी के साथ मिलेगी। और साधना आप पूर्ण धारण शक्ति के साथ करेंगे तो अवश्य ही पौरुषवान, हिम्मतवान, क्षमतावान बन सकते है। आप अपने जीवन मे उच्च से उच्च साधनाएं, मंत्र और तंत्र का ज्ञान गुरू से प्राप्त कर सके और प्राप्त ही नहीं करें, उसे धारण कर सकें, आत्मसात कर सके ऐसा मैं आपको ह्रदय से आर्शीवाद देता हूं, कल्यान कामना करता हूं
सम्राट होते होंगे, मैंने देखा नही सम्राट कैसे होते है, मगर सम्राटों के सिर भी गुरू के चरणों मे झुकते है, उनके मुकुट भी गुरू के चरणों मे पड़ते हैं यदि वह सही अर्थों मे गुरू है, ज्ञान, चेतना युक्त है।
आज से हजारों वर्ष पहले सिंधु नदी के किनारे पहली बार आर्यों ने आंख खोली, हमारी पूर्वजों ने पहली बार अनुभव किया कि ज्ञान भी कुछ चीज़ होती है, पहली बार उन्होने एहसास किया कि जीवन मे कुछ उद्देश्य भी होता है, कुछ लक्ष्य भी होता है, तब उन्होने सबसे पहले गुरू मंत्र रचा, गुरू की ऋचाओँ को आवाहन किया। और भी देवताओं का कर सकते थे, भगवान रुद्र का कर सकते थे, विष्णु का कर सकते थे, उन ऋंषियों के सामने ब्रह्मा थे, इंद्र थे, वरुण थे, यम थे, कुबेर थे, सैकड़ों थे।
मगर सबसे पहले जिस मंत्र कि रचना कि या संसार मे सबसे पहले जिस मंत्र कि रचना हुई, वह गुरू मंत्र था।
जो कहूं वह करना ही है आपको। शास्त्रों ने कहा है- जैसे गुरू करे ऐसा आप मत करिए, जो गुरू कहे वह करिए। जो गुरू कहे वह करिए। आपको यह करना है तो करना है।
आप गुरू के बताए मार्ग चलेंगे, गतिशील होंगे, तो अवश्य आपको सफ़लता मिलेगी, गारंटी के साथ मिलेगी। और साधना आप पूर्ण धारण शक्ति के साथ करेंगे तो अवश्य ही पौरुषवान, हिम्मतवान, क्षमतावान बन सकते है। आप अपने जीवन मे उच्च से उच्च साधनाएं, मंत्र और तंत्र का ज्ञान गुरू से प्राप्त कर सके और प्राप्त ही नहीं करें, उसे धारण कर सकें, आत्मसात कर सके ऐसा मैं आपको ह्रदय से आर्शीवाद देता हूं, कल्यान कामना करता हूं