Friday, December 16, 2011

Hanuman mantra for Defense spells

मैंने इस मंत्र का उपयोग बहुत से स्थानों में ,परिस्तिथियों में ,किया है और हर बार इस मंत्र ने अनुकूल परिणाम दिए है ,ये रक्षा मंत्र है
आप किसी भी बुरी परिस्तिथि में क्यों न हो ये मंत्र आप के लिए जरुर अनुकूल परिणाम देगा , यदि आप इस मंत्र का जाप मंगलवार,या शनिवार को करेंगे तो यह जल्दी परिणाम देगा ,,
"ॐ हं हनुमते नमः "

गुरु वचन:-

मैंने आकर संसार में धर्म अपना निभाया है,
इसी डगर पे चलकर अब मंजिल पाना है तुम्हे।
मैंने जला दी ज्ञान कि चिंगारी अब तेरे अन्दर
इस चिंगारी को शोला बनाना है तुम्हे।

Horoscopes and success in practice जन्मकुंडली और साधना में सफलता के योग

Now this information for our Astrology seekers....

जन्मकुंडली और साधना में सफलता के योग

संपूर्ण ब्रह्माण्ड १२ राशियों और २७ नक्षत्रों में विभाजित है , और हमारी जन्म कुंडली को भी उसी काल पुरुष का ही रूप मान कर १२ भागो में विभक्त किया गया है और इन्ही भागो में जिन्हें स्थान या भाव भी कहा जाता है, में ये नौ ग्रह स्थित हो कर अपना प्रभाव दिखाते हैं. प्रत्येक भाव में जो भी राशि होती है उस राशि का स्वामी भावेश कहलाता है . इन भावों में ग्रहों की स्थिति ही तो जीवन के ऐसे ऐसे खेल दिखाती है की बस पूछो मत ....................

और इन खेलों का पता हमें चलता कहाँ से हैं ..... हाँ भाई उसी लग्न स्थान से जो की जातक या पृथ्वी का प्रतीक है जन्म कुंडली में , और जहाँ से खड़ा होकर जातक देख सकता है भिन्न भिन्न स्थानों पर अवस्थित ग्रहों का प्रभाव . याद रखिये जन्मकुंडली की सत्यता और शुद्धता का निर्धारण गर्भ कुंडली या बीज कुंडली के द्वारा होता हैं अन्यथा सामान्य कुंडलियाँ तो मात्र दिल को बहलाने के ही काम आती हैं जिनके द्वारा ज्योतिष के अधिकांश सिद्धांत अनुमान मात्र ही रह जाते हैं ..... कारण साफ़ है क्योंकि जन्म समय की सत्यता कैसे की जाये , कैसे सही जन्म समय का निर्धारण किया जाये ....... ये अत्यंत ही दुष्कर कार्य है. अब जब जन्म समय ही शुद्ध नहीं होगा तो उस समय पर आधारित जन्मकुंडली से भला सही फल कथन कैसे किया जा सकता है . तब तो आपके द्वारा किया गया फलित मात्र अनुमान ही तो रह जायेगा ना.

यदि सही जन्म कुंडली हो तो फल कथन भी सत्य होगा और सत्य होगा जीवन के प्रत्येक पक्षों का दिग्दर्शन भी .

( चित्र में जनम कुंडली में जो भाव क्रमाक दिए गए हैं ,ये बदलते नहीं हैं ये स्थाई हैं , हाँ ये जरूर हैं की ,ज्योतिष की गणित के हिसाब से इन भाव में आने वाले अंक बदल जाते हैं. (जनम के समय के अनुसार ).अब आप पचम और नवम भाव देख सकते हैं,आप अपनी कुडली में lagna भाव स्थान पर क्या अंक लिखा हैं उन्हें देख ले, आप अपनी लग्न जान गए हैं.प्रिय मित्र यदि १ लिखा हैं तो मेष हैं, २ लिखा हैं तो वृषभ ,कृपया लिस्ट के अनुसार देख ले.)

इस लेख का आशय मात्र जातक की कुंडली के साधना पक्षों का अध्यन करना ही है , जिससे ये जाना जा सकता है की किस ग्रह स्थिति से कैसी साधना और किस पद्धति में सफलता मिलती है , इसकी जानकारी मात्र हो जाये. ये सूत्र सद्गुरुदेव द्वारा प्रदान किये गए हैं . जो की साधक को अपनी कुंडली देख कर सही पद्धति का निर्धारण करना सिखाते हैं( याद रखिये ये निर्धारण स्वयं के द्वारा का है क्यूंकि यदि हम गुरु के चरणों में उपस्थित होकर प्रार्थना करते हैं तो वो बिना किसी कुंडली के भी आपको उस पद्धति से परिचित करा देते हैं).

पिछले किसी लेख में मैंने आपको पंचम और नवम भाव से इष्ट का निर्धारण बताया था , आज हम कई अनछुए और नवीन सूत्रों के द्वारा अपने आध्यात्मिक जीवन का अध्यन करेंगे. तो शुरुआत करते हैं जन्म लग्न द्वारा इष्ट के निर्धारण से ......

1. मेष लग्न – सूर्य,दत्तात्रेय , गणेश
2. वृषभ- कुलदेव ,शनि
3. मिथुन-कुलदेव , कुबेर
4. कर्क- शिव, गणेश
5. सिंह- सूर्य
6. कन्या- कुलदेव
7. तुला- कुलदेवी
8. वृश्चिक- गणेश
9. धनु- सूर्य ,गणेश
10. मकर - कुबेर,हनुमंत,कुलदेव,शनि
11. कुम्भ- शनि, कुलदेवी,हनुमान
12. मीन- दत्तात्रेय,शिव,गणेश

यदि जन्मकुंडली में बलि ग्रह हो........

सूर्य तो व्यक्ति शक्ति उपासना कर अभीष्ट पाता है,
चंद्र हो तो तामसी साधनों में रूचि रखता है,
मंगल हो शिव उपासना
बुध हो तो तंत्र साधना में
गुरु हो तो साकार ब्रह्मोपासना में
शुक्र हो तो मंत्र साधना में
शनि हो तो मन्त्र तंत्र में निष्णात व विख्यात

इसी प्रकार..............

प्रथम भाव या चंद्रमा पर शनि की दृष्टि हो तो जातक सफल साधक होता है.

चंद्रमा नवम भाव में किसी भी ग्रह की दृष्टि से रहित हो तो व्यक्ति श्रेष्ट सन्यासी होता है.

दशम भाव का स्वामी सातवे घर में हो तो तांत्रिक साधना में सफलता मिलती है

नवमेश यदि बलवान होकर गुरु या शुक्र के साथ हो तो सफलता मिलती ही है.

दशमेश दो शुभ ग्रहों के मध्य हो तब भी सफलता प्राप्त होती है .

यदि सभी ग्रह चंद्रमा और ब्रहस्पति के मध्य हो तो तंत्र के बजाय मंत्र साधना ज्यादा अनुकूल रहती है .

केन्द्र या त्रिकोण में सभी ग्रह हो तो प्रयत्न करने पर सफलता मिलती ही है.

गुरु, मंगल और बुध का सम्बन्ध बनता हो तो सफलता मिलती है .

शुक्र व बुध नवम भाव में हो तो ब्रह्म साक्षात्कार होता है.

सूर्य उच्च का होकर लग्न के स्वामी के साथ हो तो व्यक्ति श्रेष्ट साधक होता है .

लग्न के स्वामी पर गुरु की दृष्टि हो तो मन्त्र मर्मज्ञ होता है.

दशम भाव का स्वामी दशम में ही हो तो साकार साधनों में सफलता मिलती है.

दशमेश शनि के साथ हो तो तामसी साधनों में सफलता मिलती है.

राहु अष्टम का हो तो व्यक्ति अद्भुत व गोपनीय तंत्र में प्रयत्नपूर्वक सफलता पा सकता है.

पंचम भाव से सूर्य का सम्बन्ध बन रहा हो तो शक्ति साधना में सफलता मिलती है.

नवम भाव में मंगल का सम्बन्ध तो शिवाराधक होकर सफलता पाता है.

नवम में शनि स्वराशि स्थित हो तो वृद्धावस्था में व्यक्ति प्रसिद्द सन्यासी बनता है.

पर में यहाँ एक बात आपके सामने रखना चाहूँगा ,एक कहानी के माध्यम से, सत्य घटना हैं,दतिया के आदरणीय पूज्य स्वामीजी महाराज का एक शिष्य उनके पास आया और कहा की वह कई साल से छिन्नमस्ता साधना कर रहा हैं पर सफलता उसे नहीं मिल रही हैं, उसे जबाब मिला माँ बगलामुखी की साधना करो, साधक को एक ही रात में जो अनुभव हुए उससे वह तो हिल गया ,अगले दिन स्वामी जी से कारण पूछने पर की क्यों सालो साल छिन्नमस्ता माँ की साधना से फल नहीं मिला, यहाँ एक दिन में ही माँ बल्गामुखी से मिल गया, स्वामी जी ने कहा, बेटा तेरा अकाउंट tranfer कर दिया हैं और कुछ नहीं, साधक के फिर से पूछने पर उन्होंने कहा की माँ तो एक ही हैं, वास्तव में बेटा तू अपने कुल (घर ) में चल रही छिन्नमस्ता साधना को करता आया हैं, परन्तु पिछेले कई जन्मो के उसके संस्कार माँ बगलामुखी के थे. इसी कारन उन्होंने उसके द्वारा किये गए जप को बल्गामुखी माँ के जप में बदल दिया. अब आप लोग समझे ,की सदगुरुदेव की क्या आवश्यकता होती हैं और क्यों .

यहाँ तक की इस ब्लॉग के एक लेखक को पूज्य सदगुरुदेव जी ने माँ छिन्नमस्ता की साधन बताए थी, परन्तु उनसे वोह पत्र में लिखी बात भूल गए ,और वह माँ तारा की साधना करते रहे, कई वर्ष के बाद उन्हें वह पत्र मिला, अपनी गलती समझ कर उन्होंने सदगुरुदेव से बात की, परन्तु जबाब आया की माँ तारा की साधन ही करते रहो,बदलने की जरूरत नहीं हैं. वोह ये बात समझ नहीं पाए की पहले तो सदगुरुदेव ने कुछ और बोला था, अब क्योँ नहीं बदल सकते हैं, कई वर्षों के बाद उन्हें ये ज्ञात हुए की दस महाविद्या वास्तव में मूल रूप से तीन महाविद्या हैं और माँ छिन्नमस्ता ,का माँ तारा में ही समहिती करण माना जाता हैं.

तो अवलोकन कीजिये अपनी कुंडली का और देखिये क्या कहती है आपकी कुंडली .

Horoscope and Astro Combination of Success in sadhana

The whole universe is divided into 12 zodiac sign and 27 stars, and our birth horoscope also consider as a form of that KAAL PURUSH also divided between 12 parts. Each of these part known as STHAN or Bhav. and nine planet situated in theses bhav shows us their effect. The lord of the zodic sign situated in that bhav / sthan is known as Bhavesh (lord of that bhav). Planet situation in that bhava’s play such an amazing game, do not ask for that..

And where can ,we know about the games, yes brother, from the place known as Lagna (Asendent). That represents , person or earth in birth horoscope, where person can see the effect of various planets situated in that bhava. How correct birth horoscope is, can only be decided by the garbh kundli or beej kundli, other wise general kundli /horoscope is used for only time pass purpose. reason is very clear that how can we ascertain the correctness of birth time……. The very difficult work is that. When birth time in not correct then how can prediction based on that horoscope be true. prediction made by you is just a guess.

If the birth time is correct then the kundli based on that become true and the prediction offered on the various dept of life also come true.

( in that above fig. various bhav number mentioned in as text, they are not changeable one, yes it is true that the number in that bhav come after the astrological calculation can change since they come out based on birth time calculation. You can check the fifth and ninth bhav, you can also check through own kundli what is written in place of lagna means number , i.e. will be your lagan/ascendant, as 1 stands for Aries, and 2 is stands for Taurus, like wise you can take help from the list below. So you can easily know which is your lagna or ascendant.).

The only aim of this post is to analysis a horoscope in light of only the aspect of sadhana related side. So that in which sadhana one can get success by studying the situation of planets. So you can get some introduction, all the sutra appeared here ,are provided by the Sadgurudev, that will help us to know the right path (please remember that this out come is based on your self analysis, since if we pray to Sadgurudev in person for to decide which way is best for us, he will guide us without ever going to the kundali)

I have told you , in mine prev posts about the fifth and ninth bhav, today we will explore our spiritual life through untouched new sutra.

lets start with

1.Mesha/Aries lagan- Surya(sun), lord Dattatraye, ganesh.
2.Vrashbh/Taurus lagna- kuldev (deity of your family),Saturn
3.Mithun/Gemini- kuldev, kuber
4.Kark /cancer- shiv ,ganesh
5.Sihma/leo- sun
6.Kanya/virgo- kulden
7.Tula/libra- kuldevi
8.Vrasachik/scorpion- ganesh
9.Dhanu /segittarius - sun ,ganesh
10.Makara/capricorn- kuber,hanuman,kuldev,Saturn
11.Kumbha/Aquarius--- saturn,kuldevihanuman
12.Meen/pisces- dattaatraye,shiv ganesh
In any of the planet in birth horoscope is strong like ..

If that is

Sun then person will get desired object by worshiping Shakti.

Moon then he will have interest toward Tamsic means.

If mars then shiv upasana.

Mercury then tantra sadhana.

Jupiter then sakar brahma upsana.

Venus then mantra sadhana.

Saturn then expert in mantra ,tantra and very famous.

Like that…………………………..

If Saturn has an aspect on ascendant or on moon then person will be a successful sadhak.

if moon is situated in ninth without any aspect then person will be famous sanyasi.

If the lord of the tenth bhav is in seventh bhav , person will get success in tantra sadhana.

If lord of the ninth is strong and be with Jupiter or Venus then success is sure.

If lord of the tenth situated between two positive planet then also success is sure.

If all the planet situated between Jupiter and moon then mantra sadhana will be much better.

Is all the planet situated in Kendra or in triangle then success achieved through various attempts.

If by any means connection between Jupiter, mars and mercury happens then success also sure.

If Venus and mercury is is in ninth then he will have bramha sakkshatakar.

If exalted sun is with lord of the lagan person will be great sadhak.

If lord of the lagna is aspected by Jupiter then he will be mantra marmagya.

If lord of the tenth is in tenth then he will have success in sakar sadhana.

If lord of the tenth is with Saturn then, he will have success in tamsic sadhana.

If rahu is in eighth bhav, then he can have success in miraculous tantra by his attempts.

If fifth bhav has any connection with sun then he can have success in shakti sadhana.

If ninth bhav has any connection with mars then shiva aradhan is best for him.

If Saturn is in own sign , and in ninth bhav , he will become great sanyasi in old age.

Here I would like to share some fact with a story off course true, one disciples of great swami ji maharaj of datiya, once reached to him as asked why he is not getting success, even though he is doing the chinnmasta sadhan from so many years, he advised him to go for ma balgamukhi sadhana, he did that, he was shocked to see the result in only one day of that sadhana, why he not got success in the chinnmasta sadhana, poojya swamiji replied I have transfer the account only, still the disciples puzzled, again asked for his doubt. He replied smilingly that mother is one, though he is doing ma chhinmasta sadhana because in his home that sadhana is already practicing from so many years. But from the so many previous lives he was having sanskar of ma balgamukhi sadhana. He transfer the ma chhinmasta mantra jap to ma balgamukhi mantra, and that works. Now dear friends , you can understand the why Sadgurudev presence is needed most in sadhana field.

Not only this but one of the author of this blog, had been instructed by sadgurudevji for ma chhinmasta sadhana, but he forgot the letters and word of sadgurudevji, and doing ma tara sadhana, but one day he found that letter, to correct his mistake he again asked Sadgurudev ji regarding this, his replied was he was doing ma tara sadhana go ahead ,no probs ,no need to change that. But he , himself not satisfied, why Sadgurudev ji , not allowed him to go for prev told ma chhinnmasta sadhana. But after some years he was able to know that all the ten mahavidya are actually fully consider in three mahavidya only and ma chinnmasta is consider is in ma tara . so even though, he did mistake but no probs.

so analysis your own horoscope and see what it ,suggest / told to you .

Thursday, December 15, 2011

Pupils how to achieve perfection



शिष्य किस प्रकार से पूर्णता प्राप्त करें, किस प्रकार से अपने जीवन को श्रेष्ठता दे, और अपने में शिष्यत्व के गुण समाहित कर गुरु के योग्य बनें, सदगुरुदेव के कालजयी अमृत वचन शिष्य का अर्थ हैं, नजदीक जाना “शिष्य” का अर्थ हैं, समीपता, निकटता, नजदीकता – जो साधक जितना ही ज्यादा गुरु के समीप जा सकता हैं, गुरु के हृदय को स्पर्श कर सकता हैं, गुरु के हृदय में स्थापित हो सकता हैं, और पूर्ण समर्पण की भावना से गुरु के साथ एकाकार हो सकता हैं, वही सही अर्थों में शिष्य हैं.

विरागोपनिषद में शिष्य के छः गुण बताये हैं, जिससे शिष्य अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकें, जो व्यक्ति या साधक जितनी ही गहराई के साथ इन गुणों को अपने में समाहित कर सकता हैं, वह उतना ही श्रेष्ठ शिष्य बन सकता हैं.

1. शिष्य का दूसरा अर्थ समर्पण हैं, जो जीतनी ही गहरे के साथ गुरु के प्रति समर्पित हैं, वह उतना ही श्रेष्ठ शिष्य हैं, समर्पण में किसी प्रकार की शर्त नहीं होती, समर्पण में बुद्धि प्रधान न होकर भावना प्रधान होती हैं. जो सभी पूर्वा ग्रहों और अपनी विशेषताओं से मुक्त होकर समर्पण करता हैं, वही सही अर्थों में शिष्य बनने का अधिकारी हो सकता हैं.

2. शिष्य की व्यक्तिगत कोई इच्छा या आकांक्षा नहीं होती, जब वह मुक्त गुरु के सामने होता हैं, तब सरल बालक की तरह ही होता हैं, गुरु के सामने तो शिष्य कच्ची मिटटी के लौन्दे की तरह होता हैं, उस समय उसका स्वयं का कोई आकर नहीं होता, ऐसी स्थिति होने पर ही वह सही अर्थों में शिष्य बनने का अधिकारी हो सकता हैं. इसीलिए शिष्य को चाहिए की वह जब भी गुरु के सामने उपस्थित हो, तब वह सारी उपाधियों और विशेषताओं को परे रखकर उपस्थित हो, ऐसा होने पर ही परस्पर पूर्ण तादात्म्य सम्भव हैं.



3. शिष्य आधारभूत रूप से भावना प्रधान होना चाहिए, तर्क प्रधान नहीं, क्योंकि तर्क ही आगे चलकर कुतर्क का रूप धारण कर लेता हैं, आपने अपने जीवन में अपने से ज्यादा उन्हें महत्त्व दिया हैं, इसीलिए गुरु को भावना से ही प्राप्त किया जा सकता हैं यदि गुरु कोई आगया देता हैं, तो उसमें क्यों और कैसे विशेषण लगते ही नहीं हैं, उनकी आगया जीवन की सर्वोपरिता हैं, और उस आज्ञा का पालन करना ही शिष्य का प्रधान और एक मात्र धर्म हैं, यदि आप में क्यों और कैसे विचार विद्यमान हैं तो आपको चाहिए की आप किसी को गुरु बनावें ही नहीं. और जब एक बार आपने किसी को गुरु बना दिया, तो कम से कम संसार में उसके सामने तो क्यों और कैसे विशेषण आने ही नहीं चाहिए, ऐसा होने पर ही पारस्परिक संयोग – सम्बन्ध और एकाकार होना सम्भव हैं.

4. शिष्य परीक्षक नहीं होता, उसे यह अधिकार नहीं हैं, कि वह गुरु की परीक्षा ले, यह कार्य तो गुरु बनाने से पहले किया जा सकता हैं, आप जिस व्यक्तित्व को गुरु बना रहे हैं, उसके बारे में भली प्रकार से जांच ले, विचार कर ले, उसके व्यक्तित्व को परख लें, और जब आप सभी तरीके से संतुष्ट हो जायें, तभी आप उसे गुरु बनावे, पर एक बार जब उसे गुरु बना दिया, तब फिर परीक्षा लेने की स्थिति नहीं आती, ना अपनी तुलना गुरु से की जा सकती हैं, ना एक गुरु की तुलना दुसरे गुरु से की जा सकती हैं. गुरु की आज्ञा में किसी प्रकार की हिचक या व्यवधान समर्पण की भावना में न्यूनता ही देता हैं.

5. शिष्य का अर्थ निकटता होता हैं, और वह जितना ही गुरु के निकट रहता हैं, उतना ही प्राप्त कर सकता हैं, आप अपने शरीर से गुरु के चरणों में उपस्थित रह सकते हैं. यदि सम्भव हो तो साल में तिन या चार बार स्वयं उनके चरणों में जाकर बैठे, क्योंकि गुरु परिवार का ही एक अंश होता हैं, परिवार का मुखिया होता हैं, अतः समय-समय पर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करना, उससे कुछ प्राप्त करना, शिष्य का पहला धर्म हैं, यदि आप गुरु के पास जायेंगे ही नहीं, तो उनसे कुछ प्राप्त ही किस प्रकार से कर सकेंगे? गुरु से बराबर सम्बन्ध बनाये रखना और गुरु के साथ अपने को एकाकार कर लेना ही शिष्यता हैं.

6. गुरु आज्ञा ही सर्वोपरि हैं, जब आप शिष्य हैं तो यह आपका धर्म हैं, कि आप गुरु की आज्ञा का पालन करें गुरु की आज्ञा में कोई ना कोई विशेषता अवश्य छिपी रहती हैं. जितनी क्षमता और शक्ति के द्वारा. जितना ही जल्दी सम्भव हो सकें, गुरु की आज्ञा का पालन करना शिष्यता का धर्म हैं.

विरागोपनिषद के अनुसार जो शिष्य इन गुणों को अपने स्वयं के जीवन में आत्मसात करता हैं, वही सही अर्थों में शिष्य बनने का अधिकारी होता हैं, इसलिए आप अपने स्वयं में झांक कर देखे कि मैं जो गुरु से उम्मीदें लगाये बैठा हूँ, क्या उससे पूर्व मैं सही अर्थों में शिष्य हूँ, या नहीं, क्या मैं शिष्य की कसौटी पर खरा हूँ, या कि आप स्वयं ही इस कसौटी पर अधूरे हैं, तो आप कैसे उम्मीद लगा सकते हैं, कि आपकी इच्छाओं की पूर्ति गुरु कर देंगे. गुरु और शिष्य के सम्बन्ध शीशे की तरह नाजुक और साफ़ होते हैं, थोडी सी ठसक लग जाने से जिस प्रकार शीशे पर दरार आ जाती हैं, उसी प्रकार गुरु और शिष्य के बीच संदेह मतिभ्रम होने पर दरार आ जाती हैं, और वह दरार आगे चलकर खाई का रूप धारण कर लेती हैं, इसलिए शिष्य को चाहिए, कि वह निरंतर अपने मन का विश्लेषण करता रहे, निरंतर यह सोचता रहे कि मैं शिष्य कि कसौटी पर खरा हूँ, या नहीं? क्या मैं शाश्त्रों में वर्णित शिष्य के गुणों को अपने आप में समाहित कर लिया हैं या नहीं? क्या मैं सही अर्थों में शिष्य बन सका हूँ या नहीं? ऐसा विश्लेषण करते रहने से उसका हृदय साफ़ होता रहता हैं, और इन सम्बन्धों में दरार नहीं आ पाती हैं. सम्पूर्ण समर्पण तथा अपने को अंहकार रहित बनाये रखना ही आध्यात्मिक शक्ति को प्राप्त करने का प्रथम पद हैं, यह शक्ति साधना गुरु कृपा से ही प्राप्त हो सकती हैं.


सस्नेह तुम्हारा
नारायण दत्त श्रीमाली.

sadgurudev chalisa.





गुरु वाणी
तुम्हारा जीवन एक सामान्य घटना नहीं है अक सामान्य चिंतन नहीं है ,तुम्हे यह मनुष्य देह अनायास ही प्राप्त नहीं हो गयी है कितने ही संघर्ष कितने ही गुरु के प्रयास इसके पीछे है,अत: इस जीवन को सहज ही मत लेना |इसका मूल्य समझो और मूल उद्देश्य को जानो |

मुझे अत्याधिक वेदना होती है जब तुम एक निद्रा की सी अवस्था में खोये रहते हो ,तुम भ्रम में पड़े रहते हो तथा वे भ्रम तुम्हे मूल लक्ष्य की और बढ़ने से रोकते है ,मानव जीवन पाकर भी आप खोये हुए हो यह आपका दुर्भाग्य ही है |

अगर ऐसा है तो तुम मेरे शिष्य हो ही नहीं सकते क्योंकि अगर आप मेरे शिष्य है तो आपमें यह क्षमता होनी चाहिए कि आप पशुता से उपर उठ कर मनुष्यता तथा मनुष्यता से उपर उठ कर देवता के स्थान पर पहुँच जाए |

शिष्य वही है जो भोतिकता को भोगे परन्तु आपने मूल उद्देश्य से न डगमगाए |उसकी द्रष्टि हमेशा आपने लक्ष्य पर टिकी रहे |मेरे इच्छा है कि तुम्हे उस उच्चतम स्थिति पर स्थापित कर दूं जहा भारत क्या ,पूरे विश्व में तुम्हे चुनोती देने वाला कोई न हो |

मैं तुम्हारी सभी कमियों को ओढने को तैयार हूँ ,मैं तुम्हारे विष रुपी कर्मो को पचाने के लिए तैयार हूँ क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो |तुम मेरे आत्म हो ,तुम मेरे अपने हो ,तुम मेरे हृदय की धडकन हो |

दूसरो की तरह तुम केवल धन ,वैभव ,काम ,ऐश्वर्य में फसे हो क्या यह उचित है |मैंने तो हमेशा तुम्हे संपन्न देखना चाहा है पर आत्म उत्थान की बलि देकर सम्पन्नता प्राप्त करना मेरा उद्देश्य नहीं,अगर तुमने सम्पन्नता प्राप्त कर भी ले और तुम्हारी आध्यात्मिक झोली फटी रह जाए तो सब व्यर्थ है |

तुम्हे आध्यात्मिक धरातल पर उच्चता और श्रेष्ठता की स्थिति तक पहुंचाना चाहता हूँ ,मैं चाहता हूँ फिर तुम जैसा कोई दूसरा अन्य न हो ,तुम हो तो केवल तुम हो |

परन्तु यह स्थिति तभी प्राप्त हो सकेगी जब तुम समर्पण कर दोगे ,मुझमे पूर्ण रूप से एकाकार हो सकोगे ,जब तुम्हारे और मेरे बीच थोड़ी भी दूरी नहीं रहेगी ,जब तुम्हारे कण -कण में गुरु का वास होगा ,जब तुम्हारी हर श्वास में उसी का उच्चारण होगा |
और यह स्थिति प्राप्त करने का सरलतम उपाय है गुरु मंत्र |निरंतर गुरु मंत्र जप द्वारा तुम उस स्थिति को प्राप्त कर सकते हो जबकि गुरु और शिष्य में इंच मात्र की भी दूरी नहीं रहती |ऐसा तुम कर पाओ यही मेरे कामना है |

GURU BHAJAN (गुरु भजन)


LIVE Diwali Pujan 2011






मेरे साथ चलना हैं तो जीवन में तुम्हें अपना द्रष्टिकोण बदलना पड़ेगा, जो
विचार तुम्हारे भीतर भरे हुए हैं, कर सबको निकलकर शून्य की स्थिति उत्पन्न
करनी होगी, तभी तो तुम आनंद का अनुभव कर सकोगे, किसी भी यात्रा पर चलने के
लिए तैयार हो सकोगे, और मैं भी विश्वास के साथ यह देख सकूँगा की अब यह
शिष्य तैयार हैं, अब यह शिष्य कायर नहीं हैं, अब यह शिष्य अपनी शक्ति को,
अपने लक्ष्य को, अपने आनंद को पहिचान गया हैं और इसे कार्य दिया जा सकता
हैं, इसे विचार दिए जा सकते हैं, जो सीधे उसके ह्रदय में स्थान बनायेंगे न
की तर्क - वितर्क करते हुए मस्तिष्क में ही मापतौल करेंगे. तुमने एक शरीर
को गुरु मान लिया हैं, गुरु तो वह तत्व हैं, जिससे जुड़कर तुम उन आयामों
को स्पर्श कर सकते हो, जिनको शास्त्रों ने पूर्णमिदः पूर्णमिदं कहा हैं!
उसके लिए गुरु के शरीर को बांहों में लेने की जरुरत नहीं! आवश्यकता हैं की
तुम अपना मन उनके चरण कमलों में समर्पित करो…. और वह हो पायेगा केवल और
केवल मात्र गुरु सेवा से और गुरु मंत्र जप से!


LIVE Full diwali pujan 2011 on www.techkala.com &
much more on www.siddhashram.us

Download Best Time Schedule Diwali Pujan & Diwali Puja
Method

*** " Please forward the link to enjoy Diwali Pujan & more about Gurudev's to Friends , Family and Guru Bhai " ***

Dr Narayan Dutt Shrimali YE JI AAO SADGURU MAHARAJ