Sunday, February 26, 2012

question answering for sadhana or mantra

दिव्यता के पथ पर नये साधकों और नवागन्तुकों के मन मे अनेक सवाल होते हैं। जिसका जवाब वो अक्सर अन्य साधकों से अनुरोध पुर्वक पूछते हैं और कभी-कभी तो इन्हे काफी परेशान भी होना पड़ता है। फिर कहीं जाकर साधना के पथ पर अग्रसर होने के पद चिन्ह प्रप्त हो पाते हैं या फिर कभी-कभी तो बहुत से महत्वपुर्न तथ्य अनछुए ही रह जाते हैं। इस ग्रूप मे जो भी साधक , साधिका जुड़ें उनका चिन्तन साधना की तरफ़ पूरा सही हो इसके लिये ये एक प्रयास है जिसे आप अवश्य समझें, उम्मीद है आपके कई प्रश्नों का उत्तर आपको यहाँ मिलेगा। और यह लेख खासकर उन व्यक्तियों के लिए भी है जो अभी तक साधना जगत और हमारे अलौकिक निखिल परिवार से अनजान रहे हैं। वो जो मंत्र, तंत्र, यंत्र से अभी तक बिल्कुल बेखबर रहे हैं आप उन्हें भी अपने facebook profile में इस post से कुछ share करके या फिर profile में कहीं इसे स्थान देकर उन्हें जीवन का सही अर्थ समझा सकते हैं…

मनुष्य के जीवन का मूल चिंतन क्या है, अगर आप इस बारे में सोचें.. विचार करें, तो आप ये समझ पाऐंगे की मनुष्य के जीवन का मक्सद केवल साँस लेना नहीं है। हम केवल पैदा होके भोजन करके और बडे होने के लिए और फिर एक दिन मर जाने के लिए ही इस धरती पर इस जगह हम नहीं आए हैं। क्यूंकि अगर मर ही जाना होता तो फिर हमारे पैदा होने का मतलब भी क्या रहा? फिर हमारे इस मृत्यु लोक में आने का प्रयोजन क्या है, हम क्यूँ आए हैं?
कौन बताएगा.. कोई बता सकता है हमारे शास्त्रों के हिसाब से तो केवल गुरू। और वह गुरू जिसने खुद इन रहस्यों को समझा हो। इसके लिए कोई जरूरी नहीं कि लम्बी जटाएँ रखने वाला या भगवा वस्त्र धारण किये हुआ कोई साधू भी गुरू हो, जरूरी नहीं। पूर्णता प्राप्त किए हुए गुरू इतनी आसानी से कहीं भी सडक किनारे नहीं मिलते।वह तो कई जन्मों के पुन्य के उदय होने पर, हजारों साल में एक बार कभी आते हैं। और हमें उस समय उस गुरू को पहचानने की जरूरत है। और हम पेहचान सकते हैं साधना के माध्यम से...

प्र. आज के इस आधुनिक युग मे साधना का क्या महत्व है? मैं अपने रोज के इस busy life मे इसे क्यूँ स्थान दूँ, आखिर इससे होगा क्या..?
उ. आधुनिक जीवन जीने का ये मतलब नहीं की आप अपने जीवन को संकुचित करके रखें। मनुस्य का जीवन और बहुत सारे आयामों के लिए होता जो अक्सर लोग ज्ञान के अभाव मे नहीं समझते और यही कारण रहता कि अक्सर लोगों को लगता है कि सब कुछ पाकर भी जीवन में कुछ कमी है। हम खुद अपनी पूरी life को एक छोटे से घेरे मे रख लेते हैं और मान लेते हैं की हमने हर सुख की अनुभूती कर ली और हमारा जीवन पूर्ण हो गया। हम गलती कर देते हैं। Modern science या आधुनिक विज्ञान बहुत से रहस्यों को नहीं समझ पाता है, इसे हम तंत्र और साधना के माध्यम से ही समझ सकते हैं।

प्र. मुझे तंत्र, मंत्र शब्द से डर लगता है। यह बहुत गलत चीज है?
उ. तंत्र और मंत्र जैसे शब्द से डरने की जरूरत है ही नहीं। ये कुछ गलत नहीं है... तंत्र तो भगवान भोलेनाथ का वह वरदान है जिससे हम अपने जीवन की हर समस्याओं का निराकरण कर एक सुखी जीवन व्यतीत कर सकते हैं। अपने जीवन की प्रत्येक न्यून्ताओं को समाप्त कर सकते हैं और हम जीवन के सही अर्थ को समझ सकते हैं। हाँ ये है की आप इसके Power को नहीं समझ पाए। ये तो एक विज्ञान है जिससे मनुष्य के अन्दर छुपी उस विराट सत्ता को जागृत किय़ा जा सकता है। पूजा करने से शायद कोई फायदा नहीं होता हो, मगर तंत्र से निश्चित अगर हम साधना कर लेते हैं तो हम उन दिव्य शक्तियों को प्राप्त कर ही सकते हैं। इससे तो सिद्धी मिलती ही है। मैं केह रहा हूँ आपसे और पहली बार यह केह रहा हूँ की ऐसा होता है!! इससे तो दिव्य शक्तियाँ जैसे की Telepathy, Clairvoyance, अपने पूर्व जन्मों को देख पाना, पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य लोकों को देख पाना। आपने रामायण, महाभारत जैसे पुराने ग्रंथों में ये पढा ही होगा पर इसको पहले ही गलत या असत्य मान लेना..... आप उस साधना रहस्य और उन मंत्रों को नहीं जान पाए इसलिए ऐसा समझ लिया। वे रहस्य तो गुरू अपने शिष्यों को करवाते ही हैं, अगर शिष्य अपने गुरू से प्रार्थना करे तो।

प्र. गुरू क्या होते हैं और ये कहाँ मिलेंगे?
उ. गुरू उसको कहते हैं जो अपने शिष्य को पूर्णता की ओर अग्रसर करता है। उसके जीवन की हर परेशानी को दूर करता हुआ उसे ब्रह्म से साक्षात्कार करवाता है। समझाता है की ईश्वर ने उसका जन्म क्यूँ किया। गुरू अपने ज्ञान और साध्नात्मक बल से मन के अंधकार को दूर करता है। इसलिए शाष्त्रों में उल्लेख है कि.. "गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः..." गुरू से ज्यादा पवित्र शब्द कुछ नहीं है। गुरू ही होते हैं जो शिष्य के समस्त पाप को अपने ऊपर ले लेते हैं। और प्रत्येक व्यक्ति का कोई गुरू होना ही चाहिए, नहीं तो वह खोता ही रहता है। दुनिया के जितने भी Religions हुए उन सबका आधार गुरू-शिष्य सम्बन्ध ही रहा है। आप चाहे वेद पढ लें, भगवत गीता पढ लें, Holi Bible पढ ले, कुरान पढ लें, गुरू ग्रंथ साहिब पढ लें सबमें आपको "Guru-Disciple Conversation" ही मिलेगा। और यह परम्परा तो हमारे सनातन धर्म में 40 हजार साल से है। पर आज कल हम Modern हो गए, हम भूल गए।

मगर गुरूत्व मरता नहीं, ऐसे श्रेष्ठ गुरू तो आज भी होते हैं और वो हैं। हमारा अत्यन्त सौभाग्य है कि हम युग-पुरूष Dr. Narayan Dutt Shrimali के समय में हैं। जिन्होनें भारतवर्ष के उन अति दुर्लभ साधनाओं को पुनर्जीवित कर हमें अपने छत्र-छाया में रखकर हमारे कई-कई जन्मों के प्यास को शांत किया।
http://en.wikipedia.org/wiki/Narayan_Dutt_Shrimali

प्र॰ गुरुदेव से मुलाकत कहाँ होगी ? कया हमे उनसे मिलने के लिये Appointment लेनी पड़ेगी ?
उ॰ आप व्यक्तिगत रूप से गुरुदेव को अपनी समस्याओं, योजना, विचारों के बारे में बता सकते हैं। मिलने एवं गुरू दीक्षा के लिए विशिष्ट दिनांक का पत्रिका में उल्लेख है।

Address- Kailash Siddhashram,
46, Kapil Vihar,
Pitampura, New Delhi 110034, India.
Phn- 011-27351006.

Pracheen Mantra Yantra Vigyan,
1C, Panchvati Colony,
Ratanada,
Jodhpur 342001, Rajasthan, India.
Phn- 0291-2517025.


पूज्य त्रिमूर्ति गुरुदेव से दीक्षा लेने और अपनी कोई भी समस्या का समाधान पाने हेतु कृपया निम्न पते पर संपर्क करें :
पूज्य गुरुदेव श्री नंदकिशोर श्रीमालीजी 
१४ अ, मेन रोड हाई कोर्ट कोलोनी
सेनापति भवन के पास,
जोधपुर ३४२००१
फ़ोन : ०२९१ - २६३८२०९, २६२४०८१ 

पूज्य गुरुदेव श्री कैलाशचंद्र श्रीमालीजी
१ - क, पंचवटी कोलोनी
एन सी सी ग्राउंड के सामने
रातानाडा,
जोधपुर ३४२०११ 
फ़ोन : ०२९१-२५१७०२५ 

पूज्य गुरुदेव श्री अरविन्द श्रीमालीजी
डॉ श्रीमाली मार्ग, हाई कोर्ट कोलोनी
जोधपुर ३४२००१ 
फ़ोन : ०२९१-२४३३६२३, २४३२२०९ 
पूज्य त्रिमूर्ति गुरुदेवजी से मिलने हेतु :

सिद्धाश्रम साधक परिवार 

प्र. आप तंत्र और मंत्र जैसे बडे शब्द use करते हैं, आखिर ये तंत्र, मंत्र इत्यादि हैं क्या? इससे क्या प्रभाव पडता है, मैं कैसे इसे use कर सकता हूँ?
उ. मंत्र कुछ एक विशेष संस्कृत के शब्दों का समूह होता है जिसके नियमित और नि्रधारित बार उच्चारण करने से, बोलने से हम मन चाहे कार्य कर सकते हैं। तंत्र का मतलब है वह तरिका वह system जिस विधी से हम साधना करें, मंत्र जप इतयादि जो करते हैं। और एक मत्वपू्रण चिज है यंत्र जिसमे उस दैविक शक्ति का निवास होता है जिनकी हम साधना करते हैं, और जिस देवी या देवता से अपना कार्य कराना है, वह इसी यंत्र में स्थापित हैं। ये तिनों चिज की मदद से हम साधना करेंगे। और जब हम मंत्र बोलते हैं और लगातार बोलते रहते हैं तो उससे एक ध्वनि बनती है, vibration निकलता है जो हॉँथ में घूम रही माला से शरीर के विभिन्न चक्रों से होते हुए हृदय स्थल से निकलकर यंत्र की शक्ति को जागरित करती है। सारा खेल Frequency का है जो आपके उच्चारण करने से पैदा हुआ। फिर ये ध्वनि ब्रह्मांड के उस ईष्ट से contact करके आपका काम कराती है। और शास्त्रों मे कहा है कि, "मंत्रोआधिनश्च देवः" यानि आप जिस प्रकार का मंत्र बोलोगे वो देवता उस प्रकार से आपका वह कार्य करेंगे। अरे भई संस्कृत इनकी language ही तो है, तो इनसे बात करनी है तो इनही की language मे बात करोगे न.. hindi बोलने से क्या होगा।

प्र. क्या साधना काम करती है? मैं जैसा चाहूं क्या ठीक वैसा ही तंत्र साधना से संभव है?
उ. बिल्कुल संभव है, और केवल तंत्र के माध्यम से ही संभव है। और कोई दूसरा रास्ता है नहीं। कम से कम आज के युग मे तो सिद्धी पाने का यही एक superfast रास्ता है जब लम्बे समय तक पूजा-पाठ वगैरह.... और उससे कुछ होता भी है?? नहीं। आप आरती करते रहिए धूप अगरबत्ती करते रहिए पूरे साल भर, मगर उससे न आज तक हुआ है न हो सकता है। तब हमें मंत्रों का साहारा लेना चाहिए। पर किसी साधना में सफलता हासिल करने के लिए कुछ नियम भी हैं जिसका पालन करना अत्यन्त अनिवार्य है।

1.. साधना घर के किसी साफ-सुथरी और एकान्त कमरे मे करें। स्वच्छ धुले कपडे हों और जिस रंग की धोती और आसन बताया है, उसी को पहन के करें.. लाल वस्त्र कहा है तो आप पूरे लाल रंग की ही धोती पेहनेंगे।
2.. धोती/ साडी पहनकर ही साधना होती है। jeans, t-shirt नहीं चलेगा because jeans, t-shirt में stiches होते हैं।
3.. आप जहाँ बैठकर जप करें वहां अपने नीचे उसी रंग का आसन जरूर रखें, जिसपर बैठकर ही साधना सफल होती है। आसन उस मंत्र की शक्ति को जमीन में जाने से बचाता है। आसन एक bad conductor का काम करता है।
4.. मंत्र, साधना, गुरू और ईष्ट पर पूर्ण विशवास रखें। सिर्फ टेस्ट करने के लिए, आजमाने के लिए न करें। अगर भरोसा है और साधना पूरी करनी हो तभी करें, यह कोई मजाक नहीं। और जो दृड निशचय के साथ साधना पर बैठता है, केवल उसी को सफलता प्राप्त होती है।
5.. जितने दिनों तक जप करना है वह रोज ऐक ही exact, fixed समय पर हो। अगर 7 दिन जप करना है तो 7 days ऐक ही समय पे शुरू करना है। और जितनी माला करनी है रोज उतना ही जप करें, न कम न ज्यादा ही। मतलब अगर 21 माला करने को कहा है तो 21 माला ही रोज करें।
7.. हर साधना को करने का अलग-अलग ढंग हमारे ऋषियों ने बनाया है। पहले पूरी विधी समझ लें फिर उसके हिसाब से साधना करें।
8.. साधना के दिनों में non-veg food नहीं खाना है। इससे मंत्रों का पर्भाव विफल होने लगता है। प्याज और लेहसुन भी वर्जित है।
9.. ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

प्र. मंत्र जप कैसे करना है?
उ. मंत्रों का स्पष्ट और साफ उच्चारण होना चाहिए। मंत्र के हर बीज को साफ-साफ और हल्के आवाज मे बोलना चाहिए। बहोत जोर से चिल्ला कर बोलने की जरूरत भी नहीं है। बहुत जल्दी-जल्दी या बहुत धीरे भी नहीं.. medium speed होनी चाहिए। और हर बीज का सही उच्चरण करना जरूरी है। मान लीजिए अगर मंत्र है-

।। ह्रीं श्रीं ह्रीं ।।

तो इसका उच्चारण ऐसे होगा- ।। Hreeng Shreem Hreeng ।।

मंत्र जप करते हुए बीच मे किसी से बात नहीं करनी चाहिए। अकेले रूम में साधना करें। माला फेरते हुए हिल्ना डुलना नहीं चाहिए। शांत भाव से ध्यान लगाकर साध्ना करें जैसे meditation कर रहे हैं।

प्र. माला कैसे फेरनी चाहिए?
उ. माला को Right Hand के Thumb, Middle Finger और Ring finger से पकड के हर bead पे एक बार मंत्र बोलना चाहिए। माला के सुमेरू पे मंत्र नहीं बोला जाता। सुमेरू यानी जो सबसे बीच का एक अलग सा मनका होता है। माला clockwise अपने तरफ घुमाते रहना चाहिए। जब सुमेरू के पास पहुंच जाएं तो सुमेरू को पकडे बिना ही माला घुमा लें ताकी आखिरी मनका पहला हो जाए। अगर माला फेरते हुए मंत्र गलत उचचरित हो जाए तो फिर शुरू से माला करने की जरूरत नहीं, आप उसी मनके से दुबारा बोलकर आगे बढ जाएँ।

प्र. साधना में दिशा का क्या महत्व है?
उ. हर साधना को एक निर्धारित दिशा को मुख करके ही करना चाहिए। हर देवता के आने का एक particular direction होता है। देवताओं के आवागमन ज्यादातर पूर्व अथवा उत्तर से होता है।

प्र. साधना के लिए माला, धोती वगेरह कहाँ से लेनी चाहिए?
उ. साधना सामग्री गुरूधाम में ही मिल जाएगी। ये उपकरण प्राण ऊर्जा युक्त होना जरूरी है जोकी यहाँ पर शिष्यों के लिए ही available रेहती हैं।

प्र. मैं हिंदू नहीं हूं, क्या मैं भी साधना कर सकता/सकती हूँ?
उ. भगवान तो एक ही होते हैं। किसी विशेष धर्म का इसपर कब्जा नहीं हैं। "All humans are one".

प्र. मैं एक परिवार वाला हूँ और मैं कोई साधू, सन्यासी नहीं बनना चाहता। मैं कैसे साधना कर सकता हूँ?
उ. व्यक्ति मन से सन्यासी या गृहस्थ होता है। अगर कोई सन्यास लेकर भी दुनिया वालों से लोभ रखता है तो वो सन्यासी है भी नहीं, वह एक ढोंग है। साधना के लिए दुनिया छोडनी नहीं होती वह तो घर पर भी की जा सकती है। बस साधना विधी का ज्ञान होना चाहिए। गुरूदेव तो खुद भी गृहस्थ हैं।

प्र. साधना और सिद्ध पुरूष बनने के लिए तो सबकुछ छोडके जंगल में जाना पडेगा ना? हमारे ऋषि मुनी तो वहीं रहते थे।
उ. जंगल या पहाड पे चढने की जरूरत नहीं आप साधना घर पर ही कर सकते हैं, और घर पर ही अगर एक रूम है और आपको कोई disturb नहीं करता है तो ठीक है। गुरूदेव से दीक्षा लेकर हम घर पर ही गुरू के बताए अनुसार साधना कर सकते हैं।

Friday, February 17, 2012

TOTKA VIGYAN

चाहे कोई प्रयोग कितना भी छोटा या बड़ा हो पर यदि वह आपके जीवन को आरामदायक बनाने में सहयोगी सा होता हैं तो उसे निश्चय ही जीवन में स्थान देना चाहिए . इसी तरह के कुछ प्रयोग आपके लिए ...
1. यदि हर बुधवार , एक पीला केला गाय को खिलाया जाये तो यह धन दायक होता हैं , आवश्यक यह हैं की इस कार्य का प्रारंभ , शुक्ल पक्ष से ही किया जाना चाहिए.
2. यदि धतूरे की जड़ को अपने कमर में बाँध लिया जाये तो यह जो व्यक्ति विशेष स्वपन दोष से पीड़ित हैं उनके लिए लाभदायक होगा.
3. सूर्योदय के पहले किसी भी चोराहे पर जाकर थोडा सा गुड चवा कर थूक दे फिर बिना किसी से बात करे बिना , नहीं पीछे देखे ओरअपने घर आ जाये , आपकी सिरदर्द की बीमारी में यह लाभदायक होगा .
4. अपने व्यापारिक स्थल को यदि वह उन्नति नहीं दे रहा हैं तो एक नीबू लेकर उसे अपने प्रतिष्ठान के चारों ओर घुमाएँ तथा बहार लाकर चार भाग में काट दे ओर फ़ेंक दे. आपकी उन्नति के लिए यही भी लाभदायक होगा.
5. किसी भी शुक्रवार को यदि तेल में थोडा सा गाय का गोबर मिला कर मालिश अपने शरीर की जाये फिर स्नान कर लिया जाये , तो यह व्यक्ति के विभिन्न दोषों को दूर करने में सहयोगी होता हैं .
6. सुबह उठ कर यदि थोडा सा आटा यदि चीटीयों के सामने डाल दे तो यह भी एक पूरे दिन का रक्षाकारक प्रयोग होता हैं .
7. यदि रवि पुष्प के दिन अपामार्ग के पौधे को विधि विधान से उखाड़ लाये ओर फिर तीन माला नवार्ण मंत्र जप करें, इसे पूजा स्थान या अपने व्यापारिक स्थान पर रखे आपके यहाँ धनागम में वृद्धि होगी .
8. परिवार में दोषों को समाप्त करने के लिए कुछ मीठा या मिठाई ओर उसके ऊपर थोडा सा मीठा पानी भी पीपल के वृक्ष की जड़ में अर्पित करे .
9. रविवार के दिन पीपल का वृक्ष नाछुये .
10. यदि व्यक्ति दोपहर के बाद यही पीपल के वृक्ष को स्पर्श करे तो व्यक्ति की अनेको बीमारी स्वतः ही नष्ट होती जाती हैं .
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Every prayog however big or small, if change person life for better than one must apply that, like that ,here some small prayog that will ease your life if applied with faith .
1. 1.each Wednesday , offer a yellow banana to cow this will increase you wealth and that should be start from moon waxing period.
2. Tie black dhaootura root around your waist gives to relief in night fall problem.
3. Before sun rise go to any square and through a little gud after chewing little first ,, and turn back without taking to any one, help to reduces headache.
4. To gain open closed business , taken one nibuu circled all the side of your business promises and after that cut in four piece and through that out.
5. On Friday if any one have massage with oil and little bit cow doung and than have a bath with water all his dosha will be removed.
6. While in the morning when you awake offer some aata( WHEAT FLOUR ) to ant (chiti), this will protect you all round.
7. On ravi pushy day take our chirchitta (apamarg) with full process and chant three round of navarn mantra and place that in your pooja room or your shop , finance incoming will increase.
8. To reduce tension offer some sweet or sweet water/ besan laddu to pepal tree after that add water on that this will very effective totaka.
9. Never touch pepal on Sunday ,
10. One touch pepal tree’s roots every after noon , his incurable illness get vanishes.

Thursday, February 2, 2012

THE DIVINE AND ANCIENT HERMITAGE " SIDDHASHRAM " by PARAMPUJYA GURUDEV NARAYAN DUTT

SIDDHASHRAM SADHAK PARIVAR MUMBAI , IS GROUP OF MUMBAI DISCIPLES OF PARAMHANSA NIKHILESHWARANDA JI WHO IS NONE OTHER THAN MAHAVISHNU NARAYAN KNOWN AS SADGURUDEV NARAYAN DUTT SHRIMALI IN HIS HOUSEHOLDER YOGI AVATAAR . TO KNOW THE LORD IS TO LOVE HIM ...TO LOVE HIM IS TO KNOW ONES OWN REAL SELF. HE IS EVERPRESENT TO GUIDE AND PROTECT LOVINGLY ALL HIS DEVOTED DISCIPLES FROM ALL WORDLY PROBLEMS AS WELL AS SPIRITUAL OBSTACLES AND FINALLY TAKE THE DISCIPLE TO THE DIVINE ASHRAM ....THE BILSS SEEPED "SI


WIDELY APPEARING TO HIS DISCIPLES AS LORD VISHNU IN THEIR MEDITATIONS PARAMPUJYA GURUDEV NARAYAN DUTT SPEAKS ON THE DIVINE AND ANCIENT HERMITAGE " SIDDHASHRAM "
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Wednesday, January 18, 2012

A Guru tests a disciple several times

A Guru tests a disciple several times before He gives the latter something. Before gold is moulded into a crown it is heated in strong fire time and again to purify it. Then it is beaten into sheets or drawn into wires but the gold does not in the least complain because it has full faith in the goldsmith. And the goldsmith transforms it into a crown that rests on the heads of not mortals but gods and goddesses. A Sadguru too subjects a disciple to the fire of His tests in order to make his mind pure....

________________________Dr. Narayan Dutt Shrimali______________________

Monday, January 16, 2012

Pakhandion against rogues and pithy discourse



दिब्य महोत्सव पर गुरुदेवजी का ठगों और पाखंडियों विरुद्ध सारगर्भित प्रवचन
अवस्य सुने :भाग-२
https://dl.dropbox.com/s/1sfwh9v059uhlil/02%20Track%202.mp3

दिब्य महोत्सव पर गुरुदेवजी का ठगों और पाखंडियों विरुद्ध सारगर्भित प्रवचन
अवस्य सुने :भाग-१
https://dl.dropbox.com/s/krpdbh6vhqnyqps/01%20Track%201.mp3


16 गुण बनाते हैं दमदार लीडर........- गुणवान (ज्ञानी व हुनरमंद)

- वीर्यवान (स्वस्थ्य, संयमी और हष्ट-पुष्ट)

- धर्मज्ञ (धर्म के साथ प्रेम, सेवा और मदद करने वाला)

- कृतज्ञ (विनम्रता और अपनत्व से भरा)

- सत्य (बोलने वाला ईमानदार)

- दृढ़प्रतिज्ञ (मजबूत हौंसले)

- सदाचारी (अच्छा व्यवहार, विचार)

- सभी प्राणियों का रक्षक (मददगार)

- विद्वान (बुद्धिमान और विवेक शील)

- सामर्थ्यशाली (सभी का भरोसा, समर्थन पाने वाला)

- प्रियदर्शन (खूबसूरत)

- मन पर अधिकार रखने वाला (धैर्यवान व व्यसन से मुक्त)

- क्रोध जीतने वाला (शांत और सहज)

- कांतिमान (अच्छा व्यक्तित्व)

- किसी की (निंदा न करने वाला सकारात्मक)

- युद्ध में जिसके क्रोधित होने पर देवता भी डरें (जागरूक, जोशीला, गलत बातों का विरोधी)

Tuesday, January 10, 2012

Amritwani Bhajans (Part 1) Jai Prkashji


###Bhajans### be Care full
Pllz attentions ye mantra aam mantra nahi ese yu hi na bajaye.....................
jab aap sant chit ho tabhi sune ye mantra se sabhi devi devata aa jate hai 
jab aaap ki bhavana sahi ho tabhi sune nahi to nahi....


jay guru dev









Mantra Tantra Yantra Vigyan Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji

 
१.अमृतवाणी (भाग-१)-जय प्रकाशजी
(त्वमेव माता च पिता त्वमेव)
https://dl.dropbox.com/s/hxqhe1fghpbxm2f/1.mp3

२.अखंड मंडलाकारम ब्याप्तं येन चराचरम-जय प्रकाशजी
https://dl.dropbox.com/s/uowly4nobxeabvi/2.mp3

३.निखिल बिनय सागर करे साक्षी सारे देव -जय प्रकाशजी
https://dl.dropbox.com/s/qdi5xxmgc93kahh/07%20Track%207.mp3

४.तेरे भक्त पुकार रहे है चरणों में शीश झुकाए खड़े है
https://dl.dropbox.com/s/ujamvzhes5arih3/SSK%20-%20Tere%20Bhakta%20Pukar%20Rahe%20Hain.mp3

५.गुरु नाम रश पीजै(गुरु मंत्र )
https://www.dropbox.com/s/df6y4h2195xxq1m/siddhashram_2008-05-09T18_46_47-07_00.mp3




सरल तंत्र साधना विधान सिर्फ आपके लिए .....श्रंखला भाग-11
आज एक ऐसा ही प्रयोग

मित्रो , कभी कभी यह भी संभव हैं की किसी ऐसे रास्ते से हमारा निकलना हो जहाँ पर हमें कुछ अज्ञात का भय समाया दीखता हो , फिर वह सत्य हो या नहीं यह एक अलग बात हैं पर उ स स्थान की ऋ णा त्मक उर्जा के कारण या फिर हमारे शरीर की उर्जा का उस उर्जा से सही संयोग न होने के कारण ऐसा कई बार होता हैं, एक ऐसा ही मन्त्र आपके सामने रख रहा हुं जो की तंत्रग्यो द्वारा बहुत ही प्रशंसित हैं ..
बस इसको याद कर ले और जब भी किसी भी ऐसे स्थान से निकलना हो आप इस मंत्र का तीन बार उच्चारण करे और एक ताली बजा दे , इन इतर योनिया अगर सच में वहां हैं तो उनसे आपकी रक्षा होगी ही .

मंत्र : रास्ते मुझे खुदा कस्त दीदम गुम सदी की राशि
Raaste mujhe khuda kast didam gum sadi ki raashi




क्रमशः.............
****जय गुरुदेव***

Bijatmk tantra and bhagya Utkiln vidhan बीजात्मक तंत्र और भाग्य उत्कीलन विधान

बीजात्मक तंत्र और भाग्य उत्कीलन विधान
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सामान्य मानव जीवन अपेक्षाओं और मनोरथों के दो पहियों पर टिका हुआ है,जिनकी पूर्ती होने से सुख और पूर्ती न होने से दुःख का अनुभव होता है ,और हम अपने जीवन को उन्नति की और अग्रसर होने के लिए भाग्य का मुँह ताकते बैठते हैं की कब वो हमारा सहयोग करे और हम जीवन में उन्नति के शिखर को छू सके . पर क्या सच में भाग्य सदैव हमारा सहयोग करता है.... नहीं ऐसा हमेशा तो नहीं होता,क्या तब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना उचित है ? वास्तविकता ये है की भाग्य कर्म का अनुगामी है और जिसे कर्म करना आता है भाग्य सदैव उसके पीछे पीछे दौड़ता है , बहुधा जीवन की विपन्नता और गरीबी को हम रोते हैं,विविध प्रयोग भी करते हैं ,परन्तु हमें लाभ नहीं होता है,तब अक्सर हम क्रिया को दूषण देने का कार्य करने लगते हैं जबकि हम ये बात भूल जाते हैं की प्रारब्ध,संचित और क्रियमाण कर्मों का मल जब तक हमारे सौभाग्य के ऊपर अपना आवरण डाले रहेगा तब तक हम चाहे लाख प्रयत्न क्यूँ न करें,हमारे द्वारा किये गए प्रयासों से हमारा भाग्य कदापि नहीं जागेगा.
जब बात हम करते हैं की कर्म का अनुगामी भाग्य होता है तो इसका अर्थ शारीरिक परिश्रम तो होता ही है परन्तु उसके साथ साधनात्मक कर्म भी अनिवार्य होता है,और जब ये दोनों कर्म सकारात्मक दिशा में होते हैं तो,विपन्नता का नाश होकर,उन्नति,वर्चश्व,ऐश्वर्य,सौभाग्य और सम्मान की प्राप्ति होती ही है.
हम विपन्नता की अवस्था में हम आकस्मिक धन प्राप्ति के वृहद अनुष्ठान को संपन्न करते हैं ,पर क्या ये सही क्रम है ? नहीं ना,क्यूंकि दुर्भाग्र निवारण,दरिद्रता नाश और तत्पश्चात श्री आमंत्रण क्रम करना उचित होता है,तदुपरांत लक्ष्मी का श्री के रूप में आपके जीवन में आगमन होता है और उसके बाद जब हम लक्ष्मी कीलन या स्थिरीकरण की क्रिया करते हैं तो लक्ष्मी जन्म जन्मान्तरों के लिए हमारे कुल में स्थायी रूप से निवास करती हैं. स्मरण रखने योग्य तथ्य ये है की वृहद अनुष्ठान कभी भी आपको शीग्र लाभ नहीं दे सकते हैं क्योंकि उन्हें सिद्ध करने के लिए जो एकाग्रता,चित्त की सध्नाव्धि में इष्ट के साथ होने तारतम्यता का आभाव होना स्वाभाविक होता है और दीर्घ अनुष्ठान प्रारंभिक स्तर पर चित्त को उद्विग्न भी कर देते हैं अतः गृहस्थों को या जिन्हें शीघ्र लाभ चाहिए होता है उन्हें बीजात्मक साधनाओं को सम्पादित करना चाहिए.सदगुरुदेव के आशीर्वाद से ये अतिशीघ्र लाभ भी देते हैं और सिद्ध भी जल्दी हो जाते हैं तथा “यथा बीजम तथा अंकुरम्” की उक्ति को चरितार्थता भी तभी प्राप्त होती है जब आपका बीज पुष्ट हो तभी तो उसका आधार प्राप्त कर साधना आपके समस्त मल का नाश कर आपको आपका अभीष्ट प्रदान करती है.
याद रखिये प्रत्येक बीज के चैतान्यीकरण और जागरण की प्रथक प्रथक क्रिया होती है जो आपके उद्देश्य को दिशा देती है ,जैसे “क्लीं” बीज का यदि वशीकरण साधना के लिए प्रयोग करना हो तो उसे जाग्रत करने और स्वप्राण घर्षित करने की क्रिया भिन्न होगी उस क्रिया से जो की संहार के लिए प्रयुक्त की गयी हो.
यहाँ पर हम बात आर्थिक उन्नति की कर रहे हैं ,तो जब जॉब में या व्यवसाय में अथवा सामान्य जीवन में आप पैसों के लिए मोहताज हो गए हो तो किसी भी अन्य लक्ष्मी प्राप्ति प्रयोग को करते समय यदि “ह्रीं” बीज का सायुज्यीकरण कर दिया जाये तो वह प्रक्रिया निसंदेह अपना तीव्र प्रभाव प्रदान करती है ,और यदि मात्र इसी बीज का प्रयोग किया जाये तब भी आर्थिक बाधाओं का नाश तो करती ही है साथ ही साथ नौकरी या व्यवसाय पर छाये हानि के बादलों को भी पूरी तरह समाप्त कर देती है ,प्रयोग बड़ा या छोटा होने से प्रभाव की प्राप्ति नहीं होती है अपितु उसकी पद्धति कितनी विश्वसनीय है और उसका आधार क्या है ये ज्यादा महत्वपूर्ण है ,याद रखिये “ह्रीं’ महाकाली,महासरस्वती और महालक्ष्मी तीनों का ही बीज है अर्थात त्रिगुण शक्तियों से परिपूर्ण है अर्थात ,शक्ति,वेग और तीव्रता का संयुक्त रूप,अतः इसका कैसे सयुज्यीकरण किया जायेगा ये ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य होता है किसी भी क्रिया के पूर्ण होने के लिए.
हम बात आर्थिक लाभ या सम्मान या नौकरी या व्यवसाय के स्थायिव की कर रहे है तब इसका प्रयोग कैसे किया जाए मात्र उससे अवगत करना ही मेरा उद्देश्य है –
किसी भी रात्रि को विशुद्ध शहद १०० ग्राम लेकर एक कांच के पात्र में रख ले और उस पात्र को सदगुरुदेव,गणपति और हाथों से स्वर्ण बरसाती पद्म लक्ष्मी के सामने स्थापित कर दे,घृत दीपक प्रज्वलित करे और गुलाब धुप और गुलाब पुष्प से पूजन करे ,साफ़ वस्त्र व आसन हो रात्री या संध्या का समय हो, सफ़ेद कागज या ज्यादा उचित है की भोजपत्र पर अष्टगंध के द्वारा अनार की कलम से “ह्रीं” लिखे और अपना पूर्ण नाम लिख कर फिर से “ह्रीं” लिख दे,ये बहुत ही छोटे कागज या पत्र पर लिखना है.इसके बाद उसी स्थान पर बैठे बैठे बीज मंत्र की ३ माला हकीक या मूंगे माला से करे ,और उसके बाद उस पत्र की गोली बनाकर उस शहद में डुबो दे ,ये क्रम मात्र ३ दिन करना है अर्थात आपको नित्य बीजंकन कर के उसके सामने पूजन तथा जप करना है और मधु में डुबो देना है.इसके साथ आप अन्य प्रयोग भी कर सकते हैं या यदि अन्य लक्ष्मी प्रयोग न कर रहे हो तो इस बीज की माला संख्या ७ कर दीजिए और दिन की अवधि ५ कर दीजियेगा,अंतिम दिवस जप के दुसरे दिन उस पात्र में से सभी गोलियों को निकाल कर किसी बहते साफ़ जल में प्रवाहित कर दे और शहद का आप स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए नित्य सेवन भी कर सकते हैं या वशीकरण साधना में भी प्रयोग कर सकते हैं,सेवन करने के लिए एक इलायची को नित्य उसमे भिगोकर खाना चाहिए. ये सदगुरुदेव की असीम अनुकम्पा है की हमारे मध्य इतने सरल परन्तु अचूक प्रयोग प्राप्य है,आप स्वयं ही इसे कर के प्रभाव देख सकते हैं